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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 316 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सूरो संगामसीसे वा, संवुडे तत्थ से महावीरे । पडिसेवमाणे फरुसाइं, अचले भगवं रीइत्था ॥

Translated Sutra: जैसे कवच पहना हुआ योद्धा युद्ध के मोर्चे पर शस्त्रों से विद्ध होने पर भी विचलित नहीं होता, वैसे ही संवर का कवच पहने हुए भगवान महावीर लाढ़ादि देश में परीषहसेना से पीड़ित होने पर भी कठोरतम कष्टों का सामना करते हुए मेरुपर्वत की तरह ध्यान में निश्चल रहकर मोक्षपथ में पराक्रम करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-६ Hindi 367 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह तत्थ कंचि भूंजमाणं पेहाए, तं जहा–गाहावइं वा, गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिनिं वा, गाहावइ-पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्हं वा, धाइं वा, दासं वा, दासिं वा, कम्मकरं वा, कम्मकरिं वा। से पुव्वामेव आलोएज्जा–आउसो! त्ति वा, भइणि! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अन्नयरं भोयणजायं? से सेवं वयंतस्स परो हत्थं वा, मत्तं वा, दव्विं वा, भायणं वा, सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पहोएज्ज वा। से पुव्वामेव आलोएज्जा–आउसो! त्ति वा, भइणि! त्ति वा, मा एयं तुमं हत्थं वा, मत्तं वा, दव्विं वा, भायणं वा, सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेहि वा, पहोएहि वा, अभिकंखसि मे दाउं? एमेव दलयाहि। से

Translated Sutra: गृहस्थ के यहाँ आहार के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी किसी व्यक्ति को भोजन करते हुए देखे, जैसे कि – गृहस्वामी, उसकी पत्नी, उसकी पुत्री या पुत्र, उसकी पुत्रवधू या गृहपति के दास – दासी या नौकर – नौकरानियों में से किसी को, पहले अपने मन में विचार करके कहे – आयुष्मन्‌ गृहस्थ इसमें से कुछ भोजन मुझे दोगे ? उस भिक्षु के ऐसा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१० Hindi 392 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–अंतरुच्छुयं वा, उच्छु-गंडियं वा, उच्छु-चोयगं वा, उच्छु-मेरुगं वा, उच्छु-सालगं वा, उच्छु-डगलं वा, सिंबलिं वा, सिंबलि-थालगं वा। अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि, अप्पे सिया भोयणजाए, बहुउज्झियधम्मिए। तहप्पगारं अंतरुच्छुयं वा जाव सिंबलि-थालगं वा– अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–बहु- अट्ठियं वा मंसं, मच्छं वा बहु कंटगं। अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि, अप्पेसिया भोयणजाए, बहु-उज्झियधम्मिए।

Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ ईक्ष के पर्व का मध्य भाग है, पर्वसहित इक्षुखण्ड है, पेरे हुए ईख के छिलके हैं, छिला हुआ अग्रभाग है, ईख की बड़ी शाखाएं हैं, छोटी डालियाँ हैं, मूँग आदि की तोड़ी हुई फली तथा चौले की फलियाँ पकी हुई हैं, परन्तु इनके ग्रहण करने पर इनमें खाने योग्य भाग बहुत थोड़ा और फेंकने योग्य भाग बहुत अधिक
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-२

अध्ययन-१० [३] उच्चार प्रश्नवण विषयक

Hindi 500 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–इह खलु गाहावई वा, गाहावइ-पुत्ता वा कंदाणि वा, मूलाणि वा, [तयाणि वा?], पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा अंतातो वा बाहिं णीहरंति, बहियाओ वा अंतो साहरंति, अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–खंधंसि वा, पीढंसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, अट्टंसि वा, पासायंसि वा, अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–अनंतरहियाए पुढवीए, ससिणिद्धाए पुढवीए, ससरक्खाए

Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जान कि गृहपति या उसके पुत्र कन्द, मूल यावत्‌ हरी जिसके अंदर से बाहर ले जा रहे हैं, या बाहर से भीतर ले जा रहे हैं, अथवा उस प्रकार की किन्हीं सचित्त वस्तुओं को इधर – उधर कर रहे हैं, तो वहाँ साधु – साध्वी मल – मूत्र विसर्जन न करे। ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो कि स्कन्ध पर, चौकी पर, मचान पर,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 510 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए-सुसमसुसमाए समाए वीइक्कंताए, सुसमाए समाए वीतिक्कंताए, सुसमदुसमाए समाए वीतिक्कंताए, दुसमसुसमाए समाए बहु वीतिक्कंताए–पण्णहत्तरीए वासेहिं, मासेहिं य अद्धणवमेहिं सेसेहिं, जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे, अट्ठमे पक्खे–आसाढसुद्धे, तस्सणं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, महावि-जय-सिद्धत्थ-पुप्फुत्तर-पवर-पुंडरीय-दिसासोवत्थिय-वद्धमाणाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाइं आउयं पालइत्ता आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता इह खलु जबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, दाहिणड्ढभरहे दाहिणमाहणकुंडपुर-सन्निवेसंसि

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने इस अवसर्पिणी काल के सुषम – सुषम नामक आरक, सुषम आरक और सुषम – दुषम आरक के व्यतीत होने पर तथा दुषम – सुषम नामक आरक के अधिकांश व्यतीत हो जाने पर और जब केवल ७५ वर्ष साढ़े आठ माह शेष रह गए थे, तब ग्रीष्म ऋतु के चौथे मास, आठवे पक्ष, आषाढ़ शुक्ला षष्ठी की रात्रि को; उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१० Gujarati 392 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–अंतरुच्छुयं वा, उच्छु-गंडियं वा, उच्छु-चोयगं वा, उच्छु-मेरुगं वा, उच्छु-सालगं वा, उच्छु-डगलं वा, सिंबलिं वा, सिंबलि-थालगं वा। अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि, अप्पे सिया भोयणजाए, बहुउज्झियधम्मिए। तहप्पगारं अंतरुच्छुयं वा जाव सिंबलि-थालगं वा– अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–बहु- अट्ठियं वा मंसं, मच्छं वा बहु कंटगं। अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि, अप्पेसिया भोयणजाए, बहु-उज्झियधम्मिए।

Translated Sutra: તે સાધુ કે સાધ્વી યાવત્‌ જાણે કે શેરડીની ગાંઠનો મધ્ય ભાગ, શેરડીની ગંડેરી – ટૂકડા – પૂંછડું – શાખા કે ડાળી, મગ આદિની ભૂંજેલ ફળી કે ઓળા એ બધાં તથા એવા પ્રકારના કોઈ પદાર્થ જેમાં ખાવા યોગ્ય થોડું અને ફેંકી દેવા જેવું ઘણું હોય તો તે અપ્રાસુક જાણી ન લે. સાધુ કે સાધ્વી યાવત્‌ જાણે કે આ દળદાર ફળમાં ઘણી ગુટલી છે અને ઘણા
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-२

अध्ययन-१० [३] उच्चार प्रश्नवण विषयक

Gujarati 500 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–इह खलु गाहावई वा, गाहावइ-पुत्ता वा कंदाणि वा, मूलाणि वा, [तयाणि वा?], पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा अंतातो वा बाहिं णीहरंति, बहियाओ वा अंतो साहरंति, अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–खंधंसि वा, पीढंसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, अट्टंसि वा, पासायंसि वा, अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–अनंतरहियाए पुढवीए, ससिणिद्धाए पुढवीए, ससरक्खाए

Translated Sutra: સાધુ – સાધ્વી એવી સ્થંડિલ ભૂમિને જાણે કે ગૃહસ્થ કે તેના પુત્રોએ – ૧ – કંદ યાવત્‌ બીજને અહીં ફેંક્યા છે, ફેંકે છે કે ફેંકશે તો તેવી કે તેવા પ્રકારની બીજી ભૂમિમાં મળ – મૂત્રનો ત્યાગ ન કરે. ૨ – શાલી, ઘઉં, મગ, અડદ, કુલત્થા, જવ, જ્વારા આદિ વાવ્યા છે, વાવે છે કે વાવશે તો તેવી ભૂમિમાં મળ – મૂત્ર ત્યાગ ન કરે. ૩ – સાધુ – સાધ્વી
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 307 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૦૭. [૧] આર્દ્રા – રોહિણી વગેરે નક્ષત્રમાં થનાર અથવા અન્ય કોઈ પણ પ્રકારના પ્રશસ્ત ઉલ્કાપાત વગેરે જોઈને અનુમાન કરવું કે આ દેશમાં સુવૃષ્ટિ થશે. તે અનાગતકાળગ્રહણ વિશેષદૃષ્ટ સાધર્મ્યવત્‌ અનુમાન છે. [૨] તેની વિપરીતતામાં પણ ત્રણ પ્રકાર ગ્રહણ થાય છે. અતીતકાળગ્રહણ, પ્રત્યુત્પન્નકાળ ગ્રહણ અને અનાગત – કાળગ્રહણ. અતીતકાળ
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 6 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए कूणिए नामं राया परिवसइ–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे अच्चंतविसुद्ध दीह राय कुल वंस सुप्पसूए निरंतरं रायलक्खण विराइयंगमंगे बहुजन बहुमान पूइए सव्वगुण समिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धाहिसित्ते माउपिउ सुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मनुस्सिंदे जनवयपिया जनवयपाले जनवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे नरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्घे पुरिसासीविसे पुरिसपुंडरिए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न विउल भवन सयनासन जाण वाहणाइण्णे बहुधन बहुजायरूवरयए आओग पओग संपउत्ते विच्छड्डिय पउरभत्तपाणे बहुदासी दास गो महिस गवेलगप्पभूए

Translated Sutra: चम्पा नगरी में कूणिक नामक राजा था, जो वहाँ निवास करता था। वह महाहिमवान्‌ पर्वत के समान महत्ता तथा मलय, मेरु एवं महेन्द्र के सदृश प्रधानता या विशिष्टता लिये हुए था। वह अत्यन्त विशुद्ध चिरकालीन था। उसके अंग पूर्णतः राजोचित लक्षणों से सुशोभित थे। वह बहुत लोगों द्वारा अति सम्मानित और पूजित था, सर्वगुणसमृद्ध,
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 17 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे अनगारा भगवंतो इरियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाण भंड मत्त निक्खेवणा समिया उच्चार पासवण खेल सिंधाण जल्ल पारिट्ठावणियासमिया मनगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिंदिया गुत्तबंभयारी अममा अकिंचणा निरुवलेवा कंसपाईव मुक्कतोया, संखो इव निरंगणा, जीवो विव अप्पडिहयगई, जच्चकणगं पिव जायरूवा, आदरिसफलगा इव पागडभावा, कुम्मो इव गुत्तिंदिया, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवा, गगनमिव निरालंबणा, अनिलो इव निरालया, चंदो इव सोमलेसा, सूरो इव दित्ततेया, सागरो इव गंभीरा, विहग इव सव्वओ विप्पमुक्का, मंदरो इव अप्पकंपा, सारयसलिलं

Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी बहुत से अनगार भगवान थे। वे ईर्या, भाषा, आहार आदि की गवेषणा, याचना, पात्र आदि के उठाने, इधर – उधर रखने आदि तथा मल, मूत्र, खंखार, नाक आदि का मैल त्यागने में समित थे। वे मनोगुप्त, वचोगुप्त, कायगुप्त, गुप्त, गुप्तेन्द्रिय, गुप्त ब्रह्मचारी, अमम, अकिञ्चन, छिन्नग्रन्थ, छिन्नस्रोत,
Auppatik ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Gujarati 6 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए कूणिए नामं राया परिवसइ–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे अच्चंतविसुद्ध दीह राय कुल वंस सुप्पसूए निरंतरं रायलक्खण विराइयंगमंगे बहुजन बहुमान पूइए सव्वगुण समिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धाहिसित्ते माउपिउ सुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मनुस्सिंदे जनवयपिया जनवयपाले जनवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे नरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्घे पुरिसासीविसे पुरिसपुंडरिए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न विउल भवन सयनासन जाण वाहणाइण्णे बहुधन बहुजायरूवरयए आओग पओग संपउत्ते विच्छड्डिय पउरभत्तपाणे बहुदासी दास गो महिस गवेलगप्पभूए

Translated Sutra: તે ચંપાનગરીમાં કૂણિક નામે રાજા વસતો હતો. તે મહાહિમવંત પર્વતની સમાન મહંત, મલય – મેરુ અને મહેન્દ્ર પર્વત સદૃશ પ્રધાન હતો. અત્યંત વિશુદ્ધ દીર્ઘ રાજકુલ વંશમાં જન્મેલો હતો. નિરંતર રાજલક્ષણ વિરાજિત અંગોપાંગ – યુક્ત હતો. ઘણા લોકો દ્વારા બહુમાન્ય અને પૂજિત હતો. સર્વગુણ સમૃદ્ધ હતો. તે શુદ્ધ ક્ષત્રિયવંશમાં જન્મેલ
Auppatik ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Gujarati 17 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे अनगारा भगवंतो इरियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाण भंड मत्त निक्खेवणा समिया उच्चार पासवण खेल सिंधाण जल्ल पारिट्ठावणियासमिया मनगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिंदिया गुत्तबंभयारी अममा अकिंचणा निरुवलेवा कंसपाईव मुक्कतोया, संखो इव निरंगणा, जीवो विव अप्पडिहयगई, जच्चकणगं पिव जायरूवा, आदरिसफलगा इव पागडभावा, कुम्मो इव गुत्तिंदिया, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवा, गगनमिव निरालंबणा, अनिलो इव निरालया, चंदो इव सोमलेसा, सूरो इव दित्ततेया, सागरो इव गंभीरा, विहग इव सव्वओ विप्पमुक्का, मंदरो इव अप्पकंपा, सारयसलिलं

Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના શિષ્યો એવા ઘણા અણગાર ભગવંતો ઇર્યાસમિત, ભાષાસમિત, એષણાસમિત, આદાન – ભાંડ – માત્ર – નિક્ષેપણા સમિત, ઉચ્ચાર – પ્રસ્રવણ – ખેલ – સિંધાણ – જલ્લ – પારિષ્ઠાપનિકા સમિત હતા. તેઓ મનગુપ્ત, વચન ગુપ્ત, કાયગુપ્ત હતા. તેઓ ગુપ્ત, ગુપ્તેન્દ્રિય, ગુપ્ત બ્રહ્મચારી હતા, તેઓ અમમ – મમત્ત્વ રહિત
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-८ चमरचंचा Hindi 140 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता अरणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसयसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तिगिंछिकूडे नामं उप्पायपव्वए पन्नत्ते–सत्तरस-एक्कवीसे जोयणसए उड्ढं उच्चत्तेणं चत्तारितीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं मूले दसबावीसे जोयणसए विक्खंभेणं, मज्झे चत्तारि चउवीसे जोयणसए विक्खंभेणं, उवरिं सत्ततेवीसे जोयणसए विक्खंभेणं मूले तिन्नि जोयणसहस्साइं, दोन्निय बत्तीसुत्तरे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! असुरकुमारों के इन्द्र और अनेक राजा चमर की सुधर्मा – सभा कहाँ पर है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मध्य में स्थित मन्दर (मेरु) पर्वत से दक्षिण दिशा में तीरछे असंख्य द्वीपों और समुद्रों को लाँघने के बाद अरुणवर द्वीप आता है। उस द्वीप की वेदिका के बाहिरी किनारे से आगे बढ़ने पर अरुणोदय नामक समुद्र आता है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३ थी ३० अंतर्द्वीप Hindi 444 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं एगूरुयमनुस्साणं एगूरुयदीवे नामं दीवे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुद्दं उत्तरपुरत्थिमे णं तिन्नि जोयणसयाइं ओगाहित्ता एत्थ णं दाहिणिल्लाणं एगुरुयमनुस्साणं एगूरुयदीवे नामं दीवे पन्नत्ते–तिन्नि जोयणसयाइं आयाम-विक्खंभेणं, नव एगूणवन्ने जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। दोण्ह वि पमाणं वण्णओ य। एवं एएणं कमेणं एवं जहा जीवाभिगमे जाव सुद्धदंतदीवे जाव

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा – भगवन् ! दक्षिण दिशा का ‘एकोरुक’ मनुष्यों का ‘एकोरुकद्वीप’ नामक द्वीप कहाँ बताया गया है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा में ‘एकोरुक’ नामक द्वीप है।) जीवाभिगमसूत्र की तृतीय प्रतिपत्ति के अनुसार इसी क्रम के शुद्धदन्तद्वीप तक (जान
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-७ लोकपाल Hindi 194 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो कति लोगपाला पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि लोगपाला पन्नत्ता, तं जहा–सोमे जमे वरुणे वेसमणे। एएसि णं भंते! चउण्हं लोगपालाणं कति विमाना पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि विमाना पन्नत्ता, तं जहा– संज्झप्पभे वरसिट्ठे सयंजले वग्गू। कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारन्नो संज्झप्पभे नामं महाविमाने पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त तारारूवाणं बहूइं जोयणाइं जाव पंच वडेंसया पन्नत्ता,

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने (पूछा – ) भगवन्‌ ! देवेन्द्र देवराज शक्र के कितने लोकपाल कहे गए हैं ? गौतम ! चार। सोम, यम, वरुण और वैश्रमण। भगवन्‌ ! इन चारों लोकपालों के कितने विमान हैं ? गौतम ! चार। सन्ध्याप्रभ, वरशिष्ट, स्वयंज्वल और वल्गु। भगवन्‌ ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल सोम नामक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-७ लोकपाल Hindi 195 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो वरसिट्ठे नामं महाविमाने पन्नत्ते? गोयमा! सोहम्मवडेंसयस्स महाविमानस्स दाहिणे णं सोहम्मे कप्पे असंखेज्जाइं जोयण-सहस्साइं वीईवइत्ता, एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो वरसिट्ठे नामं महाविमाने पन्नत्ते–अद्धतेरसजोयणसयसहस्साइं–जहा सोमस्स विमाणं तहा जाव अभिसेओ। रायहानी तहेव जाव पासायपंतीओ। सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो इमे देवा आणा उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति, तं जहा–जमकाइया इ वा, जमदेवयकाइया इ वा, पेतकाइया इ वा, पेतदेवयकाइया इ वा, असुरकुमारा, असुरकुमारीओ, कंदप्पा, निरयपाला,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल – यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान कहाँ है ? गौतम ! सौधर्मावतंसक नाम के महाविमान से दक्षिण में, सौधर्मकल्प से असंख्य हजार योजन आगे चलने पर, देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान बताया गया है, जो साढ़े बारह लाख योजन लम्बा – चौड़ा है, इत्यादि
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-१ सूर्य Hindi 216 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नगरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं चंपाए नगरीए पुण्णभद्दे नामं चेइए होत्था–वण्णओ। सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं जाव एवं वयासी– जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिण-मागच्छंति, पाईण-दाहिणमुग्गच्छ दाहिण-पडीण-मागच्छंति, दाहिण-पडीणमुग्गच्छ पडीण-उदीण-मागच्छंति, पडीण-उदीण-मुग्गच्छ उदीचि-पाईणमागच्छंति? हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ जाव उदीचि-पाईणमागच्छंति। जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स

Translated Sutra: उस काल और उस समय में चम्पा नामकी नगरी थी। उस चम्पा नगरी के बाहर पूर्णभद्र नामका चैत्य था। वहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे यावत्‌ परिषद्‌ धर्मोपदेश सूनने के लिए गई और वापस लौट गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति अनगार थे, यावत्‌ उन्होंने पूछा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-१ सूर्य Hindi 217 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं दिवसे भवइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि दिवसे भवइ; जया णं पच्चत्थिमे णं दिवसे भवइ, तया णं जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं राई भवइ? हंता गोयमा! जया णं जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं दिवसे जाव उत्तर-दाहिणे णं राई भवइ। जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणड्ढे उवकोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढे वि उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ; जया णं उत्तरड्ढे उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं जहन्निया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जब जम्बूद्वीप नामक द्वीप के दक्षिणार्द्ध में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त्त का दिन होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त्त का दिन होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त्त का दिन होता है, तब क्या जम्बूद्वीप में मन्दर (मेरु) पर्वत से पूर्व – पश्चिम में जघन्य बारह मुहूर्त्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-१ सूर्य Hindi 218 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं अणं-तपुरक्खडे समयंसि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ? हंता गोयमा! जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तह चेव जाव पडिवज्जइ। जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं पच्चत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में वर्षाऋतु का प्रथम समय होता है, तब जम्बूद्वीप में मन्दर – पर्वत से पूर्व में वर्षाऋतु का प्रथम समय अनन्तर – पुरस्कृत समय में होता है ? हाँ, गौतम ! यह इसी तरह
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-६ भव्य Hindi 301 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु अन्नयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! तत्थगए चेव आहारेज्ज वा? परिणामेज्ज वा? सरीरं वा बंधेज्जा? गोयमा! अत्थेगतिए तत्थगए चेव आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेज्जा; अत्थेगतिए तओ पडिनियत्तति, तत्तो पडिनियत्तित्ता इहमागच्छइ, आगच्छित्ता दोच्चं पि मारणंतियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावास-सयसहस्सेसु अन्नयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए, तओ पच्छा आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो जीव मारणान्तिक – समुद्‌घात से समवहत हुआ है और समवहत होकर इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से किसी एक नारकावास में नैरयिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य है, भगवन्‌ ! क्या वह वहाँ जाकर आहार करता है ? आहार को परिणमाता है ? और शरीर बाँधता है ? गौतम ! कोई जीव वहाँ जाकर ही आहार करता है, आहार को परिणमाता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१०

उद्देशक-६ सभा Hindi 490 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभागातो उड्ढं एवं जहा रायप्पसेणइज्जे जाव पंच वडेंसगा पन्नत्ता, तं जहा–असोगवडेंसए, सत्तवण्णवडेंसए, चंपगवडेंसए, चूयवडेंसए मज्झे, सोहम्मवडेंसए। से णं सोहम्म-वडेंसए महाविमाने अद्धतेरसजोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देवेन्द्र देवराज शक्र की सुधर्मासभा कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूभाग से अनेक कोटाकोटि योजन दूर ऊंचाई में सौधर्म नामक देवलोक में सुधर्मासभा है; इस प्रकार सारा वर्णन राजप्रश्नीयसूत्र के अनुसार जानना, यावत्‌ पाँच अवतंसक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-६ उपपात Hindi 585 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–संतरं भंते! नेरइया उववज्जंति? निरंतरं नेरइया उववज्जंति? गोयमा! संतरं पि नेरइया उववज्जंति, निरंतरं पि नेरइया उववज्जंति। एवं असुरकुमारा वि। एवं जहा गंगेये तहेव दो दंडगा जाव संतरं पि वेमाणिया चयंति, निरंतरं पि वेमाणिया चयंति।

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! नैरयिक सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर उत्पन्न होते रहते हैं ? गौतम ! नैरयिक सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी। असुरकुमार भी इसी तरह उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार जैसे नौवे शतक के बत्तीसवें गांगेय उद्देशक में उत्पाद और उद्वर्त्तना के सम्बन्ध में दो दण्डक कहे हैं,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-६ स्वप्न Hindi 679 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसि इमे दस महासुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तं जहा– १. एगं च णं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुविणे पराजियं पासित्ता णं पडिबुद्धे। २. एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ३. एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ४. एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयणामयं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ५. एगं च णं महं सेयं गोवग्गं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ६. एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमियं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ७. एगं च णं महं सागरं उम्मीवीयीसहस्सकलियं

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर अपने छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में इन दस महास्वप्नों को देखकर जागृत हुए। (१) एक महान घोर और तेजस्वी रूप वाले ताड़वृक्ष के समान लम्बे पिशाच को स्वप्न में पराजित किया। (२) श्वेत पाँखों वाले एक महान्‌ पुंस्कोकिल का स्वप्न। (३) चित्र – विचित्र पंखों वाले पुंस्कोकिल का स्वप्न। (४) स्वप्न में
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-८ चमरचंचा Gujarati 140 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता अरणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसयसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तिगिंछिकूडे नामं उप्पायपव्वए पन्नत्ते–सत्तरस-एक्कवीसे जोयणसए उड्ढं उच्चत्तेणं चत्तारितीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं मूले दसबावीसे जोयणसए विक्खंभेणं, मज्झे चत्तारि चउवीसे जोयणसए विक्खंभेणं, उवरिं सत्ततेवीसे जोयणसए विक्खंभेणं मूले तिन्नि जोयणसहस्साइं, दोन्निय बत्तीसुत्तरे

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! અસુરેન્દ્ર અસુરકુમારરાજ ચમરની સુધર્માસભા ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના મેરુ પર્વતની દક્ષિણે તીર્છા અસંખ્ય દ્વીપ સમુદ્રો ગયા પછી અરુણવરદ્વીપના વેદિકાના બાહ્ય છેડાથી અરુણોદય સમુદ્રમાં ૪૨,૦૦૦ યોજન ગયા પછી આ અસુરેન્દ્ર અસુરકુમાર રાજ ચમરનો તિગિચ્છિકકૂટ નામે ઉત્પાતપર્વત છે. તે ૧૭૨૧ યોજન ઊંચો
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-७ लोकपाल Gujarati 194 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो कति लोगपाला पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि लोगपाला पन्नत्ता, तं जहा–सोमे जमे वरुणे वेसमणे। एएसि णं भंते! चउण्हं लोगपालाणं कति विमाना पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि विमाना पन्नत्ता, तं जहा– संज्झप्पभे वरसिट्ठे सयंजले वग्गू। कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारन्नो संज्झप्पभे नामं महाविमाने पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त तारारूवाणं बहूइं जोयणाइं जाव पंच वडेंसया पन्नत्ता,

Translated Sutra: રાજગૃહનગરમાં યાવત્‌ પર્યુપાસના કરતા આ રીતે કહ્યું – ભગવન્‌ ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રને કેટલા લોકપાલ છે? ગૌતમ ! ચાર. તે આ – સોમ, યમ, વરુણ, વૈશ્રમણ. એ ચાર લોકપાલને કેટલા વિમાનો છે ? ગૌતમ ! ચાર, તે આ – સંધ્યાપ્રભ, વરશિષ્ટ, સ્વયંજલ, વલ્ગુ. ભગવન્‌ ! શક્રેન્દ્રના સોમ લોકપાલનું સંધ્યાપ્રભ નામક મહાવિમાન ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપમાં
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-७ लोकपाल Gujarati 195 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो वरसिट्ठे नामं महाविमाने पन्नत्ते? गोयमा! सोहम्मवडेंसयस्स महाविमानस्स दाहिणे णं सोहम्मे कप्पे असंखेज्जाइं जोयण-सहस्साइं वीईवइत्ता, एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो वरसिट्ठे नामं महाविमाने पन्नत्ते–अद्धतेरसजोयणसयसहस्साइं–जहा सोमस्स विमाणं तहा जाव अभिसेओ। रायहानी तहेव जाव पासायपंतीओ। सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो इमे देवा आणा उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति, तं जहा–जमकाइया इ वा, जमदेवयकाइया इ वा, पेतकाइया इ वा, पेतदेवयकाइया इ वा, असुरकुमारा, असुरकुमारीओ, कंदप्पा, निरयपाला,

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૯૫. ભગવન્‌ ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રના યમ લોકપાલનું વરશિષ્ટ નામે મહાવિમાન ક્યાં આવેલ છે ? ગૌતમ ! સૌધર્માવતંસક મહાવિમાનની દક્ષિણે સૌધર્મકલ્પથી અસંખ્ય હજાર યોજન ગયા પછી શક્રેન્દ્રના યમ લોકપાલનું વરશિષ્ટ નામક મહાવિમાન છે. તે ૧૨|| લાખ યોજન લાંબુ – પહોળું છે, ઇત્યાદિ ‘સોમ’ના વિમાન માફક યાવત્‌ અભિષેક, રાજધાની,
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-७ लोकपाल Gujarati 199 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारन्नो सयंजले नामं महाविमाने पन्नत्ते? गोयमा! तस्स णं सोहम्मवडेंसयस्स महाविमानस्स पच्चत्थिमे णं जहा सोमस्स तहा विमान-रायधानीओ भाणियव्वा जाव पासादवडेंसया, नवरं–नामनाणत्तं। सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारन्नो इमे देवा आणाउववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति, तं जहा–वरुणकाइया इ वा, वरुणदेवयकाइया इ वा, नागकुमारा, नागकुमारीओ, उदहि-कुमारा, उदहिकुमारीओ, थणियकुमारा, थणियकुमारीओ–जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिया, तप्पक्खिया, तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारन्नो आणा-उववाय-वयण-निद्देसे

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રના વરુણ લોકપાલનું સ્વયંજલ નામક મહાવિમાન ક્યાં આવેલ છે ? ગૌતમ ! સૌધર્માવતંસક મહાવિમાનની પશ્ચિમે સૌધર્મકલ્પ છે, ત્યાંથી અસંખ્ય યોજન ગયા પછી યાવત્‌ બધું સોમ લોકપાલ જેમ જાણવું. તેમજ વિમાન, રાજધાની, યાવત્‌ પ્રાસાદાવતંસકો વિશે સમજવું, માત્ર નામમાં ફેરફાર છે. શક્રના વરુણ લોકપાલની
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-७ लोकपाल Gujarati 200 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वेसमणस्स महारन्नो वग्गू नामं महाविमाने पन्नत्ते? गोयमा! तस्स णं सोहम्मवडेंसयस्स महाविमानस्स उत्तरे णं जहा सोमस्स विमान-रायहाणि-वत्तव्वया तहा नेयव्वा जाव पासादवडेंसया। सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो वेसमणस्स महारन्नो इमे देवा आणा-उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति, तं जहा–वेसमणकाइया इ वा, वेसमणदेवयकाइया इ वा, सुवण्णकुमारा, सुवण्णकुमारीओ, दीवकुमारा, दीवकुमारीओ, दिसाकुमारा, दिसाकुमारीओ, वाणमंतरा, वाणमंतरीओ–जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिया तप्पक्खिया तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वेसमणस्स महारन्नो आणा-उववाय-वयण-निद्देसे

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રના વૈશ્રમણ લોકપાલનું વલ્ગુ નામે મહાવિમાન ક્યાં છે ? ગૌતમ ! સૌધર્માવતંસક મહાવિમાન ની ઉત્તરે છે. બધી વક્તવ્યતા સોમલોકપાલના વિમાન, રાજધાની માફક અહીં જાણવી. યાવત્‌ પ્રાસાદાવતંસક. શક્રના વૈશ્રમણ લોકપાલની આજ્ઞા – ઉપપાત – વચન – નિર્દેશમાં આ દેવો રહે છે – વૈશ્રમણકાયિક, વૈશ્રમણ દેવ –
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-४

उद्देशक-१ थी ८ लोकपाल विमान अने राजधानी Gujarati 208 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी–ईसानस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो कइ लोगपाला पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि लोगपाला पन्नत्ता, तं जहा–सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे। एएसि णं भंते! लोगपालाणं कइ विमाना पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि विमाना पन्नत्ता, तं जहा–सुमणे, सव्वओभद्दे, वग्गू, सुवग्गू। कहि णं भंते! ईसानस्स देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारन्नो सुमणे नामं महाविमाने पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव ईसाने नामं कप्पे पन्नत्ते। तत्थ णं जाव पंच वडेंसया पन्नत्ता, तं जहा– अंकवडेंसए, फलिहवडेंसए, रयणवडेंसए, जायरूव-वडेंसए, मज्झे ईसानवडेंसए। तस्स

Translated Sutra: વર્ણન સૂત્ર સંદર્ભ: / ૨૦૯ અનુવાદ: રાજગૃહ નગરમાં યાવત્‌ ગૌતમસ્વામીએ આ પ્રમાણે પૂછ્યું – ભગવન્ ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ ઈશાનને કેટલા લોકપાલો છે ? ગૌતમ ! ચાર. તે આ – સોમ, યમ, વરુણ, વૈશ્રમણ. ભગવન્‌ ! આ લોકપાલોને કેટલા વિમાનો છે ? ગૌતમ ! ચાર. તે આ – સુમન, સર્વતોભદ્ર, વલ્ગુ, સુવલ્ગુ. ભગવન્‌ ! ઈશાનેન્દ્રના સોમ લોકપાલનું સુમન નામે
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-१ सूर्य Gujarati 217 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं दिवसे भवइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि दिवसे भवइ; जया णं पच्चत्थिमे णं दिवसे भवइ, तया णं जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं राई भवइ? हंता गोयमा! जया णं जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं दिवसे जाव उत्तर-दाहिणे णं राई भवइ। जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणड्ढे उवकोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढे वि उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ; जया णं उत्तरड्ढे उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं जहन्निया

Translated Sutra: *ભગવન્‌ ! જંબૂદ્વીપમાં દક્ષિણાર્દ્ધમાં દિવસ હોય છે, ત્યારે ઉત્તરાર્ધમાં પણ દિવસ હોય છે, જ્યારે ઉત્તરાર્ધમાં પણ દિવસ હોય છે, ત્યારે જંબૂદ્વીપમાં મેરુની પૂર્વ – પશ્ચિમે રાત્રિ હોય છે ? હા, ગૌતમ ! જ્યારે જંબૂદ્વીપમાં દક્ષિણાર્ધમાં પણ દિવસ હોય ત્યારે યાવત્‌ પૂર્વ પશ્ચિમમાં રાત્રિ હોય છે. *ભગવન્‌ ! જંબૂદ્વીપમાં
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-१ सूर्य Gujarati 218 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं अणं-तपुरक्खडे समयंसि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ? हंता गोयमा! जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तह चेव जाव पडिवज्जइ। जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं पच्चत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स

Translated Sutra: *ભગવન્‌ ! જ્યારે જંબૂદ્વીપમાં દક્ષિણાર્ધમાં વર્ષાનો પ્રથમ સમય હોય ત્યારે ઉત્તરાર્ધમાં પણ વર્ષાનો પ્રથમ સમય હોય અને ઉત્તરાર્ધમાં વર્ષાનો પ્રથમ સમય હોય ત્યારે જંબૂદ્વીપના મેરુની પૂર્વ – પશ્ચિમે તે સમય પછી તુરંત જ વર્ષાનો આરંભ થાય ? હા, ગૌતમ ! એ પ્રમાણે જ હોય. *ભગવન્‌ ! જંબૂદ્વીપના મેરુની પૂર્વે વર્ષાનો પ્રથમ
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-१ सूर्य Gujarati 219 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिणमागच्छंति, जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया भणिया सच्चेव सव्वा अपरिसेसिया लवणसमुद्दस्स वि भाणियव्वा, नवरं–अभिलावो इमो जाणियव्वो। जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ, तं चेव जाव तदा णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं राई भवति। एएणं अभिलावेणं नेयव्वं जाव जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं नेवत्थि ओसप्पिणी, नेवत्थि उस्सप्पिणी अवट्ठिएणं तत्थ

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! લવણસમુદ્રમાં સૂર્ય ઈશાન ખૂણામાં ઊગીને અગ્નિ ખૂણામાં અસ્ત થાય છે? ઇત્યાદિ. ગૌતમ ! જેમ જંબૂદ્વીપનાં સૂર્યના સંબંધમાં કહ્યું તેમ બધું જ કથાન લવણ સમુદ્રનાં સૂર્યના સંબંધમાં પણ કહેવું. વિશેષ એ કે – આ વક્તવ્યતામાં જંબૂદ્વીપ શબ્દને સ્થાને લવણ સમુદ્ર શબ્દ કહેવો. તે આલાવો આમ કહેવો – ભગવન્‌ ! લવણસમુદ્રના દક્ષિણાર્ધમાં
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शतक-६

उद्देशक-६ भव्य Gujarati 301 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु अन्नयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! तत्थगए चेव आहारेज्ज वा? परिणामेज्ज वा? सरीरं वा बंधेज्जा? गोयमा! अत्थेगतिए तत्थगए चेव आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेज्जा; अत्थेगतिए तओ पडिनियत्तति, तत्तो पडिनियत्तित्ता इहमागच्छइ, आगच्छित्ता दोच्चं पि मारणंतियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावास-सयसहस्सेसु अन्नयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए, तओ पच्छा आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! જે જીવ મારણાંતિક સમુદ્‌ઘાતથી સમવહત થાય, થઈને આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ૩૦ લાખ નરકા – વાસોમાંના કોઈ એક નરકાવાસમાં નૈરયિકપણે ઉત્પન્ન થવા યોગ્ય છે, તો હે ભગવન્‌ ! ત્યાં જઈને આહાર કરે ? આહારને પરિણમાવે ? શરીરને બાંધે ? ગૌતમ ! કેટલાક ત્યાં જઈને કરે અને કેટલાક ત્યાં જઈ, અહીં આવીને ફરી વાર મારણાંતિક સમુદ્‌ઘાત વડે
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शतक-९

उद्देशक-३ थी ३० अंतर्द्वीप Gujarati 444 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं एगूरुयमनुस्साणं एगूरुयदीवे नामं दीवे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुद्दं उत्तरपुरत्थिमे णं तिन्नि जोयणसयाइं ओगाहित्ता एत्थ णं दाहिणिल्लाणं एगुरुयमनुस्साणं एगूरुयदीवे नामं दीवे पन्नत्ते–तिन्नि जोयणसयाइं आयाम-विक्खंभेणं, नव एगूणवन्ने जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। दोण्ह वि पमाणं वण्णओ य। एवं एएणं कमेणं एवं जहा जीवाभिगमे जाव सुद्धदंतदीवे जाव

Translated Sutra: રાજગૃહનગરમાં યાવત્‌ ગૌતમસ્વામીએ આમ કહ્યું – ભગવન ! દક્ષિણ દિશાના એકોરુક મનુષ્યોનો એકોરુક દ્વીપ ક્યાં કહ્યો છે? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના મેરુ પર્વતની દક્ષિણે ચુલ્લ હિમવંત વર્ષધર પર્વતની પૂર્વ દિશાના ચરમાંતથી, લવણસમુદ્રમાં ઇશાન ખૂણામાં ૩૦૦ યોજન ગયા પછી તેની દક્ષિણ દિશાએ એકોરુક મનુષ્યોનો એકોરુક દ્વીપ નામનો
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शतक-१०

उद्देशक-६ सभा Gujarati 490 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभागातो उड्ढं एवं जहा रायप्पसेणइज्जे जाव पंच वडेंसगा पन्नत्ता, तं जहा–असोगवडेंसए, सत्तवण्णवडेंसए, चंपगवडेंसए, चूयवडेंसए मज्झे, सोहम्मवडेंसए। से णं सोहम्म-वडेंसए महाविमाने अद्धतेरसजोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं,

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૯૦. ભગવન્‌ ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રની સુધર્માસભા ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપમાં મેરુ પર્વતની દક્ષિણે, આ જ રત્નપ્રભાપૃથ્વીના બહુસમ રમણીય ભૂમિભાગથી અનેક કોટાકોટી યોજન દૂર ઉંચે સૌધર્મ દેવલોકમાં સુધર્માસભા છે, ઈત્યાદિ રાયપ્પસેણઈય સૂત્ર મુજબ યાવત્‌ પાંચ અવતંસકો છે – અશોકાવતંસક યાવત્‌ મધ્યમાં સૌધર્માવતંસક.
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शतक-११

उद्देशक-१० लोक Gujarati 511 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लोए णं भंते! केमहालए पन्नत्ते? गोयमा! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव-समुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव एगं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसयसहस्साइं सोलससहस्साइं दोन्निय सत्तावीसे जोयणसए तिन्नि य कोसे अट्ठावीसं च धनुसयं तेरस अंगुलाइं अद्धंगुलगं च किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। तेणं कालेणं तेणं समएणं छ देवा महिड्ढीया जाव महासोक्खा जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वए मंदरचलियं सव्वओ समंता संपरि-क्खित्ताणं चिट्ठेज्जा। अहे णं चत्तारि दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ चत्तारि बलिपिंडे गहाय जंबुद्दीवस्स दीवस्स चउसु वि दिसासु बहियाभिमुहीओ ठिच्चा ते चत्तारि बलिपिंडे

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૧૧. ભગવન્‌ ! લોક કેટલો મોટો છે? ગૌતમ ! આ જંબૂદ્વીપ દ્વીપ, સર્વે દ્વીપોથી યાવત્‌ પરિધિથી છે. તે કાળે, તે સમયે છ મહર્દ્ધિક યાવત્‌ મહાસૌખ્ય દેવો, જંબૂદ્વીપના મેરુ પર્વતની મેરુ ચૂલિકાની ચોતરફ ઊભા રહ્યા. નીચે ચાર દિક્‌ – કુમારી મહત્તરિકાઓ ચાર બલિપિંડ લઈને જંબૂદ્વીપની ચારે દિશામાં બહારની તરફ મુખ રાખીને ઊભી
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शतक-१३

उद्देशक-४ पृथ्वी Gujarati 570 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केरिसयं पुढविफासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति? गोयमा! अनिट्ठं जाव अमणामं। एवं जाव अहेसत्तमपुढविनेरइया। एवं आउफासं, एवं जाव वणस्सइफासं।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૭૦. ભગવન્‌ ! રત્નપ્રભા પૃથ્વી નૈરયિક, કેવો પૃથ્વીસ્પર્શ અનુભવતા વિચરે છે ? ગૌતમ ! તેઓ અનિષ્ટ, અકાંત, અપ્રિય, અમનોજ્ઞ, અમણામ સ્પર્શને અનુભવે છે. એ રીતે અધઃસપ્તમી પૃથ્વી નૈરયિક સુધી કહેવું, એ રીતે અપ્‌કાય, તેઉકાય, વાયુકાય, વનસ્પતિકાયનો પ્રતિકુળ સ્પર્શ કહેવો. સૂત્ર– ૫૭૧. ભગવન્‌ ! રત્નપ્રભા પૃથ્વી, બીજી શર્કરાપ્રભા
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शतक-१३

उद्देशक-६ उपपात Gujarati 586 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो चमरचंचे नामं आवासे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे–एवं जहा बितियसए सभाउद्देसए वत्तव्वया सच्चेव अपरिसेसा नेयव्वा। तीसे णं चमरचंचाए रायहानीए दाहिणपच्चत्थिमे णं छक्कोडिसए पणपन्नं च कोडीओ पणतीसं च सय सहस्साइं पन्नासं च सहस्साइं अरुणोदगसमुद्दं तिरियं वीइवइत्ता, एत्थ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो चमरचंचे नामं आवासे पन्नत्ते–चउरासीइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, दो जोयणसयसहस्सा पन्नट्ठिं च सहस्साइं छच्च बत्तीसे जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं।

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમરનો ચમરચંચા નામે આવાસ ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપમાં મેરુ પર્વતની દક્ષિણમાં તિર્છા અસંખ્ય દ્વીપસમુદ્ર ગયા પછી૦ આદિ જેમ શતક – ૨માં સભા ઉદ્દેશકની વક્તવ્યતા છે, તે સંપૂર્ણ જાણવી. વિશેષ એ કે – અહી ઉત્પાત પર્વતનું નામ તિગિચ્છકૂટ છે, ચમરચંચા રાજધાની છે, ચમરચંચ નામે આવાસપર્વત છે અને
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शतक-१६

उद्देशक-६ स्वप्न Gujarati 677 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! सुविणदंसणे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे सुविणदंसणे पन्नत्ते, तं जहा–अहातच्चे, पताणे, चिंतासुविणे, तव्विवरीए, अव्वत्तदंसणे। सुत्ते णं भंते! सुविणं पासति? जागरे सुविणं पासति? सुत्तजागरे सुविणं पासति? गोयमा! नो सुत्ते सुविणं पासति, नो जागरे सुविणं पासति, सुत्तजागरे सुविणं पासति। जीवा णं भंते! किं सुत्ता? जागरा? सुत्तजागरा? गोयमा! जीवा सुत्ता वि, जागरा वि, सुत्तजागरा वि। नेरइयाणं भंते! किं सुत्ता–पुच्छा। गोयमा! नेरइया सुत्ता, नो जागरा, नो सुत्तजागरा। एवं जाव चउरिंदिया। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! किं सुत्ता–पुच्छा। गोयमा! सुत्ता, नो जागरा, सुत्तजागरा

Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૭૭. ભગવન્‌ ! સ્વપ્નદર્શન કેટલા પ્રકારે છે ? ગૌતમ ! પાંચ પ્રકારે છે – યથાતથ્ય સ્વપ્નદર્શન, પ્રતાન સ્વપ્નદર્શન, ચિંતા સ્વપ્નદર્શન, તદ્‌વિપરીત સ્વપ્નદર્શન, અવ્યક્ત સ્વપ્નદર્શન. ભગવન્‌ ! શું સૂતા પ્રાણી સ્વપ્ન જુએ કે જાગતા પ્રાણી સ્વપ્ન જુએ કે સૂતા – જાગતા પ્રાણી સ્વપ્ન જુએ ? ગૌતમ ! સૂતા કે જાગતા સ્વપ્ન
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शतक-१६

उद्देशक-९ बलीन्द्र Gujarati 687 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहिण्णं भंते! बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तिरियमसंखेज्जे जहेव चमरस्स जाव बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो रुयगिंदे नामं उप्पायपव्वए पन्नत्ते। सत्तरस एक्कवीसे जोयणसए– एवं पमाणं जहेव तिगिच्छकूडस्स पासायवडेंगस्स वि तं चेव पमाणं, सीहासणं सपरिवारं बलिस्स परियारेणं, अट्ठो तहेव, नवरं–रुयगिंदप्पभाइं–रुयगिंदप्पभाइं–रुयगिंदप्पभाइं। सेसं तं चेव जाव बलिचंचाए रायहानीए अन्नेसिं च जाव रुयगिंदस्स णं उप्पायपव्वयस्स उत्तरे णं छक्कोडिसए तहेव जाव

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! વૈરોચનેન્દ્ર વૈરોચનરાજ બલિની સુધર્માસભા ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપના મેરુ પર્વતની ઉત્તરે તિર્છા અસંખ્ય યોજન ગયા પછી જેમ ચમરની યાવત્‌ ૪૨,૦૦૦ યોજન ગયા પછી ત્યાં બલીન્દ્રનો રુચકેન્દ્ર નામે ઉત્પાત પર્વત છે, તે ૧૭૨૧ યોજન ઊંચો છે ઇત્યાદિ તિગિચ્છિ કૂડવત્‌ કહેવું પ્રાસાદાવતંસકનું પ્રમાણ પણ તેમજ છે. સિંહાસન,
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शतक-१७

उद्देशक-५ ईशान Gujarati 708 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहिं णं भंते! ईसानस्स देविंदस्स देवरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं जहा ठाणपदे जाव मज्झे ईसानवडेंसए। से णं ईसानवडेंसए महाविमाने अद्धतेरसजोयणसय-सहस्साइं–एवं जहा दसमसए सक्कविमान-वत्तव्वया सा इह वि ईसानस्स निरवसेसा भाणियव्वा जाव आयरक्ख त्ति। ठिती सातिरेगाइं दो सागरोवमाइं, सेसं तं चेव जाव ईसाने देविंदे देवराया, ईसाने देविंदे देवराया। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ ઈશાનની સુધર્માસભા ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપમાં મેરુ પર્વતની ઉત્તરે, આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના બહુસમ રમણીય ભૂમિભાગથી ઉપર ચંદ્ર સૂર્ય વિમાનની ઉપર૦ જેમ સ્થાનપદમાં કહ્યું છે, તેમ યાવત્‌ મધ્યમાં ઈશાનાવતંસક મહાવિમાન છે, તે મહાવિમાન સાડા બાર લાખ યોજન ઇત્યાદિ જેમ દશમાં શતકમાં શક્ર વિમાન
Bhaktaparigna भक्तपरिज्ञा Ardha-Magadhi

आचरण, क्षमापना आदि

Hindi 91 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तुंगं न मंदराओ, आगासाओ विसालयं नत्थि । जह, तह जयम्मि जाणसु धम्ममहिंसासमं नत्थि ॥

Translated Sutra: जिस तरह जगत के लिए मेरु पर्वत से ज्यादा कोई ऊंचा नहीं है और आकाश से कोई बड़ा नहीं है, उसी तरह अहिंसा समान धर्म नहीं है ऐसा तू मान ले।
Bhaktaparigna भक्तपरिज्ञा Ardha-Magadhi

आचरण, क्षमापना आदि

Hindi 116 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नीयंगमाहिं सुपओहराहिं उप्पित्थमंथरगईहिं । महिलाहिं निन्नयाहि व गिरिवरगरुया वि भिज्जंति ॥

Translated Sutra: स्त्रियों की नदियाँ के साथ तुलना करने से स्त्री नीचगामीनी, (नदी पक्ष में झुकाव रखनेवाली भूमिमें जानेवाली), अच्छे स्तनवाली (नदी के लिए – सुन्दर पानी धारण करनेवाली), देखने लायक, खूबसूरत और मंद गतिवाली नदियाँ की तरह मेरु पर्वत जैसे बोझ (पुरुष) को भी भेदती है।
Bhaktaparigna ભક્તપરિજ્ઞા Ardha-Magadhi

आचरण, क्षमापना आदि

Gujarati 89 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परिहर छज्जीववहं सम्मं मन-वयण-कायजोगेहिं । जीवविसेसं नाउं जावज्जीवं पयत्तेणं ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૯. જીવ વિશેષનાં ભેદને જાણીને જાવજ્જીવ પ્રયત્ન વડે સમ્યક્‌ મન – વચન – કાયયોગથી છકાય જીવના વધનો ત્યાગ કર. સૂત્ર– ૯૦. જેમ તમને દુઃખ પ્રિય નથી, એમ સર્વ જીવને પણ દુખ ગમતું નથી, એવું જાણીને સર્વ આદર વડે ઉપયુક્ત(સાવધાન) થઈ દરેક જીવને આત્મવત્‌ માની દયા કર. સૂત્ર– ૯૧. જેમ જગતમાં મેરુ પર્વતથી ઊંચું કોઈ નથી, આકાશથી
Bhaktaparigna ભક્તપરિજ્ઞા Ardha-Magadhi

आचरण, क्षमापना आदि

Gujarati 114 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पडिपिल्लिय कामकलिं कामग्घत्थासु मुयसु अनुबंधं । महिलासु दोसविसवल्लरीसु पयइं नियच्छंतो ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૧૪. કંદર્પથી વ્યાપ્ત અને દોષરૂપ વિષની વેલડી સરખી સ્ત્રીઓને વિશે જેણે કામકલહને પ્રેર્યો છે એવા પ્રતિબંધને સ્વાભાવિક જોતા તમે છોડી દો. સૂત્ર– ૧૧૫. વિષયાંધ સ્ત્રી કુળ, વંશ, પતિ, પુત્ર, માતા, પિતાને ન ગણતી દુઃખ સમુદ્રમાં પાડે છે. સૂત્ર– ૧૧૬. સ્ત્રીઓ નીચગામીની, સારા સ્તનવાળી, મંદગતિવાળી નદી માફક મેરુ પર્વત
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 39 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते सेयताए संठिती आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमा दुविधा संठिती पन्नत्ता, तं जहा–चंदिमसूरियसंठिती य तावक्खेत्तसंठिती य। ता कहं ते चंदिमसूरियसंठिती आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ सोलस पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता समचउरंससंठिता चंदिमसूरियसंठिती पन्नत्ता–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता विसमचउरंससंठिता चंदिमसू-रियसंठिती पन्नत्ता–एगे एवमाहंसु २ एवं समचउक्कोणसंठिता ३ विसमचउक्कोणसंठिता ४ समचक्कवालसंठिता ५ विसम-चक्कवालसंठिता ६ चक्कद्धचक्कवालसंठिता चंदिमसूरियसंठिती पन्नत्ता– एगे एवमाहंसु ७ एगे पुण एवमाहंसु–ता छत्तागारसंठिता चंदिमसूरियसंठिती

Translated Sutra: श्वेत की संस्थिति किस प्रकार की है ? श्वेत संस्थिति दो प्रकार की है – चंद्र – सूर्य की संस्थिति और तापक्षेत्र की संस्थिति। चन्द्र – सूर्य की संस्थिति के विषय में यह सोलह प्रतिपत्तियाँ (परमतवादी मत) हैं। – कोई कहता है कि, (१) चन्द्र – सूर्य की संस्थिति समचतुरस्र हैं। (२) विषम चतुरस्र है। (३) समचतुष्कोण है। (४) विषम
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 40 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कस्सि णं सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ वीसं पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता मंदरंसि णं पव्वतंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहिताति वएज्जा–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता मेरुं सि णं पव्वतंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहिताति वएज्जा–एगे एवमाहंसु २ एवं एएणं अभिलावेणं भाणियव्वं–ता मनोरमंसि णं पव्वतंसि ३ ता सुदंसणंसि णं पव्वतंसि ४ ता सयंपभंसि णं पव्वतंसि ५ ता गिरिरायंसि णं पव्वतंसि ६ ता रयणुच्चयंसि णं पव्वतंसि ७ ता सिलुच्चयंसि णं पव्वतंसि ८ लोयमज्झंसि णं पव्वतंसि ९ ता लोयणाभिंसि णं पव्वतंसि १० ता अच्छंसि णं पव्वतंसि ११ ता

Translated Sutra: सूर्य की लेश्या कहाँ प्रतिहत होती है ? इस विषय में बीस प्रतिपत्तियाँ है। (१) मन्दर पर्वत में, (२) मेरु पर्वत में, (३) मनोरम पर्वत में, (४) सुदर्शन पर्वत में, (५) स्वयंप्रभ पर्वत में, (६) गिरिराज पर्वत में, (७) रत्नोच्चय पर्वत में, (८) शिलोच्चय पर्वत में, (९) लोकमध्य पर्वत में, (१०) लोकनाभी पर्वत में, (११) अच्छ पर्वत में, (१२) सूर्यावर्त्त
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 42 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता के ते सूरियं वरयति आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ वीसं पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता मंदरे णं पव्वए सूरियं वरयति आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता मेरु णं पव्वए सूरियं वरयति आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु २ एवं एएणं अभिलावेणं नेयव्वं जाव पव्वयराए णं पव्वए सूरियं वरयति आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु २०। वयं पुण एवं वदामो–ता मंदिरेवि पवुच्चइ तहेव जाव पव्वयराएवि पवुच्चइ ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला सूरियं वरयंति, अदिट्ठावि णं पोग्गला सूरियं वरयंति, चरम-लेसंतरगतावि णं पोग्गला सूरियं वरयंति।

Translated Sutra: सूर्य का वरण कौन करता है ? इस विषय में बीस प्रतिपत्तियाँ हैं। एक कहता है मंदर पर्वत सूर्य का वरण करता है, दूसरा कहता है कि मेरु पर्वत वरण करता है यावत्‌ बीसवां कहता है कि पर्वतराज पर्वत सूर्य का वरण करता है। (प्राभृत – ५ – के समान समस्त कथन समझ लेना।) भगवंत फरमाते हैं कि मंदर पर्वत से लेकर पर्वतराज पर्वत सूर्य का
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 43 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते उदयसंठिती आहितेति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ तिन्नि पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ... ... एवं परिहावेतव्वं–सोलसमुहुत्ते दिवसे पन्नरसमुहुत्ते दिवसे

Translated Sutra: सूर्य की उदय संस्थिति कैसी है ? इस विषय में तीन प्रतिपत्तियाँ हैं। एक परमतवादी कहता है कि जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में अट्ठारह मुहूर्त्त का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी अट्ठारह मुहूर्त्त प्रमाण दिन होता है। जब उत्तरार्द्ध में अट्ठारह मुहूर्त्त का दिन होता है तब दक्षिणार्द्ध में भी अट्ठारह मुहूर्त्त
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 126 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता जंबुद्दीवे णं दीवे कतरे नक्खत्ते सव्वब्भंतरिल्लं चारं चरति? कतरे नक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं चारं चरति? कतरे नक्खत्ते सव्वुपरिल्लं चारं चरति? कतरे नक्खत्ते सव्वहिट्ठिल्लं चारं चरति? ता अभीई नक्खत्ते सव्वब्भंतरिल्लं चारं चरति, मूले नक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं चारं चरइ, साती नक्खत्ते सव्वुपरिल्लं चारं चरति, भरणी नक्खत्ते सव्वहेट्ठिल्लं चारं चरति।

Translated Sutra: मेरु पर्वत की चारों तरफ ११२१ योजन को छोड़कर ज्योतिष्क देव भ्रमण करते हैं, लोकान्त से ज्योतिष्क देव का परिभ्रमण ११११ योजन है।
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