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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Hindi | 172 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तं दोवइं रायवरकण्णं अंतेउरियाओ सव्वालंकारविभूसियं करेंति। किं ते? वरपायपत्तनेउरा जाव चेडिया-चक्कवाल-महयरग-विंद-परिक्खित्ता अंतेउराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ।
तए णं से धट्ठज्जुणे कुमारे दोवईए रायवरकन्नाए सारत्थं करेइ।
तए णं सा दोवई रायवरकन्ना कंपिल्लपुरं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सयंवरामंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं सयंवरामडबं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता Translated Sutra: तत्पश्चात् अन्तःपुर की स्त्रियों ने राजवरकन्या द्रौपदी को सब अलंकारों से विभूषित किया। किस प्रकार ? पैरों में श्रेष्ठ नूपुर पहनाए यावत् वह दासियों के समूह से परिवृत्त होकर अन्तःपुर से बाहर नीकलकर जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी और जहाँ चार घंटाओं वाला अश्वरथ था, वहाँ आई। आकर क्रीड़ा करने वाली धाय और लेखिका | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Gujarati | 172 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तं दोवइं रायवरकण्णं अंतेउरियाओ सव्वालंकारविभूसियं करेंति। किं ते? वरपायपत्तनेउरा जाव चेडिया-चक्कवाल-महयरग-विंद-परिक्खित्ता अंतेउराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ।
तए णं से धट्ठज्जुणे कुमारे दोवईए रायवरकन्नाए सारत्थं करेइ।
तए णं सा दोवई रायवरकन्ना कंपिल्लपुरं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सयंवरामंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं सयंवरामडबं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૭૨. ત્યારપછી ઉત્તમ રાજકન્યા દ્રૌપદીને અંતઃપુરની સ્ત્રીઓએ સર્વાલંકારથી વિભૂષિત કરે છે. તે શું ? પગમાં શ્રેષ્ઠ ઝાંઝર પહેરાવ્યા યાવત્ દાસીઓના સમૂહથી પરીવરીને, બધા અંગોમાં વિભિન્ન આભૂષણ પહેરેલી તેણી અંતઃપુરથી બહાર નીકળી. બાહ્ય ઉપસ્થાનશાળામાં ચાતુર્ઘંટ અશ્વરથ પાસે આવી. ક્રીડા કરાવનારી અને લેખિકા | |||||||||
Jain Dharma Sar | जैन धर्म सार | Prakrit |
18. आम्नाय अधिकार |
2. देश-कालानुसार जैनधर्म में परिवर्तन | Hindi | 415 | View Detail | ||
Mool Sutra: बावीसं तित्थयरा, सामाइयसंजमं उवदिसंति।
छेदुवट्ठावणियं पुण, भयवं उसहो महावीरो ।। Translated Sutra: दिगम्बर आम्नाय के अनुसार मध्यवर्ती २२ तीर्थंकरों ने सामायिक संयम का उपदेश दिया है। परन्तु प्रथम व अन्तिम तीर्थंकर ऋषभ व महावीर ने छेदोपस्थापना संयम पर जोर दिया है। | |||||||||
Jain Dharma Sar | जैन धर्म सार | Sanskrit |
18. आम्नाय अधिकार |
2. देश-कालानुसार जैनधर्म में परिवर्तन | Hindi | 415 | View Detail | ||
Mool Sutra: द्वाविंशतितीर्थकराः, सामायिकसंयमं उपदिशंति।
छेदोपस्थापनं पुनः, भगवान् ऋषभश्च वीरश्च ।। Translated Sutra: दिगम्बर आम्नाय के अनुसार मध्यवर्ती २२ तीर्थंकरों ने सामायिक संयम का उपदेश दिया है। परन्तु प्रथम व अन्तिम तीर्थंकर ऋषभ व महावीर ने छेदोपस्थापना संयम पर जोर दिया है। | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 156 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] निव्वेण व मालेण व वाउपवेसेण अहवसढयाए ।
गमनं च कहणआगम दूरब्भासे विही इणमो ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Gujarati | 156 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] निव्वेण व मालेण व वाउपवेसेण अहवसढयाए ।
गमनं च कहणआगम दूरब्भासे विही इणमो ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-९ धर्म |
Gujarati | 471 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अगिद्धे सद्दफासेसु आरंभेसु अनिस्सिए ।
‘सव्वं तं’ समयातीतं जमेतं लवियं बहु ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૭૧. સાધુ શબ્દ અને સ્પર્શમાં આસક્ત ન રહે. આરંભમાં અનિશ્રિત રહે, આ અધ્યયનના આરંભથી જે વાતોનો નિષેધ કર્યો છે, તે સર્વે જિનઆગમ વિરુદ્ધ છે, માટે તેનો નિષેધ કરેલ છે. સૂત્ર– ૪૭૨. વિદ્વાન મુનિ અતિમાન, માયા અને સર્વે ગારવોનો ત્યાગ કરી કેવળ નિર્વાણની જ અભિલાષા કરે – સૂત્ર સંદર્ભ– ૪૭૧, ૪૭૨ |