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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ शल्यउद्धरण |
Hindi | 81 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आलोय-निंद-वंदियए घोर-पच्छित्त-दुक्करे।
लक्खोवसग्ग-पच्छित्ते सम-हियासन-केवली॥ Translated Sutra: आलोचना, निंदा, वंदना, घोर और दुष्कर प्रायश्चित्त सेवन – लाखो उपसर्ग सहन करने से केवली बने, (चंदनबाला का हाथ दूर करने से जिस तरह केवलज्ञान हुआ वैसे) हाथ दूर करने से, निवासस्थान करते, अर्धकवल यानि कुरगडुमुनि की तरह खाते – खाते, एक दाना खाने समान तप प्रायश्चित्त करने से दस साल के बाद केवली बने। प्रायश्चित्त शुरू | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 779 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दिन-दिक्खियस्स दमगस्स अभिमुहा अज्ज चंदना अज्जा।
नेच्छइ आसन-गहणं सो विनओ सव्व-अज्जाणं॥ Translated Sutra: एक ही दिन के दीक्षित द्रमक साधु की सन्मुख चिरदीक्षित आर्या चंदनबाला साध्वी खड़ी होकर उसका सन्मान विनय करे और आसन पर न बैठे वो सब आर्या का विनय है। सौ साल के पर्यायवाले दीक्षित साध्वी हो और साधु आज से एक दिन का दीक्षित हो तो भी भक्ति पूर्ण हृदययुक्त विनय से साधु साध्वी को पूज्य है। सूत्र – ७७९, ७८० |