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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१ थी १४ |
Hindi | 27 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। चेल्लणा देवी।
तत्थ णं रायगिहे नयरे अज्जुनए नामं मालागारे परिवसइ–अड्ढे जाव अपरिभूए।
तस्स णं अज्जुनयस्स मालायारस्स बंधुमई नामं भारिया होत्था–सूमालपाणिपाया।
तस्स णं अज्जुनयस्स मालायारस्स रायगिहस्स नयरस्स बहिया, एत्थ णं महं एगे पुप्फारामे होत्था–किण्हे जाव महामेहनिउरुंबभूए दसद्धवन्नकुसुमकुसुमिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तस्स णं पुप्फारामस्स अदूरसामंते, एत्थ णं अज्जुनयस्स मालायारस्स अज्जय-पज्जय-पिइपज्जयागए अणेगकुलपुरिस-परंपरागए मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–पोराणे Translated Sutra: उस काल उस समय में राजगृह नगर था। गुणशीलक उद्यान था। श्रेणिक राजा थे। चेलना रानी थी। ‘अर्जुन’ नाम का एक माली रहता था। उसकी पत्नी बन्धुमती थी, जो अत्यन्त सुन्दर एवं सुकुमार थी। अर्जुन माली का राजगृह नगर के बाहर एक बड़ा पुष्पाराम था। वह पुष्पोद्यान कहीं कृष्ण वर्ण का था, यावत् समुदाय की तरह प्रतीत हो रहा था। | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१ थी १४ |
Gujarati | 27 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। चेल्लणा देवी।
तत्थ णं रायगिहे नयरे अज्जुनए नामं मालागारे परिवसइ–अड्ढे जाव अपरिभूए।
तस्स णं अज्जुनयस्स मालायारस्स बंधुमई नामं भारिया होत्था–सूमालपाणिपाया।
तस्स णं अज्जुनयस्स मालायारस्स रायगिहस्स नयरस्स बहिया, एत्थ णं महं एगे पुप्फारामे होत्था–किण्हे जाव महामेहनिउरुंबभूए दसद्धवन्नकुसुमकुसुमिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तस्स णं पुप्फारामस्स अदूरसामंते, एत्थ णं अज्जुनयस्स मालायारस्स अज्जय-पज्जय-पिइपज्जयागए अणेगकुलपुरिस-परंपरागए मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–पोराणे Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું. ત્યાં ગુણશીલ ચૈત્ય હતું. શ્રેણિક નામે રાજા હતો, ચેલ્લણા નામે રાણી હતી. રાજગૃહમાં અર્જુન માલાકાર રહેતો હતો, તે ધનાઢ્ય યાવત્ અપરિભૂત હતો. તે અર્જુન માલાકારને બંધુમતી નામે સુકુમાર પત્ની હતી. તે અર્જુનને રાજગૃહ બહાર એક મોટું પુષ્પ – ઉદ્યાન હતું. તે કૃષ્ણ યાવત્ મેઘ સમૂહવત્ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 50 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजने णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते! एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजने अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पन्नवेमि एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, Translated Sutra: भगवन् ! बहुत से लोग एक दूसरे से आख्यात करते हैं, भाषित करते हैं तथा प्ररूपित करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है। भगवन् ! यह कैसे है ? बहुत से लोग आपस में एक दूसरे से जो ऐसा कहते हैं, प्ररूपित करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर में सौ घरों में | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 51 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जे इमे गामागर नयर निगम रायहाणि खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टणासम संबाह सन्निवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा–आयरियपडिनीया उवज्झायपडिनीया तदुभयपडिनीया कुलपडिनीया गणपडिनीया आयरिय उवज्झायाणं अयसकारगा अवण्णकारगा अकित्तिकारगा बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेहिं य अप्पाणं च परं च तदुभयं च वुग्गाहेमाणा वुप्पाएमाणा विहरित्ता बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं लंतए कप्पे देवकिब्बिसिएसु देवकिब्बिसियत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए Translated Sutra: जो ग्राम, आकर, सन्निवेश आदि में प्रव्रजित श्रमण होते हैं, जैसे – आचार्यप्रत्यनीक, उपाध्याय – प्रत्यनीक, कुल – प्रत्यनीक, गण – प्रत्यनीक, आचार्य और उपाध्याय के अयशस्कर, अवर्णकारक, अकीर्तिकारक, असद्भाव, आरोपण तथा मिथ्यात्व के अभिनिवेश द्वारा अपने को, औरों को – दोनों को दुराग्रह में डालते हुए, दृढ़ करते हुए बहुत | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 50 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजने णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते! एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजने अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पन्नवेमि एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, Translated Sutra: ભગવન્! ઘણા લોકો એકબીજાને એમ કહે છે, એમ ભાખે છે, એમ પ્રરૂપે છે કે નિશ્ચે અંબડ પરિવ્રાજક, કંપિલપુર નગરમાં સો ઘરોમાં આહાર કરે છે, સો ઘરોમાં વસતિ કરે છે. ભગવન્ ! તે કેવી રીતે ? ગૌતમ! જે ઘણા લોકો એકબીજાને એમ કહે છે યાવત્ એમ પ્રરૂપે છે – નિશ્ચે અંબડ પરિવ્રાજક કંપિલપુરમાં યાવત્ સો ઘરોમાં વસતિ કરે છે. આ અર્થ સત્ય છે. ગૌતમ | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 51 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जे इमे गामागर नयर निगम रायहाणि खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टणासम संबाह सन्निवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा–आयरियपडिनीया उवज्झायपडिनीया तदुभयपडिनीया कुलपडिनीया गणपडिनीया आयरिय उवज्झायाणं अयसकारगा अवण्णकारगा अकित्तिकारगा बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेहिं य अप्पाणं च परं च तदुभयं च वुग्गाहेमाणा वुप्पाएमाणा विहरित्ता बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं लंतए कप्पे देवकिब्बिसिएसु देवकिब्बिसियत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए Translated Sutra: જે આ પ્રમાણે ગામ, આકર યાવત્ સન્નિવેશોમાં પ્રવ્રજિત થઈ શ્રમણ થાય છે તે આ – આચાર્યપ્રત્યનીક, ઉપાધ્યાયપ્રત્યનીક, કુલપ્રત્યનીક, ગણપ્રત્યનીક, આચાર્ય – ઉપાધ્યાયનો અપયશકારક, અવર્ણકારક, અકીર્તિકારક, ઘણી જ અસદ્ભાવના ઉદ્ભાવનાથી, મિથ્યાત્વાભિનિવેશ થકી પોતાને, બીજાને અને તદુભયને વ્યુદ્ગ્રાહિત કરતા, વ્યુત્પાદિત | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक | Hindi | 130 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनि-क्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं तुंगिया नामं नयरी होत्था–वण्णओ।
तीसे णं तुंगियाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे पुप्फवतिए नामं चेइए होत्था–वण्णओ।
तत्थ णं तुंगियाए नयरीए बहवे समणोवासया परिवसंति– अड्ढा दित्ता वित्थिण्णविपुलभवन-सयनासन-जानवाहणाइण्णा बहुधन-बहुजायरूव-रयया आयोगपयोगसंपउत्ता विच्छड्डियविपुल-भत्तपाना बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलयप्पभूया बहुजणस्स अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा उवलद्ध-पुण्ण-पावा-आसव-संवर-निज्जर-किरियाहिकरणबंधपमोक्खकुसला असहेज्जा Translated Sutra: इसके पश्चात् (एकदा) श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर के गुणशील उद्यान से नीकलकर बाहर जनपदों में विहार करने लगे। उस काल उस समय में तुंगिका नामकी नगरी थी। उस तुंगिका नगरी के बाहर ईशान कोण में पुष्पवतिक नामका चैत्य था। उस तुंगिकानगरी में बहुत – से श्रमणोपासक रहते थे। वे आढ्य और दीप्त थे। उनके विस्तीर्ण निपुल | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-५ तमस्काय | Hindi | 299 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लोगंतिगविमाना णं भंते! किंपइट्ठिया पन्नत्ता?
गोयमा! वाउपइट्ठिया पन्नत्ता। एवं नेयव्वं विमानाण पइट्ठाणं, बाहुल्लुच्चत्तमेव संठाणं, बंभलोय-वत्तव्वया नेयव्वा जाव–
लोयंतियविमानेसु णं भंते! सव्वे पाणा भूया जीवा सत्ता पुढविकाइयत्ताए, आउकाइयत्ताए, तेउकाइयत्ताए, वाउकाइयत्ताए, वणप्फइकाइयत्ताए, देवत्ताए, देवित्ताए उववन्नपुव्वा?
हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतक्खुत्तो, नो चेव णं देवित्ताए।
लोगंतिय देवाणं भंते! केवइयं कालं ठिती पन्नत्ता?
गोयमा! अट्ठ सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता।
लोगंतियविमानेहिंतो णं भंते! केवतियं अबाहाए लोगंते पन्नत्ते?
गोयमा! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं Translated Sutra: भगवन् ! लोकान्तिक विमान किसके आधार पर प्रतिष्ठित है ? गौतम ! लोकान्तिक विमान वायुप्रतिष्ठित है। इस प्रकार – जिस तरह विमानों का प्रतिष्ठान, विमानों का बाहल्य, विमानों की ऊंचाई और विमानों के संस्थान आदि का वर्णन जीवाजीवाभिगमसूत्र के देव – उद्देशक में ब्रह्मलोक की वक्तव्यता में कहा है, तदनुसार यहाँ भी कहना | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-७ |
उद्देशक-९ असंवृत्त | Hindi | 375 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजणे णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ– एवं खलु बहवे मनुस्सा अन्नयरेसु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति।
से कहमेयं भंते! एवं?
गोयमा! जण्णं से बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–एवं खलु बहवे मनुस्सा अन्नयरेसु सु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु सु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं वेसाली नामं नगरी होत्था–वण्णओ।
तत्थ Translated Sutra: भगवन् ! बहुत – से लोग परस्पर ऐसा कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि – अनेक प्रकार के छोटे – बड़े संग्रामों में से किसी भी संग्राम में सामना करते हुए आहत हुए एवं घायल हुए बहुत – से मनुष्य मृत्यु के समय मरकर किसी भी देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! ऐसा कैसे हो सकता है ? गौतम ! बहुत – से मनुष्य, जो इस | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Hindi | 460 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं माहणकुंडग्गामे नयरे होत्था–वण्णओ। बहुसालए चेइए–वण्णओ। तत्थ णं माहणकुंडग्गामे नयरे उसभदत्ते नामं माहणे परिवसइ–अड्ढे दित्ते वित्ते जाव वहुजणस्स अपरिभूए रिव्वेद-जजुव्वेद-सामवेद-अथव्वणवेद-इतिहासपंचमाणं निघंटुछट्ठाणं–चउण्हं वेदाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं सारए धारए पारए सडंगवी सट्ठितंतविसारए, संखाणे सिक्खा कप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोतिसामयणे, अन्नेसु य बहूसु बंभण्णएसु नयेसु सुपरिनिट्ठिए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तस्स णं उसभदत्तस्स माहणस्स देवानंदा नामं Translated Sutra: उस काल और समय में ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर था। वहाँ बहुशाल नामक चैत्य था। उस ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर में ऋषभदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था। वह आढ्य, दीप्त, प्रसिद्ध, यावत् अपरिभूत था। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वणवेद में निपुण था। स्कन्दक तपास की तरह वह भी ब्राह्मणों के अन्य बहुत से नयों में निष्णात | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१० |
उद्देशक-४ श्यामहस्ती | Hindi | 487 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे नयरे होत्था–वण्णओ। दूतिपलासए चेइए। सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सामहत्थी नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से सामहत्थी अनगारे जायसड्ढे जाव उट्ठाए Translated Sutra: उस काल और उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था (वर्णन) वहाँ द्युतिपलाश नामक उद्यान था। वहाँ श्रमण भगवान महावीर का समवसरण हुआ यावत् परीषद् आई और वापस लौट गई। उस काल और उस समय में, श्रमण भगवान महावीरस्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति नामक अनगार थे। वे ऊर्ध्वजानु यावत् विचरण करते थे। उस काल और उस समय में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-११ |
उद्देशक-१० लोक | Hindi | 510 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कतिविहे णं भंते! लोए पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे लोए पन्नत्ते, तं जहा–दव्वलोए, खेत्तलोए, काललोए, भावलोए।
खेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–अहेलोयखेत्तलोए, तिरियलोयखेत्तलोए, उड्ढलोयखेत्तलोए।
अहेलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–रयणप्पभापुढविअहेलोयखेत्तलोए जाव अहेसत्तमापुढवि-अहेलोयखेत्तलोए।
तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! असंखेज्जविहे पन्नत्ते, तं जहा–जंबुद्दीवे दीवे तिरियलोयखेत्तलोए जाव सयंभूरमणसमुद्दे तिरियलोयखेत्तलोए।
उड्ढलोयखेत्तलोए Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् पूछा – भगवन् ! लोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का है। यथा – द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक और भावलोक। भगवन् ! क्षेत्रलोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का। यथा – अधोलोक – क्षेत्रलोक, तिर्यग्लोक – क्षेत्रलोक और ऊर्ध्वलोक – क्षेत्रलोक। भगवन् ! अधोलोक – क्षेत्रलोक कितने प्रकार | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-११ |
उद्देशक-११ काल | Hindi | 514 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। दूतिपलासे चेइए–वण्णओ जाव पुढविसि-लापट्टओ। तत्थ णं वाणियग्गामे नगरे सुदंसणे नामं सेट्ठी परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजणस्स अपरिभूए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। सामी समोसढे जाव परिसा पज्जुवासइ।
तए णं से सुदंसणे सेट्ठी इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठतुट्ठे ण्हाए कय बलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं पायविहारचारेणं महयापुरिसवग्गुरापरिक्खित्ते वाणियग्गामं Translated Sutra: उस काल और उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था। उसका वर्णन करना चाहिए। वहाँ द्युतिपलाश नामक उद्यान था। यावत् उसमें एक पृथ्वीशिलापट्ट था। उस वाणिज्यग्राम नगर में सुदर्शन नामक श्रेष्ठी रहता था। वह आढ्य यावत् अपरिभूत था। वह जीव अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता, श्रमणोपासक होकर यावत् विचरण करता था। महावीर | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-१ शंख | Hindi | 530 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नामं नगरी होत्था–वण्णओ। कोट्ठए चेइए–वण्णओ। तत्थ णं सावत्थीए नगरीए बहवे संखप्पामोक्खा समणोवासया परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया, अभिगयजीवाजीवा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवो-कम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। तस्स णं संखस्स समणोवासगस्स उप्पला नाम भारिया होत्था–सुकुमालपाणिपाया जाव सुरूवा, समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तत्थ णं सावत्थीए नगरीए पोक्खली नामं समणोवासए परिवसइ–अड्ढे, अभिगयजीवाजीवे जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तेणं कालेणं Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रावस्ती नगरी थी। कोष्ठक उद्यान था, उस श्रावस्ती नगरी में शंख आदि बहुत – से श्रमणोपासक रहते थे। (वे) आढ्य यावत् अपरिभूत थे; तथा जीव, अजीव आदि तत्त्वों के ज्ञाता थे, यावत् विचरते थे। उस ‘शंख’ श्रमणोपासक की भार्या ‘उत्पला’ थी। उसके हाथ – पैर अत्यन्त कोमल थे, यावत् वह रूपवती एवं श्रमणोपासिका | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-१ शंख | Hindi | 532 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–कतिविहा णं
भंते! जागरिया पन्नत्ता?
गोयमा! तिविहा जागरिया पन्नत्ता, तं जहा–बुद्धजागरिया, अबुद्धजागरिया, सुदक्खुजागरिया।
के केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–तिविहा जागरिया पन्नत्ता, तं जहा–बुद्धजागरिया, अबुद्ध-जागरिया, सुदक्खुजागरिया?
गोयमा! जे इमे अरहंता भगवओ उप्पन्ननाणदंसणधरा अरहा जिने केवली तीयपच्चुप्पन्नमणागय-वियाणए सव्वण्णू सव्वदरिसी एए णं बुद्धा बुद्धजागरियं जागरंति।
जे इमे अणगारा भगवंतो रियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाणभंडमत्तनिक्खे- वणासमिया उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-परिट्ठावणिया-समिया Translated Sutra: गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन – नमस्कार किया और पूछा – भगवन् ! जागरिका कितने प्रकार की है ? गौतम ! जागरिका तीन प्रकार की कही गई है, यथा – वृद्ध – जागरिका, अबुद्ध – जागरिका और सुदर्शन – जागरिका। भगवन् ! किस हेतु से कहा जाता है ? गौतम ! जो उत्पन्न हुए केवलज्ञान – केवलदर्शन के धारक अरिहंत भगवान हैं, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-२ जयंति | Hindi | 534 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी नामं नगरी होत्था–वण्णओ। चंदोतरणे चेइए–वण्णओ। तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स रन्नो पोत्ते, सयाणीस्स रन्नो पुत्ते, चेडगस्स रन्नो नत्तुए, मिगावतीए देवीए अत्तए, जयंतीए समणोवासि-याए भत्तिज्जए उदयने नामं राया होत्था–वण्णओ। तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स रन्नो सुण्हा, सयाणीस्स रन्नो भज्जा, चेडगस्स रन्नो धूया, उदयनस्स रन्नो माया, जयंतीए समणोवासियाए भाउज्जा मिगावती नामं देवी होत्था–सुकुमालपाणिपाया जाव सुरूवा समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणो विहरइ। तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स Translated Sutra: उस काल और उस समय में कौशाम्बी नगरी थी। चन्द्रवतरण उद्यान था। उस कौशाम्बी नगरी में सहस्त्रा – नीक राजा का पौत्र, शतानीक राजा का पुत्र, चेटक राजा का दौहित्र, मृगावती देवी का आत्मज और जयन्ती श्रमणोपासिका का भतीजा ‘उदयन’ नामक राजा था। उसी कौशाम्बी नगरी में सहस्रानीक राजा की पुत्रवधू, शतानीक राजा की पत्नी, चेटक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१३ |
उद्देशक-६ उपपात | Hindi | 587 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था–वण्णओ। पुण्णभद्दे चेइए–वण्णओ। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदाइ पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा नगरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सिंधूसोवीरेसु जणवएसु वीतीभए नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं वीतीभयस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे Translated Sutra: तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर किसी अन्य दिन राजगृह नगर के गुणशील चैत्य से यावत् विहार कर देते हैं। उस काल, उस समय में चम्पा नगरी थी। पूर्णभद्र नामका चैत्य था। किसी दिन श्रमण भगवान महावीर पूर्वानुपूर्वी से विचरण करते हुए यावत् विहार करते हुए जहाँ चम्पा नगरी थी और जहाँ पूर्णभद्र नामक चैत्य था, वहाँ पधारे यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१३ |
उद्देशक-६ उपपात | Hindi | 588 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स अभीयिस्स कुमारस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं उद्दायणस्स पुत्ते पभावतीए देवीए अत्तए, तए णं से उद्दायने राया ममं अवहाय नियगं भाइणेज्जं केसिं कुमारं रज्जे ठावेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए– इमेणं एयारूवेणं महया अप्पत्तिएणं मनोमानसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे अंतेउरपरियालसंपरिवुडे सभंडमत्तोवगरणमायाए वीतीभयाओ नयराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे Translated Sutra: तत्पश्चात् किसी दिन रात्रि के पीछले प्रहर में कुटुम्ब – जागरण करते हुए अभीचिकुमार के मन में इस प्रकार का विचार यावत् उत्पन्न हुआ – ‘मैं उदायन राजा का पुत्र और प्रभावती देवी का आत्मज हूँ। फिर भी उदायन राजा ने मुझे छोड़कर अपने भानजे केशी कुमार को राजसिंहासन पर स्थापित करके श्रमण भगवान महावीर के पास यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१४ |
उद्देशक-८ अंतर | Hindi | 627 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजने णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते?
एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पन्नवेमि एवं परूवेमि–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, Translated Sutra: भगवन् ! बहुत – से लोग परस्पर एक दूसरे से इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में भोजन करता है तथा रहता है, (इत्यादि प्रश्न)। हाँ, गौतम ! यह सत्य है; इत्यादि औपपातिकसूत्रमें कथित अम्बड – सम्बन्धी वक्तव्यता, यावत् – महर्द्धिक दृढप्रतिज्ञ होकर सर्व दुःख | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-२ विशाखा | Hindi | 727 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विसाहा नामं नगरी होत्था–वण्णओ। बहुपुत्तिए चेइए–वण्णओ। सामी समोसढे जाव पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे–एवं जहा सोलसमसए बितियउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमानेणं आगओ, नवरं–एत्थं आभियोगा वि अत्थि जाव बत्तीसतिविहं नट्टविहिं उवदंसेत्ता जाव पडिगए।
भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जहा तइयसए ईसानस्स तहेव कूडागारदिट्ठंतो, तहेव पुव्वभवपुच्छा जाव अभिसमन्नागए?
गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे Translated Sutra: उस काल एवं उस समय में विशाखा नामकी नगरी थी। वहाँ बहुपुत्रिक नामक चैत्य था। (वर्णन) एक बार वहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ, यावत् परीषद् पर्युपासना करने लगी। उस काल और उस समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, वज्रपाणि, पुरन्दर इत्यादि सोलहवें शतक के द्वीतिय उद्देशक में शक्रेन्द्र का जैसा वर्णन है, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-७ केवली | Hindi | 744 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुण सिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा–कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई।
तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सण्णिसण्णाणं अय-मेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्ग-लत्थिकायं।
तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, Translated Sutra: उस काल उस समय राजगृह नामक नगर था। (वर्णन)। वहाँ गुणशील नामक उद्यान था। (वर्णन)। यावत् वहाँ एक पृथ्वीशिलापट्टक था। उस गुणशील उद्यान के समीप बहुत – से अन्यतीर्थिक रहते थे, यथा – कालोदायी, शैलोदायी इत्यादि समग्र वर्णन सातवें शतक के अन्यतीर्थिक उद्देशक के अनुसार, यावत् – ‘यह कैसे माना जा सकता है?’ यहाँ तक समझना | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-१० सोमिल | Hindi | 757 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगे भवं? दुवे भवं? अक्खए भवं? अव्वए भवं? अवट्ठिए भवं? अनेगभूयभाव-भविए भवं?
सोमिला! एगे वि अहं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–एगे वि अहं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं?
सोमिला! दव्वट्ठयाए एगे अहं, नाणदंसणट्ठयाए दुविहे अहं, पएसट्ठयाए अक्खए वि अहं, अव्वए वि अहं, अवट्ठिए वि अहं, उवयोगट्ठयाए अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं। से तेणट्ठेणं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं।
एत्थ णं से सोमिले माहणे संबुद्धे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जहा खंदओ जाव से जहेयं तुब्भे वदह। जहा णं देवानुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भसेट्ठि-सेनावइ-सत्थ Translated Sutra: भगवन् ! आप एक हैं, या दो हैं, अथवा अक्षय हैं, अव्यय हैं, अवस्थित हैं अथवा अनेक – भूत – भाव – भाविक हैं? सोमिल ! मैं एक भी हूँ, यावत् अनेक – भूत – भाव – भाविक भी हूँ। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? सोमिल ! मैं द्रव्यरूप से एक हूँ, ज्ञान और दर्शन की दृष्टि से दो हूँ। आत्म – प्रदेशों की अपेक्षा से मैं अक्षय हूँ, अव्यय हूँ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक | Gujarati | 130 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनि-क्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं तुंगिया नामं नयरी होत्था–वण्णओ।
तीसे णं तुंगियाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे पुप्फवतिए नामं चेइए होत्था–वण्णओ।
तत्थ णं तुंगियाए नयरीए बहवे समणोवासया परिवसंति– अड्ढा दित्ता वित्थिण्णविपुलभवन-सयनासन-जानवाहणाइण्णा बहुधन-बहुजायरूव-रयया आयोगपयोगसंपउत्ता विच्छड्डियविपुल-भत्तपाना बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलयप्पभूया बहुजणस्स अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा उवलद्ध-पुण्ण-पावा-आसव-संवर-निज्जर-किरियाहिकरणबंधपमोक्खकुसला असहेज्जा Translated Sutra: ત્યારે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર રાજગૃહનગરના ગુણશીલ ચૈત્યથી નીકળ્યા, નીકળીને બહારના જનપદોમાં વિહાર કરતાં વિચરે છે. તે કાળ તે સમયે તુંગિકા નામે નગરી હતી. (વર્ણન). તે તુંગિકા નગરીની બહાર ઈશાન ખૂણામાં પુષ્પવતી નામે ચૈત્ય હતું. (વર્ણન)... બંને વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્ર અનુસાર સમજી લેવું. તે તુંગિકા નગરીમાં ઘણા શ્રાવકો રહેતા હતા. | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-७ |
उद्देशक-९ असंवृत्त | Gujarati | 375 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजणे णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ– एवं खलु बहवे मनुस्सा अन्नयरेसु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति।
से कहमेयं भंते! एवं?
गोयमा! जण्णं से बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–एवं खलु बहवे मनुस्सा अन्नयरेसु सु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु सु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं वेसाली नामं नगरी होत्था–वण्णओ।
तत्थ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૭૩ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Gujarati | 460 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं माहणकुंडग्गामे नयरे होत्था–वण्णओ। बहुसालए चेइए–वण्णओ। तत्थ णं माहणकुंडग्गामे नयरे उसभदत्ते नामं माहणे परिवसइ–अड्ढे दित्ते वित्ते जाव वहुजणस्स अपरिभूए रिव्वेद-जजुव्वेद-सामवेद-अथव्वणवेद-इतिहासपंचमाणं निघंटुछट्ठाणं–चउण्हं वेदाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं सारए धारए पारए सडंगवी सट्ठितंतविसारए, संखाणे सिक्खा कप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोतिसामयणे, अन्नेसु य बहूसु बंभण्णएसु नयेसु सुपरिनिट्ठिए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तस्स णं उसभदत्तस्स माहणस्स देवानंदा नामं Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૬૦. તે કાળે, તે સમયે બ્રાહ્મણકુંડગ્રામ નગર હતું. વર્ણન. બહુશાલ ચૈત્ય હતું. ( બંનેનું વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્ર અનુસાર જાણવું) તે બ્રાહ્મણકુંડગ્રામ નગરમાં ઋષભદત્ત નામે બ્રાહ્મણ વસતો હતો. તે ઋદ્ધિવાન, તેજસ્વી, ધનવાન યાવત્ અનેક પુરુષો દ્વારા અપરિભૂત હતો. તે ઋગ્વેદ, યજુર્વેદ, સામવેદ, અથર્વણવેદ આદિમાં નિપુણ હતો. | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१० |
उद्देशक-४ श्यामहस्ती | Gujarati | 487 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे नयरे होत्था–वण्णओ। दूतिपलासए चेइए। सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सामहत्थी नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से सामहत्थी अनगारे जायसड्ढे जाव उट्ठाए Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે વાણિજ્યગ્રામ નામે નગર હતુ, ત્યાંન. દૂતિપલાશ ચૈત્ય હતુ,(બંનેનું વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્ર અનુસાર જાણવું) ત્યાં ભગવંત મહાવીર સ્વામી પધાર્યા. યાવત્ પર્ષદા ધર્મ શ્રવણ કરી પાછી ફરી. તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના જ્યેષ્ઠ શિષ્ય ઇન્દ્રભૂતિ અણગાર યાવત્ સંયમ અને તપથી આત્માને ભાવિત કરતા વિચરતા હતા. તે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-११ |
उद्देशक-१० लोक | Gujarati | 510 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कतिविहे णं भंते! लोए पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे लोए पन्नत्ते, तं जहा–दव्वलोए, खेत्तलोए, काललोए, भावलोए।
खेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–अहेलोयखेत्तलोए, तिरियलोयखेत्तलोए, उड्ढलोयखेत्तलोए।
अहेलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–रयणप्पभापुढविअहेलोयखेत्तलोए जाव अहेसत्तमापुढवि-अहेलोयखेत्तलोए।
तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! असंखेज्जविहे पन्नत्ते, तं जहा–जंबुद्दीवे दीवे तिरियलोयखेत्तलोए जाव सयंभूरमणसमुद्दे तिरियलोयखेत्तलोए।
उड्ढलोयखेत्तलोए Translated Sutra: રાજગૃહનગરમાં ગૌતમસ્વામીએ યાવત્ આ પ્રમાણે કહ્યું – ભગવન્ ! લોક કેટલા ભેદ છે ? ગૌતમ ! લોકના ચાર ભેદછે – દ્રવ્યલોક, ક્ષેત્રલોક, કાળલોક, ભાવલોક. ભગવન્ ! ક્ષેત્રલોક કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! ક્ષેત્રલોક ત્રણ ભેદે છે. અધોલોક ક્ષેત્રલોક, તિર્છાલોક ક્ષેત્રલોક, ઉર્ધ્વલોક ક્ષેત્રલોક. ભગવન્ ! અધોલોક ક્ષેત્રલોક કેટલા ભેદે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-११ |
उद्देशक-११ काल | Gujarati | 514 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। दूतिपलासे चेइए–वण्णओ जाव पुढविसि-लापट्टओ। तत्थ णं वाणियग्गामे नगरे सुदंसणे नामं सेट्ठी परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजणस्स अपरिभूए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। सामी समोसढे जाव परिसा पज्जुवासइ।
तए णं से सुदंसणे सेट्ठी इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठतुट्ठे ण्हाए कय बलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं पायविहारचारेणं महयापुरिसवग्गुरापरिक्खित्ते वाणियग्गामं Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે વાણિજ્ય ગ્રામ નામે નગર હતું. દૂતિપલાશ ચૈત્ય હતું. યાવત્ પૃથ્વીશિલાપટ્ટક હતો. તે વાણિજ્યગ્રામ નગરમાં સુદર્શન નામે શ્રેષ્ઠી રહેતો હતો, તે ઋદ્ધિમાન્ યાવત્ અપરિભૂત હતો, શ્રાવક, જીવાજીવનો જ્ઞાતા હતો યાવત્ વિચરતો હતો. મહાવીર સ્વામી પધાર્યા. યાવત્ પર્ષદા પર્યુપાસે છે. ત્યારે તે સુદર્શન શ્રેષ્ઠી | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-१ शंख | Gujarati | 530 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नामं नगरी होत्था–वण्णओ। कोट्ठए चेइए–वण्णओ। तत्थ णं सावत्थीए नगरीए बहवे संखप्पामोक्खा समणोवासया परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया, अभिगयजीवाजीवा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवो-कम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। तस्स णं संखस्स समणोवासगस्स उप्पला नाम भारिया होत्था–सुकुमालपाणिपाया जाव सुरूवा, समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तत्थ णं सावत्थीए नगरीए पोक्खली नामं समणोवासए परिवसइ–अड्ढे, अभिगयजीवाजीवे जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तेणं कालेणं Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૩૦. તે કાળે, તે સમયે શ્રાવસ્તી નામે નગરી હતી. કોષ્ઠક ચૈત્ય હતું.(નગરી અને ચૈત્યનું વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્ર અનુસાર જાણવું) તે શ્રાવસ્તી નગરીમાં શંખ આદિ ઘણા શ્રાવકો રહેતા હતા. તેઓ સમૃદ્ધ યાવત્ અપરિભૂત હતા, જીવાજીવના જ્ઞાતા હતા યાવત્ સ્વયં સ્વીકૃત તપોકર્મ વડે આત્માને ભાવિત કરતા વિચરતા હતા. તે શંખ શ્રાવકને | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-१ शंख | Gujarati | 532 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–कतिविहा णं
भंते! जागरिया पन्नत्ता?
गोयमा! तिविहा जागरिया पन्नत्ता, तं जहा–बुद्धजागरिया, अबुद्धजागरिया, सुदक्खुजागरिया।
के केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–तिविहा जागरिया पन्नत्ता, तं जहा–बुद्धजागरिया, अबुद्ध-जागरिया, सुदक्खुजागरिया?
गोयमा! जे इमे अरहंता भगवओ उप्पन्ननाणदंसणधरा अरहा जिने केवली तीयपच्चुप्पन्नमणागय-वियाणए सव्वण्णू सव्वदरिसी एए णं बुद्धा बुद्धजागरियं जागरंति।
जे इमे अणगारा भगवंतो रियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाणभंडमत्तनिक्खे- वणासमिया उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-परिट्ठावणिया-समिया Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૩૦ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-२ जयंति | Gujarati | 534 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी नामं नगरी होत्था–वण्णओ। चंदोतरणे चेइए–वण्णओ। तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स रन्नो पोत्ते, सयाणीस्स रन्नो पुत्ते, चेडगस्स रन्नो नत्तुए, मिगावतीए देवीए अत्तए, जयंतीए समणोवासि-याए भत्तिज्जए उदयने नामं राया होत्था–वण्णओ। तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स रन्नो सुण्हा, सयाणीस्स रन्नो भज्जा, चेडगस्स रन्नो धूया, उदयनस्स रन्नो माया, जयंतीए समणोवासियाए भाउज्जा मिगावती नामं देवी होत्था–सुकुमालपाणिपाया जाव सुरूवा समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणो विहरइ। तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૩૪. તે કાળે, તે સમયે કૌશાંબી નગરી હતી, ચંદ્રાવતરણ ચૈત્ય હતું, તે કૌશાંબી નગરીમાં સહસ્રાનીક રાજાનો પૌત્ર, શતાનીક રાજાનો પુત્ર, ચેટક રાજાનો દોહિત્ર, મૃગાવતી દેવીનો પુત્ર, જયંતિ શ્રાવિકાનો ભત્રીજો એવો ઉદાયન રાજા હતો. તે કૌશાંબી નગરીમાં સહસ્રાનીક રાજાની પુત્રવધૂ શતાનીક રાજાની પત્ની, ચેટક રાજાની પુત્રી, | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१३ |
उद्देशक-६ उपपात | Gujarati | 587 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था–वण्णओ। पुण्णभद्दे चेइए–वण्णओ। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदाइ पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा नगरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सिंधूसोवीरेसु जणवएसु वीतीभए नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं वीतीभयस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૮૭. ત્યારે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે અન્ય કોઈ દિને રાજગૃહીનગરીના ગુણશીલચૈત્યથી યાવત્ વિહાર કર્યો તે કાળે, તે સમયે ચંપા નગરી હતી, પૂર્ણભદ્ર ચૈત્ય હતું. ત્યારે ભગવંત મહાવીર અન્ય કોઈ દિવસે પૂર્વાનુપૂર્વી ચાલતા યાવત્ વિચરતા ચંપાનગરીમાં પૂર્ણભદ્ર ચૈત્ય હતું ત્યાં આવ્યા. આવીને યાવત્ વિચરે છે. તે કાળે, તે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१३ |
उद्देशक-६ उपपात | Gujarati | 588 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स अभीयिस्स कुमारस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं उद्दायणस्स पुत्ते पभावतीए देवीए अत्तए, तए णं से उद्दायने राया ममं अवहाय नियगं भाइणेज्जं केसिं कुमारं रज्जे ठावेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए– इमेणं एयारूवेणं महया अप्पत्तिएणं मनोमानसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे अंतेउरपरियालसंपरिवुडे सभंडमत्तोवगरणमायाए वीतीभयाओ नयराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૮૭ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१४ |
उद्देशक-८ अंतर | Gujarati | 627 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजने णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते?
एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पन्नवेमि एवं परूवेमि–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૨૬ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-२ विशाखा | Gujarati | 727 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विसाहा नामं नगरी होत्था–वण्णओ। बहुपुत्तिए चेइए–वण्णओ। सामी समोसढे जाव पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे–एवं जहा सोलसमसए बितियउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमानेणं आगओ, नवरं–एत्थं आभियोगा वि अत्थि जाव बत्तीसतिविहं नट्टविहिं उवदंसेत्ता जाव पडिगए।
भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जहा तइयसए ईसानस्स तहेव कूडागारदिट्ठंतो, तहेव पुव्वभवपुच्छा जाव अभिसमन्नागए?
गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે વિશાખા નામે નગરી હતી. બહુપુત્રિક ચૈત્ય હતું. (નગરી અને ચૈત્યનું વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્ર મુજબ કરવું). ભગવંત મહાવીર સ્વામી પધાર્યા યાવત્ પર્ષદા પર્યુપાસે છે. તે કાળે, તે સમયે દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્ર, વજ્રપાણી, પુરંદર૦ આદિ શતક – ૧૬, ઉદ્દેશા – ૨ મુજબ તે રીતે દિવ્ય યાન વિમાનથી આવ્યો. વિશેષ એ કે – આભિયોગિક | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-७ केवली | Gujarati | 744 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुण सिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा–कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई।
तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सण्णिसण्णाणं अय-मेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्ग-लत्थिकायं।
तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૪૪. તે કાળે, તે સમયે રાજગૃહનગર, ગુણશીલ ચૈત્ય, યાવત્ પૃથ્વીશિલાપટ્ટક હતો. તે ગુણશીલ ચૈત્યથી કંઈક સમીપ ઘણા અન્યતીર્થિકો રહેતા હતા. તે આ પ્રમાણે છે – કાલોદાયી, શૈલોદાયી૦ આદિ શતક – ૭ – માં અન્યતીર્થિકોદ્દેશકમાં કહ્યા મુજબ છે યાવત્ અન્યતીર્થિકોની તે વાત કેમ માનવી? ત્યાં રાજગૃહ નગરમાં મદ્રુક નામે શ્રાવક | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-१० सोमिल | Gujarati | 757 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगे भवं? दुवे भवं? अक्खए भवं? अव्वए भवं? अवट्ठिए भवं? अनेगभूयभाव-भविए भवं?
सोमिला! एगे वि अहं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–एगे वि अहं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं?
सोमिला! दव्वट्ठयाए एगे अहं, नाणदंसणट्ठयाए दुविहे अहं, पएसट्ठयाए अक्खए वि अहं, अव्वए वि अहं, अवट्ठिए वि अहं, उवयोगट्ठयाए अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं। से तेणट्ठेणं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं।
एत्थ णं से सोमिले माहणे संबुद्धे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जहा खंदओ जाव से जहेयं तुब्भे वदह। जहा णं देवानुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भसेट्ठि-सेनावइ-सत्थ Translated Sutra: ભગવન્ ! આપ એક છો, બે છો, અક્ષય છો, અવ્યય છો, અવસ્થિત છો કે અનેક ભૂતભાવ ભાવિક છો ? હે સોમિલ! હું એક પણ છું યાવત્ અનેકભૂત ભાવ ભાવિક પણ છું. ભગવન્ ! કયા કારણે આપ એમ કહો છો કે યાવત્ હું ભાવિક પણ છું ? હે સોમિલ! દ્રવ્યાર્થપણે હું એક છું, જ્ઞાન – દર્શન અર્થથી હું બે છું, પ્રદેશાર્થથી હું અક્ષય છું, અવ્યય છું અને અવસ્થિત પણ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 109 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंधाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ नो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभि-जुंजिय परियारेंति, नो अप्पनिच्चियाओ देवीओ अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, नो अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि तं अहमवि आगमेस्साइं Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है यावत् जो स्वयं विकुर्वित देवलोक में कामभोग का सेवन करते हैं। (यहाँ तक सब कथन पूर्व सूत्र – १०८ के अनुसार जानना) हे आयुष्मान् श्रमणों ! कोई निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी ऐसा निदान करके बिना आलोचना – प्रतिक्रमण किए यदि काल करे यावत् देवलोक में उत्पन्न होकर | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 110 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा– मानुस्सगा कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरोसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है (शेष कथन प्रथम निदान समान जानना) मानुषिक विषयभोग अध्रुव यावत् त्याज्य हैं। दिव्यकाम भोग भी अध्रुव, अनित्य, अशाश्वत एवं अस्थिर हैं। जन्म – मरण बढ़ानेवाले हैं। पहले या पीछे अवश्य त्याज्य हैं। यदि मेरे तप – नियम – ब्रह्मचर्य का कोई फल हो तो मैं विशुद्ध जाति | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 109 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंधाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ नो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभि-जुंजिय परियारेंति, नो अप्पनिच्चियाओ देवीओ अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, नो अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि तं अहमवि आगमेस्साइं Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રરૂપણ કરેલું છે યાવત્ સંયમની સાધનામાં પરાક્રમ કરતો એવો નિર્ગ્રન્થ માનવ સંબંધી કામભોગોથી વિરક્ત થઈ જાય અને તે એમ વિચારે કે – માનવ સંબંધી કામભોગ અધ્રુવ અને ત્યાજ્ય છે. જે ઉપર દેવલોકમાં દેવ છે, તે ત્યાં – ૧. બીજા દેવોની દેવી સાથે વિષય સેવન કરતા નથી. ૨. સ્વયંની વિકુર્વિત | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 110 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा– मानुस्सगा कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरोसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता Translated Sutra: હે આયુષ્માન્ શ્રમણો! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલ છે યાવત્ સંયમ સાધનામાં પરાક્રમ કરતો નિર્ગ્રન્થ દિવ્ય અને માનુષિક કામભોગોથી વિરક્ત થઈ એમ વિચારે કે – માનુષિક કામભોગ અધ્રુવ યાવત્ ત્યાજ્ય છે. દેવ સંબંધી કામભોગ પણ અધ્રુવ, અનિત્ય, શાશ્વત, ચલાચલ સ્વભાવવાળા, જન્મ – મરણ વધારનારા અને પહેલાં કે પછી અવશ્ય ત્યાજ્ય | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 58 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो जीवे वि न याणाइ अजीवे वि न याणई ।
जीवाजीवे अयाणंतो कहं सो नाहिइ संजमं? ॥ Translated Sutra: जो जीवों को भी नहीं जानता, अजीवों को भी नहीं जानता, जीव और अजीव दोनों को नहीं जाननेवाला वह संयम को कैसे जानेगा ? | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 59 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो जीवे वि वियाणाइ अजीवे वि वियाणई ।
जीवाजीवे वियाणंतो सो हु नाहिइ संजमं ॥ Translated Sutra: जो जीवों को, अजीवों को और दोनों को विशेषरूप से जानने वाला हो तो संयम को जानेगा। समस्त जीवों की बहुविध गतियों को जानता है। तब पुण्य और पाप तथा बन्ध और मोक्ष को भी जानता है। तब दिव्य और मानवीय भोग से विरक्त होता है। विरक्त होकर आभ्यन्तर और बाह्य संयोग का परित्याग कर देता है। त्याग करता है तब वह मुण्ड हो कर अनगारधर्म | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Gujarati | 58 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो जीवे वि न याणाइ अजीवे वि न याणई ।
जीवाजीवे अयाणंतो कहं सो नाहिइ संजमं? ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૬ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Gujarati | 59 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो जीवे वि वियाणाइ अजीवे वि वियाणई ।
जीवाजीवे वियाणंतो सो हु नाहिइ संजमं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૬ | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Hindi | 66 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सेलगपुरे नामं नगरे होत्था। सुभूमिभागे उज्जाणे। सेलए राया। पउमावई देवी। मंडुए कुमारे जुवराया।
तस्स णं सेलगस्स पंथगपामोक्खा पंच मंतिसया होत्था–उप्पत्तियाए वेणइयाए कम्मियाए पारिणामियाए उववेया रज्जधुरं चिंतयंति।
थावच्चापुत्ते सेलगपुरे समोसढे। राया निग्गए।
तए णं से सेलए राया थावच्चापुत्तस्स अनगारस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमणे परम-सोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता थावच्चा-पुत्तं अनगारं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–
सद्दहामि Translated Sutra: उस काल और उस समय में शैलकपुर नगर था। उसके बाहर सुभूमिभाग उद्यान था। शैलक राजा था। पद्मावती रानी थी। मंडुक कुमार था। वह युवराज था। उस शैलक राजा के पंथक आदि पाँच सौ मंत्री थे। वे औत्पत्तिकी वैनयिकी पारिणामिकी और कार्मिकी इस प्रकार चारों तरह की बुद्धियों से सम्पन्न थे और राज्य की धुरा के चिन्तक भी थे – शासन | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Hindi | 67 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सोगंधिया नामं नयरी होत्था–वण्णओ। नीलासोए उज्जाणे–वण्णओ।
तत्थ णं सोगंधियाए नयरीए सुदंसणे नामं नयरसेट्ठी परिवसइ, अड्ढे जाव अपरिभूए।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सुए नामं परिव्वायए होत्था–रिउव्वेय-जजुव्वेय-सामवेय-अथव्वणवेय-सट्ठितंतकुसले संखसमए लद्धट्ठे पंचजम-पंचनियमजुत्तं सोयमूलयं दसप्पयारं परिव्वायगधम्मं दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवे-माणे पण्णवेमाणे धाउरत्त-वत्थ-पवर-परिहिए तिदंड-कुंडिय-छत्त-छन्नालय-अंकुस-पवित्तय-केसरि-हत्थगए परिव्वायगसहस्सेणं सद्धिं संपरिवुडे जेणेव सोगंधिया नयरी जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छइ, Translated Sutra: उस काल और उस समय में सौगंधिका नामक नगरी थी। (वर्णन) उस नगरी के बाहर नीलाशोक नामक उद्यान था। (वर्णन) उस सौगंधिका नगरी में सुदर्शन नामक नगरश्रेष्ठी निवास करता था। वह समृद्धिशाली था, यावत् वह किसी से पराभूत नहीं हो सकता था। उस काल और उस समय में शुक नामक एक परिव्राजक था। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद तथा | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Hindi | 87 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अंगनामं जनवए होत्था। तत्थ णं चंपा नामं नयरी होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए चंदच्छाए अंगराया होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए अरहन्नगपामोक्खा बहवे संजत्ता-नावावाणियगा परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया।
तए णं से अरहन्नगे समणोवासए यावि होत्था–अहिगयजीवाजीवे वण्णओ।
तए णं तेसिं अरहन्नगपामोक्खाणं संजत्ता-नावावाणियगाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहो-कहा समुल्लावे समुप्पज्जित्था–सेयं खलु अम्हं गणियं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुद्दं पोयवहणेणं ओगाहित्तए ति कट्टु अन्नमन्नस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता Translated Sutra: उस काल और उस समय में अंग नामक जनपद था। चम्पा नगरी थी। चन्द्रच्छाय अंगराज – अंग देश का राजा था। उस चम्पा नगरी में अर्हन्नक प्रभृति बहुत – से सांयात्रिक नौवणिक रहते थे। वे ऋद्धिसम्पन्न थे और किसी से पराभूत होने वाले नहीं थे। उनके अर्हन्नक श्रमणोपासक भी था, वह जीव – अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता था। वे अर्हन्नक | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१२ उदक |
Hindi | 144 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जियसत्तू राया अन्नया कयाइ ण्हाए कयवलिकम्मे जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे बहूहिं ईसर जाव सत्थवाहपभिईहिं सद्धिं भोयणमंडवंसि भोयणवेलाए सुहासणवरगए विउलं असनं पानं खाइमं साइमं आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे एवं च णं विहरइ। जिमिय-भुत्तुत्तरागए वि य णं समाणे आयंते चोक्खे परम सुइभूए तंसि विपुलंसि असन-पान-खाइम-साइमंसि जायविम्हए ते बहवे ईसर जाव सत्थवाहपभिइओ एवं वयासी–अहो णं देवानुप्पिया! इमे मणुण्णे असन-पान-खाइम-साइमे वण्णेणं उववेए गंधेणं उववेए रसेणं उववेए फासेणं उववेए अस्सायणिज्जे विसायणिज्जे पीणणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे Translated Sutra: वह जितशत्रु राजा एक बार – किसी समय स्नान करके, बलिकर्म करके, यावत् अल्प किन्तु बहुमूल्य आभरणों से शरीर को अलंकृत करके, अनेक राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि के साथ भोजन के समय पर सुखद आसन पर बैठ कर, विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन जीम रहा था। यावत् जीमने के अनन्तर, हाथ – मुँह धोकर, परम शुचि होकर उस विपुल अशन, | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र |
Hindi | 156 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तेयलिपुरे नयरे अहासन्निहिएहिं वाणमंतरेहिं देवेहिं देवीहिं य देवदुंदुहीओ समाहयाओ, दसद्धवण्णे कुसुमे निवाइए, चेलुक्खेवे दिव्वे गीयगंधव्वनिनाए कए यावि होत्था।
तए णं से कनगज्झए राया इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे एवं वयासी–एवं खलु तेयलिपुत्ते मए अवज्झाए मुंडे भवित्ता पव्वइए। तं गच्छामि णं तेयलिपुत्तं अनगारं वंदामि नमंसामि, वंदित्ता नमंसित्ता एयमट्ठं विनएणं भुज्जो-भुज्जो खामेमि–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता ण्हाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं जेणेव पमयवणे उज्जाणे जेणेव तेयलिपुत्ते अनगारे तेणेव उवागच्छइ, उवा गच्छित्ता तेयलिपुत्तं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता Translated Sutra: उस समय तेतलिपुर नगर के निकट रहते हुए वाणव्यन्तर देवों और देवियों ने देवदुंदुभियाँ बजाईं। पाँच वर्ण के फूलों की वर्षा की और दिव्य गीत – गन्धर्व का निनाद किया। तत्पश्चात् कनकध्वज राजा इस कथा का अर्थ जानता हुआ बोला – निस्सन्देह मेरे द्वारा अपमानित होकर तेतलिपुत्र ने मुण्डित होकर दीक्षा अंगीकार की है। अत |