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Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 10 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुय-मणंतमक्खयमव्वाबाहमपुनरावत्तगं सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे– ... भुयमोयग भिंग नेल कज्जल पहट्ठभमरगण निद्ध निकुरुंब निचिय कुंचिय पयाहिणावत्त मुद्धसिरए दालिमपुप्फप्पगास तवणिज्जसरिस निम्मल सुनिद्ध केसंत केसभूमी घन निचिय सुबद्ध लक्खणुन्नय कूडागारनिभ पिंडियग्गसिरए छत्तागारुत्तिमंगदेसे निव्वण सम

Translated Sutra: उस समय श्रमण भगवान महावीर आदिकर, तीर्थंकर, स्वयं – संबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवर – पुंडरीक, पुरुषवर – गन्धहस्ती, अभयप्रदायक, चक्षु – प्रदायक, मार्ग – प्रदायक, शरणप्रद, जीवनप्रद, संसार – सागर में भटकते जनों के लिए द्वीप के समान आश्रयस्थान, गति एवं आधारभूत, चार अन्त युक्त पृथ्वी के अधिपति के समान चक्रवर्ती,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-२ विशाखा Hindi 727 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विसाहा नामं नगरी होत्था–वण्णओ। बहुपुत्तिए चेइए–वण्णओ। सामी समोसढे जाव पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे–एवं जहा सोलसमसए बितियउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमानेणं आगओ, नवरं–एत्थं आभियोगा वि अत्थि जाव बत्तीसतिविहं नट्टविहिं उवदंसेत्ता जाव पडिगए। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जहा तइयसए ईसानस्स तहेव कूडागारदिट्ठंतो, तहेव पुव्वभवपुच्छा जाव अभिसमन्नागए? गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे

Translated Sutra: उस काल एवं उस समय में विशाखा नामकी नगरी थी। वहाँ बहुपुत्रिक नामक चैत्य था। (वर्णन) एक बार वहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ, यावत्‌ परीषद्‌ पर्युपासना करने लगी। उस काल और उस समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, वज्रपाणि, पुरन्दर इत्यादि सोलहवें शतक के द्वीतिय उद्देशक में शक्रेन्द्र का जैसा वर्णन है,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 74 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे चक्करयणे पभासतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्स-संपरिवुडे दिव्वतुडियसद्दसन्निनादेणं पूरेंते चेव अंबरतलं सिंधूए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं सिंधुदेवीभवनाभिमुहे पयाते यावि होत्था। तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं सिंधूए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं सिंधुदेवीभवनाभिमुहं पयातं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए तहेव जाव जेणेव सिंधूए देवीए भवनं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिंधूए देवीए भवनस्स अदूरसामंते

Translated Sutra: प्रभास तीर्थकुमार को विजित कर लेने के उपलक्ष्य में समायोजित अष्टदिवसीय महोत्सव के परिसम्पन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकला। यावत्‌ उसने सिन्धु महानदी के दाहिने किनारे होते हुए पूर्व दिशा में सिन्धु देवी के भवन की ओर प्रयाण किया। राजा भरत बहुत हर्षित हुआ, परितुष्ट हुआ। जहाँ सिन्धु
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 103 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समसरीरं भरहे वासंमि सव्वमहिलप्पहाणं सुंदरथण जघन वरकर चरण नयन सिरसिजदसण जननहिदयरमण मनहरिं सिंगारागार चारुवेसं संगयगय हसिय भणिय चिट्ठिय विलास संलाव निउण जुत्तोवयारकुसलं अमरबहूणं, सुरूवं रूवेणं अनुहरंति सुभद्दं भद्दंमि जोव्वणे वट्टमाणिं इत्थीरयणं, नमी य रयणाणि य कडगाणि य तुडियाणिय गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धुयाए विज्जाहरगईए जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिंखिणीयाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिया करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु भरहं रायं जएणं विजएणं

Translated Sutra: वह समचौरस दैहिक संस्थानयुक्त थी। भरतक्षेत्र में समग्र महिलाओं में वह प्रधान – थी। उसके स्तन, जघन, हाथ, पैर, नेत्र, केश, दाँत – सभी सुन्दर थे, देखने वाले पुरुष के चित्त को आह्लादित करनेवाले थे, आकृष्ट करनेवाले थे। वह मानो शृंगार – रस का आगार थी। लोक – व्यवहार में वह कुशल थी। वह रूप में देवांगनाओं के सौन्दर्य का
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 122 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स भरहस्स रन्नो अन्नया कयाइ रज्जधुरं चिंतेमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अभिजिए णं मए नियगबल वीरिय पुरिसक्कार परक्कमेणं चुल्ल-हिमवंतगिरिसागरमेराए केवलकप्पे भरहे वासे, तं सेयं खलु मे अप्पाणं महयारायाभिसेएणं अभिसिंचावित्तए त्तिकट्टु एवं संपेहेति, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभाए रयणीए फुल्लु-प्पल-कमल-कोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर संडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिंमि दिणयरे तेयसा जलंते जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव मज्जनघराओ पडिनिक्खमइ,

Translated Sutra: राजा भरत अपने राज्य का दायित्व सम्हाले था। एक दिन उसके मन में ऐसा भाव, उत्पन्न हुआ – मैंने अपना बल, वीर्य, पौरुष एवं पराक्रम द्वारा समस्त भरतक्षेत्र को जीत लिया है। इसलिए अब उचित है, मैं विराट्‌ राज्याभिषेक – समारोह आयोजित करवाऊं, जिसमें मेरा राजतिलक हो। दूसरे दिन राजा भरत, स्नान कर बाहर निकला, पूर्व की ओर मुँह
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 239 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अच्चुए देविंदे देवराया महं देवाहिवे आभिओग्गे देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! महत्थं महग्घं महरिहं विउलं तित्थयराभिसेयं उवट्ठवेह। तए णं ते आभिओग्गा देवा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया जाव पडिसुणित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं जाव समोहणित्ता अट्ठसहस्सं सोवण्णियकलसाणं, एवं रुप्पमयाणं मणिमयाणं सुवण्णरुप्पमयाणं सुवण्ण मणिमयाणं रुप्पमणिमयाणं सुवण्णरुप्प-मणिमयाणं अट्ठसहस्सं भोमेज्जाणं, अट्ठसहस्सं वंदणकलसाणं, एवं भिंगाराणं आयंसाणं थालाणं पातीणं सुपइट्ठाणं चित्ताणं रयणकरंडगाणं

Translated Sutra: देवेन्द्र, देवराज, महान्‌ देवाधिप अच्युत अपने आभियोगिक देवों को बुलाता है, उनसे कहता है – देवानुप्रियों! शीघ्र ही महार्थ, महार्घ, महार्ह, विपुल – तीर्थंकराभिषेक उपस्थापित करो – । यह सुनकर वे आभियोगिक देव हर्षित एवं परिपुष्ट होते हैं। वे ईशानकोण में जाते हैं। वैक्रियसमुद्‌घात से १००८ स्वर्णकलश, १००८ रजत
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 240 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अच्चुए देविंदे देवराया दसहिं सामानियसाहस्सीहिं, तायत्तीसाए तावत्तीसएहिं चउहिं लोगपालेहिं तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अनिएहिं, सत्तहिं अनियाहिवईहिं, चत्तालीसाए आयरक्खदेव-साहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे तेहिं साभाविएहिं वेउव्विएहि य वरकमलपइट्ठाणेहिं सुरभिवरवारि-पडिपुण्णेहिं चंदनकयचच्चाएहिं आविद्धकंठेगुणेहिं पउमुप्पलपिहाणेहिं करयलसूमालपरिग्गहिएहिं अट्ठसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाणं जाव अट्ठसहस्सेणं भोमेज्जाणं जाव सव्वोदएहिं सव्वमट्टि-याहिं सव्वतुवरेहिं जाव सव्वोसहिसिद्धत्थएहिं सव्विड्ढीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं महया-महया तित्थयराभिसेएणं

Translated Sutra: देवेन्द्र अच्युत अपने १०००० सामानिक देवों, ३३ त्रायस्त्रिंश देवों, चार लोकपालों, तीन परिषदों, सात सेनाओं, सात सेनापति – देवों तथा ४०००० अंगरक्षक देवों से परिवृत्त होता हुआ स्वाभाविक एवं विकुर्वित उत्तम कमलों पर रखे हुए, सुगन्धित, उत्तम जल से परिपूर्ण, चन्दन से चर्चित गलवे में मोली बाँधे हुए, कमलों एवं उत्पलों
Jitakalpa जीतकल्प सूत्र Ardha-Magadhi

कायोत्सर्ग प्रायश्चित्तं

Hindi 21 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] देसिय-राइय-पक्खिय-चाउम्मास-वरिसेसु परिमाणं । सयमद्धं तिन्नि सया पंच-सयऽट्ठुत्तरसहस्सं ॥

Translated Sutra: दिन सम्बन्धी प्रतिक्रमण में पहले ५० के बाद २५ – २५ श्वासोच्छ्‌वास प्रमाण, रात्रि प्रतिक्रमण में २५ – २५ श्वासोच्छ्‌वास प्रमाण, पविख प्रतिक्रमण में ३०० श्वासोच्छ्‌वास, चौमासी प्रतिक्रमण में ५०० श्वासोच्छ्‌वास, संवत्सरी में १००८ श्वासोच्छ्‌वास प्रमाण काऊस्सग्ग प्रायश्चित्त आता है। अर्थात्‌ वर्तमान प्रणाली
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Hindi 179 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विजए देवे विजयाए रायहाणीए उववातसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए विजयदेवत्ताए उववन्ने। तए णं से विजए देवे अहुणोववण्णमेत्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति तं जहा–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणापाणुपज्जत्तीए भासमनपज्जत्तीए। तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्ति भावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–किं मे पुव्विं करणिज्जं? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पुव्विं सेयं? किं मे पच्छा सेयं? किं मे

Translated Sutra: उस काल और उस समय में विजयदेव विजया राजधानी की उपपातसभा में देवशयनीय में देवदूष्य के अन्दर अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण शरीर में विजयदेव के रूप में उत्पन्न हुआ। तब वह उत्पत्ति के अनन्तर पाँच प्रकार की पर्याप्तियों से पूर्ण हुआ। वे पाँच पर्याप्तियाँ इस प्रकार हैं – आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रिय
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१०

Hindi 1007 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दस नक्खत्ता नाणस्स विद्धिकरा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: ज्ञान की वृद्धि करने वाले दस नक्षत्र हैं, यथा – मृगशिरा, आर्द्रा, पुष्य, तीन पूर्वा, मूल, अश्लेषा, हस्त और चित्रा सूत्र – १००७, १००८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 801 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सोरिट्ठनेमिनामो उ लक्खणस्सरसंजुओ । अट्ठसहस्सलक्खणधरो गोयमो कालगच्छवी ॥

Translated Sutra: वह अरिष्टनेमि सुस्वरत्व एवं लक्षणों से युक्त था। १००८ शुभ लक्षणों का धारक भी था। उसका गोत्र गौतम था और वह वर्ण से श्याम था। वह वज्रऋषभ नाराच संहनन और समचतुरस्र संस्थानवाला था। उसका उदर मछली के उदर जैसा कोमल था। राजमती कन्या उसकी भार्या बने, यह याचना केशव ने की। यह महान राजा की कन्या सुशील, सुन्दर, सर्वलक्षण
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1008 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पढमा आवस्सिया नाम बिइया य निसीहिया । आपुच्छणा य तइया चउत्थी पडिपुच्छणा ॥

Translated Sutra: पहली आवश्यकी, दूसरी नैषेधिकी, तीसरी आपृच्छना, चौथी प्रतिपृच्छना, पाँचवी छन्दना, छट्ठी इच्छाकार, सातवीं मिथ्याकार, आठवीं तथाकार नौवीं अभ्युत्थान और दसवीं उपसंपदा है। इस प्रकार ये दस अंगो वाली साधुओं की सामाचारी प्रतिपादन की गई है। सूत्र – १००८–१०१०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1009 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पंचमा छंदणा नाम इच्छाकारो य छट्ठओ । सत्तमो मिच्छकारो य तहक्कारो य अट्ठमो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १००८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1010 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अब्भुट्ठाणं नवमं, दसमा उवसंपदा । एसा दसंगा साहूणं सामायारी पवेइया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १००८
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