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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-४ अध्ययन-१६ विमुक्ति |
Hindi | 542 | Gatha | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहागअं भिक्खुमणंतसंजयं, अणेलिसं विण्णु चरंतमेसणं ।
तुदंति वायाहिं अभिद्दवं णरा, सरेहिं संगामगयं व कुंजरं ॥ Translated Sutra: उस तथाभूत अनन्त (एकेन्द्रियादि जीवों) के प्रति सम्यक् यतनावान अनुपसंयमी आगमज्ञ विद्वान एवं आगमानुसार एषणा करने वाले भिक्षु को देखकर मिथ्यादृष्टि असभ्य वचनों के तथा पथ्थर आदि प्रहार से उसी तरह व्यथित कर देते हैं, जिस तरह संग्राम में वीर योद्धा, शत्रु के हाथी को बाणों की वर्षा से व्यथित कर देता है। | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-४ अध्ययन-१६ विमुक्ति |
Gujarati | 542 | Gatha | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहागअं भिक्खुमणंतसंजयं, अणेलिसं विण्णु चरंतमेसणं ।
तुदंति वायाहिं अभिद्दवं णरा, सरेहिं संगामगयं व कुंजरं ॥ Translated Sutra: જેમ રણભૂમિમાં અગ્રેસર હાથીને શત્રુસેના પીડે છે તેમ ગૃહ – બંધન અને આરંભ પરિગ્રહનો ત્યાગી, સંયમવાન, અનુપમજ્ઞાનવાન તથા નિર્દોષ આહારાદિની એષણા કરનાર મુનિને કોઈકોઈ મિથ્યાદૃષ્ટિ અનાર્ય અસભ્ય વચન કહીને પીડા પહોંચાડે છે, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-९ देव | Hindi | 555 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भवियदव्वदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्ख-मनुस्स-देवेहिंतो वि उववज्जंति। भेदो जहा वक्कंतीए सव्वेसु उववाएयव्वा जाव अनुत्तरोववाइय त्ति, नवरं– असंखेज्जवासाउय-अकम्मभूमगअंतर-दीवगसव्वट्ठसिद्धवज्जं जाव अपराजियदेवेहिंतो वि उववज्जंति।
नरदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो–पुच्छा।
गोयमा! नेरइएहिंतो उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएहिंतो, नो मनुस्सेहिंतो, देवेहिंतो वि
उववज्जंति।
जइ नेरइएहिंतो उववज्जंति–किं रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमा-पुढवि-नेरइएहिंतो Translated Sutra: भगवन् ! भव्यद्रव्यदेव किनमें से (आकर) उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में से उत्पन्न होते हैं, या तिर्यञ्च, मनुष्य अथवा देवों में से (आकर) उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों में से (आकर) उत्पन्न होते हैं, तथा तिर्यञ्च, मनुष्य या देवों में से भी उत्पन्न होते हैं। व्युत्क्रान्ति पद अनुसार भेद कहना चाहिए। इन | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-९ देव | Gujarati | 555 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भवियदव्वदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्ख-मनुस्स-देवेहिंतो वि उववज्जंति। भेदो जहा वक्कंतीए सव्वेसु उववाएयव्वा जाव अनुत्तरोववाइय त्ति, नवरं– असंखेज्जवासाउय-अकम्मभूमगअंतर-दीवगसव्वट्ठसिद्धवज्जं जाव अपराजियदेवेहिंतो वि उववज्जंति।
नरदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो–पुच्छा।
गोयमा! नेरइएहिंतो उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएहिंतो, नो मनुस्सेहिंतो, देवेहिंतो वि
उववज्जंति।
जइ नेरइएहिंतो उववज्जंति–किं रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमा-पुढवि-नेरइएहिंतो Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૫૪ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 56 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स भरहस्स रन्नो अन्नया कयाइ आउहघरसालाए दिव्वे चक्करयणे समुप्पज्जित्था।
तए णं से आउहघरिए भरहस्स रन्नो आउहघरसालाए दिव्वं चक्करयणं समुप्पन्नं पासाइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणामेव से दिव्वे चक्करयणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं० कट्टु चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणामेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणामेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं Translated Sutra: एक दिन राजा भरत की आयुधशाला में दिव्य चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। आयुधशाला के अधिकारी ने देखा। वह हर्षित एवं परितुष्ट हुआ, चित्त में आनन्द तथा प्रसन्नता का अनुभव करता हुआ अत्यन्त सौम्य मानसिक भाव और हर्षातिरेक से विकसित हृदय हो उठा। दिव्य चक्र – रत्न को तीन बार आदक्षिण – प्रदक्षिणा की, हाथ जोड़ते हुए चक्ररत्न को | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 125 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया अन्नया कयाइ जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाण-मंडवंसि नानामणि रयण भत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहनिसन्ने सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहिं य पुण्णे कल्लाणगपवरमज्जनविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणग-पवरमज्जणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलूहियंगे सरससुरहिगोसीसचंदनानुलित्तगत्ते अहय-सुमहग्घदूसरयणसुसंवुए सुइमाला वण्णग विलेवने आविद्ध-मणिसुवण्णे कप्पियहारद्धहार तिसरय पालंबपलंबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोहे Translated Sutra: किसी दिन राजा भरत ने स्नान किया। देखने में प्रिय एवं सुन्दर लगनेवाला राजा स्नानघर से बाहर निकला। जहाँ आदर्शगृह में, जहाँ सिंहासन था, वहाँ आया। पूर्व की और मुँह किये सिंहासन पर बैठा। शीशों पर पड़ते अपने प्रतिबिम्ब को बार बार देखता था। शुभ परिणाम, प्रशस्त – अध्यवसाय, विशुद्ध होती हुई लेश्याओं, विशुद्धिक्रम | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Gujarati | 56 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स भरहस्स रन्नो अन्नया कयाइ आउहघरसालाए दिव्वे चक्करयणे समुप्पज्जित्था।
तए णं से आउहघरिए भरहस्स रन्नो आउहघरसालाए दिव्वं चक्करयणं समुप्पन्नं पासाइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणामेव से दिव्वे चक्करयणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं० कट्टु चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणामेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणामेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૬. ત્યારપછી રાજા ભરતની આયુધધરશાળામાં કોઈ દિવસે દિવ્ય ચક્રરત્ન ઉત્પન્ન થયું. ત્યારે તે આયુધ ગૃહિકે ભરત રાજાના આયુધ શાળામાં દ્યિવ્ય ચક્રરત્ન ઉત્પન્ન થયું જોયું, જોઈને હર્ષિત, સંતુષ્ટ, આનંદિત ચિત્ત, નંદિત, પ્રીતિમાન, પરમ સૌમનસ્યિક અને હર્ષના વશથી વિકસિત હૃદય થઈ જ્યાં દિવ્ય ચક્રરત્ન છે, ત્યાં આવે છે. | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Gujarati | 125 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया अन्नया कयाइ जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाण-मंडवंसि नानामणि रयण भत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहनिसन्ने सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहिं य पुण्णे कल्लाणगपवरमज्जनविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणग-पवरमज्जणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलूहियंगे सरससुरहिगोसीसचंदनानुलित्तगत्ते अहय-सुमहग्घदूसरयणसुसंवुए सुइमाला वण्णग विलेवने आविद्ध-मणिसुवण्णे कप्पियहारद्धहार तिसरय पालंबपलंबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोहे Translated Sutra: ત્યારે તે ભરતરાજા અન્ય કોઈ દિવસે જ્યાં સ્નાનગૃહ છે, ત્યાં આવે છે, આવીને યાવત્ ચંદ્ર સદૃશ પ્રિયદર્શન નરપતિ સ્નાનગૃહથી નીકળે છે, નીકળીને જ્યાં આદર્શગૃહ છે, જ્યાં સિંહાસન છે, ત્યાં આવે છે, આવીને શ્રેષ્ઠ સિંહાસન ઉપર પૂર્વાભિમુખ બેઠો, બેસીને આદર્શગૃહમાં પોતાના પ્રતિબિંબને જોતો – જોતો રહે છે. ત્યારે તે ભરતરાજા | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-१ | Hindi | 131 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! छल्लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा जाव सुक्कलेसा।
ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्ठी? मिच्छदिट्ठी? सम्मामिच्छदिट्ठी? गोयमा! सम्मदिट्ठीवि मिच्छदिट्ठीवि सम्मामिच्छदिट्ठीवि।
ते णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? गोयमा! नाणीवि अन्नाणीवि–तिन्नि नाणाइं तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए।
ते णं भंते! जीवा किं मनजोगी? वइजोगी? कायजोगी? गोयमा! तिविधावि।
ते णं भंते! जीवा किं सागारोवउत्ता? अनागारोवउत्ता? गोयमा! सागारोवउत्तावि अनागारोवउत्तावि।
ते णं भंते! जीवा कओ उववज्जंति? –किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? पुच्छा। Translated Sutra: हे भगवन् ! इन जीवों के कितनी लेश्याएं हैं ? गौतम ! छह – कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या। हे भगवन् ! ये जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग् मिथ्यादृष्टि हैं। गौतम ! तीनों। भगवन् ! वे जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? गौतम ! ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं वे दो या तीन ज्ञानवाले हैं और | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-१ | Gujarati | 131 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! छल्लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा जाव सुक्कलेसा।
ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्ठी? मिच्छदिट्ठी? सम्मामिच्छदिट्ठी? गोयमा! सम्मदिट्ठीवि मिच्छदिट्ठीवि सम्मामिच्छदिट्ठीवि।
ते णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? गोयमा! नाणीवि अन्नाणीवि–तिन्नि नाणाइं तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए।
ते णं भंते! जीवा किं मनजोगी? वइजोगी? कायजोगी? गोयमा! तिविधावि।
ते णं भंते! जीवा किं सागारोवउत्ता? अनागारोवउत्ता? गोयमा! सागारोवउत्तावि अनागारोवउत्तावि।
ते णं भंते! जीवा कओ उववज्जंति? –किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? पुच्छा। Translated Sutra: ભગવન્ ! આ ખેચર પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ જીવોને કેટલી લેશ્યાઓ કહી છે ? ગૌતમ ! છ લેશ્યાઓ કહી છે, તે આ – કૃષ્ણ યાવત્ શુક્લ લેશ્યા. ભગવન્ ! ખેચર પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ જીવો શું સમ્યગ્દૃષ્ટિ, મિથ્યાદૃષ્ટિ કે સમ્યગ્મિથ્યાદૃષ્ટિ છે ? ગૌતમ ! તેઓ સમ્યગ્દૃષ્ટિ પણ છે, મિથ્યાદૃષ્ટિ પણ છે, સમ્યગ્મિથ્યાદૃષ્ટિ પણ છે. ભગવન્ |