Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles
Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 130 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चुल्लहिमवंते णं भंते! वासहरपव्वए कइ कूडा पन्नत्ता? गोयमा! एक्कारस कूडा पन्नत्ता, तं जहा–सिद्धायतनकूडे चुल्लहिमवंतकूडे भरहकूडे इलादेवीकूडे गंगाकूडे सिरिकूडे रोहियंसकूडे सिंधुकूडे सूरादेवीकूडे हेमवयकूडे वेसमणकूडे।
कहि णं भंते! चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए सिद्धायतनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते? गोयमा! पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, चुल्लहिमवंतकूडस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सिद्धायतनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते–पंच जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले पंचजोयणसयाइं विक्खंभेणं, मज्झे तिन्नि य पण्णत्तरे जोयणसए विक्खंभेणं, उप्पिं अड्ढाइज्जे जोयणसए विक्खंभेणं, मूले Translated Sutra: भगवन् ! चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत के कितने कूट हैं ? गौतम ! ग्यारह, सिद्धायतन, चुल्लहिमवान्, भरत, इलादेवी, गंगादेवी, श्री, रोहितांशा, सिन्धुदेवी, सुरादेवी, हैमवत तथा वैश्रवणकूट। भगवन् ! चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत पर सिद्धायतनकूट कहाँ है ? गौतम ! पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, चुल्ल हिमवानकूट के पूर्व में | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Gujarati | 130 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चुल्लहिमवंते णं भंते! वासहरपव्वए कइ कूडा पन्नत्ता? गोयमा! एक्कारस कूडा पन्नत्ता, तं जहा–सिद्धायतनकूडे चुल्लहिमवंतकूडे भरहकूडे इलादेवीकूडे गंगाकूडे सिरिकूडे रोहियंसकूडे सिंधुकूडे सूरादेवीकूडे हेमवयकूडे वेसमणकूडे।
कहि णं भंते! चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए सिद्धायतनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते? गोयमा! पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, चुल्लहिमवंतकूडस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सिद्धायतनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते–पंच जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले पंचजोयणसयाइं विक्खंभेणं, मज्झे तिन्नि य पण्णत्तरे जोयणसए विक्खंभेणं, उप्पिं अड्ढाइज्जे जोयणसए विक्खंभेणं, मूले Translated Sutra: ભગવન્ ! લઘુ હિમવંત વર્ષધર પર્વતના કેટલા કૂટ કહેલા છે ? ગૌતમ! ૧૧ – કૂટો કહ્યા છે. તે આ – સિદ્ધાયતન, લઘુહિમવંત, ભરત, ઈલાદેવી, ગંગાદેવી, શ્રી, રોહીતાંશ, સિંધુદેવી, સુરદેવી, હેમવત અને વૈશ્રમણ – કૂટ. ભગવન્ ! લઘુહિમવંત વર્ષધર પર્વતમાં સિદ્ધાયતન નામક કૂટ ક્યાં કહ્યો છે ? ગૌતમ! પૂર્વી લવણસમુદ્રના પશ્ચિમે, લઘુહિમવંત કૂટની | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 168 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ निसीहियाए दोदो पगंठगा पन्नत्ता। ते णं पगंठगा चत्तारि जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, दो जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि णं पगंठगाणं उवरिं पत्तेयंपत्तेयं पासायवडेंसगा पन्नत्ता।
ते णं पासायवडेंसगा चत्तारि जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दो जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसितपहसिताविव विविहमनिरयणभत्तिचित्ता वाउद्धुयविजयवेजयंतीपडागच्छत्तातिछत्त कलिया तुंगा गगनतलमनुलिहंतसिहरा जालंतररयण पंजरुम्मिलितव्व मणिकनगथूभियागा वियसिय सयवत्तपोंडरीयतिलकरयणद्धचंदचित्ता अंतो बाहिं च सण्हा तवणिज्जवालुयापत्थडा Translated Sutra: उस विजयद्वार के दोनों तरफ दोनों नैषेधिकाओं में दो प्रकण्ठक हैं। ये चार योजन के लम्बे – चौड़े और दो योजन की मोटाईवाले हैं। ये सर्व वज्ररत्न के हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं। इन के ऊपर अलग – अलग प्रासादा – वतंसक हैं। ये प्रासादावतंसक चार योजन के ऊंचे और दो योजन के लम्बे – चौड़े हैं। चारों तरफ से नीकलती हुई | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 168 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ निसीहियाए दोदो पगंठगा पन्नत्ता। ते णं पगंठगा चत्तारि जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, दो जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि णं पगंठगाणं उवरिं पत्तेयंपत्तेयं पासायवडेंसगा पन्नत्ता।
ते णं पासायवडेंसगा चत्तारि जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दो जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसितपहसिताविव विविहमनिरयणभत्तिचित्ता वाउद्धुयविजयवेजयंतीपडागच्छत्तातिछत्त कलिया तुंगा गगनतलमनुलिहंतसिहरा जालंतररयण पंजरुम्मिलितव्व मणिकनगथूभियागा वियसिय सयवत्तपोंडरीयतिलकरयणद्धचंदचित्ता अंतो बाहिं च सण्हा तवणिज्जवालुयापत्थडा Translated Sutra: વિજયદ્વારના બંને પડખે બંને નૈષેધિકીમાં બબ્બે પ્રકંઠકો કહેલા છે. તે પ્રકંઠકો ચાર યોજન આયામ – વિષ્કંભથી, બે યોજન બાહલ્યથી છે, તે સર્વ વજ્રમય, સ્વચ્છ યાવત્ પ્રતિરૂપ છે. તે પ્રત્યેક ઓટલા ઉપર પ્રત્યેક – પ્રત્યેક પ્રાસાદાવતંસક કહેલા છે. તે પ્રાસાદાવતંસક ચાર યોજન ઉર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી, બે યોજન લંબાઈ – પહોળાઈથી છે, | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ अब्रह्म |
Hindi | 19 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण निसेवंति सुरगणा सअच्छरा मोह मोहिय मती, असुर भयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिस पवण थणिया। अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवादिय भूयवादियकंदिय महाकंदिय कूहंड पतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्व तिरिय जोइस विमाणवासि मणुयगणा, जलयर थलयर खहयराय मोहपडिबद्धचित्ता अवितण्हा कामभोग-तिसिया, तण्हाए बलवईए महईए समभिभूया गढिया य अतिमुच्छिया य, अबंभे ओसण्णा, तामसेन भावेण अणुम्मुक्का, दंसण-चरित्तमोहस्स पंजरं पिव करेंतिअन्नोन्नं सेवमाणा।
भुज्जो असुर सुर तिरिय मणुय भोगरत्ति विहार संपउत्ता य चक्कवट्टी सुरनरवतिसक्कया सुरवरव्व देवलोए भरह नग नगर नियम Translated Sutra: उस अब्रह्म नामक पापास्रव को अप्सराओं के साथ सुरगण सेवन करते हैं। कौन – से देव सेवन करते हैं ? जिनकी मति मोह के उदय से मूढ़ बन गई है तथा असुरकुमार, भुजगकुमार, गरुड़कुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार तथा स्तनितकुमार, ये भवनवासी, अणपन्निक, पणपण्णिक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ परिग्रह |
Hindi | 21 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! एत्तो परिग्गहो पंचमो उ नियमाणाणामणि कणग रयण महरिह परिमल सपुत्तदार परिजन दासी दास भयग पेस हय गय गो महिस उट्ट खर अय गवेलग सीया सगड रह जाण जुग्ग संदण सयणासण वाहण कुविय घण धण्ण पाण भोयण अच्छायण गंध मल्ल भायण भवणविहिं चेव बहुविहीयं, भरहं णग णगर णियम जणवय पुरवर दोणमुह खेड कब्बड मडंब संबाह पट्टण सहस्समंडियं थिमियमेइणीयं, एगच्छत्तं ससागरं भुंजिऊण वसुहं अपरिमिय मणंततण्हमणुगय महिच्छसार निर-यमूलो, लोभकलिकसाय महक्खंधो, चिंतासयनिचिय विपुलसालो,गारव पविरल्लियग्गविडवो, नियडि तयापत्तपल्लवधरो, पुप्फफलं जस्स कामभोगा, आयासविसूरणाकलह पकंपियग्गसिहरो, नरवतिसंपूजितो, Translated Sutra: हे जम्बू ! चौथे अब्रह्म नामक आस्रवद्वार के अनन्तर यह पाँचवां परिग्रह है। अनेक मणियों, स्वर्ण, कर्केतन आदि रत्नों, बहुमूल्य सुगंधमय पदार्थ, पुत्र और पत्नी समेत परिवार, दासी – दास, भृतक, प्रेष्य, घोड़े, हाथी, गाय, भैंस, ऊंट, गधा, बकरा और गवेलक, शिबिका, शकट, रथ, यान, युग्य, स्यन्दन, शयन, आसन, वाहन तथा कुप्य, धन, धान्य, पेय पदार्थ, | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ परिग्रह |
Hindi | 24 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परलोगम्मि य नट्ठा तमं पविट्ठा, महया मोहमोहियमती, तिमिसंधकारे, तसथावर-सुहुमबादरेसु, पज्जत्तमपज्जत्तग-साहारणसरीर पत्तेयसरीरेसु य, अंडज पोतज जराउय रसज संसेइम संमुच्छिम उब्भिय उववाइएसु य, नरग तिरिय देव मानुसेसु, जरा मरण रोग सोग बहुले, पलिओवम सागरोवमाइं अनादीयं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टंति जीवा मोहवस-सन्निविट्ठा।
एसो सो परिग्गहस्स फलविवाओ इहलोइओ पारलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चई, न य अवेदयित्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति–एवमाहंसु नायकुलनंदनो महप्पा जिनो उ वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य परिग्गहस्स Translated Sutra: परिग्रह में आसक्त प्राणी परलोक में और इस लोक में नष्ट – भ्रष्ट होते हैं। अज्ञानान्धकार में प्रविष्ट होते हैं। तीव्र मोहनीयकर्म के उदय से मोहित मति वाले, लोभ के वश में पड़े हुए जीव त्रस, स्थावर, सूक्ष्म और बादर पर्यायों में तथा पर्याप्तक और अपर्याप्तक अवस्थाओं में यावत् चार गति वाले संसार – कानन में परिभ्रमण | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ अब्रह्म |
Gujarati | 19 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण निसेवंति सुरगणा सअच्छरा मोह मोहिय मती, असुर भयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिस पवण थणिया। अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवादिय भूयवादियकंदिय महाकंदिय कूहंड पतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्व तिरिय जोइस विमाणवासि मणुयगणा, जलयर थलयर खहयराय मोहपडिबद्धचित्ता अवितण्हा कामभोग-तिसिया, तण्हाए बलवईए महईए समभिभूया गढिया य अतिमुच्छिया य, अबंभे ओसण्णा, तामसेन भावेण अणुम्मुक्का, दंसण-चरित्तमोहस्स पंजरं पिव करेंतिअन्नोन्नं सेवमाणा।
भुज्जो असुर सुर तिरिय मणुय भोगरत्ति विहार संपउत्ता य चक्कवट्टी सुरनरवतिसक्कया सुरवरव्व देवलोए भरह नग नगर नियम Translated Sutra: [૧] આ અબ્રહ્મને અપ્સરાઓ, દેવાંગનાઓ સહિત સુરગણ પણ સેવે છે. કયા દેવો તે સેવે છે?. મોહથી મોહિત મતિવાળા, અસુર, નાગ, ગરુડ, સુવર્ણ, વિદ્યુત, અગ્નિ, દ્વીપ, ઉદધિ, દિશિ, વાયુ, સ્તનિતકુમાર દેવો અબ્રહ્મનું સેવન કરે છે. અણપન્ની, પણપન્ની, ઋષિવાદિક, ભૂતવાદિક, ક્રંદિત, મહાક્રંદિત, કૂષ્માંડ અને પતંગદેવો તથા પિશાચ, ભૂત, યક્ષ, રાક્ષસ, | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ परिग्रह |
Gujarati | 21 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! एत्तो परिग्गहो पंचमो उ नियमाणाणामणि कणग रयण महरिह परिमल सपुत्तदार परिजन दासी दास भयग पेस हय गय गो महिस उट्ट खर अय गवेलग सीया सगड रह जाण जुग्ग संदण सयणासण वाहण कुविय घण धण्ण पाण भोयण अच्छायण गंध मल्ल भायण भवणविहिं चेव बहुविहीयं, भरहं णग णगर णियम जणवय पुरवर दोणमुह खेड कब्बड मडंब संबाह पट्टण सहस्समंडियं थिमियमेइणीयं, एगच्छत्तं ससागरं भुंजिऊण वसुहं अपरिमिय मणंततण्हमणुगय महिच्छसार निर-यमूलो, लोभकलिकसाय महक्खंधो, चिंतासयनिचिय विपुलसालो,गारव पविरल्लियग्गविडवो, नियडि तयापत्तपल्लवधरो, पुप्फफलं जस्स कामभोगा, आयासविसूरणाकलह पकंपियग्गसिहरो, नरवतिसंपूजितो, Translated Sutra: હે જંબૂ ! આ પરિગ્રહ પાંચમું આશ્રવદ્વાર છે. વિવિધ મણિ, કનક, રત્ન, મહાર્હ સુગંધી પદાર્થ, પુત્ર – પત્ની સહ સર્વ પરિવાર, દાસી, દાસ, ભૃતક, પ્રેષ્ય, ઘોડા, હાથી, ગાય, ભેંસ, ઊંટ, ગધેડા, બકરા, ગવેલક, શિબિકા, શકટ, રથ, યાન, યુગ્ય, સ્યંદન, શયન, આસન, વાહન, કુપ્ય, ધન, ધાન્ય, પાન, ભોજન, આચ્છાદન, ગંધ, માલ્ય, ભાજન, ભવનવિધિ આદિ અનેક વિધાનો, તથા હજારો | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ परिग्रह |
Gujarati | 24 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परलोगम्मि य नट्ठा तमं पविट्ठा, महया मोहमोहियमती, तिमिसंधकारे, तसथावर-सुहुमबादरेसु, पज्जत्तमपज्जत्तग-साहारणसरीर पत्तेयसरीरेसु य, अंडज पोतज जराउय रसज संसेइम संमुच्छिम उब्भिय उववाइएसु य, नरग तिरिय देव मानुसेसु, जरा मरण रोग सोग बहुले, पलिओवम सागरोवमाइं अनादीयं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टंति जीवा मोहवस-सन्निविट्ठा।
एसो सो परिग्गहस्स फलविवाओ इहलोइओ पारलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चई, न य अवेदयित्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति–एवमाहंसु नायकुलनंदनो महप्पा जिनो उ वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य परिग्गहस्स Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૩ | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 16 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे आभियोगस्स देवस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए दिव्वं जिणिंदाभिगमनजोग्गं उत्तरवेउव्वियरूवं विउव्वति, विउव्वित्ता चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहि, दोहिं अनिएहिं, तं जहा–गंधव्वाणिएण य नट्ठाणिएण य सद्धिं संपरिवुडे तं दिव्वं जाणविमानं अनुपयाहिणी-करेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहति, दुरुहित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासन-वरगए पुरत्थाभिमुहे सन्निसण्णे।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामानियसाहस्सीओ तं दिव्वं जाणविमानं Translated Sutra: तदनन्तर आभियोगिक देव ने उस सिंहासन के पश्चिमोत्तर, उत्तर और उत्तर पूर्व दिग्भाग में सूर्याभदेव के चार हजार सामानिक देवों के बैठने के लिए चार हजार भद्रासनों की रचना की। पूर्व दिशा में सूर्याभदेव की परिवार सहित चार अग्र महिषियों के लिए चार हजार भद्रासनों की रचना की। दक्षिणपूर्व दिशा में सूर्याभदेव की आभ्यन्तर | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 17 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे तेणं पंचाणीयपरिखित्तेणं वइरामयवट्ट लट्ठ संठिय सुसिलिट्ठ परिघट्ठ मट्ठ सुपतिट्ठिएणं विसिट्ठेणं अनेगवरपंचवण्णकुडभी सहस्सपरिमंडियाभिरामेणं वाउद्धुयविजयवेजयंती-पडागच्छत्तातिच्छत्तकलिएणं तुंगेणं गगनतलमनुलिहंतसिहरेणं जोयणसहस्समूसिएणं महतिमहा-लतेणं महिंदज्झएणं पुरतो कड्ढिज्जमाणेणं चउहिं सामानियसाहस्सीहिं, चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अनिएहिं सत्तहिं अनियाहिवईहिं सोलसहिं आयरक्ख देवसाहस्सीहिं अन्नेहि य बहूहिं सूरियाभविमानवासीहिं वेमाणिएहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव नाइयरवेणं Translated Sutra: तत्पश्चात् पाँच अनीकाधिपतियों द्वारा परिरक्षित वज्ररत्नमयी गोल मनोज्ञ संस्थान वाले यावत् एक हजार योजन लम्बे अत्यंत ऊंचे महेन्द्रध्वज को आगे करके वह सूर्याभदेव चार हजार सामानिक देवों यावत् सोलह हजार आत्मरक्षक देवों एवं सूर्याभविमान वासी और दूसरे वैमानिक देव – देवियों के साथ समस्त ऋद्धि यावत् वाद्यनिनादों | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 29 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसिं णं दाराणं उभओ पासे दुहओ निसीहियाए सोलस-सोलस सालभंजिया-परिवाडीओ पन्नत्ताओ। ताओ णं सालभंजियाओ लीलट्ठियाओ सुपइट्ठियाओ सुअलंकियाओ नानाविहरागवसणाओ नानामल्लपिणद्धाओ मुट्ठिगेज्झसुमज्झाओ आमेलग-जमल जुयल वट्टिय अब्भुन्नय पीण रइय संठियपओहराओ रत्तावंगाओ असियकेसीओ मिउविसय पसत्थ लक्खण संवेल्लियग्गसिरयाओ ईसिं असोगवरपायवसमुट्ठियाओ वामहत्थग्गहियग्गसालाओ ईसिं अद्धच्छिकडक्खचिट्ठितेहिं लूसमाणीओ विव, चक्खुल्लोयणलेसेहिं अन्नमन्नं खिज्जमाणीओ विव, पुढविपरिणामाओ सासयभावमुवगयाओ चंदाननाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ चंदाहियसोमदंसणाओ उक्का विव उज्जोवेमाणाओ Translated Sutra: उन द्वारों की दोनों बाजुओं की निशीधिकाओं में सोलह – सोलह पुतलियों की पंक्तियाँ हैं। ये पुतलियाँ विविध प्रकार की लीलाएं करती हुई, सुप्रतिष्ठित सब प्रकार के आभूषणों से शृंगारित, अनेक प्रकार के रंग – बिरंगे परिधानों एवं मालाओं से शोभायमान, मुट्ठी प्रमाण काटि प्रदेश वाली, शिर पर ऊंचा अंबाडा बांधे हुए और समश्रेणि | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 36 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं मूलपासायवडेंसयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं सभा सुहम्मा पन्नत्ता–एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं, बावत्तरिं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अनेगखंभसयसन्निविट्ठा जाव अच्छरगणसंघसंविकिण्णा दिव्वतुडियसद्दसंपणाइया अच्छा जाव पडिरूवा।
सभाए णं सुहम्माए तिदिसिं तओ दारा पन्नत्ता, तं जहा–पुरत्थिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं। ते णं दारा सोलस जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेया वरकनग-थूभियागा जाव वणमालाओ।
तेसि णं दाराणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं मुहमंडवे पन्नत्ते। ते णं मुहमंडवा एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं Translated Sutra: उस प्रधान प्रासाद के ईशान कोण में सौ योजन लम्बी, पचास योजन चौड़ी और बहत्तर योजन ऊंची सुधर्मा नामक सभा है। यह सभा अनेक सैकड़ों खम्भों पर सन्निविष्ट यावत् अप्सराओं से व्याप्त अतीव मनोहर हैं। इस सुधर्मा सभा की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं। पूर्व दिशा में, दक्षिण दिशा में और उत्तर दिशा में। ये द्वार ऊंचाई में सोलह | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 38 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं देवसयणिज्जस्स उत्तरपुरत्थिमेणं महेगा मणिपेढिया पन्नत्ता–अट्ठ जोयणाइं आयाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा।
तीसे णं मणिपेढियाए, उवरिं, एत्थ णं खुड्डए महिंदज्झए पन्नत्ते–सट्ठिं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उव्वेहेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, वइरामयवट्टलट्ठसंठिय सुसिलिट्ठ परिघट्ठ मट्ठ सुपतिट्ठिए विसिट्ठे अनेगवरपंचवण्णकुडभीसहस्सपरिमंडियाभिरामे वाउद्धुयविजय वेजयंतीपडागच्छत्ताति-च्छत्तकलिए तुंगे गगनतलमनुलिहंतसिहरे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तस्स णं खुड्डामहिंदज्झयस्स उवरिं अट्ठट्ठ मंगलगा Translated Sutra: उस देवशय्या के ईशान – कोण में आठ योजन लम्बी – चौड़ी, चार योजन मोटी सर्वमणिमय यावत् प्रतिरूप एक बड़ी मणिपीठिका बनी है। उस मणिपीठिका के ऊपर साठ योजन ऊंचा, एक योजन चौड़ा, वज्ररत्नमय सुंदर गोल आकार वाला यावत् प्रतिरूप एक क्षुल्लक – छोटा माहेन्द्रध्वज लगा हुआ है। जो स्वस्तिक आदि मंगलों, ध्वजाओं और छत्रातिछत्रों | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Gujarati | 16 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे आभियोगस्स देवस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए दिव्वं जिणिंदाभिगमनजोग्गं उत्तरवेउव्वियरूवं विउव्वति, विउव्वित्ता चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहि, दोहिं अनिएहिं, तं जहा–गंधव्वाणिएण य नट्ठाणिएण य सद्धिं संपरिवुडे तं दिव्वं जाणविमानं अनुपयाहिणी-करेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहति, दुरुहित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासन-वरगए पुरत्थाभिमुहे सन्निसण्णे।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामानियसाहस्सीओ तं दिव्वं जाणविमानं Translated Sutra: ત્યારે તે સૂર્યાભદેવ, આભિયોગિક દેવની પાસે આ અર્થને સાંભળી, સમજીહર્ષિત, સંતુષ્ટ થઇ યાવત્ પ્રસન્ન હૃદયી થઈ, દિવ્ય જિનેન્દ્રના અભિગમન માટે યોગ્ય એવા ઉત્તરવૈક્રિય રૂપને વિકુર્વે છે, વિકુર્વીને સપરિવાર ચાર અગ્રમહિષી અને બે અનીકો – ગંધર્વાનીક, નૃત્યાનીકની સાથે સંપરિવૃત્ત થઈ, તે દિવ્ય યાનવિમાનની પ્રદક્ષિણા | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Gujarati | 17 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे तेणं पंचाणीयपरिखित्तेणं वइरामयवट्ट लट्ठ संठिय सुसिलिट्ठ परिघट्ठ मट्ठ सुपतिट्ठिएणं विसिट्ठेणं अनेगवरपंचवण्णकुडभी सहस्सपरिमंडियाभिरामेणं वाउद्धुयविजयवेजयंती-पडागच्छत्तातिच्छत्तकलिएणं तुंगेणं गगनतलमनुलिहंतसिहरेणं जोयणसहस्समूसिएणं महतिमहा-लतेणं महिंदज्झएणं पुरतो कड्ढिज्जमाणेणं चउहिं सामानियसाहस्सीहिं, चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अनिएहिं सत्तहिं अनियाहिवईहिं सोलसहिं आयरक्ख देवसाहस्सीहिं अन्नेहि य बहूहिं सूरियाभविमानवासीहिं वेमाणिएहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव नाइयरवेणं Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૭. ત્યારે તે સૂર્યાભદેવ તે પાંચ અનિકાધિપતિ વડે પરિરક્ષિત વજ્રરત્નમયી ગોળ, મનોજ્ઞ સંસ્થાનવાળા યાવત્ ૧૦૦૦ યોજન લાંબા, અત્યંત ઊંચા મહેન્દ્રધ્વજને આગળ કરીને તે સૂર્યાભદેવ ૪૦૦૦ સામાનિક યાવત્ ૧૬,૦૦૦ આત્મરક્ષક દેવો અને બીજા ઘણા સૂર્યાભવિમાનવાસી વૈમાનિક દેવો અને દેવીઓ સાથે સંપરિવૃત્ત થઈ, સર્વઋદ્ધિ | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Gujarati | 29 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसिं णं दाराणं उभओ पासे दुहओ निसीहियाए सोलस-सोलस सालभंजिया-परिवाडीओ पन्नत्ताओ। ताओ णं सालभंजियाओ लीलट्ठियाओ सुपइट्ठियाओ सुअलंकियाओ नानाविहरागवसणाओ नानामल्लपिणद्धाओ मुट्ठिगेज्झसुमज्झाओ आमेलग-जमल जुयल वट्टिय अब्भुन्नय पीण रइय संठियपओहराओ रत्तावंगाओ असियकेसीओ मिउविसय पसत्थ लक्खण संवेल्लियग्गसिरयाओ ईसिं असोगवरपायवसमुट्ठियाओ वामहत्थग्गहियग्गसालाओ ईसिं अद्धच्छिकडक्खचिट्ठितेहिं लूसमाणीओ विव, चक्खुल्लोयणलेसेहिं अन्नमन्नं खिज्जमाणीओ विव, पुढविपरिणामाओ सासयभावमुवगयाओ चंदाननाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ चंदाहियसोमदंसणाओ उक्का विव उज्जोवेमाणाओ Translated Sutra: તે દ્વારના બંને પડખે નિષિધિકાઓમાં સોળ – સોળ જાળ – કટકની પંક્તિ છે. તે જાલકટક સર્વરત્નમય, સ્વચ્છ યાવત્ પ્રતિરૂપ છે. તે દ્વારોના બંને પડખે નિષિધિકાઓમાં સોળ – સોળ ઘંટાની પંક્તિઓ કહી છે. તે ઘંટાનું વર્ણન આ પ્રમાણે છે – જાંબુનદમયી ઘંટા, વજ્રમય લોલક, વિવિધ મણિમય ઘંટાપાસા, તપનીયમય સાંકળો, રજતમય દોરડાઓ છે. તે ઘંટાઓ | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Gujarati | 36 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं मूलपासायवडेंसयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं सभा सुहम्मा पन्नत्ता–एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं, बावत्तरिं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अनेगखंभसयसन्निविट्ठा जाव अच्छरगणसंघसंविकिण्णा दिव्वतुडियसद्दसंपणाइया अच्छा जाव पडिरूवा।
सभाए णं सुहम्माए तिदिसिं तओ दारा पन्नत्ता, तं जहा–पुरत्थिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं। ते णं दारा सोलस जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेया वरकनग-थूभियागा जाव वणमालाओ।
तेसि णं दाराणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं मुहमंडवे पन्नत्ते। ते णं मुहमंडवा एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं Translated Sutra: તે મૂલ પ્રાસાદાવતંસકની પૂર્વે અહીં સુધર્માસભા કહી છે. તે ૧૦૦ યોજન લાંબી, ૫૦ યોજન પહોળી, ૭૨ યોજન ઊંચી, અનેકશત સ્તંભ સંનિવિષ્ટ છે, અભ્યુદ્ગત સુકૃત વજ્ર વેદિકા અને તોરણ, વર રચિત શાલભંજિકા યાવત્ અપ્સરાગણ સંઘથી વ્યાપ્ત, પ્રાસાદીય આદિ છે. તે સુધર્માસભામાં ત્રણ દિશામાં ત્રણ દ્વારો કહ્યા છે. તે આ – પૂર્વમાં, દક્ષિણમાં, | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Gujarati | 38 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं देवसयणिज्जस्स उत्तरपुरत्थिमेणं महेगा मणिपेढिया पन्नत्ता–अट्ठ जोयणाइं आयाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा।
तीसे णं मणिपेढियाए, उवरिं, एत्थ णं खुड्डए महिंदज्झए पन्नत्ते–सट्ठिं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उव्वेहेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, वइरामयवट्टलट्ठसंठिय सुसिलिट्ठ परिघट्ठ मट्ठ सुपतिट्ठिए विसिट्ठे अनेगवरपंचवण्णकुडभीसहस्सपरिमंडियाभिरामे वाउद्धुयविजय वेजयंतीपडागच्छत्ताति-च्छत्तकलिए तुंगे गगनतलमनुलिहंतसिहरे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तस्स णं खुड्डामहिंदज्झयस्स उवरिं अट्ठट्ठ मंगलगा Translated Sutra: તે દેવશયનીયની પૂર્વમાં એક મોટી મણિપીઠિકા કહી છે. તે આઠ યોજન લાંબી – પહોળી, ચાર યોજન બાહલ્યથી, સર્વ મણિમય યાવત્ પ્રતિરૂપ છે તે મણિપીઠિકાની ઉપર એક મોટો ક્ષુલ્લક મહેન્દ્રધ્વજ કહ્યો છે. તે ૬૦ યોજન ઊંચો, એક યોજન વિષ્કંભથી, વજ્રમય – વૃત્ત – લષ્ટ – સંસ્થિત – સુશ્લિષ્ટ યાવત્ પ્રતિરૂપ છે. ઉપર આઠ – આઠ મંગલ, ધ્વજ, છત્રાતિછત્ર | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१८ संजयीय |
Hindi | 601 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगच्छत्तं पसाहित्ता महिं माननिसूरणो ।
हरिसेनो मनुस्सिंदो पत्तो गइमनुत्तरं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५९३ | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१८ संजयीय |
Gujarati | 601 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगच्छत्तं पसाहित्ता महिं माननिसूरणो ।
हरिसेनो मनुस्सिंदो पत्तो गइमनुत्तरं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૯૩ |