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Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 645 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आनंदे नामं थेरे पगइभद्दए जाव विनीए छट्ठं-छट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से आनंदे थेरे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए एवं जहा गोयमसामी तहेव आपुच्छइ, तहेव जाव उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंते वीइ-वयइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते आनंदं थेरं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकरावणस्स अदूर-सामंतेणं वीइवयमाणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–एहि ताव आनंदा! इओ एगं महं उवमियं निसामेहि। तए णं से आनंदे थेरे

Translated Sutra: उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर का अन्तेवासी आनन्द नामक स्थविर था। वह प्रकृति से भद्र यावत्‌ विनीत था और निरन्तर छठ – छठ का तपश्चरण करता हुआ और संयम एवं तप से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरता था। उस दिन आनन्द स्थविर ने अपने छठक्षमण के पारणे के दिन प्रथम पौरुषी में स्वाध्याय किया, यावत्‌ – गौतमस्वामी
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1498 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं पुन काऊणं एरिसा सुलहबोही जाया सा सुगहियनामधेज्जा माहणी जीए एयावइयाणं भव्व-सत्ताणं अनंत संसार घोर दुक्ख संतत्ताणं सद्धम्म देसणाईहिं तु सासय सुह पयाणपुव्वगमब्भुद्धरणं कयं ति। गोयमा जं पुव्विं सव्व भाव भावंतरंतरेहिं णं नीसल्ले आजम्मा-लोयणं दाऊणं सुद्धभावाए जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं। पायच्छित्तसमत्तीए य समाहिए य कालं काऊणं सोहम्मे कप्पे सुरिंदग्गमहिसी जाया तमनुभावेणं। से भयवं किं से णं माहणी जीवे तब्भवंतरम्मि समणी निग्गंथी अहेसि जे णं नीसल्लमालोएत्ता णं जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं ति। गोयमा जे णं से माहणी जीवे से णं तज्जम्मे बहुलद्धिसिद्धी

Translated Sutra: हे भगवंत ! उस ब्राह्मणीने ऐसा तो क्या किया कि जिससे इस प्रकार सुलभ बोधि पाकर सुबह में नाम ग्रहण करने के लायक बनी और फिर उसके उपदेश से कईं भव्य जीव नर – नारी कि जो अनन्त संसार के घोर दुःख में सड़ रहे थे उन्हें सुन्दर धर्मदेश आदि के द्वारा शाश्वत सुख देकर उद्धार किया। हे गौतम ! उसने पूर्वभव में कईं सुन्दर भावना सहित
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

प्रदेशीराजान प्रकरण

Hindi 75 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–एवं खलु भंते! मम अज्जगस्स एस सण्णा एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा–तज्जीवो तं सरीरं, नो अन्नो जीवो अन्नं सरीरं। तयानंतरं च णं ममं पिउणो वि एस सण्णा एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा–तज्जीवो तं सरीरं, नो अन्नो जीवो अन्नं सरीरं। तयानंतरं मम वि एस सण्णा एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा–तज्जीवो तं सरीरं, नो अन्नो जीवो अन्नं सरीरं। तं नो खलु बहुपुरिसपरंपरागयं

Translated Sutra: प्रदेशी राजा ने कहा – भदन्त ! आपने बताया सो ठीक, किन्तु मेरे पितामह की यही ज्ञानरूप संज्ञा थी यावत्‌ समवसरण था कि जो जीव है वही शरीर है, जो शरीर है वही जीव है। जीव शरीर से भिन्न नहीं और शरीर जीव से भिन्न नहीं है। तत्पश्चात्‌ मेरे पिता की भी ऐसी ही संज्ञा यावत्‌ ऐसा ही समवसरण था और उनके बाद मेरी भी यही संज्ञा यावत्‌
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-४५

Hindi 121 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समयखेत्ते णं पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ते। सीमंतए णं नरए पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ते। एवं उडुविमाने पन्नत्ते। ईसिपब्भारा णं पुढवी पन्नत्ता एवं चेव। धम्मे णं अरहा पणयालीसं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। मंदरस्स णं पव्वयस्स चउदिसिंपि पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साइं अबाहाते अंतरे पन्नत्ते। सव्वेवि णं दिवड्ढखेत्तिया नक्खत्ता पणयालीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धिं जोगं जोइंसु वा जोइंति वा जोइस्संति वा–

Translated Sutra: समय क्षेत्र (अढ़ाई द्वीप) पैंतालीस लाख योजन लम्बा – चौड़ा कहा गया है। इसी प्रकार ऋतु (उडु) (सौधर्म – ईशान देवलोक में प्रथम पाथड़े में चार विमानवलिकाओं के मध्यभाग में रहा हुआ गोल विमान) और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी (सिद्धि स्थान) भी पैंतालीस – पैंतालीस लाख योजन विस्तृत जानना चाहिए। धर्म अर्हत्‌ पैंतालीस धनुष ऊंचे थे। मन्दर
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 16 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तवअग्गि-नियमसूरा जिनवरनाणा विसुद्धपच्छयणा । जे निव्वहंति पुरिसा संथारगइंदमारूढा ॥

Translated Sutra: जिनकथित तप रूप अग्नि से कर्मकाष्ठ का नाश करनेवाले, विरति नियमपालन में शूरा और सम्यग्ज्ञान से विशुद्ध आत्म परिणतिवाले और उत्तम धर्म रूप पाथेय जिसने पाया है ऐसी महानुभाव आत्माएं संथारा रूप गजेन्द्र पर आरूढ़ होकर सुख से पार को पाते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय

Hindi 632 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अद्धाणं जो महंतं तु अपाहेओ पवज्जई । गच्छंतो सो दुही होइ छुहातण्हाए पीडिओ ॥

Translated Sutra: जो व्यक्ति पाथेय लिए बिना लम्बे मार्ग पर चल देता है, वह चलते हुए भूख और प्यास से पीड़ित होता है इसी प्रकार जो व्यक्ति धर्म किए बिना परभव में जाता है, वह व्याधि और रोगों से पीड़ित होता है, दुःखी होता है। सूत्र – ६३२, ६३३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय

Hindi 634 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अद्धाणं जो महंतं तु सपाहेओ पवज्जई । गच्छंतो सो सुही होइ छुहातण्हाविवज्जिओ ॥

Translated Sutra: जो व्यक्ति पाथेय साथ में लेकर लम्बे मार्ग पर चलता है, वह चलते हुए भूख और प्यास के दुःख से रहित सुखी होता है। इसी प्रकार जो व्यक्ति धर्म करके परभव में जाता है, वह अल्पकर्मा वेदना से रहित सुखी होता है। सूत्र – ६३४, ६३५
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