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Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ सामायिक

Hindi 1 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र]

Translated Sutra: अरिहंत को नमस्कार हो, सिद्ध को नमस्कार हो, आचार्य को नमस्कार हो, उपाध्याय को नमस्कार हो, लोक में रहे सर्व साधु को नमस्कार हो, इस पाँच (परमेष्ठि) को किया गया नमस्कार सर्व पाप का नाशक है। सर्व मंगल में प्रथम (उत्कृष्ट) मंगल है। अरिहंत शब्द के लिए तीन पाठ हैं। अरहंत, अरिहंत और अरूहंत। यहाँ अरहंत शब्द का अर्थ है – जो
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 12 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि मंगलं अरहंता मंगलं सिद्धा मंगलं साहू मंगलं केवलिपन्नत्तो धम्मो मंगलं।

Translated Sutra: मंगल – यानि संसार से मुझे पार उतारे वो या जिससे हित की प्राप्ति हो वो या जो धर्म को दे वो (ऐसे ‘मंगल’ – चार हैं) अरहंत, सिद्ध, साधु और केवलि प्ररूपित धर्म। (यहाँ और आगे के सूत्र – १३, १४ में ‘साधु’ शब्द के अर्थ में आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, गणि आदि सबको समझ लेना। और फिर केवली प्ररूपित धर्म से श्रुत धर्म और चारित्र धर्म
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 15 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे देवसिओ अइयारो कओ काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुव्विचिंतिओ अणायारो अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो नाणे दंसणे चरित्ते सुए सामाइए तिण्हं गुत्तीणं चउण्हं कसायाणं पंचण्हं महव्वयाणं छण्हं जीवनिकायाणं सत्तण्हं पिंडेसणाणं अट्ठण्हं पवयणमाऊणं नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं दसविहे समणधम्मे समणाणं जोगाणं जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: मैं दिवस सम्बन्धी अतिचार का प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ, यह अतिचार सेवन काया से – मन से – वचन से (किया गया हो), उत्सूत्र भाषण – उन्मार्ग सेवन से (किया हो), अकल्प्य या अकरणीय (प्रवृत्ति से किया हो) दुर्ध्यान या दुष्ट चिन्तवन से (किया हो) अनाचार सेवन से, अनीच्छनीय श्रमण को अनुचित (प्रवृत्ति से किया हो।) ज्ञान, दर्शन, चारित्र,
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 25 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउद्दसहिं भूयगामेहिं, पन्नरसहिं परमाहम्मिएहिं, सोलसहिं गाहासोलसएहिं, सत्तरसविहे असंजमे, अट्ठारसविहे अबंभे, एगूणवीसाए नायज्झयणेहिं, वीसाए असमाहिट्ठाणेहिं।

Translated Sutra: इहलोक – परलोक आदि सात भय स्थान के कारण से, जातिमद – कुलमद आदि आँठ मद का सेवन करने से, वसति – शुद्धि आदि ब्रह्मचर्य की नौ वाड़ का पालन न करने से, क्षमा आदि दशविध धर्म का पालन न करने से, श्रावक की ग्यारह प्रतिमा में अश्रद्धा करने से, बारह तरह की भिक्षु प्रतिमा धारण न करने से या उसके विषय में अश्रद्धा करने से, अर्थाय –
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 27 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेत्तीसाए आसायणाहिं।

Translated Sutra: तैंतीस प्रकार की आशातना जो यहाँ सूत्र में ही बताई गई है उसके द्वारा लगे अतिचार, अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, साध्वी का अवर्णवाद से अबहुमान करने से, श्रावक – श्राविका की निंदा आदि से, देव – देवी के लिए कुछ भी बोलने से, आलोक – परलोक के लिए असत्‌ प्ररूपणा से, केवली प्रणित श्रुत या चारित्र धर्म की आशातना के द्वारा,
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 32 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं धम्मं सद्दहामि पत्तियामि रोएमि फासेमि पालेमि अनुपालेमि तं धम्मं सद्दहंतो पत्तियंतो रोएंतो फासेंतो पालंतो अनुपालंतो तस्स धम्मस्स केवलि पन्नत्तस्स अब्भुट्ठिओमि आराहणाए विरओमि विराहणाए– असंजमं परियाणामि संजमं उवसंपज्जामि अबंभं परियाणामि बंभ उवसंपज्जामि अकप्पं परियाणामि कप्पं उवसंपज्जामि अन्नाणं परियाणामि नाणं उवसंपज्जामि अकिरियं परियाणामि किरियं उवसंपज्जामि मिच्छत्तं परियाणामि सम्मत्तं उवसंपज्जामि अबोहिं परियाणामि बोहिं उवसंपज्जामि अमग्गं परियाणामि मग्गं उवसंपज्जामि

Translated Sutra: उस धर्म की मैं श्रद्धा करता हूँ, प्रीति के रूप से स्वीकार करता हूँ, उस धर्म को ज्यादा सेवन की रुचि – अभिलाषा करता हूँ। उस धर्म की पालना – स्पर्शना करता हूँ। अतिचार से रक्षा करता हूँ। पुनः पुनः रक्षा करता हूँ। उस धर्म की श्रद्धा, प्रीति, रुचि, स्पर्शना, पालन, अनुपालन करते हुए मैं केवलि कथित धर्म की आराधना करने
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 59 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो पिअं च मे जं मे हट्ठाणं तुट्ठाणं अप्पायं काणं अभग्गजोगाणं सुसीलाणं सुव्वयाणं सायरिय उवज्झायाणं नाणेणं दंसणेणं चरित्तेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणाणं बहुसुभेणं भे दिवसो पोसहो पक्खो वइक्कंतो अन्नो य भे कल्लालेणं पज्जुवट्ठिओ सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि –तुब्भेहिं समं।

Translated Sutra: हे क्षमाश्रमण (पूज्य) ! मैं ईच्छा रखता हूँ। (क्या चाहता है वो बताता है) – और मुझे प्रिय या मंजूर भी है। जो आपका (ज्ञानादि – आराधना पूर्वक पक्ष शुरू हुआ और पूर्ण हुआ वो मुझे प्रिय है) निरोगी ऐसे आपका, चित्त की प्रसन्नतावाले, आतंक से, सर्वथा रहित, अखंड़ संयम व्यापारवाले, अठ्ठारह हजार शीलांग सहित, सुन्दर पंच महाव्रत
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 60 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो पुव्विं चेइयाइं वंदित्ता नमंसित्ता तुब्भण्हं पायमूलं विहरमाणेणं जे केई बहु देवसिया साहुणो दिट्ठा समाणा वा वसमाणा वा गामाणुगामं दूइज्जमाणा वा राइणिया संपुच्छंति ओमराइणिया वंदंति अज्जया वंदंति अज्जियाओ वंदंति सावया वंदंति सावियाओ वंदंति अहंपि निसल्लो निक्कसाओत्ति-कट्टु सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि –अहमवि वंदावेमि चेइयाइं।

Translated Sutra: हे क्षमाश्रमण (पूज्य) ! मैं (आपको चैत्यवंदना एवं साधुवंदना) करवाने की ईच्छा रखता हूँ। विहार करने से पहले आपके साथ था तब मैं यह चैत्यवंदना – साधु वंदना श्रीसंघ के बदले में करता हूँ ऐसे अध्यवसाय के साथ श्री जिन प्रतिमा को वंदन नमस्कार करके और अन्यत्र विचरण करते हुए, दूसरे क्षेत्र में जो कोई काफी दिन के पर्यायवाले
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 61 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो उवट्ठिओ मि तुब्भण्हं संतिअं अहाकप्पं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुच्छणं वा [रयहरणं वा] अक्खरं वा पयं वा गाहं वा सिलोगं वा सिलोगद्धं वा अट्ठं वा हेउं वा पसिणं वा वागरणं वा तुब्भेहिं सम्मं चिअत्तेण दिन्नं मए अविणएण पडिच्छिअं तस्स मिच्छामिदुक्कडं –आयरियसंतिअं।

Translated Sutra: हे क्षमा – श्रमण (पूज्य) ! मैं भी उपस्थित होकर मेरा निवेदन करना चाहता हूँ। आपका दिया हुआ यह सब कुछ जो मेरे लिए जरुरी है वस्त्र, पात्र, कँबल, रजोहरण एवं अक्षर, पद, गाथा, श्लोक, अर्थ, हेतु, प्रश्न, व्याकरण आदि स्थविर कल्प को योग्य और बिना माँगे आपने मुझे प्रीतिपूर्वक दिया फिर भी मैंने अविनय से ग्रहण किया वो मेरा पाप
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 79 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पोसहोववासे चउव्विहे पन्नत्ते तं जहा– आहारपोसहे सरीरसक्कारपोसहे बंभचेरपोसहे अव्वावारपोसहे, पोसहोववासस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-सिज्जासंथारए, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-सिज्जासंथारए, अप्पडि-लेहिय-दुप्पडिलेहिय-उच्चारपासवणभूमीओ, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-उच्चारपासवणभूमीओ, पोसहोववासस्स सम्मं अननुपालणया।

Translated Sutra: पौषधोपवास चार तरह से बताया है वो इस प्रकार – आहार पौषध, देह सत्कार पौषध, ब्रह्मचर्य पौषध और अव्यापार पौषध। पौषधोपवास, व्रतधारी श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए, वो इस प्रकार – अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित, शय्या संथारो, अप्रमार्जित, दुष्प्रमार्जित मल – मूत्र त्याग भूमि, पौषधोपवास की सम्यक्‌ परिपालना
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 15 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे देवसिओ अइयारो कओ काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुव्विचिंतिओ अणायारो अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो नाणे दंसणे चरित्ते सुए सामाइए तिण्हं गुत्तीणं चउण्हं कसायाणं पंचण्हं महव्वयाणं छण्हं जीवनिकायाणं सत्तण्हं पिंडेसणाणं अट्ठण्हं पवयणमाऊणं नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं दसविहे समणधम्मे समणाणं जोगाणं जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: હું દિવસ સંબંધી અતિચારોનું પ્રતિક્રમણ કરવાને ઇચ્છું છું. (આ અતિચાર સેવન) – કાયાથી, વચનથી, મનથી કરેલ હોય. ઉત્સૂત્રભાષણ કે ઉન્માર્ગ સેવનથી (હોય). અકલ્પ્ય કે અકરણીયથી (થયેલ હોય). દુર્ધ્યાન કે દુષ્ટ ચિંતવનથી (થયેલ હોય). અનાચારથી, અનિચ્છનીયથી, અશ્રમણપ્રાયોગ્યથી હોય. જ્ઞાન, દર્શન કે ચારિત્ર – શ્રુત અને સામાયિકમાં હોય. ત્રણ
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 24 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि छहिं जीवनिकाएहिं- पुढविकाएणं आउकाएणं तेउकाएणं वाउकाएणं वणस्सइकाएणं तसकाएणं, पडिक्कमामि छहिं लेसाहिं किण्हलेसाए नीललेसाए काउलेसाए तेउलेसाए पम्हलेसाए सुक्कलेसाए, पडिक्कमामि सत्तहिं भयट्ठाणेहिं, अट्ठहिं मयट्ठाणेहिं, नवहिं बंभचेरगुत्तीहिं, दसविहे समण-धम्मे, एक्कारसहिं उवासगपडिमाहिं, बारसहिं भिक्खुपडिमाहिं, तेरसहिं किरियाट्ठाणेहिं।

Translated Sutra: હું છ જીવનિકાય – પૃથ્વીકાય, અપ્‌કાય, તેઉકાય, વાયુકાય, વનસ્પતિકાય અને ત્રસકાયની વિરાધનાથી થયેલ અતિચારો પ્રતિક્રમું છું. હું છ લેશ્યા – કૃષ્ણ લેશ્યા, નીલ લેશ્યા, કાપોત લેશ્યા, તેજોલેશ્યા, પદ્મલેશ્યા અને શુક્લ લેશ્યા નિમિત્તે થયેલ અતિચારોને પ્રતિક્રમું છું. હું પ્રતિક્રમું છું – સાત ભયસ્થાનોથી૦, આઠ મદસ્થાનોથી૦,
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 28 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अरिहंताणं आसायणाए सिद्धाणं आसायणाए आयरियाणं आसायणाए उवज्झायाणं आसायणाए साहूणं आसायणाए साहुणीणं आसायणाए सावयाणं आसायणाए सावियाणं आसायणाए देवाणं आसायणाए देवीणं आसायणाए इहलोगस्स आसायणाए परलोगस्स आसायणाए केवलिपन्नत्तस्सधम्मस्स आसायणाए सदेवमणुयासुरस्सलोगस्स आसायणाए सव्वपाणभूयजीव-सत्ताणं आसायणाए कालस्स आसायणाए सुयस्स आसायणाए सुयदेवयाए आसायणाए वायणायरियस्स आसायणाए।

Translated Sutra: (૧) અરિહંતોની આશાતના, (૨) સિદ્ધોની આશાતના, (૩) આચાર્યની આશાતના, (૪) ઉપાધ્યાયની આશાતના, (૫) સાધુની આશાતના, (૬) સાધ્વીની આશાતના, (૭) શ્રાવકની આશાતના, (૮) શ્રાવિકાની આશાતના, (૯) દેવોની આશાતના, (૧૦) દેવીની આશાતના, (૧૧) આલોક સંબંધી આશાતના, (૧૨) પરલોક સંબંધી આશાતના, (૧૩) કેવલિ પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મની આશાતના, (૧૪) દેવ – મનુષ્ય – અસુર લોક સંબંધી
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 32 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं धम्मं सद्दहामि पत्तियामि रोएमि फासेमि पालेमि अनुपालेमि तं धम्मं सद्दहंतो पत्तियंतो रोएंतो फासेंतो पालंतो अनुपालंतो तस्स धम्मस्स केवलि पन्नत्तस्स अब्भुट्ठिओमि आराहणाए विरओमि विराहणाए– असंजमं परियाणामि संजमं उवसंपज्जामि अबंभं परियाणामि बंभ उवसंपज्जामि अकप्पं परियाणामि कप्पं उवसंपज्जामि अन्नाणं परियाणामि नाणं उवसंपज्जामि अकिरियं परियाणामि किरियं उवसंपज्जामि मिच्छत्तं परियाणामि सम्मत्तं उवसंपज्जामि अबोहिं परियाणामि बोहिं उवसंपज्जामि अमग्गं परियाणामि मग्गं उवसंपज्जामि

Translated Sutra: તે ધર્મની હું શ્રદ્ધા કરું છું. પ્રીતિ કરું છું. રૂચિ કરું છું. પાલન – સ્પર્શના કરું છું. અનુપાલન કરું છું. તે ધર્મની શ્રદ્ધા કરતો, પ્રીતિ કરતો, રૂચિ કરતો, સ્પર્શના કરતો, અનુપાલન કરતો હું – તે ધર્મની આરાધનામાં ઉદ્યત થયો છું, વિરાધનાથી અટકેલો છું (તેના જ માટે) અસંયમને જાણીને તજુ છું અને સંયમનો સ્વીકારું છું. અબ્રહ્મને
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Gujarati 59 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो पिअं च मे जं मे हट्ठाणं तुट्ठाणं अप्पायं काणं अभग्गजोगाणं सुसीलाणं सुव्वयाणं सायरिय उवज्झायाणं नाणेणं दंसणेणं चरित्तेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणाणं बहुसुभेणं भे दिवसो पोसहो पक्खो वइक्कंतो अन्नो य भे कल्लालेणं पज्जुवट्ठिओ सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि –तुब्भेहिं समं।

Translated Sutra: હે ક્ષમાશ્રમણ ! હું ઇચ્છું છું. (શું ઇચ્છે છે ?) મને જે પ્રિય અને માન્ય પણ છે. જે આપનો (જ્ઞાનાદિ આરાધના – પૂર્વક પક્ષ શરૂ થયો અને પૂર્ણ થયો તે મને પ્રિય છે) નિરોગી એવા આપનો, ચિત્તની પ્રસન્નતાવાળા – આતંકથી સર્વથા રહિત, અખંડ સંયમ વ્યાપારવાળા, શીલાંગ સહિત, સુવ્રતી, બીજા પણ આચાર્ય, ઉપાધ્યાય સહિત, જ્ઞાન – દર્શન – ચારિત્ર
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Gujarati 60 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो पुव्विं चेइयाइं वंदित्ता नमंसित्ता तुब्भण्हं पायमूलं विहरमाणेणं जे केई बहु देवसिया साहुणो दिट्ठा समाणा वा वसमाणा वा गामाणुगामं दूइज्जमाणा वा राइणिया संपुच्छंति ओमराइणिया वंदंति अज्जया वंदंति अज्जियाओ वंदंति सावया वंदंति सावियाओ वंदंति अहंपि निसल्लो निक्कसाओत्ति-कट्टु सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि –अहमवि वंदावेमि चेइयाइं।

Translated Sutra: હે ક્ષમાશ્રમણ ! હું ઇચ્છું છું. (આપને ચૈત્ય અને સાધુવંદના કરાવવા) પૂર્વે આપની સાથે હતો ત્યારે હું આ ચૈત્યવંદના, સાધુવંદના શ્રીસંઘ વતી કરું છું એવા અધ્યવસાય સાથે શ્રી જિનપ્રતિમાને વંદન – નમસ્કાર કરીને અને અન્યત્ર વિચરતા, બીજા ક્ષેત્રોમાં જે કોઈ ઘણા દિવસના પર્યાયવાળા, સ્થિરવાસ કરનારા કે નવકલ્પી વિહારવાળા
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 79 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पोसहोववासे चउव्विहे पन्नत्ते तं जहा– आहारपोसहे सरीरसक्कारपोसहे बंभचेरपोसहे अव्वावारपोसहे, पोसहोववासस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-सिज्जासंथारए, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-सिज्जासंथारए, अप्पडि-लेहिय-दुप्पडिलेहिय-उच्चारपासवणभूमीओ, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-उच्चारपासवणभूमीओ, पोसहोववासस्स सम्मं अननुपालणया।

Translated Sutra: પૌષધોપવાસ ચાર ભેદે કહેલ છે, તે આ પ્રમાણે – આહાર પૌષધ, શરીર સત્કાર પૌષધ, બ્રહ્મચર્ય પૌષધ, અવ્યાપાર પૌષધ. પૌષધોપવાસ વ્રતધારી શ્રાવકે આ પાંચ અતિચારો જાણવા જોઈએ. તે આ પ્રમાણે – અપ્રતિલેખિત – દુષ્પ્રતિલેખિત શય્યા સંસ્તારક, અપ્રમાર્જિત – દુષ્પ્રમાર્જિત શય્યા સંસ્તારક. અપ્રતિલેખિત દુષ્પ્રતિલેખિત ઉચ્ચાર પ્રશ્રવણ
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 80 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से अबुज्झमाणे ‘हतोवहते जाइ-मरणं अणुपरियट्टमाणे’। जीवियं पुढो पियं इहमेगेसिं माणवाणं, खेत्त-वत्थ ममायमाणाणं। आरत्तं विरत्तं मणिकुंडलं सह हिरण्णेण, इत्थियाओ परिगिज्झ तत्थेव रत्ता। न एत्थ तवो वा, दमो वा, नियमो वा दिस्सति। संपुण्णं बाले जीविउकामे लालप्पमाणे मूढे विप्परियासुवेइ।

Translated Sutra: वह प्रमादी पुरुष कर्म – सिद्धान्त को नहीं समझाता हुआ शारीरिक दुःखों से हत तथा मानसिक पीड़ाओं से उपहत – पुनः पुनः पीड़ित होता हुआ जन्म – मरण के चक्र में बार – बार भटकता है। जो मनुष्य, क्षेत्र – खुली भूमि तथा वास्तु – भवन – मकान आदि में ममत्व रखता है, उनको यह असंयत जीवन ही प्रिय लगता है। वे रंग – बिरंगे मणि, कुण्डल,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-४ संक्षेप वचन Hindi 150 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवीलए पवीलए निप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं, हिच्चा उवसमं। तम्हा अविमणे वीरे सारए समिए सहिते सया जए। दुरनुचरो मग्गो वीराणं अनियट्टगामीणं। विगिंच मंस-सोणियं। एस पुरिसे दविए वीरे, आयाणिज्जे वियाहिए । जे धुनाइ समुस्सयं, वसित्ता बंभचेरंसि ॥

Translated Sutra: मुनि पूर्व – संयोग का त्याग कर उपशम करके (शरीर का) आपीड़न करे, फिर प्रपीड़न करे और तब निष्पीड़न करे। मुनि सदा अविमना, प्रसन्नमना, स्वारत, समित, सहित और वीर होकर (इन्द्रिय और मन का) संयमन करे। अप्रमत्त होकर जीवन – पर्यन्त संयम – साधन करने वाले, अनिवृत्तगामी मुनियों का मार्ग अत्यन्त दुरनुचर होता है। (संयम और मोक्षमार्ग
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-२ विरत मुनि Hindi 163 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से ‘सुपडिबुद्धं सूवणीयं ति नच्चा’, पुरिसा! परमचक्खू! विपरक्कमा। एतेसु चेव बंभचेरं ति बेमि। से सुयं च मे अज्झत्थियं च मे, ‘बंध-पमोक्खो तुज्झ अज्झत्थेव’। एत्थ विरते अनगारे, दीहरायं तितिक्खए। पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्तो परिव्वए ॥ एयं मोणं सम्मं अणुवासिज्जासि।

Translated Sutra: (परिग्रह महाभय का हेतु है) यह सम्यक्‌ प्रकार से प्रतिबुद्ध है और सुकथित है, यह जानकर परमचक्षुष्मान्‌ पुरुष! तू (परिग्रह से मुक्त होने) पुरुषार्थ कर। (जो परिग्रह से विरत हैं) उनमें ही ब्रह्मचर्य होता है। ऐसा मैं कहता हूँ। मैंने सूना है, मेरी आत्मा में यह अनुभूत हो गया है कि बन्ध और मोक्ष तुम्हारी आत्मा में ही स्थित
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-४ अव्यक्त Hindi 172 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: वह प्रभूतदर्शी, प्रभूत परिज्ञानी, उपशान्त, समिति से युक्त, सहित, सदा यतनाशील या इन्द्रियजयी अप्रमत्त मुनि (उपसर्ग करने) के लिए उद्यत स्त्रीजन को देखकर अपने आपका पर्यालोचन करता है – ‘यह स्त्रीजन मेरा क्या कर लेगा ?’ वह स्त्रियाँ परम आराम हैं। (किन्तु मैं तो सहज आत्मिक – सुख से सुखी हूँ, ये मुझे क्या सुख देंगी?) ग्रामधर्म
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-५ ह्रद उपमा Hindi 173 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–तं जहा। अवि हरए पडिपुण्णे, चिट्ठइ समंसि भोमे । उवसंतरए सारक्खमाणे, से चिट्ठति सोयमज्झगए ॥ से पास पव्वतो गुत्ते, पास लोए महेसिणो, जे य पण्णाणमंता पबुद्धा आरंभोवरया। सम्ममेयंति पासह। कालस्स कंखाए परिव्वयंति

Translated Sutra: मैं कहता हूँ – जैसे एक जलाशय जो परिपूर्ण है, समभूभाग में स्थित है, उसकी रज उपशान्त है, (अनेक जलचर जीवों का) संरक्षण करता हुआ, वह जलाशय स्रोत के मध्य में स्थित है। (ऐसा ही आचार्य होता है)। इस मनुष्यलोक में उन (पूर्वोक्त स्वरूप वाले) सर्वतः गुप्त महर्षियों को तू देख, जो उत्कृष्ट ज्ञानवान्‌ (आगमश्रुत – ज्ञाता) हैं, प्रबुद्ध
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-५ ह्रद उपमा Hindi 174 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वितिगिच्छ-समावन्नेणं अप्पाणेणं णोलभति समाधिं। सिया वेगे अनुगच्छंति, असिया वेगे अनुगच्छंति, अनुगच्छमाणेहिं अननुगच्छमाणे कहं न निव्विज्जे?

Translated Sutra: विचिकित्सा – प्राप्त आत्मा समाधि प्राप्त नहीं कर पाता। कुछ लघुकर्मा सित (बद्ध) आचार्य का अनुगमन करते हैं, कुछ असित (अप्रतिबद्ध) भी विचिकित्सादि रहित होकर (आचार्य का) अनुगमन करते हैं। इन अनुगमन करने वालों के बीच में रहता हुआ अनुगमन न करने वाला कैसे उदासीन नहीं होगा ?
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन Hindi 180 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अभिभूय अदक्खू, अणभिभूते पभू निरालंबणयाए। जे महं अबहिमणे। पवाएणं पवायं जाणेज्जा। सहसम्मइयाए, परवागरणेणं अन्नेसिं वा अंतिए सोच्चा।

Translated Sutra: जिसने परीषह – उपसर्गों – बाधाओं तथा घातिकर्मों को पराजित कर दिया है, उसीने तत्त्व का साक्षात्कार किया है। जो ईससे अभिभूत नहीं होता, वह निरालम्बनता पाने में समर्थ होता है। जो महान्‌ होता है उसका मन (संयम से) बाहर नहीं होता। प्रवाद (सर्वज्ञ तीर्थंकरों के वचन) से प्रवाद (विभिन्न दार्शनिकों या तीर्थिकों के बाद)
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-२ कर्मविधूनन Hindi 194 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आतुरं लोयमायाए, ‘चइत्ता पुव्वसंजोगं’ हिच्चा उवसमं वसित्ता बंभचेरम्मि वसु वा अणुवसु वा जाणित्तु धम्मं अहा तहा, ‘अहेगे तमचाइ कुसीला।’

Translated Sutra: (काम – रोग आदि से) आतुर लोक (समस्त प्राणिजगत) को भलीभाँति जानकर, पूर्व संयोग को छोड़कर, उपशम को प्राप्त कर, ब्रह्मचर्य में बास करके बसे (संयमी साधु) अथवा (सराग साधु) धर्म को यथार्थ रूप से जानकर भी कुछ कुशील व्यक्ति उस धर्म का पालन करने में समर्थ नहीं होते।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-४ गौरवत्रिक विधूनन Hindi 201 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं ते सिस्सा दिया य राओ य, अणुपुव्वेण वाइया ‘तेहिं महावीरेहिं’ पण्णाणमंतेहिं। तेसिंतिए पण्णाणमुवलब्भ हिच्चा उवसमं फारुसियं समादियंति। वसित्ता बंभचेरंसि आणं ‘तं णो’ त्ति मण्णमाणा। अग्घायं तु सोच्चा निसम्म समणुण्णा जीविस्सामो एगे णिक्खम्म ते– असंभवंता विडज्झमाणा, कामेहिं गिद्धा अज्झोववण्णा । समाहिमाघायमझोसयता, सत्थारमेव फरुसं वदंति ॥

Translated Sutra: इस प्रकार वे शिष्य दिन और रात में उन महावीर और प्रज्ञानवान द्वारा क्रमशः प्रशिक्षित किये जाते हैं। उनसे विशुद्ध ज्ञान पाकर उपशमभाव को छोड़कर कुछ शिष्य कठोरता अपनाते हैं। वे ब्रह्मचर्य में निवास करके भी उस आज्ञा को ‘यह (तीर्थंकरकी आज्ञा) नहीं है’, ऐसा मानते हुए (गुरुजनोंके वचनोंकी अवहेलना करते हैं।) कुछ व्यक्ति
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-१ Hindi 404 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धिं संवसमाणस्स–इह खलु गाहावइस्स कुंडले वा, गुणे वा, मणी वा, मोत्तिए वा, ‘हिरण्णे वा’, ‘सुवण्णे वा’, कडगाणि वा, तुडियाणि वा, तिसरगाणि वा, पालंबाणि वा, हारे वा, अद्धहारे वा, एगावली वा, मुत्तावली वा, कणगावली वा, रयनावली वा, तरुणियं वा कुमारिं अलंकिय-विभूसियं पेहाए, अह भिक्खू उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा–एरिसिया वा सा नो वा एरिसिया–इति वा णं बूया, इति वा णं मणं साएज्जा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे [सागारिए?] उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थों के साथ एक जगह निवास करना साधु के लिए कर्मबन्ध का कारण है। जैसे कि उस मकान में गृहस्थ के कुण्डल, करधनी, मणि, मुक्ता, चाँदी, सोना या सोने के कड़े, बाजूबंद, तीनलड़ा – हार, फूलमाला, अठारह लड़ी का हार, नौ लड़ी का हार, एकावली हार, मुक्तावली हार, या कनकावली हार, रत्नावली हार, अथवा वस्त्रा – भूषण आदि से अलंकृत और विभूषित
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 265 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहासुयं वदिस्सामि, जहा से समणे भगवं उट्ठाय । संखाए तंसि हेमंते, अहुणा पव्वइए रीयत्था ॥

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने दीक्षा लेकर जैसे विहारचर्या की, उस विषय में जैसा मैंने सूना है, वैसा मैं तुम्हें बताऊंगा। भगवान ने दीक्षा का अवसर जानकर हेमन्त ऋतु में प्रव्रजित हुए और तत्काल विहार कर गए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Hindi 346 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा समवाएसु वा, पिंड-नियरेसु वा, इंद-महेसु वा, खंद-महेसु वा, रुद्द-महेसु वा, मुगुंद-महेसु वा, भूय -महेसु वा, जक्ख-महेसु वा, नाग-महेसु वा, थूभ-महेसु वा, चेतिय-महेसु वा, रुक्ख-महेसु वा, गिरि-महेसु वा, दरि-महेसु वा, अगड-महेसु वा, तडाग-महेसु वा, दह-महेसु वा, णई-महेसु वा, सर-महेसु वा, सागर-महेसु वा, आगर-महेसु वा–अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विरूवरूवेसु महामहेसु वट्टमाणेसु...... बहवे समण-माहण-अतिहि-किविण-वणीमए एगाओ उक्खाओ परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होते समय वह जाने कि यहाँ मेला, पितृपिण्ड के निमित्त भोज तथा इन्द्र – महोत्सव, स्कन्ध, रुद्र, मुकुन्द, भूत, यक्ष, नाग – महोत्सव तथा स्तूप, चैत्य, वृक्ष, पर्वत, गुफा, कूप, तालाब, हृद, नदी, सरोवर, सागर या आकार सम्बन्धी महोत्सव एवं अन्य इसी प्रकार के विभिन्न
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-९ Hindi 384 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा, ‘समाणे वा, वसमाणे वा’, गामाणुगामं वा दूइज्जमाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, निगमं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, रायहाणिं वा। इमंसि खलु गामंसि वा, नगरंसि वा, खेडंसि वा, कव्वडंसि वा, मडंबंसि वा, पट्टणंसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, निगमंसि वा, आसमंसि वा, सन्निवेसंसि वा, रायहाणिंसि वा– संतेगइयस्स भिक्खुस्स पुरेसंथुया वा, पच्छासंथुया वा परिवसंति, तं जहा–गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा। तहप्पगाराइं

Translated Sutra: एक ही स्थान पर स्थिरवास करनेवाले या ग्रामानुग्राम विचरण करनेवाले साधु या साध्वी किसी ग्राम में यावत्‌ राजधानीमें भिक्षाचर्या के लिए जब गृहस्थों के यहाँ जाने लगे, तब यदि वे जान जाए कि इस गाँव यावत्‌ राजधानी में किसी भिक्षु के पूर्व – परिचित या पश्चात्‌ – परिचित गृहस्थ, गृहस्थपत्नी, उसके पुत्र – पुत्री, पुत्रवधू,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१० Hindi 390 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से एगइओ साहारणं वा पिंडवायं पडिगाहेत्ता, ते साहम्मिए अणापुच्छित्ता जस्स-जस्स इच्छइ तस्स-तस्स खद्धं-खद्धं दलाति। माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करेज्जा। से त्तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, गच्छेत्ता वएज्जा–आउसंतो! समणा! संति मम पुरे -संथुया वा, पच्छा-संथुया वा, तं जहा–आयरिए वा, उवज्झाए वा, पवत्ती वा, थेरे वा, गणी वा, गणहरे वा, गनावच्छेइए वा। अवियाइं एएसिं खद्धं-खद्धं दाहामि। ‘से णेवं’ वयंतं परो वएज्जा–कामं खलु आउसो! अहापज्जत्तं णिसिराहि। जावइयं-जावइयं परो वयइ, तावइयं-तावइयं निसिरेज्जा। सव्वमेयं परो वयइ, सव्वमेयं निसिरेज्जा।

Translated Sutra: कोई भिक्षु साधारण आहार लेकर आता है और उन साधर्मिक साधुओं से बिना पूछे ही जिसे चाहता है, उसे बहुत दे देता है, तो ऐसा करके वह माया – स्थान का स्पर्श करता है। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए। असाधारण आहार प्राप्त होने पर भी आहार को लेकर गुरुजनादि के पास जाए, कहे – ‘‘आयुष्मन्‌ श्रमणों ! यहाँ मेरे पूर्व – परिचित तथा पश्चात्‌
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१० Hindi 391 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से एगइओ मणुण्णं भोयण-जायं पडिगाहेत्ता पंतेण भोयणेण पलिच्छाएति मामेयं दाइयं संतं, दट्ठूणं सयमायए। आयरिए वा, उवज्झाए वा, पवत्ती वा, थेरे वा, गणी वा, गणहरे वा गनावच्छेइए वा। नो खलु मे कस्सइ किंचि वि दायव्वं सिया। माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करेज्जा। से त्तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, गच्छेत्ता पुव्वामेव उत्ताणए हत्थे पडिग्गहं कट्टु– ‘इमं खलु’ इमं खलु त्ति आलोएज्जा, नो किंचि वि निगूहेज्जा। से एगइओ अन्नतरं भोयण-जायं पडिगाहेत्ता भद्दयं-भद्दयं भोच्चा, विवन्नं विरसमाहरइ। माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करेज्जा।

Translated Sutra: यदि कोई भिक्षु भिक्षा में सरस स्वादिष्ट आहार प्राप्त करके उसे नीरस तुच्छ आहार से ढँक कर छिपा देता है, ताकि आचार्य, उपाध्याय, यावत्‌ गणावच्छेदक आदि मेरे प्रिय व श्रेष्ठ आहार को देखकर स्वयं न ले ले, मुझे इसमें से किसी को कुछ भी नहीं देना है। ऐसा करने वाला साधु मायास्थान का स्पर्श करता है। साधु को ऐसा नहीं करना
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 441 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा सेज्जा-संथारग-भूमिं पडिलेहित्तए, नन्नत्थ आयरिएण वा, उवज्झाएण वा, पवत्तीए वा, थेरेण वा, गणिणा वा, गणहरेण वा, गनावच्छेइएण वा, बालेण वा, बुड्ढेण वा, सेहेण वा, गिलाणेण वा, आएसेण वा, अंतेण वा, मज्झेण वा, समेण वा, विसमेण वा, पवाएण वा, णिवाएण वा ‘तओ संजयामेव’ पडिलेहिय-पडिलेहिय पमज्जिय-पमज्जिय बहु-फासुयं सेज्जा-संथारगं संथरेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी शय्या – संस्तारकभूमि की प्रतिलेखना करना चाहे, वह आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, गणी, गणधर, गणावच्छेदक, बालक, वृद्ध, शैक्ष, ग्लान एवं अतिथि साधु के द्वारा स्वीकृत भूमि को छोड़कर उपाश्रय के अन्दर, मध्य स्थान में या सम और विषम स्थान में, अथवा वातयुक्त और निर्वातस्थान में भूमि का बार – बार प्रतिलेखन
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-२ Hindi 460 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा। तेणं पाडिपहिया एवं वदेज्जा–आउसंतो! समणा! केवइए एस गामे वा, नगरे वा, खेडे वा, कव्वडे वा, मडंबे वा, पट्टणे वा, दोणमुहे वा, आगरे वा, निगमे वा, आसमे वा, सन्निवेसे वा, रायहाणी वा? केवइया एत्थ आसा हत्थी गाम-पिंडोलगा मणुस्सा परिवसंति? से बहुभत्ते बहुउदए बहुजणे बहुजवसे? से अप्पभत्ते अप्पुदए अप्पजणे अप्पजवसे? ‘एयप्पगाराणि पसिणाणि पुट्ठो नो आइक्खेज्जा, एयप्पगाराणि पसिणाणि णोपुच्छेज्जा’। एवं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि।

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में सामने से आते हुए पथिक मिले और वे साधु से पूछे ‘‘यह गाँव कितना बड़ा या कैसा है ? यावत्‌ यह राजधानी कैसी है ? यहाँ पर कितने घोड़े, हाथी तथा भिखारी हैं, कितने मनुष्य निवास करते हैं ? क्या इस गाँव यावत्‌ राजधानी में प्रचुर आहार, पानी, मनुष्य एवं धान्य हैं, अथवा थोड़े
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-३ Hindi 461 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोर-णाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा, कूडागाराणि वा, पासादाणि वा, नूम-गिहाणि वा, रुक्ख-गिहाणि वा, पव्वय-गिहाणि वा, रुक्खं वा चेइय-कडं, थूभं वा चेइय-कडं, आएसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ वा, पवाओ वा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-सालाओ वा, जाण-गिहाणि वा, जाण-सालाओ वा, सुहा-कम्मंताणि वा, दब्भ-कम्मंताणि वा, वद्ध-कम्मंताणि वा, वक्क-कम्मंताणि वा, वन-कम्मंताणि वा, इंगाल-कम्मंताणि वा, कट्ठ-कम्मंताणि वा, सुसाण-कम्मंताणि वा, संति-कम्मंताणि वा, गिरि-कम्मंताणि वा, कंदर-कम्मंताणि

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भिक्षु या भिक्षुणी मार्ग में आने वाले उन्नत भू – भाग या टेकरे, खाइयाँ, नगर को चारों ओर से वेष्टित करने वाली नहरें, किले, नगर के मुख्य द्वार, अर्गला, अर्गलापाशक, गड्ढे, गुफाएं या भूगर्भ मार्ग तथा कूटागार, प्रासाद, भूमिगृह, वृक्षों को काटछांट कर बनाए हुए गृह, पर्वतीय गुफा, वृक्ष के नीचे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-३ Hindi 462 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आयरिय-अवज्झाएहिं सद्धिं गामाणुगामं दूइज्जमाणे नो आयरिय-उवज्झायस्स हत्थेण हत्थं, पाएण पायं, काएण कायं आसाएज्जा। से अणासायमाणे तओ संजयामेव आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धिं गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धिं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वएज्जा–आउसंतो! समणा! के तुब्भे? कओ वा एह? कहिं वा गच्छिहिह? जे तत्थ आयरिए वा उवज्झाए वा से भासेज्ज वा, वियागरेज्जा वा। आयरिय-उवज्झायस्स भासमाणस्स वा, वियागरेमाणस्स वा नो अंतराभासं करेज्जा, तओ संजयामेव आहारातिणिए दूइज्जेज्जा। से भिक्खू

Translated Sutra: आचार्य और उपाध्याय के साथ ग्रामानुग्राम विहार करने वाले साधु अपने हाथ से उनके हाथ का, पैर से उनके पैर का तथा अपने शरीर से उनके शरीर का स्पर्श न करे। उनकी आशातना न करता हुआ साधु ईर्यासमिति पूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे। आचार्य और उपाध्याय के साथ ग्रामानुग्राम विहार करने वाले साधु को मार्ग में यदि सामने से
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Hindi 480 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेयाइं आयतणाइं उवाइकम्म, अह भिक्खू जाणेज्जा चउहिं पडिमाहिं वत्थं एसित्तए। तत्थ खलु इमा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्दिसिय-उद्दिसिय वत्थं जाएज्जा, तं जहा–जंगियं वा, भंगियं वा, साणयं वा, पोत्तयं वा, खोमियं वा, तूलकडं वा–तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–पढमा पडिमा। अहावरा दोच्चा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पेहाए वत्थं जाएज्जा, तं जहा–गाहावइं वा, गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिनिं वा, गाहावइ-पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्हं वा, धाइं वा, दासं वा, दासिं वा, कम्मकरं वा, कम्मकरिं वा। से पुव्वामेव

Translated Sutra: इन दोषों के आयतनों को छोड़कर चार प्रतिमाओं से वस्त्रैषणा करनी चाहिए। पहली प्रतिमा – वह साधु या साध्वी मन में पहले संकल्प किये हुए वस्त्र की याचना करे, जैसे कि – जांगमिक, भांगिक, सानज, पोत्रक, क्षौमिक या तूलनिर्मित वस्त्र, उस प्रकार के वस्त्र की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ स्वयं दे तो प्रासुक और एषणीय होने पर ग्रहण
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 510 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए-सुसमसुसमाए समाए वीइक्कंताए, सुसमाए समाए वीतिक्कंताए, सुसमदुसमाए समाए वीतिक्कंताए, दुसमसुसमाए समाए बहु वीतिक्कंताए–पण्णहत्तरीए वासेहिं, मासेहिं य अद्धणवमेहिं सेसेहिं, जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे, अट्ठमे पक्खे–आसाढसुद्धे, तस्सणं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, महावि-जय-सिद्धत्थ-पुप्फुत्तर-पवर-पुंडरीय-दिसासोवत्थिय-वद्धमाणाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाइं आउयं पालइत्ता आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता इह खलु जबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, दाहिणड्ढभरहे दाहिणमाहणकुंडपुर-सन्निवेसंसि

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने इस अवसर्पिणी काल के सुषम – सुषम नामक आरक, सुषम आरक और सुषम – दुषम आरक के व्यतीत होने पर तथा दुषम – सुषम नामक आरक के अधिकांश व्यतीत हो जाने पर और जब केवल ७५ वर्ष साढ़े आठ माह शेष रह गए थे, तब ग्रीष्म ऋतु के चौथे मास, आठवे पक्ष, आषाढ़ शुक्ला षष्ठी की रात्रि को; उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 517 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वेसमणकुंडलधरा, देवा लोगंतिया महिड्ढीया । बोहिंति य तित्थयरं, पण्णरससु कम्म-भूमिसु ॥

Translated Sutra: कुण्डलधारी वैश्रमणदेव और महान्‌ ऋद्धिसम्पन्न लोकान्तिक देव पंद्रह कर्मभूमियों में (होने वाले) तीर्थंकर भगवान को प्रतिबोधित करते हैं।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 520 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अभिणिक्खमनाभिप्पायं जानेत्ता भवनवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिणो देवा य देवीओ य सएहि-सएहिं रूवेहिं, सएहिं-सएहिं नेवत्थेहिं, सएहिं-सएहिं चिंधेहिं, सव्विड्ढीए सव्वजुतीए सव्वबल-समुदएणं सयाइं-सयाइं जाण विमाणाइं दुरुहंति, सयाइं-सयाइं जाणविमाणाइं दुरुहित्ता अहाबादराइं पोग्गलाइं परिसाडेति, अहा-बादराइं पोग्गलाइं परिसाडेत्ता अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइंति, अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइत्ता उड्ढं उप्पयंति, उड्ढं उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए सिग्घाए चवलाए तुरियाए दिव्वाए देवगईए अहेणं ओवयमाणा-ओवयमाणा तिरिएणं असंखेज्जाइं दीवसमुद्दाइं

Translated Sutra: तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर के अभिनिष्क्रमण के अभिप्राय को जानकर भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव एवं देवियाँ अपने – अपने रूप से, अपने – अपने वस्त्रों में और अपने – अपने चिह्नों से युक्त होकर तथा अपनी – अपनी समस्त ऋद्धि, द्युति और समस्त बल – समुदाय सहित अपने – अपने यान – विमानों पर चढ़ते हैं फिर सब
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 532 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे–मग्गसिरबहुले, तस्स णं मग्गसिर बहुलस्स दसमीपक्खेणं, सुव्वएणं दिवसेणं, विजएणं मुहुत्तेणं, ‘हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं’ जोगोवगएणं, पाईणगामिणीए छायाए, वियत्ताए पोरिसीए, छट्ठेण भत्तेणं अपाणएणं, एगसाडगमायाए, चंदप्पहाए सिवियाए सहस्सवाहिणीए, सदेवमणुयासुराए परिसाए समण्णिज्जमाणे-समण्णिज्जमाणे उत्तरखत्तिय कुंडपुर-संणिवेसस्स मज्झंमज्झेणं णिगच्छइ, णिगच्छित्ता जेणेव नायसंडे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ईसिंरयणिप्पमाणं अच्छुप्पेणं भूमिभागेणं सणियं-सणियं चंदप्पभं सिवियं सहस्सवाहिणिं ठवेइ,

Translated Sutra: उस काल और उस समय में, जबकि हेमन्त ऋतु का प्रथम मास, प्रथम पक्ष अर्थात्‌ मार्गशीर्ष मास का कृष्णपक्ष की दशमी तिथि के सुव्रत के विजय मुहूर्त्त में, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर, पूर्व गामिनी छाया होने पर, द्वीतिय पौरुषी प्रहर के बीतने पर, निर्जल षष्ठभक्त – प्रत्याख्यान के साथ एकमात्र
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 535 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सामाइयं खाओवसमियं चरित्तं पडिवन्नस्स मणपज्जवनाणे नामं नाणे समुप्पन्ने–अड्ढाइज्जेहिं दीवेहिं दोहि य समुद्देहिं सण्णीणं पंचेंदियाणं पज्जत्ताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाइं भावाइं जाणेइ। तओ णं समणे भगवं महावीरे पव्वइते समाणे मित्त-नाति-सयण-संबंधिवग्गं पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ– ‘बारसवासाइं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा, माणुसा वा, तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे ‘अनाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविहमणवयणकायगुत्ते’ सम्मं सहिस्सामि खमिस्सामि

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर को क्षायोपशमिक सामायिकचारित्र ग्रहण करते ही मनःपर्यवज्ञान समुत्पन्न हुआ; वे अढ़ाई द्वीप और दो समुद्रों में स्थित पर्याप्त संज्ञीपंचेन्द्रिय, व्यक्त मन वाले जीवों के मनोगत भावों को स्पष्ट जानने लगे। उधर श्रमण भगवान महावीर ने प्रव्रजित होते ही अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन – सम्बन्धी वर्ग
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 539 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरं चउत्थं भंते! महव्वयं–पच्चक्खामि सव्वं मेहुणं–से दिव्वं वा, माणुसं वा, तिरिक्खजोणियं वा, नेव सयं मेहुणं गच्छेज्जा, नेवन्नेहिं मेहुणं गच्छावेज्जा, अन्नंपि मेहुणं गच्छंतं न समणुज्जाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं–मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा–नो निग्गंथे अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहइत्तए सिया। केवली बूया–निग्गंथे णं अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवली-पण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। नो निग्गंथे अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ भगवन्‌ ! मैं चतुर्थ महाव्रत स्वीकार करता हूँ, समस्त प्रकार के मैथुन – विषय सेवन का प्रत्या – ख्यान करता हूँ। देव – सम्बन्धी, मनुष्य – सम्बन्धी और तिर्यंच – सम्बन्धी मैथुन का स्वयं सेवन नहीं करूँगा, न दूसरे से मैथुन – सेवन कराऊंगा और न ही मैथुनसेवन करने वाले का अनुमोदन करूँगा। शेष समस्त वर्णन अदत्तादान
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-४ संक्षेप वचन Gujarati 150 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवीलए पवीलए निप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं, हिच्चा उवसमं। तम्हा अविमणे वीरे सारए समिए सहिते सया जए। दुरनुचरो मग्गो वीराणं अनियट्टगामीणं। विगिंच मंस-सोणियं। एस पुरिसे दविए वीरे, आयाणिज्जे वियाहिए । जे धुनाइ समुस्सयं, वसित्ता बंभचेरंसि ॥

Translated Sutra: મુનિ પૂર્વ સંયોગનો ત્યાગ કરી ઉપશમને પ્રાપ્ત કરી પહેલા અલ્પ અને પછી વિશેષ પ્રકારે દેહનું દમન કરે. છેવટે સંપૂર્ણ રૂપે દેહનું દમન કરે. આ રીતે તપ – આચરણ કરનાર મુનિ સદા સ્વસ્થચિત્ત રહે, તપ કરતા કદી ખેદિત ન થાય, પ્રસન્ન રહે, આત્મભાવમાં લીન રહે, સ્વમાં રમણ કરે, સમિતિ યુક્ત થઈ, યતનાપૂર્વક ક્રિયા કરે. અપ્રમત્ત બની સંયમ
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-२ विरत मुनि Gujarati 163 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से ‘सुपडिबुद्धं सूवणीयं ति नच्चा’, पुरिसा! परमचक्खू! विपरक्कमा। एतेसु चेव बंभचेरं ति बेमि। से सुयं च मे अज्झत्थियं च मे, ‘बंध-पमोक्खो तुज्झ अज्झत्थेव’। एत्थ विरते अनगारे, दीहरायं तितिक्खए। पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्तो परिव्वए ॥ एयं मोणं सम्मं अणुवासिज्जासि।

Translated Sutra: તે પરિગ્રહ છોડનારને જ સારી રીતે જ્ઞાનાદિ ગુણોની પ્રાપ્તી છે, તેમ જાણીને, હે માનવ! તમે સમ્યગ દૃષ્ટિને ધારણ કરીને સંયમ કે કર્મક્ષયમાં પરાક્રમ કરો. પરિગ્રહ થી વિરત થનાર અને સમ્યકદૃષ્ટિવાળા સાધકને જ પરમાર્થથી બ્રહ્મચર્ય છે. તેમ હું કહું છું. મેં સાંભળ્યું છે, અનુભવ્યું છે કે બંધનથી છૂટકારો પોતાના આત્માથી જ થાય
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-५ ह्रद उपमा Gujarati 174 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वितिगिच्छ-समावन्नेणं अप्पाणेणं णोलभति समाधिं। सिया वेगे अनुगच्छंति, असिया वेगे अनुगच्छंति, अनुगच्छमाणेहिं अननुगच्छमाणे कहं न निव्विज्जे?

Translated Sutra: વિચિકિત્સા અર્થાત્ ‘ફળ મળશે કે નહી એવી શંકા રાખનાર’ આત્માને સમાધિ પ્રાપ્ત થતી નથી. કોઈ ગૃહસ્થ આચાર્યના વચનને સમજે છે, કોઈ સાધુ પણ આચાર્યના વચનને સમજે છે. પણ સમજનારની સાથે રહીને કોઈ સાધુ ન સમજી શકે તો તેને અવશ્ય ખેદ થાય છે. પરંતુ તે સમયે જે સાધુ સમજે છે તેને તેને કહેવું કે –
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-२ कर्मविधूनन Gujarati 194 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आतुरं लोयमायाए, ‘चइत्ता पुव्वसंजोगं’ हिच्चा उवसमं वसित्ता बंभचेरम्मि वसु वा अणुवसु वा जाणित्तु धम्मं अहा तहा, ‘अहेगे तमचाइ कुसीला।’

Translated Sutra: કેટલાક વસુ અર્થાત્ સાધુ કે અનુવસુ અર્થાત્ શ્રાવક આ સંસારને દુઃખમય જાણી, માતા – પિતા – સ્વજન આદિ પૂર્વસંયોગોને છોડીને, ઉપશમ ભાવ ધારણ કરી, બ્રહ્મચર્ય ધારણ કરીને ધર્મને યથાર્થરૂપે જાણીને પણ કેટલાક ક્રમશ: પરિષહોથી ગભરાઈને શીલરહિત થઇ ધર્મપાલન કરતા નથી.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-३ उपकरण शरीर विधूनन Gujarati 200 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विरयं भिक्खुं रीयंतं, चिररातोसियं, अरती तत्थ किं विधारए? संधेमाणे समुट्ठिए। जहा से दीवे असंदीणे, एवं से धम्मे ‘आयरिय-पदेसिए’। ‘ते अणवकंखमाणा’ अणतिवाएमाणा दइया मेहाविनो पंडिया। एवं तेसिं भगवओ अणुट्ठाणे जहा से दिया पोए। एवं ते सिस्सा दिया य राओ य, अणुपुव्वेण वाइय।

Translated Sutra: જે અસંયમથી નિવૃત્ત છે, અપ્રશસ્ત ભાવોથી નીકળી પ્રશસ્ત ભાવમાં રમણ કરનાર છે, દીર્ઘકાળથી સંયમનું પાલન કરી રહ્યા છે. એવા સંયમી મુનિને અરતિ વિચલિત કરી શકાતી નથી. એવા સાવધાન મુનિ શુભ પરિણામોની શ્રેણી ચઢતા જાય છે. જેમ પાણીથી ક્યારેય ન ઢંકાતા દ્વીપ યાત્રિકોનું આશ્વાસન સ્થાન છે, તેમ તીર્થંકર ઉપદિષ્ટ ધર્મ મુનિને આશ્રય
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-४ गौरवत्रिक विधूनन Gujarati 203 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नियट्टमाणा वेगे आयार-गोयरमाइक्खंति नाणभट्ठा दंसणलूसिणो।

Translated Sutra: કેટલાક સંયમથી નિવૃત્ત હોવા છતાં સંયમના આચાર – ગોચર બરાબર કહે છે. કોઈ કોઈ જ્ઞાનથી ભ્રષ્ટ સમ્યગ્‌દર્શનથી ભ્રષ્ટ પુરુષ વિધ્વંસક થઈને આચાર્ય આદિને નમસ્કાર કરવા છતાં પણ પોતાના સંયમી જીવનને દૂષિત કરે છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१० Gujarati 390 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से एगइओ साहारणं वा पिंडवायं पडिगाहेत्ता, ते साहम्मिए अणापुच्छित्ता जस्स-जस्स इच्छइ तस्स-तस्स खद्धं-खद्धं दलाति। माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करेज्जा। से त्तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, गच्छेत्ता वएज्जा–आउसंतो! समणा! संति मम पुरे -संथुया वा, पच्छा-संथुया वा, तं जहा–आयरिए वा, उवज्झाए वा, पवत्ती वा, थेरे वा, गणी वा, गणहरे वा, गनावच्छेइए वा। अवियाइं एएसिं खद्धं-खद्धं दाहामि। ‘से णेवं’ वयंतं परो वएज्जा–कामं खलु आउसो! अहापज्जत्तं णिसिराहि। जावइयं-जावइयं परो वयइ, तावइयं-तावइयं निसिरेज्जा। सव्वमेयं परो वयइ, सव्वमेयं निसिरेज्जा।

Translated Sutra: કોઈ સાધુ એકલો બધા સાધુ માટે સાધારણ આહાર લાવેલ હોય અને તે સાધર્મિકને પૂછ્યા વિના જેને – જેને ઇચ્છે તેને – તેને ઘણું ઘણું આપે તો માયાસ્થાનને સ્પર્શે છે. તેણે એમ ન કરવું જોઈએ. તે આહાર લઈને સાધુ ત્યાં જઈને એમ કહે કે, હે આયુષ્માન્‌ શ્રમણો ! અહીં મારા પૂર્વ કે પશ્ચાત્‌ પરિચિત છે. જેમ કે – આચાર્ય, ઉપાધ્યાય, પ્રવર્તક, સ્થવિર,
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