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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-३ मदनिषेध | Hindi | 80 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से अबुज्झमाणे ‘हतोवहते जाइ-मरणं अणुपरियट्टमाणे’।
जीवियं पुढो पियं इहमेगेसिं माणवाणं, खेत्त-वत्थ ममायमाणाणं।
आरत्तं विरत्तं मणिकुंडलं सह हिरण्णेण, इत्थियाओ परिगिज्झ तत्थेव रत्ता।
न एत्थ तवो वा, दमो वा, नियमो वा दिस्सति।
संपुण्णं बाले जीविउकामे लालप्पमाणे मूढे विप्परियासुवेइ। Translated Sutra: वह प्रमादी पुरुष कर्म – सिद्धान्त को नहीं समझाता हुआ शारीरिक दुःखों से हत तथा मानसिक पीड़ाओं से उपहत – पुनः पुनः पीड़ित होता हुआ जन्म – मरण के चक्र में बार – बार भटकता है। जो मनुष्य, क्षेत्र – खुली भूमि तथा वास्तु – भवन – मकान आदि में ममत्व रखता है, उनको यह असंयत जीवन ही प्रिय लगता है। वे रंग – बिरंगे मणि, कुण्डल, | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-३ मदनिषेध | Hindi | 81 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] इणमेव नावकंखंति, जे जना धुवचारिनो । जाती-मरणं परिण्णाय, चरे संकमणे दढे ॥ Translated Sutra: जो पुरुष ध्रुवचारी होते हैं, वे ऐसा विपर्यासपूर्ण जीवन नहीं चाहते। वे जन्म – मरण के चक्र को जानकर द्रढ़तापूर्वक मोक्ष के पथ पर बढ़ते रहें। | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-४ भोगासक्ति | Hindi | 86 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आसं च छंदं च विगिंच धीरे।
तुमं चेव तं सल्लमाहट्टु।
जेण सिया तेण णोसिया।
इणमेव नावबुज्झंति, जेजना मोहपाउडा।
थीभि लोए पव्वहिए।
ते भो वयंति–एयाइं आयतणाइं।
से दुक्खाए मोहाए माराए नरगाए नरग-तिरिक्खाए।
उदाहु वीरे– अप्पमादो महामोहे।
अलं कुसलस्स पमाएणं।
संति-मरणं संपेहाए, भेउरधम्मं संपेहाए।
नालं पास।
अलं ते एएहिं। Translated Sutra: हे धीर पुरुष ! तू आशा और स्वच्छन्दता त्याग दे। उस भोगेच्छा रूप शल्य का सृजन तूने स्वयं ही किया है। जिस भोगसामग्री से तुझे सुख होता है उससे सुख नहीं भी होता है। जो मनुष्य मोहकी सघनतासे आवृत हैं, ढ़ंके हैं, वे इस तथ्य को कि पौद्गलिक साधनों से कभी सुख मिलता है, कभी नहीं, वे क्षण – भंगुर हैं, तथा वे ही शल्य नहीं जानते यह | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-१ स्वजन विधूनन | Hindi | 190 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मरणं तेसिं संपेहाए, उववायं चयणं च नच्चा ।
परिपागं च संपेहाए, तं सुणेह जहा तहा ॥
संति पाणा अंधा तमंसि वियाहिया।
तामेव सइं असइं अतिअच्च उच्चावयफासे पडिसंवेदेंति।
बुद्धेहिं एयं पवेदितं।
संति पाणा वासगा, रसगा, उदए उदयचरा, आगासगामिणो।
पाणा पाणे किलेसंति। पास लोए महब्भयं। Translated Sutra: उन मनुष्यों की मृत्यु का पर्यालोचन कर, उपपात और च्यवन को जानकर तथा कर्मों के विपाक का भली – भाँति विचार करके उसके यथातथ्य को सूनो। (इस संसार में) ऐसे भी प्राणी बताए गए हैं, जो अंधे होते हैं और अन्धकार में ही रहते हैं। वे प्राणी उसीको एक बार या अनेक बार भोगकर तीव्र और मन्द स्पर्शों का प्रतिसंवेदन करते हैं। बुद्धों | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ विमोक्ष |
उद्देशक-८ अनशन मरण | Hindi | 243 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] जीवियं नाभिकंखेज्जा, मरणं णोवि पत्थए ।
दुहतोवि ण सज्जेज्जा, जीविते मरणे तहा ॥ Translated Sutra: (संलेखना एवं अनशन – साधना में स्थित श्रमण) न तो जीने की आकांक्षा करे, न मरने की अभिलाषा करे। जीवन और मरण दोनों में भी आसक्त न हो। | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ विमोक्ष |
उद्देशक-८ अनशन मरण | Hindi | 256 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] ‘आसीणे णेलिसं’ मरणं, इंदियाणि समीरए ।
कोलावासं समासज्ज, वितहं पाउरेसए ॥ Translated Sutra: इस अद्वितीय मरण की साधना में लीन मुनि अपनी इन्द्रियों को सम्यक् रूप से संचालित करे। घुन – दीमक वाले काष्ठ – स्तम्भ या पट्टे का सहारा न लेकर घुन आदि रहित व निश्छिद्र काष्ठ – स्तम्भ या पट्टे का अन्वेषण करे। | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-३ मदनिषेध | Gujarati | 80 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से अबुज्झमाणे ‘हतोवहते जाइ-मरणं अणुपरियट्टमाणे’।
जीवियं पुढो पियं इहमेगेसिं माणवाणं, खेत्त-वत्थ ममायमाणाणं।
आरत्तं विरत्तं मणिकुंडलं सह हिरण्णेण, इत्थियाओ परिगिज्झ तत्थेव रत्ता।
न एत्थ तवो वा, दमो वा, नियमो वा दिस्सति।
संपुण्णं बाले जीविउकामे लालप्पमाणे मूढे विप्परियासुवेइ। Translated Sutra: તે બોધ ન પામેલ જીવ રોગાદિથી પીડિત થઈ, અપયશથી કલંકિત થઇ જન્મ – મરણના ચક્રમાં વારંવાર ભટકે છે. ક્ષેત્ર – વાસ્તુ આદિમાં મમત્વ રાખનારને અસંયત જીવન જ પ્રિય લાગે છે. તે રંગબેરંગી મણિ, કુંડલ, સોનું, ચાંદી તથા સ્ત્રીઓમાં અનુરક્ત રહે છે. તેનામાં તપ, ઇન્દ્રિયદમન કે નિયમ દેખાતા નથી. તે અજ્ઞાની જીવો અસંયમી જીવનની કામના | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-३ मदनिषेध | Gujarati | 81 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] इणमेव नावकंखंति, जे जना धुवचारिनो । जाती-मरणं परिण्णाय, चरे संकमणे दढे ॥ Translated Sutra: જે પુરૂષ ધ્રુવચારી અર્થાત્ શાશ્વત સુખના કેન્દ્રરૂપ મોક્ષ પ્રતિ ગતિશીલ એટલે કે સંયમશીલ છે. તે આવા અસંયમી જીવનની ઇચ્છા કરતા નથી. જન્મ – મરણના સ્વરૂપને સારીરીતે જાણીને ચારિત્રમાં દૃઢ થઈને વિચરે છે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-४ भोगासक्ति | Gujarati | 86 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आसं च छंदं च विगिंच धीरे।
तुमं चेव तं सल्लमाहट्टु।
जेण सिया तेण णोसिया।
इणमेव नावबुज्झंति, जेजना मोहपाउडा।
थीभि लोए पव्वहिए।
ते भो वयंति–एयाइं आयतणाइं।
से दुक्खाए मोहाए माराए नरगाए नरग-तिरिक्खाए।
उदाहु वीरे– अप्पमादो महामोहे।
अलं कुसलस्स पमाएणं।
संति-मरणं संपेहाए, भेउरधम्मं संपेहाए।
नालं पास।
अलं ते एएहिं। Translated Sutra: હે ધીર પુરૂષ ! તું વિષયભોગની આશા અને સંકલ્પ છોડી દે – આ ભોગશલ્યનું સર્જન તેં જ કર્યું છે. જે ભોગથી સુખ છે, તેનાથી જ દુઃખ પણ છે. આ વાત મોહથી ઘેરાયેલો મનુષ્ય સમજી શકતો નથી. આ સંસારના પ્રાણીઓ સ્ત્રીઓના મોહથી પરાજિત છે. હે પુરૂષ ! તે લોકો કહે છે કે આ સ્ત્રીઓ ભોગની સામગ્રી છે. આ કથન દુઃખ, મોહ, મૃત્યુ, નરકનાં કારણરૂપ છે. તથા | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-१ स्वजन विधूनन | Gujarati | 190 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मरणं तेसिं संपेहाए, उववायं चयणं च नच्चा ।
परिपागं च संपेहाए, तं सुणेह जहा तहा ॥
संति पाणा अंधा तमंसि वियाहिया।
तामेव सइं असइं अतिअच्च उच्चावयफासे पडिसंवेदेंति।
बुद्धेहिं एयं पवेदितं।
संति पाणा वासगा, रसगा, उदए उदयचरा, आगासगामिणो।
पाणा पाणे किलेसंति। पास लोए महब्भयं। Translated Sutra: આ ૧૬ રોગ કે તેવા અન્ય રોગ આદિથી પીડિત તે મનુષ્યોના મૃત્યુનું નિરિક્ષણ કરીને વિચાર કે – જેમને રોગ નથી તેવા દેવોને પણ જન્મ અને મરણ થાય છે. તેથીકર્મોના વિપાકને સારી રીતે વિચારી તેના ફળને કહું છું તે સાંભળો. એવા પણ પ્રાણી છે જે કર્મના વશ થઈ અંધપણું પામે છે, ઘોર અંધકારમય સ્થાનોમાં રહે છે, તે જીવો ત્યાં જ વારંવાર જન્મ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ विमोक्ष |
उद्देशक-८ अनशन मरण | Gujarati | 243 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] जीवियं नाभिकंखेज्जा, मरणं णोवि पत्थए ।
दुहतोवि ण सज्जेज्जा, जीविते मरणे तहा ॥ Translated Sutra: સંલેખના સ્થિત મુનિ જીવવાની અભિલાષા ન કરે. કષ્ટથી ભયભીત બની મરણની પ્રાર્થના ન કરે. જીવન કે મરણ બેમાંથી એકેમાં આસક્ત ન થાય. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ विमोक्ष |
उद्देशक-८ अनशन मरण | Gujarati | 256 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] ‘आसीणे णेलिसं’ मरणं, इंदियाणि समीरए ।
कोलावासं समासज्ज, वितहं पाउरेसए ॥ Translated Sutra: આવા અનુપમ મરણને સ્વીકારી મુનિ પોતાની ઇન્દ્રિયોને વિષયોથી નિવૃત્ત કરી સંયમમાં સ્થિર કરે. ટેકો લેવા માટે જો પાટિયું રાખેલ હોય, તેમાં જીવજંતુ હોય તો તેને બદલીને નિર્દોષ પાટિયાની ગવેષણા કરે. | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
प्रथमा प्ररुपणा |
Hindi | 1 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] देसिक्कदेसविरओ सम्मद्दिट्ठी मरिज्ज जो जीवो ।
तं होइ बालपंडियमरणं जिनसासने भणियं ॥ Translated Sutra: छ काय की हिंसा का एक हिस्सा जो त्रस की हिंसा, उसका एक देश जो मारने की बुद्धि से निरपराधी जीव की निरपेक्षपन से हिंसा, इसलिए और झूठ बोलना आदि से निवृत्त होनेवाला जो समकित दृष्टि जीव मृत्यु पाता है तो उसे जिनशासन में (पाँच मृत्यु में से) बाल पंड़ित मरण कहा है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
प्रथमा प्ररुपणा |
Hindi | 10 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इय बालपंडियं होइ मरणमरिहंतसासने दिट्ठं ।
इत्तो पंडियमरणं तमहं वोच्छं समासेणं ॥ Translated Sutra: जिनशासन के लिए यह बाल पंड़ित मरण कहा गया है, अब मैं पंड़ितमरण संक्षेप में कहता हूँ। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
प्रतिक्रमणादि आलोचना |
Hindi | 26 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगो वच्चइ जीवो, एगो चेवुववज्जई ।
एगस्स होइ मरणं, एगो सिज्झइ नीरओ ॥ Translated Sutra: जीव अकेला जाता है, यकीनन अकेला उत्पन्न होता है, अकेले को ही मरण प्राप्त होता है, और कर्मरहित होने के बावजूद अकेला ही सिद्ध होता है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
आलोचनादायक ग्राहक |
Hindi | 36 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिविहं भणंति मरणं, बालाणं १ बालपंडियाणं २ च ।
तइयं पंडियमरणं जं केवलिणो अनुमरंति ३ ॥ Translated Sutra: मरण तीन प्रकार का होता है – बाल मरण, बाल – पंड़ित मरण और पंड़ित मरण, सीर्फ केवली पंड़ित मरण से मृत्यु पाते हैं। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
असमाधिमरणं |
Hindi | 37 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे पुण अट्ठमईया पयलियसन्ना य वक्कभावा य ।
असमाहिणा मरंति उ न हु ते आराहगा भणिया ॥ Translated Sutra: और फिर जो आठ मदवाले, नष्ट हुई हो वैसी बुद्धिवाले और वक्रपन को (माया को) धारण करनेवाले असमाधि से मरते हैं उन्हें निश्चय से आराधक नहीं कहा है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
असमाधिमरणं |
Hindi | 38 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मरणे विराहिए देवदुग्गई दुल्लहा य किर बोही ।
संसारो य अणंतो होइ पुणो आगमिस्साणं ॥ Translated Sutra: मरण विराधे हुए (असमाधि मरण द्वारा) देवता में दुर्गति होती है। सम्यक्त्व पाना दुर्लभ होता है और फिर आनेवाले काल में अनन्त संसार होता है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
असमाधिमरणं |
Hindi | 39 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] का देवदुग्गई? का अबोहि? केणेव बुज्झई मरणं? ।
केण अनंतमपारं संसारे हिंडई जीवो? ॥ Translated Sutra: देव की दुर्गति कौन – सी ? अबोधि क्या है ? किस लिए (बार – बार) मरण होता है ? किस वजह से जीव अनन्त काल तक घूमता रहता है ? | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
प्रतिक्रमणादि आलोचना |
Hindi | 11 | Sutra | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि भंते! उत्तमट्ठं पडिक्कमामि
अईयं पडिक्कमामि १ अनागयं पडिक्कमामि २ पच्चुप्पन्नं पडिक्कमामि ३ कयं पडिक्कमामि १ कारियं पडिक्कमामि २ अनुमोइयं पडिक्कमामि ३, मिच्छत्तं पडिक्कमामि १ असंजमं पडिक्कमामि २ कसायं पडिक्कमामि ३ पावपओगं पडिक्कमामि ४, मिच्छादंसण परिणामेसु वा इहलोगेसु वा परलोगेसु वा सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा पंचसु इंदियत्थेसु वा; अन्नाणंझाणे १ अनायारंझाणे २ कुदंसणंझाणे ३ कोहंझाणे ४ मानंझाणे ५ मायंझाणे ६ लोभंझाणे ७ रागंझाणे ८ दोसंझाणे ९ मोहंझाणे १० इच्छंझाणे ११ मिच्छंझाणे १२ मुच्छंझाणे १३ संकंझाणे १४ कंखंझाणे १५ गेहिंझाणे १६ आसंझाणे १७ तण्हंझाणे Translated Sutra: हे भगवंत ! मैं अनशन करने की ईच्छा रखता हूँ। पाप व्यवहार को प्रतिक्रमता हूँ। भूतकाल के (पाप को) भावि में होनेवाले (पाप) को, वर्तमान के पाप को, किए हुए पाप को, करवाए हुए पाप को और अनुमोदन किए गए पाप का प्रतिक्रमण करता हूँ, मिथ्यात्व का, अविरति परिणाम, कषाय और पाप व्यापार का प्रतिक्रमण करता हूँ। मिथ्यादर्शन के परिणाम | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
असमाधिमरणं |
Hindi | 40 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कंदप्पदेव-किब्बिस-अभिओगा आसुरी य सम्मोहा ।
ता देवदुग्गईओ मरणम्मि विराहिए हुंति ॥ Translated Sutra: मरण विराधे हुए कंदर्प (मश्करा) देव, किल्बिषिक देव, चाकर देव, असुर देव और संमोहा (स्थान भ्रष्ट) देव यह पाँच दुर्गति होती है। इस संसार में – मिथ्यादर्शन रक्त, नियाणा – सहित, कृष्ण लेश्यावाले जो जीव मरण पाते हैं – उन को बोधि बीज दुर्लभ होता है। सूत्र – ४०, ४१ | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
असमाधिमरणं |
Hindi | 41 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मिच्छद्दंसणरत्ता सनियाणा कण्हलेसमोगाढा ।
इय जे मरंति जीवा तेसिं दुलहा भवे बोही ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४० | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
असमाधिमरणं |
Hindi | 42 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सम्मद्दंसणरत्ता अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा ।
इय जे मरंति जीवा तेसिं सुलहा भवे बोही ॥ Translated Sutra: इस संसार में सम्यक् दर्शन में रक्त, नियाणा रहित, शुक्ल लेश्यावाले जो जीव मरण पाते हैं उन जीव को बोधि बीज (समकित) सुलभ होता है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
असमाधिमरणं |
Hindi | 43 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे पुण गुरुपडिणीया बहुमोहा ससबला कुसीला य ।
असमाहिणा मरंति उ ते हुंति अनंतसंसारी ॥ Translated Sutra: जो गुरु के शत्रु रूप, बहुत मोहवाले, दूषण सहित, कुशील होत हैं और असमाधिमें मरण पाते हैं वो अनन्त संसारी होते हैं। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
असमाधिमरणं |
Hindi | 44 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जिनवयणे अनुरत्ता गुरुवयणं जे करंति भावेणं ।
असबल असंकिलिट्ठा ते हुंति परित्तसंसारी ॥ Translated Sutra: जिन वचन में रागवाले, जो गुरु का वचन भाव से स्वीकार करते हैं, दूषण रहित हैं और संक्लेशरहित होते हैं, वे अल्प संसारवाले होते हैं। जो जिनवचन को नहीं जानते वो बेचारे (आत्मा) – बाल मरण और कईं बार बिना ईच्छा से मरण पाते हैं। सूत्र – ४४, ४५ | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
असमाधिमरणं |
Hindi | 45 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बालमरणाणि बहुसो बहुयाणि अकामगाणि मरणाणि ।
मरिहिंति ते वराया जे जिनवयणं न याणंति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४४ | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 47 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उड्ढमहे तिरियम्मि वि मयाणि जीवेण बालमरणाणि ।
दंसण-नाणसहगओ पंडियमरणं अनुमरिस्सं ॥ Translated Sutra: उर्ध्व, अधो, तिर्च्छा (लोक) में जीव ने बालमरण किए। लेकिन अब दर्शन ज्ञान सहित मैं पंड़ित मरण से मरूँगा। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 48 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उव्वेयणयं जाई मरणं नरएसु वेयणाओ य ।
एयाणि संभरंतो पंडियमरणं मरसु इण्हिं ॥ Translated Sutra: उद्वेग करनेवाले जन्म, मरण और नरक में भुगती हुई वेदनाको याद करते हुए अब तुम पंड़ित मरण से मरो | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 53 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विं कयपरिकम्मो अनियाणो ईहिऊण मइ-बुद्धी ।
पच्छा मलियकसाओ सज्जो मरणं पडिच्छामि ॥ Translated Sutra: जिसने पहेले (अनशन का) अभ्यास किया है, और नियाणा रहित हुआ हूँ ऐसा मैं मति और बुद्धि से सोच कर फिर कषाय को रोकनेवाला मैं शीघ्र ही मरण अंगीकार करता हूँ। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 60 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगम्मि वि जम्मि पए संवेगं वीयरायमग्गम्मि ।
गच्छइ नरो अभिक्खं तं मरणं तेण मरियव्वं ॥ Translated Sutra: (इसलिए) वीतराग के मार्ग में जो एक भी पद से मानव बार – बार वैराग पाए उस पद सहित (उसी पद का चिंतवन करते हुए) तुम्हें मृत्यु को प्राप्त करना उचित है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
प्रतिक्रमणादि आलोचना |
Gujarati | 11 | Sutra | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि भंते! उत्तमट्ठं पडिक्कमामि
अईयं पडिक्कमामि १ अनागयं पडिक्कमामि २ पच्चुप्पन्नं पडिक्कमामि ३ कयं पडिक्कमामि १ कारियं पडिक्कमामि २ अनुमोइयं पडिक्कमामि ३, मिच्छत्तं पडिक्कमामि १ असंजमं पडिक्कमामि २ कसायं पडिक्कमामि ३ पावपओगं पडिक्कमामि ४, मिच्छादंसण परिणामेसु वा इहलोगेसु वा परलोगेसु वा सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा पंचसु इंदियत्थेसु वा; अन्नाणंझाणे १ अनायारंझाणे २ कुदंसणंझाणे ३ कोहंझाणे ४ मानंझाणे ५ मायंझाणे ६ लोभंझाणे ७ रागंझाणे ८ दोसंझाणे ९ मोहंझाणे १० इच्छंझाणे ११ मिच्छंझाणे १२ मुच्छंझाणे १३ संकंझाणे १४ कंखंझाणे १५ गेहिंझाणे १६ आसंझाणे १७ तण्हंझाणे Translated Sutra: હે ભગવન ! હું ઉત્તમાર્થને સાધવા અર્થાત અનશન કરવાને ઇચ્છુ છું. હું ભૂતકાળના, ભાવિમાં થનારા અને વર્તમાનના પાપ વ્યાપારને પ્રતિક્રમુ છું. કરેલા, કરાવેલા અને અનુમોદિત પાપને પ્રતિક્રમુ છું. મિથ્યાત્વ, અસંયમ કષાય અને પાપપ્રયોગને પ્રતિક્રમુ છું. મિથ્યાદર્શનના પરિણામને વિશે, આલોક કે પરલોકને વિશે, સચિત્ત કે અચિત્તને | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
प्रथमा प्ररुपणा |
Gujarati | 1 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] देसिक्कदेसविरओ सम्मद्दिट्ठी मरिज्ज जो जीवो ।
तं होइ बालपंडियमरणं जिनसासने भणियं ॥ Translated Sutra: એક દેશવિરત સમ્યગ્દૃષ્ટિ જીવ જે મરે, તેને જિનશાસનમાં બાલપંડિત મરણ કહેલું છે. | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
प्रथमा प्ररुपणा |
Gujarati | 10 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इय बालपंडियं होइ मरणमरिहंतसासने दिट्ठं ।
इत्तो पंडियमरणं तमहं वोच्छं समासेणं ॥ Translated Sutra: (પંડિત મરણ) અરિહંત શાસનમાં આ બાલપંડિતમરણ કહેલ છે. હવે હું પંડિત મરણને સંક્ષેપમાં કહીશ. | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
प्रतिक्रमणादि आलोचना |
Gujarati | 26 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगो वच्चइ जीवो, एगो चेवुववज्जई ।
एगस्स होइ मरणं, एगो सिज्झइ नीरओ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫ | |||||||||
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आलोचनादायक ग्राहक |
Gujarati | 36 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिविहं भणंति मरणं, बालाणं १ बालपंडियाणं २ च ।
तइयं पंडियमरणं जं केवलिणो अनुमरंति ३ ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૬. મરણ ત્રણ પ્રકારે કહેલ છે – બાળમરણ, બાલ – પંડિત મરણ, પંડિત મરણ, કે જે મરણે કેવળી મરે છે. સૂત્ર– ૩૭. વળી જે આઠ મદવાળા, વિનષ્ટ બુદ્ધિવાળા અને વક્રભાવવાળા(માયાને ધારણ કરનારા) અસમાધિએ મરે છે, તેઓ નિશ્ચે આરાધક નથી. સૂત્ર– ૩૮. મરણ વિરાધતા (અસમાધિ મરણ વડે) દેવમાં દુર્ગતિ થાય, સમ્યક્ત્વ પામવું દુર્લભ થાય અને આગામી | |||||||||
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असमाधिमरणं |
Gujarati | 37 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे पुण अट्ठमईया पयलियसन्ना य वक्कभावा य ।
असमाहिणा मरंति उ न हु ते आराहगा भणिया ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૬ | |||||||||
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असमाधिमरणं |
Gujarati | 38 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मरणे विराहिए देवदुग्गई दुल्लहा य किर बोही ।
संसारो य अणंतो होइ पुणो आगमिस्साणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૬ | |||||||||
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असमाधिमरणं |
Gujarati | 39 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] का देवदुग्गई? का अबोहि? केणेव बुज्झई मरणं? ।
केण अनंतमपारं संसारे हिंडई जीवो? ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૯. દેવની દુર્ગતિ કઈ ? અબોધિ શું ? શા હેતુથી મરણ થાય ? કયા કારણે જીવો અનંત – અપાર સંસાર ભમે ? સૂત્ર– ૪૦. મરણ વિરાધતા ૧.કંદર્પ, ૨.કિલ્બિષિક ૩.આભિયોગિક ૪.આસુરી અને ૫.સંમોહા(સ્થાન ભ્રષ્ટ રખડું) દેવ થાય. તે પાંચ દેવદુર્ગતિ થાય. સૂત્ર– ૪૧. અહીં મિથ્યાદર્શન – રત, નિયાણાપૂર્વક, કૃષ્ણલેશ્યા વાળા જે જીવો મરણ પામે, તેઓને | |||||||||
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असमाधिमरणं |
Gujarati | 40 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कंदप्पदेव-किब्बिस-अभिओगा आसुरी य सम्मोहा ।
ता देवदुग्गईओ मरणम्मि विराहिए हुंति ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૯ | |||||||||
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असमाधिमरणं |
Gujarati | 41 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मिच्छद्दंसणरत्ता सनियाणा कण्हलेसमोगाढा ।
इय जे मरंति जीवा तेसिं दुलहा भवे बोही ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૯ | |||||||||
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असमाधिमरणं |
Gujarati | 42 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सम्मद्दंसणरत्ता अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा ।
इय जे मरंति जीवा तेसिं सुलहा भवे बोही ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૯ | |||||||||
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असमाधिमरणं |
Gujarati | 43 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे पुण गुरुपडिणीया बहुमोहा ससबला कुसीला य ।
असमाहिणा मरंति उ ते हुंति अनंतसंसारी ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૯ | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
असमाधिमरणं |
Gujarati | 44 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जिनवयणे अनुरत्ता गुरुवयणं जे करंति भावेणं ।
असबल असंकिलिट्ठा ते हुंति परित्तसंसारी ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૯ | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
असमाधिमरणं |
Gujarati | 45 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बालमरणाणि बहुसो बहुयाणि अकामगाणि मरणाणि ।
मरिहिंति ते वराया जे जिनवयणं न याणंति ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૯ | |||||||||
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पंडितमरण एवं आराधनादि |
Gujarati | 47 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उड्ढमहे तिरियम्मि वि मयाणि जीवेण बालमरणाणि ।
दंसण-नाणसहगओ पंडियमरणं अनुमरिस्सं ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૭. ઉર્ધ્વ, અધો, તીર્છાલોકમાં જીવે બાળમરણો કર્યા. હવે દર્શન, જ્ઞાને સહિત એવો હું પંડિત મરણે મરીશ. સૂત્ર– ૪૮. ઉદ્વેગ કરનારા જન્મ, મરણ, નરકની વેદનાઓને સંભારતો હમણા તું પંડિત મરણે મર. સૂત્ર– ૪૯. જો દુઃખ ઉત્પન્ન થાય તો સ્વભાવ થકી તેની વિશેષ ઉત્પત્તિ જોવી, સંસારમાં ભમતા હું શું – શું દુઃખ પામ્યો નથી? એ પ્રમાણે | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Gujarati | 48 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उव्वेयणयं जाई मरणं नरएसु वेयणाओ य ।
एयाणि संभरंतो पंडियमरणं मरसु इण्हिं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૭ | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Gujarati | 53 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विं कयपरिकम्मो अनियाणो ईहिऊण मइ-बुद्धी ।
पच्छा मलियकसाओ सज्जो मरणं पडिच्छामि ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૩. પૂર્વે અભ્યાસ કરેલ અને નિયાણારહિત થયેલો એવો હું મતિ અને બુદ્ધિથી વિચારીને, પછી કષાય રોકનારો હું જલદી મરણ અંગીકાર કરીશ. સૂત્ર– ૫૪. ચિરકાળના અભ્યાસ વિના, અકાળે અનશન કરનારા તે પુરુષો, મરણકાળે પૂર્વકૃત કર્મના યોગે પાછા પડે છે અર્થાત દુર્ગતિમાં જાય છે.. સૂત્ર– ૫૫. તેથી ચંદ્રકવેધ્ય પુરુષવત્ હેતુપૂર્વક | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Gujarati | 60 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगम्मि वि जम्मि पए संवेगं वीयरायमग्गम्मि ।
गच्छइ नरो अभिक्खं तं मरणं तेण मरियव्वं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૯ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 20 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अब्भिंतरए तवे? अब्भिंतरए तवे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पायच्छित्तं विनओ वेयावच्चं सज्झाओ ज्झाणं विउस्सग्गो।
से किं तं पायच्छित्ते? पायच्छित्ते दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–आलोयणारिहे पडिक्कमणारिहे तदुभयारिहे विवेगारिहे विउस्सग्गारिहे तवारिहे छेदारिहे मूलारिहे अणवट्ठप्पारिहे पारंचियारिहे। से तं पायच्छित्ते।
से किं तं विनए? विनए सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणविनए दंसणविनए चरित्तविनए मनविनए वइविनए कायविनए लोगोवयारविनए।
से किं तं नाणविनए? नाणविनए पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभिणिबोहियनाणविनए सुयनाणविनए ओहिनाणविनए मनपज्जवनाणविनए केवलनाणविनए। Translated Sutra: आभ्यन्तर तप क्या है ? आभ्यन्तर तप छह प्रकार का कहा गया है – १. प्रायश्चित्त, २. विनय, ३. वैयावृत्य, ४. स्वाध्याय, ५. ध्यान तथा ६. व्युत्सर्ग। प्रायश्चित्त क्या है ? प्रायश्चित्त दस प्रकार का कहा गया है – १. आलोचनार्ह, २. प्रतिक्रमणार्ह, ३. तदुभयार्ह, ४. विवेकार्ह, ५. व्युत्सर्गार्ह, ६. तपोऽर्ह, ७. छेदार्ह, ८. मूलार्ह, ९. अनवस्थाप्यार्ह, | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 20 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अब्भिंतरए तवे? अब्भिंतरए तवे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पायच्छित्तं विनओ वेयावच्चं सज्झाओ ज्झाणं विउस्सग्गो।
से किं तं पायच्छित्ते? पायच्छित्ते दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–आलोयणारिहे पडिक्कमणारिहे तदुभयारिहे विवेगारिहे विउस्सग्गारिहे तवारिहे छेदारिहे मूलारिहे अणवट्ठप्पारिहे पारंचियारिहे। से तं पायच्छित्ते।
से किं तं विनए? विनए सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणविनए दंसणविनए चरित्तविनए मनविनए वइविनए कायविनए लोगोवयारविनए।
से किं तं नाणविनए? नाणविनए पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभिणिबोहियनाणविनए सुयनाणविनए ओहिनाणविनए मनपज्जवनाणविनए केवलनाणविनए। Translated Sutra: [૧] તે અભ્યંતર તપ શું છે ? તે છ ભેદે છે – પ્રાયશ્ચિત્ત, વિનય, વૈયાવચ્ચ, સ્વાધ્યાય, ધ્યાન અને ઉત્સર્ગ. તે પ્રાયશ્ચિત્ત શું છે ? તે દશ ભેદે છે – આલોચના યોગ્ય, પ્રતિક્રમણ યોગ્ય, તદુભય યોગ્ય, વિવેક યોગ્ય, વ્યુત્સર્ગ યોગ્ય, તપ યોગ્ય, છેદ યોગ્ય, મૂલ યોગ્ય, અનવસ્થાપ્યાર્હ, પારંચિત યોગ્ય. તે વિનય શું છે ? તે સાત ભેદે છે – જ્ઞાન |