Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (59)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-४ अव्यक्त Hindi 169 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गामाणुगामं दूइज्जमाणस्स दुज्जातं दुप्परक्कंतं भवति अवियत्तस्स भिक्खुणो

Translated Sutra: जो भिक्षु (अभी तक) अव्यक्त अवस्थामें है, उसका अकेले ग्रामानुग्राम विहार करना दुर्यात्‌ और दुष्पराक्रम है
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-४ अव्यक्त Gujarati 169 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गामाणुगामं दूइज्जमाणस्स दुज्जातं दुप्परक्कंतं भवति अवियत्तस्स भिक्खुणो

Translated Sutra: જે સાધુ જ્ઞાન અને વયથી અપરિપક્વ છે; તેનું એકલા ગ્રામાનુગ્રામ વિચરણ અયોગ્ય છે કેમ કે એકલો વિચરે તે નિંદનીય છે. તેનું તે દુ:સાહસ – પૂર્વકનું પરાક્રમ છે, કેમ કે તે તેને માટે ચારિત્રભ્રષ્ટ થવાનું કારણ છે.
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दसा-५ चित्तसमाधि स्थान

Hindi 24 Gatha Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुसमाहडलेसस्स, अवितक्कस्स भिक्खुणो । सव्वओ विप्पमुक्कस्स, आया जाणति पज्जवे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २३
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दसा-५ चित्तसमाधि स्थान

Gujarati 24 Gatha Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुसमाहडलेसस्स, अवितक्कस्स भिक्खुणो । सव्वओ विप्पमुक्कस्स, आया जाणति पज्जवे ॥

Translated Sutra: સુસમાધિયુક્ત પ્રશસ્ત લેશ્યાવાળા વિતર્ક રહિત ભિક્ષુ અને સર્વબંધનથી મૂકાયેલા આત્મા મનના પર્યાયોને જાણે છે. એટલે કે મનઃપર્યવજ્ઞાની થાય છે..
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Hindi 213 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वड्ढई सोंडिया तस्स मायमोसं च भिक्खुणो । अयसो य अनिव्वाणं सययं च असाहुया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २१२
Dashvaikalik દશવૈકાલિક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Gujarati 213 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वड्ढई सोंडिया तस्स मायमोसं च भिक्खुणो । अयसो य अनिव्वाणं सययं च असाहुया ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૧૧
Jitakalpa जीतकल्प सूत्र Ardha-Magadhi

तप प्रायश्चित्तं

Hindi 73 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एत्थ-पुण बहुतरां भिक्खुणो त्ति अकयकरणाणभिगया य । जंतेण जीयमट्ठमभतंतं निव्वियाईयं ॥

Translated Sutra: इस जीत व्यवहार में कईं तरह के साधु हैं। जैसे कि अकृत्य करनेवाले, अगीतार्थ, अज्ञात इस कारण से जीत व्यवहार में नीवि से अठ्ठम पर्यन्त तप प्रायश्चित्त हैं। (अब ‘पड़िसेवणा’ बताते हैं।)
Jitakalpa જીતકલ્પ સૂત્ર Ardha-Magadhi

तप प्रायश्चित्तं

Gujarati 73 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एत्थ-पुण बहुतरां भिक्खुणो त्ति अकयकरणाणभिगया य । जंतेण जीयमट्ठमभतंतं निव्वियाईयं ॥

Translated Sutra: આ જીત વ્યવહારમાં ઘણા પ્રકારના સાધુઓ છે. જેમ કે, અકૃત્ય કરનાર, અગીતાર્થ, અજ્ઞાત. આ કારણથી જીત વ્યવહારમાં નીવિથી અઠ્ઠમ પર્યન્તનો પ્રાયશ્ચિત્ત તપ જણાવવામાં આવેલ છે.
Saman Suttam Saman Suttam Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

९. धर्मसूत्र English 108 View Detail
Mool Sutra: चत्तपुत्तकलत्तस्स, निव्वावारस्स भिक्खुणो। पियं न विज्जई किंचि, अप्पियं पि न विज्जए।।२७।।

Translated Sutra: Please see 107; Refers 107-108
Saman Suttam સમણસુત્તં Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

९. धर्मसूत्र Gujarati 108 View Detail
Mool Sutra: चत्तपुत्तकलत्तस्स, निव्वावारस्स भिक्खुणो। पियं न विज्जई किंचि, अप्पियं पि न विज्जए।।२७।।

Translated Sutra: મહેરબાની કરીને જુઓ ૧૦૭; સંદર્ભ ૧૦૭-૧૦૮
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

९. धर्मसूत्र Hindi 108 View Detail
Mool Sutra: चत्तपुत्तकलत्तस्स, निव्वावारस्स भिक्खुणो। पियं न विज्जई किंचि, अप्पियं पि न विज्जए।।२७।।

Translated Sutra: कृपया देखें १०७; संदर्भ १०७-१०८
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-२ वैतालिक

उद्देशक-२ Hindi 126 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नोअभिकंखेज्ज जीवियं नो वि य पूयणपत्थए सिया । ‘अब्भत्थमुवेंति भेरवा’ सुण्णागारगयस्स भिक्खुणो

Translated Sutra: वह भिक्षु जीवन का आकांक्षी न बने एवं न ही पूजन का प्रार्थी बने। शून्यगृहमें स्थित भिक्षु के भैरव आदि प्राणी अभ्यस्त/सह्य हो जाते हैं।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-२ वैतालिक

उद्देशक-२ Hindi 129 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहिगरणकरस्स भिक्खुणो वयमाणस्स पसज्झ दारुणं । अट्ठे ‘परिहायई बहू’ अहिगरणं न करेज्ज पंडिए ॥

Translated Sutra: कलह करने वाले, तिरस्कारपूर्ण और कठोर – वचन बोलने वाले भिक्षु का बहु/परम अर्थ नष्ट हो जाता है। इसलिए पण्डित कलह न करे।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-२ वैतालिक

उद्देशक-३ Hindi 143 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संवुडकम्मस्स भिक्खुणो जं दुक्खं पुट्ठं अबोहिए । तं संजमओऽवचिज्जई मरणं हेच्च वयंति पंडिया ॥

Translated Sutra: संवृत्तकर्मी भिक्षु के लिए अज्ञानता से जो दुःख स्पृष्ट होता है, वह संयम से क्षीण होता है। पंडित – पुरुष मरण को छोड़कर चले जाते हैं।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-४ स्त्री परिज्ञा

उद्देशक-१ Hindi 248 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुहुमेणं तं परक्कम्म छन्नपएण इत्थीओ मंदा । ‘उवायं पि ताओ जाणंति’ जह लिस्संति भिक्खुणो एगे ॥

Translated Sutra: मन्द स्त्रियाँ सूक्ष्म एवं स्वच्छन्द पराक्रम कर उस उपाय को भी जानती हैं जिससे कुछ भिक्षु श्लिष्ट होते हैं
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-४ स्त्री परिज्ञा

उद्देशक-२ Hindi 278 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ओए सया न रज्जेज्जा भोगकामी पुणो विरज्जेज्जा । भोगे समणान सुणेहा ‘जह भुंजंति भिक्खुणो एगे’ ॥

Translated Sutra: ओजवान्‌ सदा अनासक्त रहे। भोगकामी पुनः विरक्त हो जाए। श्रमणों के भोगों को सूनो, जैसा कुछ भिक्षु भोगते हैं।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 641 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा –आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नीयागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राय भवति–महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति–उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, ‘नागा नागपुत्ता’, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता, पसत्थारो पसत्थपुत्ता, सेणावई सेणावइपुत्ता। तेसिं

Translated Sutra: इस मनुष्य लोक में पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाओं में उत्पन्न कईं प्रकार के मनुष्य होते हैं, जैसे कि – उन मनुष्यों में कईं आर्य होते हैं अथवा कईं अनार्य होते हैं, कईं उच्चगोत्रीय होते हैं, कईं नीचगोत्रीय। उनमें से कोई भीमकाय होता है, कईं ठिगने कद के होते हैं। कोई सुन्दर वर्ण वाले होते हैं, तो कोई बूरे वर्ण
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 642 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे दोच्चे पुरिसजाए पंचमहब्भूइए त्ति आहिज्जइ– इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा–आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नियागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवति– महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति–उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, नागा नागपुत्ता, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता,

Translated Sutra: पूर्वोक्त प्रथम पुरुष से भिन्न दूसरा पुरुष पञ्चमहाभूतिक कहलाता है। इस मनुष्यलोक की पूर्व आदि दिशाओं में मनुष्य रहते हैं। वे क्रमशः नाना रूपों में मनुष्यलोक में उत्पन्न होते हैं, जैसे कि – कोई आर्य होते हैं, कोई अनार्य। यावत्‌ कोई कुरूप आदि होते हैं। उन मनुष्यों में से कोई एक महान पुरुष राजा होता है। यावत्‌
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 643 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे तच्चे पुरिसजाते ईसरकारणिए त्ति आहिज्जइ– इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा–आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नियागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवति– महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति– उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, नागा नागपुत्ता, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता,

Translated Sutra: तीसरा पुरुष ‘ईश्वरकारणिक’ कहलाता है। इस मनुष्यलोक में पूर्व आदि दिशाओं में कईं मनुष्य होते हैं, जो क्रमशः इस लोक में उत्पन्न हैं। जैसे कि उनमें से कोई आर्य होते हैं, कोई अनार्य इत्यादि। उनमें कोई एक श्रेष्ठ पुरुष महान राजा होता है, इत्यादि पूर्ववत्‌। इन पुरुषों में से कोई एक धर्मश्रद्धालु होता है। उस धर्मश्रद्धालु
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 644 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे चउत्थे पुरिसजाते नियतिवाइए त्ति आहिज्जइ–इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा– आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नियागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवति–महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति– उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, नागा नागपुत्ता, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता,

Translated Sutra: अब नियतिवादी नामक चौथे पुरुष का वर्णन किया गया है। इस मनुष्यलोक में पूर्वादि दिशाओं के वर्णन से यावत्‌ प्रथम पुरुषोक्त पाठ के समान जानना। पूर्वोक्त राजा और उसके सभासदों में से कोई पुरुष धर्मश्रद्धालु होता है। उसे धर्मश्रद्धालु जान कर उसके निकट जाने का श्रमण और ब्राह्मण निश्चय करते हैं। यावत्‌ वे उसके
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-५ आचार श्रुत

Hindi 735 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दीसंति णिहुअप्पाणो भिक्खुणो साहुजीविणो । ‘एए मिच्छोवजीवित्ति’ इति दिट्ठिं न धारए ॥

Translated Sutra: साधुतापूर्वक जीने वाले, सम्यक्‌ आचारवंत निर्दोष भिक्षाजीवी साधु दृष्टिगोचर होते हैं, इसलिए ऐसी दृष्टि नहीं रखनी चाहिए कि साधुगण कपट से जीविका करते हैं।
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-२ वैतालिक

उद्देशक-२ Gujarati 126 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नोअभिकंखेज्ज जीवियं नो वि य पूयणपत्थए सिया । ‘अब्भत्थमुवेंति भेरवा’ सुण्णागारगयस्स भिक्खुणो

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૫
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-२ वैतालिक

उद्देशक-२ Gujarati 129 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहिगरणकरस्स भिक्खुणो वयमाणस्स पसज्झ दारुणं । अट्ठे ‘परिहायई बहू’ अहिगरणं न करेज्ज पंडिए ॥

Translated Sutra:
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-२ वैतालिक

उद्देशक-३ Gujarati 143 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संवुडकम्मस्स भिक्खुणो जं दुक्खं पुट्ठं अबोहिए । तं संजमओऽवचिज्जई मरणं हेच्च वयंति पंडिया ॥

Translated Sutra: કર્માસ્રવના કારણોને રોકનાર ભિક્ષુને અજ્ઞાનવશ જે કર્મ બંધાઈ જાય છે, તે સંયમ થકી નષ્ટ થાય છે, આવા પંડિત પુરુષ મરણને લાંધીને મોક્ષ પામે છે. જે પુરુષો સ્ત્રીઓથી સેવિત નથી, તેઓ મુક્ત પુરુષ જેવા છે, સ્ત્રી પરિત્યાગ પછી જ મુક્તિ મળે છે એમ જાણવું જોઈએ. જેણે કામભોગોને રોગ સમાન જાણી લીધા છે, તે પુરુષની જ મુક્તિ થાય છે. સૂત્ર
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Gujarati 641 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा –आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नीयागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राय भवति–महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति–उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, ‘नागा नागपुत्ता’, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता, पसत्थारो पसत्थपुत्ता, सेणावई सेणावइपुत्ता। तेसिं

Translated Sutra: આ મનુષ્યલોકમાં પૂર્વ, પશ્ચિમ, ઉત્તર અને દક્ષિણ દિશાઓમાં વિવિધ પ્રકારના મનુષ્યો અનુક્રમે લોકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. જેમ કે કોઈ આર્ય, કોઈ અનાર્ય, કોઈ ઉચ્ચગોત્રીય, કોઈ નીચગોત્રીય, કોઈ વિશાળકાય, કોઈ ઠીંગણા, કોઈ સુંદરવર્ણા, કોઈ હીનવર્ણા, કોઈ સુરૂપ, કોઈ કુરૂપ હોય છે. તે મનુષ્યોમાં એક રાજા થાય છે. ... તે મહાન હિમવંત, મલય, મંદર,
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Gujarati 642 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे दोच्चे पुरिसजाए पंचमहब्भूइए त्ति आहिज्जइ– इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा–आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नियागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवति– महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति–उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, नागा नागपुत्ता, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता,

Translated Sutra: હવે બીજો પંચમહાભૂતિક પુરુષજાત કહે છે – મનુષ્ય લોકમાં પૂર્વાદિ દિશામાં મનુષ્યો અનુક્રમે ઉત્પન્ન થયેલા હોય છે. જેમ કે કોઈ આર્ય છે – કોઈ અનાર્ય છે યાવત્‌ કોઈ કુરુપ છે. તેઓમાં કોઈ એક રાજા હોય. એ પ્રમાણે યાવત્‌ સેનાપતિપુત્ર જાણવા. તેમાં કોઈ એક શ્રદ્ધાળુ હોય છે. તે શ્રમણ કે બ્રાહ્મણ પાસે જવાની ઇચ્છા કરે છે. તે કોઈ
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Gujarati 643 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे तच्चे पुरिसजाते ईसरकारणिए त्ति आहिज्जइ– इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा–आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नियागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवति– महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति– उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, नागा नागपुत्ता, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता,

Translated Sutra: હવે ત્રીજો પુરુષ ઇશ્વરકારણવાદી કહેવાય છે, તેનું વર્ણન કરે છે – આ લોકમાં પૂર્વાદિ દિશામાં અનુક્રમે કેટલાય મનુષ્યો ઉત્પન્ન થાય છે. તેમાં કોઈ આર્ય હોય છે યાવત્‌ તેમાંનો કોઈ રાજા થાય છે. યાવત્‌ તેમાં કોઈ એક ધર્મશ્રદ્ધાળુ હોય છે. કોઈ શ્રમણ કે બ્રાહ્મણ તેની પાસે જવા નિશ્ચય કરે છે. યાવત્‌ મારો આ ધર્મ સુઆખ્યાત, સુપ્રજ્ઞપ્ત
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Gujarati 644 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे चउत्थे पुरिसजाते नियतिवाइए त्ति आहिज्जइ–इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा– आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नियागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवति–महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति– उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, नागा नागपुत्ता, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता,

Translated Sutra: હવે નિયતિવાદી નામના ચોથા પુરુષનું વર્ણન કરે છે. આ લોકમાં પૂર્વાદિ દિશામાં મનુષ્યો ઉત્પન્ન થાય છે ઇત્યાદિ પૂર્વવત્‌ જાણવું. તેમાં કોઈ એક ધર્મશ્રદ્ધાળુ હોય છે. શ્રમણ કે બ્રાહ્મણ તેની પાસે જવા નિશ્ચય કરે છે યાવત્‌ મારો આ ધર્મ સુઆખ્યાત, સુપ્રજ્ઞપ્ત છે. આ લોકમાં બે પ્રકારના પુરુષો હોય છે – એક ક્રિયાનું કથન કરે
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-४ स्त्री परिज्ञा

उद्देशक-१ Gujarati 248 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुहुमेणं तं परक्कम्म छन्नपएण इत्थीओ मंदा । ‘उवायं पि ताओ जाणंति’ जह लिस्संति भिक्खुणो एगे ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૪૭
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-४ स्त्री परिज्ञा

उद्देशक-२ Gujarati 278 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ओए सया न रज्जेज्जा भोगकामी पुणो विरज्जेज्जा । भोगे समणान सुणेहा ‘जह भुंजंति भिक्खुणो एगे’ ॥

Translated Sutra: સાધુ, રાગ – દ્વેષરહિત બનીને ભોગમાં કદી ચિત્ત ન કરે, જો કદી ભોગની ઇચ્છા થાય તો તેને જ્ઞાન વડે પાછું ખસેડે. છતાં કેટલાક સાધુ ભોગ ભોગવે છે, તે શ્રમણોના ભોગ તમે સાંભળો.
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-५ आचार श्रुत

Gujarati 735 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दीसंति णिहुअप्पाणो भिक्खुणो साहुजीविणो । ‘एए मिच्छोवजीवित्ति’ इति दिट्ठिं न धारए ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૩૩
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-११ बहुश्रुतपूज्य

Hindi 328 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संजोगा विप्पमुक्कस्स अनगारस्स भिक्खुणो । आयारं पाउकरिस्सामि आनुपुव्विं सुणेह मे ॥

Translated Sutra: सांसारिक बन्धनों से रहित अनासक्त गृहत्यागी भिक्षु के आचार का मैं यथाक्रम कथन करूँगा, उसे तुम मुझसे सुनो।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Hindi 436 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नागो जहा पंकजलावसन्नो दट्ठुं थलं नाभिसमेइ तीरं । एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा न भिक्खुणो मग्गमणव्वयामो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४३४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ विनयश्रुत

Hindi 1 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संजोगा विप्पमुक्कस्स अनगारस्स भिक्खुणो । विनयं पाउकरिस्सामि आनुपुव्विं सुणेह मे ॥

Translated Sutra: जो सांसारिक संयोगो से मुक्त है, अनगार है, भिक्षु है, उसके विनय धर्म का अनुक्रम से निरूपण करूँगा, उसे ध्यानपूर्वक मुझसे सुनो।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 77 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुक्करं खलु भो! निच्चं अनगारस्स भिक्खुणो । सव्वं से जाइयं होइ नत्थि किंचि अजाइयं ॥

Translated Sutra: वास्तव में अनगार भिक्षु ही यह चर्या सदा से ही दुष्कर रही है कि उसे वस्त्र, पात्र, आहारादि सब कुछ याचना से मिलता है। उसके पास कुछ भी अयाचित नहीं होता है। गोचरी के लिए घर में प्रविष्ट साधु के लिए गृहस्थ के सामने हाथ फैलाना सरल नहीं है, अतः ‘गृहवास ही श्रेष्ठ है’ – मुनि ऐसा चिन्तन न करे। सूत्र – ७७, ७८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 147 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न इमं सव्वेसु भिक्खूसु न इमं सव्वेसुगारिसु । नाणासीला अगारत्था विसमसीला य भिक्खुणो

Translated Sutra: देखो सूत्र १४६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 243 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चत्तपुत्तकलत्तस्स निव्वावारस्स भिक्खुणो । पियं न विज्जई किंचि अप्पियं पि न विज्जए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २४१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 244 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बहुं खु मुनिणो भद्दं अनगारस्स भिक्खुणो । सव्वओ विप्पमुक्कस्स एगंतमनुपस्सओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २४१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Hindi 418 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] महत्थरूवा वयणऽप्पभूया गाहाऽनुगीया नरसंघमज्झे । जं भिक्खुणो सोलगुणोववेया इहज्जयंते समणो म्हि जाओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४१६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय

Hindi 638 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तं बिंतम्मापियरो सामण्णं पुत्त! दुच्चरं । गुणाणं तु सहस्साइं धारेयव्वाइं भिक्खुणो

Translated Sutra: माता – पिता ने उसे कहा – पुत्र ! श्रामण्य – अत्यन्त दुष्कर है। भिक्षु को हजारों गुण धारण करने होते हैं।
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Gujarati 418 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] महत्थरूवा वयणऽप्पभूया गाहाऽनुगीया नरसंघमज्झे । जं भिक्खुणो सोलगुणोववेया इहज्जयंते समणो म्हि जाओ ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૧૬
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ विनयश्रुत

Gujarati 1 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संजोगा विप्पमुक्कस्स अनगारस्स भिक्खुणो । विनयं पाउकरिस्सामि आनुपुव्विं सुणेह मे ॥

Translated Sutra: જે સાંસારિક સંયોગોથી મુક્ત છે, અનગારગૃહત્યાગી) છે, ભિક્ષુ છે. તેમના વિનયધર્મનું અનુક્રમથી નિરૂપણ કરીશ, તેને મારી પાસેથી ધ્યાનથી સાંભળો.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Gujarati 77 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुक्करं खलु भो! निच्चं अनगारस्स भिक्खुणो । सव्वं से जाइयं होइ नत्थि किंचि अजाइयं ॥

Translated Sutra: નિશ્ચે અણગાર ભિક્ષુની આ ચર્યા સદા દુષ્કર છે કે તેમણે વસ્ત્ર, પાત્રાદિ બધું યાચનાથી મળે છે. તેની પાસે કંઈ અયાચિત ન હોય. ગૌચરીને માટે ઘરમાં પ્રવિષ્ટ સાધુને માટે ગૃહસ્થ સામે હાથ પ્રસારવો સરળ નથી, તેથી ગૃહવાસ જ શ્રેષ્ઠ છે, મુનિ એવું ન ચિંતવે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૭૭, ૭૮
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Gujarati 147 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न इमं सव्वेसु भिक्खूसु न इमं सव्वेसुगारिसु । नाणासीला अगारत्था विसमसीला य भिक्खुणो

Translated Sutra: આ સકામ મરણ બધા ભિક્ષુને પ્રાપ્ત ન થાય, ન બધા ગૃહસ્થોને પ્રાપ્ત થાય. ગૃહસ્થ વિવિધ પ્રકારના શીલથી સંપન્ન હોય, જ્યારે ઘણા ભિક્ષુ વિષમ શીલવાળા હોય છે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Gujarati 243 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चत्तपुत्तकलत्तस्स निव्वावारस्स भिक्खुणो । पियं न विज्जई किंचि अप्पियं पि न विज्जए ॥

Translated Sutra: પુત્ર, પત્ની અને ગૃહવ્યાપારથી મુક્ત ભિક્ષુને માટે કોઈ વસ્તુ તેને પ્રિય નથી હોતી કે અપ્રિય હોતી નથી. ‘બધી બાજુથી હું એકલો જ છું’ એ પ્રકારે એકાંતદ્રષ્ટા ગૃહત્યાગી મુનિને બધા પ્રકારથી સુખ જ સુખ છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૨૪૩, ૨૪૪
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Gujarati 244 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बहुं खु मुनिणो भद्दं अनगारस्स भिक्खुणो । सव्वओ विप्पमुक्कस्स एगंतमनुपस्सओ ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૪૩
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-११ बहुश्रुतपूज्य

Gujarati 328 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संजोगा विप्पमुक्कस्स अनगारस्स भिक्खुणो । आयारं पाउकरिस्सामि आनुपुव्विं सुणेह मे ॥

Translated Sutra: સાંસારિક બંધનોથી રહિત, ગૃહત્યાગી ભિક્ષુના આચારનું હું યથાક્રમે કથન કરીશ. તે તમે હવે મારી પાસેથી સાંભળો.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Gujarati 436 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नागो जहा पंकजलावसन्नो दट्ठुं थलं नाभिसमेइ तीरं । एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा न भिक्खुणो मग्गमणव्वयामो ॥

Translated Sutra: જેમ દળદળમાં ફસાયેલો હાથી સ્થળને જોઈને પણ કિનારે પહોંચી શકતો નથી. તેમ જ અમે કામભોગોમાં આસક્ત જન જાણતા હોવા છતાં ભિક્ષુમાર્ગનું અનુસરણ કરી શકતા નથી.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय

Gujarati 638 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तं बिंतम्मापियरो सामण्णं पुत्त! दुच्चरं । गुणाणं तु सहस्साइं धारेयव्वाइं भिक्खुणो

Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૩૮. ત્યારે માતા – પિતાએ તેને કહ્યું – હે પુત્ર ! શ્રામણ્ય અતિ દુષ્કર છે. ભિક્ષુને હજારો ગુણો ધારણ કરવાના હોય છે. સૂત્ર– ૬૩૯. જગતમાં શત્રુ અને મિત્ર પ્રતિ, સર્વ જીવો પ્રત્યે સમભાવ રાખવાનો છે. જીવન પર્યન્ત પ્રાણાતિપાત વિરતિ ઘણી દુષ્કર છે. સૂત્ર– ૬૪૦. સદા અપ્રમત્તભાવે મૃષાવાદ ત્યાગ કરવો, નિત્ય ઉપયોગપૂર્વક
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 91 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे भिक्खुणो बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पई आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८८
Showing 1 to 50 of 59 Results