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Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Hindi 52 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा केवलिसमुग्घाएणं समोहए केवलकप्पं लोयं फुसित्ता णं चिट्ठइ? हंता चिट्ठइ। से नूनं भंते! केवलकप्पे लोए तेहिं निज्जरापोग्गलेहिं फुडे? हंता फुडे। छउमत्थे णं भंते! मणुस्से तेसिंनिज्जरापोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–छउमत्थे णं मनुस्से तेसिं निज्जरापोग्गलाणं नो किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ? गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापू-यसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार केवलि – समुद्‌घात द्वारा आत्मप्रदेशों को देह से बाहर निकाल कर, क्या समग्र लोक का स्पर्श कर स्थित होते हैं ? हाँ, गौतम ! स्थित होते हैं। भगवन्‌ ! क्या उन निर्जरा – प्रधान पुद्‌गलों से समग्र लोक स्पृष्ट होता है ? हाँ, गौतम ! होता है। भगवन्‌ ! छद्मस्थ, विशिष्ट ज्ञानरहित मनुष्य क्या उन निर्जरा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-२ समुदघात Hindi 118 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! समुग्घाया पन्नत्ता? गोयमा! सत्त समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–१. समुग्घाए २. कसायसमुग्घाए ३. मारणंतिय-समुग्घाए ४. वेउव्वियसमुग्घाए ५. तेजससमुग्घाए ६. आहारगसमुग्घाए ७. केवलियसमुग्घाए। छाउमत्थियसमुग्घायवज्जं समुग्घायपदं नेयव्वं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कितने समुद्‌घात कहे गए हैं ? गौतम ! समुद्‌घात सात कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – वेदना – समुद्‌घात, कषाय – समुद्‌घात, मारणान्तिक – समुद्‌घात, वैक्रिय – समुद्‌घात, तैजस – समुद्‌घात, आहारक – समुद्‌घात और केवली – समुद्‌घात। यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का छत्तीसवा समुद्‌घातपद कहना चाहिए, किन्तु उसमें प्रतिपादित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-२ चमरोत्पात Hindi 171 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवइयकालस्स णं भंते! असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मं कप्पं गया य गमिस्संति य? गोयमा! अनंताहिं ओसप्पिणीहिं, अनंताहिं उस्सप्पिणीहिं समतिक्कंताहिं अत्थि णं एस भावे लोयच्छेरयभूए समुप्पज्जइ, जं णं असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो। किं निस्साए णं भंते! असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव साहम्मो कप्पो? गोयमा! से जहानामए इहं सबरा इ वा बब्बरा इ वा टंकणा इ वा चुचुया इ वा पल्हा इ वा पुलिंदा इ वा एगं महं रण्णं वा गड्ढं वा दुग्गं वा दरिं वा विसमं वा पव्वयं वा नीसाए सुमहल्लमवि आसबलं वा हत्थिबलं वा जोहबलं वा धणुबलं वा आगलेंति, एवामेव असुरकुमारा वि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कितने काल में असुरकुमार देव ऊर्ध्व – गमन करते हैं, तथा सौधर्मकल्प तक ऊपर गए हैं, जाते हैं और जाएंगे ? गौतम ! अनन्त उत्सर्पिणी – काल और अनन्त अवसर्पिणीकाल व्यतीत होने के पश्चात्‌ लोक में आश्चर्यभूत यह भाव समुत्पन्न होता है कि असुरकुमार देव ऊर्ध्वगमन करते हैं, यावत्‌ सौधर्मकल्प तक जाते हैं। भगवन्‌ ! किसका
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-२ चमरोत्पात Hindi 173 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–नो खलु पभू चमरे असुरिंदे असुरराया, नो खलु समत्थे चमरे असुरिंदे असुरराया, नो खलु विसए चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो अप्पणो निस्साए उड्ढं उप्पइत्ता जाव सोहम्मो कप्पो, नन्नत्थ अरहंते वा, अरहंतचेइयाणि वा, अनगारे वा भाविअप्पाणो नीसाए उड्ढं उप्पयइ जाव सोहम्मो कप्पो, तं महादुक्खं खलु तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं अणगाराण य अच्चासायणाए त्ति कट्टु ओहिं पउंजइ, ममं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता हा! हा! अहो! हतो अहमंसि त्ति कट्टु ताए उक्किट्ठाए जाव दिव्वाए देवगईए वज्जस्स वीहिं

Translated Sutra: उसी समय देवेन्द्र शक्र को इस प्रकार का आध्यात्मिक यावत्‌ मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि असुरेन्द्र असुरराज चमर इतनी शक्ति वाला नहीं है, न असुरेन्द्र असुरराज चमर इतना समर्थ है, और न ही असुरेन्द्र असुरराज चमर का इतना विषय है कि वह अरिहंत भगवंतों, अर्हन्त भगवान के चैत्यों अथवा भावितात्मा अनगार का आश्रय लिए बिना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-४ यान Hindi 184 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भाविअप्पा देवं वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहयं जाणरूवेणं जामाणं जाणइ-पासइ? गोयमा! १. अत्थेगइए देवं पासइ, नो जाणं पासइ। २. अत्थेगइए जाणं पासइ, नो देवं पासइ। ३. अत्थेगइए देवं पि पासइ, जाणं पि पासइ। ४. अत्थेगइए नो देवं पासइ, नो जाणं पासइ। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा देविं वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहयं जाणरूवेणं जामाणिं जाणइ-पासइ? गोयमा! १. अत्थेगइए देविं पासइ, नो जाणं पासइ। २. अत्थेगइए जाणं पासइ, नो देविं पासइ। ३. अत्थेगइए देविं पि पासइ, जाणं पि पासइ। ४. अत्थेगइए नो देविं पासइ, नो जाणं पासइ। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा देवं सदेवीअं वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहयं जाणरूवेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या भावितात्मा अनगार, वैक्रिय समुद्‌घात से समवहत हुए और यानरूप से जाते हुए देव को जानता देखता है ? गौतम ! (१) कोई (भावितात्मा अनगार) देव को तो देखता है, किन्तु यान को नहीं देखता; (२) कोई यान को देखता है, किन्तु देव को नहीं देखता; (३) कोई देव को भी देखता है और यान को भी देखता है; (४) कोई न देव को देखता है और न यान को
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-४ यान Hindi 188 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू वेभारं पव्वयं उल्लंघेत्तए वा? पल्लंघेत्तए वा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू वेभारं पव्वयं उल्लंघेत्तए वा? पल्लंघेत्तए वा? हंता पभू। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता जावइयाइं रायगिहे नगरे रूवाइ, एवइयाइं विकुव्वित्ता वेभारं पव्वयं अंतो अनुप्पविसित्ता पभू समं वा विसमं करेत्तए? विसमं वा समं करेत्तए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता जावइयाइं रायगिहे नगरे रूवाइं, एवइयाइं विकुव्वित्ता वेभारं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण किए बिना वैभारगिरि को उल्लंघ सकता है, अथवा प्रलंघ सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार बाह्य पुद्‌गलों को ग्रहण करके क्या वैभारगिरि को उल्लंघन या प्रलंघन करने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! वह वैसा करने में समर्थ है। भगवन्‌ ! भावितात्मा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-५ स्त्री Hindi 189 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगं महं इत्थीरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउव्वित्तए? नो इणट्ठे समट्ठे। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगं महं इत्थीरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउव्वित्तए? हंता पभू। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा केवइआइं पभू इत्थिरूवाइं विउव्वित्तए? गोयमा! से जहानामए–जुवइं जुवाणे हत्थेणं हत्थंसि गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव अणवारे वि भाविअप्पा वेउव्वियससमुग्घाएणं समोहण्णइ जाव पभू णं गोयमा! अनगारे णं भाविअप्पा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं इत्थि-रूवेहिं आइण्णं वितिकिण्णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण किए बिना एक बड़े स्त्रीरूप यावत्‌ स्यन्द – मानिका रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण करके क्या एक बड़े स्त्रीरूप की यावत्‌ स्यन्दमानिका रूप की विकुर्वणा कर सकता है ? हाँ, गौतम ! वह वैसा कर सकता है। भगवन्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-६ नगर Hindi 191 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा मायी मिच्छदिट्ठी वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए विभंगनाणलद्धीए वाणारसिं नगरिं समोहए, समोहणित्ता रायगिहे नगरे रूवाइं जाणइ-पासइ? हंता जाणइ-पासइ। से भंते! किं तहाभावं जाणइ-पासइ? अन्नहाभावं जाणइ-पासइ? गोयमा! नो तहाभावं जाणइ-पासइ, अन्नहाभावं जाणइ-पासइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ– तहाभावं जाणइ-पासइ? अन्नहाभावं जाणइ-पासइ? गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं रायगिहे नगरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए रूवाइं जाणामि-पासामि सेसं दंसण-विवच्चासे भवइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–नो तहाभावं जाणइ-पासइ, अन्नहाभावं जाणइ-पासइ। अनगारे णं भंते! भावियप्पा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! राजगृह नगर में रहा हुआ मिथ्यादृष्टि और मायी भावितात्मा अनगार वीर्यलब्धि से, वैक्रियलब्धि से और विभंगज्ञानलब्धि से वाराणसी नगरी की विकुर्वणा करके क्या तद्‌गत रूपों को जानता – देखता है ? हाँ, गौतम ! वह जानता और देखता है। भगवन्‌ ! क्या वह (उन रूपों को) यथार्थरूप से जानता – देखता है, अथवा अन्यथाभाव से जानता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-६ नगर Hindi 192 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भाविअप्पा अमायी सम्मदिट्ठी वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए रायगिहं नगरं समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रूवाइं जाणइ-पासइ? हंता जाणइ-पासइ। से भंते! किं तहाभावं जाणइ-पासइ? अन्नहाभावं जाणइ-पासइ? गोयमा! तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अन्नहाभावं जाणइ-पासइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अन्नहाभावं जाणइ-पासइ? गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं रायगिहे नयरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रूवाइं जाणामि-पासामि सेस दंसण-अविवच्चासे भवति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अन्नहाभावं जाणइ-पासइ। अनगारे णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अमायी सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार, अपनी वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धि और अवधिज्ञानलब्धि से, राजगृहनगर और वाराणसी नगरी के बीच में एक बड़े जनपदवर्ग को जानता – देखता है ? हाँ (गौतम ! उस जनपदवर्ग को) जानता – देखता है। भगवन्‌ ! क्या वह उस जनपदवर्ग को तथाभाव से जानता और देखता है, अथवा अन्यथाभाव से ? गौतम! वह उस जनपदवर्ग
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-११ काल Hindi 520 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वासुदेवमायरो वासुदेवंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुविणाणं अन्नयरेसु सत्त महा- सुविणे पासित्ता णं पडिबु-ज्झंति। बलदेवमायरो बलदेवंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुविणाणं अन्नयरेसु चत्तारि महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झंति। मंडलियमायरो मंडलियंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसि णं चोद्दसण्हं महासुविणाणं अन्नयरं एगं महासुविणं पासित्ता णं पडिबुज्झंति। इमे य णं देवानुप्पिया! पभावतीए देवीए एगे महासुविणे दिट्ठे, तं ओराले णं देवानुप्पिया! पभावतीए देवीए सुविणे दिट्ठे जाव आरोग्ग-तुट्ठिदीहाउ कल्लाण-मंगल्लकारए णं देवानुप्पिया! पभावतीए देवीए

Translated Sutra: ‘हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने इनमें से एक महास्वप्न देखा है। अतः हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने उदार स्वप्न देखा है, सचमुच प्रभावती देवी ने यावत्‌ आरोग्य, तुष्टि यावत्‌ मंगलकारक स्वप्न देखा है। हे देवानुप्रिय ! इस स्वप्न के फलरूप आपको अर्थलाभ, भोगलाभ, पुत्रलाभ एवं राज्यलाभ होगा।’ अतः हे देवानुप्रिय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-९ अनगारवैक्रिय Hindi 594 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–से जहानामए केइ पुरिसे केयाघडियं गहाय गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे वि भावियप्पा केयाघडियाकिच्चहत्थगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? हंता उप्पएज्जा। अनगारे णं भंते! भावियप्पा केवतियाइं पभू केयाघडियाकिच्चहत्थगयाइं रूवाइं विउव्वित्तए? गोयमा! से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव अनगारे वि भावि-अप्पा वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ जाव पभू णं गोयमा! अनगारे णं भाविअप्पा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं इत्थिरूवेहिं आइण्णं वितिकिण्णं उवत्थडं संथडं फुडं अवगाढावगाढं करेत्तए। एस णं

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! जैसे कोई पुरुष रस्सी से बंधी हुई घटिका लेकर चलता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी रस्सी से बंधी हुई घटिका स्वयं हाथ में लेकर ऊंचे आकाश में उड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! उड़ सकता है। भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार रस्सी से बंधी हुई घटिका हाथ में ग्रहण करने रूप कितने रूपों की विकुर्वणा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-१ चरम Hindi 597 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–अनगारे णं भंते! भावियप्पा चरमं देवावासं वीतिक्कंते, परमं देवावासमसंपत्ते, एत्थ णं अंतरा कालं करेज्जा, तस्स णं भंते! कहिं गती? कहिं उववाए पन्नत्ते? गोयमा! जे से तत्थ परिपस्सओ तल्लेसा देवावासा, तहिं तस्स गती, तहिं तस्स उववाए पन्नत्ते। से य तत्थ गए विराहेज्जा कम्मलेस्सामेव पडिपडति, से य तत्थ गए नो विराहेज्जा, तामेव लेस्सं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! (कोई) भावितात्मा अनगार, (जिसने) चरम देवलोक का उल्लंघन कर लिया हो, किन्तु परम को प्राप्त न हुआ हो, यदि वह इस मध्य में ही काल कर जाए तो भन्ते ! उसकी कौन – सी गति होती है, कहाँ उपपात होता है ? गौतम ! जो वहाँ परिपार्श्व में उस लेश्या वाले देवावास होते हैं, वही उसकी गति होती है और वहीं उसका
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-१ चरम Hindi 598 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा चरमं असुरकुमारावासं वीतिक्कंते, परमं असुरकुमारावासमसंपत्ते, एत्थ णं अंतरा कालं करेज्जा, तस्स णं भंते! कहिं गती? कहिं उववाए पन्नत्ते? गोयमा! जे से तत्थ परिपस्सओ तल्लेसा असुरकुमारावासा, तहिं तस्स गती, तहिं तस्स उववाए पन्नत्ते। से य तत्थ गए विराहेज्जा कम्मलेस्सामेव पडिपडति, से य तत्थ गए नो विराहेज्जा, तामेव लेस्सं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। एवं जाव थणियकुमा-रावासं, जोइसियावासं, एवं वेमाणियावासं जाव विहरइ। नेरइयाणं भंते! कहं सीहा गती? कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते? गोयमा! से जहानामए–केइपुरिसे तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पातंके थिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय-पास-पिट्ठंतरोरुपरिणते

Translated Sutra: भगवन्‌ ! (कोई) भावितात्मा अनगार, जो चरम असुरकुमारावास का उल्लंघन कर गया और परम असुर – कुमारावास को प्राप्त नहीं हुआ, यदि बीच में ही वह काल कर जाए तो उसकी कौन – सी गति होती है, उसका कहाँ उपपात होता है? गौतम ! पूर्ववत्‌। इसी प्रकार स्तनितकुमारावास, ज्योतिष्कावास और वैमानिकावास पर्यन्त जानना भगवन्‌ ! नैरयिक जीवों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-३ शरीर Hindi 603 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महाकाए महासरीरे अनगारस्स भावियप्पणो मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? गोयमा! अत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा? गोयमा! दुविहा देवा पन्नत्ता, तं जहा–मायीमिच्छादिट्ठीउववन्नगा य, अमायीसम्मदिट्ठी-उववन्नगा य। तत्थ णं जे से मायी-मिच्छदिट्ठीउववन्नए देवे से णं अनगारं भावियप्पाणं पासइ, पासित्ता नो वंदइ, नो नमंसइ, नो सक्कारेइ, नो सम्माणेइ, नो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासइ। से णं अनगारस्स भावियप्पणो मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा। तत्थ णं जे से अमायी-सम्मद्दिट्ठीउववन्नए देवे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या महाकाय और महाशरीर देव भावितात्मा अनगार के बीच में होकर – नीकल जाता है ? गौतम ! कोई नीकल जाता है, और कोई नहीं जाता है। भगवन्‌ ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! देव दो प्रकार के हैं, मायी – मिथ्यादृष्टि – उपपन्नक एवं अमायी – सम्यग्दृष्टि – उपपन्नक। इन दोनों में से जो मायी – मिथ्यादृष्टि – उपपन्नक देव होता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-९ अनगार Hindi 631 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा अप्पणो कम्मलेस्सं न जाणइ, न पासइ, तं पुण जीवं सरूविं सकम्मलेस्सं जाणइ-पासइ। हंता गोयमा! अनगारे णं भावियप्पा अप्पणो कम्मलेस्सं न जाणइ, न पासइ, तं पुण जीवं सरूविं सकम्मलेस्सं जाणइ पासइ। अत्थि णं भंते! सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति उज्जोएंति तवेंति पभासेंति? हंता अत्थि। कयरे णं भंते! सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति जाव पभासेंति? गोयमा! जाओ इमाओ चंदिम-सूरियाणं देवाणं विमानेहिंतो लेस्साओ बहिया अभिनिस्स-डाओ पभावेंति, एए णं गोयमा! ते सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति उज्जोएंति तवेंति पभासेंति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अपनी कर्मलेश्या को नहीं जानने – देखने वाला भावितात्मा अनगार, क्या सरूपी (सशरीर) और कर्मलेश्या – सहित जीव को जानता – देखता है ? हाँ, गौतम ! भावितात्मा अनगार, जो अपनी कर्मलेश्या को नहीं जानता – देखता, वह सशरीर एवं कर्मलेश्या वाले जीव को जानता – देखता है। भगवन्‌ ! क्या सरूपी, सकर्मलेश्य पुद्‌गलस्कन्ध अवभासित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-३ कर्म Hindi 671 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदायि रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं उल्लुयतीरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं उल्लुयतीरस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए, एत्थ णं एगजंबुए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदायि पुव्वानुपुव्विं चर-माणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे एगजंबुए समोसढे जाव परिसा पडिगया। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अनगारस्स णं भंते! भावियप्पणो छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं

Translated Sutra: किसी समय एक दिन श्रमण भगवान महावीर राजगृहनगर के गुणशीलक नामक उद्यान से नीकले और बाहर के (अन्य) जनपदों में विहार करने लगे। उस काल उस समय में उल्लूकतीर नामका नगर था। (वर्णन) उस उल्लूकतीर नगर के बाहर ईशानकोण में ‘एकजम्बुक’ उद्यान था। एक बार किसी दिन श्रमण भगवान महावीर स्वामी अनुक्रम से विचरण करते हुए यावत्‌ ‘एकजम्बूक’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-३ माकंदी पुत्र Hindi 729 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से मागंदियपुत्ते अनगारे उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– अनगारस्स णं भंते! भावियप्पणो सव्वं कम्मं वेदेमाणस्स सव्वं कम्मं निज्जरेमाणस्स सव्वं मारं मरमाणस्स सव्वं सरीरं विप्पजहमाणस्स, चरिमं कम्मं वेदेमाणस्स चरिमं कम्मं निज्जरेमाणस्स चरिमं मारं मरमाणस्स चरिमं सरीरं विप्पजहमाणस्स, मारणंतियं कम्मं वेदेमाणस्स मारणंतियं कम्मं निज्जरेमाणस्स मारणंतियं मारं मरमाणस्स मारणंतियं सरीरं विप्पजहमाणस्स जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ माकन्दिपुत्र अनगार अपने स्थान से उठे और श्रमण भगवान महावीर के पास आए। उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया और इस प्रकार पूछा – ‘भगवन्‌ ! सभी कर्मों को वेदते हुए, सर्व कर्मों की निर्जरा करते हुए, समस्त मरणों से मरते हुए, सर्वशरीर को छोड़ते हुए तथा चरम कर्म को वेदते हुए, चरम कर्म की निर्जरा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-८ अनगार क्रिया Hindi 749 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–अनगारस्स णं भंते! भावियप्पणो पुरओ दुहओ जुगमायाए पेहाए रीयं रीयमाणस्स पायस्स अहे कुक्कुडपोते वा वट्टापोते वा कुलिंगच्छाए वा परियावज्जेज्जा, तस्स णं भंते! किं इरियावहिया किरिया कज्जइ? संपरा-इया किरिया कज्जइ? गोयमा! अनगारस्स णं भावियप्पणो पुरओ दुहओ जुगमायाए पेहाए रीयं रीयमाणस्स पायस्स अहे कुक्कुडपोते वा वट्टपोते वा कुलिंगच्छाए वा परियावज्जेज्जा, तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जइ, नो संपराइया किरिया कज्जइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ? गोयमा! जस्स णं कोह-मान-माया-लोभा वोच्छिन्ना भवंति तस्स णं रियावहिया किरिया कज्जइ, जस्स णं कोहमाण-माया-लोभा

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! सम्मुख और दोनों ओर युगमात्र भूमि को देखदेख कर ईर्यापूर्वक गमन करते हुए भावितात्मा अनगार के पैर के नीचे मुर्गी का बच्चा, बतख का बच्चा अथवा कुलिंगच्छाय आकर मर जाएं तो, उक्त अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है या साम्परायिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! यावत्‌ उस भावितात्मा अनगार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१० सोमिल Hindi 753 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–अनगारे णं भंते! भावियप्पा असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा? हंता ओगाहेज्जा। से णं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा? नो इणट्ठे समट्ठे। नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। अनगारे णं भंते! भावियप्पा अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा। से णं भंते! तत्थ ज्झियाएज्जा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। अनगारे णं भंते! भावियप्पा पुक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा। से णं भंते! तत्थ उल्ले सिया? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। अनगारे णं भंते! भावियप्पा गंगाए महानदीए पडिसोयं हव्वमागच्छेज्जा?

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! क्या भावितात्मा अनगार तलवार की धार पर अथवा उस्तरे की धार पर रह सकता है ? हाँ, गौतम ! रह सकता है। (भगवन्‌ !) क्या वह वहाँ छिन्न या भिन्न होता है ? (गौतम !) यह अर्थ समर्थ नहीं। क्योंकि उस पर शस्त्र संक्रमण नहीं करता। इत्यादि सब पंचम शतक में कही हुई परमाणु – पुद्‌गल की वक्तव्यता, यावत्‌
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 61 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते मुहुत्ताणं नामधेज्जा आहिताति वदेज्जा? ता एगमेगस्स णं अहोरत्तस्स तीसं मुहुत्ता पण्णत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! मुहूर्त्त के नाम किस प्रकार हैं ? एक अहोरात्र के तीस मुहूर्त्त बताये हैं – यथानुक्रम से – इस प्रकार से हैं। रौद्र, श्रेयान्‌, मित्रा, वायु, सुग्रीव, अभिचन्द्र, माहेन्द्र, बलवान्‌, ब्रह्मा, बहुसत्य, ईशान तथा – त्वष्ट्रा, भावितात्मा, वैश्रवण, वरुण, आनंद, विजया, विश्वसेन, प्रजापति, उपशम तथा – गंधर्व, अग्निवेश,
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

चूलिका-१ रतिवाक्या

Hindi 515 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अज्ज आहं गणी हुंतो भावियप्पा बहुस्सुओ । जइ हं रमंतो परियाए सामण्णे जिनदेसिए ॥

Translated Sutra: यदि मैं भावितात्मा और बहुश्रुत होकर जिनोपदिष्ट श्रामण्य – पर्याय में रमण करता तो आज मैं गणी (आचार्य) होता।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 289 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगस्स णं भंते! मासस्स कइ पक्खा पन्नत्ता? गोयमा! दो पक्खा पन्नत्ता, तं जहा–बहुलपक्खे य सुक्कपक्खे य। एगमेगस्स णं भंते! पक्खस्स कइ दिवसा पन्नत्ता? गोयमा! पन्नरस दिवसा पन्नत्ता, तं जहा–पडिवादिवसे बिइयादिवसे जाव पन्नरसीदिवसे। एएसि णं भंते! पन्नरसण्हं दिवसाणं कइ नामधेज्जा पन्नत्ता? गोयमा! पन्नरस नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रत्येक महीने के कितने पक्ष हैं ? गौतम ! दो, कृष्ण तथा शुक्ल। प्रत्येक पक्ष के पन्द्रह दिन हैं, – १. प्रतिपदा – दिवस, २. द्वितीया – दिवस, ३. तृतीया – दिवस यावत्‌ १५. पंचदशी – दिवस – अमावस्या या पूर्णमासी का दिन। इन पन्द्रह दिनों के पन्द्रह नाम हैं, जैसे – १. पूर्वाङ्ग, २. सिद्धमनोरम, ३. मनोहर, ४. यशोभद्र, ५. यशोधर,
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१५ ईन्द्रिय

उद्देशक-१ Hindi 426 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारस्स णं भंते! भाविअप्पणो मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला पन्नत्ता समणाउसो!? सव्वलोगं पि य णं ते ओगाहित्ता णं चिट्ठंति? हंता गोयमा! अनगारस्स णं भाविअप्पणो मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला पन्नत्ता समणाउसो! सव्वलोगं पि य णं ते ओगाहित्ता णं चिट्ठंति। छउमत्थे णं भंते! मनूसे तेसिं निज्जरापोग्गलाणं किं आणत्तं वा णाणत्तं वा ओमत्तं वा तुच्छत्तं वा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा जाणति पासति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–छउमत्थे णं मनूसे तेसिं निज्जरापोग्गलाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मारणान्तिक समुद्‌घात से समवहत भावितात्मा अनगार के जो चरम निर्जरा – पुद्‌गल हैं, क्या वे पुद्‌गल सूक्ष्म हैं ? क्या वे सर्वलोक को अवगाहन करके रहते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है। भगवन्‌ ! क्या छद्मस्थ मनुष्य उन निर्जरा – पुद्‌गलों के अन्यत्व, नानात्व, हीनत्व, तुच्छत्व, गुरुत्व या लघुत्व को जानता – देखता है
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 614 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारस्स णं भंते! भावियप्पणो केवलिसमुग्घाएणं समोहयस्स जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला पन्नत्ता समणाउसो! सव्वलोगं पि य णं ते फुसित्ता णं चिट्ठंति? हंता गोयमा! अनगारस्स भावियप्पणो केवलिसमुग्घाएणं समो-हयस्स जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला पन्नत्ता समणाउसो! सव्वलोगं पि य णं ते फुसित्ता णं चिट्ठंति। छउमत्थे णं भंते! मनूसे तेसिं निज्जरापोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेण वा फासं जाणति पासति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–छउमत्थे णं मनूसे तेसिं निज्जरापोग्गलाणं नो किंचि वि वण्णेणं वण्णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! केवलिसमुद्‌घात से समवहत भावितात्मा अनगार के जो चरम निर्जरा – पुद्‌गल हैं, वे पुद्‌गल सूक्ष्म हैं? वे समस्त लोक को स्पर्श करके रहते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है। भगवन्‌ ! क्या छद्मस्थ मनुष्य उन निर्जरा – पुद्‌गलों के चक्षु – इन्द्रिय से वर्ण को, घ्राणेन्द्रिय से गन्ध को, रसनेन्द्रिय से रस को, अथवा स्पर्शेन्द्रिय
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-३०

Hindi 99 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थेरे णं मंडियपुत्ते तीसं वासाइं सामण्णपरियायं पाउणित्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे। एगमेगे णं अहोरत्ते तीसं मुहुत्ता मुहुत्तग्गेणं पन्नत्ता एएसि णं तीसाए मुहुत्ताणं तीसं नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा– रोद्दे सेते मित्ते वाऊ सुपीए अभियंदे माहिंदे पलंबे बंभे सच्चे आनंदे विजए वीससेने वायावच्चे उवसमे ईसाने तिट्ठे भावियप्पा वेसमणे वरुणे सतरिसभे गंधव्वे अग्गिवेसायणे आतवं आवधं तट्ठवे भूमहे रिसभे सव्वट्ठसिद्धे रक्खसे। अरे णं अरहा तीसं धणुइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। सहस्सारस्स णं देविंदस्स देवरन्नो तीसं सामानियसाहस्सीओ पन्नत्ताओ। पासे

Translated Sutra: स्थविर मण्डितपुत्र तीस वर्ष श्रमण – पर्याय का पालन करके सिद्ध, बुद्ध हुए, यावत्‌ सर्व दुःखों से रहित हुए। एक – एक अहोरात्र (दिन – रात) मुहूर्त्त – गणना की अपेक्षा तीस मुहूर्त्त का कहा गया है। इन तीस मुहूर्त्तों के तीस नाम हैं। जैसे – रौद्र, शक्त, मित्र, वायु, सुपीत, अभिचन्द्र, माहेन्द्र, प्रलम्ब, ब्रह्म, सत्य, आनन्द,
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Hindi 308 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमसिस्सिणीओ होत्था, तं जहा–

Translated Sutra: इन चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस प्रथम शिष्याएं थीं। जैसे – १. ब्राह्मी, २. फल्गु, ३. श्यामा, ४. अजिता, ५. काश्यपी, ६. रति, ७. सोमा, ८. सुमना, ९. वारुणी, १०. सुलसा, ११. धारिणी, १२. धरणी, १३. धरणिधरा, १४. पद्मा, १५. शिवा, १६. शुचि, १७. अंजुका, १८. भावितात्मा, १९. बन्धुमती, २०. पुष्पवती, २१. आर्या अमिला, २२. यशस्विनी, २३. पुष्पचूला और २४. आर्या
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-२ Hindi 478 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचविहा इड्ढिमंता मनुस्सा पन्नत्ता, तं जहा– अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेवा, वासुदेवा, भावियप्पाणो अनगारा।

Translated Sutra: पाँच प्रकार के ऋद्धिमान्‌ मनुष्य हैं, यथा – अर्हन्त, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, भावितात्मा अणगार।
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१०

प्राभृत-प्राभृत-१३ Hindi 57 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते मुहुत्ताणं नामधेज्जा आहिताति वदेज्जा? ता एगमेगस्स णं अहोरत्तस्स तीसं मुहुत्ता पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! मुहूर्त्त के नाम किस प्रकार हैं ? एक अहोरात्र के तीस मुहूर्त्त बताये हैं – यथानुक्रम से – इस प्रकार से हैं। रौद्र, श्रेयान्‌, मित्रा, वायु, सुग्रीव, अभिचन्द्र, माहेन्द्र, बलवान्‌, ब्रह्मा, बहुसत्य, ईशान तथा – त्वष्ट्रा, भावितात्मा, वैश्रवण, वरुण, आनंद, विजया, विश्वसेन, प्रजापति, उपशम तथा – गंधर्व, अग्निवेश,
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१३ यथातथ्य

Hindi 569 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे भासवं भिक्खु सुसाहुवादी पडिहाणवं होइ विसारए य । आगाढपण्णे ‘सुय-भावियप्पा’ अन्नं जणं पण्णसा परिहवेज्जा ॥

Translated Sutra: जो सुसाधुवादी, भाषावान्‌, प्रतिभावान्‌, विशारद, प्रखर – प्राज्ञ और श्रुतभावितात्मा है वह दूसरों को अपनी प्रज्ञा से पराभूत कर देता है।
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