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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 43 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कुंथुं अरं च मल्लिं वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च ।
वंदामि रिट्ठनेमिं पासं तह वद्धमाणं च ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४० | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 44 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं मए अभिथुआ विहुय-रयमला पहीण-जरमरणा ।
चउवीसंपि जिणवरा तित्थयरा मे पसीयंतु ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४० | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 46 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवरगंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४० | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 48 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुक्खरवरदीवड्ढे धायइसंडे य जंबुद्दीवे य ।
भरहेरवय विदेहे धम्माइगरे नमंसामि ॥ Translated Sutra: अर्ध पुष्करवरद्वीप, घातकी खंड़ और जम्बूद्वीप में उन ढ़ाई द्वीप में आए हुए भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्र में श्रुतधर्म की आदि करनेवाले को यानि तीर्थंकर को मैं नमस्कार करता हूँ। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 49 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तमतिमिरपडल विद्धंसणस्स सुरगणनरिंदमहियस्स ।
सीमाधरस्स वंदे पप्फोडियमोहजालस्स ॥ Translated Sutra: अज्ञान समान अंधेरे के समूह को नष्ट करनेवाले, देव और नरेन्द्र के समूह से पूजनीय और मोहनीय कर्म के सर्व बन्धन को तोड़ देनेवाले ऐसे मर्यादावंत यानि आगम युक्त श्रुतधर्म को मैं वंदन करता हूँ। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 50 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जाईजरामरण सोग पणासणस्स, कल्लाणपुक्खल विसालसुहावहस्स ।
को देवदानवनरिंदगणच्चिअस्स, धम्मस्ससारमुवलब्भकरे पमायं ॥ Translated Sutra: जन्म, बुढ़ापा, मरण और शोक समान सांसारिक दुःख को नष्ट करनेवाले, ज्यादा कल्याण और विशाल सुख देनेवाले, देव – दानव और राजा के समूह से पूजनीय श्रुतधर्म का सार जानने के बाद कौन धर्म आराधना में प्रमाद कर सकता है ? | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ सामायिक |
Hindi | 1 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] Translated Sutra: अरिहंत को नमस्कार हो, सिद्ध को नमस्कार हो, आचार्य को नमस्कार हो, उपाध्याय को नमस्कार हो, लोक में रहे सर्व साधु को नमस्कार हो, इस पाँच (परमेष्ठि) को किया गया नमस्कार सर्व पाप का नाशक है। सर्व मंगल में प्रथम (उत्कृष्ट) मंगल है। अरिहंत शब्द के लिए तीन पाठ हैं। अरहंत, अरिहंत और अरूहंत। यहाँ अरहंत शब्द का अर्थ है – जो | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ सामायिक |
Hindi | 2 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] करेमि भंते सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि
तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: हे भगवंत ! (हे पूज्य !) में (आपकी साक्षी में) सामायिक का स्वीकार करता हूँ यानि समभाव की साधना करता हूँ। जिन्दा हूँ तब तक सर्व सावद्य (पाप) योग का प्रत्याख्यान करता हूँ। यानि मन, वचन, काया की अशुभ प्रवृत्ति न करने का नियम करता हूँ। (जावज्जीव के लिए) मन से, वचन से, काया से (उस तरह से तीन योग से पाप व्यापार) मैं खुद न करूँ, | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ चतुर्विंशतिस्तव |
Hindi | 3 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लोगस्स उज्जोयगरे धम्मतित्थयरे जिणे ।
अरिहंते कित्तइस्सं चउवीसंपि केवली ॥ Translated Sutra: लोक में उद्योत करनेवाले (चौदह राजलोक में रही सर्व वस्तु का स्वरूप यथार्थ तरीके से प्रकाशनेवाले) धर्मरूपी तीर्थ का प्रवर्तन करनेवाले, रागदेश को जीतनेवाले, केवली चोबीस तीर्थंकर का और अन्य तीर्थंकर का मैं कीर्तन करूँगा। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ चतुर्विंशतिस्तव |
Hindi | 4 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उसभमजियं च वंदे संभवमभिणंदणं च सुमइं च ।
पउमप्पहं सुपासं जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥ Translated Sutra: ऋषभ और अजीत को, संभव अभिनन्दन और सुमति को, पद्मप्रभु, सुपार्श्व (और) चन्द्रप्रभु सभी जिन को मैं वंदन करता हूँ। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ चतुर्विंशतिस्तव |
Hindi | 6 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कुंथुं अरं च मल्लिं वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च ।
वंदामि रिट्ठनेमिं पासं तह वद्धमाणं च ॥ Translated Sutra: कुंथु, अर और मल्लि, मुनिसुव्रत और नमि को, अरिष्टनेमि पार्श्व और वर्धमान (उन सभी) जिन को मैं वंदन करता हूँ। (इस तरह से ४ – ५ – ६ तीन गाथा द्वारा ऋषभ आदि चौबीस जिन की वंदना की गई है।) | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ चतुर्विंशतिस्तव |
Hindi | 7 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं मए अभिथुआ विहुय-रयमला पहीण-जरमरणा ।
चउवीसंपि जिणवरा तित्थयरा मे पसीयंतु ॥ Translated Sutra: इस प्रकार मेरे द्वारा स्तवना किये हुए कर्मरूपी कूड़े से मुक्त और विशेष तरह से जिनके जन्म – मरण नष्ट हुए हैं यानि फिर से अवतार न लेनेवाले चौबीस एवं अन्य जिनवर – तीर्थंकर मुझ पर कृपा करे। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ चतुर्विंशतिस्तव |
Hindi | 8 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कित्तिय वंदिय महिया जेए लोगस्स उत्तमा सिद्धा ।
आरुग्ग-बोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥ Translated Sutra: जो (तीर्थंकर) लोगों द्वारा स्तवना किए गए, वंदन किए गए और पूजे गए हैं। लोगों में उत्तमसिद्ध हैं। वो मुझे आरोग्य (रोग का अभाव), बोधि (ज्ञान, दर्शन और चारित्र का लाभ) तथा सर्वोत्कृष्ट समाधि प्रदान करे। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ चतुर्विंशतिस्तव |
Hindi | 9 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवरगंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥ Translated Sutra: चन्द्र से ज्यादा निर्मल, सूरज से ज्यादा प्रकाश करनेवाले और स्वयंभूरमण समुद्र से ज्यादा गम्भीर ऐसे सिद्ध (भगवंत) मुझे सिद्धि (मोक्ष) दो। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ वंदन |
Hindi | 10 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए,
अणुजाणह मे मिउग्गहं निसीहि
अहोकायं काय-संफासं
खमणिज्जो मे किलामो, अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो वइक्कंतो
जत्ता भे जवणिज्जं च भे,
खामेमि खमासमणो देवसियं वइक्कमं आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाणं देवसियाए आसायणाए तित्तीसन्नयराए
जं किंचि मिच्छाए मणदुक्कडाए वयदुक्कडाए कायदुक्कडाए कोहाए माणाए मायाए लोभाए सव्वकालियाए सव्वमिच्छोवयाराए सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ
तस्स खमासमणो पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: (शिष्य कहता है) हे क्षमा (आदि दशविध धर्मयुक्त) श्रमण, (हे गुरुदेव !) आपको मैं इन्द्रिय और मन की विषय विकार के उपघात रहित निर्विकारी और निष्पाप प्राणातिपात आदि पापकारी प्रवृत्ति रहित काया से वंदन करना चाहता हूँ। मुझे आपकी मर्यादित भूमि में (यानि साड़े तीन हाथ अवग्रह रूप – मर्यादा के भीतर) नजदीक आने की (प्रवेश करने | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 12 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि मंगलं अरहंता मंगलं सिद्धा मंगलं साहू मंगलं केवलिपन्नत्तो धम्मो मंगलं। Translated Sutra: मंगल – यानि संसार से मुझे पार उतारे वो या जिससे हित की प्राप्ति हो वो या जो धर्म को दे वो (ऐसे ‘मंगल’ – चार हैं) अरहंत, सिद्ध, साधु और केवलि प्ररूपित धर्म। (यहाँ और आगे के सूत्र – १३, १४ में ‘साधु’ शब्द के अर्थ में आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, गणि आदि सबको समझ लेना। और फिर केवली प्ररूपित धर्म से श्रुत धर्म और चारित्र धर्म | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 13 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि लोगुत्तमा अरहंता लोगुत्तमा सिद्धा लोगुत्तमा साहू लोगुत्तमा केवलिपन्नत्तो धम्मो लोगुत्तमो। Translated Sutra: क्षायोपशमिक आदि भाव रूप ‘भावलोक’ में चार को उत्तम बताया है। अर्हंत, सिद्ध, साधु और केवली प्ररूपित धर्म। [अर्हंतो को सर्व शुभ प्रकृति का उदय है। यानि वो शुभ औदयिक भाव में रहते हैं। इसलिए वो भावलोक में उत्तम हैं। सिद्ध चौदह राजलोक को अन्त में मस्तक पर बिराजमान होते हैं। वो क्षेत्रलोक में उत्तम हैं। साधु श्रुतधर्म | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 14 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि सरणं पवज्जामि अरहंते सरणं पवज्जामि सिद्धे सरणं पवज्जामि साहू सरणं पवज्जामि केवलिपन्नत्तं धम्मं सरणं पवज्जामि। Translated Sutra: शरण – यानि सांसारिक दुःख की अपेक्षा से रक्षण पाने के लिए आश्रय पाने की प्रवृत्ति। ऐसे चार शरण को मैं अंगीकार करता हूँ। मैं अरिहंत – सिद्ध – साधु और केवली भगवंत के बताए धर्म का शरण अंगीकार करता हूँ। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 16 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं इरियावहियाए विराहणाए
गमणागमणे पाणक्कमणे बीयक्कमणे हरियक्कमणे ओसा-उत्तिंग-पणग-दगमट्टी-मक्कडा-संताणासंकमणे
जे मे जीवा विराहिया एगिंदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचिंदिया
अभिहया वत्तिया लेसिया संघाइया संघट्टिया परियाविया किलामिया उद्दविया ठाणाओ ठाणं संकामिया
जीवियाओ ववरोविया
तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: (मैं प्रतिक्रमण करने के यानि पाप से वापस मुड़ने के समान क्रिया करना) चाहता हूँ। ऐर्यापथिकी यानि गमनागमन की क्रिया के दौहरान हुई विराधना से (यह विराधना किस तरह होती है वो बताते हैं – ) आते – जाते, मुझसे किसी त्रसजीव, बीज, हरियाली, झाकल का पानी, चींटी का बिल, सेवाल, कच्चा पानी, कीचड़ या मंकड़े के झाले आदि चंपे गए हो; जो कोई | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 17 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं पगामसिज्जाए निगामसिज्जाए संथारा उव्वट्टणाए परियट्टणाए आउंटण-पसारणाए छप्पइयसंघट्टणाए कूइए कक्कराइए छीए जंभाइए आमोसे ससरक्खामोसे आउल-माउलाए सोअणवत्तियाए इत्थीविप्परिआसियाए दिट्ठिविप्परिआसिआए मणविप्परिआ-सिआए पाणभोयणविप्परिआसिआए
जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: मैं प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ। (लेकिन किसका ?) दिन के प्रकामशय्या गहरी नींद लेने से (यहाँ प्रकाम यानि गहरा या संथारा उत्तरपट्टा से या तीन कपड़े से ज्यादा उपकरण का इस्तमाल करने से, शय्या यानि निद्रा या संथारीया आदि) हररोज ऐसी नींद लेने से, संथारा में बगल बदलने से और पुनः वही बगल बदलने से, शरीर के अवयव सिकुड़ने से | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 18 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि गोचरचरिआए भिक्खायरिआए उग्घाडकवाडउग्घाडणाए साणा-वच्छा-दारसंघट्टणाए मंडी-पाहुडियाए बलि-पाहुडियाए ठवणा-पाहुडियाए संकिए सहसागारे
अणेसणाए [पाणेसणाए] पाणभोयणाए बीयभोयणाए हरियभोयणाए पच्छाकम्मियाए पुरेकम्मियाए अदिट्ठहडाए दगसंसट्ठहडाए रयसंसट्ठहडाए परिसाडणियाए पारिट्ठावणियाए ओहासणभिक्खाए जं उग्गमेणं उप्पायणेसणाए
अपरिसुद्धं परिग्गहियं परिभुत्तं वा जं न परिट्ठवियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। (किसका ?) भिक्षा के लिए गोचरी घूमने में, लगे हुए अतिचार का (किस तरह से?) सांकल लगाए हुए या सामान्य से बन्ध किए दरवाजे – जाली आदि खोलने से कूत्ते – बछड़े या छोटे बच्चे का (केवल तिर्यंच का) संघट्टा – स्पर्श करने से, किसी बरतन आदि में अलग नीकालकर दिया गया आहार लेने से, अन्य धर्मी मूल भाजन में से | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 19 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि चाउक्कालं सज्झायस्स अकरणयाए उभओकालं भंडोवगरणस्स
अप्पडिलेहणाए दुप्पडिलेहणाए अप्पमज्जणाए दुप्पमज्जणाए
अइक्कमे वइक्कमे अइयारे अणायारे
जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। (लेकिन किसका ?) दिन और रात के पहले और अन्तिम दो प्रहर ऐसे चार काल स्वाध्याय न करने के समान अतिचार का, दिन की पहली – अन्तिम पोरिसी रूप उभयकाल से पात्र – उपकरण आदि की प्रतिलेखना (दृष्टि के द्वारा देखना) न की या अविधि से की, सर्वथा प्रमार्जना न की या अविधि से प्रमार्जना की और फिर अतिक्रम – व्यतिक्रम, | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 20 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि एगविहे असंजमे,
पडिक्कमामि दोहिं बंधणेहिं-रागबंधणेणं दोसबंधणेणं,
पडिक्कमामि तिहिं दंडेहिं-मणदंडेणं वयदंडेणं कायदंडेणं,
पडिक्कमामि तिहिं गुत्तीहिं-मणगुत्तीए वइगुत्तीए कायगुत्तीए। Translated Sutra: मैं प्रतिक्रमण करता हूँ (लेकिन किसका ?) एक, दो, तीन आदि भेदभाव के द्वारा बताते हैं। (यहाँ मिच्छामि दुक्कडम् यानि मेरा वो पाप मिथ्या हो वो बात एकविध आदि हरएक दोष के साथ जुड़ना।) अविरति रूप एक असंयम से (अब के सभी पद असंयम का विस्तार समझना) दो बन्धन से राग और द्वेष समान बन्धन से, मन, वचन, काया, दंड़ सेवन से, मन, वचन, काया, गुप्ति | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 22 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि पंचहिं किरियाहिं काइयाए अहिगरणियाए पाउसियाए पारितावणियाए पाणाइवायकिरियाए। Translated Sutra: कायिकी, अधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी, प्राणातिपातिकी उन पाँच में से किसी क्रिया या प्रवृत्ति करने से, शब्द – रूप, गंध, रस, स्पर्श उन पाँच कामगुण से, प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह उन पाँच के विरमण यानि न रूकने से, इर्या, भाषा, एषणा, वस्त्र, पात्र लेना, रखना, मल, मूत्र, कफ, मैल, नाक का मैल को निर्जीव | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 25 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चउद्दसहिं भूयगामेहिं, पन्नरसहिं परमाहम्मिएहिं, सोलसहिं गाहासोलसएहिं, सत्तरसविहे असंजमे, अट्ठारसविहे अबंभे, एगूणवीसाए नायज्झयणेहिं, वीसाए असमाहिट्ठाणेहिं। Translated Sutra: इहलोक – परलोक आदि सात भय स्थान के कारण से, जातिमद – कुलमद आदि आँठ मद का सेवन करने से, वसति – शुद्धि आदि ब्रह्मचर्य की नौ वाड़ का पालन न करने से, क्षमा आदि दशविध धर्म का पालन न करने से, श्रावक की ग्यारह प्रतिमा में अश्रद्धा करने से, बारह तरह की भिक्षु प्रतिमा धारण न करने से या उसके विषय में अश्रद्धा करने से, अर्थाय – | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 26 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगवीसाए-सबलेहिं, बावीसाए-परीसहेहिं, तेवीसाए-सुयगडज्झयणेहिं, चउवीसाए-देवेहिं, पंचवीसाए-भावणाहिं, छव्वीसाए-दसाकप्पववहाराणं उद्देसणकालेहिं, सत्तावीसाए-अणगारगुणेहिं अट्ठावीसइविहे-आयारपकप्पेहिं, एगुणतीसाए-पावसुयपसंगेहिं तीसाए-मोहणीयट्ठाणेहिं एगतीसाए -सिद्धाइगुणेहिं, बत्तीसाए-जोगसंगहेहिं। Translated Sutra: देखो सूत्र २५ | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 27 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेत्तीसाए आसायणाहिं। Translated Sutra: तैंतीस प्रकार की आशातना जो यहाँ सूत्र में ही बताई गई है उसके द्वारा लगे अतिचार, अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, साध्वी का अवर्णवाद से अबहुमान करने से, श्रावक – श्राविका की निंदा आदि से, देव – देवी के लिए कुछ भी बोलने से, आलोक – परलोक के लिए असत् प्ररूपणा से, केवली प्रणित श्रुत या चारित्र धर्म की आशातना के द्वारा, | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 30 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नमो चउव्वीसाए तित्थगराणं उसभादिमहावीरपज्जवसाणाणं। Translated Sutra: ऋषभदेव से महावीर स्वामी तक चौबीस तीर्थंकर परमात्मा को मेरा नमस्कार। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 31 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अनुत्तरं केवलियं पडिपुन्नं नेआउयं संसुद्धं सल्लगत्तणं
सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं निज्जाणमग्गं निव्वाणमग्गं अवितहमविसंधि सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं इत्थं ठिया जीवा
सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति। Translated Sutra: यह निर्ग्रन्थ प्रवचन (जिन आगम या श्रुत) सज्जन को हितकारक, श्रेष्ठ, अद्वितीय, परिपूर्ण, न्याययुक्त, सर्वथा शुद्ध, शल्य को काट डालनेवाला सिद्धि के मार्ग समान, मोक्ष के मुक्तात्माओं के स्थान के और सकल कर्मक्षय समान, निर्वाण के मार्ग समान हैं। सत्य है, पूजायुक्त है, नाशरहित यानि शाश्वत, सर्व दुःख सर्वथा क्षीण हुए | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 33 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जं संभरामि जं च न संभरामि, जं पडिक्कमामि जं च न पडिक्कमामि,
तस्स सव्वस्स देवसियस्स अइयारस्स पडिक्कमामि
समणोहं संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मो अनियाणो दिट्ठिसंपन्नो मायामोस-विवज्जओ। Translated Sutra: (सभी दोष की शुद्धि के लिए कहा है) जो कुछ थोड़ा सा भी मेरी स्मृतिमें है, छद्मस्थपन से स्मृतिमें नहीं है, ज्ञात वस्तु का प्रतिक्रमण किया और सूक्ष्म का प्रतिक्रमण न किया उस अनुसार जो अतिचार लगा हो वो सभी दिन सम्बन्धी अतिचार का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। इस प्रकार अशुभ प्रवृत्ति का त्याग करके मैं तप – संयम रत साधु हूँ। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 34 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अड्ढाइज्जेसु दीवसमुद्देसु पन्नरससु कम्मभूमीसु
जावंत केई साहू
रयहरण-गुच्छ-पडिग्गहधरा पंचमहव्वयधरा अट्ठारस सहस्स सीलंगधरा अक्खयायारचरित्ता
ते सव्वे सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि। Translated Sutra: ढ़ाई द्वीप में यानि दो द्वीप, दो समुद्र और अर्ध पुष्करावर्त द्वीप के लिए जो ५ – भारत, ५ – ऐरावत, ५ – महा विदेह रूप १५ कर्मभूमि में जो किसी साधु रजोहरण, गुच्छा और पात्र आदि को धारण करनेवाले, पाँच महाव्रत में परिणाम की बढ़ती हुई धारावाले, अठ्ठारह हजार शीलांग को धारण करनेवाले, अतिचार से जिसका स्वरूप दुषित नहीं हुआ है | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 35 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खामेमि सव्वजीवे सव्वे जीवा खमंतु मे ।
भित्ती मे सव्वभूएसु वेरं मज्झ न केणई ॥ Translated Sutra: सभी जीव को मैं खमाता हूँ। सर्व जीव मुझे क्षमा करो और सर्व जीव के साथ मेरी मैत्री है। मुझे किसी के साथ वैर नहीं है। उस अनुसार मैंने अतिचार की निन्दा की है आत्मसाक्षी से उस पाप पर्याय की निंदा – गर्हा की है, उस पाप प्रवृत्ति की दुगंछा की है, इस प्रकार से किए गए – हुए पाप व्यापार को सम्यक्, मन, वचन, काया से प्रतिक्रमता | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 36 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवमहं आलोइय निंदिय गरिहिय दुगंछिय सम्मं ।
तिविहेण पडिक्कंतो वंदामि जिणे चउवीसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३५ | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 38 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि ठाइउं काउस्सग्गं
जो मे देवसिओ अइयारो कओ
काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उप्पग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुव्विचिंतिओ अणायारो अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो
नाणे दंसणे चरित्ते सुए सामाइए तिण्हं गुत्तीणं चउण्हं कसायाणं पंचण्हं महव्वयाणं छण्हं जीवनिकायाणं सत्तण्हं पिंडसेणाणं अट्ठण्हं पवयणमाऊणं नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं दसविहेसमणधम्मे समणाणं जोगाणं
जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: मैं कायोत्सर्ग में स्थिर होना चाहता हूँ। मैंने दिन के सम्बन्धी किसी भी अतिचार का सेवन किया हो। (यह अतिचार सेवन किस तरह से ? देखो सूत्र – १५) | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 39 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स
उत्तरीकरणेणं पायच्छित्तकरणेणं विसोहीकरणेणं विसल्लीकरणेणं
पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउसग्गं।
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अन्नत्थ
ऊससिएणं नीससिएणं खासिएणं छीएणं जंभाइएणं उड्डएणं वायनिसग्गेणं भमलीए पित्तमुच्छाए
सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं
एवमाइएहिं आगारेहिं
अभग्गो अविराहिओ हुज्ज मे काउस्सग्गो
जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि
तावकायं ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: वो (ईयापथिकी विराधना के परिणाम से उत्पन्न होनेवाला) पापकर्म का पूरी तरह से नाश करने के लिए, प्रायश्चित्त करने से, विशुद्धि करने के द्वारा, शल्य रहित करने के द्वारा और तद् रूप उत्तरक्रिया करने के लिए यानि आलोचना – प्रतिक्रमण आदि से पुनः संस्करण करने के लिए मैं कायोत्सर्ग में स्थिर होता हूँ। ‘‘अन्नत्थ’’ के | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 40 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लोगस्स उज्जोयगरे धम्मतित्थयरे जिणे ।
अरिहंते कित्तइस्सं चउवीसंपि केवली ॥ Translated Sutra: ‘लोगस्स उज्जोअगरे’ – इन सात गाथा का अर्थ पूर्व सूत्र ३ से ९ अनुसार समझना। सूत्र – ४०–४६ | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 51 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सिद्ध भो पयओ नमो जिणमए नंदी सया संजमे ।
देवं नाग सुवण्णकिन्नरगण स्सब्भूअ भावच्चिए ॥
लोगो जत्थ पइट्ठिओ जगमिणं तेलुक्कमच्चासुरं ।
धम्मो वड्ढउ सासओ विजयओ धम्मुत्तरं वड्ढउ ॥ Translated Sutra: हे मानव ! सिद्ध ऐसे जिनमत को मैं पुनः नमस्कार करता हूँ कि जो देव – नागकुमार – सुवर्णकुमार – किन्नर के समूह से सच्चे भाव से पूजनीय हैं। जिसमें तीन लोक के मानव सुर और असुरादिक स्वरूप के सहारे के समान संसार का वर्णन किया गया है ऐसे संयम पोषक और ज्ञान समृद्ध दर्शन के द्वारा प्रवृत्त होनेवाला शाश्वत धर्म की वृद्धि | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 53 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धाणं बुद्धाणं पारगयाणं परंपरगयाणं ।
लोअग्गमुवगयाणं नमो सया सव्वसिद्धाणं ॥ Translated Sutra: सिद्धिपद को पाए हुए, सर्वज्ञ, फिर से जन्म न लेना पड़े उस तरह से संसार का पार पाए हुए, परम्पर सिद्ध हुए और लोक के अग्र हिस्से को पाए हुए यानि सिद्ध शीला पर बिराजमान ऐसे सर्व सिद्ध भगवंत को सदा नमस्कार हो। | |||||||||
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अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 54 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो देवाण वि देवो जं देवा पंजली नमंसंति ।
तं देवदेवमहियं सिरसा वंदे महावीरं ॥ Translated Sutra: जो देवों के भी देव हैं, जिनको देव अंजलिपूर्वक नमस्कार करते हैं। और जो इन्द्र से भी पूजे गए हैं ऐसे श्री महावीर प्रभु को मैं सिर झुकाकर वंदन करता हूँ। | |||||||||
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अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 55 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इक्कोवि नमुक्कारो जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स ।
संसार सागराओ तारेइ नरं व नारिं वा ॥ Translated Sutra: जिनेश्वर में उत्तम ऐसे श्री महावीर प्रभु को (सर्व सामर्थ्य से) किया गया एक नमस्कार भी नर या नारी को संसार समुद्र से बचाते हैं। | |||||||||
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अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 56 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उज्जिंतसेल सिहरे दिक्खा नाणं निसीहिआ जस्स ।
तं धम्मचक्कवट्टीं अरिट्ठनेमिं नमंसामि ॥ Translated Sutra: जिनके दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण (वो तीनों कल्याणक) उज्जयंत पर्वत के शिखर पर हुए हैं वो धर्म चक्रवर्ती श्री अरिष्टनेमि को मैं – नमस्कार करता हूँ। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 57 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चत्तारि अट्ठदस दो य वंदिआ जिणवरा चउव्वीसं ।
परमट्ठ निट्ठिअट्ठा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥
[इति सुयथय-सिद्धथव गाहाओ] Translated Sutra: चार, आँठ, दश और दो ऐसे वंदन किए गए चौबीस तीर्थंकर और जिन्होंने परमार्थ (मोक्ष) को सम्पूर्ण सिद्ध किया है वैसे सिद्ध मुझे सिद्धि दो। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 58 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो उवट्ठिओमि अब्भिंतरपक्खियं खामेउं
इच्छं खामेमि अब्भिंतर पक्खियं पन्नरस्सण्हं दिवसाणं पन्नरसण्हं राईणं
जंकिंचि अपत्तियं परपत्तियं
भत्ते पाणे विनए वेयावच्चे आलावे संलावे उच्चासणे समासणे अंतरभासाए उवरिभासाए
जंकिंचि मज्झ विनयपरिहीणं सुहुमं वा बायरं वा
तुब्भे जाणह अहं न जाणामि
तस्स मिच्छामि दुक्कडम्। Translated Sutra: हे क्षमाश्रमण ! मैं इच्छा रखता हूँ। (क्या ईच्छा रखता है वो बताते हैं) पाक्षिक के भीतर हुए अतिचार की क्षमा माँगने के लिए उसके सम्बन्धी निवेदन करने के लिए उपस्थित हुआ हूँ। (गुरु कहते हैं खमाओ तब शिष्य बोले) ‘‘ईच्छं’’। मैं पाक्षिक के भीतर हुए अतिचार को खमाता हूँ। पंद्रह दिन और पंद्रह रात में, आहार – पानी में, विनय | |||||||||
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अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 59 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो
पिअं च मे जं मे
हट्ठाणं तुट्ठाणं अप्पायं काणं अभग्गजोगाणं सुसीलाणं सुव्वयाणं सायरिय उवज्झायाणं
नाणेणं दंसणेणं चरित्तेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणाणं
बहुसुभेणं भे दिवसो पोसहो पक्खो वइक्कंतो
अन्नो य भे कल्लालेणं
पज्जुवट्ठिओ
सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि
–तुब्भेहिं समं। Translated Sutra: हे क्षमाश्रमण (पूज्य) ! मैं ईच्छा रखता हूँ। (क्या चाहता है वो बताता है) – और मुझे प्रिय या मंजूर भी है। जो आपका (ज्ञानादि – आराधना पूर्वक पक्ष शुरू हुआ और पूर्ण हुआ वो मुझे प्रिय है) निरोगी ऐसे आपका, चित्त की प्रसन्नतावाले, आतंक से, सर्वथा रहित, अखंड़ संयम व्यापारवाले, अठ्ठारह हजार शीलांग सहित, सुन्दर पंच महाव्रत | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 60 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो
पुव्विं चेइयाइं वंदित्ता नमंसित्ता
तुब्भण्हं पायमूलं विहरमाणेणं
जे केई बहु देवसिया साहुणो दिट्ठा समाणा वा वसमाणा वा गामाणुगामं दूइज्जमाणा वा राइणिया संपुच्छंति ओमराइणिया वंदंति अज्जया वंदंति अज्जियाओ वंदंति सावया वंदंति सावियाओ वंदंति
अहंपि निसल्लो निक्कसाओत्ति-कट्टु
सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि
–अहमवि वंदावेमि चेइयाइं। Translated Sutra: हे क्षमाश्रमण (पूज्य) ! मैं (आपको चैत्यवंदना एवं साधुवंदना) करवाने की ईच्छा रखता हूँ। विहार करने से पहले आपके साथ था तब मैं यह चैत्यवंदना – साधु वंदना श्रीसंघ के बदले में करता हूँ ऐसे अध्यवसाय के साथ श्री जिन प्रतिमा को वंदन नमस्कार करके और अन्यत्र विचरण करते हुए, दूसरे क्षेत्र में जो कोई काफी दिन के पर्यायवाले | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 62 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो
अहमपुव्वाइं कयाइं च मे किइ कम्माइं
आयरमंतरे विणयमंतरे
सेहिए सेहाविओ संगहिओ उवग्गहिओ
सारिओ वारिओ चोइओ पडिचोइओ चिअत्ता मे पडिचोयणा
उव्वट्ठिओहं तुब्भण्हं तवतेयसिरीए
इमाओ चाउरंतसंसार-कंताराओ
साहट्टु नित्थरिस्सामि त्तिकट्टु
सिरसामणसा मत्थएण वंदामि
–नित्थारगपारगाहोह। Translated Sutra: हे क्षमा – श्रमण (पूज्य) ! मैं भावि में भी कृतिकर्म – वंदन करना चाहता हूँ। मैंने भूतकाल में जो वंदन किए उन वंदन में किसी ज्ञानादि आचार बिना किए हो, अविनय से किए हो आपने खुद मुझे वो आचार – विनय से शीखाए हो या उपाध्याय आदि अन्य साधु ने मुझे उसमें कुशल बनाया हो, आपने मुझे शिष्य की तरह सहारा दिया हो, ज्ञानादि – वस्त्रादि | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Hindi | 63 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ समणोवासओ पुव्वामेव मिच्छत्ताओ पडिक्कमइ सम्मत्तं उवसंपज्जइ
नो से कप्पइ अज्जप्पभिई अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थिअदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि वा अरिहंतचेइयाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा
पुव्वि अणालत्तएणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा
तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अनुप्पयाउं वा
नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तीकंतारेणं
से य सम्मत्ते पसत्थ-समत्त-मोहणिय-कम्माणुवेयणोवसमखयसमुत्थे पसमसंवेगाइलिंगे
सुहे आयपरिणामे पन्नत्ते सम्मत्तस्स समणोवासएणं
इमे पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं Translated Sutra: वहाँ (श्रमणोपासकों) – श्रावक पूर्वे यानि श्रावक बनने से पहले मिथ्यात्व छोड़ दे और सम्यक्त्व अंगीकार करे। उनको न कल्पे। (क्या न कल्पे वो बताते हैं) आजपर्यन्त अन्यतीर्थिक के देव, अन्य तीर्थिक की ग्रहण की हुई अरिहंत प्रतिमा को वंदन नमस्कार करना न कल्पे। पहले भले ही ग्रहण न की हो लेकिन अब वो (प्रतिमा) अन्यतीर्थिक | |||||||||
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अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Hindi | 64 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगपाणाइवायं समणोवासओ पच्चक्खाइ
से पाणाइवाए दुविहे पन्नत्तं तं जहा–संकप्पओ अ आरंभओ अ
तत्थ समणोवासओ संकप्पओ जावज्जीवाए पच्चक्खाइ नो आरंभओ
थूलगपाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
बंधे वहे छविच्छेए अइभारे भत्तपाणवुच्छेए। Translated Sutra: श्रावक स्थूल प्राणातिपात का पच्चक्खाण (त्याग) करे। वो प्राणातिपात दो तरह से बताया है। वो इस प्रकार – संकल्प से और आरम्भ से। श्रावक को संकल्प हत्या का जावज्जीव के लिए पच्चक्खाण (त्याग) करे लेकिन आरम्भ हत्या का त्याग न करे। स्थूल प्राणातिपात विरमण के इस पाँच अतिचार समझना वो इस प्रकार – वध, बंध, छविच्छेद, अतिभार | |||||||||
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अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Hindi | 65 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगमुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाइ
से य मुसावाए पंचविहे पन्नत्ते तं जहा–कन्नालीए गवालीए भोमालीए नासावहारे कूडसक्खिज्जे,
थूलगमुसावायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
सहस्सब्भक्खाणे रहस्सब्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसुवएसे कूडलेहकरणे। Translated Sutra: श्रावक स्थूल मृषावाद का पच्चक्खाण (त्याग) करे। वो मृषावाद पाँच तरीके से बताया है। कन्या सम्बन्धी झूठ, गो (चार पाँववाले) सम्बन्धी झूठ, भूमि सम्बन्धी झूठ, न्यासापहार यानि थापण पाना, झूठी गँवाही देना, स्थूल मृषावाद से विरमित श्रमणोपासक यह पाँच अतिचार जानना। वो इस प्रकार – सहसा अभ्याख्यान, रहस्य उद्घाटन, स्वपत्नी | |||||||||
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अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Hindi | 66 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगअदत्तादानं समणोवासओ पच्चक्खाइ
से अदिन्नादाणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्तादत्तादाने अचित्तादत्तादाने अ,
थूलादत्तादानवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
तेनाहडे तक्करपओगे विरुद्धज्जाइंक्कमणे कूडतुल-कूडमाणे तप्पडिरूवगववहारे। Translated Sutra: श्रमणोपासक स्थूल अदत्तादान का पच्चक्खाण करे यानि त्याग करे। वो अदत्तादान दो तरह से बताया है वो इस प्रकार – सचित्त और अचित्त। स्थूल अदत्तादान से विरमित श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानना। चोर या चोरी से लाए हुए माल – सामान का अनुमोदन, तस्कर प्रयोग, विरुद्ध राज्यातिक्रम झूठे तोल – नाप करना। |