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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-११ |
उद्देशक-११ काल | Hindi | 522 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तं महब्बलं कुमारं अम्मापियरो अन्नया कयाइ सोभणंसि तिहि-करण-दिवस-नक्खत्त-मुहुत्तंसि ण्हायं कयबलिकम्मं कयकोउय-मंगल-पायच्छित्तं सव्वालंकारविभूसियं पमक्खणग-ण्हाण-गीय-वाइय-पसाहण-अट्ठंगतिलग-कंकण-अविहवबहुउवणीयं मंगलसुजंपिएहि य वरकोउय-मंगलोवयार-कयसंतिकम्मं सरिसियाणं सरियत्ताणं सरिव्वयाणं सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वण-गुणोववेयाणं विणीयाणं कयकोउय-मंगलपायच्छित्ताणं सरिसएहिं रायकुलेहिंतो आणिल्लियाणं अट्ठण्हं रायवरकन्नाणं एगदिवसेनं पाणिं गिण्हाविंसु।
तए णं तस्स महाबलस्स कुमारस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं पीइदाणं दलयंति, तं जहा–अट्ठ हिरण्णकोडीओ, अट्ठ सुवण्णकोडीओ, Translated Sutra: तत्पश्चात् किसी समय शुभ तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र और मुहूर्त्त में महाबल कुमार ने स्नान किया, बलिकर्म किया, कौतुक – मंगल प्रायश्चित्त किया। उसे समस्त अलंकारों से विभूषित किया गया। फिर सौभाग्यवती स्त्रियों के द्वारा अभ्यंगन, स्नान, गीत, वादित, मण्डन, आठ अंगों पर तिलक, लाल डोरे के रूप में कंकण तथा दही, अक्षत आदि | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-११ |
उद्देशक-११ काल | Gujarati | 522 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तं महब्बलं कुमारं अम्मापियरो अन्नया कयाइ सोभणंसि तिहि-करण-दिवस-नक्खत्त-मुहुत्तंसि ण्हायं कयबलिकम्मं कयकोउय-मंगल-पायच्छित्तं सव्वालंकारविभूसियं पमक्खणग-ण्हाण-गीय-वाइय-पसाहण-अट्ठंगतिलग-कंकण-अविहवबहुउवणीयं मंगलसुजंपिएहि य वरकोउय-मंगलोवयार-कयसंतिकम्मं सरिसियाणं सरियत्ताणं सरिव्वयाणं सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वण-गुणोववेयाणं विणीयाणं कयकोउय-मंगलपायच्छित्ताणं सरिसएहिं रायकुलेहिंतो आणिल्लियाणं अट्ठण्हं रायवरकन्नाणं एगदिवसेनं पाणिं गिण्हाविंसु।
तए णं तस्स महाबलस्स कुमारस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं पीइदाणं दलयंति, तं जहा–अट्ठ हिरण्णकोडीओ, अट्ठ सुवण्णकोडीओ, Translated Sutra: ત્યારપછી મહાબલકુમારના માતા – પિતા અન્ય કોઈ દિવસે તે શુભ તિથિ – કરણ – દિવસ – નક્ષત્ર – મુહૂર્ત્તમાં સ્નાન કરી, બલિકર્મ કરી, કૌતુક – મંગલ – પ્રાયશ્ચિત્ત કરી, સર્વાલંકારથી વિભૂષિત થઈ, પછી સૌભાગ્યવંતી સ્ત્રીઓ દ્વારા અભ્યંગન, સ્નાન, ગીત, વાજિંત્ર, મંડન, આઠ અંગો પર તિલક, કંકણ, દહીં – અક્ષતાદિ મંગલ, મંગલગીત – માંગલિક | |||||||||
Chandrapragnapati | चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
प्राभृत-प्राभृत-१ | Hindi | 104 | Sutra | Upang-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ता केवतियं ते नोजुगे राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता सत्तरस एक्कानउते राइंदियसते एगूणवीसं च मुहुत्ते सत्तावण्णे बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता पणपण्णं चुण्णिया भागा राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा।
ता से णं केवतिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता तेपन्नमुहुत्तसहस्साइं सत्त य अउणापन्ने मुहुत्तसते सत्तावन्नं बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता पणपन्नं चुण्णिया भागा मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा।
ता केवतिए णं ते जुगप्पत्ते राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता अट्ठतीसं राइंदियाइं दस य मुहुत्ता चत्तारि Translated Sutra: हे भगवन् ! कितने संवत्सर कहे हैं ? निश्चय से यह पाँच संवत्सर कहे हैं – नक्षत्र, चंद्र, ऋतु, आदित्य और अभिवर्धित। प्रथम नक्षत्र संवत्सर का नक्षत्र मास तीस मुहूर्त्त अहोरात्र प्रमाण से सत्ताईस रात्रिदिन एवं एक रात्रि – दिन के इक्कीस सडसठांश भाग से रात्रिदिन कहे हैं। वह नक्षत्र मास ८१९ मुहूर्त्त एवं एक मुहूर्त्त | |||||||||
Chandrapragnapati | ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
प्राभृत-प्राभृत-१ | Gujarati | 104 | Sutra | Upang-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ता केवतियं ते नोजुगे राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता सत्तरस एक्कानउते राइंदियसते एगूणवीसं च मुहुत्ते सत्तावण्णे बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता पणपण्णं चुण्णिया भागा राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा।
ता से णं केवतिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता तेपन्नमुहुत्तसहस्साइं सत्त य अउणापन्ने मुहुत्तसते सत्तावन्नं बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता पणपन्नं चुण्णिया भागा मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा।
ता केवतिए णं ते जुगप्पत्ते राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता अट्ठतीसं राइंदियाइं दस य मुहुत्ता चत्तारि Translated Sutra: નોયુગ કેટલા અહોરાત્રથી કહેલ છે ? પૂર્વોક્ત પાંચે સંવત્સરવાળા નોયુગમાં ૧૭૯૧ અહોરાત્ર અને ૧૯ મુહૂર્ત્ત તથા મુહૂર્ત્તના ૫૭/૬૨ ભાગ અને ૬૨ ભાગને ૬૭ વડે છેદીને ૫૫ – ચૂર્ણિકા ભાગથી અહોરાત્રનું પરિમાણ કહેલ છે, તેમ કહેવું. તે કેટલા મુહૂર્ત્ત પરિમાણથી કહેલ છે, તેમ કહેવું ? તે ૫૩,૭૪૯ મુહૂર્ત્ત અને એક મુહૂર્ત્તના ૫૭/૬૨ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Hindi | 404 | Sutra | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] (४) जामत्थियं तं वेयणं नो अहियासेज्जा वियम्मं वा समायरेज्जा से णं अधन्ना, से णं अपुन्ना, से णं अवंदा, से णं अपुज्जा, से णं अदट्ठव्वा, से णं अलक्खणा, से णं भग्ग-लक्खणा, से णं सव्व अमंगल-अकल्लाण-भायणा।
(५) से णं भट्ठ-सीला, से णं भट्ठायारा से णं परिभट्ठ-चारित्ता, से णं निंदणीया, से णं गरहणीया, से खिंसणिज्जा, से णं कुच्छणिज्जा, से णं पावा, से णं पाव-पावा, से णं महापाव-पावा, से णं अपवित्ति त्ति॥
(१) एवं तु गोयमा चडुलत्ताए भीरुत्ताए कायरत्ताए लोलत्ताए, उम्मायओ वा दप्पओ वा
कंदप्पओ वा अणप्प-वसओ वा आउट्टियाए वा,
(२) जमित्थियं संजमाओ परिभस्सिय, दूरद्धाणे वा गामे वा नगरे वा रायहाणीए वा, Translated Sutra: यदि वो स्त्री वेदना न सहे और अकार्याचरण करे तो वो स्त्री, अधन्या, अपुण्यवंती, अवंदनीय, अपूज्य, न देखने लायक, बिना लक्षण के तूटे हुए भाग्यवाली, सर्व अमंगल और अकल्याण के कारणवाली, शीलभ्रष्टा, भ्रष्टाचारवाली, नफरतवाली, धृणा करनेलायक, पापी, पापी में भी महा पापीणी, अपवित्रा है। हे गौतम ! स्त्री होंशियारी से, भय से, कायरता | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 591 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (७) एत्थ य जत्थ जत्थ पयं पएणाऽनुलग्गं सुत्तालावगं न संपज्जइ, तत्थ तत्थ सुयहरेहिं कुलि-हिय-दोसो न दायव्वो त्ति
(८) किंतु जो सो एयस्स अचिंत-चिंतामणी-कप्पभूयस्स महानिसीह-सुयक्खंधस्स पुव्वायरिसो आसि, तहिं चेव खंडाखंडीए उद्देहियाइएहिं हेऊहिं बहवे पन्नगा परिसडिया।
(९) तहा वि अच्चंत-सुमहत्थाइसयं ति इमं महानिसीह-सुयक्खंधं कसिण-पवयणस्स परम-सार-भूयं परं तत्तं महत्थंति कलिऊणं
(१०) पवयण-वच्छल्लत्तणेणं बहु-भव-सत्तोवयारियं च काउं, तहा य आय-हियट्ठयाए आयरिय-हरिभद्देणं जं तत्थाऽऽयरिसे दिट्ठं तं सव्वं स-मतीए साहिऊणं लिहियं ति
(११) अन्नेहिं पि सिद्धसेन दिवाकर-वुड्ढवाइ-जक्खसेण-देवगुत्त-जसवद्धण-खमासमण-सीस-रविगुत्त-णेमिचंद-जिणदासगणि-खमग-सच्चरिसि-पमुहेहिं Translated Sutra: यहाँ जहाँ जहाँ पद पद के साथ जुड़े हो और लगातार सूत्रालापक प्राप्त न हो वहाँ श्रुतधर ने लहीयाओं ने झूठ लिखा है। ऐसा दोष मत देना लेकिन जो किसी इस अचिन्त्य चिन्तामणी और कल्पवृक्ष समान महानिशीथ श्रुतस्कंध की पूर्वादर्श पहले की लिखी हुई प्रति थी उसमें ही ऊधई आदि जीवांत से खाकर उस कारण से टुकड़ेवाली प्रत हो गई। काफी | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 811 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं अट्ठण्हं साहूणमसइं उस्सग्गेण वा अववाएण वा चउहिं अनगारेहिं समं गमनागमनं नियंठियं तहा दसण्हं संजईणं हेट्ठा उसग्गेणं, चउण्हं तु अभावे अववाएणं हत्थ-सयाओ उद्धं गमनं नाणुण्णायं। आणं वा अइक्कमंते साहू वा साहूणीओ वा अनंत-संसारिए समक्खाए।
ता णं से दुप्पसहे अनगारे असहाए भवेज्जा। सा वि य विण्हुसिरी अनगारी असहाया चेव भवेज्जा। एवं तु ते कहं आराहगे भवेज्जा गोयमा णं दुस्समाए परियंते ते चउरो जुगप्पहाणे खाइग सम्मत्त नाण दंसण चारित्त समण्णिए भवेज्जा।
तत्थ णं जे से महायसे महानुभागे दुप्पसहे अनगारे से णं अच्चंत विसुद्ध सम्मद्दंसण नाण चारित्त गुणेहिं उववेए सुदिट्ठ Translated Sutra: हे भगवंत ! उत्सर्ग से आँठ साधु की कमी में या अपवाद से चार साधु के साथ (साध्वी का) गमनागमन निषेध किया है। और उत्सर्ग से दस संयति से कम और अपवाद से चार संयति की कमी में एक सौ हाथ से उपर जाने के लिए भगवंत ने निषेध किया है। तो फिर पाँचवें आरे के अन्तिम समय में अकेले सहाय बिना दुप्पसह अणगार होंगे और विष्णु श्री साध्वी | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Hindi | 1498 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं पुन काऊणं एरिसा सुलहबोही जाया सा सुगहियनामधेज्जा माहणी जीए एयावइयाणं भव्व-सत्ताणं अनंत संसार घोर दुक्ख संतत्ताणं सद्धम्म देसणाईहिं तु सासय सुह पयाणपुव्वगमब्भुद्धरणं कयं ति। गोयमा जं पुव्विं सव्व भाव भावंतरंतरेहिं णं नीसल्ले आजम्मा-लोयणं दाऊणं सुद्धभावाए जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं। पायच्छित्तसमत्तीए य समाहिए य कालं काऊणं सोहम्मे कप्पे सुरिंदग्गमहिसी जाया तमनुभावेणं।
से भयवं किं से णं माहणी जीवे तब्भवंतरम्मि समणी निग्गंथी अहेसि जे णं नीसल्लमालोएत्ता णं जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं ति। गोयमा जे णं से माहणी जीवे से णं तज्जम्मे बहुलद्धिसिद्धी Translated Sutra: हे भगवंत ! उस ब्राह्मणीने ऐसा तो क्या किया कि जिससे इस प्रकार सुलभ बोधि पाकर सुबह में नाम ग्रहण करने के लायक बनी और फिर उसके उपदेश से कईं भव्य जीव नर – नारी कि जो अनन्त संसार के घोर दुःख में सड़ रहे थे उन्हें सुन्दर धर्मदेश आदि के द्वारा शाश्वत सुख देकर उद्धार किया। हे गौतम ! उसने पूर्वभव में कईं सुन्दर भावना सहित | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Gujarati | 404 | Sutra | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] (४) जामत्थियं तं वेयणं नो अहियासेज्जा वियम्मं वा समायरेज्जा से णं अधन्ना, से णं अपुन्ना, से णं अवंदा, से णं अपुज्जा, से णं अदट्ठव्वा, से णं अलक्खणा, से णं भग्ग-लक्खणा, से णं सव्व अमंगल-अकल्लाण-भायणा।
(५) से णं भट्ठ-सीला, से णं भट्ठायारा से णं परिभट्ठ-चारित्ता, से णं निंदणीया, से णं गरहणीया, से खिंसणिज्जा, से णं कुच्छणिज्जा, से णं पावा, से णं पाव-पावा, से णं महापाव-पावा, से णं अपवित्ति त्ति॥
(१) एवं तु गोयमा चडुलत्ताए भीरुत्ताए कायरत्ताए लोलत्ताए, उम्मायओ वा दप्पओ वा
कंदप्पओ वा अणप्प-वसओ वा आउट्टियाए वा,
(२) जमित्थियं संजमाओ परिभस्सिय, दूरद्धाणे वा गामे वा नगरे वा रायहाणीए वा, Translated Sutra: જો તે સ્ત્રી વેદના ન સહે, અકાર્યાચરણ કરે, તો તે સ્ત્રી અધન્યા, અપુન્યવંતી, અપૂજ્યા, અદર્શનીય, અલક્ષણી, ભંગ ભાગ્યા, સર્વે અમંગલ અને અકલ્યાણના કારણવાળી, શીલ – ભ્રષ્ટા, આચારભ્રષ્ટા, નિંદનીયા, તિરસ્કાર્ય, ધૃણા યોગ્યા, મહાપાપીણી, અપવિત્રા છે. ગૌતમ! સ્ત્રીઓ આપલ્ય, ભય, કાયરતા, લોલુપતા, ઉન્માદ, કંદર્પ, અભિમાન, પરાધીનતા | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 591 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (७) एत्थ य जत्थ जत्थ पयं पएणाऽनुलग्गं सुत्तालावगं न संपज्जइ, तत्थ तत्थ सुयहरेहिं कुलि-हिय-दोसो न दायव्वो त्ति
(८) किंतु जो सो एयस्स अचिंत-चिंतामणी-कप्पभूयस्स महानिसीह-सुयक्खंधस्स पुव्वायरिसो आसि, तहिं चेव खंडाखंडीए उद्देहियाइएहिं हेऊहिं बहवे पन्नगा परिसडिया।
(९) तहा वि अच्चंत-सुमहत्थाइसयं ति इमं महानिसीह-सुयक्खंधं कसिण-पवयणस्स परम-सार-भूयं परं तत्तं महत्थंति कलिऊणं
(१०) पवयण-वच्छल्लत्तणेणं बहु-भव-सत्तोवयारियं च काउं, तहा य आय-हियट्ठयाए आयरिय-हरिभद्देणं जं तत्थाऽऽयरिसे दिट्ठं तं सव्वं स-मतीए साहिऊणं लिहियं ति
(११) अन्नेहिं पि सिद्धसेन दिवाकर-वुड्ढवाइ-जक्खसेण-देवगुत्त-जसवद्धण-खमासमण-सीस-रविगुत्त-णेमिचंद-जिणदासगणि-खमग-सच्चरिसि-पमुहेहिं Translated Sutra: અહીં જ્યાં જ્યાં પદો – પદોની સાથે જોડાયેલા હોય અને સળંગ સૂત્રાલાપક પ્રાપ્ત ન થાય ત્યાં શ્રુતધરોએ લહીયાઓને ખોટું લખ્યું છે, એવો દોષ ન આપવો. પરંતુ જે કોઈ અચિંત્ય ચિંતામણી અને કલ્પવૃક્ષ સમાન મહાનિશીથ શ્રુતસ્કંધની પહેલાંની લખેલ પ્રત હતી તેમાં જે ઉધઈ આદિ જીવાતોથી ખવાઈને ટૂકડાવાળી પ્રત બની ગઈ. ઘણા પત્રો સડી ગયા | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Gujarati | 811 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं अट्ठण्हं साहूणमसइं उस्सग्गेण वा अववाएण वा चउहिं अनगारेहिं समं गमनागमनं नियंठियं तहा दसण्हं संजईणं हेट्ठा उसग्गेणं, चउण्हं तु अभावे अववाएणं हत्थ-सयाओ उद्धं गमनं नाणुण्णायं। आणं वा अइक्कमंते साहू वा साहूणीओ वा अनंत-संसारिए समक्खाए।
ता णं से दुप्पसहे अनगारे असहाए भवेज्जा। सा वि य विण्हुसिरी अनगारी असहाया चेव भवेज्जा। एवं तु ते कहं आराहगे भवेज्जा गोयमा णं दुस्समाए परियंते ते चउरो जुगप्पहाणे खाइग सम्मत्त नाण दंसण चारित्त समण्णिए भवेज्जा।
तत्थ णं जे से महायसे महानुभागे दुप्पसहे अनगारे से णं अच्चंत विसुद्ध सम्मद्दंसण नाण चारित्त गुणेहिं उववेए सुदिट्ठ Translated Sutra: ભગવન્ ! ઉત્સર્ગે આઠ સાધુના અભાવમાં અથવા અપવાદથી ચાર સાધુઓ સાથે સાધ્વીનું ગમનાગમન નિષેધેલ છે. તેમજ ઉત્સર્ગથી દશ સંયતિથી ઓછી, અપવાદથી ચાર સંયતિના અભાવે ૧૦૦ હાથ ઉપરાંત જવાનું. ભગવંતે નિષેધેલ છે. આ આજ્ઞા ઉલ્લંધક સાધુ હોય કે સાધ્વી, તેને અનંતસંસારી કહેલાં છે. તો પાંચમા આરાને અંતે એકલા અસહાય દુષ્પસહ અણગાર હશે. | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Gujarati | 1498 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं पुन काऊणं एरिसा सुलहबोही जाया सा सुगहियनामधेज्जा माहणी जीए एयावइयाणं भव्व-सत्ताणं अनंत संसार घोर दुक्ख संतत्ताणं सद्धम्म देसणाईहिं तु सासय सुह पयाणपुव्वगमब्भुद्धरणं कयं ति। गोयमा जं पुव्विं सव्व भाव भावंतरंतरेहिं णं नीसल्ले आजम्मा-लोयणं दाऊणं सुद्धभावाए जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं। पायच्छित्तसमत्तीए य समाहिए य कालं काऊणं सोहम्मे कप्पे सुरिंदग्गमहिसी जाया तमनुभावेणं।
से भयवं किं से णं माहणी जीवे तब्भवंतरम्मि समणी निग्गंथी अहेसि जे णं नीसल्लमालोएत्ता णं जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं ति। गोयमा जे णं से माहणी जीवे से णं तज्जम्मे बहुलद्धिसिद्धी Translated Sutra: હે ભગવન્ ! તે બ્રાહ્મણીએ એવું શું કર્યું હતું કે જેથી આ પ્રમાણે સુલભબોધિ પામીને સવારના પહોરમાં નામ ગ્રહણ કરવા લાયક બની ? તેમજ તેના ઉપદેશથી અનેક ભવ્યજીવો, નર અને નારીના સમુદાય કે જેઓ અનંત સંસારના ઘોર દુઃખમાં સબડી રહેલા હતા તેમને સુંદર ધર્મદેશના વગેરે દ્વારા શાશ્વત સુખ આપીને તેણીએ તેમનો ઉદ્ધાર કર્યો ? હે ગૌતમ | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 281 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] उवउंजिउं निमित्ते दोण्हंपि य कारणा दुवग्गाणं ।
होहिंति जुगप्पवरा दुण्हवि अट्ठा दुवग्गाणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 282 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] ओहिमनो उवउंजिय परोक्खणाणी निमित्त धेत्तूणं ।
जदि पारगतो दिक्खा जुगप्पहाणा व होहिंति ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 538 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा तु न हायव्वो बितियपदेणं हरेज्ज व कयाइ ।
होही जुगप्पहाणो न य दोसा तत्थ केइ भवे ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 693 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] अतिसयणाणी थेरा य पुच्छिता तेहिं सिट्ठ जहवत्तं ।
दोही जुगप्पहाणो रक्खह णं अप्पमादेणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 2654 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] चरणकरणे समग्गो जो जत्थ जदा जुगप्पहाणो तु ।
सो होति संघथेरो सीतघरसमो पुरिससीहो ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 281 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] उवउंजिउं निमित्ते दोण्हंपि य कारणा दुवग्गाणं ।
होहिंति जुगप्पवरा दुण्हवि अट्ठा दुवग्गाणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 282 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] ओहिमनो उवउंजिय परोक्खणाणी निमित्त धेत्तूणं ।
जदि पारगतो दिक्खा जुगप्पहाणा व होहिंति ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 538 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा तु न हायव्वो बितियपदेणं हरेज्ज व कयाइ ।
होही जुगप्पहाणो न य दोसा तत्थ केइ भवे ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 693 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] अतिसयणाणी थेरा य पुच्छिता तेहिं सिट्ठ जहवत्तं ।
दोही जुगप्पहाणो रक्खह णं अप्पमादेणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2654 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] चरणकरणे समग्गो जो जत्थ जदा जुगप्पहाणो तु ।
सो होति संघथेरो सीतघरसमो पुरिससीहो ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Suryapragnapti | सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१२ |
Hindi | 100 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ता केवतियं ते नोजुगे राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता सत्तरस एक्कानउते राइंदियसते एगूणवीसं च मुहुत्ते सत्तावण्णे बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता पणपण्णं चुण्णिया भागा राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा।
ता से णं केवतिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता तेपन्नमुहुत्तसहस्साइं सत्त य अउणापन्ने मुहुत्तसते सत्तावन्नं बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता पणपन्नं चुण्णिया भागा मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा।
ता केवतिए णं ते जुगप्पत्ते राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता अट्ठतीसं राइंदियाइं दस य मुहुत्ता चत्तारि Translated Sutra: समस्त पंच संवत्सरों का एक युग १७९१ अहोरात्र एवं उन्नीस मुहूर्त्त तथा एक मुहूर्त्त के सत्तावन बासठांश भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके पचपन चूर्णिका भाग अहोरात्र प्रमाण है। उसके मुहूर्त्त ५३७४९ एवं एक मुहूर्त्त के सत्तावन बासठांश भाग तथा बांसठवे भाग के पचपन सडसठांश भाग प्रमाण है। अहोरात्र युग | |||||||||
Suryapragnapti | સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१२ |
Gujarati | 100 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ता केवतियं ते नोजुगे राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता सत्तरस एक्कानउते राइंदियसते एगूणवीसं च मुहुत्ते सत्तावण्णे बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता पणपण्णं चुण्णिया भागा राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा।
ता से णं केवतिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता तेपन्नमुहुत्तसहस्साइं सत्त य अउणापन्ने मुहुत्तसते सत्तावन्नं बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता पणपन्नं चुण्णिया भागा मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा।
ता केवतिए णं ते जुगप्पत्ते राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता अट्ठतीसं राइंदियाइं दस य मुहुत्ता चत्तारि Translated Sutra: નોયુગ કેટલા અહોરાત્રથી કહેલ છે ? પૂર્વોક્ત પાંચે સંવત્સરવાળા નોયુગમાં ૧૭૯૧ અહોરાત્ર અને ૧૯ મુહૂર્ત્ત તથા મુહૂર્ત્તના ૫૭/૬૨ ભાગ અને ૬૨ ભાગને ૬૭ વડે છેદીને ૫૫ – ચૂર્ણિકા ભાગથી અહોરાત્રનું પરિમાણ કહેલ છે, તેમ કહેવું. તે કેટલા મુહૂર્ત્ત પરિમાણથી કહેલ છે, તેમ કહેવું ? તે ૫૩,૭૪૯ મુહૂર્ત્ત અને એક મુહૂર્ત્તના ૫૭/૬૨ |