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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-५ उपसर्ग सन्मान विधूनन | Hindi | 208 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: Translated Sutra: भिक्षु विवेकपूर्वक धर्म का व्याख्यान करता हुआ अपने आपको बाधा न पहुँचाए, न दूसरे को बाधा पहुँचाए और न ही अन्य प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को बाधा पहुँचाए। किसी भी प्राणी को बाधा न पहुँचाने वाला तथा जिससे प्राण, भूत, जीव और सत्त्व का वध हो, तथा आहारादि की प्राप्ति के निमित्त भी (धर्मोपदेश न करने वाला) वह महामुनि | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-९ प्रयोगबंध | Hindi | 425 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे य पंचेंदियवेउव्वियसरीर-प्पयोगबंधे य।
जइ एगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे किं वाउक्काइयएगिंदियसरीरप्पयोगबंधे? अवाउक्काइय-एगिंदियसरीरप्पयो-गबंधे?
एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउव्वियसरीरभेदो तहा भाणियव्वो जाव पज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअनुत्तरोववाइयकप्पातीयवेमानियदेवपंचिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे य, अपज्जत्तासव्वट्ठसिद्ध अनुत्तरोववाइयकप्पातीयवेमानियदेवपंचिंदियवेउव्वि-यसरीरप्पयोगबंधे य।
वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! Translated Sutra: भगवन् ! वैक्रियशरीर – प्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का है। एकेन्द्रियवैक्रियशरीर – प्रयोगबंध और पंचेन्द्रियवैक्रियशरीर – प्रयोगबंध। भगवन् ! यदि एकेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध है, तो क्या वह वायुकायिक एकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबंध है अथवा अवायुकायिक एकेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-३ पृथ्वी | Hindi | 761 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–सिय भंते! जाव चत्तारि पंच पुढविक्काइया एगयओ साधारणसरीरं बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति?
नो इणट्ठे समट्ठे। पुढविक्काइयाणं पत्तेयाहारा पत्तेयपरिणामा पत्तेयं सरीरं बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेस्साओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! चत्तारि लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा, तेउलेस्सा।
ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्ठी? मिच्छदिट्ठी? सम्मामिच्छदिट्ठी?
गोयमा! नो सम्मदिट्ठी, मिच्छदिट्ठी, नो सम्मामिच्छदिट्ठी।
ते णं भंते! जीवा किं Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् पूछा – भगवन् ! क्या कदाचित् दो यावत् चार – पाँच पृथ्वीकायिक मिलकर साधारण शरीर बाँधते हैं, बाँधकर पीछे आहार करते हैं, फिर उस आहार का परिणमन करते हैं और फिर इसके बाद शरीर का बन्ध करते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्योंकि पृथ्वीकायिक जीव प्रत्येक – पृथक् – पृथक् आहार करने वाले हैं | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-८ निवृत्ति | Hindi | 770 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! जीवनिव्वत्ती पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा जीवनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं० एगिंदियजीवनिव्वत्ती जाव पंचिंदियजीव-निव्वत्ती
एगिंदियजीवनिव्वत्ती णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा– पुढविक्काइयएगिंदियजीवनिव्वत्ती जाव वणस्सइकाइय-एगिंदियजीवनिव्वत्ती।
पुढविकाइयएगिंदियजीवनिव्वत्ती णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– सुहुमपुढविकाइयएगिंदियजीवनिव्वत्ती य, बादरपुढवि-काइय-एगिंदियजीवनिव्वत्ती य। एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहा वड्डगबंधो तेयगसरीरस्स जाव–सव्वट्ठ सिद्धअनुत्तरोववातियकप्पातीतवेमानियदेवपंचिंदियजीवनिव्वत्ती Translated Sutra: भगवन् ! जीवनिर्वृत्ति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की – एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति यावत् पंचेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति। भगवन् ! एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की – पृथ्वी – कायिक – एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति यावत् वनस्पतिकायिक – एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-१ | Hindi | 977 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सम्मद्दिट्ठीणं चत्तारि भंगा, मिच्छादिट्ठीणं पढम-बितिया, सम्मामिच्छादिट्ठीणं एवं चेव।
नाणीणं चत्तारि भंगा, आभिनिबोहियनाणीणं जाव मनपज्जवनाणीणं चत्तारि भंगा, केवलनाणीणं चरिमो भंगो जहा अलेस्साणं।
अन्नाणीणं पढम-बितिया, एवं मइअन्नाणीणं, सुयअन्नाणीणं, विभंगनाणीण वि।
आहारसण्णोवउत्ताणं जाव परिग्गहसण्णोवउत्ताणं पढम-बितिया, नोसण्णोवउत्ताणं चत्तारि।
सवेदगाणं पढम-बितिया। एवं इत्थिवेदगा, पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदगा वि। अवेदगाणं चत्तारि।
सकसाईणं चत्तारि, कोहकसाईणं पढम-बितिया भंगा, एवं माणकसायिस्स वि, मायाकसायिस्स वि। लोभकसायिस्स चत्तारि भंगा।
अकसायी णं भंते! जीवे Translated Sutra: सम्यग्दृष्टि जीवों में (पूर्ववत्) चारों भंग जानना चाहिए। मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में पहला और दूसरा भंग जानना चाहिए। ज्ञानी जीवों में चारों भंग पाए जाते हैं। आभिनिबोधिकज्ञानी से मनःपर्यवज्ञानी जीवों तक भी चारों ही भंग जानना। केवलज्ञानी जीवों में अन्तिम एक भंग अलेश्य जीवों के समान | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-१ | Hindi | 978 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइए णं भंते! पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ?
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी, पढम-बितिया।
सलेस्से णं भंते! नेरइए पावं कम्मं? एवं चेव। एवं कण्हलेस्से वि, नीललेस्से वि, काउलेस्से वि। एवं कण्हपक्खिए सुक्कपक्खिए, सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी, नाणी आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी, अन्नाणी मइअन्नाणी सुयअन्नाणी विभंगनाणी, आहारसण्णोवउत्ते जाव परिग्गहसण्णोवउत्ते, सवेदए नपुंसकवेदए, सकसायी जाव लोभकसायी सजोगी मणजोगी वइजोगी कायजोगी, सागरोवउत्ते अनागारोवउत्ते– एएसु सव्वेसु पदेसु पढम-बितिया भंगा भाणियव्वा।
एवं असुरकुमारस्स वि वत्तव्वया भाणियव्वा, नवरं–तेउलेसा, Translated Sutra: भगवन् ! क्या नैरयिक जीव ने पापकर्म बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा ? गौतम ! किसी ने पापकर्म बाँधा था, इत्यादि पहला और दूसरा भंग। भगवन् ! क्या सलेश्य नैरयिक जीव ने पापकर्म बाँधा था ? गौतम ! पहला और दूसरा भंग। इसी प्रकार कृष्ण, नील और कापोतलेश्या वाले जीव में भी प्रथम और द्वीतिय भंग। इसी प्रकार कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-१ | Hindi | 979 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ? एवं जहेव पावकम्मस्स वत्तव्वया तहेव नाणावरणिज्जस्स वि भाणियव्वा, नवरं–जीवपदे मनुस्सपदे य सकसाइम्मि जाव लोभकसाइम्मि य पढम-बितिया भंगा, अवसेसं तं चेव जाव वेमाणिया। एवं दरिसणावरणिज्जेणं वि दंडगो भाणियव्वो निरवसेसो
जीवे णं भंते! वेयणिज्जं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ। सलेस्से वि एवं चेव ततियविहूणा भंगा। कण्हलेस्से जाव पम्हलेस्से पढम-बितिया भंगा। सुक्कलेस्से ततियविहूणा भंगा। अलेस्से चरिमो भंगो। कण्हपक्खिए Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीव ने ज्ञानावरणीय कर्म बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा ? गौतम ! पापकर्म के समान ज्ञानावरणीय कर्म कहना, परन्तु जीवपद और मनुष्यपद में सकषायी यावत् लोभकषायी में प्रथम और द्वीतिय भंग ही कहना। यावत् वैमानिक तक कहना। ज्ञानावरणीयकर्म के समान दर्शनावरणीयकर्म कहना। भगवन् ! क्या जीव ने वेदनीयकर्म | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-१ | Hindi | 980 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! आउयं कम्मं किं बंधी बंधइ–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी चउभंगो। सलेस्से जाव सुक्कलेस्से चत्तारि भंगा। अलेस्से चरिमो भंगो।
कण्हपक्खिए णं–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ। सुक्कपक्खिए सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी चत्तारि भंगा।
सम्मामिच्छादिट्ठी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ। नाणी जाव ओहिनाणी चत्तारि भंगा।
मनपज्जवनाणी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ। केवलनाणे चरिमो भंगो। एवं Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीव ने आयुष्यकर्म बाँधा था, इत्यादि प्रश्न। गौतम ! किसी जीवने बाँधा था, इत्यादि चारों भंग हैं। सलेश्य से लेकर शुक्ललेश्यी जीवों तक में चारों भंग पाए जाते हैं। अलेश्य जीवों में एकमात्र अन्तिम भंग है। भगवन् ! कृष्णपाक्षिक जीव ने (आयुष्यकर्म) बाँधा था, इत्यादि प्रश्न। गौतम ! किसी जीव ने बाँधा था, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-३ प्राणवध | Hindi | 783 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! पाणाइवाए, मुसावाए जाव मिच्छादंसणसल्ले, पाणातिवायवेरमणे जाव मिच्छादंसण-सल्लविवेगे, उप्पत्तिया वेणइया कम्मया पारिणामिया, ओग्गहे ईहा अवाए धारणा, उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे, नेरइयत्ते, असुरकुमारत्ते जाव वेमानियत्ते, नाणावरणिज्जे जाव अंत-राइए, कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा, सम्मदिट्ठी मिच्छदिट्ठी सम्मामिच्छदिट्ठी, चक्खुदंसणे अचक्खु-दंसणे ओहिदंसणे केवलदंसणे, आभिनिबोहियनाणे जाव विभंगनाणे, आहारसण्णा भयसण्णा मेहुणसण्णा परिग्गहसण्णा, ओरालियसरीरे वेउव्वियसरीरे आहारगसरीरे तेयगसरीरे कम्मगसरीरे, मणजोगे वइजोगे कायजोगे, सागारोवओगे, अनागारोवओगे, Translated Sutra: भगवन् ! प्राणातिपात, मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शनशल्य, औत्पत्तिकी यावत् पारिणामिकी बुद्धि, अवग्रह यावत् धारणा, उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार – पराक्रम; नैरयिकत्व, असुरकुमारत्व यावत् वैमानिकत्व, ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म, कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-२ दुःख | Hindi | 27 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! सव्वे समाहारा? सव्वे समसरीरा? सव्वे समुस्सासनीसासा?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइया नो सव्वे समाहारा? नो सव्वे समसरीरा? नो सव्वे समुस्ससानीसासा?
गोयमा! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–महासरीरा य, अप्पसरीरा य। तत्थ णं जे ते महासरीरा ते बहुत्तराए पोग्गले आहारेंति, बहुतराए पोग्गले परिणामेंति, बहुतराए पोग्गले उस्ससंति, बहुतराए पोग्गले नीससंति; अभिक्खणं आहारेंति, अभिक्खणं परिणामेंति, अभिक्खणं उस्ससंति, अभिक्खणं नीससंति।
तत्थ णं जे ते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारेंति, अप्पतराए पोग्गले परिणामेंति, अप्पतराए Translated Sutra: भगवन् ! क्या सभी नारक समान आहार वाले, समान शरीर वाले, तथा समान उच्छ्वास – निःश्वास वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं; जैसे कि – महाशरीरी और अल्पशरीरी। इनमें जो बड़े शरीर वाले हैं, वे बहुत पुद्गलों का आहार करते हैं, बहुत पुद्गलों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-५ पृथ्वी | Hindi | 64 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव नेरइया किं सम्मदिट्ठी? मिच्छदिट्ठी? सम्मामिच्छदिट्ठी?
तिन्नि वि।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव सम्मदंसणे वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता? सत्तावीसं भंगा।
एवं मिच्छदंसणे वि।
सम्मामिच्छदंसणे असीतिभंगा।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव नेरइया किं नाणी, अन्नाणी?
गोयमा! नाणी वि, अन्नाणी वि। तिन्नि नाणाइं नियमा। तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव आभिनिबोहियनाणे वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता? सत्तावीसं भंगा।
एवं तिन्नि नाणाइं, तिन्नि अन्नाणाइं भाणियव्वाइं।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव नेरइया किं मणजोगी? वइजोगी? कायजोगी?
तिन्नि Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले नारक जीव क्या सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, या सम्यग्मिथ्या – दृष्टि (मिश्रदृष्टि) हैं ? हे गौतम ! वे तीनों प्रकार के होते हैं। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में बसने वाले सम्यग्दृष्टि नारक क्या क्रोधोपयुक्त यावत् लोभोपयुक्त हैं ? गौतम ! इनके क्रोधोपयुक्त आदि | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Hindi | 167 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सणंकुमारे णं भंते! देविंदे देवराया किं भवसिद्धिए? अभवसिद्धिए? सम्मद्दिट्ठी? मिच्छद्दिट्ठी? परित्त-संसारिए? अनंतसंसारिए? सुलभबोहिए? दुल्लभबोहिए? आराहए? विराहए? चरिमे? अचरिमे?
गोयमा! सणंकुमारे णं देविंदे देवराया भवसिद्धिए, नो अभवसिद्धिए। सम्मद्दिट्ठी, नो मिच्छद्दिट्ठी। परित्तसंसारिए, नो अनंत-संसारिए। सुलभबोहिए, नो दुल्लभबोहिए। आराहए, नो विराहए। चरिमे, नो अचरिमे।
से केणट्ठेणं भंते!
गोयमा! सणंकुमारे णं देविंदे देवराया बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं हियकामए सुहकामए पत्थकामए आणुकंपिए निस्सेससिए हिय-सुह-निस्सेसकामए। से तेणट्ठेणं गोयमा! Translated Sutra: हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार क्या भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ?; सम्यग्दृष्टि हैं, या मिथ्या – दृष्टि हैं ? परित्त संसारी हैं या अनन्त संसारी ? सुलभबोधि हैं, या दुर्लभबोधि ?; आराधक है, अथवा विराधक ? चरम है अथवा अचरम ? गौतम ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार, भवसिद्धिक है, अभवसिद्धिक नहीं; इसी तरह वह सम्यग्दृष्टि | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-६ नगर | Hindi | 191 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा मायी मिच्छदिट्ठी वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए विभंगनाणलद्धीए वाणारसिं नगरिं समोहए, समोहणित्ता रायगिहे नगरे रूवाइं जाणइ-पासइ?
हंता जाणइ-पासइ।
से भंते! किं तहाभावं जाणइ-पासइ? अन्नहाभावं जाणइ-पासइ?
गोयमा! नो तहाभावं जाणइ-पासइ, अन्नहाभावं जाणइ-पासइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ– तहाभावं जाणइ-पासइ? अन्नहाभावं जाणइ-पासइ?
गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं रायगिहे नगरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए रूवाइं जाणामि-पासामि सेसं दंसण-विवच्चासे भवइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–नो तहाभावं जाणइ-पासइ, अन्नहाभावं जाणइ-पासइ।
अनगारे णं भंते! भावियप्पा Translated Sutra: भगवन् ! राजगृह नगर में रहा हुआ मिथ्यादृष्टि और मायी भावितात्मा अनगार वीर्यलब्धि से, वैक्रियलब्धि से और विभंगज्ञानलब्धि से वाराणसी नगरी की विकुर्वणा करके क्या तद्गत रूपों को जानता – देखता है ? हाँ, गौतम ! वह जानता और देखता है। भगवन् ! क्या वह (उन रूपों को) यथार्थरूप से जानता – देखता है, अथवा अन्यथाभाव से जानता | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-६ नगर | Hindi | 192 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भाविअप्पा अमायी सम्मदिट्ठी वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए रायगिहं नगरं समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रूवाइं जाणइ-पासइ?
हंता जाणइ-पासइ।
से भंते! किं तहाभावं जाणइ-पासइ? अन्नहाभावं जाणइ-पासइ?
गोयमा! तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अन्नहाभावं जाणइ-पासइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अन्नहाभावं जाणइ-पासइ?
गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं रायगिहे नयरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रूवाइं जाणामि-पासामि सेस दंसण-अविवच्चासे भवति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अन्नहाभावं जाणइ-पासइ।
अनगारे णं भंते! Translated Sutra: भगवन् ! अमायी सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार, अपनी वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धि और अवधिज्ञानलब्धि से, राजगृहनगर और वाराणसी नगरी के बीच में एक बड़े जनपदवर्ग को जानता – देखता है ? हाँ (गौतम ! उस जनपदवर्ग को) जानता – देखता है। भगवन् ! क्या वह उस जनपदवर्ग को तथाभाव से जानता और देखता है, अथवा अन्यथाभाव से ? गौतम! वह उस जनपदवर्ग | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 235 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! पणीयं मणं वा, वइं वा धारेज्जा?
हंता धारेज्जा।
जण्णं भंते! केवली पणीयं मणं वा, वइं वा धारेज्जा, तण्णं वेमाणिया देवा जाणंति-पासंति?
गोयमा! अत्थेगतिया जाणंति-पासंति, अत्थेगतिया न जाणंति, न पासंति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतिया जाणंति-पासंति, अत्थेगतिया न जाणंति, न पासंति?
गोयमा! वेमाणिया देवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– माइमिच्छादिट्ठी उववन्नागा य, अमाइ-सम्मदिट्ठी-उववन्नगा य। तत्थ णं जे ते माइमिच्छादिट्ठीउववन्नगा ते ण जाणंति ण पासंति। तत्थ णं जे ते अमाइसम्मदिट्ठीउववन्नगा ते णं जाणंति-पासंति।
से केणट्ठेणं? गोयमा! अमाइसम्मदिट्ठी दुविहा पन्नत्ता, Translated Sutra: भगवन् ! क्या केवली प्रकृष्ट मन और प्रकृष्ट वचन धारण करता है ? हाँ, गौतम ! धारण करता है। भगवन् केवली जिस प्रकार के प्रकृष्ट मन और प्रकृष्ट वचन को धारण करता है, क्या उसे वैमानिक देव जानते – देखते हैं ? गौतम ! कितने ही (वैमानिक देव उसे) जानते – देखते हैं, और कितने ही नहीं जानते – देखते। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-३ महाश्रव | Hindi | 278 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] १ बहुकम्म २ वत्थपोग्गल-पयोगसा-वीससा य ३ सादीए ।
४ कम्मट्ठिति ५ त्थि ६ संजय ७ सम्मदिट्ठी य ८ सन्नी य ॥ Translated Sutra: १. बहुकर्म, २. वस्त्रमें प्रयोग से और स्वाभाविक रूप से (विस्रसा) पुद्गल, ३. सादि, ४. कर्मस्थिति, ५. स्त्री, ६. संयत, ७. सम्यग्दृष्टि, ८. संज्ञी, ९. भव्य, १०. दर्शन, ११. पर्याप्त, १२. भाषक, १३. परित्त, १४. ज्ञान, १५. योग, १६. उपयोग, १७. आहारक, १८. सूक्ष्म, १९. चरम – बन्ध २०. अल्पबहुत्व का वर्णन इस उद्देशकमें किया गया है। सूत्र – २७८, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-३ महाश्रव | Hindi | 284 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जं णं भंते! कम्मं किं इत्थी बंधइ? पुरिसो बंधइ? नपुंसओ बंधइ? नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ बंधइ?
गोयमा! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ, नपुंसओ वि बंधइ। नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ सिय बंधइ सिय नो बंधइ।
एवं आउगवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ।
आउगं णं भंते! कम्मं किं इत्थी बंधइ? पुरिसो बंधइ? नपुंसओ बंधइ? नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ बंधइ?
गोयमा! इत्थी सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। पुरिसो सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। नपुंसओ सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ न बंधइ।
नाणावरणिज्जं णं भंते! कम्मं किं संजए बंधइ? अस्संजए बंधइ? संजयासंजए बंधइ? नोसंजए नोअसंजए नोसंजयासंजए बंधइ?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या स्त्री बाँधती है ? पुरुष बाँधता है, अथवा नपुंसक बाँधता है ? अथवा नो – स्त्री – नोपुरुष – नोनपुंसक बाँधता है ? गौतम ! ज्ञानावरणीयकर्म को स्त्री भी बाँधती है, पुरुष भी बाँधता है और नपुंसक भी बाँधता है, परन्तु नोस्त्री – नोपुरुष – नोनपुंसक होता है, वह कदाचित् बाँधता है, कदाचित् नहीं | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-४ सप्रदेशक | Hindi | 286 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसे? अपदेसे?
गोयमा! नियमा सपदेसे।
नेरइए णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसे? अपदेसे?
गोयमा! सिय सपदेसे, सिय अपदेसे।
एवं जाव सिद्धे।
जीवा णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा? अपदेसा?
गोयमा! नियमा सपदेसा।
नेरइया णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा? अपदेसा?
गोयमा! १. सव्वे वि ताव होज्जा सपदेसा २. अहवा सपदेसा य अपदेसे य ३. अहवा सपदेसा य अपदेसा य।
एवं जाव थणियकुमारा।
पुढविकाइया णं भंते! किं सपदेसा? अपदेसा?
गोयमा! सपदेसा वि, अपदेसा वि।
एवं जाव वणप्फइकाइया।
सेसा जहा नेरइया तहा जाव सिद्धा।
आहारगाणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। अनाहारगाणं जीवेगिंदियवज्जा छब्भंगा Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीव कालादेश से सप्रदेश हैं या अप्रदेश हैं ? गौतम ! कालादेश से जीव नियमतः सप्रदेश हैं। भगवन् ! क्या नैरयिक जीव कालादेश से सप्रदेश है या अप्रदेश हैं ? गौतम ! एक नैरयिक जीव कालादेश से कदाचित् सप्रदेश है और कदाचित् अप्रदेश है। इस प्रकार यावत् एक सिद्ध – जीव – पर्यन्त कहना चाहिए। भगवन् ! कालादेश की | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-१ पुदगल | Hindi | 386 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगे भंते! दव्वे किं पयोगपरिणए? मीसापरिणए? वीससापरिणए?
गोयमा! पयोगपरिणए वा, मीसापरिणए वा, वीससापरिणए वा।
जइ पयोगपरिणए किं मनपयोगपरिणए? वइपयोगपरिणए? कायपयोगपरिणए?
गोयमा! मनपयोगपरिणए वा, वइपयोगपरिणए वा, कायपयोगपरिणए वा।
जइ मनपयोगपरिणए किं सच्चमनपयोगपरिणए? मोसमनपयोगपरिणए? सच्चामोसमन-पयोग-परिणए? असच्चामोसमनपयोगपरिणए?
गोयमा! सच्चमनपयोगपरिणए वा, मोसमनपयोगपरिणए वा, सच्चामोसमनपयोगपरिणए वा, असच्चामोसमनपयोगपरिणए वा।
जइ सच्चमनपयोगपरिणए किं आरंभसच्चमनपयोगपरिणए? अनारंभसच्चमनपयोग-परिणए? सारंभसच्चमनपयोगपरिणए? असारंभसच्चमनपयोगपरिणए? समारंभसच्चमनपयोग-परिणए? असमारंभसच्चमनपयोगपरिणए?
गोयमा! Translated Sutra: गौतम ! एक द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होता है, मिश्रपरिणत होता है अथवा विस्रसापरिणत होता है ? गौतम ! एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है, अथवा मिश्रपरिणत होता है, अथवा विस्रसापरिणत भी होता है। भगवन् ! यदि एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह मनःप्रयोगपरिणत होता है, वचन – प्रयोग परिणत होता है, अथवा काय – प्रयोग – परिणत | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-११ |
उद्देशक-१ उत्पल | Hindi | 498 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–उप्पले णं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे? अनेगजीवे?
गोयमा! एगजीवे, नो अनेगजीवे। तेण परं जे अन्ने जीवा उववज्जंति ते णं नो एगजीवा अनेगजीवा।
ते णं भंते! जीवा कतोहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति देवेहिंतो वि उववज्जंति। एवं उववाओ भाणियव्वो जहा वक्कंतीए वणस्सइकाइयाणं जाव ईसानेति।
ते णं भंते! जीवा एगसमए णं केवइया उववज्जंति?
गोयमा! जहन्नेणं Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! एक पत्र वाला उत्पल एक जीव वाला है या अनेक जीव वाला ? गौतम ! एक जीव वाला है, अनेक जीव वाला नहीं। उसके उपरांत जब उस उत्पल में दूसरे जीव उत्पन्न होते हैं, तब वह एक जीव वाला नहीं रहकर अनेक जीव वाला बन जाता है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-५ अतिपात | Hindi | 543 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! पाणाइवायवेरमणे, जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे–एस णं कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते?
गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे पन्नत्ते।
अह भंते! उप्पत्तिया, वेणइया, कम्मया, पारिणामिया–एस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नत्ता?
गोयमा! अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता।
अह भंते! ओग्गहे, ईहा, अवाए, धारणा–एस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नत्ता?
गोयमा! अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता।
अह भंते! उट्ठाणे, कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कार-परक्कमे–एस णं कतिवण्णे जाव कति फासे पन्नत्ते?
गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे पन्नत्ते।
सत्तमे णं भंते! ओवासंतरे कतिवण्णे Translated Sutra: भगवन् ! प्राणातिपात – विरमण यावत् परिग्रह – विरमण तथा क्रोधविवेक यावत् मिथ्यादर्शनशल्यविवेक, इन सबमें कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श कहे हैं ? गौतम ! (ये सभी) वर्णरहित, गन्धरहित, रसरहित और स्पर्शरहित कहे हैं। भगवन् ! औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी बुद्धि कितने वर्ण, गन्ध, रस | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१३ |
उद्देशक-१ पृथ्वी | Hindi | 565 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएसु किं सम्मद्दिट्ठी नेरइया उववज्जंति? मिच्छदिट्ठी नेरइया उववज्जंति? सम्मामिच्छदिट्ठी नेरइया उववज्जंति?
गोयमा! सम्मदिट्ठी वि नेरइया उववज्जंति, मिच्छदिट्ठी वि नेरइया उववज्जंति, नो सम्मामिच्छदिट्ठी नेरइया उववज्जंति।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएसु किं सम्मदिट्ठी नेरइया उव्वट्टंति? एवं चेव।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडा नरगा किं सम्मद्दिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया? मिच्छदिट्ठीहिं Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले नारकावासों में क्या सम्यग्दृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते हैं, मिथ्यादृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते हैं, अथवा सम्यग्मिथ्या (मिश्र) दृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! सम्यग्दृष्टि नैरयिक भी उत्पन्न होते हैं, मिथ्यादृष्टि नैरयिक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१३ |
उद्देशक-२ देव | Hindi | 567 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! देवा पन्नत्ता?
गोयमा! चउव्विहा देवा पन्नत्ता, तं जहा–भवनवासी, वाणमंतरा, जोइसिया, वेमाणिया।
भवनवासी णं भंते! देवा कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–असुरकुमारा–एवं भेओ जहा बितियसए देवुद्देसए जाव अपराजिया, सव्वट्ठसिद्धगा।
केवतिया णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता?
गोयमा! चोयट्ठिं असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा? असंखेज्जवित्थडा?
गोयमा! संखेज्जवित्थडा वि, असंखेज्जवित्थडा वि।
चोयट्ठीए णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु असुरकुमारावासेसु एग-समएणं केवतिया असुर-कुमारा उववज्जंति Translated Sutra: भगवन् ! देव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! देव चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा – भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक। भगवन् ! भवनवासी देव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दस प्रकार के यथा – असुरकुमार यावत् स्तनित कुमार। इस प्रकार भवनवासी आदि देवों के भेदों का वर्णन द्वीतिय शतक के सप्तम देवोद्देशक के अनुसार | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१४ |
उद्देशक-३ शरीर | Hindi | 603 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महाकाए महासरीरे अनगारस्स भावियप्पणो मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा?
गोयमा! अत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा?
गोयमा! दुविहा देवा पन्नत्ता, तं जहा–मायीमिच्छादिट्ठीउववन्नगा य, अमायीसम्मदिट्ठी-उववन्नगा य। तत्थ णं जे से मायी-मिच्छदिट्ठीउववन्नए देवे से णं अनगारं भावियप्पाणं पासइ, पासित्ता नो वंदइ, नो नमंसइ, नो सक्कारेइ, नो सम्माणेइ, नो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासइ।
से णं अनगारस्स भावियप्पणो मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा। तत्थ णं जे से अमायी-सम्मद्दिट्ठीउववन्नए देवे Translated Sutra: भगवन् ! क्या महाकाय और महाशरीर देव भावितात्मा अनगार के बीच में होकर – नीकल जाता है ? गौतम ! कोई नीकल जाता है, और कोई नहीं जाता है। भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! देव दो प्रकार के हैं, मायी – मिथ्यादृष्टि – उपपन्नक एवं अमायी – सम्यग्दृष्टि – उपपन्नक। इन दोनों में से जो मायी – मिथ्यादृष्टि – उपपन्नक देव होता | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-२ जरा | Hindi | 668 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सक्के णं भंते! देविंदे देवराया किं सम्मावादी? मिच्छावादी?
गोयमा! सम्मावादी, नो मिच्छावादी।
सक्के णं भंते! देविंदे देवराया किं सच्चं भासं भासति? मोसं भासं भासति? सच्चामोसं भासं भासति? असच्चामोसं भासं भासति?
गोयमा! सच्चं पि भासं भासति जाव असच्चामोसं पि भासं भासति।
सक्के णं भंते! देविंदे देवराया किं सावज्जं भासं भासति? अणवज्जं भासं भासति?
गोयमा! सावज्जं पि भासं भासति, अणवज्जं पि भासं भासति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सक्के देविंदे देवराया सावज्जं पि भासं भासति, अणवज्जं पि भासं भासति?
गोयमा! जाहे णं सक्के देविंदे देवराया सुहुमकायं अणिज्जूहित्ता णं भासं भासति ताहे Translated Sutra: भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र सम्यग्वादी है अथवा मिथ्यावादी है ? गौतम ! वह सम्यग्वादी है, मिथ्या – वादी नहीं है। भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र क्या सत्य भाषा बोलता है, मृषा बोलता है, सत्यामृषा भाषा बोलता है, अथवा असत्यामृषा भाषा बोलता है ? गौतम ! वह सत्य भाषा भी बोलता है, यावत् असत्यामृषा भाषा भी बोलता है। भगवन् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-५ गंगदत्त | Hindi | 674 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अन्नदा णं भंते! सक्के देविंदे देवराया देवाणुप्पियं वंदति नमंसति सक्कारेति जाव पज्जुवासति, किण्णं भंते! अज्ज सक्के देविंदे देवराया देवाणुप्पियं अट्ठ उक्खित्तपसिणवागरणाइं पुच्छइ, पुच्छित्ता संभंतियवंदनएणं वंदइ नमंसइ जाव पडिगए?
गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं महासुक्के कप्पे महासामाणे विमाने दो देवा महिड्ढिया जाव महेसक्खा एगविमाणंसि देवत्ताए उववन्ना, तं जहा–मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए य, अमायिसम्मदिट्ठिउववन्नए य।
तए णं से मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए Translated Sutra: भगवन् ! गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार करके पूछा – भगवन् ! अन्य दिनों में देवेन्द्र देवराज शक्र (आता है, तब) आप देवानुप्रिय को वन्दन – नमस्कार करता है, आपका सत्कार – सन्मान करता है, यावत् आपकी पर्युपासना करता है; किन्तु भगवन् ! आज तो देवेन्द्र देवराज शक्र आप देवानुप्रिय से संक्षेप में आठ प्रश्नों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-२ संयत | Hindi | 701 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति–एवं खलु पाणातिवाए, मुसावाए जाव मिच्छादंसणसल्ले वट्ट माणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। पाणाइवायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। उप्पत्तियाए वेणइयाए कम्मयाए पारिणामियाए वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। ओग्गहे, ईहा-अवाए धारणाए वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। नेरइयत्ते तिरिक्ख-मनुस्स-देवत्ते वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए Translated Sutra: भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि प्राणातिपात, मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शन – शल्य में प्रवृत्त हुए प्राणी का जीव अन्य है और उस जीव से जीवात्मा अन्य है। प्राणातिपात – विरमण यावत् परिग्रह – विरमण में, क्रोधाविवेक यावत् मिथ्यादर्शन – शल्य – त्याग में प्रवर्तमान प्राणी का | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-१ प्रथम | Hindi | 722 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी–जीवे णं भंते! जीवभावेणं किं पढमे? अपढमे?
गोयमा! नो पढमे, अपढमे। एवं नेरइए जाव वेमाणिए।
सिद्धे णं भंते! सिद्धभावेणं किं पढमे? अपढमे? गोयमा! पढमे, नो अपढमे।
जीवा णं भंते! जीवभावेणं किं पढमा? अपढमा?
गोयमा! नो पढमा, अपढमा। एवं जाव वेमाणिया।
सिद्धा णं–पुच्छा।
गोयमा! पढमा, नो अपढमा।
आहारए णं भंते! जीवे आहारभावेणं किं पढमे? अपढमे?
गोयमा! नो पढमे, अपढमे। एवं जाव वेमाणिए। पोहत्तिए एवं चेव।
अनाहारए णं भंते! जीवे अनाहारभावेणं–पुच्छा।
गोयमा! सिय पढमे, सिय अपढमे।
नेरइए णं भंते! जीवे अनाहारभावेणं–पुच्छा।
एवं नेरइए जाव वेमाणिए नो पढमे, अपढमे। Translated Sutra: उस काल उस समयमें राजगृह नगरमें यावत् पूछा – भगवन् ! जीव, जीवभाव से प्रथम है, अथवा अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम है। इस प्रकार नैरयिक से लेकर वैमानिक तक जानना। भगवन् ! सिद्ध – जीव, सिद्धभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम है, अप्रथम नहीं है। भगवन् ! अनेक जीव, जीवत्व की अपेक्षा से प्रथम हैं | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-१ प्रथम | Hindi | 724 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जीवभावेण किं चरिमे? अचरिमे? गोयमा! नो चरिमे, अचरिमे।
नेरइए णं भंते! नेरइयभावेणं–पुच्छा।
गोयमा! सिय चरिमे, सिय अचरिमे। एवं जाव वेमाणिए। सिद्धे जहा जीवे।
जीवा णं–पुच्छा।
गोयमा! नो चरिमा, अचरिमा।नेरइया चरिमा वि, अचरिमा वि।एवं जाव वेमाणिया। सिद्धा जहा जीवा
आहारए सव्वत्थ एगत्तेणं सिय चरिमे, सिय अचरिमे; पुहत्तेणं चरिमा वि, अचरिमा वि। अनाहारओ जीवो सिद्धो य एगत्तेण वि पुहत्तेण वि नो चरिमो, अचरिमो। सेसट्ठाणेसु एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारओ।
भवसिद्धीओ जीवपदे एगत्त-पुहत्तेणं चरिमे, नो अचरिमे। सेसट्ठाणेसु जहा आहारओ। अभवसिद्धीओ सव्वत्थ एगत्त-पुहत्तेणं नो चरिमे, Translated Sutra: भगवन् ! जीव, जीवभाव की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? गौतम ! चरम नहीं, अचरम है। भगवन् ! नैरयिक जीव, नैरयिकभाव की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? गौतम ! वह कदाचित् चरम है, और कदाचित् अचरम है। इसी प्रकार वैमानिक तक जानना चाहिए। सिद्ध का कथन जीव के समान जानना चाहिए। अनेक जीवों के विषय में चरम – अचरम – सम्बन्धी प्रश्न। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-३ माकंदी पुत्र | Hindi | 729 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से मागंदियपुत्ते अनगारे उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–
अनगारस्स णं भंते! भावियप्पणो सव्वं कम्मं वेदेमाणस्स सव्वं कम्मं निज्जरेमाणस्स सव्वं मारं मरमाणस्स सव्वं सरीरं विप्पजहमाणस्स, चरिमं कम्मं वेदेमाणस्स चरिमं कम्मं निज्जरेमाणस्स चरिमं मारं मरमाणस्स चरिमं सरीरं विप्पजहमाणस्स, मारणंतियं कम्मं वेदेमाणस्स मारणंतियं कम्मं निज्जरेमाणस्स मारणंतियं मारं मरमाणस्स मारणंतियं सरीरं विप्पजहमाणस्स जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला Translated Sutra: तत्पश्चात् माकन्दिपुत्र अनगार अपने स्थान से उठे और श्रमण भगवान महावीर के पास आए। उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया और इस प्रकार पूछा – ‘भगवन् ! सभी कर्मों को वेदते हुए, सर्व कर्मों की निर्जरा करते हुए, समस्त मरणों से मरते हुए, सर्वशरीर को छोड़ते हुए तथा चरम कर्म को वेदते हुए, चरम कर्म की निर्जरा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-५ असुरकुमार | Hindi | 737 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते! नेरइया एगंसि नेरइयावासंसि नेरइयत्ताए उववन्ना। तत्थ णं एगे नेरइए महाकम्मतराए चेव, महाकिरियतराए चेव, महासवतराए चेव, महावेयणतराए चेव, एगे नेरइए अप्पकम्मतराए चेव, अप्पकिरियतराए चेव, अप्पासवतराए चेव, अप्पवेयणताए चेव, से कहमेयं भंते! एवं?
गोयमा! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नगा य, अमायिसम्मदिट्ठि-उववन्नगा य। तत्थ णं जे से मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए नेरइए से णं महाकम्मतराए चेव जाव महावेयणतराए चेव। तत्थ णं जे से अमायिसम्मदिट्ठिउववन्नए नेरइए से णं अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव।
दो भंते! असुरकुमारा? एवं चेव। एवं एगिंदिय-विगलिंदियवज्जं Translated Sutra: भगवन् ! दो नैरयिक एक ही नरकावास में नैरयिकरूप से उत्पन्न हुए। उनमें से एक नैरयिक महाकर्म वाला यावत् महावेदना वाला और एक नैरयिक अल्पकर्म वाला यावत् अल्पवेदना वाला होता है, तो भगवन् ! ऐसा क्यों होता है ? गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा – मायीमिथ्यादृष्टि – उपपन्नक और अमायीसम्यग्दृष्टि – उपपन्नक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-५ असुरकुमार | Hindi | 739 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते! असुरकुमारा एगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमारदेवत्ताए उववन्ना। तत्थ णं एगे असुरकुमारे देवे उज्जुयं विउव्विस्सामीति उज्जुयं विउव्वइ, वंकं विउव्विस्सामीति वंकं विउव्वइ, जं जहा इच्छइ तं जहा विउव्वइ। एगे असुरकुमारे देवे उज्जुयं विउव्विस्सामीति वंकं विउव्वइ, वंकं विउव्विस्सामीति उज्जुयं विउव्वइ, जं जहा इच्छति तं तहा विउव्वइ, से कहमेयं भंते! एवं?
गोयमा! असुरकुमारा देवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–मायिमिच्छदिट्ठीउववन्नगा य, अमायि-सम्मदिट्ठीउववन्नगा य। तत्थ णं जे से मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए असुरकुमारे देवे से णं उज्जुयं विउव्विस्सामीति वंकं विउव्वइ जाव Translated Sutra: भगवन् ! दो असुरकुमार, एक ही असुरकुमारावास में असुरकुमार रूप से उत्पन्न हुए, उनमें से एक असुर – कुमार देव यदि वह चाहे कि मैं ऋजु से विकुर्वणा करूँगा; तो वह ऋजु – विकुर्वणा कर सकता है और यदि वह चाहे कि मैं वक्र रूप में विकुर्वणा करूँगा, तो वह वक्र – विकुर्वणा कर सकता है। जब कि एक असुरकुमारदेव चाहता है कि मैं ऋजु – | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-१ बेईन्द्रिय | Hindi | 780 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–सिय भंते! जाव चत्तारि पंच बेंदिया एगयओ साहरणसरीर बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति?
नो इणट्ठे समट्ठे। बेंदिया णं पत्तेयाहारा पत्तेयपरिणामा पत्तेयसरीरं बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेस्साओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! तओ लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा। एवं जहा एगूण-वीसतिमे सए तेउक्काइयाणं जाव उव्वट्टंति, नवरं–सम्मदिट्ठी वि मिच्छदिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छदिट्ठी, दो नाणा दो अन्नाणा नियमं, नो मणजोगी, वइजोगी वि कायजोगी वि, आहारो Translated Sutra: ‘भगवन् !’ राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! क्या कदाचित् दो, तीन, चार या पाँच द्वीन्द्रिय जीव मिलकर एक साधारण शरीर बाँधते हैं, इसके पश्चात् आहार करते हैं ? अथवा आहार को परिणमाते हैं, फिर विशिष्ट शरीर को बाँधते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि द्वीन्द्रिय जीव पृथक् – पृथक् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-७ बंध | Hindi | 792 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! बंधे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा–जीवप्पयोगबंधे, अनंतरबंधे, परंपरबंधे।
नेरइयाणं भंते! कतिविहे बंधे पन्नत्ते? एवं चेव। एवं जाव वेमाणियाणं।
नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स कतिविहे बंधे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा–जीवप्पयोगबंधे, अनंतरबंधे, परंपरबंधे।
नेरइयाणं भंते! नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स कतिविहे बंधे पन्नत्ते? एवं चेव। एवं जाव वेमाणियाणं। एवं जाव अंतराइयस्स।
नाणावरणिज्जोदयस्स णं भंते! कम्मस कतिविहे बंधे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे बंधे पन्नत्ते एवं चेव। एवं नेरइयाण वि। एवं जाव वेमाणियाणं। एवं जाव अंतराइओदयस्स।
इत्थीवेदस्स Translated Sutra: भगवन् ! बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! तीन प्रकार का, यथा – जीवप्रयोगबन्ध, अनन्तर – बन्ध और परम्परबन्ध। भगवन् ! नैरयिक जीवों के बन्ध कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पूर्ववत्। इसी प्रकार वैमानिकों तक भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का। यथा जीवप्रयोगबन्ध अनन्तरबन्ध | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१ नैरयिक | Hindi | 838 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नेरइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति।
जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिए-हिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, नो बेंदिय, नो तेइंदिय, नो चउरिंदिय, पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति।
जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! नैरयिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं, देवों में आकर उत्पन्न | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 847 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ बेंदिएहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति? अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति, अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो वि उववज्जंति।
बेंदिए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सट्ठितीएसु।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति?
गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। छेवट्टसंघयणी। ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाइं। हुंडसंठिया। Translated Sutra: भगवन् ! यदि वे द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न हों तो क्या पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से ? गौतम ! वे पर्याप्त तथा अपर्याप्त द्वीन्द्रियों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! जो द्वीन्द्रिय जीव पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे कितने | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२१ मनुष्य | Hindi | 857 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति जाव देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नेरइएहिंतो वि उववज्जंति जाव देवेहिंतो वि उववज्जंति। एवं उववाओ जहा पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिउद्देसए जाव तमापुढविनेरइएहिंतो वि उववज्जंति, नो अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति।
रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते! से भविए मनुस्सेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं मासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु। अवसेसा वत्तव्वया जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उव वज्जंतस्स तहेव, नवरं–परिमाणे जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं Translated Sutra: भगवन् ! मनुष्य कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों से आकर यावत् देवों से आकर होते हैं ? गौतम! नैरयिकों से यावत् देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार यहाँ ‘पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक – उद्देशक’ अनुसार, यावत् – तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२२ थी २४ देव | Hindi | 860 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? भेदो जहा जोइसिय-उद्देसए।
असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए साहम्मगदेवेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमट्ठितीएसु उक्कोसेणं तिपलिओवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? अवसेसं जहा जोइसिएसु उववज्ज-माणस्स, नवरं–सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। नाणी वि, अन्नाणी वि, दो नाणा दो अन्नाणा नियमं। ठिती जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तहेव। Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्मदेव, किस गति से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? ज्योतिष्क – उद्देशक के अनुसार भेद जानना चाहिए। भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक कितने काल की स्थिति वाले सौधर्मदेवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम की | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-१ लेश्या | Hindi | 861 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] १. लेसा य २. दव्व ३. संठाण ४. जुम्म ५. पज्जव ६. नियंठ ७. समणा य ।
८. ओहे ९-१. भवियाभविए, ११. सम्मा १२. मिच्छे य उद्देसा ॥ Translated Sutra: पच्चीसवें शतक के ये बारह उद्देशक हैं – लेश्या, द्रव्य, संस्थान, युग्म, पर्यव, निर्ग्रन्थ, श्रमण, ओघ, भव्य, अभव्य, सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-११,१२ सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि | Hindi | 973 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सम्मदिट्ठिनेरइया णं भंते! कहं उववज्जंति?
गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे, अवसेसं तं चेव। एवं एगिंदियवज्जं जाव वेमाणिए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! सम्यग्दृष्टि नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ इत्यादि, एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त कहना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-११,१२ सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि | Hindi | 974 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मिच्छदिट्ठिनेरइया णं भंते! कहं उववज्जंति?
गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे, अवसेसं तं चेव। एवं जाव वेमाणिए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! मिथ्यादृष्टि नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ इत्यादि पूर्ववत्। वैमानिक तक (कहना)। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३० समवसरण लेश्यादि |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 998 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! समोसरणा पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि समोसरणा पन्नत्ता, तं० किरियावादी, अकिरियावादी, अन्नाणियवादी, वेणइयवादी
जीवा णं भंते! किं किरियावादी? अकिरियावादी? अन्नाणियवादी? वेणइयवादी?
गोयमा! जीवा किरियावादी वि, अकिरियावादी वि, अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि।
सलेस्सा णं भंते! जीवा किं किरियावादी–पुच्छा।
गोयमा! किरियावादी वि, अकिरियावादी वि, अन्नाणियावादी वि, वेणइयवादी वि। एवं जाव सुक्कलेस्सा।
अलेस्सा णं भंते! जीवा–पुच्छा।
गोयमा! किरियावादी, नो अकिरियावादी, नो अन्नाणियवादी, नो वेणइयवादी।
कण्हपक्खिया णं भंते! जीवा किं किरियावादी–पुच्छा।
गोयमा! नो किरियावादी, Translated Sutra: भगवन् ! समवसरण कितने कहे हैं? गौतम! चार, यथा – क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी, विनयवादी। भगवन् ! जीव क्रियावादी हैं, अक्रियावादी हैं, अज्ञानवादी हैं या विनयवादी हैं ? गौतम ! जीव क्रियावादी भी हैं, अक्रियावादी भी हैं, अज्ञानवादी भी हैं और विनयवादी भी हैं। भगवन् ! सलेश्य जीव क्रियावादी भी हैं? इत्यादि प्रश्न। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३० समवसरण लेश्यादि |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 999 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] किरियावादी णं भंते! नेरइया किं नेरइयाउयं–पुच्छा।
गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मनुस्साउयं पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति।
अकिरियावादी णं भंते! नेरइया–पुच्छा।
गोयमा! नो नेरइयाउयं, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मनुस्साउयं पि पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति। एवं अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि।
सलेस्सा णं भंते! नेरइया किरियावादी किं नेरइयाउयं? एवं सव्वे वि नेरइया जे किरियावादी जे मनुस्साउयं एगं पकरेंति, जे अकिरियावादी अन्नाणियवादी वेणइयवादी ते सव्वट्ठाणेसु वि नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मनुस्साउयं पि पकरेंति, नो Translated Sutra: भगवन् ! क्या क्रियावादी नैरयिक जीव नैरयिकायुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे नारक, तिर्यञ्च और देव का आयुष्य नहीं बाँधते, किन्तु मनुष्य का आयुष्य बाँधते हैं। भगवन् ! अक्रियावादी नैरयिक जीव नैरयिक का आयुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे नैरयिक और देव का आयुष्य नहीं बाँधते, किन्तु तिर्यञ्च और मनुष्य का आयुष्य बाँधते हैं। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३१ युग्मं, नरक, उपपात आदि |
उद्देशक-२ थी २८ | Hindi | 1012 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं सम्मदिट्ठीहि वि लेस्सासंजुत्तेहिं चत्तारि उद्देसगा कायव्वा, नवरं–सम्मदिट्ठी पढमबितिएसु दोसु वि उद्देसगेसु अहेसत्तमपुढवीए न उववाएयव्वो, सेसं तं चेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: इसी प्रकार लेश्या सहित सम्यग्दृष्टि के चार उद्देशक कहना। विशेष यह है कि सम्यग्दृष्टि का प्रथम और द्वीतिय, इन दो उद्देशकों में कथन है। पहले और दूसरे उद्देशक में अधःसप्तमनरकपृथ्वी में सम्यग्दृष्टि का उपपात नहीं कहना। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३६ द्विइन्द्रिय शतक-शतक-१ थी १२ उद्देशको सहित |
Hindi | 1058 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कडजुम्मकडजुम्मबेंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? उववाओ जहा वक्कंतीए। परिमाणं सोलस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। अवहारो जहा उप्पलुद्देसए। ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाइं। एवं जहा एगिंदियमहाजुम्माणं पढमुद्देसए तहेव, नवरं–तिन्नि लेस्साओ, देवा न उववज्जंति। सम्मदिट्ठी वा मिच्छदिट्ठी वा, नो सम्ममिच्छादिट्ठी। नाणी वा अन्नाणी वा। नो मनजोगी, वइजोगी वा कायजोगी वा।
ते णं भंते! कडजुम्मकडजुम्मबेंदिया कालओ केवच्चिरं होंति?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। ठिती जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराइं। Translated Sutra: भगवन् ! कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिप्रमाण द्वीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनका उपपात व्युत्क्रान्तिपद अनुसार जानना। परिमाण – एक समय में सोलह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। इनका अपहार उत्पलोद्देशक अनुसार जानना। इनकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट बारह योजन | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-४० संज्ञीपञ्चेन्द्रिय शतक-शतक-१ थी २१ उद्देशको सहित |
Hindi | 1064 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? उववाओ वा चउसु वि गईसु। संखेज्जवासाउय-असंखेज्जवासाउय-पज्जत्ता-अपज्जत्तएसु य न कओ वि पडिसेहो जाव अनुत्तरविमानत्ति। परिमाणं अवहारो ओगाहणा य जहा असण्णिपंचिंदियाणं। वेयणिज्जवज्जाणं सत्तण्हं पगडीणं बंधगा वा अबंधगा वा, वेयणिज्जस्स बंधगा, नो अबंधगा। मोहणिज्जस्स वेदगा वा अवेदगा वा, सेसाणं सत्तण्ह वि वेदगा, नो अवेदगा। सायावेदगा वा असायावेदगा वा। मोहणिज्जस्स उदई वा अणुदई वा, सेसाणं सत्तण्ह वि उदई, नो अणुदई। नामस्स गोयस्स य उदीरगा, नो अनुदीरगा, सेसाणं छण्ह वि उदीरगा वा अनुदीरगा वा। कण्हलेस्सा वा जाव सुक्कलेस्सा Translated Sutra: भगवन् ! कृतयुग्म – कृतयुग्मराशि रूप संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनका उपपात चारों गतियों से होता है। ये संख्यात वर्ष और असंख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीवों से आते हैं। यावत् अनुत्तरविमान तक किसी भी गति से आने का निषेध नहीं है। इनका परिमाण, अपहार और अवगाहना | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-४१ राशियुग्मं, त्र्योजराशि, द्वापर युग्मं राशि |
उद्देशक-१ थी १९६ | Hindi | 1075 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सम्मदिट्ठीरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति? एवं जहा पढमो उद्देसओ। एवं चउसु वि जुम्मेसु चत्तारि उद्देसगा भवसिद्धियसरिसा कायव्वा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
कण्हलेस्ससम्मदिट्ठीरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति? एए वि कण्हलेस्ससरिसा चत्तारि वि उद्देसगा कायव्वा। एवं सम्मदिट्ठीसु वि भवसिद्धियसीरसा अट्ठावीसं उद्देसगा कायव्वा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ। Translated Sutra: भगवन् ! सम्यग्दृष्टि – राशियुग्म – कृतयुग्मराशियुक्त नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? प्रथम उद्देशक के समान यह उद्देशक जानना। इसी प्रकार चारों युग्मों में भवसिद्धिक के समान चार उद्देशक कहने चाहिए। ‘हे भगवन्! यह इसी प्रकार है०।’ भगवन् ! कृष्णलेश्यी सम्यग्दृष्टि राशियुग्म – कृतयुग्मराशि नैरयिक | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-११,१२ सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि | Gujarati | 973 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सम्मदिट्ठिनेरइया णं भंते! कहं उववज्जंति?
गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे, अवसेसं तं चेव। एवं एगिंदियवज्जं जाव वेमाणिए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૭૧ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-११,१२ सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि | Gujarati | 974 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मिच्छदिट्ठिनेरइया णं भंते! कहं उववज्जंति?
गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे, अवसेसं तं चेव। एवं जाव वेमाणिए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૭૧ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 113 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] उक्कोसचरित्तो वि य पडेइ मिच्छत्तभावओ कोइ ।
किं पुण सम्मद्दिट्ठी सरागधम्मम्मि वट्टंतो ॥ Translated Sutra: उत्कृष्ट चारित्र पालन करनेवाले भी किसी मिथ्यात्व के योग से संयम श्रेणी से गिर जाते हैं, तो सराग धर्म में रहे – सम्यग्दृष्टि उसमें से पतित हो जाए उसमें क्या ताज्जुब ? |