Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures
Search :
Frequently Searched: , सेठ , जिण , Abhi , जीर्ण सेठ

Search Results (5529)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ सामायिक

Hindi 2 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] करेमि भंते सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।

Translated Sutra: हे भगवंत ! (हे पूज्य !) में (आपकी साक्षी में) सामायिक का स्वीकार करता हूँ यानि समभाव की साधना करता हूँ। जिन्दा हूँ तब तक सर्व सावद्य (पाप) योग का प्रत्याख्यान करता हूँ। यानि मन, वचन, काया की अशुभ प्रवृत्ति न करने का नियम करता हूँ। (जावज्जीव के लिए) मन से, वचन से, काया से (उस तरह से तीन योग से पाप व्यापार) मैं खुद न करूँ,
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ वंदन

Hindi 10 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, अणुजाणह मे मिउग्गहं निसीहि अहोकायं काय-संफासं खमणिज्जो मे किलामो, अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो वइक्कंतो जत्ता भे जवणिज्जं च भे, खामेमि खमासमणो देवसियं वइक्कमं आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाणं देवसियाए आसायणाए तित्तीसन्नयराए जं किंचि मिच्छाए मणदुक्कडाए वयदुक्कडाए कायदुक्कडाए कोहाए माणाए मायाए लोभाए सव्वकालियाए सव्वमिच्छोवयाराए सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ तस्स खमासमणो पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।

Translated Sutra: (शिष्य कहता है) हे क्षमा (आदि दशविध धर्मयुक्त) श्रमण, (हे गुरुदेव !) आपको मैं इन्द्रिय और मन की विषय विकार के उपघात रहित निर्विकारी और निष्पाप प्राणातिपात आदि पापकारी प्रवृत्ति रहित काया से वंदन करना चाहता हूँ। मुझे आपकी मर्यादित भूमि में (यानि साड़े तीन हाथ अवग्रह रूप – मर्यादा के भीतर) नजदीक आने की (प्रवेश करने
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 18 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि गोचरचरिआए भिक्खायरिआए उग्घाडकवाडउग्घाडणाए साणा-वच्छा-दारसंघट्टणाए मंडी-पाहुडियाए बलि-पाहुडियाए ठवणा-पाहुडियाए संकिए सहसागारे अणेसणाए [पाणेसणाए] पाणभोयणाए बीयभोयणाए हरियभोयणाए पच्छाकम्मियाए पुरेकम्मियाए अदिट्ठहडाए दगसंसट्ठहडाए रयसंसट्ठहडाए परिसाडणियाए पारिट्ठावणियाए ओहासणभिक्खाए जं उग्गमेणं उप्पायणेसणाए अपरिसुद्धं परिग्गहियं परिभुत्तं वा जं न परिट्ठवियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। (किसका ?) भिक्षा के लिए गोचरी घूमने में, लगे हुए अतिचार का (किस तरह से?) सांकल लगाए हुए या सामान्य से बन्ध किए दरवाजे – जाली आदि खोलने से कूत्ते – बछड़े या छोटे बच्चे का (केवल तिर्यंच का) संघट्टा – स्पर्श करने से, किसी बरतन आदि में अलग नीकालकर दिया गया आहार लेने से, अन्य धर्मी मूल भाजन में से
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 19 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि चाउक्कालं सज्झायस्स अकरणयाए उभओकालं भंडोवगरणस्स अप्पडिलेहणाए दुप्पडिलेहणाए अप्पमज्जणाए दुप्पमज्जणाए अइक्कमे वइक्कमे अइयारे अणायारे जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। (लेकिन किसका ?) दिन और रात के पहले और अन्तिम दो प्रहर ऐसे चार काल स्वाध्याय न करने के समान अतिचार का, दिन की पहली – अन्तिम पोरिसी रूप उभयकाल से पात्र – उपकरण आदि की प्रतिलेखना (दृष्टि के द्वारा देखना) न की या अविधि से की, सर्वथा प्रमार्जना न की या अविधि से प्रमार्जना की और फिर अतिक्रम – व्यतिक्रम,
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 26 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगवीसाए-सबलेहिं, बावीसाए-परीसहेहिं, तेवीसाए-सुयगडज्झयणेहिं, चउवीसाए-देवेहिं, पंचवीसाए-भावणाहिं, छव्वीसाए-दसाकप्पववहाराणं उद्देसणकालेहिं, सत्तावीसाए-अणगारगुणेहिं अट्ठावीसइविहे-आयारपकप्पेहिं, एगुणतीसाए-पावसुयपसंगेहिं तीसाए-मोहणीयट्ठाणेहिं एगतीसाए -सिद्धाइगुणेहिं, बत्तीसाए-जोगसंगहेहिं।

Translated Sutra: देखो सूत्र २५
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 27 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेत्तीसाए आसायणाहिं।

Translated Sutra: तैंतीस प्रकार की आशातना जो यहाँ सूत्र में ही बताई गई है उसके द्वारा लगे अतिचार, अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, साध्वी का अवर्णवाद से अबहुमान करने से, श्रावक – श्राविका की निंदा आदि से, देव – देवी के लिए कुछ भी बोलने से, आलोक – परलोक के लिए असत्‌ प्ररूपणा से, केवली प्रणित श्रुत या चारित्र धर्म की आशातना के द्वारा,
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 28 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अरिहंताणं आसायणाए सिद्धाणं आसायणाए आयरियाणं आसायणाए उवज्झायाणं आसायणाए साहूणं आसायणाए साहुणीणं आसायणाए सावयाणं आसायणाए सावियाणं आसायणाए देवाणं आसायणाए देवीणं आसायणाए इहलोगस्स आसायणाए परलोगस्स आसायणाए केवलिपन्नत्तस्सधम्मस्स आसायणाए सदेवमणुयासुरस्सलोगस्स आसायणाए सव्वपाणभूयजीव-सत्ताणं आसायणाए कालस्स आसायणाए सुयस्स आसायणाए सुयदेवयाए आसायणाए वायणायरियस्स आसायणाए।

Translated Sutra: देखो सूत्र २७
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 29 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जं वाइद्धं वच्चामेलियं हीणक्खरं अच्चक्खरं पयहीणं विणयहीणं घोसहीणं जोगहीणं सुट्ठुदिन्नं दुट्ठंपडिच्छियं अकाले कओसज्झाओ काले न कओ सज्झाओ असज्झाइए-सज्झाइयं सज्झाइए-न-सज्झाइयं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: देखो सूत्र २७
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 62 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो अहमपुव्वाइं कयाइं च मे किइ कम्माइं आयरमंतरे विणयमंतरे सेहिए सेहाविओ संगहिओ उवग्गहिओ सारिओ वारिओ चोइओ पडिचोइओ चिअत्ता मे पडिचोयणा उव्वट्ठिओहं तुब्भण्हं तवतेयसिरीए इमाओ चाउरंतसंसार-कंताराओ साहट्टु नित्थरिस्सामि त्तिकट्टु सिरसामणसा मत्थएण वंदामि –नित्थारगपारगाहोह।

Translated Sutra: हे क्षमा – श्रमण (पूज्य) ! मैं भावि में भी कृतिकर्म – वंदन करना चाहता हूँ। मैंने भूतकाल में जो वंदन किए उन वंदन में किसी ज्ञानादि आचार बिना किए हो, अविनय से किए हो आपने खुद मुझे वो आचार – विनय से शीखाए हो या उपाध्याय आदि अन्य साधु ने मुझे उसमें कुशल बनाया हो, आपने मुझे शिष्य की तरह सहारा दिया हो, ज्ञानादि – वस्त्रादि
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 80 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अतिहिसंविभागो नाम नायागयाणं कप्पणिज्जाणं अन्नपाणाईणं दव्वाणं देसकालसद्धा-सक्कारकमजुअं पराए भत्तीए आयाणुग्गहबुद्धीए संजयाणं दानं, अतिहिंसविभागस्स समणोवसएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– सच्चित्तनिक्खेवणया सचित्तपिहणया कालाइक्कमे परवएसे मच्छरिया य।

Translated Sutra: अतिथि संविभाग यानि साधु – साध्वी को कल्पनीय अन्न – पानी देना, देश, काल, श्रद्धा, सत्कार युक्त श्रेष्ठ भक्तिपूर्वक अनुग्रह बुद्धि से संयतो को दान देना। वो अतिथि संविभाग व्रतयुक्त श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए। वो इस प्रकार – अचित्त निक्षेप, सचित्त के द्वारा ढूँढ़ना, भोजनकाल बीतने के बाद दान देना,
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 81 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थं पुण समणोवासगधम्मे पंचाणुव्वयाइं तिन्नि गुणव्वयाइं आवकहियाइं चत्तारि सिक्खा-वयाइं इत्तरियाइं एयस्स पुणो समणोवासगधम्मस्स मूलवत्थु सम्मत्तं तं जहा– तं निसग्गेण वा अभिगमेणं वा पंच अइयारविसुद्धं अणुव्वय-गुणव्वयाइं च अभिग्गा अन्नेवि पडिमादओ विसेसकरणजोगा। अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणया इमीसे समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, काम-भोगासंसप्पओगे।

Translated Sutra: इस प्रकार श्रमणोपासक धर्म में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और यावत्कथिक या इत्वरकथिक यानि चिरकाल या अल्पकाल के चार शिक्षाव्रत बताए हैं। इन सबसे पहले श्रमणोपासक धर्म में मूल वस्तु सम्यक्त्व है। वो निसर्ग से और अभिमान से दो प्रकार से है। पाँच अतिचार रहित विशुद्ध अणुव्रत और गुणव्रत की प्रतिज्ञा के सिवा दूसरी
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 83 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उग्गए सूरे पोरिसिं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: सूर्योदय से पोरिसी (यानि एक प्रहर पर्यन्त) चार तरह का – अशन, पान, खादिम, स्वादिम का पच्चक्खाण करते हैं। सिवा कि अनाभोग, सहसाकार, प्रच्छन्नकाल से, दिशा – मोह से, साधु वचन से, सर्व समाधि के हेतुरूप आगार से (पच्चक्खाण) छोड़े।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 84 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सूरे उग्गए पुरिमड्ढं पच्चक्खाइं चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: सूर्य ऊपर आए तब तक पुरिमड्ढ (सूर्य मध्याह्न में आए तब तक) अशन आदि चार आहार का पच्चक्खाण ( – नियम) करता है। सिवाय कि अनाभोग, सहसाकार, काल की प्रच्छन्नता, दिशामोह, साधुवचन, महत्तरवजह या सर्व समाधि के हेतुरूप आगार से नियम छोड़ दे।
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ वंदन

Gujarati 10 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, अणुजाणह मे मिउग्गहं निसीहि अहोकायं काय-संफासं खमणिज्जो मे किलामो, अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो वइक्कंतो जत्ता भे जवणिज्जं च भे, खामेमि खमासमणो देवसियं वइक्कमं आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाणं देवसियाए आसायणाए तित्तीसन्नयराए जं किंचि मिच्छाए मणदुक्कडाए वयदुक्कडाए कायदुक्कडाए कोहाए माणाए मायाए लोभाए सव्वकालियाए सव्वमिच्छोवयाराए सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ तस्स खमासमणो पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।

Translated Sutra: શિષ્ય કહે છે – હે ક્ષમા (આદિ દશવિધ ધર્મથી યુક્ત) શ્રમણ ! આપને હું ઇન્દ્રિયો તથા મનની વિષયવિકારના ઉપઘાત રહિત, નિર્વિકારી અને નિષ્પાપ કાયા વડે વંદન કરવાને ઇચ્છું છું. મને આપની મર્યાદિત ભૂમિમાં પ્રવેશવાની અનુજ્ઞા આપો. નિસીહી (એમ કહી શિષ્ય અવગ્રહમાં પ્રવેશે.) અધોકાય એટલે આપના ચરણને હું મારી કાયા વડે સ્પર્શુ છું.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 19 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि चाउक्कालं सज्झायस्स अकरणयाए उभओकालं भंडोवगरणस्स अप्पडिलेहणाए दुप्पडिलेहणाए अप्पमज्जणाए दुप्पमज्जणाए अइक्कमे वइक्कमे अइयारे अणायारे जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: હું પ્રતિક્રમણ કરું છું. (શેનું?) ચાર કાળ સ્વાધ્યાય ન કરવા. રૂપ અતિચારોનું, ઉભયકાળ ભાંડ અને ઉપકરણની પડિલેહણા ન કરી કે દુષ્ટ પડિલેહણા કરી, પ્રમાર્જના ન કરી કે દુષ્પ્રમાર્જના કરી, અતિક્રમ – વ્યતિક્રમ – અતિચાર કે અનાચારના સેવનરૂપ મેં જે કોઈ દૈવસિક અતિચાર કર્યો હોય, તેનું મિચ્છામિ દુક્કડમ્‌ – મારું દુષ્કૃત મિથ્યા
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 26 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगवीसाए-सबलेहिं, बावीसाए-परीसहेहिं, तेवीसाए-सुयगडज्झयणेहिं, चउवीसाए-देवेहिं, पंचवीसाए-भावणाहिं, छव्वीसाए-दसाकप्पववहाराणं उद्देसणकालेहिं, सत्तावीसाए-अणगारगुणेहिं अट्ठावीसइविहे-आयारपकप्पेहिं, एगुणतीसाए-पावसुयपसंगेहिं तीसाए-मोहणीयट्ठाणेहिं एगतीसाए -सिद्धाइगुणेहिं, बत्तीसाए-जोगसंगहेहिं।

Translated Sutra: એકવીસ શબલદોષ, બાવીશ પરીષહો, તેવીશ સૂત્રકૃત્‌ આગમના કુલ અધ્યયનો, ચોવીશ દેવો, પચીશ ભાવના, છવીશ – દશાશ્રુતસ્કંધ બૃહત્‌ કલ્પ અને વ્યવહાર એ ત્રણેના મળીને ઉદ્દેશનકાળ, સત્તાવીશ પ્રકારે અણગારનું ચારિત્ર, અટ્ઠાવીશ ભેદે આચાર પ્રકલ્પ, ઓગણત્રીશ ભેદે પાપશ્રુતના પ્રસંગો વડે, ત્રીશ મોહનીય સ્થાનો વડે, એકત્રીશ સિદ્ધોના
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 28 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अरिहंताणं आसायणाए सिद्धाणं आसायणाए आयरियाणं आसायणाए उवज्झायाणं आसायणाए साहूणं आसायणाए साहुणीणं आसायणाए सावयाणं आसायणाए सावियाणं आसायणाए देवाणं आसायणाए देवीणं आसायणाए इहलोगस्स आसायणाए परलोगस्स आसायणाए केवलिपन्नत्तस्सधम्मस्स आसायणाए सदेवमणुयासुरस्सलोगस्स आसायणाए सव्वपाणभूयजीव-सत्ताणं आसायणाए कालस्स आसायणाए सुयस्स आसायणाए सुयदेवयाए आसायणाए वायणायरियस्स आसायणाए।

Translated Sutra: (૧) અરિહંતોની આશાતના, (૨) સિદ્ધોની આશાતના, (૩) આચાર્યની આશાતના, (૪) ઉપાધ્યાયની આશાતના, (૫) સાધુની આશાતના, (૬) સાધ્વીની આશાતના, (૭) શ્રાવકની આશાતના, (૮) શ્રાવિકાની આશાતના, (૯) દેવોની આશાતના, (૧૦) દેવીની આશાતના, (૧૧) આલોક સંબંધી આશાતના, (૧૨) પરલોક સંબંધી આશાતના, (૧૩) કેવલિ પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મની આશાતના, (૧૪) દેવ – મનુષ્ય – અસુર લોક સંબંધી
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 29 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जं वाइद्धं वच्चामेलियं हीणक्खरं अच्चक्खरं पयहीणं विणयहीणं घोसहीणं जोगहीणं सुट्ठुदिन्नं दुट्ठंपडिच्छियं अकाले कओसज्झाओ काले न कओ सज्झाओ असज्झाइए-सज्झाइयं सज्झाइए-न-सज्झाइयं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: (૧) જે વ્યાવિદ્ધ, (૨) વ્યત્યમેલિત, (૩) હીનાક્ષરિક, (૪) અતિ અક્ષરિક, (૫) પદહીન, (૬) વિનયહીન, (૭) ઘોષ હીન, (૮) યોગહીન, (૯, ૧૦) સુષ્ઠુદત્ત દુષ્ઠુ પ્રતિચ્છિત, (૧૧) અકાલે સ્વાધ્યાય કરવો, (૧૨) કાળે ન કરવો, (૧૩) અસ્વાધ્યાયમાં સ્વાધ્યાય, (૧૪) સ્વાધ્યાયમાં અસ્વાધ્યાય કરવો. તે બધાનું મિચ્છામિ દુક્કડમ્‌.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 80 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अतिहिसंविभागो नाम नायागयाणं कप्पणिज्जाणं अन्नपाणाईणं दव्वाणं देसकालसद्धा-सक्कारकमजुअं पराए भत्तीए आयाणुग्गहबुद्धीए संजयाणं दानं, अतिहिंसविभागस्स समणोवसएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– सच्चित्तनिक्खेवणया सचित्तपिहणया कालाइक्कमे परवएसे मच्छरिया य।

Translated Sutra: અતિથિ સંવિભાગ એટલે સાધુ – સાધ્વીને કલ્પનીય અન્ન – પાણી આપવા. દેશ, કાળ, શ્રદ્ધા, સત્કારયુક્ત શ્રેષ્ઠ ભક્તિપૂર્વક અનુગ્રહ બુદ્ધિથી સંયતોને દ્રવ્યોનું દાન આપવું. આ અતિથિ સંવિભાગ વ્રતયુક્ત શ્રમણોપાસકે આ પાંચ અતિચારો જાણવા – સચિત્ત નિક્ષેપણા, સચિત્ત પિધાનતા, કાલાતિક્રમ, પરવ્યપદેશ, મત્સરતા.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 83 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उग्गए सूरे पोरिसिं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: સૂર્ય ઊગ્યા પછી પોરીસી (અર્થાત્‌ એક પ્રહાર પર્યન્ત) ચાર ભેદે અશન, પાન, ખાદિમ, સ્વાદિમનું પચ્ચક્‌ખાણ કરે છે. અન્નત્થ અર્થાત અનાભોગ, સહસાકાર, પ્રચ્છન્નકાળ, દિશામોહ, સાધુવચનથી, સર્વસમાધિ નિમિત્તે આ છ કારણો સિવાય. હું અશનાદિ ચારેનો ત્યાગ કરું છું.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 84 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सूरे उग्गए पुरिमड्ढं पच्चक्खाइं चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: સૂર્ય ઉગ્યા પછી ઊંચો આવે ત્યાં સુધી પુરિમડ્ઢ (મધ્યાહ્ન થાય ત્યારે) અશન આદિ ચાર આહારનું પચ્ચક્‌ખાણ કરે છે. અન્નત્થ – અનાભોગ, સહસાકાર, કાળની પ્રચ્છન્નતા, દિશામોહ, સાધુવચન, મહત્તરકારણ કે સર્વસમાધિના હેતુરૂપ આગાર સિવાય. આ અશનાદિ ચારેનો ત્યાગ કરું છું.
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Hindi 63 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे गुणे से मूलट्ठाणे, जे मूलट्ठाणे से गुणे। इति से गुणट्ठी महता परियावेणं वसे पमत्ते– माया मे, पिया मे, भाया मे, भइणी मे, भज्जा मे, पुत्ता मे, धूया मे, सुण्हा मे, सहि-सयण-संगंथ-संथुया मे, विवित्तोवगरण-परियट्टण-भोयण-अच्छायणं मे, इच्चत्थं गढिए लोए– वसे पमत्ते। अहो य राओ य परितप्पमाणे, कालाकाल-समुट्ठाई, संजोगट्ठी अट्ठालोभी, आलुंपे सहसक्कारे, विणि-विट्ठचित्ते एत्थ सत्थे पुणो-पुणो। अप्पं च खलु आउं इहमेगेसिं माणवाणं, तं जहा–

Translated Sutra: जो गुण (इन्द्रियविषय) हैं, वह (कषायरुप संसार का) मूल स्थान है। जो मूल स्थान है, वह गुण है। इस प्रकार विषयार्थी पुरुष, महान परिताप से प्रमत्त होकर, जीवन बीताता है। वह इस प्रकार मानता है, ‘‘मेरी माता है, मेरा पिता है, मेरा भाई है, मेरी बहन है, मेरी पत्नी है, मेरा पुत्र है, मेरी पुत्री है, मेरी पुत्र – वधू है, मेरा सखा –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-२ अद्रढता Hindi 76 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विणइत्तु लोभं निक्खम्म, एस अकम्मे जाणति-पासति। पडिलेहाए नावकंखति। एस अनगारेत्ति पवुच्चति। अहो य राओ य परितप्पमाणे, कालाकालसमुट्ठाई, संजोगट्ठी अट्ठालोभी, आलुंपे सहसक्कारे, विनिविट्ठचित्ते एत्थ सत्थे पुणो-पुणो से आय-बले, से नाइ-बले, से मित्त-बले, से पेच्च-बले, से देव-बले, से राय-बले, से चोर-बले, से अतिहि-बले, से किवण-बले, से समण-बले। इच्चेतेहिं विरूवरूवेहिं कज्जेहिं दंड-समायाणं। सपेहाए भया कज्जति। पाव-मोक्खोत्ति मन्नमाणे। अदुवा आसंसाए।

Translated Sutra: जो लोभ से निवृत्त होकर प्रव्रज्या लेता है, वह अकर्म होकर (कर्मावरण से मुक्त होकर) सब कुछ जानता है, देखता है। जो प्रतिलेखना कर, विषय – कषायों आदि के परिणाम का विचार कर उनकी आकांक्षा नहीं करता, वह अनगार कहलाता है। (जो विषयों से निवृत्त नहीं होता) वह रात – दिन परितप्त रहता है। काल या अकाल में सतत प्रयत्न करता रहता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 79 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समिते एयाणुपस्सी। तं जहा–अंधत्तं बहिरत्तं मूयत्तं काणत्तं कुटत्तं खुज्जत्तं वडभत्तं सामत्तं सबलत्तं। सहपमाएणं अनेगरूवाओ जोणीओ संधाति, विरूवरूवे फासे पडिसंवेदेइ।

Translated Sutra: यह तू देख, इस पर सूक्ष्मतापूर्वक विचार कर। जो समित है वह इसको देखता है। जैसे – अन्धापन, बहरा – पन, गूँगापन, कानापन, लूला – लंगड़ापन, कुबड़ापन, बौनापन, कालापन, चितकबरापन आदि की प्राप्ति अपने प्रमाद के कारण होती है। वह अपने प्रमाद के कारण ही नाना प्रकार की योनियों में जाता है और विविध प्रकार के आघातों – दुखों का अनुभव
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 82 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नत्थि कालस्स नागमो। सव्वे पाणा पियाउया सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविनो जीविउकामा। सव्वेसिं जीवियं पियं। तं परिगिज्झ दुपयं चउप्पयं अभिजुंजियाणं संसिंचियाणं तिविहेणं जा वि से तत्थ मत्ता भवइ– अप्पा वा बहुगा वा। से तत्थ गढिए चिट्ठइ, भोयणाए। तओ से एगया विपरिसिट्ठं संभूयं महोवगरणं भवइ। तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायानो वा से विलुंपंति, नस्सति वा से, विणस्सति वा से, अगारदाहेण वा से डज्झइ। इति से परस्स अट्ठाए कूराइं कम्माइं बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ। मुनिणा हु एयं पवेइयं। अनोहंतरा एते, नोय ओहं तरित्तए । अतीरंगमा

Translated Sutra: काल का अनागमन नहीं है, मृत्यु किसी क्षण आ सकती है। सब को आयुष्य प्रिय है। सभी सुख का स्वाद चाहते हैं। दुःख से धबराते हैं। वध अप्रिय है, जीवन प्रिय है। वे जीवित रहना चाहते हैं। सब को जीवन प्रिय है। वह परिग्रह में आसक्त हुआ मनुष्य, द्विपद और चतुष्पद का परिग्रह करके उनका उपयोग करता है। उनको कार्य में नियुक्त करता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 88 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जमिणं विरूवरूवेहिं ‘सत्थेहिं लोगस्स कम्म-समारंभा’ कज्जंति, तं जहा–अप्पनो से पुत्ताणं धूयाणं सुण्हाणं नातीणं धातीणं राईणं दासाणं दासीणं कम्मकराणं कम्मकरीणं आएसाए, पुढो पहेणाए, सामासाए, पायरासाए। सन्निहि-सन्निचओ कज्जइ इहमेगेसिं माणवाणं भोयणाए।

Translated Sutra: असंयमी पुरुष अनेक प्रकार के शस्त्रों द्वारा लोक के लिए कर्म समारंभ करते हैं। जैसे – अपने लिए, पुत्र, पुत्री, पुत्र – वधू, ज्ञातिजन, धाय, राजा, दास – दासी, कर्मचारी, कर्मचारिणी, पाहुने आदि के लिए तथा विविध लोगों को देने के लिए एवं सायंकालीन तथा प्रातःकालीन भोजन के लिए। इस प्रकार वे कुछ मनुष्यों के भोजन के लिए सन्निधि
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 90 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अदिस्समाणे कय-विक्कएसु। से न किणे, न किनावए, किणंतं न समणुजाणइ। से भिक्खू कालण्णे बलण्णे मायण्णे खेयण्णे खणयण्णे विणयण्णे समयण्णे भावण्णे, परिग्गहं अममायमाणे, कालेणुट्ठाइ, अपडिण्णे।

Translated Sutra: वह वस्तु के क्रय – विक्रय में संलग्न न हो। न स्वयं क्रय करे, न दूसरों से क्रय करवाए और न क्रय करने वाले का अनुमोदन करे। वह भिक्षु कालज्ञ है, बलज्ञ है, मात्रज्ञ है, क्षेत्रज्ञ है, क्षणज्ञ है, विनयज्ञ है, समयज्ञ है, भावज्ञ है। परिग्रह पर ममत्व नहीं रखने वाला, उचित समय पर उचित कार्य करने वाला अप्रतिज्ञ है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-२ दुःखानुभव Hindi 119 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एस मरणा पमुच्चइ। से हु दिट्ठपहे मुनी। लोयंसी परमदंसी विवित्तजीवी उवसंते, समिते सहिते सया जए कालकंखी परिव्वए। बहुं च खलु पावकम्मं पगडं।

Translated Sutra: वह (निष्कर्मदर्शी) मरण से मुक्त हो जाता है। वह मुनि भय को देख चूका है। वह लोक में परम (मोक्ष) को देखता है। वह राग – द्वेष रहित शुद्ध जीवन जीता है। वह उपशान्त, समित, (ज्ञान आदि से) सहित होता। (अत एव) सदा संयत होकर, मरण की आकांक्षा करता हुआ विचरण करता है। (इस जीव ने भूतकाल में) अनेक प्रकार के बहुत से पापकर्मों का बन्ध
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-३ अक्रिया Hindi 128 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ‘अवरेण पुव्वं न सरंति एगे, किमस्सतीतं? किं वागमिस्सं? भासंति एगे इह माणव उ, जमस्सतीतं आगमिस्सं ॥

Translated Sutra: कुछ (मूढ़मति) पुरुष भविष्यकाल के साथ पूर्वकाल का स्मरण नहीं करते। वे चिन्ता नहीं करते की इसका अतीत क्या था, भविष्य क्या होगा ? कुछ (मिथ्याज्ञानी) मानव यों कह देते हैं कि जो इसका अतीत था, वही भविष्य होगा।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-१ धर्मप्रवादी परीक्षा Hindi 144 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आघाइ नाणी इह माणवाणं संसारपडिवन्नाणं संबुज्झमाणाणं विण्णाणपत्ताणं। अट्टा वि संता अदुआ पमत्ता। अहासच्चमिणं- ति बेमि। नानागमो मच्चुमुहस्स अत्थि, इच्छापणीया वंकाणिकेया । कालग्गहीआ णिचए णिविट्ठा, ‘पुढो-पुढो जाइं पकप्पयंति’ ॥

Translated Sutra: ज्ञानी पुरुष, इस विषयमें, संसारमें स्थित, सम्यक्‌ बोध पाने को उत्सुक एवं विज्ञान – प्राप्त मनुष्यों को उपदेश करते हैं। जो आर्त अथवा प्रमत्त होते हैं, वे भी धर्म का आचरण कर सकते हैं। यह यथातथ्य – सत्य है, ऐसा मैं कहता हूँ जीवों को मृत्यु के मुख में जाना नहीं होगा, ऐसा सम्भव नहीं है। फिर भी कुछ लोग ईच्छा द्वारा प्रेरित
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-५ ह्रद उपमा Hindi 173 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–तं जहा। अवि हरए पडिपुण्णे, चिट्ठइ समंसि भोमे । उवसंतरए सारक्खमाणे, से चिट्ठति सोयमज्झगए ॥ से पास पव्वतो गुत्ते, पास लोए महेसिणो, जे य पण्णाणमंता पबुद्धा आरंभोवरया। सम्ममेयंति पासह। कालस्स कंखाए परिव्वयंति

Translated Sutra: मैं कहता हूँ – जैसे एक जलाशय जो परिपूर्ण है, समभूभाग में स्थित है, उसकी रज उपशान्त है, (अनेक जलचर जीवों का) संरक्षण करता हुआ, वह जलाशय स्रोत के मध्य में स्थित है। (ऐसा ही आचार्य होता है)। इस मनुष्यलोक में उन (पूर्वोक्त स्वरूप वाले) सर्वतः गुप्त महर्षियों को तू देख, जो उत्कृष्ट ज्ञानवान्‌ (आगमश्रुत – ज्ञाता) हैं, प्रबुद्ध
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-५ ह्रद उपमा Hindi 176 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: सड्ढिस्स णं समणुण्णस्स संपव्वयमाणस्स–समियंति मण्णमाणस्स एगया समिया होइ। समियंति मण्णमा-णस्स एगया असमिया होइ। असमियंति मण्णमाणस्स एगया समिया होइ। असमियंति मण्णमाणस्स एगया असमिया होइ। समियंति मण्णमाणस्स समिया वा, असमिया वा, समिया होइ उवेहाए। असमियंति मण्णमाणस्स समिया वा, असमिया वा, असमिया होइ उवेहाए। उवेहमानो अणुवेहमाणं बूया उवेहाहि समियाए। इच्चेवं तत्थ संधी झोसितो भवति। उट्ठियस्स ठियस्स गतिं समणुपासह। एत्थवि बालभावे अप्पाणं णोउवदंसेज्जा।

Translated Sutra: श्रद्धावान्‌ सम्यक्‌ प्रकार से अनुज्ञा शील एवं प्रव्रज्या को सम्यक्‌ स्वीकार करने या पालने वाला (१) कोई मुनि जिनोक्त तत्त्व को सम्यक्‌ मानता है और उस समय (उत्तरकाल में) भी सम्यक्‌ (मानता) रहता है। (२) कोई प्रव्रज्याकाल में सम्यक्‌ मानता है, किन्तु बाद में किसी समय उसका व्यवहार असम्यक्‌ हो जाता है। (३) कोई मुनि
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-२ कर्मविधूनन Hindi 195 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं विउसिज्जा। अणुपुव्वेण अणहियासेमाणा परीसहे दुरहियासए। कामे ममायमाणस्स इयाणिं वा मुहुत्ते वा अपरिमाणाए भेदे। एवं से अंतराइएहिं कामेहिं आकेवलिएहिं अवितिण्णा चेए।

Translated Sutra: वे वस्त्र, पात्र, कम्बल एवं पाद – प्रोंछन को छोड़कर उत्तरोत्तर आने वाले दुःस्सह परीषहों को नहीं सह सकने के कारण (मुनि – धर्म का त्याग कर देते हैं)। विविध कामभोगों को अपनाकर गाढ़ ममत्व रखने वाले व्यक्ति का तत्काल (प्रव्रज्या – परित्याग के) अन्त – र्मुहूर्त्त में या अपरिमित समय में शरीर छूट सकता है। इस प्रकार वे अनेक
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-३ उपकरण शरीर विधूनन Hindi 198 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘एयं खु मुनी आयाणं सया सुअक्खायधम्मे विधूतकप्पे णिज्झोसइत्ता’। जे अचेले परिवुसिए, तस्स णं भिक्खुस्स नो एवं भवइ–परिजुण्णे मे वत्थे वत्थं जाइस्सामि, सुत्तं जाइ-स्सामि, सूइं जाइस्सामि, संधिस्सामि, सीवीस्सामि, उक्कसिस्सामि, वोक्कसिस्सामि, परिहिस्सामि, पाउणिस्सामि। अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सीयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंसमसग-फासा फुसंति। एगयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले। ‘लाघवं आगममाणे’। तवे से अभिसमण्णागए भवति। जहेयं भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया। एवं तेसिं महावीराणं चिरराइं

Translated Sutra: सतत सु – आख्यात धर्म वाला विधूतकल्पी (आचार का सम्यक्‌ पालन करने वाला) वह मुनि आदान (मर्यादा से अधिक वस्त्रादि) का त्याग कर देता है। जो भिक्षु अचेलक रहता है, उस भिक्षु को ऐसी चिन्ता उत्पन्न नहीं होती कि मेरा वस्त्र सब तरह से जीर्ण हो गया है, इसलिए मैं वस्त्र की याचना करूँगा, फटे वस्त्र को सीने के लिए धागे की याचना
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-३ उपकरण शरीर विधूनन Hindi 200 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विरयं भिक्खुं रीयंतं, चिररातोसियं, अरती तत्थ किं विधारए? संधेमाणे समुट्ठिए। जहा से दीवे असंदीणे, एवं से धम्मे ‘आयरिय-पदेसिए’। ‘ते अणवकंखमाणा’ अणतिवाएमाणा दइया मेहाविनो पंडिया। एवं तेसिं भगवओ अणुट्ठाणे जहा से दिया पोए। एवं ते सिस्सा दिया य राओ य, अणुपुव्वेण वाइय।

Translated Sutra: चिरकाल से मुनिधर्म में प्रव्रजित, विरत और संयम में गतिशील भिक्षु का क्या अरति धर दबा सकती है ? (आत्मा के साथ धर्म का) संधान करने वाले तथा सम्यक्‌ प्रकार से उत्थित मुनि को (अरति अभिभूत नहीं कर सकती) जैसे असंदीन द्वीप (यात्रियों के लिए) आश्वासन – स्थान होता है, वैसे ही आर्य द्वारा उपदिष्ट धर्म (संसार – समुद्र पार करने
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-५ उपसर्ग सन्मान विधूनन Hindi 209 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कायस्स विओवाए, एस संगामसीसे वियाहिए। से हु पारंगमे मुनी, अवि हम्ममाणे फलगावयट्ठि, कालोवणीते कंखेज्ज कालं, जाव सरीरभेउ।

Translated Sutra: शरीर के व्यापात को ही संग्रामशीर्ष कहा गया है। (जो मुनि उसमें हार नहीं खाता), वही (संसार का) पारगामी होता है। आहत होने पर भी मुनि उद्विग्न नहीं होता, बल्कि लकड़ी के पाटिये की भाँति रहता है। मृत्युकाल निकट आने पर (विधिवत्‌ संलेखना से) जब तक शरीर का भेद न हो, तब तक वह मरणकाल की प्रतीक्षा करे। ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-३ अंग चेष्टाभाषित Hindi 222 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ओए दयं दयइ। जे सन्निहाण सत्थस्स खेयण्णे। से भिक्खू कालण्णे बलण्णे मायण्णे खणण्णे विणयण्णे समयण्णे परिग्गहं अममायमाणे कालेणुट्ठाई अपडिण्णे। दुहओ छेत्ता नियाइ।

Translated Sutra: जो भिक्षु सन्निधान – (आहारादि के संचय) के शस्त्र (संयमघातक प्रवृत्ति) का मर्मज्ञ है। वह भिक्षु कालज्ञ, बलज्ञ, मात्रज्ञ, क्षणज्ञ, विनयज्ञ, समयज्ञ होता है। वह परिग्रह पर ममत्व न करने वाला, उचित समय पर अनुष्ठान करने वाला, किसी प्रकार की मिथ्या आग्रहयुक्त प्रतिज्ञा से रहित एवं राग और द्वेष के बन्धनों को छेदन करके
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-४ वेहासनादि मरण Hindi 228 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति–पुट्ठो खलु अहमंसि, नालमहमंसि सीय-फासं अहियासित्तए, से वसुमं सव्व-समन्नागय-पण्णाणेणं अप्पाणेणं केइ अकरणाए आउट्टे। तवस्सिनो हु तं सेयं, जमेगे विहमाइए। तत्थावि तस्स कालपरियाए। से वि तत्थ विअंतिकारए। इच्चेतं विमोहायतणं हियं, सुहं, खमं, णिस्सेयसं, आणुगामियं।

Translated Sutra: जिस भिक्षु को यह प्रतीत हो कि मैं आक्रान्त हो गया हूँ, और मैं इस अनुकूल परीषहों को सहन करने में समर्थ नहीं हूँ, (वैसी स्थिति में) कोई – कोई संयम का धनी भिक्षु स्वयं को प्राप्त सम्पूर्ण प्रज्ञान एवं अन्तःकरण से उस उपसर्ग के वश न हो कर उसका सेवन न करने के लिए दूर हो जाता है। उस तपस्वी भिक्षु के लिए वही श्रेयस्कर है,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-५ ग्लान भक्त परिज्ञा Hindi 230 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स णं भिक्खुस्स अयं पगप्पे–अहं च खलु पडिण्णत्तो अपडिण्णत्तेहिं, गिलानो अगिलाणेहिं, अभिकंख साह-म्मिएहिं कीरमाणं वेयावडियं सातिज्जिस्सामि। अहं वा वि खलु अपडिण्णत्तो पडिण्णत्तस्स, अगिलानो गिलाणस्स, अभिकंख साहम्मिअस्स कुज्जा वेयावडियं करणाए। आहट्टु पइण्णं आणक्खेस्सामि, आहडं च सातिज्जिस्सामि, आहट्टु पइण्णं आणक्खेस्सामि, आहडं च णोसाति-ज्जिस्सामि, आहट्टु पइण्णं णोआणक्खेस्सामि, आहडं च सातिज्जिस्सामि, आहट्टु पइण्णं णोआणक्खेस्सामि, आहडं च णोसाति-ज्जिस्सामि। ‘लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमण्णागए भवति। जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वताए

Translated Sutra: जिस भिक्षु का यह प्रकल्प होता है कि मैं ग्लान हूँ, मेरे साधर्मिक साधु अग्लान हैं, उन्होंने मुझे सेवा करने का वचन दिया है, यद्यपि मैंने अपनी सेवा के लिए उनसे निवेदन नहीं किया है, तथापि निर्जरा की अभिकांक्षा से साधर्मिकों द्वारा की जाने वाली सेवा मैं रुचिपूर्वक स्वीकार करूँगा। (१) (अथवा) मेरा साधर्मिक भिक्षु ग्लान
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-६ एकत्वभावना – इंगित मरण Hindi 235 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अणुपविसित्ता गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, कब्बडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, निगमं वा, रायहाणिं वा, ‘तणाइं जाएज्जा, तणाइं जाएत्ता, से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अप्पंडे अप्प-पाणे अप्प-बीए अप्प-हरिए अप्पोसे अप्पोदए अप्पुत्तिंगपणग-दग मट्टिय-मक्कडासंताणए, ‘पडिलेहिय-पडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय तणाइं संथरेज्जा, तणाइं संथरेत्ता’ एत्थ वि समए इत्तरियं कुज्जा। तं सच्चं सच्चावादी ओए तिण्णे छिन्न-कहंकहे आतीतट्ठे अनातीते वेच्चाण भेउरं कायं, संविहूणिय विरूवरूवे परिसहोवसग्गे अस्सिं ‘विस्सं भइत्ता’ भेरवमणुचिण्णे। तत्थावि

Translated Sutra: क्रमशः ग्राम में, नगर में, खेड़े में, कर्बट में, मडंब में, पट्टन में, द्रोणमुख में, आकर में, आश्रम में, सन्निवेश में, निगम में या राजधानी में प्रवेश करके घास की याचना करे। उसे लेकर एकान्त में चला जाए। वहाँ जाकर जहाँ कीड़े आदि के अंडे, जीव – जन्तु, बीज, हरियाली, ओस, उदक, चींटियों के बिल, फफूँदी, काई, पानी का दलदल या मकड़ी के
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-७ पादपोपगमन Hindi 239 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति– से गिलामि च खलु अहं इमम्मि समए इमं सरीरगं आणुपुव्वेण परिवहित्तए, से आणुपुव्वेणं आहारं संवट्टेज्जा, आणुपुव्वेणं आहारं संवट्टेत्ता कसाए पयणुए किच्चा समाहिअच्चे फलगावयट्ठी, उट्ठाय भिक्खू अभिणिव्वुडच्चे। अणुपविसित्ता गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, कब्बडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, निगमं वा, रायहाणिं वा, तणाइं जाएज्जा, तणाइं जाएत्ता से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अप्पंडे अप्प-पाणे अप्प-बीए अप्प-हरिए अप्पोसे अप्पोदए अप्पुत्तिंग-पणगदग-मट्टिय-मक्कडासंताणए, पडिलेहिय-पडिलेहिय पमज्जिय-पमज्जिय

Translated Sutra: जिस भिक्षु के मन में यह अध्यवसाय होता है कि मैं वास्तव में इस समय इस शरीर को क्रमशः वहन करने में ग्लान हो रहा हूँ। वह भिक्षु क्रमशः आहार का संक्षेप करे। आहार को क्रमशः घटाता हुआ कषायों को भी कृश करे। यों करता हुआ समाधिपूर्ण लेश्या वाला तथा फलक की तरह शरीर और कषाय, दोनों ओर से कृश बना हुआ वह भिक्षु समाधिमरण के
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 245 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जं किंचुवक्कमं जाणे, आउक्खेमस्स अप्पनो । तस्सेव अंतरद्धाए, खिप्पं सिक्खेज्ज पंडिए ॥

Translated Sutra: यदि अपनी आयु के क्षेम में जरा – सा भी उपक्रम जान पड़े तो उस संलेखना काल के मध्य में ही पण्डित भिक्षु शीघ्र पण्डितमरण को अपना ले।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 250 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गंथेहिं विवित्तेहिं, आउ-कालस्स पारए । पग्गहियतरग चेयं, दवियस्स वियाणतो ॥

Translated Sutra: उस संलेखना – साधक की ग्रन्थियाँ खुल जाती हैं, आयुष्य के काल का पारगाम हो जाता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 264 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वट्ठेहिं अमुच्छिए, आउकालस्स पारए । तितिक्खं परमं नच्चा, विमोहण्णतरं हितं ॥

Translated Sutra: सभी प्रकार के विषयों में अनासक्त और मृत्युकाल का पारगामी वह मुनि तितिक्षा को सर्वश्रेष्ठ जानकर हितकर विमोक्ष त्रिविध विमोक्ष में से किसी एक विमोक्ष का आश्रय ले। ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 265 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहासुयं वदिस्सामि, जहा से समणे भगवं उट्ठाय । संखाए तंसि हेमंते, अहुणा पव्वइए रीयत्था ॥

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने दीक्षा लेकर जैसे विहारचर्या की, उस विषय में जैसा मैंने सूना है, वैसा मैं तुम्हें बताऊंगा। भगवान ने दीक्षा का अवसर जानकर हेमन्त ऋतु में प्रव्रजित हुए और तत्काल विहार कर गए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 291 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एतेहिं मुनी सयणेहिं, समणे आसी पत्तेरस वासे । राइं दिवं पि जयमाणे, अप्पमत्ते समाहिए झाति ॥

Translated Sutra: त्रिजगत्‌वेत्ता मुनीश्वर इन वासस्थानोंमें साधना काल के बारह वर्ष, छह महीने, पन्द्रह दिनों में शान्त और सम्यक्त्वयुक्त मन से रहे। वे रात – दिन प्रत्येक प्रवृत्ति में यतनाशील रहते थे तथा अप्रमत्त और समाहित अवस्था में ध्यान करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 340 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स, पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं ‘समारब्भ समुद्दिस्स’ कीयं पामिच्च अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएइ। तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुरिसंतरकडं वा अपुरिसं-तरकडं वा, बहिया नीहडं वा अनीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, ‘परिभुत्तं वा’ ‘अपरिभुत्तं वा’ आसेवियं वा अनासेवियं वा –अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी जब यह जाने कि किसी भद्र गृहस्थ ने अकिंचन निर्ग्रन्थ के लिए एक साधर्मिक साधु के उद्देश्य से प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों का समारम्भ करके आहार बनाया है, साधु के निमित्त से आहार मोल लिया, उधार लिया है, किसी से जबरन छीनकर लाया है, उसके स्वामी की अनुमति के बिना
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 342 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी यावत्‌ गृहस्थ के घर प्रविष्ट होने पर जाने कि यह चतुर्विध आहार बहुत – से श्रमणों, माहनों, अतिथियों, दरिद्रों और याचकों के उद्देश्य से प्राणादि आदि जीवों का समारम्भ करके यावत्‌ लाकर दे रहा है, उस प्रकार के आहार को जो स्वयं दाता द्वारा कृत हो, बाहर नीकाला हुआ न हो, दाता द्वारा अधिकृत न हो, दाता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Hindi 346 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा समवाएसु वा, पिंड-नियरेसु वा, इंद-महेसु वा, खंद-महेसु वा, रुद्द-महेसु वा, मुगुंद-महेसु वा, भूय -महेसु वा, जक्ख-महेसु वा, नाग-महेसु वा, थूभ-महेसु वा, चेतिय-महेसु वा, रुक्ख-महेसु वा, गिरि-महेसु वा, दरि-महेसु वा, अगड-महेसु वा, तडाग-महेसु वा, दह-महेसु वा, णई-महेसु वा, सर-महेसु वा, सागर-महेसु वा, आगर-महेसु वा–अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विरूवरूवेसु महामहेसु वट्टमाणेसु...... बहवे समण-माहण-अतिहि-किविण-वणीमए एगाओ उक्खाओ परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होते समय वह जाने कि यहाँ मेला, पितृपिण्ड के निमित्त भोज तथा इन्द्र – महोत्सव, स्कन्ध, रुद्र, मुकुन्द, भूत, यक्ष, नाग – महोत्सव तथा स्तूप, चैत्य, वृक्ष, पर्वत, गुफा, कूप, तालाब, हृद, नदी, सरोवर, सागर या आकार सम्बन्धी महोत्सव एवं अन्य इसी प्रकार के विभिन्न
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-३ Hindi 349 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु भिक्खू गाहावइहिं वा, गाहावइणीहिं वा, परिवायएहिं वा, परिवाइयाहिं वा, एगज्झ सद्धं सोडं पाउं भो! वतिमिस्सं हुरत्था वा, उवस्सयं पडिलेहमाणे नो लभेज्जा, तमेव उवस्सयं सम्मिस्सि-भावमावज्जेज्जा। अन्नमण्णे वा से मत्ते विप्परियासियभूए इत्थिविग्गहे वा, किलीवे वा, तं भिक्खुं उवसंकमित्तु बूया–आउसंतो! समणा! अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, राओ वा, वियाले वा, गामधम्म-णियंतियं कट्टु, रहस्सियं मेहुणधम्म-परियारणाए आउट्टामो। तं चेगइओ सातिज्जेज्जा। अकरणिज्जं चेयं संखाए। एते आयाणा संति संचिज्जमाणा, पच्चावाया भवंति। तम्हा से संजए णियंठे तहप्पगारं पुरे-संखडिं वा, पच्छा-संखडिं

Translated Sutra: यहाँ भिक्षु गृहस्थों – गृहस्थपत्नीयों अथवा परिव्राजक – परिव्राजिकाओं के साथ एकचित्त व एकत्रित होकर नशीला पेय पीकर बाहर नीकलकर उपाश्रय ढूँढ़ने लगेगा, जब वह नहीं मिलेगा, तब उसी को उपाश्रय समझकर गृहस्थ स्त्री – पुरुषों व परिव्राजक – परिव्राजिकाओं के साथ ही ठहर जाएगा। उनके साथ धुलमिल जाएगा। वे गृहस्थ – गृहस्थपत्नीयाँ
Showing 1 to 50 of 5529 Results