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Bhaktaparigna भक्तपरिज्ञा Ardha-Magadhi

शाश्वत अशाश्वत सुखं

Hindi 5 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नर-विबुहेसरसोक्खं दुक्खं परमत्थओ तयं बिंति । परिणामदारुणमसासयं च जं ता अलं तेण ॥

Translated Sutra: पंड़ित पुरुष मानव और देवताओं का जो सुख है उसे परमार्थ से दुःख ही कहते हैं, क्योंकि वो परिणाम से दारुण और अशाश्वत है। इसलिए उस सुख से क्या लाभ ? (यानि वो सुख का कोई काम नहीं है)।
Bhaktaparigna ભક્તપરિજ્ઞા Ardha-Magadhi

शाश्वत अशाश्वत सुखं

Gujarati 5 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नर-विबुहेसरसोक्खं दुक्खं परमत्थओ तयं बिंति । परिणामदारुणमसासयं च जं ता अलं तेण ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 77 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जं नाणं तं करणं, जं करणं पवयणस्स सो सारो । जो पवयणस्स सारो सो परमत्थो त्ति नायव्वो ॥

Translated Sutra: जो ज्ञान है, वो ही करण – चारित्र है, जो चारित्र है, वो ही प्रवचन का सार है, और जो प्रवचन का सार है, वही परमार्थ है ऐसे मानना चाहिए।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 78 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थगहियसारा बंधं मोक्खं च ते वियाणंता । नाऊण बंध-मोक्खं खवेंति पोराणयं कम्मं ॥

Translated Sutra: प्रवचन के परमार्थ को अच्छी तरह से ग्रहण करनेवाला पुरुष ही बँध और मोक्ष को अच्छी तरह जानकर वो ही पुरातन – कर्म का क्षय करते हैं।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 85 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थम्मि सुदिट्ठे अविनट्ठेसु तव-संजमगुणेसु । लब्भइ गई विसिट्ठा सरीरसारे विनट्ठे वि ॥

Translated Sutra: श्रुतज्ञान द्वारा परमार्थ का यथार्थ दर्शन होने से, तप और संयम गुण को जीवनभर अखंड़ रखने से मरण के वक्त शरीर संपत्ति नष्ट हो जाने से जीव को विशिष्ट गति – सद्‌गति और सिद्धगति प्राप्त होती है।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 153 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थओ मुनीणं अवराहो नेव होइ कायव्वो । छलियस्स पमाएणं पच्छित्तमवस्स कायव्वं ॥

Translated Sutra: परमार्थ से मुनि को अपराध करना ही नहीं चाहिए, प्रमादवश हो जाए तो प्रायश्चित्त अवश्य करना चाहिए
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Gujarati 77 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जं नाणं तं करणं, जं करणं पवयणस्स सो सारो । जो पवयणस्स सारो सो परमत्थो त्ति नायव्वो ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૨
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Gujarati 78 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थगहियसारा बंधं मोक्खं च ते वियाणंता । नाऊण बंध-मोक्खं खवेंति पोराणयं कम्मं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૨
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Gujarati 85 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थम्मि सुदिट्ठे अविनट्ठेसु तव-संजमगुणेसु । लब्भइ गई विसिट्ठा सरीरसारे विनट्ठे वि ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૨
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Gujarati 153 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थओ मुनीणं अवराहो नेव होइ कायव्वो । छलियस्स पमाएणं पच्छित्तमवस्स कायव्वं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 43 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे अनहियपरमत्थे गोयमा! संजए भवे । तम्हा ते विवज्जेज्जा दोग्गईपंथदायगे ॥

Translated Sutra: संयम में व्यवहार करने के बाद भी परमार्थ को न जाननेवाले और दुर्गति के मार्ग को देनेवाले ऐसे अगीतार्थ को दूर से ही त्याग करे।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 45 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थओ विसं नो तं, अमयरसायणं खु तं । निव्विग्घं जं न तं मारे, मओ वि सो अमयस्समो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 47 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थओ न तं अमयं, विसं हालाहलं खु तं । न तेण अजरामरो हुज्जा, तक्खणा निहणं वए ॥

Translated Sutra: परमार्थ से वो अमृत न होने से सचमुच हलाहल झहर है, इसलिए वो अजरामर नहीं होता, लेकिन उसी वक्त नष्ट होता है।
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Gujarati 43 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे अनहियपरमत्थे गोयमा! संजए भवे । तम्हा ते विवज्जेज्जा दोग्गईपंथदायगे ॥

Translated Sutra: સંયત હોવા છતાં હે ગૌતમ ! પરમાર્થને ન જાણનાર અને દુર્ગતિપંથદાયક એવા અગીતાર્થને દૂરથી જ તજવા.
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Gujarati 45 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थओ विसं नो तं, अमयरसायणं खु तं । निव्विग्घं जं न तं मारे, मओ वि सो अमयस्समो ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૪
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Gujarati 47 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थओ न तं अमयं, विसं हालाहलं खु तं । न तेण अजरामरो हुज्जा, तक्खणा निहणं वए ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૬
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

1. निश्चय-व्यवहार ज्ञान समन्वय Hindi 28 View Detail
Mool Sutra: जह ण वि सक्कमणज्जो, अणज्जभासं विणा उ गाहेउं। तह ववहारेण विणा, परमत्थुवएसणमसक्कं ।।

Translated Sutra: उत्तर : जिस प्रकार म्लेच्छ जनों को म्लेच्छ भाषा के बिना कुछ भी समझाना शक्य नहीं है, उसी प्रकार तत्त्वमूढ साधारण जन को व्यवहार के बिना परमार्थ का उपदेश देना शक्य नहीं है। (अर्थात् विश्लेषण किये बिना प्राथमिक जनों को अद्वैत तत्त्व का परिचय कराना शक्य नहीं है।)
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

8. आत्मसंयम अधिकार - (विकर्म योग)

5. अस्तेय (अचौर्य)-सूत्र Hindi 171 View Detail
Mool Sutra: गामे वा णयरे वा, रण्णे वा पेच्छिऊण परमत्थं। जो मुंचदि गहणभावं, तिदियवदं होदि तस्सेव ।।

Translated Sutra: ग्राम में, नगर में या वन में परायी वस्तु को देखकर जो मन में उसके ग्रहण करने का भाव नहीं लाता है, उसको तीसरा (अस्तेय या अचौर्य) महाव्रत होता है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 1 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ॐ नमो तित्थस्स। ॐ नमो अरहंताणं। सुयं मे आउसं तेण भगवया एवमक्खायं– इह खलु छउमत्थ-संजम-किरियाए वट्टमाणे जे णं केइ साहू वा, साहूणी वा, से णं इमेणं परमत्थ-तत्त-सार- सब्भूयत्थ-पसाहग- सुमहत्थातिसय-पवर-वर- महानिसीह-सुयक्खंध- सुयानु-सारेणं तिविहं तिविहेणं सव्व-भाव-भावंतरंतरेहि णं नीसल्ले भवित्ताणं आयहियट्ठाए अच्चंत-घोर-वीरुग्गं कट्ठ-तव-संजमानुट्ठाणेसुं सव्व-पमायालंबनविप्पमुक्के अनुसमयमहन्निसमनालसत्ताए सययं अनिव्विन्ने अनन्न-परम-सद्धा-संवेग-वेरग्ग-मग्गगए निन्नियाणे अनिगूहिय-बल-वीरिय-पुरिसक्कार -परक्कमे अगिलाणीए वोसट्ठ-चत्त-देहे सुनिच्छि-एगग्ग-चित्ते-अभिक्खणं

Translated Sutra: तीर्थ को नमस्कार हो, अरहंत भगवंत को नमस्कार हो। आयुष्मान्‌ भगवंत के पास मैंने इस प्रकार सुना है कि, यहाँ जो किसी छद्मस्थ क्रिया में वर्तते ऐसे साधु या साध्वी हो वो – इस परमतत्त्व और सारभूत चीज को साधनेवाले अति महा अर्थ गर्भित, अतिशय श्रेष्ठ, ऐसे ‘‘महानिसीह’’ श्रुतस्कंध श्रुत के मुताबिक त्रिविध (मन, वचन, काया)
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 15 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थ-तत्त-सिट्ठं सब्भूयत्थ पसाहगं। तब्भणियानुट्ठाणेणं जे आया रंजए सकं॥

Translated Sutra: परम अर्थयुक्त, तत्त्व स्वरूप में सिद्ध हुए, सद्‌भुत चीज को साबित कर देनेवाले ऐसे, वैसे पुरुषों ने किए अनुष्ठान द्वारा वो (निर्दोष) आत्मा खुद को आनन्दित करता है। वैसे आत्मा में उत्तमधर्म होता है उत्तम तप – संपत्ति शील चारित्र होते हैं इसलिए वो उत्तम गति पाते हैं। सूत्र – १५, १६
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 55 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जइ णं सुंदरगं पासे, सिमिणगं तो इमं महा। परमत्थ-तत्त-सारत्थं सल्लुद्धरणं सुणेत्तुणं॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ५३
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 68 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थ-तत्त-सारत्थं, सल्लुद्धरणमिमं सुणे। सुणित्ता तहमालोए जह आलोयंतो चेव उप्पए केवलं नाणं॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ६७
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 840 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहन्नया तेसिं दुरायाराणं सद्धम्म परंमुहाणं अगार धम्माणगार धम्मोभयभट्ठाणं लिंग मेत्त णाम पव्वइयाणं कालक्कमेणं संजाओ परोप्परं आगम वियारो। जहा णं सड्ढगाणमसई संजया चेव मढदेउले पडिजागरेंति खण्ड पडिए य समारावयंति। अन्नं च जाव करणिज्जं तं पइ समारंभे कज्ज-माणे जइस्सावि णं नत्थि दोस संभवं। एवं च केई भणंति संजम मोक्ख नेयारं, अन्ने भणंति जहा णं पासायवडिंसए पूया सक्कार बलि विहाणाईसु णं तित्थुच्छप्पणा चेव मोक्खगमणं। एवं तेसिं अविइय परमत्थाणं पावकम्माणं जं जेण सिट्ठं सो तं चेवुद्दामुस्सिंखलेणं मुहेणं पलवति। ताहे समुट्ठियं वाद संघट्टं। नत्थि य कोई तत्थ आगम कुसलो

Translated Sutra: अब किसी समय दुराचारी अच्छे धर्म से पराङ्मुख होनेवाले साधुधर्म और श्रावक धर्म दोनों से भ्रष्ट होनेवाला केवल भेष धारण करनेवाले हम प्रव्रज्या अंगीकार की है – ऐसा प्रलाप करनेवाले ऐसे उनको कुछ समय गुजरने के बाद भी वो आपस में आगम सम्बन्धी सोचने लगे कि – श्रावक की गैरमोजुदगी में संयत ऐसे साधु ही देवकुल मठ उपाश्रय
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1180 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहवा मुणियं तु परमत्थ-जाणगे अनुमती कया। संघट्टंतीए चिडुल्लीए, सीलं तेण विराहियं॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ११७८
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 408 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) तहा य इत्थीओ नाम गोयमा पलय-काल-रयणी-मिव सव्व-कालं तमोवलित्ताओ भवंति। (२) विज्जु इव खणदिट्ठ-नट्ठ-पेम्माओ भवंति। (३) सरणागय-घायगो इव एक्क-जम्मियाओ तक्खण-पसूय-जीवंत-मुद्ध-निय-सिसु-भक्खीओ इव महा-पाव-कम्माओ भवंति। (४) खर-पवणुच्चालिय-लवणोवहि-वेलाइव बहु-विह-विकप्प-कल्लोलमालाहिं णं। खणं पि एगत्थ हि असंठिय-माणसाओ भवंति। (५) सयंभुरमणोवहिममिव दुरवगाह-कइतवाओ भवंति। (६) पवणो इव चडुल-सहावाओ भवंति (७) अग्गी इव सव्व-भक्खाओ, वाऊ इव सव्व-फरिसाओ, तक्करो इव परत्थलोलाओ, साणो इव दानमेत्तमेत्तीओ, मच्छो इव हव्व-परिचत्त-नेहाओ, (१) एवमाइ-अनेग-दोस-लक्ख-पडिपुन्न-सव्वंगोवंग-सब्भिंतर-बाहिराणं

Translated Sutra: हे गौतम ! यह स्त्री प्रलयकाल की रात की तरह जिस तरह हंमेशा अज्ञान अंधकार से लिपीत है। बीजली की तरह पलभर में दिखते ही नष्ट होने के स्नेह स्वभाववाली होती है। शरण में आनेवाले का घात करनेवाले लोगों की तरह तत्काल जन्म दिए बच्चे के जीव का ही भक्षण करनेवाले समान महापाप करनेवाली स्त्री होती है, सज्जक पवन के योग से घूंघवाते
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 463 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भयवं जे विदिय-परमत्थे सव्व-पच्छित्त-जाणगे। ते किं परेसिं साहिंति नियम-कज्जं जहट्ठियं ॥

Translated Sutra: हे भगवंत ! जो परमार्थ को जाननेवाले होते हैं, तमाम प्रायश्चित्त का ज्ञाता हो उन्हें भी क्या अपने अकार्य जिस मुताबिक हुए हो उस मुताबिक कहना पड़े ? हे गौतम ! जो मानव तंत्र मंत्र से करोड़ को शल्य बिना और ड़ंख रहित करके मूर्च्छित को खड़ा कर देते हैं, ऐसा जाननेवाले भी ड़ंखवाले हुए हो, निश्चेष्ट बने हो, युद्ध में बरछी के घा से
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 494 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं किमेयस्स अचिंत-चिंतामणि-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स सुत्तत्थं पन्नत्तं गोयमा (२) इयं एयस्स अचिंत-चिंतामणी-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स णं सुत्तत्थं-पन्नत्तं (३) तं जहा–जे णं एस पंचमं-गल-महासुयक्खंधे से णं सयलागमंतरो ववत्ती तिल-तेल-कमल-मयरंदव्व सव्वलोए पंचत्थिकायमिव, (४) जहत्थ किरियाणुगय-सब्भूय-गुणुक्कित्तणे, जहिच्छिय-फल-पसाहगे चेव परम-थुइवाए (५) से य परमथुई केसिं कायव्वा सव्व-जगुत्तमाणं। (६) सव्व-जगुत्तमुत्तमे य जे केई भूए, जे केई भविंसु, जे केई भविस्संति, ते सव्वे चेव अरहंतादओ चेव नो नमन्ने ति। (७) ते य पंचहा १ अरहंते, २ सिद्धे, ३ आयरिए,

Translated Sutra: हे भगवंत ! क्या यह चिन्तामणी कल्पवृक्ष समान पंच मंगल महाश्रुतस्कंध के सूत्र और अर्थ को प्ररूपे हैं ? हे गौतम ! यह अचिंत्य चिंतामणी कल्पवृक्ष समान मनोवांछित पूर्ण करनेवाला पंचमंगल महा श्रुतस्कंध के सूत्र और अर्थ प्ररूपेल हैं। वो इस प्रकार – जिस कारण के लिए तल में तैल, कमल में मकरन्द, सर्वलोक में पंचास्तिकाय
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 517 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता गोयमा णं एसेऽत्थ परमत्थे तं जहा– भावच्चणमुग्ग-विहारया य, दव्वच्चणं तु जिन-पूया। पढमा जतीण, दोन्नि वि गिहीन, पढम च्चिय पसत्था॥

Translated Sutra: भाव – अर्चन प्रमाद से उत्कृष्ट चारित्र पालन समान है। जब कि द्रव्य अर्चन जिनपूजा समान है। मुनि के लिए भाव अर्चन है और श्रावक के लिए दोनों अर्चन बताए हैं। उसमें भाव अर्चन प्रशंसनीय है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 530 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता परमसार-भूयं विसेसवंतं च साहुवग्गस्स। एगंत-हियं पत्थं सुहावहं पयडपरमत्थं

Translated Sutra: देखो सूत्र ५२८
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 893 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो भविया वीइय परमत्थो जग-ट्ठिइ-वियाणगो। एयाइं तु पयाइं जो, गोयमा णं विडंबए॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८९०
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1065 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भयवं जावइयं दिट्ठं, तावइयं कहणुपालिया। जे भवे अवीय-परमत्थे, किच्चाकिच्चमयाणगे॥

Translated Sutra: हे भगवंत ! जितना देखा हो या जाना हो तो उसका पालन उतने प्रमाण में किस तरह कर सके ? जिन्होंने अभी परमार्थ नहीं जाना, कृत्य और अकृत्य के जानकार नहीं है। वो पालन किस तरह कर सकेंगे ? हे गौतम ! केवली भगवंत एकान्त हीत वचन को कहते हैं। वो भी जीव का हाथ पकड़कर बलात्कार से धर्म नहीं करवाते। लेकिन तीर्थंकर भगवान के बताए हुए
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1068 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे अविइय परमत्थे किच्चाकिच्चमजाणगे। अंधो अंधी एतेसिं समं जल-थलं गड्ड-टिक्कुरं॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १०६५
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1077 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता जे अविदिय-परमत्थे, गोयमा नो य जे मुणे। तम्हा ते विवज्जेज्जा, दोग्गई-पंथ-दायगे॥

Translated Sutra: इसलिए जो परमार्थ को नहीं जानते और हे गौतम ! जो अज्ञानी हैं, वो दुर्गति के पंथ को देनेवाले ऐसे पृथ्वीकाय आदि कि विराधना गीतार्थ गुरु निश्रा में रहकर संयम आराधना करनी। गीतार्थ के वचन से हलाहल झहर का पान करना। किसी भी विकल्प किए बिना उनके वचन के मुताबिक तत्काल झहर का भी भक्षण कर लेना। परमार्थ से सोचा जाए तो वो विष
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1079 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थओ विसं तोसं, अमयरसायणं खु तं। णिव्विकप्पं न संसारे, मओ वि सो अमयस्समो॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १०७७
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1081 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थओ न तं अमयं, विसं तं हलाहलं। ण तेण अयरामरो होज्जा, तक्खणा निहणं वए॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १०७७
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1138 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा एयं वियाणित्ता अचिरा गीयत्थे मुनी। भवेज्जा विदिय परमत्थे, सारासारे पारण्णुए॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ११२४
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1484 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ ते णं काले णं ते णं समएणं सुसढणामधेज्जे अनगारे हभूयवं। तेणं च एगेगस्स णं पक्खस्संतो पभूय-ट्ठाणिओ आलोयणाओ विदिन्नाओ सुमहंताइं च। अच्चंत घोर सुदुक्कराइं पायच्छित्ताइं समनुचिन्नाइं। तहा वि तेणं विरएणं विसोहिपयं न समुवलद्धं ति एतेणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ। से भयवं केरिसा उ णं तस्स सुसढस्स वत्तव्वया गोयमा अत्थि इहं चेव भारहेवासे, अवंती नाम जनवओ। तत्थ य संबुक्के नामं खेडगे। तम्मि य जम्मदरिद्दे निम्मेरे निक्किवे किविणे निरणुकंपे अइकूरे निक्कलुणे णित्तिंसे रोद्दे चंडरोद्दे पयंडदंडे पावे अभिग्गहिय मिच्छादिट्ठी अणुच्चरिय नामधेज्जे

Translated Sutra: हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहा ? उस समय में उस समय यहाँ सुसढ़ नाम का एक अनगार था। उसने एक – एक पक्ष के भीतर कईं असंयम स्थानक की आलोचना दी और काफी महान घोर दुष्कर प्रायश्चित्त का सेवन किया। तो भी उस बेचारे को विशुद्धि प्राप्त नहीं हुई। इस कारण से ऐसा कहा। हे भगवंत ! उस सुसढ़ की वक्तव्यता किस तरह की है ? हे गौतम ! इस भारत
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 1 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ॐ नमो तित्थस्स। ॐ नमो अरहंताणं। सुयं मे आउसं तेण भगवया एवमक्खायं– इह खलु छउमत्थ-संजम-किरियाए वट्टमाणे जे णं केइ साहू वा, साहूणी वा, से णं इमेणं परमत्थ-तत्त-सार- सब्भूयत्थ-पसाहग- सुमहत्थातिसय-पवर-वर- महानिसीह-सुयक्खंध- सुयानु-सारेणं तिविहं तिविहेणं सव्व-भाव-भावंतरंतरेहि णं नीसल्ले भवित्ताणं आयहियट्ठाए अच्चंत-घोर-वीरुग्गं कट्ठ-तव-संजमानुट्ठाणेसुं सव्व-पमायालंबनविप्पमुक्के अनुसमयमहन्निसमनालसत्ताए सययं अनिव्विन्ने अनन्न-परम-सद्धा-संवेग-वेरग्ग-मग्गगए निन्नियाणे अनिगूहिय-बल-वीरिय-पुरिसक्कार -परक्कमे अगिलाणीए वोसट्ठ-चत्त-देहे सुनिच्छि-एगग्ग-चित्ते-अभिक्खणं

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: તીર્થને નમસ્કાર થાઓ. અરહંત ભગવંતને નમસ્કાર થાઓ. અનુવાદ: આયુષ્યમાન એવા ભગવંતો પાસે મેં આ પ્રમાણે સાંભળેલ છે કે – અહીં જે કોઈ છદ્મસ્થ ક્રિયામાં વર્તતા એવા સાધુ કે સાધ્વી હોય તેઓ – આ પરમ તત્વ અને સારભૂત પદાર્થને સાધી આપનાર અતિ મહા અર્થગર્ભિત, અતિશય શ્રેષ્ઠ એવા ‘મહાનિશીથ’ શ્રુતસ્કંધ શ્રુતના અનુસારે
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 15 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थ-तत्त-सिट्ठं सब्भूयत्थ पसाहगं। तब्भणियानुट्ठाणेणं जे आया रंजए सकं॥

Translated Sutra: પરમ અર્થયુક્ત, તત્ત્વરૂપે સિદ્ધ થયેલ, અદ્‌ભૂત પદાર્થોને સાબિત કરી આપનાર એવા, તેવા પુરુષોએ કરેલ અનુષ્ઠાન વડે તે નિર્દોષ આત્મા પોતાને આનંદ પમાડે છે. તેવા આત્માઓ ઉત્તમ ધર્મ હોય છે, ઉત્તમ તપ સંપત્તિ – શીલ – ચારિત્ર હોય છે. તેથી તેઓ ઉત્તમ ગતિ પામે છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૫, ૧૬
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 55 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जइ णं सुंदरगं पासे, सिमिणगं तो इमं महा। परमत्थ-तत्त-सारत्थं सल्लुद्धरणं सुणेत्तुणं॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૩
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 494 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं किमेयस्स अचिंत-चिंतामणि-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स सुत्तत्थं पन्नत्तं गोयमा (२) इयं एयस्स अचिंत-चिंतामणी-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स णं सुत्तत्थं-पन्नत्तं (३) तं जहा–जे णं एस पंचमं-गल-महासुयक्खंधे से णं सयलागमंतरो ववत्ती तिल-तेल-कमल-मयरंदव्व सव्वलोए पंचत्थिकायमिव, (४) जहत्थ किरियाणुगय-सब्भूय-गुणुक्कित्तणे, जहिच्छिय-फल-पसाहगे चेव परम-थुइवाए (५) से य परमथुई केसिं कायव्वा सव्व-जगुत्तमाणं। (६) सव्व-जगुत्तमुत्तमे य जे केई भूए, जे केई भविंसु, जे केई भविस्संति, ते सव्वे चेव अरहंतादओ चेव नो नमन्ने ति। (७) ते य पंचहा १ अरहंते, २ सिद्धे, ३ आयरिए,

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! શું આ ચિંતામણી કલ્પવૃક્ષ સમાન પંચમંગલ મહાશ્રુતસ્કંધના સૂત્ર અને અર્થ પ્રરૂપેલા છે ? હે ગૌતમ ! આ અચિંત્ય ચિંતામણી કલ્પવૃક્ષ સમ મનોવાંછિત પૂર્ણ કરનાર શ્રુતસ્કંધના સૂત્ર અને અર્થ પ્રરૂપેલ છે. તે આ રીતે – જેમ તલમાં તેલ, કમલમાં મકરંદ, સર્વલોકમાં પંચાસ્તિકાય વ્યાપીને રહેલા છે, તેમ આ પંચમંગલ મહાશ્રુતસ્કંધ
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 68 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थ-तत्त-सारत्थं, सल्लुद्धरणमिमं सुणे। सुणित्ता तहमालोए जह आलोयंतो चेव उप्पए केवलं नाणं॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૭
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Gujarati 408 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) तहा य इत्थीओ नाम गोयमा पलय-काल-रयणी-मिव सव्व-कालं तमोवलित्ताओ भवंति। (२) विज्जु इव खणदिट्ठ-नट्ठ-पेम्माओ भवंति। (३) सरणागय-घायगो इव एक्क-जम्मियाओ तक्खण-पसूय-जीवंत-मुद्ध-निय-सिसु-भक्खीओ इव महा-पाव-कम्माओ भवंति। (४) खर-पवणुच्चालिय-लवणोवहि-वेलाइव बहु-विह-विकप्प-कल्लोलमालाहिं णं। खणं पि एगत्थ हि असंठिय-माणसाओ भवंति। (५) सयंभुरमणोवहिममिव दुरवगाह-कइतवाओ भवंति। (६) पवणो इव चडुल-सहावाओ भवंति (७) अग्गी इव सव्व-भक्खाओ, वाऊ इव सव्व-फरिसाओ, तक्करो इव परत्थलोलाओ, साणो इव दानमेत्तमेत्तीओ, मच्छो इव हव्व-परिचत्त-नेहाओ, (१) एवमाइ-अनेग-दोस-लक्ख-पडिपुन्न-सव्वंगोवंग-सब्भिंतर-बाहिराणं

Translated Sutra: ગૌતમ ! સ્ત્રીઓ પ્રલયકાળની રાત્રિ સમ હંમેશા અંધકાર અજ્ઞાનથી લીંપાયેલ હોય છે. વિજળી સમ ક્ષણમાં જોતા જ નાશ પામવાના સ્નેહ સ્વભાવવાળી, શરણાગત ઘાતકની જેમ તત્કાળ જન્મ આપેલ બાળકના જીવનું જ ભક્ષણ કરનાર સમ મહાપાપ કરનારી સ્ત્રીઓ હોય છે. પવનયોગે ઉછળતી લવણ સમુદ્રવેળા સમાન અનેક પ્રકારના તરંગોની શ્રેણીની જેમ એક સ્થાને
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Gujarati 463 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भयवं जे विदिय-परमत्थे सव्व-पच्छित्त-जाणगे। ते किं परेसिं साहिंति नियम-कज्जं जहट्ठियं ॥

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! પરમાર્થજ્ઞાતા પ્રાયશ્ચિત્તજ્ઞે પણ પોતાના અકાર્યો બીજાને કહેવા પડે ? ગૌતમ ! મનુષ્યો મંત્ર, તંત્રથી કરોડોને નિઃશલ્ય અને ડંખ રહિત કરી મૂર્ચ્છિતોને પણ ઊભા કરી શકે. એવા જ્ઞાતા પણ ડંખવાળા થાય. નિશ્ચેષ્ટ બને, યુદ્ધમાં ઘવાય. તેને બીજા શલ્ય રહિત – મૂર્ચ્છા રહિત બનાવે. એમ શીલથી ઉજ્જવલ સાધુ પણ નિપુણ હોવા છતાં
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 517 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता गोयमा णं एसेऽत्थ परमत्थे तं जहा– भावच्चणमुग्ग-विहारया य, दव्वच्चणं तु जिन-पूया। पढमा जतीण, दोन्नि वि गिहीन, पढम च्चिय पसत्था॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૧૫
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 530 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता परमसार-भूयं विसेसवंतं च साहुवग्गस्स। एगंत-हियं पत्थं सुहावहं पयडपरमत्थं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૨૮
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Gujarati 840 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहन्नया तेसिं दुरायाराणं सद्धम्म परंमुहाणं अगार धम्माणगार धम्मोभयभट्ठाणं लिंग मेत्त णाम पव्वइयाणं कालक्कमेणं संजाओ परोप्परं आगम वियारो। जहा णं सड्ढगाणमसई संजया चेव मढदेउले पडिजागरेंति खण्ड पडिए य समारावयंति। अन्नं च जाव करणिज्जं तं पइ समारंभे कज्ज-माणे जइस्सावि णं नत्थि दोस संभवं। एवं च केई भणंति संजम मोक्ख नेयारं, अन्ने भणंति जहा णं पासायवडिंसए पूया सक्कार बलि विहाणाईसु णं तित्थुच्छप्पणा चेव मोक्खगमणं। एवं तेसिं अविइय परमत्थाणं पावकम्माणं जं जेण सिट्ठं सो तं चेवुद्दामुस्सिंखलेणं मुहेणं पलवति। ताहे समुट्ठियं वाद संघट्टं। नत्थि य कोई तत्थ आगम कुसलो

Translated Sutra: કોઈ સમયે દુરાચારી સદ્ધર્મથી પરાંગમુખ થયેલ સાધુ ધર્મ અને શ્રાવકધર્મથી ભ્રષ્ટ થયેલ માત્ર વેષ ધારણ કરનાર અમે પ્રવ્રજ્યા અંગીકાર કરી છે, એમ પ્રલાપ કરનારા એવા તેઓનો કેટલોક કાળ ગયા પછી તેઓ પરસ્પર આગમ સંબંધ વિચારવા લાગ્યા કે શ્રાવકોની ગેરહાજરીમાં સંયત સાધુઓ જ દેવકુલ મઠ ઉપાશ્રયનો સાર સંભાળ રાખે અને જિનમંદિરો
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Gujarati 893 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो भविया वीइय परमत्थो जग-ट्ठिइ-वियाणगो। एयाइं तु पयाइं जो, गोयमा णं विडंबए॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૯૦
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Gujarati 1065 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भयवं जावइयं दिट्ठं, तावइयं कहणुपालिया। जे भवे अवीय-परमत्थे, किच्चाकिच्चमयाणगे॥

Translated Sutra: હે ભગવન્‌ ! જેટલું દેખ્યું કે જાણ્યું હોય, તેનું પાલન તેટલા જ પ્રમાણમાં કેવી રીતે કરી શકાય ? જેઓએ હજુ પરમાર્થ જાણ્યો નથી, કૃત્ય અને અકૃત્યના જાણકાર થયા નથી. તેઓ પાલન કેવી રીતે કરી શકશે ? ગૌતમ ! કેવલીઓ એકાંત હીતવચનને કહે છે, તેઓ પણ જીવોના હાથ પકડીને બળાત્કારે ધર્મ કરાવતા નથી. પરંતુ તીર્થંકરે કહેલા વચનને જે તહત્તિ
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Gujarati 1068 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे अविइय परमत्थे किच्चाकिच्चमजाणगे। अंधो अंधी एतेसिं समं जल-थलं गड्ड-टिक्कुरं॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૬૫
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