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, सुर्य
, अवि झाति से महावीरे, आसणत्थे अकुक्कुए झाणं।
, चंडकौशिक
, Mahaveer swami sada 12 varas
Scripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 337 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुगमे? अनुगमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुत्तानुगमे य निज्जुत्तिअनुगमे य।
से किं तं निज्जुत्तिअनुगमे? निज्जुत्तिअनुगमे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–निक्खेवनिज्जुत्ति-अनुगमे उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे सुत्तफासियनिज्जुत्तिअनुगमे।
से किं तं निक्खेवनिज्जुत्तिअनुगमे? निक्खेवनिज्जुत्तिअनुगमे अनुगए। से तं निक्खेव-निज्जुत्तिअनुगमे।
से किं तं उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे? उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे–इमाहिं दोहिं दारगाहाहिं अनुगंतव्वे, तं जहा– Translated Sutra: भगवन् ! अनुगम का क्या है ? अनुगम के दो भेद हैं। सूत्रानुगम और निर्युक्त्यनुगम। निर्यक्त्यनुगम के तीन प्रकार हैं। यथा – निक्षेपनिर्युक्त्यनुगम, उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम और सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्त्यनुगम। (नाम स्थापना आदि रूप) निक्षेप की निर्युक्ति का अनुगम पूर्ववत् जानना। आयुष्मन् ! उपोद्घातनिर्युक्ति | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 340 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे।
से किं तं सुत्तफासियनिज्जुत्तिअनुगमे?
सुत्तफासियनिज्जुत्तिअनुगमे– सुत्तं उच्चारेयव्वं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडि-पुण्णं पडिपुन्नघोसं कंटोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं। तओ नज्जिहिति ससमयपयं वा परसमयपयं वा बंधपयं वा मोक्खपयं वा सामाइयपयं वा नोसामा-इयपयं वा।
तओ तम्मि उच्चारिए समाणे केसिंचि भगवंताणं केइ अत्थाहिगारा अहिगया भवंति, के सिंचि य केइ अनहिगया भवंति, तओ तेसिं अनहिगयाणं अत्थाणं अहिगमनट्ठयाए पदेणं पदं वण्णइस्सामि– Translated Sutra: सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्त्यनुगम क्या है ? (जिस सूत्र की व्याख्या की जा रही है उस सूत्र को स्पर्श करने वाली निर्युक्ति के अनुगम को सूत्रस्पर्शिक – निर्युक्त्यनुगम कहते हैं।) इस अनुगम में अस्खलित, अमिलित, अव्यत्या – म्रेडित, प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्णघोष कंठोष्ठविप्रमुक्त तथा गुरुवाचनोपगत रूप से सूत्र का उच्चारण | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 335 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तो समणो जइ सुमणो, भावेण य जइ न होइ पावमणो ।
सयणे य जणे य समो, समो य मानावमानेसु ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૩૫. પૂર્વોક્ત ઉપમાથી ઉપમિત શ્રમણ તો જ કહેવાય જો તે સુમન હોય, ભાવથી પણ પાપી મનવાળો ન હોય, જે સ્વજન અને પરજનમાં સમભાવી હોય, માન – અપમાનમાં પણ સમ હોય. સૂત્ર– ૩૩૬. [૧] નોઆગમ ભાવસામાયિક, ભાવસામાયિક, સામાયિક તથા નામનિષ્પન્ન નિક્ષેપની વક્તવ્યતા પૂર્ણ થઈ. [૨] અહીં નામનિષ્પન્ન નિક્ષેપના કથન પછી ક્રમ પ્રાપ્ત સૂત્રાલાપક | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 337 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुगमे? अनुगमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुत्तानुगमे य निज्जुत्तिअनुगमे य।
से किं तं निज्जुत्तिअनुगमे? निज्जुत्तिअनुगमे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–निक्खेवनिज्जुत्ति-अनुगमे उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे सुत्तफासियनिज्जुत्तिअनुगमे।
से किं तं निक्खेवनिज्जुत्तिअनुगमे? निक्खेवनिज्जुत्तिअनुगमे अनुगए। से तं निक्खेव-निज्जुत्तिअनुगमे।
से किं तं उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे? उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे–इमाहिं दोहिं दारगाहाहिं अनुगंतव्वे, तं जहा– Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૩૭. [૧] અનુગમનું સ્વરૂપ કેવું છે ? અનુગમના બે પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – સૂત્રાનુગમ અને નિર્યુક્ત્યનુગમ. [૨] નિર્યુક્ત્યનુગમનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નિર્યુક્ત્યનુગમના ત્રણ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. નિક્ષેપ નિર્યુક્ત્યનુગમ, ૨. ઉપોદ્ઘાત નિર્યુક્ત્યનુગમ, ૩. સૂત્રસ્પર્શિક નિર્યુક્ત્યનુગમ. નિક્ષેપ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 340 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे।
से किं तं सुत्तफासियनिज्जुत्तिअनुगमे?
सुत्तफासियनिज्जुत्तिअनुगमे– सुत्तं उच्चारेयव्वं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडि-पुण्णं पडिपुन्नघोसं कंटोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं। तओ नज्जिहिति ससमयपयं वा परसमयपयं वा बंधपयं वा मोक्खपयं वा सामाइयपयं वा नोसामा-इयपयं वा।
तओ तम्मि उच्चारिए समाणे केसिंचि भगवंताणं केइ अत्थाहिगारा अहिगया भवंति, के सिंचि य केइ अनहिगया भवंति, तओ तेसिं अनहिगयाणं अत्थाणं अहिगमनट्ठयाए पदेणं पदं वण्णइस्सामि– Translated Sutra: સૂત્રસ્પર્શિક નિર્યુક્ત્યનુગમનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જે સૂત્રની વ્યાખ્યા કરાતી હોય તે સૂત્રને સ્પર્શ કરનાર નિર્યુક્તિના અનુગમને સૂત્ર – સ્પર્શિક નિર્યુક્ત્યનુગમ કહેવામાં આવે છે. આ અનુગમમાં અસ્ખલિત, અમીલિત, અવ્યત્યામ્રેડિત, પ્રતિપૂર્ણ, પ્રતિપૂર્ણ ઘોષ, કંઠોષ્ઠ વિપ્રમુક્ત તથા ગુરુ વાચનોપગત રૂપથી સૂત્રનું | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 158 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अक्खर सण्णी सम्मं, साइयं खलु सपज्जवसियं च ।
गमियं अंगपविट्ठं, सत्तवि एए सपडिवक्खा ॥ Translated Sutra: अक्षर, संज्ञी, सम्यक्, सादि, सपर्यवसित, गमिक और अङ्गप्रविष्ट, ये सात और इनके सप्रतिपक्ष सात मिलकर श्रुतज्ञान के चौदह भेद हो जाते हैं। बुद्धि के जिन आठ गुणों से आगम शास्त्रों का अध्ययन एवं श्रुतज्ञान का लाभ देखा गया है, वे इस प्रकार हैं – विनययुक्त शिष्य गुरु के मुखारविन्द से निकले हुए वचनों को सुनना चाहता है। | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 158 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अक्खर सण्णी सम्मं, साइयं खलु सपज्जवसियं च ।
गमियं अंगपविट्ठं, सत्तवि एए सपडिवक्खा ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫૮. ૧. અક્ષર અને અનક્ષર ૨. સંજ્ઞી અને અસંજ્ઞી ૩. સમ્યક્ અને અસમ્યક્ ૪. સાદિ અને અનાદિ, ૫. સપર્યવસિત અને અપર્યવસિત, ૬. ગમિક અને અગમિક, ૭. અંગપ્રવિષ્ટ અને અનંગપ્રવિષ્ટ. પ્રતિપક્ષ સાથે આ સાતેયના કુલ ચૌદ ભેદ છે. સૂત્ર– ૧૫૯. બુદ્ધિના આઠ ગુણો વડે જેણે આગમ શાસ્ત્રનું અધ્યયન તેમજ શ્રુતજ્ઞાનનો લાભ સારી રીતે મેળવ્યો | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१५ | Gujarati | 1003 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ – સાધ્વી વિભૂષા નિમિત્તે અર્થાત્ શોભા આદિ વધારવાની બુદ્ધિથી ૧. પોતાના પગને એકવાર કે અનેક વાર પ્રમાર્જે અથવા પ્રમાર્જનારની અનુમોદના કરે, ત્યાંથી શરૂ કરી ૫૩. ગ્રામાનુગ્રામ વિચરતા પોતાના મસ્તકને ઢાંકે કે ઢાંકનારની અનુમોદના કરે. એમ ત્રેપન (ચોપન)?. સૂત્રો જાણવા. આ બધા સૂત્રોનો વિસ્તાર અને સંપૂર્ણ સૂત્રાર્થ ઉદ્દેશા | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
३९. नयसूत्र | English | 698 | View Detail | ||
Mool Sutra: नैगम-संग्रह-व्यवहार-ऋजुसूत्रश्च भवन्ति बोद्धव्यः।
शब्दश्च समभिरूढः, एवंभूताश्च मूलनयाः।।९।। Translated Sutra: Naigam, samgraha, vyavahara, rjusutra, sabda, samabhirudha and evambhuta-these are the seven basic stand-points. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
३९. नयसूत्र | Gujarati | 698 | View Detail | ||
Mool Sutra: नैगम-संग्रह-व्यवहार-ऋजुसूत्रश्च भवन्ति बोद्धव्यः।
शब्दश्च समभिरूढः, एवंभूताश्च मूलनयाः।।९।। Translated Sutra: મૂળ નયો સાત છે : નૈગમ, સંગ્રહ, વ્યવહાર, ઋજુસૂત્ર, શબ્દ, સમભિરૂઢ અને એવંભૂત. | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
३९. नयसूत्र | Hindi | 698 | View Detail | ||
Mool Sutra: नैगम-संग्रह-व्यवहार-ऋजुसूत्रश्च भवन्ति बोद्धव्यः।
शब्दश्च समभिरूढः, एवंभूताश्च मूलनयाः।।९।। Translated Sutra: (द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय के भेदरूप) मूल नय सात हैं--नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-२ | Hindi | 167 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ सेहभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–उक्कोसा, मज्झिमा, जहन्ना। उक्कोसा छम्मासा, मज्झिमा चउमासा, जहन्ना सत्तराइंदिया।
तओ थेरभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–जातिथेरे, सुयथेरे, परियायथेरे।
सट्ठिवासजाए समणे निग्गंथे जातिथेरे, ठाणसमयवायधरे णं समणे निग्गंथे सुयथेरे, वीसवास-परियाए णं समणे निग्गंथे परियायथेरे। Translated Sutra: तीन प्रकार की शैक्ष – भूमि कही गई हैं, यथा – उत्कृष्ट छः मास, मध्यम चार मास, जघन्य सात रात – दिन। तीन स्थवीर भूमियाँ कही गई हैं, यथा – जातिस्थविर, सूत्रस्थविर और पर्यायस्थविर। साठ वर्ष की उम्र वाला श्रमण – निर्ग्रन्थ जातिस्थविर है, स्थानांग समवायांग को जानने वाला श्रमण – निर्ग्रन्थ सूत्रस्थविर है, बीस वर्ष की |