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Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-२ कर्मविधूनन Hindi 196 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘अहेगे धम्म मादाय’ ‘आयाणप्पभिइं सुपणिहिए’ चरे। अपलीयमाणे दढे। सव्वं गेहिं परिण्णाय, एस पणए महामुनी। अइअच्च सव्वतो संगं ‘ण महं अत्थित्ति इति एगोहमंसि।’ जयमाणे एत्थ विरते अनगारे सव्वओ मुंडे रीयंते। जे अचेले परिवुसिए संचिक्खति ओमोयरियाए। से अक्कुट्ठे व हए व लूसिए वा। पलियं पगंथे अदुवा पगंथे। अतहेहिं सद्द-फासेहिं, इति संखाए। एगतरे अन्नयरे अभिण्णाय, तितिक्खमाणे परिव्वए। जे य हिरी, जे य अहिरीमणा।

Translated Sutra: यहाँ कईं लोग, धर्म को ग्रहण करके निर्ममत्वभाव से धर्मोपकरणादि से युक्त होकर, अथवा धर्माचरण में इन्द्रिय और मन को समाहित करके विचरण करते हैं। वह अलिप्त/अनासक्त और सुदृढ़ रहकर (धर्माचरण करते हैं) समग्र आसक्ति को छोड़कर वह (धर्म के प्रति) प्रणत महामुनि होता है, (अथवा) वह महामुनि संयम में या कर्मों को धूनने में प्रवृत्त
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-३ उपकरण शरीर विधूनन Hindi 198 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘एयं खु मुनी आयाणं सया सुअक्खायधम्मे विधूतकप्पे णिज्झोसइत्ता’। जे अचेले परिवुसिए, तस्स णं भिक्खुस्स नो एवं भवइ–परिजुण्णे मे वत्थे वत्थं जाइस्सामि, सुत्तं जाइ-स्सामि, सूइं जाइस्सामि, संधिस्सामि, सीवीस्सामि, उक्कसिस्सामि, वोक्कसिस्सामि, परिहिस्सामि, पाउणिस्सामि। अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सीयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंसमसग-फासा फुसंति। एगयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले। ‘लाघवं आगममाणे’। तवे से अभिसमण्णागए भवति। जहेयं भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया। एवं तेसिं महावीराणं चिरराइं

Translated Sutra: सतत सु – आख्यात धर्म वाला विधूतकल्पी (आचार का सम्यक्‌ पालन करने वाला) वह मुनि आदान (मर्यादा से अधिक वस्त्रादि) का त्याग कर देता है। जो भिक्षु अचेलक रहता है, उस भिक्षु को ऐसी चिन्ता उत्पन्न नहीं होती कि मेरा वस्त्र सब तरह से जीर्ण हो गया है, इसलिए मैं वस्त्र की याचना करूँगा, फटे वस्त्र को सीने के लिए धागे की याचना
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-४ वेहासनादि मरण Hindi 224 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू तिहिं वत्थेहिं परिवुसिते पायचउत्थेहिं, तस्स णं नो एवं भवति–चउत्थं वत्थं जाइस्सामि। से अहेसणिज्जाइं वत्थाइं जाएज्जा। अहापरिग्गहियाइं वत्थाइं धारेज्जा। नो धोएज्जा, नो रएज्जा, नो धोय-रत्ताइं वत्थाइं धारेज्जा। अपलिउंचमाणे गामंतरेसु। ओमचेलिए। एयं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं।

Translated Sutra: जो भिक्षु तीन वस्त्र और चौथा पात्र रखने की मर्यादा में स्थित है, उसके मन में ऐसा अध्यवसाय नहीं होता कि ‘मैं चौथे वस्त्र की याचना करूँगा। वह यथा – एषणीय वस्त्रों की याचना करे और यथापरिगृहीत वस्त्रों को धारण करे। वह उन वस्त्रों को न तो धोए और न रंगे, न धोए – रंगे हुए वस्त्रों को धारण करे। दूसरे ग्रामों में जाते
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-४ वेहासनादि मरण Hindi 225 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह पुण एवं जाणेज्जा–उवाइक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णाइं वत्थाइं परिट्ठवेज्जा, अहापरिजुण्णाइं वत्थाइं परिट्ठवेत्ता– अदुवा संतरुत्तरे। अदुवा एगसाडे। अदुवा अचेले।

Translated Sutra: जब भिक्षु यह जान ले कि ‘हेमन्त ऋतु’ बीत गई है, ग्रीष्म ऋतु आ गई है, तब वह जिन – जिन वस्त्रों को जीर्ण समझे, उनका परित्याग कर दे। उन यथापरिजीर्ण वस्त्रों का परित्याग करके या तो एक अन्तर (सूती) वस्त्र और उत्तर (ऊनी) वस्त्र साथ में रखे; अथवा वह एकशाटक वाला होकर रहे। अथवा वह अचेलक हो जाए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-५ ग्लान भक्त परिज्ञा Hindi 229 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू दोहिं वत्थेहिं परिवुसिते पायतइएहिं, तस्स णं नो एवं भवति–तइयं वत्थं जाइस्सामि। से अहेसणिज्जाइं वत्थाइं जाएज्जा। अहापरिग्गहियाइं वत्थाइं धारेज्जा। णोधोएज्जा, णोरएज्जा, णोधोय-रत्ताइं वत्थाइं धारेज्जा। अपलिउंचमाणे गामंतरेसु। ओमचेलिए। एयं खु तस्स भिक्खुस्स सामग्गियं। अह पुण एवं जाणेज्जा–उवाइक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णाइं वत्थाइं परिट्ठवेज्जा, अहापरिजुण्णाइं वत्थाइं परिट्ठवेत्ता– अदुवा एगसाडे। अदुवा अचेले। लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमन्नागए भवति। जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया। जस्स

Translated Sutra: जो भिक्षु दो वस्त्र और तीसरे पात्र रखने की प्रतिज्ञा में स्थित है, उसके मन में यह विकल्प नहीं उठता कि मैं तीसरे वस्त्र की याचना करूँ। वह अपनी कल्पमर्यादानुसार ग्रहणीय वस्त्रों की याचना करे। इससे आगे वस्त्र – विमोक्ष के सम्बन्ध में पूर्ववत्‌ समझ लेना चाहिए। यदि भिक्षु यह जाने कि हेमन्त ऋतु व्यतीत हो गई है,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-६ एकत्वभावना – इंगित मरण Hindi 231 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू एगेण वत्थेण परिवुसिते पायबिइएण, तस्स नो एवं भवइ–बिइयं वत्थं जाइस्सामि। से अहेसणिज्जं वत्थं जाएज्जा। अहापरिग्गहियं वत्थं धारेज्जा। नो धोएज्जा, नो रएज्जा, नो धोय-रत्तं वत्थं धारेज्जा। अपलिउंचमाणे गामंतरेसु। ओमचेलिए। एयं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं। अह पुण एवं जाणेज्जा–उवाइक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णं वत्थं परिट्ठवेज्जा, अहापरिजुण्णं वत्थं परिट्ठवेत्ता– ‘अदुवा अचेले’। लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमण्णागए भवति। जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया।

Translated Sutra: जो भिक्षु एक वस्त्र और दूसरा पात्र रखने की प्रतिज्ञा स्वीकार कर चूका है, उसके मन में ऐसा अध्यवसाय नहीं होता कि में दूसे वस्त्र की याचना करूँगा। वह यथा – एषणीय वस्त्र की याचना करे। यहाँ से लेकर आगे ‘ग्रीष्मऋतु आ गई’ तक का वर्णन पूर्ववत्‌। भिक्षु यह जान जाए कि अब ग्रीष्म ऋतु आ गई है, तब वह यथापरिजीर्ण वस्त्रों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-७ पादपोपगमन Hindi 236 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अचेले परिवुसिते, ‘तस्स णं’ एवं भवति–चाएमि अहं तणफासं अहियासित्तए, सीयफासं अहियासि-त्तए, तेउफासं अहियासित्तए, दंस-मसगफास अहियासित्तए, एगतरे अन्नतरे विरूवरूवे फासे अहियासित्तए, हिरिपडिच्छादणं चहं नो संचाएमि अहियासित्तए, एवं से कप्पति कडि-बंधणं धारित्तए।

Translated Sutra: जो भिक्षु अचेल – कल्प में स्थित है, उस भिक्षु का ऐसा अभिप्राय हो कि मैं घास के स्पर्श सहन कर सकता हूँ, गर्मी का स्पर्श सहन कर सकता हूँ, डाँस और मच्छरों के काटने को सह सकता हूँ, एक जाति के या भिन्न – भिन्न जाति, नाना प्रकार के अनुकूल या प्रतिकूल स्पर्शों को सहन करने में समर्थ हूँ, किन्तु मैं लज्जा निवारणार्थ प्रति
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-७ पादपोपगमन Hindi 237 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सोयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंस-मसगफासा फुसंति, गयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले। लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमन्नागए भवति। जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया।

Translated Sutra: अथवा उस (अचेलकल्प) में ही पराक्रम करते हुए लज्जाजयी अचेल भिक्षु को बार – बार घास का स्पर्श चूभता है, शीत का स्पर्श होता है, गर्मी का स्पर्श होता है, डाँस और मच्छर काटते हैं, फिर भी वह अचेल उन एक – जातीय या भिन्न – भिन्न जातीय नाना प्रकार के स्पर्शों को सहन करे। लाघव का सर्वांगीण चिन्तन करता हुआ (वह अचेल रहे)। अचेल
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 268 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संवच्छरं साहियं मासं, जं ण रिक्कासि वत्थगं भगवं । अचेलए ततो चाई, तं वोसज्ज वत्थमणगारे ॥

Translated Sutra: भगवान ने तेरह महीनों तक वस्त्र का त्याग नहीं किया। फिर अनगार और त्यागी भगवान महावीर उस वस्त्र का परित्याग करके अचेलक हो गए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-२ वस्त्र धारण विधि Hindi 483 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहेसणिज्जाइं वत्थाइं जाएज्जा, अहापरिग्गहियाइं वत्थाइं धारेज्जा, नो धोएज्जा नो रएज्जा, नो घोयरत्ताइं वत्थाइं धारेज्जा, अपलिउंचमाणे गामंतरेसु ओमचेलिए। एयं खलु वत्थधारिस्स सामग्गियं। से भिक्खु वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसिउकामे सव्वं चीवरमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए निक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया वियार-भूमिं वा, विहार-भूमिं वा निक्खममाणे वा, पविसमाणे वा सव्वं चीव-रमायाए बहिया वियार-भूमिं वा विहार-भूमिं वा निक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे

Translated Sutra: साधु या साध्वी वस्त्रैषणा समिति के अनुसार एषणीय वस्त्रों की याचना करे, और जैसे भी वस्त्र मिले और लिए हों, वैसे ही वस्त्रों को धारण करे, परन्तु न उन्हें धोए, न रंगे और न ही धोए हुए तथा रंगे हुए वस्त्रों को पहने। उन साधारण – से वस्त्रों को न छिपाते हुए ग्राम – ग्रामान्तर में समतापूर्वक विचरण करे। यही वस्त्रधारी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 511 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे कासवगोत्ते। तस्स णं इमे नामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा – १. अम्मापिउसंतिए ‘वद्धमाणे’ २. सह-सम्मुइए ‘समणे’ ३. ‘भीमं भयभेरवं उरालं अचेलयं परिसहं सहइ’ त्ति कट्टु देवेहिं से नामं कयं ‘समणे भगवं महावीरे’। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पिआ कासवगोत्तेणं। तस्स णं तिण्णि नामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा–१. सिद्धत्थे ति वा २. सेज्जंसे ति वा ३. जसंसे ति वा। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मा वासिट्ठ-सगोत्ता। तीसेणं तिण्णि नामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा–१. तिसला ति वा २. विदेहदिण्णा ति वा ३. पियकारिणी ति वा। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पित्तियए ‘सुपासे’ कासवगोत्तेणं। समणस्स

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर के पिता काश्यप गोत्र के थे। उनके तीन नाम कहे जाते हैं, सिद्धार्थ, श्रेयांस और यशस्वी। श्रमण भगवान महावीर की माता वाशिष्ठ गोत्रीया थीं। उनके तीन नाम कहे जाते हैं – त्रिशला, विदेहदत्ता और प्रियकारिणी। चाचा ‘सुपार्श्व’ थे, जो काश्यप गौत्र के थे। ज्येष्ठ भ्राता नन्दीवर्द्धन थे, जो काश्यप
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Gujarati 68 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उवाइय-सेसेण वा सन्निहि-सन्निचओ कज्जइ, इहमेगेसिं असंजयाणं भोयणाए। तओ से एगया रोग-समुप्पाया समुप्पज्जंति। जेहिं वा सद्धिं संवसति ते वा णं एगया नियगा तं पुव्विं परिहरंति, सो वा ते नियगे पच्छा परिहरेज्जा। नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तुमंपि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा।

Translated Sutra: મનુષ્ય ઉપભોગ પછી બચેલી કે સંચિત કરી રાખેલી વસ્તુ બીજાને ઉપયોગી થશે તેમ માની રાખી મૂકે છે. પછી કોઈ વખતે તેને રોગની પીડા ઉત્પન્ન થાય છે, ત્યારે જે સ્વજનાદિ સાથે તે વસે છે તેઓ જ તેને ઘૃણા કરી પહેલા છોડી દે છે. પછી તે પણ નિરાશ થઇ પોતાના સ્વજન – સ્નેહીઓને છોડી દે છે, આ સમયે તે ધન કે સ્વજન તારી રક્ષા કરવા કે શરણ આપવા સમર્થ
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Gujarati 82 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नत्थि कालस्स नागमो। सव्वे पाणा पियाउया सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविनो जीविउकामा। सव्वेसिं जीवियं पियं। तं परिगिज्झ दुपयं चउप्पयं अभिजुंजियाणं संसिंचियाणं तिविहेणं जा वि से तत्थ मत्ता भवइ– अप्पा वा बहुगा वा। से तत्थ गढिए चिट्ठइ, भोयणाए। तओ से एगया विपरिसिट्ठं संभूयं महोवगरणं भवइ। तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायानो वा से विलुंपंति, नस्सति वा से, विणस्सति वा से, अगारदाहेण वा से डज्झइ। इति से परस्स अट्ठाए कूराइं कम्माइं बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ। मुनिणा हु एयं पवेइयं। अनोहंतरा एते, नोय ओहं तरित्तए । अतीरंगमा

Translated Sutra: મૃત્યુ માટે કોઈ અકાળ નથી, સર્વે પ્રાણીને આયુષ્ય પ્રિય છે, સર્વેને સુખ ગમે છે, દુઃખ પ્રતિકૂળ લાગે છે, બધાને જીવન પ્રિય છે, સૌ જીવવા ઇચ્છે છે. પરિગ્રહમાં આસક્ત પ્રાણી દ્વિપદ, ચતુષ્પદને કામમાં જોડીને ધન સંચય કરે છે. પોતાના, બીજાના, ઉભયના માટે તેમાં મત્ત બની અલ્પ કે ઘણું ધન ભેગું કરી તેમાં આસક્ત થઈને રહે છે. વિવિધ
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-४ भोगासक्ति Gujarati 85 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहेण जावि से तत्थ मत्ता भवइ–अप्पा वा बहुगा वा। से तत्थ गढिए चिट्ठति, भोयणाए। ततो से एगया विपरिसिट्ठं संभूयं महोवगरणं भवति। तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायानो वा से विलुंपंति, णस्सइ वा से, विणस्सइ वा से, अगारडाहेण वा डज्झइ। इति से परस्स अट्ठाए कूराइं कम्माइं बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ।

Translated Sutra: સ્વ, પર કે ઉભય ત્રણ પ્રકારે તેની પાસે થોડી કે ઘણી મિલકત થાય છે. તેમાં ભોગી આસક્ત બનીને રહે છે. એ રીતે કોઈ વખતે તેની પાસે ભોગવ્યા પછી બચેલી સંપત્તિ એકઠી થાય છે. તેને પણ કોઈ વખતે સ્વજનો વહેંચી લે છે, ચોરો ચોરી લે છે, રાજા લૂંટી લે છે, નાશ કે વિનાશ પામે છે. આગ લાગવાથી તે બળી જાય છે. તે અજ્ઞાની બીજાને માટે ક્રૂર કર્મો કરતો
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-२ कर्मविधूनन Gujarati 196 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘अहेगे धम्म मादाय’ ‘आयाणप्पभिइं सुपणिहिए’ चरे। अपलीयमाणे दढे। सव्वं गेहिं परिण्णाय, एस पणए महामुनी। अइअच्च सव्वतो संगं ‘ण महं अत्थित्ति इति एगोहमंसि।’ जयमाणे एत्थ विरते अनगारे सव्वओ मुंडे रीयंते। जे अचेले परिवुसिए संचिक्खति ओमोयरियाए। से अक्कुट्ठे व हए व लूसिए वा। पलियं पगंथे अदुवा पगंथे। अतहेहिं सद्द-फासेहिं, इति संखाए। एगतरे अन्नयरे अभिण्णाय, तितिक्खमाणे परिव्वए। जे य हिरी, जे य अहिरीमणा।

Translated Sutra: કેટલાક લોકો ધર્મ પ્રાપ્ત કરીને ધર્મોપગરણથી યુક્ત થઈને સર્વજ્ઞ કથિત ધર્મ આચરે છે. લીધેલ પ્રતિજ્ઞામાં દૃઢ રહે છે. સર્વ આસક્તિને દુઃખમય જાણી તેનાથી દૂર રહે તે જ મહામુનિ છે. તે સર્વે પ્રપંચોને છોડી ‘‘મારું કોઈ નથી – હું એકલો છું’’ એમ વિચારી પાપક્રિયાથી નિવૃત્ત થઈ, યતના કરતો અણગાર દ્રવ્ય અને ભાવથી મુંડિત થઈ વિચરે,
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-३ उपकरण शरीर विधूनन Gujarati 198 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘एयं खु मुनी आयाणं सया सुअक्खायधम्मे विधूतकप्पे णिज्झोसइत्ता’। जे अचेले परिवुसिए, तस्स णं भिक्खुस्स नो एवं भवइ–परिजुण्णे मे वत्थे वत्थं जाइस्सामि, सुत्तं जाइ-स्सामि, सूइं जाइस्सामि, संधिस्सामि, सीवीस्सामि, उक्कसिस्सामि, वोक्कसिस्सामि, परिहिस्सामि, पाउणिस्सामि। अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सीयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंसमसग-फासा फुसंति। एगयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले। ‘लाघवं आगममाणे’। तवे से अभिसमण्णागए भवति। जहेयं भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया। एवं तेसिं महावीराणं चिरराइं

Translated Sutra: તીર્થંકર દ્વારા પ્રરૂપિત ધર્મમાં સ્થિત, સંયમમાં ઉપસ્થિત અને આચારનું સમ્યક પાલન કરનાર અને તપ દ્વારા કર્મોનો નાશ કરનાર મુની જ સાચા મુની છે. જે મુનિ અચેલક રહે છે, તેને એવી ચિંતા હોતી નથી કે મારું વસ્ત્ર જીર્ણ થયું છે, હું વસ્ત્રની યાચના કરીશ, સીવવા માટે સોય – દોરા લાવીશ. વસ્ત્ર સાંધીશ – સીવીશ, બીજું વસ્ત્ર જોડીશ,
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-४ वेहासनादि मरण Gujarati 224 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू तिहिं वत्थेहिं परिवुसिते पायचउत्थेहिं, तस्स णं नो एवं भवति–चउत्थं वत्थं जाइस्सामि। से अहेसणिज्जाइं वत्थाइं जाएज्जा। अहापरिग्गहियाइं वत्थाइं धारेज्जा। नो धोएज्जा, नो रएज्जा, नो धोय-रत्ताइं वत्थाइं धारेज्जा। अपलिउंचमाणे गामंतरेसु। ओमचेलिए। एयं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं।

Translated Sutra: જે ભિક્ષુ ત્રણ વસ્ત્ર અને એક પાત્ર રાખવાની પ્રતિજ્ઞા કરે છે. તેને એવો વિચાર નથી હોતો કે હું ચોથું વસ્ત્ર યાચું. તે જરૂર હોય તો એષણીય વસ્ત્રની યાચના કરે અને જેવું વસ્ત્ર મળે તેવું ધારણ કરે. તે વસ્ત્ર ધોવે નહીં, ન રંગે કે ન ધોયેલ અને રંગેલ વસ્ત્ર ધારણ કરે. એવા હલકા વસ્ત્ર રાખે કે જેથી ગામ જતા રસ્તામાં સંતાડવા ન
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-४ वेहासनादि मरण Gujarati 225 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह पुण एवं जाणेज्जा–उवाइक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णाइं वत्थाइं परिट्ठवेज्जा, अहापरिजुण्णाइं वत्थाइं परिट्ठवेत्ता– अदुवा संतरुत्तरे। अदुवा एगसाडे। अदुवा अचेले।

Translated Sutra: મુનિ જાણેકે હેમંત ઠંડી)ની ઋતુ વીતી ગઈ છે, ગ્રીષ્મઋતુ આવી છે, તો પહેલાંના જીર્ણ વસ્ત્રો પરઠવી દે. અથવા જરૂર હોય તો ઓછા કરે અથવા એક જ વસ્ત્ર રાખે કે અચેલક થઈ જાય.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-५ ग्लान भक्त परिज्ञा Gujarati 229 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू दोहिं वत्थेहिं परिवुसिते पायतइएहिं, तस्स णं नो एवं भवति–तइयं वत्थं जाइस्सामि। से अहेसणिज्जाइं वत्थाइं जाएज्जा। अहापरिग्गहियाइं वत्थाइं धारेज्जा। णोधोएज्जा, णोरएज्जा, णोधोय-रत्ताइं वत्थाइं धारेज्जा। अपलिउंचमाणे गामंतरेसु। ओमचेलिए। एयं खु तस्स भिक्खुस्स सामग्गियं। अह पुण एवं जाणेज्जा–उवाइक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णाइं वत्थाइं परिट्ठवेज्जा, अहापरिजुण्णाइं वत्थाइं परिट्ठवेत्ता– अदुवा एगसाडे। अदुवा अचेले। लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमन्नागए भवति। जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया। जस्स

Translated Sutra: જે ભિક્ષુએ બે વસ્ત્ર અને ત્રીજું પાત્ર રાખવાની મર્યાદા કરી છે તેને એવું થતું નથી કે હું ત્રીજું વસ્ત્ર યાચું. તે અભિગ્રહધારી સાધુ પોતાની આચાર – મર્યાદા અનુસાર એષણીય વસ્ત્રની યાચનાં કરે સૂત્ર ૨૨૪ અનુસાર તે સાધુનો આચાર છે. જ્યારે એ ભિક્ષુ જાણે કે હેમંતઋતુ ગઈ, ગ્રીષ્મ આવી તો જીર્ણ વસ્ત્રોને પરઠવી દે અથવા જરૂર
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-६ एकत्वभावना – इंगित मरण Gujarati 231 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू एगेण वत्थेण परिवुसिते पायबिइएण, तस्स नो एवं भवइ–बिइयं वत्थं जाइस्सामि। से अहेसणिज्जं वत्थं जाएज्जा। अहापरिग्गहियं वत्थं धारेज्जा। नो धोएज्जा, नो रएज्जा, नो धोय-रत्तं वत्थं धारेज्जा। अपलिउंचमाणे गामंतरेसु। ओमचेलिए। एयं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं। अह पुण एवं जाणेज्जा–उवाइक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णं वत्थं परिट्ठवेज्जा, अहापरिजुण्णं वत्थं परिट्ठवेत्ता– ‘अदुवा अचेले’। लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमण्णागए भवति। जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया।

Translated Sutra: જે ભિક્ષુ એક વસ્ત્ર અને બીજું પાત્ર રાખવાની પ્રતિજ્ઞા કરે તેને એવો વિચાર હોતો નથી કે હું બીજા વસ્ત્રની યાચના કરું. તેને જરૂર હોય તો એષણીય વસ્ત્રની યાચના કરે અને જેવું વસ્ત્ર મળે તેવું ધારણ કરે યાવત્‌ ગ્રીષ્મઋતુ આવી ગઈ છે એમ જાણી સર્વથા જીર્ણ વસ્ત્રને પરઠવી દે અથવા તે એક વસ્ત્રને રાખે કે અચેલક થઈ જાય. આ રીતે
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-७ पादपोपगमन Gujarati 236 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अचेले परिवुसिते, ‘तस्स णं’ एवं भवति–चाएमि अहं तणफासं अहियासित्तए, सीयफासं अहियासि-त्तए, तेउफासं अहियासित्तए, दंस-मसगफास अहियासित्तए, एगतरे अन्नतरे विरूवरूवे फासे अहियासित्तए, हिरिपडिच्छादणं चहं नो संचाएमि अहियासित्तए, एवं से कप्पति कडि-बंधणं धारित्तए।

Translated Sutra: જે ભિક્ષુ અચેલ – કલ્પમાં સ્થિત છે, તેને એવો વિચાર હોય છે કે, હું તૃણ સ્પર્શ, શીત સ્પર્શ, ઉષ્ણ સ્પર્શ, ડાંસ – મચ્છર સ્પર્શ સહન કરી શકું છું. એક કે અનેક પ્રકારની વિવિધરૂપ વેદનાને સહન કરી શકું છું. પણ લજ્જાના કારણે વસ્ત્રનો ત્યાગ કરવા અસમર્થ છું. એવા સાધુને કટિવસ્ત્ર ચોલપટ્ટક) ધારણ કરવું કલ્પે છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-७ पादपोपगमन Gujarati 237 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सोयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंस-मसगफासा फुसंति, गयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले। लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमन्नागए भवति। जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया।

Translated Sutra: અથવા – અચેલકત્વમાં વિચરનાર સાધુ જો તૃણસ્પર્શ, શીતસ્પર્શ, ઉષ્ણસ્પર્શ, દંશ – મશગ સ્પર્શ અનુભવે, એક યા અનેક પ્રકારે કષ્ટો આવે તેને સારી રીતે સહન કરે, અચેલક સાધુ ઉપકરણ અને કર્મભારથી હળવો થાય છે, તેને તપની પ્રાપ્તિ થાય છે યાવત્‌ સમભાવ રાખે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Gujarati 268 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संवच्छरं साहियं मासं, जं ण रिक्कासि वत्थगं भगवं । अचेलए ततो चाई, तं वोसज्ज वत्थमणगारे ॥

Translated Sutra: એક વર્ષ અને સાધિક એક માસ ભગવંતે વસ્ત્રનો ત્યાગ ન કર્યો. પછી વસ્ત્ર છોડીને તે અણગાર સર્વથા અચેલક થઈ ગયા.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Gujarati 283 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नो सेवती य परवत्थं, परपाए वि से ण भुंजित्था । परिवज्जियाण ओमाणं, गच्छति संखडिं असरणाए ॥

Translated Sutra: ભગવંત બીજાના વસ્ત્રો વાપરતા ન હતા અને બીજાના પાત્રમાં ભોજન કરતા ન હતા કેમ કે અચેલક અને કરપાત્રી હતા. તેઓ અપમાનનો વિચાર કર્યા વિના દૈન્યરહિત થઈ ભોજનસ્થાનમાં ભિક્ષાર્થે જતા.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-२ वस्त्र धारण विधि Gujarati 483 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहेसणिज्जाइं वत्थाइं जाएज्जा, अहापरिग्गहियाइं वत्थाइं धारेज्जा, नो धोएज्जा नो रएज्जा, नो घोयरत्ताइं वत्थाइं धारेज्जा, अपलिउंचमाणे गामंतरेसु ओमचेलिए। एयं खलु वत्थधारिस्स सामग्गियं। से भिक्खु वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसिउकामे सव्वं चीवरमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए निक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया वियार-भूमिं वा, विहार-भूमिं वा निक्खममाणे वा, पविसमाणे वा सव्वं चीव-रमायाए बहिया वियार-भूमिं वा विहार-भूमिं वा निक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे

Translated Sutra: સાધુ – સાધ્વી યથાયોગ્ય ઉપયોગમાં આવે તેવા એષણીય વસ્ત્રની યાચના કરે, જેવા ગ્રહણ કર્યા હોય તેવા જ વસ્ત્રોને ધારણ કરે, તેને ધૂએ નહીં કે રંગે નહીં કે ન ધોએલ – રંગેલ વસ્ત્ર ધારણ કરે, વસ્ત્રોને ગોપન ન કરીને ગ્રામ આદિમાં વિચરે. તે નિસ્સાર વસ્ત્રધારી કહેવાય. આ જ વસ્ત્રધારી મુનિનો સંપૂર્ણ આચાર છે. સાધુ – સાધ્વી ગૃહસ્થના
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा

उद्देशक-२ Gujarati 495 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा अणुवीइ ओग्गहं जाणेज्जा–जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णविज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसा, आउसंतस्स आग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो। से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि? जे तत्थ गाहावईण वा, गाहावइ-पुत्ताण वा इच्चेयाइं आयत्तणाइं उवाइकम्म। अह भिक्खू जाणेज्जा इमाहिं सत्तहिं पडिमाहिं ओग्गहं ओगिण्हित्तए। तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा–से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु

Translated Sutra: સાધુ – સાધ્વી ધર્મશાળાદિમાં અવગ્રહ ગ્રહણ કરીને ગૃહસ્થ કે ગૃહસ્થ – પુત્રાદિના સંબંધ ઉત્પન્ન થતા દોષોથી બચે અને સાધુ આ સાત પ્રતિજ્ઞા થકી અવગ્રહ ગ્રહણ કરવાનું જાણે. તેમાં પહેલી પ્રતિજ્ઞા આ પ્રમાણે – ૧. સાધુ ધર્મશાળાદિમાં વિચાર કરીને અવગ્રહ યાચે યાવત્‌ વિચરે. ૨. હું બીજા ભિક્ષુઓ માટે ઉપાશ્રયની આજ્ઞા માંગીશ
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Gujarati 511 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे कासवगोत्ते। तस्स णं इमे नामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा – १. अम्मापिउसंतिए ‘वद्धमाणे’ २. सह-सम्मुइए ‘समणे’ ३. ‘भीमं भयभेरवं उरालं अचेलयं परिसहं सहइ’ त्ति कट्टु देवेहिं से नामं कयं ‘समणे भगवं महावीरे’। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पिआ कासवगोत्तेणं। तस्स णं तिण्णि नामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा–१. सिद्धत्थे ति वा २. सेज्जंसे ति वा ३. जसंसे ति वा। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मा वासिट्ठ-सगोत्ता। तीसेणं तिण्णि नामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा–१. तिसला ति वा २. विदेहदिण्णा ति वा ३. पियकारिणी ति वा। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पित्तियए ‘सुपासे’ कासवगोत्तेणं। समणस्स

Translated Sutra: શ્રમણ ભગવંત મહાવીર કાશ્યપગોત્રીય હતા. તેના ત્રણ નામ આ પ્રમાણે હતા – ૧ – માતાપિતાએ પાડેલ ‘વર્ધમાન’. ૨ – સહજ ગુણોને કારણે ‘શ્રમણ’. ૩ – ભયંકર ભય – ભૈરવ તથા અચેલાદિ પરીષહ સહેવાને કારણે દેવોએ રાખેલ નામ ‘શ્રમણ ભગવંત મહાવીર.’ શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના કાશ્યપગોત્રીય પિતાના ત્રણ નામ આ પ્રમાણે – સિદ્ધાર્થ, શ્રેયાંસ, યશસ્વી.
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 416 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा– नाणावरणिज्जं दंसणावरणिज्जं वेदणिज्जं मोहणिज्जं आउगं नामं गोयं अंतराइयं। कइ णं भंते! परीसहा पन्नत्ता? गोयमा! बावीसं परीसहा पन्नत्ता, तं जहा- दिगिंछापरीसहे, पिवासापरीसहे, सीतपरीसहे, उसिणपरीसहे, दंसमसगपरीसहे, अचेलपरीसहे, अरइपरीसहे, इत्थिपरीसहे, चरियापरीसहे, निसीहियापरीसहे, सेज्जापरीसहे, अक्कोसपरीसहे, वहपरीसहे, जायणापरीसहे, अलाभपरीसहे, रोगपरीसहे, तणफास परीसहे, जल्लपरीसहे, सक्कारपुरक्कारपरीसहे, पण्णापरीसहे नाणपरीसहे दंसणपरीसहे। एए णं भंते! बावीसं परीसहा कतिसु कम्मप्पगडीसु समोयरंति? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही गई हैं, यथा – ज्ञानावरणीय यावत्‌ अन्तराय। भगवन्‌ ! परीषह कितने कहे हैं ? गौतम ! परीषह बाईस कहे हैं, वे इस प्रकार – १. क्षुधा – परीषह, २. पिपासा – परीषह यावत्‌ २२ – दर्शन परीषह। भगवन्‌ ! इन बाईस परीषहों का किन कर्मप्रकृतियों में समावेश हो ता है ?
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 419 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अरती अचेल इत्थी, निसीहिया जायणा य अक्कोसे । सक्कार-पुरक्कारे, चरित्तमोहम्मि सत्तेते ॥

Translated Sutra: भगवन्‌ ! चारित्रमोहनीयकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? गौतम ! सात परीषहों का – अरति, अचेल, स्त्री, निषद्या, याचना, आक्रोश, सत्कार – पुरस्कार।
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Gujarati 416 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा– नाणावरणिज्जं दंसणावरणिज्जं वेदणिज्जं मोहणिज्जं आउगं नामं गोयं अंतराइयं। कइ णं भंते! परीसहा पन्नत्ता? गोयमा! बावीसं परीसहा पन्नत्ता, तं जहा- दिगिंछापरीसहे, पिवासापरीसहे, सीतपरीसहे, उसिणपरीसहे, दंसमसगपरीसहे, अचेलपरीसहे, अरइपरीसहे, इत्थिपरीसहे, चरियापरीसहे, निसीहियापरीसहे, सेज्जापरीसहे, अक्कोसपरीसहे, वहपरीसहे, जायणापरीसहे, अलाभपरीसहे, रोगपरीसहे, तणफास परीसहे, जल्लपरीसहे, सक्कारपुरक्कारपरीसहे, पण्णापरीसहे नाणपरीसहे दंसणपरीसहे। एए णं भंते! बावीसं परीसहा कतिसु कम्मप्पगडीसु समोयरंति? गोयमा!

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! કર્મપ્રકૃતિ કેટલી કહી છે ? ગૌતમ ! આઠ કર્મપ્રકૃતિ છે. તે આ – જ્ઞાનાવરણીય યાવત્‌ અંતરાય.
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Gujarati 418 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दंसणमोहणिज्जे णं भंते! कम्मे कति परिसहा समोयरंति? गोयमा! एगे दंसणपरीसहे समोयरइ। चरित्तमोहणिज्जे णं भंते! कम्मे कति परीसहा समोयरंति? गोयमा! सत्त परीसहा समोयरंति, तं जहा–

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૧૮. ભગવન્‌ ! દર્શન મોહનીય કર્મમાં કેટલા પરીષહો સમવતરે ? ગૌતમ ! એક દર્શન પરીષહ. ભગવન્‌ ! ચારિત્રમોહનીય કર્મમાં કેટલા પરીષહો સમવતરે ? ગૌતમ ! સાત પરીષહો. તે આ – સૂત્ર– ૪૧૯. અરતી, અચેલ, સ્ત્રી, નૈષેધિકી, યાચના, આક્રોશ અને સત્કાર – પુરસ્કાર પરિષહ. સૂત્ર– ૪૨૦. ભગવન્‌ ! અંતરાય કર્મમાં કેટલા પરીષહો સમવતરે ? ગૌતમ ! એક,
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Gujarati 419 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अरती अचेल इत्थी, निसीहिया जायणा य अक्कोसे । सक्कार-पुरक्कारे, चरित्तमोहम्मि सत्तेते ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૧૮
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 124 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे कडे कप्पट्ठियाणं कप्पइ से अकप्पट्ठियाणं, नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं। जे कडे अकप्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं कप्पइ से अकप्पट्ठियाणं। कप्पे ठिया कप्पट्ठिया, अकप्पे ठिया अकप्पट्ठिया।

Translated Sutra: जो अशन आदि आहार कल्पस्थित (अचेलक आदि दश तरह के कल्प में स्थित प्रथम चरम जिनशासन के साधु) के लिए बनाया हो तो अकल्पस्थित (अचेलक आदि कल्प में स्थित नहीं है ऐसे मध्य के बाईस जिनशासन के साधु) को कल्पे।
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Hindi 162 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथीए अचेलियाए होत्तए।

Translated Sutra: साध्वी का नग्न होना, पात्र रहित (कर – पात्री) होना, वस्त्ररहित होकर कायोत्सर्ग करना न कल्पे। सूत्र – १६२–१६४
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Gujarati 162 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथीए अचेलियाए होत्तए।

Translated Sutra: સાધ્વીને વસ્ત્ર રહિત થવું ન કલ્પે.
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 87 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अंगनामं जनवए होत्था। तत्थ णं चंपा नामं नयरी होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए चंदच्छाए अंगराया होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए अरहन्नगपामोक्खा बहवे संजत्ता-नावावाणियगा परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया। तए णं से अरहन्नगे समणोवासए यावि होत्था–अहिगयजीवाजीवे वण्णओ। तए णं तेसिं अरहन्नगपामोक्खाणं संजत्ता-नावावाणियगाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहो-कहा समुल्लावे समुप्पज्जित्था–सेयं खलु अम्हं गणियं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुद्दं पोयवहणेणं ओगाहित्तए ति कट्टु अन्नमन्नस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता

Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૭. તે કાળે, તે સમયે અંગ જનપદ હતું, તેમાં ચંપાનગરી હતી. ત્યાં ચંદ્રચ્છાય અંગરાજ હતો. તે ચંપા નગરીમાં અર્હન્નક આદિ ઘણા સાંયાત્રિક નૌવણિક રહેતા હતા. તેઓ સમૃદ્ધ યાવત્‌ અપરિભૂત હતા. તેમાં તે અર્હન્નક નામે શ્રાવક હતો, તે જીવા – જીવ આદિ તત્ત્વનો જ્ઞાતા હતો ઇત્યાદિ શ્રાવકનું વર્ણન કરવું. ત્યાર પછી તે અર્હન્નક
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 91 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कुरु नामं जनवए होत्था। तत्थ णं हत्थिणाउरे नामं नयरे होत्था। तत्थ णं अदीनसत्तू नामं राया होत्था जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ। तत्थ णं मिहिलाए तस्स णं कुंभगस्स रन्नो पुत्ते पभावईए देवीए अत्तए मल्लीए अनुमग्गजायए मल्लदिन्ने नामं कुमारे सुकुमालपाणिपाए जाव जुवराया यावि होत्था। तए णं मल्लदिन्ने कुमारे अन्नया कयाइ कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे मम पमदवणंसि एगं महं चित्तसभं करेह–अनेगखंभसयसन्निविट्ठं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तेवि तहेव पच्चप्पिणंति। तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे चित्तगर-सेणिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता

Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે કુરુજનપદ હતું, હસ્તિનાપુર નગર હતું, અદીનશત્રુ રાજા હતો યાવત્‌ રાજ ચલાવતો તે સુખ પૂર્વક વિચરતો હતો. તે મિથિલામાં કુંભકનો પુત્ર, પ્રભાવતીનો આત્મજ, મલ્લીનો અનુજ મલ્લદિન્ન નામે કુમાર હતો યાવત્‌ તે યુવરાજ હતો. ત્યારે મલ્લદિન્ન કુમારે કોઈ દિવસે કૌટુંબિક પુરુષોને બોલાવીને કહ્યું – તમે જાઓ અને મારા
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

18. आम्नाय अधिकार

3. दिगम्बर-सूत्र Hindi 416 View Detail
Mool Sutra: ण वि सिज्झइ वत्थधरो, जिणसासणे जइ वि होइ तित्थयरो। णग्गो विमोक्खमग्गो, सेसा उम्मगया सव्वे ।।

Translated Sutra: भले ही तीर्थंकर क्यों न हो, वस्त्रधारी मुक्त नहीं हो सकता। एकमात्र नग्न या अचेल लिंग ही मोक्षमार्ग है, अन्य सर्व लिंग उन्मार्ग हैं।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

18. आम्नाय अधिकार

3. दिगम्बर-सूत्र Hindi 418 View Detail
Mool Sutra: णिच्छयदो इथीत्णं सिद्धी, ण हि तेण जम्मणा दिट्ठा। तम्हा तप्पडिरूवं, वियप्पियं लिंगमित्थी णं ।।

Translated Sutra: निश्चय से स्त्रियों को इसी जन्म से सिद्धि होती नहीं देखी गयी है, क्योंकि सावरण होने के कारण, उन्हें निर्ग्रन्थ का अचेल लिंग सम्भव नहीं।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

18. आम्नाय अधिकार

4. श्वेताम्बर सूत्र Hindi 419 View Detail
Mool Sutra: अचेलगो य जो धम्मो, जो इमो संतरुत्तरो। देसिओ बद्धमाणेणं, पासेण य महाजसा ।।

Translated Sutra: हे गौतम! यद्यपि भगवान् महावीर ने तो अचेलक धर्म का ही उपदेश दिया है, परन्तु उनके पूर्ववर्ती भगवान् पार्श्व का मार्ग सचेल भी है।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

18. आम्नाय अधिकार

4. श्वेताम्बर सूत्र Hindi 420 View Detail
Mool Sutra: एवमेव महापउम्मो वि, अरहा समणाणं निग्गंथाणं। पंचमहव्वयाइं जाव, अचेलगं धम्मं पण्णविहिउ ।।

Translated Sutra: इसी प्रकार आगामी तीर्थंकर भगवान् महापद्म भी पंच महाव्रतों से युक्त अचेलक धर्म का ही प्ररूपण करेंगे।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

18. आम्नाय अधिकार

3. दिगम्बर-सूत्र Hindi 416 View Detail
Mool Sutra: नापि सिध्यति वस्त्रधरो, जिनशासने यद्यपि भवति तीर्थंकरः। नग्नो विमोक्षमार्गः, शेषा उन्मार्गकाः सर्वे ।।

Translated Sutra: भले ही तीर्थंकर क्यों न हो, वस्त्रधारी मुक्त नहीं हो सकता। एकमात्र नग्न या अचेल लिंग ही मोक्षमार्ग है, अन्य सर्व लिंग उन्मार्ग हैं।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

18. आम्नाय अधिकार

3. दिगम्बर-सूत्र Hindi 418 View Detail
Mool Sutra: निश्चयतः स्त्रीणां सिद्धिर्न, तेनैव जन्मना दृष्टा। तस्मात् तत्प्रतिरूपं, विकल्पिकं लिंगं स्त्रीणां ।।

Translated Sutra: निश्चय से स्त्रियों को इसी जन्म से सिद्धि होती नहीं देखी गयी है, क्योंकि सावरण होने के कारण, उन्हें निर्ग्रन्थ का अचेल लिंग सम्भव नहीं।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

18. आम्नाय अधिकार

4. श्वेताम्बर सूत्र Hindi 419 View Detail
Mool Sutra: अचेलस्य यो धर्मः, योऽयं सान्तरोत्तरः। देशितो वर्द्धमानेन, पार्श्वेण च महायशसा ।।

Translated Sutra: हे गौतम! यद्यपि भगवान् महावीर ने तो अचेलक धर्म का ही उपदेश दिया है, परन्तु उनके पूर्ववर्ती भगवान् पार्श्व का मार्ग सचेल भी है।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

18. आम्नाय अधिकार

4. श्वेताम्बर सूत्र Hindi 420 View Detail
Mool Sutra: एवमेव महापद्मोऽपि, अर्हन् श्रमणाणां निर्ग्रन्थानाम्। पंचमहाव्रतानि यावदचेलकं धर्मं प्रज्ञापयिष्यति ।।

Translated Sutra: इसी प्रकार आगामी तीर्थंकर भगवान् महापद्म भी पंच महाव्रतों से युक्त अचेलक धर्म का ही प्ररूपण करेंगे।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 44 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए। जप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अनुलोमा वा। तत्थ पडिलोमा–वेत्तेण वा तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्टेज्जा, अनुलोमा–वंदेज्ज वा नमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्मानेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ। तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए

Translated Sutra: कौशलिक अर्हत्‌ ऋषभ कुछ अधिक एक वर्ष पर्यन्त वस्त्रधारी रहे, तत्पश्चात्‌ निर्वस्त्र। जब से वे प्रव्रजित हुए, वे कायिक परिकर्म रहित, दैहिक ममता से अतीत, देवकृत्‌ यावत्‌ जो उपसर्ग आते, उन्हें वे सम्यक्‌ भाव से सहते, प्रतिकूल अथवा अनुकूल परिषह को भी अनासक्त भाव से सहते, क्षमाशील रहते, अविचल रहते। भगवान्‌ ऐसे उत्तम
Jambudwippragnapati જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Gujarati 44 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए। जप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अनुलोमा वा। तत्थ पडिलोमा–वेत्तेण वा तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्टेज्जा, अनुलोमा–वंदेज्ज वा नमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्मानेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ। तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए

Translated Sutra: કૌશલિક ઋષભ અરહંત સાધિક એક વર્ષ વસ્ત્રધારી રહ્યા. ત્યારપછી અચેલક થયા. જ્યારથી કૌશલિક ઋષભ અરહંત મુંડ થઈને ગૃહવાસત્યાગી નિર્ગ્રન્થ પ્રવ્રજ્યા લીધી, ત્યારથી કૌશલિક ઋષભ અરહંત નિત્ય કાયાને વોસિરાવીને, દેહ મમત્ત્વ ત્યજીને, જે કોઈ ઉપસર્ગો ઉપજે છે, તે આ પ્રમાણે – દેવે કરેલ યાવત્‌ પ્રતિકૂળ કે અનુકૂળ ઉપસર્ગોને સહે
Jitakalpa जीतकल्प सूत्र Ardha-Magadhi

तप प्रायश्चित्तं

Hindi 69 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुरिसा गीयाऽगीया सहाऽसहा तह सढाऽसढा केई । परिणामाऽपरिणामा अइपरिणामा य वत्थूणं ॥

Translated Sutra: पुरुष में कोई गीतार्थ हो कोई अगीतार्थ हो, कोई सहनशील हो, कोई असहनशील हो, कोई ऋजु हो कोई मायावी हो, कुछ श्रद्धा परिणामी हो, कुछ अपरिणामी हो, और कुछ अपवाद का ही आचरण करनेवाले अति – परिणामी भी हो, कुछ धृति – संघयण और उभय से संपन्न हो, कुछ उससे हिन हो, कुछ तप शक्तिवाले हो, कुछ वैयावच्ची हो, कुछ दोनों ताकतवाले हो, कुछ में
Jitakalpa જીતકલ્પ સૂત્ર Ardha-Magadhi

तप प्रायश्चित्तं

Gujarati 69 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुरिसा गीयाऽगीया सहाऽसहा तह सढाऽसढा केई । परिणामाऽपरिणामा अइपरिणामा य वत्थूणं ॥

Translated Sutra: એ ચાર સૂત્રોથી સંયુક્ત અર્થ આ પ્રમાણે પુરુષોમાં કોઈ ગીતાર્થ હોય, કોઈ અગીતાર્થ હોય. કોઈ સહનશીલ હોય, કોઈ અસહનશીલ પણ હોય. કોઈ ઋજુ હોય અને કોઈ માયાવી પણ હોય. કેટલાક શ્રદ્ધા પરિણામી હોય, કેટલાક અપરિણામી હોય તો કેટલાક અપવાદને જ આચરનારા એવા અતિ પરિણામી હોય. કેટલાક ધૃતિસંઘયણ અને ઉભયથી સંપન્ન હોય તો કેટલાક તેનાથી હીન
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 383 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चिरे संसट्ठमचेल्लिक्कं-एमादीपावित्थिओ। पगमंती जत्थ रयणीए अह पइरिक्के दिनस्स वा॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ३७७
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