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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ सामायिक

Hindi 1 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र]

Translated Sutra: अरिहंत को नमस्कार हो, सिद्ध को नमस्कार हो, आचार्य को नमस्कार हो, उपाध्याय को नमस्कार हो, लोक में रहे सर्व साधु को नमस्कार हो, इस पाँच (परमेष्ठि) को किया गया नमस्कार सर्व पाप का नाशक है। सर्व मंगल में प्रथम (उत्कृष्ट) मंगल है। अरिहंत शब्द के लिए तीन पाठ हैं। अरहंत, अरिहंत और अरूहंत। यहाँ अरहंत शब्द का अर्थ है – जो
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ चतुर्विंशतिस्तव

Hindi 3 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लोगस्स उज्जोयगरे धम्मतित्थयरे जिणे । अरिहंते कित्तइस्सं चउवीसंपि केवली ॥

Translated Sutra: लोक में उद्योत करनेवाले (चौदह राजलोक में रही सर्व वस्तु का स्वरूप यथार्थ तरीके से प्रकाशनेवाले) धर्मरूपी तीर्थ का प्रवर्तन करनेवाले, रागदेश को जीतनेवाले, केवली चोबीस तीर्थंकर का और अन्य तीर्थंकर का मैं कीर्तन करूँगा।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ चतुर्विंशतिस्तव

Hindi 9 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवरगंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥

Translated Sutra: चन्द्र से ज्यादा निर्मल, सूरज से ज्यादा प्रकाश करनेवाले और स्वयंभूरमण समुद्र से ज्यादा गम्भीर ऐसे सिद्ध (भगवंत) मुझे सिद्धि (मोक्ष) दो।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 65 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगमुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से य मुसावाए पंचविहे पन्नत्ते तं जहा–कन्नालीए गवालीए भोमालीए नासावहारे कूडसक्खिज्जे, थूलगमुसावायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– सहस्सब्भक्खाणे रहस्सब्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसुवएसे कूडलेहकरणे।

Translated Sutra: श्रावक स्थूल मृषावाद का पच्चक्खाण (त्याग) करे। वो मृषावाद पाँच तरीके से बताया है। कन्या सम्बन्धी झूठ, गो (चार पाँववाले) सम्बन्धी झूठ, भूमि सम्बन्धी झूठ, न्यासापहार यानि थापण पाना, झूठी गँवाही देना, स्थूल मृषावाद से विरमित श्रमणोपासक यह पाँच अतिचार जानना। वो इस प्रकार – सहसा अभ्याख्यान, रहस्य उद्‌घाटन, स्वपत्नी
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ चतुर्विंशतिस्तव

Gujarati 9 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवरगंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥

Translated Sutra: ચંદ્ર કરતા વધુ નિર્મળ, સૂર્યથી વધુ પ્રકાશ કરનારા, શ્રેષ્ઠ સાગર(સ્વયંભૂરમણ સમુદ્ર) જેવા ગંભીર, એવા હે સિદ્ધો(ભગવંતો) મને સિદ્ધિ(મોક્ષ) આપો.
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 546 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दिसोदिसंऽणंतजिणेण ताइणा, महव्वया खेमपदा पवेदिता । महागुरू णिस्सयरा उदीरिया, तमं व तेजो तिदिसं पगासया ॥

Translated Sutra: षट्‌काय के त्राता, अनन्त ज्ञानादि से सम्पन्न राग – द्वेष विजेता, जिनेन्द्र भगवान से सभी एकेन्द्रियादि भाव – दिशाओं में रहने वाले जीवों के लिए क्षेम स्थान, कर्म – बन्धन से दूर करने में समर्थ महान गुरु – महाव्रतों का उनके लिए निरूपण किया है। जिस प्रकार तेज तीनों दिशाओं के अन्धकार को नष्ट करके प्रकाश कर देता है,
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-१ वचन विभक्ति Gujarati 469 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा नो एवं वएज्जा– णभोदेवे ति वा, गज्जदेवे ति वा, विज्जुदेवे ति वा, पवट्ठदेवे ति वा, निवुट्ठदेवे ति वा, पडउ वा वासं मा वा पडउ, निप्फज्जउ वा सस्सं मा वा निप्फज्जउ, विभाउ वा रयणीं मा वा विभाउ, उदेउ वा सूरिए मा वा उदेउ, सो वा राया जयउ मा वा जयउ–नो एतप्पगारं भासं भासेज्जा पण्णवं। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अंतलिक्खे ति वा, गुज्झाणुचरिए ति वा, संमुच्छिए ति वा, णिवइए ति वा, ‘पओए, वएज्ज’ वा वुट्ठबलाहगे ति वा। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि।

Translated Sutra: સાધુ – સાધ્વી આ પ્રમાણે ભાષા પ્રયોગ ન કરે – હે આકાશ દેવ છે, વાદળ દેવ છે, વિદ્યુત્‌ દેવ છે, પ્રવૃષ્ટ દેવ – દેવ વરસે છે), નિવૃષ્ટ દેવ – દેવ નિરંતર વરસે છે), વરસાદ વરસે તો સારું, વરસાદ ન વરસે, ધાન્ય નીપજે – ધાન્ય ન નીપજે, રાત્રિ પ્રકાશવાળી થાઓ કે રાત્રી પ્રકાશવાળી ન થાઓ, સૂર્ય ઊગે કે ન સૂર્ય ઊગે, રાજા જય પામો કે ન પામો; આવી
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Gujarati 546 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दिसोदिसंऽणंतजिणेण ताइणा, महव्वया खेमपदा पवेदिता । महागुरू णिस्सयरा उदीरिया, तमं व तेजो तिदिसं पगासया ॥

Translated Sutra: પ્રાણી માત્રના રક્ષક, અનંત જિનેશ્વરોએ સર્વદિશામાં સ્થિત જીવોની રક્ષાના સ્થાનરૂપ મહાવ્રતોની પ્રરૂપણા કરી છે, તે મહાવ્રતો ઘણા કઠિન છતાં કર્મનાશક છે, જેમ પ્રકાશ અંધકારનો નાશ કરે છે તેમ આ મહાવ્રત ઉર્ધ્વ – અધો – તિરછી દિશાને પ્રકાશિત કરે છે.
Anuttaropapatikdashang अनुत्तरोपपातिक दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र...

अध्ययन-१

Hindi 10 Sutra Ang-09 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अनुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदी नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धा। सहसंबवणे उज्जाणे–सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे। जियसत्तू राया। तत्थ णं काकंदीए नयरीए भद्दा नामं सत्थवाही परिवसइ–अड्ढा जाव अपरिभूया। तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते धन्ने नामं दारए होत्था–अहीणपडिपुण्ण-पंचेंदियसरीरे जाव सुरूवे। पंचधाईपरिग्गहिए जहा महब्बलो जाव बावत्तरिं कलाओ अहीए जाव अलंभोगसमत्थे

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने, अनुत्तरोपपातिक – दशा के तृतीय वर्ग के दश अध्ययन प्रतिपादन किए हैं तो फिर हे भगवन्‌ ! प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में काकन्दी नगरी थी। वह सब तरह के ऐश्वर्य और धन – धान्य से परिपूर्ण थी। सहस्राम्रवन नाम का उद्यान था, जो सब ऋतुओं में
Anuttaropapatikdashang अनुत्तरोपपातिक दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र...

अध्ययन-२ थी १०

Hindi 13 Sutra Ang-09 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं तच्चस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदी नयरी। जियसत्तू राया। तत्थ णं काकंदीए नयरीए भद्दा नामं सत्थवाही परिवसइ–अड्ढा। तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते सुनक्खत्ते नामं दारए होत्था–अहीन-पडिपुण्ण-पंचेंदियसरीरे जाव सुरूवे पंचधाइपरिक्खित्ते जहा धन्नो तहेव। बत्तीसओ दाओ जाव उप्पिं पासायवडेंसए विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं। जहा धन्ने तहा सुनक्खत्ते वि निग्गए। जहा थावच्चापुत्तस्स तहा निक्खमणं जाव अनगारे जाए–इरियासमिए

Translated Sutra: हे जम्बू ! उस काल और उस समय में काकन्दी नगरी थी। उसमें भद्रा नाम की सार्थवाहिनी थी। वह धन – धान्य – सम्पन्ना थी। उस भद्रा सार्थवाहिनी का पुत्र सुनक्षत्र था। वह सर्वाङ्ग – सम्पन्न और सुरूपा था। पाँच धाईयाँ उसके लालन पालन के लिए नीत थीं। जिस प्रकार धन्य कुमार के लिए बत्तीस दहेज आये उसी प्रकार सुनक्षत्र कुमार
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 20 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं दव्वावस्सयं? लोइयं दव्वावस्सयं–जे इमे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थ-वाहप्पभिइओ कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए सुविमलाए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगा- स किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर-नलिनिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते मुहधोयण-दंतपक्खालण-तेल्ल-फणिह-सिद्ध-त्थय-हरियालिय-अद्दाग-धूव-पुप्फ-मल्ल-गंध-तंबोल-वत्थाइयाइं दव्वावस्सयाइं काउं तओ पच्छा रायकुलं वा देवकुलं वा आरामं वा उज्जाणं वा सभं वा पवं वा गच्छंति। से तं लोइयं दव्वावस्सयं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लौकिक द्रव्यावश्यक क्या है ? जो ये राजा, ईश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह आदि रात्रि के व्यतीत होने से प्रभातकालीन किंचिन्मात्र प्रकाश होने पर, पहले की अपेक्षा अधिक स्फुट प्रकाश होने, विकसित कमलपत्रों एवं मृगों के नयनों के ईषद्‌ उन्मीलन से युक्त, प्रभात के होने तथा रक्त
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 45 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं भावसुयं? लोइयं भावसुयं–जं इमं अन्नाणिएहिं मिच्छदिट्ठीहिं सच्छंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं, तं जहा– भारहं २. रामायणं ३-४. हंभीमासुरुत्तं ५. कोडिल्लयं ६. घोडमुहं ७. सगभद्दियाओ ८. कप्पासियं ९. नागसुहुमं १०. कणगसत्तरी ११. वेसियं १२. वइसेसियं १३. बुद्धवयणं १४. काविलं १५. लोगायतं १६. सट्ठितंतं १७. माढरं १८. पुराणं १९. वागरणं २०. नाडगादि। अहवा बावत्तरिकलाओ चत्तारि वेया संगोवंगा। से तं लोइयं भावसुयं।

Translated Sutra: लौकिक (नोआगम) भावश्रुत क्या है ? अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों द्वारा अपनी स्वच्छन्द बुद्धि और मति से रचित महाभारत, रामायण, भीमासुरोक्त, अर्थशास्त्र, घोटकमुख, शटकभद्रिका, कार्पासिक, नागसूत्र, कनकसप्तति, वैशेकिशास्त्र, बौद्धशास्त्र, कामशास्त्र, कपिलशास्त्र, लोकायतशास्त्र, षष्ठितंत्र, माठरशास्त्र, पुराण, व्याकरण,
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 227 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रूव-वय-वेस-भासाविवरीयविलंबणासमुप्पन्नो । हासो मनप्पहासो, पगासलिंगो रसो होइ ॥

Translated Sutra: रूप, वय, वेष और भाषा की विपरीतता से हास्यरस उत्पन्न होता है। हास्यरस मन को हर्षित करनेवाला है और प्रकाश – मुख, नेत्र आदि का विकसित होना, अट्टहास आदि उनके लक्षण हैं। प्रातः सोकर उठे, कालिमा से – काजल की रेखाओं से मंडित देवर के मुख को देखकर स्तनयुगल के भार से नमित मध्यभाग वाली कोई युवती ही – ही करती हँसती है। सूत्र
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 20 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं दव्वावस्सयं? लोइयं दव्वावस्सयं–जे इमे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थ-वाहप्पभिइओ कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए सुविमलाए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगा- स किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर-नलिनिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते मुहधोयण-दंतपक्खालण-तेल्ल-फणिह-सिद्ध-त्थय-हरियालिय-अद्दाग-धूव-पुप्फ-मल्ल-गंध-तंबोल-वत्थाइयाइं दव्वावस्सयाइं काउं तओ पच्छा रायकुलं वा देवकुलं वा आरामं वा उज्जाणं वा सभं वा पवं वा गच्छंति। से तं लोइयं दव्वावस्सयं।

Translated Sutra: લૌકિક દ્રવ્યાવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જે આ રાજા, ઇશ્વર, તલવર, માડંબિક, કૌટુંબિક, ઇભ્ય, શ્રેષ્ઠી, સેનાપતિ, સાર્થવાહ વગેરે રાત્રિ વ્યતીત થાય ત્યારે, પ્રભાતકાલીન કિંચિન્માત્ર પ્રકાશ થાય, પહેલાની અપેક્ષાએ વધુ સ્ફૂટ પ્રકાશ થાય, વિકસિત કમળપત્રો તેમજ મૃગના નયનોના ઇષદ્‌ ઉન્મીલનયુક્ત, યથાયોગ્ય પીતમિશ્રિત શ્વેતવર્ણયુક્ત,
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 44 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ भावसुयं? नोआगमओ भावसुयं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–लोइयं लोगुत्तरियं।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૪. નોઆગમ ભાવશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે? નોઆગમ ભાવશ્રુતના બે પ્રકાર છે. લૌકિક ભાવશ્રુત અને લોકોત્તરિક ભાવશ્રુત. સૂત્ર– ૪૫. લૌકિક ભાવશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? અજ્ઞાની, મિથ્યાદૃષ્ટિઓ દ્વારા પોતાની સ્વચ્છંદ મતિથી રચિત સર્વ ગ્રંથો લૌકિક ભાવશ્રુત છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૪૪, ૪૫
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 24 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे वाणमंतरा देवा अंतियं पाउब्भवित्था–पिसायभूया य जक्ख रक्खस किण्णर किंपुरिस भुयग पइणो य महाकाया गंधव्वनिकायगणा निउणगंधव्वगीयरइणो अणवन्निय पणवन्निय इसिवादिय भूयवादिय कंदिय महाकंदिया य कुहंड पययदेवा चंचल चवल चित्त कीलण दवप्पिया गंभीर हसिय भणिय पिय गीय नच्चणरई वनमालामेल मउड कुंडल सच्छंदविउव्वियाहरण चारुविभूसणधरा सव्वोउयसुरभि कुसुम सुरइयपलंब सोभंत कंत वियसंत चित्तवणमाल रइय वच्छा कामगमा कामरूवधारी नानाविहवण्णराग वरवत्थ चित्तचिल्लय नियंसणा विविहदेसीनेवच्छ गहियवेसा पमुइय कंदप्प कलह केली कोलाहलप्पिया

Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के समीप पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महाकाय भुजगपति, गन्धर्व गण, अणपन्निक, पणपन्निक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, महाक्रन्दित, कूष्मांड, प्रयत – ये व्यन्तर जाति के देव प्रकट हुए। वे देव अत्यन्त चपल चित्तयुक्त, क्रीडाप्रिय तथा परिहासप्रिय थे। उन्हें गंभीर हास्य
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 25 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे? जोइसिया देवा अंतियं पाउब्भवित्था –विहस्सती चंदसूरसुक्कसनिच्छरा राहू धूमकेतुबुहा य अंगारका य तत्ततवणिज्जकनगवण्णा जे य गहा जोइसंमि चारं चरंति केऊ य गइरइया अट्ठावीसतिविहा य नक्खत्तदेवगणा नानासंठाणसंठियाओ य पंचवण्णाओ ताराओ ठियलेसा चारिणो य अविस्साममंडलगई पत्तेयं नामंक पागडिय चिंधमउडा महिड्ढिया जाव पज्जुवासंति।

Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के सान्निध्य में बृहस्पति, चन्द्र, सूर्य, शुक्र, शनैश्चर, राहु, धूमकेतु, बुध तथा मंगल, जिनका वर्ण तपे हुए स्वर्ण – बिन्दु के समान दीप्तिमान था – (ये) ज्योतिष्क देव प्रकट हुए। इनके अतिरिक्त ज्योतिश्चक्र में परिभ्रमण करने वाले केतु आदि ग्रह, अट्ठाईस प्रकार के नक्षत्र देवगण, नाना
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 31 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता अनेगवायाम जोग्ग वग्गण वामद्दण मल्लजुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते सयपाग सहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भिंगेहिं अब्भिंगिए समाणे तेल्ल-चम्मंसि पडिपुण्ण पाणि पाय सुउमाल कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तट्ठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं

Translated Sutra: भंभसार के पुत्र राजा कूणिक ने सेनानायक से यह सूना। वह प्रसन्न एवं परितुष्ट हुआ। जहाँ व्यायाम – शाला थी, वहाँ आया। व्यायामशाला में प्रवेश किया। अनेक प्रकार से व्यायाम किया। अंगों को खींचना, उछलना – कूदना, अंगों को मोड़ना, कुश्ती लड़ना, व्यायाम के उपकरण आदि घुमाना – इत्यादि द्वारा अपने को श्रान्त, परि – श्रान्त
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Hindi 55 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहा सजोगी सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ? नो इणट्ठे समट्ठे। से णं पुव्वामेव सन्निस्स पंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं विदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा, असंखेज्ज-गुणपरिहीणं विइयं वइजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तगस्स जहन्न-जोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तइयं कायजोगं णिरुंभइ। से णं एएणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वयजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता कायजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता जोगनिरोहं करेइ, करेत्ता अजोगत्तं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सयोगी सिद्ध होते हैं ? यावत्‌ सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। वे सबसे पहले पर्याप्त, संज्ञी, पंचेन्द्रिय जीव के जघन्य मनोयोग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन मनोयोग का निरोध करते हैं। उसके बाद पर्याप्त बेइन्द्रिय जीव के जघन्य वचन – योग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन वचन – योग
Auppatik ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Gujarati 1 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था–रिद्धत्थिमिय समिद्धा पमुइय-जनजानवया आइण्ण जन मनूसा हल सयसहस्स संकिट्ठ विकिट्ठ-लट्ठ पन्नत्त सेउसीमा कुक्कुड संडेय गाम पउरा उच्छु जव सालिकलिया गो महिस गवेलगप्पभूया आयारवंत चेइय जुवइविविहसन्निविट्ठबहुला उक्कोडिय गायगंठिभेय भड तक्कर खंडरक्खरहिया खेमा निरुवद्दवा सुभिक्खा वीसत्थसुहावासा अनेगकोडि कोडुंबियाइण्ण निव्वुयसुहा..... ..... नड नट्टग जल्ल मल्ल मुट्ठिय वेलंबग कहग पवग लासग आइक्खग लंख मंख तूणइल्ल तुंबवीणिय अनेगतालायराणुचरिया आरामुज्जाण अगड तलाग दीहिय वप्पिणि गुणोववेया उव्विद्ध विउल गंभीर खायफलिहा चक्क गय

Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે (આ અવસર્પિણીકાળના ચોથા આરામાં ભગવંત મહાવીર વિચરતા હતા ત્યારે) ચંપા નામે નગરી હતી. તે ઋદ્ધિવાળી, નિર્ભય અને સમૃદ્ધ હતી. ત્યાંના લોકો – જાનપદો પ્રમુદિત હતા. જન – મનુષ્યો વડે તે આકીર્ણ હતી. સેંકડો હજારો હળો વડે ખેડાયેલ, સહજપણે સુંદર માર્ગ જેવી લાગતી હતી. ત્યાં કૂકડા અને સાંઢના ઘણા સમૂહો હતા, ઇક્ષુ
Auppatik ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Gujarati 24 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे वाणमंतरा देवा अंतियं पाउब्भवित्था–पिसायभूया य जक्ख रक्खस किण्णर किंपुरिस भुयग पइणो य महाकाया गंधव्वनिकायगणा निउणगंधव्वगीयरइणो अणवन्निय पणवन्निय इसिवादिय भूयवादिय कंदिय महाकंदिया य कुहंड पययदेवा चंचल चवल चित्त कीलण दवप्पिया गंभीर हसिय भणिय पिय गीय नच्चणरई वनमालामेल मउड कुंडल सच्छंदविउव्वियाहरण चारुविभूसणधरा सव्वोउयसुरभि कुसुम सुरइयपलंब सोभंत कंत वियसंत चित्तवणमाल रइय वच्छा कामगमा कामरूवधारी नानाविहवण्णराग वरवत्थ चित्तचिल्लय नियंसणा विविहदेसीनेवच्छ गहियवेसा पमुइय कंदप्प कलह केली कोलाहलप्पिया

Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરની સમીપે ઘણા વ્યંતરદેવો પ્રગટ થયા. તે પિશાચ, ભૂત, યક્ષ, રાક્ષસ, કિંનર, કિંપુરુષ, ભુજગપતિ અને મહાકાય તથા ગંધર્વનિકાયગણ નિપુણ ગીતરતિક એવા અણપન્ની, પણપન્ની, ઋષિવાદિક, ક્રંદિત, મહાક્રંદિત, કુહંડ, પતક વ્યંતર દેવો પ્રગટ થયા. તેઓ ચંચળ – ચપળ ચિત્તવાળા, ક્રીડા – પરિહાસ પ્રિય, ગંભીર હસિત
Auppatik ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Gujarati 31 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता अनेगवायाम जोग्ग वग्गण वामद्दण मल्लजुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते सयपाग सहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भिंगेहिं अब्भिंगिए समाणे तेल्ल-चम्मंसि पडिपुण्ण पाणि पाय सुउमाल कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तट्ठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं

Translated Sutra: [૧] ત્યારે તે ભંભસારપુત્ર કુણિક રાજા, બલવ્યાપૃતના આ અર્થને સાંભળી, અવધારીને હૃષ્ટ – તુષ્ટ યાવત્‌ હૃદયી થઈને જ્યાં અટ્ટનશાળા છે, ત્યાં આવે છે. આવીને અટ્ટનશાળામાં પ્રવેશે છે, પ્રવેશીને અનેક વ્યાયામ યોગ્ય વલ્ગન, વ્યામર્દન, મલ્લયુદ્ધ કરવા વડે શ્રાંત, પરિશ્રાંત થઈને શતપાક – સહસ્રપાક, દર્પણીય, મદનીય, બૃંહણીય, સુગંધી
Auppatik ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Gujarati 50 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजने णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते! एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजने अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पन्नवेमि एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ,

Translated Sutra: ભગવન્‌! ઘણા લોકો એકબીજાને એમ કહે છે, એમ ભાખે છે, એમ પ્રરૂપે છે કે નિશ્ચે અંબડ પરિવ્રાજક, કંપિલપુર નગરમાં સો ઘરોમાં આહાર કરે છે, સો ઘરોમાં વસતિ કરે છે. ભગવન્‌ ! તે કેવી રીતે ? ગૌતમ! જે ઘણા લોકો એકબીજાને એમ કહે છે યાવત્‌ એમ પ્રરૂપે છે – નિશ્ચે અંબડ પરિવ્રાજક કંપિલપુરમાં યાવત્‌ સો ઘરોમાં વસતિ કરે છે. આ અર્થ સત્ય છે. ગૌતમ
Auppatik ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Gujarati 55 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहा सजोगी सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ? नो इणट्ठे समट्ठे। से णं पुव्वामेव सन्निस्स पंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं विदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा, असंखेज्ज-गुणपरिहीणं विइयं वइजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तगस्स जहन्न-जोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तइयं कायजोगं णिरुंभइ। से णं एएणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वयजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता कायजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता जोगनिरोहं करेइ, करेत्ता अजोगत्तं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! તે તેવા સયોગી સિદ્ધ થાય યાવત્‌ અંત કરે ? એ અર્થ સંગત નથી. તે પૂર્વે પર્યાપ્ત પંચેન્દ્રિય સંજ્ઞીના જઘન્ય મનોયોગના નીચલા સ્તરે અસંખ્યાતગુણ પરિહીન પહેલા મનોયોગનું રુંધન કરે છે. ત્યારપછી પર્યાપ્ત બેઇન્દ્રિયના જઘન્યયોગના નીચે અસંખ્યાતગુણ પરિહીન બીજા વચનયોગનું રુંધન કરે છે. ત્યારપછી અપર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-२ Hindi 443 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे केवतिया चंदा पभासिंसु वा? पभासेंति वा? पभासिस्संति वा? एवं जहा जीवाभिगमे जाव ताराओ। धायइसंडे, कालोदे, पुक्खरवरे, अब्भंतपुक्खरद्धे, मनुस्सखेत्ते–एएसु सव्वेसु जहा जीवा-भिगमे जाव–एगससीपरिवारो, तारागणकोडिकोडीणं। पुक्खरोदे णं भंते! समुद्दे केवतिया चंदा पभासिंसु वा? पभासेंति वा? पभासिस्संति वा? एवं सव्वेसु दीव-समुद्देसु जोतिसियाणं भाणियव्वं जाव सयंभूरमणे जाव सोभिंसु वा, सोभिंति वा, सोभिस्संति वा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन् ! लवणसमुद्र में कितने चन्द्रों ने प्रकाश किया, करते हैं और करेंगे ? गौतम ! जीवाभिगमसूत्रानुसार तारों के वर्णन तक जानना। घातकीखण्ड, कालोदधि, पुष्करवरद्वीप, आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध और मनुष्यक्षेत्र; इन सब में जीवाभिगमसूत्र के अनुसार – ‘‘एक चन्द्र का परिवार कोटाकोटी तारागण (सहित) होता है’’ तक जानना चाहिए। भगवन्
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 25 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! अस्संजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे इओ चुए पेच्चा देवे सिया? गोयमा! अत्थेगइए देवे सिया, अत्थेगइए नो देवे सिया। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अस्संजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मेव इओ चुए पेच्चा अत्थेगइए देवे सिया, अत्थेगइए नो देवे सिया? गोयमा! जे इमे जीवा गामागर-नगर-निगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणा- सम-सन्निवेसेसु अकामतण्हाए, अकामछुहाए, अकामबंभचेरवासेनं, अकामसीता-तव-दंसमसग अण्हागय-सेय-जल्ल-मल-पंक-परिदाहेणं अप्पतरं वा भुज्जतरं वा कालं अप्पाणं परिकिलेसंति, परिकिलेसित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु सु वाणमंतरेसु देवलोगेसु

Translated Sutra: भगवन्‌ ! असंयत, अविरत, तथा जिसने पापकर्म का हनन एवं त्याग नहीं किया है, वह जीव इस लोक में च्यव (मर) कर क्या परलोक में देव होता है ? गौतम ! कोई जीव देव होता है और कोई जीव देव नहीं होता। भगवन्‌ ! यहाँ से च्यवकर परलोक में कोई जीव देव होता है, और कोई जीव देव नहीं होता; इसका क्या कारण है? गौतम ! जो ये जीव ग्राम, आकर, नगर, निगम, राजधानी,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 69 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जावइयाओ णं भंते! ओवासंतराओ उदयंते सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति, अत्थमंते वि य णं सूरिए तावतियाओ चेव ओवासंतराओ चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति? हंता गोयमा! जावइयाओ णं ओवासंतराओ उदयंते सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति, अत्थमंते वि य णं सूरिए तावतियाओ चेव ओवासंतराओ चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति। जावइय णं भंते! खेत्तं उदयंते सूरिए आयवेणं सव्वओ समंता ओभासेइ उज्जोएइ तवेइ पभासेइ, अत्थमंते वि य णं सूरिए तावइयं चेव खेत्तं आयवेणं सव्वओ समंता ओभासेइ? उज्जोएइ? तवेइ? पभासेइ? हंता गोयमा! जावतिय णं खेत्तं उदयंते सूरिए आयवेणं सव्वओ समंता ओभासेइ उज्जोइए तवेइ पभासेइ, अत्थमंते वि य

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जितने जितने अवकाशान्तर से अर्थात्‌ – जितनी दूरी से उदय होता हुआ सूर्य आँखो से शीघ्र देखा जाता है, उतनी ही दूरी से क्या अस्त होता हुआ सूर्य भी दिखाई देता है ? हाँ, गौतम ! जितनी दूर से उदय होता हुआ सूर्य आँखो से दीखता है, उतनी ही दूरी से अस्त होता सूर्य भी आँखों से दिखाई देता है। भगवन्‌ ! उदय होता हुआ सूर्य अपने
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक Hindi 115 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे समोसरणं जाव परिसा पडिगया। तए णं तस्स खंदयस्स अनगारस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महानुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। जीवंजीवेणं गच्छामि, जीवंजीवेणं चिट्ठामि, भासं भासित्ता वि गिलामि, भासं भासमाणे गिलामि,

Translated Sutra: उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर में पधारे। समवसरण की रचना हुई। यावत्‌ जनता धर्मोपदेश सूनकर वापिस लौट गई। तदनन्तर किसी एक दिन रात्रि के पीछले प्रहर में धर्म – जागरणा करते हुए स्कन्दक अनगार के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय, चिन्तन यावत्‌ संकल्प उत्पन्न हुआ कि मैं इस प्रकार के उदार यावत्‌ महाप्रभावशाली
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-२ चमरोत्पात Hindi 172 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चमरे णं भंते! असुरिंदेणं असुररण्णा सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? पत्ते? अभिसमन्नागए? एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूदीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले नामं सन्निवेसे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं बेभेले सन्निवेसे पूरणे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूए या वि होत्था। तए णं तस्स पूरणस्स गाहावइस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अत्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! असुरेन्द्र असुरराज चमर को वह दिव्य देवऋद्धि और यावत्‌ वह सब, किस प्रकार उपलब्ध हुई, प्राप्त हुई और अभिसमन्वागत हुई ? हे गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारत वर्ष (क्षेत्र) में, विन्ध्याचल की तलहटी में ‘बेभेल’ नामक सन्निवेश था। वहाँ ‘पूरण’ नामक एक गृहपति रहता था। वह आढ्य और दीप्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Hindi 250 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आहाकम्मं अणवज्जे त्ति मणं पहारेत्ता भवति, से णं तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंते कालं करेइ–नत्थि तस्स आराहणा। से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कंते कालं करेइ–अत्थि तस्स आराहणा। एएणं गमेणं नेयव्वं–कीयगडं, ठवियं, रइयं, कंतारभत्तं दुब्भिक्खभत्तं, वद्दलियाभत्तं, गिलाणभत्तं, सेज्जायरपिंडं रायपिंडं। आहाकम्मं अणवज्जे त्ति सयमेव परिभुंजित्ता भवति, से णं तस्स ठाणस्स अनालोइय पडिक्कंते कालं करेइ–नत्थि तस्स आराहणा। से णं तस्स ठाणस्स आलोइय-पडिक्कंते कालं करेइ–अत्थि तस्स आराहणा। एयं पि तेह चेव जाव रायपिंडं। आहाकम्मं अणवज्जे त्ति अन्नमन्नस्स अनुप्पदावइत्ता भवइ, से णं तस्स

Translated Sutra: ‘आधाकर्म अनवद्य – निर्दोष है’, इस प्रकार जो साधु मन में समझता है, वह यदि उस आधाकर्म – स्थान की आलोचना एवं प्रतिक्रमण किये बिना ही काल कर जाता है, तो उसके आराधना नहीं होती। वह यदि उस (आधाकर्म – ) स्थान की आलोचना एवं प्रतिक्रमण करके काल करता है, तो उसके आराधना होती है। आधाकर्म के आलापकद्वय के अनुसार ही क्रीतकृत, स्थापित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 291 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किमियं भंते! तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? किं पुढवी तमुक्काए त्ति पव्वच्चति? आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? गोयमा! नो पुढवि तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति, आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति। से केणट्ठेणं? गोयमा! पुढविकाए णं अत्थेगइए सुभे देसं पकासेइ, अत्थेगइए देसं नो पकासेइ। से तेणट्ठेणं। तमुक्काए णं भंते! कहिं समुट्ठिए? कहिं संनिट्ठिए? गोयमा! जंबूदीवस्स दीवस्स बहिया तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे वीईवइत्ता, अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एगपएसियाए सेढीए–एत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए। सत्तरस-एक्कवीसे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ‘तमस्काय’ किसे कहा जाता है ? क्या ‘तमस्काय’ पृथ्वी को कहते हैं या पानी को ? गौतम ! पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती, किन्तु पानी ‘तमस्काय’ कहलाता है। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! कोई पृथ्वीकाय ऐसा शुभ है, जो देश को प्रकाशित करता है और कोई पृथ्वीकाय ऐसा है, जो देश को प्रकाशित नहीं करता इस कारण से पृथ्वी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 380 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! अच्चित्ता वि पोग्गला ओभासंति? उज्जोवेंति? तवेंति? पभासेंति? हंता अत्थि। कयरे णं भंते! ते अच्चित्ता वि पोग्गला ओभासंति? उज्जोवेंति? तवेंति? पभासेंति? कालोदाई! कुद्धस्स अनगारस्स तेयलेस्सा निसट्ठा समाणी दूरं गता दूरं निपतति, देसं गता देसं निपतति, जहिं-जहिं च णं सा निपतति तहिं-तहिं च णं ते अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति, उज्जोवेंति, तवेंति, पभासेंति। एतेणं कालोदाई! ते अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति, उज्जोवेंति, तवेंति, पभासेंति। तए णं से कालोदाई अनगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं, मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या अचित्त पुद्‌गल भी अवभासित होते हैं, वे वस्तुओं को उद्योतित करते हैं, तपाते हैं और प्रकाश करते हैं ? हाँ, कालोदायी ! अचित्त पुद्‌गल भी यावत्‌ प्रकाश करते हैं। भगवन्‌ ! अचित्त होते हुए भी कौन – से पुद्‌गल अवभासित होते हैं, यावत्‌ प्रकाश करते हैं ? कालोदायी ! क्रुद्ध अनगार की नीकली हुई तेजोलेश्या दूर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 421 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति? अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति, मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति, अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि, मज्झंतियमुहुत्तंसि य, अत्थमणमुहुत्तंसि य सव्वत्थ समा उच्चत्तेणं? हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमण मुहुत्तंसि, मज्झंतियमुहुत्तंसि य, अत्थमणमुहुत्तंसि य सव्वत्थ समाउच्चत्तेणं। जइ णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में क्या दो सूर्य, उदय और अस्त के मुहूर्त्त में दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं, मध्याह्न के मुहूर्त्तमें निकट में होते हुए दूर दिखाई देते हैं? हाँ, गौतम ! जम्बूद्वीपमें दो सूर्य, उदय के समय दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं, इत्यादि। भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में दो सूर्य, उदय के समय में, मध्याह्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-२ Hindi 440 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया चंदा पभासिंसु वा? पभासेंति वा? पभासिस्संति वा? एवं जहा जीवाभिगमे जाव–

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने पूछा – भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने चन्द्रों ने प्रकाश किया, करते हैं, और करेंगे ? जीवाभिगमसूत्रानुसार कहेना।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 452 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संतरं भंते! नेरइया उव्वट्टंति? निरंतरं नेरइया उव्वट्टंति? गंगेया! संतरं पि नेरइया उव्वट्टंति, निरंतरं पि नेरइया उव्वट्टंति। एवं जाव थणियकुमारा। संतरं भंते! पुढविक्काइया उव्वट्टंति? – पुच्छा। गंगेया! नो संतरं पुढविक्काइया उव्वट्टंति, निरंतरं पुढविक्काइया उव्वट्टंति। एवं जाव वणस्सइकाइया–नो संतरं, निरंतरं उव्वट्टंति। संतरं भंते! बेइंदिया उव्वट्टंति? निरंतरं बेइंदिया उव्वट्टंति? गंगेया! संतरं पि बेइंदिया उव्वट्टंति, निरंतरं पि बेइंदिया उव्वट्टंति। एवं जाव वाणमंतरा। संतरं भंते! जोइसिया चयंति? – पुच्छा। गंगेया! संतरं पि जोइसिया चयंति, निरंतरं पि जोइसिया चयंति।

Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक जीव सान्तर उद्वर्त्तित होते हैं या निरन्तर ? गांगेय ! सान्तर भी उद्वर्त्तित होते हैं और निरन्तर भी। इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना। भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिका जीव सान्तर उद्वर्त्तित होते हैं या निरन्तर ? गांगेय ! पृथ्वीकायिका जीवो का उद्वर्तन सान्तर नही होता, निरन्तर होता है। इसी प्रकार वनस्पतिकायिका
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-११ काल Hindi 518 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! एएसिं पलिओवम-सागरोवमाणं खएति वा अवचएति वा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थि णं एएसिं पलिओवमसागरोवमाणं खएति वा अवचएति वा? एवं खलु सुदंसणा! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणापुरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। सहसंबवने उज्जाने–वण्णओ। तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे बले नामं राया होत्था–वण्णओ। तस्स णं बलस्स रन्नो पभावई नामं देवी होत्था–सुकुमालपाणिपाया वण्णओ जाव पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणी विहरइ। तए णं सा पभावई देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अब्भिंतरओ सचित्तकम्मे, बाहिरओ दूमिय-घट्ठ-मट्ठे विचित्तउल्लोग-चिल्लियतले मणिरयणपणासियंधयारे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या इन पल्योपम और सागरोपम का क्षय या अपचय होता है ? हाँ, सुदर्शन ! होता है। भगवन्‌ ऐसा किस कारण से कहते हैं ? हे सुदर्शन ! उस काल और उस समय में हस्तिनापुर नामक नगर था। वहाँ सहस्रा – म्रवन नामक उद्यान था। उस हस्तिनापुर में ‘बल’ नामक राजा था। उस बल राजा की प्रभावती नामकी देवी (पटरानी) थी। उसके हाथ – पैर सुकुमाल
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-९ अनगारवैक्रिय Hindi 594 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–से जहानामए केइ पुरिसे केयाघडियं गहाय गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे वि भावियप्पा केयाघडियाकिच्चहत्थगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? हंता उप्पएज्जा। अनगारे णं भंते! भावियप्पा केवतियाइं पभू केयाघडियाकिच्चहत्थगयाइं रूवाइं विउव्वित्तए? गोयमा! से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव अनगारे वि भावि-अप्पा वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ जाव पभू णं गोयमा! अनगारे णं भाविअप्पा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं इत्थिरूवेहिं आइण्णं वितिकिण्णं उवत्थडं संथडं फुडं अवगाढावगाढं करेत्तए। एस णं

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! जैसे कोई पुरुष रस्सी से बंधी हुई घटिका लेकर चलता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी रस्सी से बंधी हुई घटिका स्वयं हाथ में लेकर ऊंचे आकाश में उड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! उड़ सकता है। भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार रस्सी से बंधी हुई घटिका हाथ में ग्रहण करने रूप कितने रूपों की विकुर्वणा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-९ अनगार Hindi 631 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा अप्पणो कम्मलेस्सं न जाणइ, न पासइ, तं पुण जीवं सरूविं सकम्मलेस्सं जाणइ-पासइ। हंता गोयमा! अनगारे णं भावियप्पा अप्पणो कम्मलेस्सं न जाणइ, न पासइ, तं पुण जीवं सरूविं सकम्मलेस्सं जाणइ पासइ। अत्थि णं भंते! सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति उज्जोएंति तवेंति पभासेंति? हंता अत्थि। कयरे णं भंते! सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति जाव पभासेंति? गोयमा! जाओ इमाओ चंदिम-सूरियाणं देवाणं विमानेहिंतो लेस्साओ बहिया अभिनिस्स-डाओ पभावेंति, एए णं गोयमा! ते सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति उज्जोएंति तवेंति पभासेंति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अपनी कर्मलेश्या को नहीं जानने – देखने वाला भावितात्मा अनगार, क्या सरूपी (सशरीर) और कर्मलेश्या – सहित जीव को जानता – देखता है ? हाँ, गौतम ! भावितात्मा अनगार, जो अपनी कर्मलेश्या को नहीं जानता – देखता, वह सशरीर एवं कर्मलेश्या वाले जीव को जानता – देखता है। भगवन्‌ ! क्या सरूपी, सकर्मलेश्य पुद्‌गलस्कन्ध अवभासित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 638 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सावत्थीए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पन्नवेइ, एवं परूवेइ–एवं खलु देवानुप्पिया! गोसाले मंखलिपुत्ते जिने जिनप्पलावी, अरहा अरहप्पलावी, केवली केवलिप्पलावी, सव्वण्णू सव्वण्णुप्पलावी, जिने जिनसद्दं पगासेमाणे विहरइ। से कहमेयं मन्ने एवं? तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसभनारायसंघयणे कनगपुलगनिधस-पम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे

Translated Sutra: इसके बाद श्रावस्ती नगरी में शृंगाटक पर, यावत्‌ राजमार्गों पर बहुत – से लोग एक दूसरे से इस प्रकार कहने लगे, यावत्‌ इस प्रकार प्ररूपणा करने लगे – हे देवानुप्रियो ! निश्चित है कि गोशालक मंखलिपुत्र ‘जिन’ होकर अपने आप को ‘जिन’ कहता हुआ, यावत्‌ ‘जिन’ शब्द में अपने आपको प्रकट करता हुआ विचरता है, तो इसे ऐसा कैसे माना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 644 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अन्नदा कदायि इमे छ दिसाचरा अंतियं पाउब्भवित्था, तं जहा–साणे, कलंदे, कण्णियारे, अच्छिदे, अग्गिवेसायणे, अज्जुणे, गोमायुपुत्ते। तए णं तं छ दिसाचरा अट्ठविहं पुव्वगयं मग्गदसमं सएहिं-सएहिं मतिदंसणेहिं निज्जूहंति, निज्जूहित्ता गोसालं मंखलिपुत्तं उवट्ठाइंसु। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तेणं अट्ठंगस्स महानिमित्तस्स केणइ उल्लोयमेत्तेणं सव्वेसिं पाणाणं, सव्वेसिं भूयानं, सव्वेसिं जीवाणं, सव्वेसिं सत्ताणं इमाइं छ अणइक्कमणिज्जाइं वागर-णाइं वागरेति, तं जहा– लाभं अलाभं सुहं दुक्खं, जीवियं मरणं तहा। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तेणं

Translated Sutra: इसके बाद मंखलिपुत्र गोशालक के पास किसी दिन ये छह दिशाचर प्रकट हुए। यथा – शोण इत्यादि सब कथन पूर्ववत्‌, यावत्‌ – जिन न होते हुए भी अपने आपको जिन शब्द से प्रकट करता हुआ विचरण करने लगा है। अतः हे गौतम ! वास्तव में मंखलिपुत्र गोशालक ‘जिन’ नहीं है, वह ‘जिन’ शब्द का प्रलाप करता हुआ यावत्‌ ‘जिन’ शब्द से स्वयं को प्रसिद्ध
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 652 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जोति! समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी–अज्जो! से जहानामए तणरासी इ वा कट्ठरासी इ वा पत्तरासी इ वा तयारासी इ वा तुसरासी इ वा भुसरासी इ वा गोमयरासी इ वा अवकररासी इ वा अगनिज्झामिए अगनिज्झूसिए अगनिपरिणामिए हयतेए गयतेए नट्ठतेए भट्ठतेए लुत्ततेए विणट्ठतेए जाए, एवामेव गोसाले मंखलिपुत्ते ममं वहाए सरीरगंसि तेयं निसिरित्ता हयतेए गयतेए नट्ठतेए भट्ठतेए लुत्ततेए विणट्ठतेए जाए, तं छंदेणं अज्जो! तुब्भे गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएह, धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेह, धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेह, अट्ठेहि य हेऊहि य पसिणेहि य वागरणेहि य

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने कहा – ‘हे आर्यो ! जिस प्रकार तृणराशि, काष्ठराशि, पत्रराशि, त्वचा राशि, तुष – राशि, भूसे की राशि, गोमय की राशि और अवकर राशि को अग्नि से थोड़ा – सा जल जाने पर, आग में झोंक देने पर एवं अग्नि से परिणामान्तर होने पर उसका तेज हत हो जाता है, उसका तेज चला जाता है, उसका तेज नष्ट और भ्रष्ट हो जाता है, उसका तेज
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 653 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सत्तरत्तंसि परिणममाणंसि पडिलद्धसम्मत्तस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–नो खलु अहं जिने जिनप्पलावी, अरहा अरहप्पलावी, केवली केवलिप्पलावी, सव्वण्णू सव्वण्णुप्पलावी, जिने जिनसद्दं पगासेमाणे विहरिते अहण्णं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए समणमारए समणपडिनीए आयरिय-उवज्झायाणं अयसकारए अवण्णकारए अकित्तिकारए बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिनिवेसेहिं य अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा वुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे विहरित्ता सएणं तेएणं अन्नाइट्ठे समाणे अंतो सत्तरत्तस्स पित्तज्जरपरिगयसरीरे

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ जब सातवीं रात्रि व्यतीत हो रही थी, तब मंखलिपुत्र गोशालक को सम्यक्त्व प्राप्त हुआ। उसके साथ ही उसे इस प्रकार का अध्यवसाय यावत्‌ मनोगत संकल्प समुत्पन्न हुआ – ‘मैं वास्तव में जिन नहीं हूँ, तथापि मैं जिन – प्रलापी यावत्‌ जिन शब्द से स्वयं को प्रकट करता हुआ विचरा हूँ। मैं मंखलिपुत्र गोशालक श्रमणों
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Gujarati 69 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जावइयाओ णं भंते! ओवासंतराओ उदयंते सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति, अत्थमंते वि य णं सूरिए तावतियाओ चेव ओवासंतराओ चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति? हंता गोयमा! जावइयाओ णं ओवासंतराओ उदयंते सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति, अत्थमंते वि य णं सूरिए तावतियाओ चेव ओवासंतराओ चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति। जावइय णं भंते! खेत्तं उदयंते सूरिए आयवेणं सव्वओ समंता ओभासेइ उज्जोएइ तवेइ पभासेइ, अत्थमंते वि य णं सूरिए तावइयं चेव खेत्तं आयवेणं सव्वओ समंता ओभासेइ? उज्जोएइ? तवेइ? पभासेइ? हंता गोयमा! जावतिय णं खेत्तं उदयंते सूरिए आयवेणं सव्वओ समंता ओभासेइ उज्जोइए तवेइ पभासेइ, अत्थमंते वि य

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! જેટલા અવકાશાંતરથી ઊગતો સૂર્ય શીઘ્ર નજરે જોવાય છે, તેટલા જ અવકાશાંતરથી આથમતો સૂર્ય શીઘ્ર નજરે જોવાય છે ? હા, ગૌતમ ! જેટલે દૂરથી ઉદય થતો સૂર્ય જોવાય છે તેટલા દૂરથી અસ્ત થતો સૂર્ય દેખાય છે ભગવન્‌ ! ઊગતો સૂર્ય પોતાના તાપથી જેટલા ક્ષેત્રને ચારે બાજુથી પ્રકાશિત – ઉદ્યોતિત – તાપિત – પ્રભાસિત કરે છે, તેટલા જ
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक Gujarati 115 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे समोसरणं जाव परिसा पडिगया। तए णं तस्स खंदयस्स अनगारस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महानुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। जीवंजीवेणं गच्छामि, जीवंजीवेणं चिट्ठामि, भासं भासित्ता वि गिलामि, भासं भासमाणे गिलामि,

Translated Sutra: તે કાળે તે સમયે રાજગૃહનગરમાં સમવસરણ થયું (ભગવાન મહાવીર પધાર્યા), યાવત્‌ પર્ષદા પાછી ગઈ. ત્યારે તે સ્કંદક અણગાર અન્યદા ક્યારેક રાત્રિના પાછલા પ્રહરે ધર્મ જાગરિકાથી જાગતા હતા ત્યારે તેમના મનમા આવો સંકલ્પ યાવત્‌ થયો કે – હું આ ઉદાર તપકર્મથી શુષ્ક, રુક્ષ, કૃશ થયો છું, યાવત્‌ બધી નાડીઓ બહાર દેખાય છે, આત્મબળથી જ
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Gujarati 160 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–वण्णओ जाव परिसा पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाने देविंदे देवराया ईसाने कप्पे ईसानवडेंसए विमाने जहेव रायप्पसेणइज्जे जाव दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुतिं दिव्वं देवाणुभागं दिव्वं बत्तीसइबद्धं नट्टविहिं उवदंसित्ता जाव जामेव दिसिं पाउब्भूए, तामेव दिसिं पडिगए। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता। एवं वदासी–अहो णं भंते! ईसाने देविंदे देवराया महिड्ढीए जाव महानुभागे। ईसानस्स णं भंते! सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे कहिं गते? कहिं अनुपविट्ठे? गोयमा!

Translated Sutra: (૧) તે કાળે તે સમયે રાજગૃહી નામે નગરી હતી. નગરી વર્ણન ‘ઉવાવાઈ’ સૂત્ર મુજબ જાણવું. ભગવાન મહાવીર પધાર્યા, પરિષદ(સભા)ધર્મ શ્રવણ માટે નીકળી યાવત પરિષદ ભગવંતને પર્યુપાસે છે. તે કાળે તે સમયે દેવેન્દ્ર દેવરાજ, શૂલપાણી, વૃષભવાહન, ઉત્તરાર્ધ – લોકાધિપતિ, ૨૮ લાખ વિમાનાવાસ અધિપતિ, આકાશસમ નિર્મલ વસ્ત્રધારી, માળાથી સુશોભિત,
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Gujarati 248 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमातिक्खंति जाव परूवेंति– से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव जाव चत्तारि पंच जोयणसयाइं बहुसमाइण्णे मनुयलोए मनुस्सेहिं। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमातिक्खंति जाव बहुसमाइण्णे मनुयलोए मनुस्सेहिं। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि– से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एमामेव जाव चत्तारि पंच जोयणसयाइं बहुसमाइण्णे निरयलोए नेरइएहिं।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૪૮. ભગવન્‌ ! અન્યતીર્થિકો એમ કહે છે યાવત્‌ પ્રરૂપે છે – જેમ કોઈ યુવતિને યુવાન હાથ વડે હાથ ગ્રહીને પકડે અથવા આરાઓથી ભીડાયેલ ચક્રની નાભિ હોય, એ રીતે યાવત્‌ ૪૦૦/૫૦૦ યોજન સુધી મનુષ્યલોક મનુષ્યોથી ઠસોઠસ ભરેલો છે, શું તેઓનું આ કથન સત્ય છે ? ગૌતમ ! તે અન્યતીર્થિકો જે કહે છે તે ઉપર કહેલ કથન ખોટું છે. હું એમ કહું
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-९ राजगृह Gujarati 265 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! दिया उज्जोए? राइं अंधयारे? हंता गोयमा! दिया उज्जोए, राइं अंधयारे। से केणट्ठेणं? गोयमा! दिया सुभा पोग्गला सुभे पोग्गलपरिणामे, राइं असुभा पोग्गला असुभे पोग्गलपरिणामे। से तेणट्ठेणं। नेरइयाणं भंते! किं उज्जोए? अंधयारे? गोयमा! नेरइयाणं नो उज्जोए, अंधयारे। से केणट्ठेणं? गोयमा! नेरइयाणं असुभा पोग्गला असुभे पोग्गलपरिणामे। से तेणट्ठेणं। असुरकुमाराणं भंते! किं उज्जोए? अंधयारे? गोयमा! असुरकुमाराणं उज्जोए, नो अंधयारे। से केणट्ठेणं? गोयमा! असुरकुमाराणं सुभा पोग्गला सुभे पोग्गलपरिणामे। से तेणट्ठेणं। जाव थणियकुमाराणं। पुढविक्काइया जाव तेइंदिया जहा नेरइया। चउरिंदियाणं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! દિવસે ઉદ્યોત અને રાત્રે અંધકાર હોય ? ગૌતમ ! હા, હોય. એમ કેમ કહ્યું ? ગૌતમ ! દિવસે શુભ પુદ્‌ગલ, શુભ પુદ્‌ગલ – પરિણામ હોય, રાત્રે અશુભ પુદ્‌ગલ અને અશુભ પુદ્‌ગલ પરિણામ હોય છે. તેથી હે ગૌતમ ! દિવસે પ્રકાશ અને રાત્રે અંધકાર હોય છે. ભગવન્‌ ! નૈરયિકને ઉદ્યોત હોય કે અંધકાર ? ગૌતમ ! તેમને ઉદ્યોત નહીં અંધકાર છે. ભગવન્‌
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Gujarati 291 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किमियं भंते! तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? किं पुढवी तमुक्काए त्ति पव्वच्चति? आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? गोयमा! नो पुढवि तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति, आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति। से केणट्ठेणं? गोयमा! पुढविकाए णं अत्थेगइए सुभे देसं पकासेइ, अत्थेगइए देसं नो पकासेइ। से तेणट्ठेणं। तमुक्काए णं भंते! कहिं समुट्ठिए? कहिं संनिट्ठिए? गोयमा! जंबूदीवस्स दीवस्स बहिया तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे वीईवइत्ता, अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एगपएसियाए सेढीए–एत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए। सत्तरस-एक्कवीसे

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! આ તમસ્કાય શું છે ? શું પૃથ્વી કે પ્રાણી તમસ્કાય કહેવાય ? ગૌતમ ! પૃથ્વી તમસ્કાય ન કહેવાય, પણ પાણી ‘તમસ્કાય’ કહેવાય. ભગવન્‌ ! એમ શામાટે કહ્યું ? ગૌતમ ! કેટલોક પૃથ્વીકાય શુભ છે, તે અમુક ક્ષેત્રને પ્રકાશિત કરે છે, કેટલોક પૃથ્વીકાય એવો છે કે જે ક્ષેત્રના એક ભાગને પ્રકાશિત નથી કરતો, તેથી એમ કહ્યું. ભગવન્‌ ! તમસ્કાયના
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Gujarati 380 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! अच्चित्ता वि पोग्गला ओभासंति? उज्जोवेंति? तवेंति? पभासेंति? हंता अत्थि। कयरे णं भंते! ते अच्चित्ता वि पोग्गला ओभासंति? उज्जोवेंति? तवेंति? पभासेंति? कालोदाई! कुद्धस्स अनगारस्स तेयलेस्सा निसट्ठा समाणी दूरं गता दूरं निपतति, देसं गता देसं निपतति, जहिं-जहिं च णं सा निपतति तहिं-तहिं च णं ते अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति, उज्जोवेंति, तवेंति, पभासेंति। एतेणं कालोदाई! ते अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति, उज्जोवेंति, तवेंति, पभासेंति। तए णं से कालोदाई अनगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं, मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! અચિત પુદ્‌ગલો પણ પ્રકાશે છે, ઉદ્યોત કરે છે, તપે છે, પ્રભાસે છે ? હા, કાલોદાયી ! તેમ છે. ભગવન્‌ ! કયા અચિત પુદ્‌ગલો પ્રકાશે છે યાવત્‌ પ્રભાસે છે ? હે કાલોદાયી! ક્રુદ્ધ અણગારની તેજોલેશ્યા નીકળ્યા પછી દૂર જઈને દૂર દેશમાં પડે છે, જવા યોગ્ય દેશે જઈને તે દેશમાં પડે છે જ્યાં જ્યાં તે પડે છે, ત્યાં ત્યાં તે અચિત્ત
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Gujarati 421 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति? अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति, मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति, अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि, मज्झंतियमुहुत्तंसि य, अत्थमणमुहुत्तंसि य सव्वत्थ समा उच्चत्तेणं? हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमण मुहुत्तंसि, मज्झंतियमुहुत्तंसि य, अत्थमणमुहुत्तंसि य सव्वत्थ समाउच्चत्तेणं। जइ णं भंते!

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! જંબૂદ્વીપમાં બે સૂર્યો ઊગવાના સમયે દૂર હોવા છતાં નીકટ દેખાય છે ? મધ્યાહ્ન મુહૂર્ત્તે નજીક છતાં દૂર દેખાય છે ? અને અસ્ત થવાના મુહૂર્ત્તે દૂર છતાં નજીક દેખાય છે ? હા, ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપમાં સૂર્યો ઊગવાના સમયે દૂર છતાં યાવત્‌ અસ્ત સમયે નજીક દેખાય છે. ભગવન્‌ ! જંબૂદ્વીપમાં બે સૂર્યો ઊગવાના, મધ્યાહ્નના અને અસ્ત
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