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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 46 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवरगंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४०
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 49 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तमतिमिरपडल विद्धंसणस्स सुरगणनरिंदमहियस्स । सीमाधरस्स वंदे पप्फोडियमोहजालस्स ॥

Translated Sutra: अज्ञान समान अंधेरे के समूह को नष्ट करनेवाले, देव और नरेन्द्र के समूह से पूजनीय और मोहनीय कर्म के सर्व बन्धन को तोड़ देनेवाले ऐसे मर्यादावंत यानि आगम युक्त श्रुतधर्म को मैं वंदन करता हूँ।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ चतुर्विंशतिस्तव

Hindi 9 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवरगंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥

Translated Sutra: चन्द्र से ज्यादा निर्मल, सूरज से ज्यादा प्रकाश करनेवाले और स्वयंभूरमण समुद्र से ज्यादा गम्भीर ऐसे सिद्ध (भगवंत) मुझे सिद्धि (मोक्ष) दो।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 16 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं इरियावहियाए विराहणाए गमणागमणे पाणक्कमणे बीयक्कमणे हरियक्कमणे ओसा-उत्तिंग-पणग-दगमट्टी-मक्कडा-संताणासंकमणे जे मे जीवा विराहिया एगिंदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचिंदिया अभिहया वत्तिया लेसिया संघाइया संघट्टिया परियाविया किलामिया उद्दविया ठाणाओ ठाणं संकामिया जीवियाओ ववरोविया तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: (मैं प्रतिक्रमण करने के यानि पाप से वापस मुड़ने के समान क्रिया करना) चाहता हूँ। ऐर्यापथिकी यानि गमनागमन की क्रिया के दौहरान हुई विराधना से (यह विराधना किस तरह होती है वो बताते हैं – ) आते – जाते, मुझसे किसी त्रसजीव, बीज, हरियाली, झाकल का पानी, चींटी का बिल, सेवाल, कच्चा पानी, कीचड़ या मंकड़े के झाले आदि चंपे गए हो; जो कोई
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 17 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं पगामसिज्जाए निगामसिज्जाए संथारा उव्वट्टणाए परियट्टणाए आउंटण-पसारणाए छप्पइयसंघट्टणाए कूइए कक्कराइए छीए जंभाइए आमोसे ससरक्खामोसे आउल-माउलाए सोअणवत्तियाए इत्थीविप्परिआसियाए दिट्ठिविप्परिआसिआए मणविप्परिआ-सिआए पाणभोयणविप्परिआसिआए जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: मैं प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ। (लेकिन किसका ?) दिन के प्रकामशय्या गहरी नींद लेने से (यहाँ प्रकाम यानि गहरा या संथारा उत्तरपट्टा से या तीन कपड़े से ज्यादा उपकरण का इस्तमाल करने से, शय्या यानि निद्रा या संथारीया आदि) हररोज ऐसी नींद लेने से, संथारा में बगल बदलने से और पुनः वही बगल बदलने से, शरीर के अवयव सिकुड़ने से
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 25 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउद्दसहिं भूयगामेहिं, पन्नरसहिं परमाहम्मिएहिं, सोलसहिं गाहासोलसएहिं, सत्तरसविहे असंजमे, अट्ठारसविहे अबंभे, एगूणवीसाए नायज्झयणेहिं, वीसाए असमाहिट्ठाणेहिं।

Translated Sutra: इहलोक – परलोक आदि सात भय स्थान के कारण से, जातिमद – कुलमद आदि आँठ मद का सेवन करने से, वसति – शुद्धि आदि ब्रह्मचर्य की नौ वाड़ का पालन न करने से, क्षमा आदि दशविध धर्म का पालन न करने से, श्रावक की ग्यारह प्रतिमा में अश्रद्धा करने से, बारह तरह की भिक्षु प्रतिमा धारण न करने से या उसके विषय में अश्रद्धा करने से, अर्थाय –
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 31 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अनुत्तरं केवलियं पडिपुन्नं नेआउयं संसुद्धं सल्लगत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं निज्जाणमग्गं निव्वाणमग्गं अवितहमविसंधि सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति।

Translated Sutra: यह निर्ग्रन्थ प्रवचन (जिन आगम या श्रुत) सज्जन को हितकारक, श्रेष्ठ, अद्वितीय, परिपूर्ण, न्याययुक्त, सर्वथा शुद्ध, शल्य को काट डालनेवाला सिद्धि के मार्ग समान, मोक्ष के मुक्तात्माओं के स्थान के और सकल कर्मक्षय समान, निर्वाण के मार्ग समान हैं। सत्य है, पूजायुक्त है, नाशरहित यानि शाश्वत, सर्व दुःख सर्वथा क्षीण हुए
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 51 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिद्ध भो पयओ नमो जिणमए नंदी सया संजमे । देवं नाग सुवण्णकिन्नरगण स्सब्भूअ भावच्चिए ॥ लोगो जत्थ पइट्ठिओ जगमिणं तेलुक्कमच्चासुरं । धम्मो वड्ढउ सासओ विजयओ धम्मुत्तरं वड्ढउ ॥

Translated Sutra: हे मानव ! सिद्ध ऐसे जिनमत को मैं पुनः नमस्कार करता हूँ कि जो देव – नागकुमार – सुवर्णकुमार – किन्नर के समूह से सच्चे भाव से पूजनीय हैं। जिसमें तीन लोक के मानव सुर और असुरादिक स्वरूप के सहारे के समान संसार का वर्णन किया गया है ऐसे संयम पोषक और ज्ञान समृद्ध दर्शन के द्वारा प्रवृत्त होनेवाला शाश्वत धर्म की वृद्धि
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 65 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगमुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से य मुसावाए पंचविहे पन्नत्ते तं जहा–कन्नालीए गवालीए भोमालीए नासावहारे कूडसक्खिज्जे, थूलगमुसावायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– सहस्सब्भक्खाणे रहस्सब्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसुवएसे कूडलेहकरणे।

Translated Sutra: श्रावक स्थूल मृषावाद का पच्चक्खाण (त्याग) करे। वो मृषावाद पाँच तरीके से बताया है। कन्या सम्बन्धी झूठ, गो (चार पाँववाले) सम्बन्धी झूठ, भूमि सम्बन्धी झूठ, न्यासापहार यानि थापण पाना, झूठी गँवाही देना, स्थूल मृषावाद से विरमित श्रमणोपासक यह पाँच अतिचार जानना। वो इस प्रकार – सहसा अभ्याख्यान, रहस्य उद्‌घाटन, स्वपत्नी
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 67 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परदारगमणं समणोवासओ पच्चक्खाइ सदारसंतोसं वा पडिवज्जइ से य परदारगमणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–ओरालियपरदारगमणे वेउव्वियपरदारगमणे सदारसंतोस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– अपरिगहियागमणे इत्तरियपरिगहियागमणे अनंगकीडा परवीवाहकरणे कामभोगतिव्वाभिलासे

Translated Sutra: श्रमणोपासक को परदारागमन का त्याग करना या स्वपत्नी में संतोष रखे यानि अपनी पत्नी के साथ अब्रह्म आचरण में नियम रखे, परदारा गमन दो तरह से बताया है वो इस प्रकार – औदारिक और वैक्रिय। स्वदारा संतोष का नियम करनेवाले श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए। – अपरिगृहिता गमन, दूसरे के द्वारा परिगृहित के साथ गमन, अनंगक्रीड़ा,
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ चतुर्विंशतिस्तव

Gujarati 9 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवरगंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥

Translated Sutra: ચંદ્ર કરતા વધુ નિર્મળ, સૂર્યથી વધુ પ્રકાશ કરનારા, શ્રેષ્ઠ સાગર(સ્વયંભૂરમણ સમુદ્ર) જેવા ગંભીર, એવા હે સિદ્ધો(ભગવંતો) મને સિદ્ધિ(મોક્ષ) આપો.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 16 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं इरियावहियाए विराहणाए गमणागमणे पाणक्कमणे बीयक्कमणे हरियक्कमणे ओसा-उत्तिंग-पणग-दगमट्टी-मक्कडा-संताणासंकमणे जे मे जीवा विराहिया एगिंदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचिंदिया अभिहया वत्तिया लेसिया संघाइया संघट्टिया परियाविया किलामिया उद्दविया ठाणाओ ठाणं संकामिया जीवियाओ ववरोविया तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: હું ઐર્યાપથિકી પ્રતિક્રમવાને ઇચ્છું છું. ગમનાગમન ક્રિયા દરમિયાન થયેલ વિરાધનામાં (વિરાધના કઈ રીતે થઈ તે કહે છે – ) જતા – આવતા, મારા વડે કોઈ પણ (ત્રસજીવ), બીજ, હરિત (લીલી વનસ્પતિ), ઓસ (ઝાકળ), કીડીના દર, સેવાળ, કીચડ કે કરોળિયાના જાળા વગેરે ચંપાયા હોય. જે કોઈ એકેન્દ્રિય, બેઇન્દ્રિય, તેઇન્દ્રિય, ચતુરિન્દ્રિય કે પંચેન્દ્રિય
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 17 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं पगामसिज्जाए निगामसिज्जाए संथारा उव्वट्टणाए परियट्टणाए आउंटण-पसारणाए छप्पइयसंघट्टणाए कूइए कक्कराइए छीए जंभाइए आमोसे ससरक्खामोसे आउल-माउलाए सोअणवत्तियाए इत्थीविप्परिआसियाए दिट्ठिविप्परिआसिआए मणविप्परिआ-सिआए पाणभोयणविप्परिआसिआए जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: હું પ્રતિક્રમણ કરવાને ઇચ્છું છું. (શેનું?) પ્રકામ શય્યાથી, નિકામ શય્યાથી, સંથારામાં પડખા ફેરવવાથી, પુનઃ તે જ પડખે ફરવાથી, આકુંચન – પ્રસારણ કરવાથી, જૂ વગેરે જીવોના સંઘટ્ટનથી, ખાંસતા – કચકચ કરતા – છીંક કે બગાસું ખાતા (મુહપત્તિ ન રાખવાથી), આમર્ષથી, સરજસ્ક વસ્તુને સ્પર્શવાથી, આકુળ – વ્યાકુળતાથી, સ્વપ્ન નિમિત્તે,
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 25 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउद्दसहिं भूयगामेहिं, पन्नरसहिं परमाहम्मिएहिं, सोलसहिं गाहासोलसएहिं, सत्तरसविहे असंजमे, अट्ठारसविहे अबंभे, एगूणवीसाए नायज्झयणेहिं, वीसाए असमाहिट्ठाणेहिं।

Translated Sutra: હું પ્રતિક્રમણ કરું છું. (શેનું?) ચૌદ ભૂતગ્રામોથી, પંદર પરમાધામીથી, સોળ ગાથા ષોડશકથી, સત્તર ભેદે સંયમથી, અઢાર ભેદે અબ્રહ્મથી, ઓગણીસ જ્ઞાત અધ્યયનોથી, વીસ અસમાધિ સ્થાનોથી (લાગેલ અતિચારોનું.)
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 26 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगवीसाए-सबलेहिं, बावीसाए-परीसहेहिं, तेवीसाए-सुयगडज्झयणेहिं, चउवीसाए-देवेहिं, पंचवीसाए-भावणाहिं, छव्वीसाए-दसाकप्पववहाराणं उद्देसणकालेहिं, सत्तावीसाए-अणगारगुणेहिं अट्ठावीसइविहे-आयारपकप्पेहिं, एगुणतीसाए-पावसुयपसंगेहिं तीसाए-मोहणीयट्ठाणेहिं एगतीसाए -सिद्धाइगुणेहिं, बत्तीसाए-जोगसंगहेहिं।

Translated Sutra: એકવીસ શબલદોષ, બાવીશ પરીષહો, તેવીશ સૂત્રકૃત્‌ આગમના કુલ અધ્યયનો, ચોવીશ દેવો, પચીશ ભાવના, છવીશ – દશાશ્રુતસ્કંધ બૃહત્‌ કલ્પ અને વ્યવહાર એ ત્રણેના મળીને ઉદ્દેશનકાળ, સત્તાવીશ પ્રકારે અણગારનું ચારિત્ર, અટ્ઠાવીશ ભેદે આચાર પ્રકલ્પ, ઓગણત્રીશ ભેદે પાપશ્રુતના પ્રસંગો વડે, ત્રીશ મોહનીય સ્થાનો વડે, એકત્રીશ સિદ્ધોના
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Gujarati 46 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवरगंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૦
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Gujarati 51 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिद्ध भो पयओ नमो जिणमए नंदी सया संजमे । देवं नाग सुवण्णकिन्नरगण स्सब्भूअ भावच्चिए ॥ लोगो जत्थ पइट्ठिओ जगमिणं तेलुक्कमच्चासुरं । धम्मो वड्ढउ सासओ विजयओ धम्मुत्तरं वड्ढउ ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૮
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 65 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगमुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से य मुसावाए पंचविहे पन्नत्ते तं जहा–कन्नालीए गवालीए भोमालीए नासावहारे कूडसक्खिज्जे, थूलगमुसावायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– सहस्सब्भक्खाणे रहस्सब्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसुवएसे कूडलेहकरणे।

Translated Sutra: શ્રાવકો સ્થૂલ મૃષાવાદનું પચ્ચક્‌ખાણ કરે. તે મૃષાવાદ પાંચ ભેદે કહેલ છે, તે આ પ્રમાણે – કન્યાલીક, ગવાલિક, ભૌમાલિક, ન્યાસાપહાર, કૂટસાક્ષિક. સ્થૂલમૃષાવાદ વિરમણ કરેલ શ્રાવકોને આ પાંચ અતિચારો છે, તે જાણવા જોઈએ – સહસાભ્યાખ્યાન, રહસ્યાભ્યાખ્યાન, સ્વદારા મંત્રભેદ, મૃષા ઉપદેશ અને ખોટા લેખ કરવા.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 67 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परदारगमणं समणोवासओ पच्चक्खाइ सदारसंतोसं वा पडिवज्जइ से य परदारगमणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–ओरालियपरदारगमणे वेउव्वियपरदारगमणे सदारसंतोस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– अपरिगहियागमणे इत्तरियपरिगहियागमणे अनंगकीडा परवीवाहकरणे कामभोगतिव्वाभिलासे

Translated Sutra: શ્રમણોપાસકે પરદારાગમનના પચ્ચક્‌ખાણ કરવા અથવા સ્વપત્નીમાં સંતોષ રાખવો. (તે ચોથું વ્રત). તે પરદારાગમન બે ભેદે છે, તે આ પ્રમાણે – (૧) ઔદારિક પરદારાગમન, (૨) વૈક્રિય પરદારાગમન. સ્વદારા સંતોષ વ્રત લેનાર શ્રમણોપાસકે આ પાંચ અતિચાર જાણવા જોઈએ. તે આ પ્રમાણે – (૧) અપરિગૃહિતા ગમન, (૨) ઇત્વરિક પરિગૃહિતાગમન, (૩) અનંગક્રીડા, (૪)
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Hindi 4 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जं पुण जाणेज्जा–सहसम्मुइयाए, परवागरणेणं, अन्नेसिं वा अंतिए सोच्चा तं जहा–पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दक्खिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अहे वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अन्नयरीओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अनुदिसाओ वा आगओ अहमंसि। एवमेगेसिं जं णातं भवइ–अत्थि मे आया ओववाइए। जो इमाओ ‘दिसाओ अनुदिसाओ वा’ अनुसंचरइ सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अनुदिसाओ ‘जो आगओ अनुसंचरइ’ सोहं।

Translated Sutra: कोई प्राणी अपनी स्वमति, स्वबुद्धि से अथवा प्रत्यक्ष ज्ञानियों के वचन से, अथवा उपदेश सूनकर यह जान लेता है, कि मैं पूर्वदिशा, या दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, ऊर्ध्व अथवा अन्य किसी दिशा या विदिशा से आया हूँ। कुछ प्राणियों को यह भी ज्ञात होता है – मेरी आत्मा भवान्तर में अनुसंचरण करने वाली है, जो इन दिशाओं, अनुदिशाओं में
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Hindi 5 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से आयावाई, लोगावाई, कम्मावाई, किरियावाई।

Translated Sutra: (जो उस गमनागमन करनेवाली परिणामी नित्य आत्मा जान लेता है) वही आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी एवं क्रियावादी है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Hindi 47 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे। अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे। (जाव) अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए। से बेमि–इमंपि जाइधम्मयं, एयंपि जाइधम्मयं। इमंपि बुड्ढिधम्मयं, एयंपि बुड्ढिधम्मयं। इमंपि चित्तमंतयं, एयंपि चित्तमंतयं। इमंपि छिन्नं मिलाति, एयंपि छिन्नं मिलाति। इमंपि आहारगं, एयंपि आहारगं। इमंपि अनिच्चयं, एयंपि अनिच्चयं। इमंपि असासयं, एयंपि असासयं। इमंपि चयावचइयं, एयंपि चयावचइयं। इमंपि विपरिनामधम्मयं, एयंपि विपरिनामधम्मयं।

Translated Sutra: मैं कहता हूँ – यह मनुष्य भी जन्म लेता है, यह वनस्पति भी जन्म लेती है। यह मनुष्य भी बढ़ता है, यह वनस्पति भी बढ़ती है। यह मनुष्य भी चेतना युक्त है, यह वनस्पति भी चेतना युक्त है। यह मनुष्य शरीर छिन्न होने पर म्लान हो जाता है। यह वनस्पति भी छिन्न होने पर म्लान होती है। यह मनुष्य भी आहार करता है, यह वनस्पति भी आहार करती
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-२ अद्रढता Hindi 75 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विमुक्का हु ते जना, जे जना पारगामिणो। लोभं अलोभेण दुगंछमाणे, लद्धे कामे नाभिगाहइ।

Translated Sutra: जो विषयों के दलदल से पारगामी होते हैं, वे वास्तव में विमुक्त हैं। अलोभ (संतोष) से लोभ को पराजित करता हुआ साधक काम – भोग प्राप्त होने पर भी उनका सेवन नहीं करता (लोभ – विजय ही पार पहुँचने का मार्ग है)
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 82 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नत्थि कालस्स नागमो। सव्वे पाणा पियाउया सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविनो जीविउकामा। सव्वेसिं जीवियं पियं। तं परिगिज्झ दुपयं चउप्पयं अभिजुंजियाणं संसिंचियाणं तिविहेणं जा वि से तत्थ मत्ता भवइ– अप्पा वा बहुगा वा। से तत्थ गढिए चिट्ठइ, भोयणाए। तओ से एगया विपरिसिट्ठं संभूयं महोवगरणं भवइ। तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायानो वा से विलुंपंति, नस्सति वा से, विणस्सति वा से, अगारदाहेण वा से डज्झइ। इति से परस्स अट्ठाए कूराइं कम्माइं बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ। मुनिणा हु एयं पवेइयं। अनोहंतरा एते, नोय ओहं तरित्तए । अतीरंगमा

Translated Sutra: काल का अनागमन नहीं है, मृत्यु किसी क्षण आ सकती है। सब को आयुष्य प्रिय है। सभी सुख का स्वाद चाहते हैं। दुःख से धबराते हैं। वध अप्रिय है, जीवन प्रिय है। वे जीवित रहना चाहते हैं। सब को जीवन प्रिय है। वह परिग्रह में आसक्त हुआ मनुष्य, द्विपद और चतुष्पद का परिग्रह करके उनका उपयोग करता है। उनको कार्य में नियुक्त करता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 89 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समुट्ठिए अनगारे आरिए आरियपण्णे आरियदंसी ‘अयं संधीति अदक्खु’। से नाइए, नाइआवए, न समणुजाणइ। सव्वामगंधं परिण्णाय, निरामगंधो परिव्वए।

Translated Sutra: संयम – साधना में तत्पर हुआ आर्य, आर्यप्रज्ञ और आर्यदर्शी अनगार प्रत्येक क्रिया उचित समय पर ही करता है। वह ‘यह शिक्षा का समय – संधि है’ यह देखकर (भिक्षा के लिए जाए)। वह सदोष आहार को स्वयं ग्रहण न करे, न दूसरों से ग्रहण करवाए तथा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन नहीं करे। वह (अनगार) सब प्रकार के आमगंध (आधाकर्मादि दोषयुक्त
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 92 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लद्धे आहारे अनगारे मायं जाणेज्जा, से जहेयं भगवया पवेइयं। लाभो त्ति न मज्जेज्जा। अलाभो त्ति न सोयए। बहुं पि लद्धुं न णिहे। परिग्गहाओ अप्पाणं अवसक्केज्जा।

Translated Sutra: आहार प्राप्त होने पर, आगम के अनुसार, अनगार को उसकी मात्रा का ज्ञान होना चाहिए। ईच्छित आहार आदि प्राप्त होने पर उसका मद नहीं करे। यदि प्राप्त न हो तो शोक न करे। यदि अधिक मात्रा में प्राप्त हो, तो उसका संग्रह न करे। परिग्रह से स्वयं को दूर रखे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 95 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयतचक्खू लोग-विपस्सी लोगस्स अहो भागं जाणइ, उड्ढं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ। गढिए अणुपरियट्टमाणे। संधिं विदित्ता इह मच्चिएहिं। एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए। जहा अंतो तहा बाहिं, जहा बाहिं तहा अंतो। अंतो अंतो पूतिदेहंतराणि, पासति पुढोवि सवंताइं। पंडिए पडिलेहाए।

Translated Sutra: वह आयतचक्षु – दीर्घदर्शी लोकदर्शी होता है। यह लोक के अधोभाग को जानता है, ऊर्ध्व भाग को जानता है, तीरछे भाग को जानता है। (कामभोग में) गृद्ध हुआ आसक्त पुरुष संसार में अनुपरिवर्तन करता रहता है। यहाँ (संसार में) मनुष्यों के, (मरणधर्माशरीर की) संधि को जानकर (विरक्त हो)। वह वीर प्रशंसा के योग्य है जो (कामभोग में) बद्ध
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-६ अममत्त्व Hindi 102 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सद्दे य फासे अहियासमाणे। निव्विंव नंदिं इह जीवियस्स। मुनी मोनं समादाय, धुणे कम्म-सरीरगं॥

Translated Sutra: मुनि (मधुर एवं कटु) शब्द (रूप, रस, गन्ध) और स्पर्श को सहन करता है। इस असंयम जीवन में होने वाले आमोद आदि से विरत होता है। मुनि मौन (संयम) को ग्रहण करके कर्म – शरीर को धुन डालता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-२ दुःखानुभव Hindi 123 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोहाइमाणं हणिया य वीरे, लोभस्स पासे निरयं महंतं । तम्हा हि वीरे विरते वहाओ, छिंदेज्ज सोयं लहुभूयगामी ॥

Translated Sutra: वीर पुरुष कषाय के आदि अंग – क्रोध और मान को मारे, लोभ को महान्‌ नरक के रूप में देखे। इसलिए लघुबूत बनने का अभिलाषी, वीर हिंसा से विरत होकर स्रोतों को छिन्न – भिन्न कर डाले।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-३ अक्रिया Hindi 126 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समयं तत्थुवेहाए, अप्पाणं विप्पसायए। अनन्नपरमं नाणी, नोपमाए कयाइ वि ॥ आयगुत्ते सया वीरे, जायामायाए जावए । विरागं रूवेहिं गच्छेज्जा, महया खुड्डएहि वा॥

Translated Sutra: इस स्थिति में (मुनि) समता की द्रष्टि से पर्यालोचन करके आत्मा को प्रसाद रखे। ज्ञानी मुनि अनन्य परम के प्रति कदापि प्रमाद न करे। वह साधक सदा आत्मगुप्त और वीर रहे, वह अपनी संयम – यात्रा का निर्वाह परिमित आहार से करे। वह साधक छोटे या बड़े रूपों – (द्रश्यमान पदार्थों) के प्रति विरति धारण करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-३ अक्रिया Hindi 128 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ‘अवरेण पुव्वं न सरंति एगे, किमस्सतीतं? किं वागमिस्सं? भासंति एगे इह माणव उ, जमस्सतीतं आगमिस्सं ॥

Translated Sutra: कुछ (मूढ़मति) पुरुष भविष्यकाल के साथ पूर्वकाल का स्मरण नहीं करते। वे चिन्ता नहीं करते की इसका अतीत क्या था, भविष्य क्या होगा ? कुछ (मिथ्याज्ञानी) मानव यों कह देते हैं कि जो इसका अतीत था, वही भविष्य होगा।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-३ अक्रिया Hindi 129 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नातीतमट्ठं न य आगमिस्सं, अट्ठं नियच्छंति तहागया उ । विधूत-कप्पे एयाणुपस्सी, निज्झोसइत्ता खवगे महेसी ॥

Translated Sutra: किन्तु तथागत (सर्वज्ञ) न अतीत के अर्थ का स्मरण करते हैं और न ही भविष्य के अर्थ का चिन्तन करते हैं। (जिसने कर्मों को विविध प्रकार से धूत कर दिया है, ऐसे) विधूत समान कल्पवाला महर्षि इन्हीं के दर्शन का अनुगामी होता है, अथवा वह क्षपक महर्षि वर्तमान का अनुदर्शी हो (पूर्व संचित) कर्मों का शोषण करके क्षीण कर देता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-४ कषाय वमन Hindi 138 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे कोहदंसी से माणदंसी, जे माणदंसी से मायदंसी। जे मायदंसी से लोभदंसी, जे लोभदंसी से पेज्जदंसी। जे पेज्जदंसी से दोसदंसी, जे दोसदंसी से मोहदंसी। जे मोहदंसी से गब्भदंसी, जे गब्भदंसी से जम्मदंसी। जे जम्म-दंसी से मारदंसी, जे मारदंसी से निरयदंसी। जे निरयदंसी से तिरियदंसी, जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी। से मेहावी अभिनिवट्टेज्जा कोहं च, माणं च, मायं च, लोहं च, पेज्जं च, दोसं च, मोहं च, गब्भं च, जम्मं च, मारं च, नरगं च, तिरियं च, दुक्खं च। एयं पासगस्स दंसणं उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स। आयाणं णिसिद्धा सगडब्भि। किमत्थि उवाही पासगस्स न विज्जइ? नत्थि।

Translated Sutra: जो क्रोधदर्शी होता है, वह मानदर्शी होता है, जो मानदर्शी होता है; जो मानदर्शी होता है, वह मायादर्शी होता है, जो मायादर्शी होता है, वह लोभदर्शी होता है; जो लोभदर्शी होता है, वह प्रेमदर्शी होता है; जो प्रेमदर्शी होता है, वह द्वेषदर्शी होता है; जो द्वेषदर्शी होता है, वह मोहदर्शी होता है; जो मोहदर्शी होता है, वह गर्भदर्शी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-१ सम्यक्वाद Hindi 139 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–जे अईया, जे य पडुप्पन्ना, जे य आगमेस्सा अरहंता भगवंतो ते सव्वे एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेंति–सव्वे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता न हंतव्वा, न अज्जावेयव्वा, न परिघेतव्वा, न परितावेयव्वा, न उद्दवेयव्वा। एस धम्मे सुद्धे णिइए सासए समिच्च लोयं खेयण्णेहिं पवेइए। तं जहा–उट्ठिएसु वा, अणुट्ठिएसु वा। उवट्ठिएसु वा, अणुवट्ठिएसु वा। उवरयदंडेसु वा, अणुवरयदंडेसु वा। सोवहिएसु वा, अणोवहिएसु वा। संजोगरएसु वा, असंजोगरएसु वा। तच्चं चेयं तहा चेयं, अस्सिं चेयं पवुच्चइ।

Translated Sutra: मैं कहता हूँ – जो अर्हन्त भगवान अतीत में हुए हैं, जो वर्तमान में हैं और जो भविष्य में होंगे – वे सब ऐसा आख्यान करते हैं, ऐसा भाषण करते हैं, ऐसा प्रज्ञापन करते हैं, ऐसा प्ररूपण करते हैं – समस्त प्राणियों, सर्व भूतों, सभी जीवों और सभी सत्त्वों का हनन नहीं करना चाहिए, बलात्‌ उन्हें शासित नहीं करना चाहिए, न उन्हें दास
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-१ धर्मप्रवादी परीक्षा Hindi 144 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आघाइ नाणी इह माणवाणं संसारपडिवन्नाणं संबुज्झमाणाणं विण्णाणपत्ताणं। अट्टा वि संता अदुआ पमत्ता। अहासच्चमिणं- ति बेमि। नानागमो मच्चुमुहस्स अत्थि, इच्छापणीया वंकाणिकेया । कालग्गहीआ णिचए णिविट्ठा, ‘पुढो-पुढो जाइं पकप्पयंति’ ॥

Translated Sutra: ज्ञानी पुरुष, इस विषयमें, संसारमें स्थित, सम्यक्‌ बोध पाने को उत्सुक एवं विज्ञान – प्राप्त मनुष्यों को उपदेश करते हैं। जो आर्त अथवा प्रमत्त होते हैं, वे भी धर्म का आचरण कर सकते हैं। यह यथातथ्य – सत्य है, ऐसा मैं कहता हूँ जीवों को मृत्यु के मुख में जाना नहीं होगा, ऐसा सम्भव नहीं है। फिर भी कुछ लोग ईच्छा द्वारा प्रेरित
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-३ अनवद्यतप Hindi 149 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमं निरुद्धाउयं संपेहाए दुक्खं च जाण अदुवागमेस्सं। पुढो फासाइं च फासे। लोयं च पास विप्फंदमाणं। जे निव्वुडा पावेहिं कम्मेहिं, अनिदाणा ते वियाहिया। तम्हा तिविज्जो नो पडिसंजलिज्जासि।

Translated Sutra: यह मनुष्य – जीवन अल्पायु है, यह सम्प्रेक्षा करता हुआ साधक अकम्पित रहकर क्रोध का त्याग करे। (क्रोधादि से) वर्तमानमें अथवा भविष्यमें उत्पन्न होनेवाले दुःखों को जाने। क्रोधी पुरुष भिन्न – भिन्न नरकादि स्थानोंमें विभिन्न दुःखों का अनुभव करता है। प्राणीलोक को इधर – उधर भाग – दौड़ करते देख ! जो पुरुष पापकर्मों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-४ संक्षेप वचन Hindi 150 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवीलए पवीलए निप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं, हिच्चा उवसमं। तम्हा अविमणे वीरे सारए समिए सहिते सया जए। दुरनुचरो मग्गो वीराणं अनियट्टगामीणं। विगिंच मंस-सोणियं। एस पुरिसे दविए वीरे, आयाणिज्जे वियाहिए । जे धुनाइ समुस्सयं, वसित्ता बंभचेरंसि ॥

Translated Sutra: मुनि पूर्व – संयोग का त्याग कर उपशम करके (शरीर का) आपीड़न करे, फिर प्रपीड़न करे और तब निष्पीड़न करे। मुनि सदा अविमना, प्रसन्नमना, स्वारत, समित, सहित और वीर होकर (इन्द्रिय और मन का) संयमन करे। अप्रमत्त होकर जीवन – पर्यन्त संयम – साधन करने वाले, अनिवृत्तगामी मुनियों का मार्ग अत्यन्त दुरनुचर होता है। (संयम और मोक्षमार्ग
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-४ संक्षेप वचन Hindi 152 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स नत्थि पुरा पच्छा, मज्झे तस्स कओ सिया? से हु पण्णाणमंते बुद्धे आरंभोवरए। सम्ममेयंति पासह। जेण बंधं वहं घोरं, परितावं च दारुणं। पलिछिंदिय बाहिरगं च सोयं, णिक्कम्मदंसी इह मच्चिएहिं। ‘कम्मुणा सफलं’ दट्ठुं, तओ णिज्जाइ वेयवी।

Translated Sutra: जिसके (अन्तःकरण में भोगासक्ति का) पूर्व – संस्कार नहीं है और पश्चात्‌ का संकल्प भी नहीं है, बीच में उसके (मन में विकल्प) कहाँ से होगा ? (जिसकी भोगकांक्षाएं शान्त हो गई हैं।) वही वास्तव में प्रज्ञानवान्‌ है, प्रबुद्ध है और आरम्भ से विरत है। यह सम्यक्‌ है, ऐसा तुम देखो – सोचो। (भोगासक्ति के कारण) पुरुष बन्ध, वध, घोर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-१ एक चर Hindi 157 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे छेए से सागारियं ण सेवए। ‘कट्टु एवं अविजाणओ’ बितिया मंदस्स बालया। लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अनासेवनयाए

Translated Sutra: जो कुशल है, वह मैथुन सेवन नहीं करता। जो ऐसा करके उसे छिपाता है, वह उस मूर्ख की दूसरी मूर्खता है। उपलब्ध कामभोगों का पर्यालोचन करके, सर्व प्रकार से जानकर उन्हें स्वयं सेवन न करे और दूसरों को भी कामभोगों के कटुफल का ज्ञान कराकर उनके अनासेवन की आज्ञा दे, ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-२ विरत मुनि Hindi 160 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एस समिया-परियाए वियाहिते। जे असत्ता पावेहिं कम्मेहिं, उदाहु ते आयंका फुसंति। इति उदाहु वीरे ते फासे पुट्ठो हियासए। से पुव्वं पेयं पच्छा पेयं भेउर-धम्मं, विद्धंसण-धम्मं, अधुवं, अणितियं, असासयं, चयावचइयं, विपरिनाम धम्मं, पासह एयं रूवं।

Translated Sutra: ऐसा साधक शमिता या समता का पारगामी, कहलाता है। जो साधक पापकर्मों में आसक्त नहीं है, कदाचित्‌ उन्हें आतंक स्पर्श करे, ऐसे प्रसंग पर धीर (वीर) तीर्थंकर महावीर न कहा कि ‘उन दुःखस्पर्शों को (समभावपूर्वक) सहन करे।’ यह प्रिय लगने वाला शरीर पहले या पीछे अवश्य छूट जाएगा। इस रूप – देह के स्वरूप को देखो, छिन्न – भिन्न और
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-३ अपरिग्रह Hindi 164 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवंती केआवंती लोयंसि अपरिग्गहावंती, एएसु चेव अपरिग्गहावंती। सोच्चा वई मेहावी, पंडियाणं णिसामिया। समियाए धम्मे, आरिएहिं पवेदिते ॥ जहेत्थ मए संधी झोसिए, एवमण्णत्थ संधी दुज्झोसिए भवति, तम्हा बेमि–नो निहेज्ज वीरियं।

Translated Sutra: इस लोक में जितने भी अपरिग्रही साधक हैं, वे इन धर्मोपकरण आदि में (मूर्च्छा – ममता न रखने के कारण) ही अपरिग्रही हैं। मेधावी साधक (आगमरूप) वाणी सूनकर तथा पण्डितों के वचन पर चिन्तन – मनन करके (अपरिग्रही) बने। आर्यों (तीर्थंकरों) ने ‘समता में धर्म कहा है।’ (भगवान महावीर ने कहा) जैसे मैंने ज्ञान – दर्शन – चारित्र – इन
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-३ अपरिग्रह Hindi 168 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से वसुभं सव्व-समन्नागय-पण्णाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्जं पाव कम्मं। तं नो अन्नेसिं। जं सम्मं ति पासहा, तं मोणं ति पासहा । जं मोणं ति पासहा, तं सम्मं ति पासहा ॥ न इमं सक्कं सिढिलेहिं अद्दिज्जमाणेहिं गुणासाएहिं वंकसमायारेहिं पमत्तेहिं गारमावसंतेहिं। मुनी मोणं समायाए, धुणे कम्म-सरीरगं। पंतं लूहं सेवंति, वीरा समत्तदंसिणो। एस ओहंतरे मुनी, तिण्णे मुत्ते विरए वियाहिए।

Translated Sutra: संयमधनी मुनि के लिए सर्व समन्वागत प्रज्ञारूप अन्तःकरण से पापकर्म अकरणीय है, अतः साधक उनका अन्वेषण न करे। जिस सम्यक्‌ को देखते हो, वह मुनित्व को देखते हो, जिस मुनित्व को देखते हो, वह सम्यक्‌ को देखते हो। (सम्यक्त्व) का सम्यक्‌रूप से आचरण करना उन साधकों द्वारा शक्य नहीं है, जो शिथिल हैं, आसक्ति – मूलक स्नेह से आर्द्र
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-४ अव्यक्त Hindi 171 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से अभिक्कममाणे पडिक्कममाणे संकुचेमाणे पसारेमाणे विणियट्टमाणे संपलिमज्जमाणे। एगया गुणसमियस्स रीयतो कायसंफासमणुचिण्णा एगतिया पाणा उद्दायंति। इहलोग-वेयण वेज्जावडियं। जं ‘आउट्टिकयं कम्मं’, तं परिण्णाए विवेगमेति। एवं से अप्पमाएणं, विवेगं किट्टति वेयवी।

Translated Sutra: वह भिक्षु जाता हुआ, वापस लौटता हुआ, अंगों को सिकोड़ता हुआ, फैलाता समस्त अशुभ प्रवृत्तियों से निवृत्त होकर, सम्यक्‌ प्रकार से परिमार्जन करता हुआ समस्त क्रियाएं करे। किसी समय (यतनापूर्वक) प्रवृत्ति करते हुए गुणसमित अप्रमादी मुनि के शरीर का संस्पर्श पाकर प्राणी परिताप पाते हैं। कुछ प्राणी ग्लानि पाते हैं अथवा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-४ अव्यक्त Hindi 172 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: वह प्रभूतदर्शी, प्रभूत परिज्ञानी, उपशान्त, समिति से युक्त, सहित, सदा यतनाशील या इन्द्रियजयी अप्रमत्त मुनि (उपसर्ग करने) के लिए उद्यत स्त्रीजन को देखकर अपने आपका पर्यालोचन करता है – ‘यह स्त्रीजन मेरा क्या कर लेगा ?’ वह स्त्रियाँ परम आराम हैं। (किन्तु मैं तो सहज आत्मिक – सुख से सुखी हूँ, ये मुझे क्या सुख देंगी?) ग्रामधर्म
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-५ ह्रद उपमा Hindi 173 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–तं जहा। अवि हरए पडिपुण्णे, चिट्ठइ समंसि भोमे । उवसंतरए सारक्खमाणे, से चिट्ठति सोयमज्झगए ॥ से पास पव्वतो गुत्ते, पास लोए महेसिणो, जे य पण्णाणमंता पबुद्धा आरंभोवरया। सम्ममेयंति पासह। कालस्स कंखाए परिव्वयंति

Translated Sutra: मैं कहता हूँ – जैसे एक जलाशय जो परिपूर्ण है, समभूभाग में स्थित है, उसकी रज उपशान्त है, (अनेक जलचर जीवों का) संरक्षण करता हुआ, वह जलाशय स्रोत के मध्य में स्थित है। (ऐसा ही आचार्य होता है)। इस मनुष्यलोक में उन (पूर्वोक्त स्वरूप वाले) सर्वतः गुप्त महर्षियों को तू देख, जो उत्कृष्ट ज्ञानवान्‌ (आगमश्रुत – ज्ञाता) हैं, प्रबुद्ध
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन Hindi 181 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: निद्देसं नातिवट्टेज्जा मेहावी। सुपडिलेहिय सव्वतो सव्वयाए सम्ममेव समभिजाणिया। इहारामं परिण्णाय, अल्लीण-गुत्तो परिव्वए। निट्ठियट्ठी वीरे, आगमेण सदा परक्कमेज्जासि

Translated Sutra: मेधावी निर्देश (तीर्थंकरादि के आदेश) का अतिक्रमण न करे। वह सब प्रकार से भली – भाँति विचार करके सम्पूर्ण रूप से पूर्वोक्त जाति – स्मरण आदि तीन प्रकार से साम्य को जाने। इस सत्य (साम्य) के परिशीलन में आत्म – रमण की परिज्ञा करके आत्मलीन होकर विचरण करे। मोक्षार्थी अथवा संयम – साधना द्वारा निष्ठितार्थ वीर मुनि आगम
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन Hindi 183 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: ‘आवट्टं तु उवेहाए’ ‘एत्थ विरमेज्ज वेयवी’। विणएत्तु सोयं णिक्खम्म, एस महं अकम्मा जाणति पासति। पडिलेहाए नावकंखति, इह आगतिं गतिं परिण्णाय।

Translated Sutra: (राग – द्वेषरूप) भावावर्त का निरीक्षण करके आगमविद्‌ पुरुष उससे विरत हो जाए। विषयासक्तियों के या आस्रवों के स्रोत हटाकर निष्क्रमण करनेवाला यह महान्‌ साधक अकर्म होकर लोक को प्रत्यक्ष जानता, देखता है। (इस सत्य का) अन्तर्निरीक्षण करनेवाला साधक इस लोकमें संसार – भ्रमण और उसके कारण की परिज्ञा करके उन (विषय – सुखों)
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-१ स्वजन विधूनन Hindi 190 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मरणं तेसिं संपेहाए, उववायं चयणं च नच्चा । परिपागं च संपेहाए, तं सुणेह जहा तहा ॥ संति पाणा अंधा तमंसि वियाहिया। तामेव सइं असइं अतिअच्च उच्चावयफासे पडिसंवेदेंति। बुद्धेहिं एयं पवेदितं। संति पाणा वासगा, रसगा, उदए उदयचरा, आगासगामिणो। पाणा पाणे किलेसंति। पास लोए महब्भयं।

Translated Sutra: उन मनुष्यों की मृत्यु का पर्यालोचन कर, उपपात और च्यवन को जानकर तथा कर्मों के विपाक का भली – भाँति विचार करके उसके यथातथ्य को सूनो। (इस संसार में) ऐसे भी प्राणी बताए गए हैं, जो अंधे होते हैं और अन्धकार में ही रहते हैं। वे प्राणी उसीको एक बार या अनेक बार भोगकर तीव्र और मन्द स्पर्शों का प्रतिसंवेदन करते हैं। बुद्धों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-२ कर्मविधूनन Hindi 196 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘अहेगे धम्म मादाय’ ‘आयाणप्पभिइं सुपणिहिए’ चरे। अपलीयमाणे दढे। सव्वं गेहिं परिण्णाय, एस पणए महामुनी। अइअच्च सव्वतो संगं ‘ण महं अत्थित्ति इति एगोहमंसि।’ जयमाणे एत्थ विरते अनगारे सव्वओ मुंडे रीयंते। जे अचेले परिवुसिए संचिक्खति ओमोयरियाए। से अक्कुट्ठे व हए व लूसिए वा। पलियं पगंथे अदुवा पगंथे। अतहेहिं सद्द-फासेहिं, इति संखाए। एगतरे अन्नयरे अभिण्णाय, तितिक्खमाणे परिव्वए। जे य हिरी, जे य अहिरीमणा।

Translated Sutra: यहाँ कईं लोग, धर्म को ग्रहण करके निर्ममत्वभाव से धर्मोपकरणादि से युक्त होकर, अथवा धर्माचरण में इन्द्रिय और मन को समाहित करके विचरण करते हैं। वह अलिप्त/अनासक्त और सुदृढ़ रहकर (धर्माचरण करते हैं) समग्र आसक्ति को छोड़कर वह (धर्म के प्रति) प्रणत महामुनि होता है, (अथवा) वह महामुनि संयम में या कर्मों को धूनने में प्रवृत्त
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-२ कर्मविधूनन Hindi 197 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चिच्चा सव्वं विसोत्तियं, ‘फासे फासे’ समियदंसणे। एते भो! नगिणा वुत्ता, जे लोगंसि अनागमणधम्मिणो। आणाए मामगं धम्मं। एस उत्तरवादे, इह माणवाणं वियाहिते। एत्थोवरए तं झोसमाणे। आयाणिज्जं परिण्णाय, परियाएण विगिंचइ। ‘इहमेगेसिं एगचरिया होति’। तत्थियराइयरेहिं कुलेहिं सुद्धेसणाए सव्वेसणाए। से मेहावी परिव्वए। सुब्भिं अदुवा दुब्भिं। अदुवा तत्थ भेरवा। पाणा पाणे किलेसंति। ते फासे पुट्ठो धीरो अहियासेज्जासि।

Translated Sutra: सम्यग्दर्शन – सम्पन्न मुनि सब प्रकार की शंकाएं छोड़कर दुःख – स्पर्शों को समभाव से सहे। हे मानवो ! धर्म – क्षेत्र में उन्हें ही नग्न कहा गया है, जो मुनिधर्म में दीक्षित होकर पुनः गृहवास में नहीं आते। आज्ञा में मेरा धर्म है, यह उत्तर बाद इस मनुष्यलोक में मनुष्यों के लिए प्रतिपादित किया है। विषय से उपरत साधक ही
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