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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-४ भोगासक्ति Hindi 85 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहेण जावि से तत्थ मत्ता भवइ–अप्पा वा बहुगा वा। से तत्थ गढिए चिट्ठति, भोयणाए। ततो से एगया विपरिसिट्ठं संभूयं महोवगरणं भवति। तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायानो वा से विलुंपंति, णस्सइ वा से, विणस्सइ वा से, अगारडाहेण वा डज्झइ। इति से परस्स अट्ठाए कूराइं कम्माइं बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ।

Translated Sutra: यहाँ पर कुछ मनुष्यों को अपने, दूसरों के अथवा दोनों के सम्मिलित प्रयत्न से अल्प या बहुत अर्थ – मात्रा हो जाती है। वह फिर उस अर्थ – मात्रा में आसक्त होता है। भोग के लिए उसकी रक्षा करता है। भोग के बाद बची हुई विपुल संपत्ति के कारण वह महान्‌ वैभव वाला बन जाता है। फिर जीवन में कभी ऐसा समय आता है, जब दायाद हिस्सा बँटाते
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-३ Hindi 461 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोर-णाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा, कूडागाराणि वा, पासादाणि वा, नूम-गिहाणि वा, रुक्ख-गिहाणि वा, पव्वय-गिहाणि वा, रुक्खं वा चेइय-कडं, थूभं वा चेइय-कडं, आएसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ वा, पवाओ वा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-सालाओ वा, जाण-गिहाणि वा, जाण-सालाओ वा, सुहा-कम्मंताणि वा, दब्भ-कम्मंताणि वा, वद्ध-कम्मंताणि वा, वक्क-कम्मंताणि वा, वन-कम्मंताणि वा, इंगाल-कम्मंताणि वा, कट्ठ-कम्मंताणि वा, सुसाण-कम्मंताणि वा, संति-कम्मंताणि वा, गिरि-कम्मंताणि वा, कंदर-कम्मंताणि

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भिक्षु या भिक्षुणी मार्ग में आने वाले उन्नत भू – भाग या टेकरे, खाइयाँ, नगर को चारों ओर से वेष्टित करने वाली नहरें, किले, नगर के मुख्य द्वार, अर्गला, अर्गलापाशक, गड्ढे, गुफाएं या भूगर्भ मार्ग तथा कूटागार, प्रासाद, भूमिगृह, वृक्षों को काटछांट कर बनाए हुए गृह, पर्वतीय गुफा, वृक्ष के नीचे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-२

अध्ययन-१३ [६] परक्रिया विषयक

Hindi 507 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से से परो सुद्धेणं वा वइ-बलेणं तेइच्छं आउट्टे, से से परो असुद्धेणं वा वइ-बलेणं तेइच्छं आउट्टे, से से परो गिलाणस्स सचित्ताणि कंदाणि वा, मूलाणि वा, तयाणि वा, हरियाणि वा खणित्तु वा, कड्ढेत्तु वा, कड्ढावेत्तु वा तेइच्छं आउट्टेज्जा–नो तं साइए, नो तं नियमे। कडुवेयणा कट्टुवेयणा पाण-भूय-जीव-सत्ता वेदणं वेदेंति। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिते सहिते सदा जए, सेयमिणं मण्णेज्जासि।

Translated Sutra: यदि कोई शुद्ध वाग्बल से अथवा अशुद्ध मंत्रबल से साधु की व्याधि उपशान्त करना चाहे, अथवा किसी रोगी साधु की चिकित्सा सचित्त कंद, मूल, छाल या हरी को खोदकर या खींचकर बाहर नीकाल कर या नीकलवा कर चिकित्सा करना चाहे, तो साधु उसे मन से पसंद न करे, न ही वचन से या काया से कराए। यदि साधु के शरीर में कठोर वेदना हो तो समस्त प्राणी,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 331 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणोवासगस्स णं भंते! पुव्वामेव तसपाणसमारंभे पच्चक्खाए भवइ, पुढविसमारंभे अपच्चक्खाए भवइ। से य पुढविं खणमाणे अन्नयरं तसं पाणं विहिंसेज्जा, से णं भंते! तं वयं अतिचरति? नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु से तस्स अतिवायाए आउट्टति। समणोवासगस्स णं भंते! पुव्वामेव वणप्फइसमारंभे पच्चक्खाए। से य पुढविं खणमाणे अन्नयरस्स रुक्खस्स मूलं छिंदेज्जा, से णं भंते! तं वयं अतिचरति? नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु से तस्स अतिवायाए आउट्टति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जिस श्रमणोपासक ने पहले से ही त्रस – प्राणियों के समारम्भ का प्रत्याख्यान कर लिया हो, किन्तु पृथ्वीकाय के समारम्भ का प्रत्याख्यान नहीं किया हो, उस श्रमणोपासक से पृथ्वी खोदते हुए किसी त्रसजीव की हिंसा हो जाए, तो भगवन्‌ ! क्या उसके व्रत (त्रसजीववध – प्रत्याख्यान) का उल्लंघन होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-६ आयु Hindi 360 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं भंते! समाए भरहे वासे मनुयाणं केरिसए आगारभाव-पडोयारे भविस्सइ? गोयमा! मनुया भविस्संति दुरूवा दुवण्णा दुग्गंधा दुरसा दुफासा अनिट्ठा अकंता अप्पिया असुभा अमणुन्ना अमणामा हीनस्सरा दीनस्सरा अणिट्ठस्सरा अकंतस्सरा अप्पियस्सरा असुभस्सरा अमणुन्नस्सरा अमणामस्सरा अनादेज्जवयणपच्चायाया, निल्लज्जा, कूड-कवड-कलह-वह-बंध-वेरनिरया, मज्जायातिक्कमप्पहाणा, अकज्जनिच्चुज्जता, गुरुनियोग-विनयरहिया य, विकल-रूवा, परूढनह-केस-मंसु-रोमा, काला, खर-फरुस-ज्झामवण्णा, फुट्टसिरा, कविलपलियकेसा, बहुण्हारु- संपिणद्ध-दुद्दंसणिज्जरूवा, संकुडितवलीतरंगपरिवेढियंगमंगा, जरापरिणतव्व थेरगनरा,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उस समय भारतवर्ष की भूमि का आकार और भावों का आविर्भाव किस प्रकार का होगा ? गौतम ! उस समय इस भरतक्षेत्र की भूमि अंगारभूत, मुर्मूरभूत, भस्मीभूत, तपे हुए लोहे के कड़ाह के समान, तप्तप्राय अग्नि के समान, बहुत धूल वाली, बहुत रज वाली, बहुत कीचड़ वाली, बहुत शैवाल वाली, चलने जितने बहुत कीचड़ वाली होगी, जिस पर पृथ्वीस्थित
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-६ आयु Gujarati 360 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं भंते! समाए भरहे वासे मनुयाणं केरिसए आगारभाव-पडोयारे भविस्सइ? गोयमा! मनुया भविस्संति दुरूवा दुवण्णा दुग्गंधा दुरसा दुफासा अनिट्ठा अकंता अप्पिया असुभा अमणुन्ना अमणामा हीनस्सरा दीनस्सरा अणिट्ठस्सरा अकंतस्सरा अप्पियस्सरा असुभस्सरा अमणुन्नस्सरा अमणामस्सरा अनादेज्जवयणपच्चायाया, निल्लज्जा, कूड-कवड-कलह-वह-बंध-वेरनिरया, मज्जायातिक्कमप्पहाणा, अकज्जनिच्चुज्जता, गुरुनियोग-विनयरहिया य, विकल-रूवा, परूढनह-केस-मंसु-रोमा, काला, खर-फरुस-ज्झामवण्णा, फुट्टसिरा, कविलपलियकेसा, बहुण्हारु- संपिणद्ध-दुद्दंसणिज्जरूवा, संकुडितवलीतरंगपरिवेढियंगमंगा, जरापरिणतव्व थेरगनरा,

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! તે સમયમાં ભરતક્ષેત્રના મનુષ્યોના આકાર, ભાવપ્રત્યાવતાર કેવા હશે ? ગૌતમ ! મનુષ્યો કુરૂપ, કુવર્ણ, દુર્ગંધી, કુરસ, કુસ્પર્શવાળા, અનિષ્ટ, અકાંત યાવત્‌ અમણામ, હીન – દીન – અનિષ્ટ યાવત્‌ અમણામ સ્વરવાળા, અનાદેય – અપ્રીતિયુક્ત વચનવાળા, નિર્લજ્જ, કૂડ – કપટ – કલહ – વધ – બંધ – વૈરમાં રત, મર્યાદા ઉલ્લંઘવામાં પ્રધાન,
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 197 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता पुक्खरवरं णं दीवं पुक्खरोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति। ता पुक्खरोदे णं समुद्दे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? ता पुक्खरोदे समचक्कवालसंठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते। ता पुक्खरोदे णं समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा? ता संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा। ता पुक्खरवरोदे णं समुद्दे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव। ता पुक्खरोदे णं समुद्दे संखेज्जा चंदा पभासेंसु वा जाव संखेज्जाओ तारागणकोडिकोडीओ

Translated Sutra: मनुष्य क्षेत्र के अन्तर्गत्‌ जो चंद्र – सूर्य – ग्रह – नक्षत्र और तारागण हैं, वह क्या ऊर्ध्वोपपन्न हैं ? कल्पोपपन्न ? विमानोपपन्न है ? अथवा चारोपपन्न है ? वे देव विमानोपपन्न एवं चारोपपन्न है, वे चारस्थितिक नहीं होते किन्तु गतिरतिक – गतिसमापन्नक – ऊर्ध्वमुखीकलंबपुष्प संस्थानवाले हजारो योजन तापक्षेत्रवाले,
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 198 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते अनुभावे आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता चंदिमसूरिया णं नो जीवा अजीवा, नो घणा झुसिरा, नो वरबोंदिधरा कलेवरा, नत्थि णं तेसिं उट्ठानेति वा कम्मेति वा बलेति वा वीरिएति वा पुरिसक्कारपरक्कमेति वा, ते नो विज्जुं लवंति नो असणिं लवंति नो थणितं लवंति। अहे णं बादरे वाउकाए संमुच्छति, संमुच्छित्ता विज्जुंपि लवंति असिणंपि लवंति थणितंपि लवंति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता चंदिमसूरिया णं जीवा नो अजीवा, घणा नो झुसिरा, वरबोंदिधरा नो कलेवरा, अत्थि णं तेसिं उट्ठाणेति वा कम्मेति वा बलेति वा वीरिएति वा पुरिसक्कारपरक्कमेति

Translated Sutra: पुष्करोद नामक समुद्र वृत्त एवं वलयाकार है, वह चारो तरफ से पुष्करवर द्वीप को घीरे हुए स्थित है। समचक्रवाल संस्थित है, उसका चक्रवाल विष्कम्भ संख्यात हजार योजन का है, परिधि भी संख्यात हजार योजन की है। उस पुष्करोद समुद्र में संख्यात चंद्र यावत्‌ संख्यात तारागण कोड़ाकोड़ी शोभित हुए थे – होते हैं और होंगे। इसी अभिलाप
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 197 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता पुक्खरवरं णं दीवं पुक्खरोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति। ता पुक्खरोदे णं समुद्दे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? ता पुक्खरोदे समचक्कवालसंठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते। ता पुक्खरोदे णं समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा? ता संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा। ता पुक्खरवरोदे णं समुद्दे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव। ता पुक्खरोदे णं समुद्दे संखेज्जा चंदा पभासेंसु वा जाव संखेज्जाओ तारागणकोडिकोडीओ

Translated Sutra: તે પુષ્કરવર દ્વીપને પુષ્કરોદ નામક વૃત્ત, વલયાકાર સંસ્થાન સંસ્થિત સમુદ્ર ચોતરફથી ઘેરીને રહેલ છે. તે પુષ્કરોદ સમુદ્ર શું સમચક્રવાલ સંસ્થિત છે યાવત્‌ તે વિષમ ચક્રવાલ સંસ્થિત નથી. તે પુષ્કરોદ સમુદ્ર કેટલા ચક્રવાલ વિષ્કંભથી અને કેટલા પરિક્ષેપથી કહેલ છે, તેમ કહેવું? તે સંખ્યાત લાખ યોજન આયામ – વિષ્કંભથી અને સંખ્યાત
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१० सभिक्षु

Hindi 486 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुढविं न खणे न खणावए सीओदगं न पिए न पियावए । अगनिसत्थं जहा सुनिसियं तं न जले न जलावए जे स भिक्खू ॥

Translated Sutra: जो पृथ्वी को नहीं खोदता, नहीं खुदवाता, सचित्त जल नहीं पीता और न पिलाता है, अग्नि को न जलाता है और न जलवाता है, वह भिक्षु है।
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

Hindi 60 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जे से सागरदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए से णं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव से वनमयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरी-अंडयंसि संकिए कंखिए वितिगिंछस-मावण्णे भेयसमावण्णे कलुससमावण्णे किण्णं ममं एत्थ कीलावणए मयूरीपोयए भविस्सइ उदाहु नो भविस्सइ? त्ति कट्टु तं मयूरी-अंडयं अभिक्खणं-अभिक्खणं उव्वत्तेइ परियत्तेइ आसारेइ संसारेइ चालेइ फंदेइ घट्टेइ खोभेइ अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि टिट्टियावेइ। तए णं से मयूरी-अंडए अभिक्खणं-अभिक्खणं उव्वत्तिज्जमाणे परियत्तिज्जमाणे आसारि-ज्जमाणे संसारिज्जमाणे

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ उनमें जो सागरदत्त का पुत्र सार्थवाह दारक था, वह कल सूर्य के देदीप्यमान होने पर जहाँ वन – मयूरी का अंडा था, वहाँ आया। आकर उस मयूरी अंडे में शंकित हुआ, उसके फल की आकांक्षा करने लगा कि कब इससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होगी ? विचिकित्सा को प्राप्त हुआ, भेद को प्राप्त हुआ, कलुषता को प्राप्त हुआ। अत एव वह विचार
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 185 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ते संजत्ता-नावावाणियगे एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! गामागर-नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाइं० आहिंडह, लवणसमुद्दं च अभिक्खणं-अभिक्खणं पोयवहणेणं ओगाहेह। तं अत्थियाइं च केइ भे कहिंचि अच्छेरए दिट्ठपुव्वे? तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा कनगकेऊ एवं वयासी–एवं खलु अम्हे देवानुप्पिया! इहेव हत्थिसीसे नयरे परिवसामो तं चेव जाव कालियदीवंतेणं संछूढा। तत्थ णं बहवे हिरन्नागरे य सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य, बहवे तत्थ आसे पासामो। किं ते? हरिरेणु जाव अम्हं गंधं आघायंति, आघाइत्ता भीया तत्था उव्विग्गा उव्विग्गमणा तओ अनेगाइं जोयणाइं उब्भमंति।

Translated Sutra: फिर राजा ने उन सांयात्रिक नौकावणिकों से कहा – ‘देवानुप्रिय ! तुम लोग ग्रामों में यावत्‌ आकरों में घूमते हो और बार – बार पोतवहन द्वारा लवणसमुद्र में अवगाहन करते हो, तुमने कहीं कोई आश्चर्यजनक – अद्‌भुत – अनोखी वस्तु देखी है ?’ तब सांयात्रिक नौकावणिकों ने राजा कनककेतु से कहा – ‘देवानुप्रिय ! हम लोग इसी हस्तिशीर्ष
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१८ सुंसमा

Hindi 209 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चिलाए दासचेडे साओ गिहाओ निच्छूढे समाणे रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु देवकुलेसु य सभासु य पवासु य जूयखलएसु य वेसाधरएसु य पाणधरएसु य सुहंसुहेणं परिवट्टइ। तए णं से चिलाए दासचेडे अनोहट्टिए अनिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारी मज्जप्पसंगी चोज्जप्पसंगी जूयप्पसंगी वेसप्पसंगी परदारप्पसंगी जाए यावि होत्था। तए णं रायगिहस्स नयरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरत्थिमे दिसीभाए सीहगुहा नामं चोरपल्ली होत्था–विसम-गिरिक-डग-कोलंब-सन्निविट्ठा वंसोकलंक-पागार-परिक्खित्ता छिन्नसेल-विसमप्प-वाय-फरिहोवगूढा एगदुवारा अनेगखंडी विदितजण-निग्गमप्पवेसा अब्भिंतरपाणिया

Translated Sutra: धन्य सार्थवाह द्वारा अपने घर से नीकाला हुआ यह चिलात दासचेटक राजगृह नगर में शृंगाटकों यावत्‌ पथों में अर्थात्‌ गली – कूचों में, देवालयों में, सभाओं में, प्याउओं में, जुआरियों में, अड्डो में, वेश्याओं के घरों में तथा मद्यपानगृहों में मजे से भटकने लगा। उस समय उस दास – चेटक चिलात को कोई हाथ पड़ककर रोकने वाला तथा वचन
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 49 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले विइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं, अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमदूसमणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! । तीसे णं भंते! समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ? गोयमा! काले भविस्सई

Translated Sutra: गौतम ! पंचम आरक के २१००० वर्ष व्यतीत हो जाने पर अवसर्पिणी काल का दुःषम – दुःषमा नामक छठ्ठा आरक प्रारंभ होगा। उसमें अनन्त वर्णपर्याय, गन्धपर्याय, समपर्याय तथा स्पर्शपर्याय आदि का क्रमशः ह्रास होता जायेगा। भगवन्‌ ! जब वह आरक उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुँचा होगा, तो भरतक्षेत्र का आकार – स्वरूप कैसा होगा ? गौतम
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 226 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव जाव वंदित्ता भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य उत्तरेणं चामरहत्थगयाओ आगाय-माणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति तेणं कालेणं तेणं समएणं विदिसिरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ जाव विहरंति, तं जहा– चित्ता य चित्तकनगा, सतेरा य सोदामिणी ॥ तहेव जाव ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य चउसु विदिसासु दीवियाहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति। तेणं कालेणं तेणं समएणं मज्झिमरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं तहेव जाव विहरंति, तं जहा–रूया रूयंसा सुरूया रूयगावई। तहेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स

Translated Sutra: वे भगवान्‌ तीर्थंकर तथा उनकी माता को प्रणाम कर उनके उत्तर में चँवर हाथ में लिए आगान – परिगान करती हैं। उस काल, उस समय रुचककूट के मस्तक पर – चारों विदिशाओं में निवास करने वाली चार दिक्कुमारि – काएं हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं – चित्रा, चित्रकनका, श्वेता तथा सौदामिनी। वे आकर तीर्थंकर तथा उनकी माता के चारों विदिशाओं
Jambudwippragnapati જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Gujarati 49 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले विइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं, अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमदूसमणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! । तीसे णं भंते! समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ? गोयमा! काले भविस्सई

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૭
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Hindi 296 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नंदिसरोदं समुद्दं अरुणे नामं दीवे वट्टे वलयागार जाव संपरिक्खित्ता णं चिट्ठति अरुणे णं भंते दीवे किं समचक्कवालसंठिते विसमचक्कवालसंठिए गोयमा समचक्कवालसंठिते नो विसमचक्कवाल-संठिते केवतियं चक्कवालसंठिते संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं संखेज्जाइं जोयण-सयसहस्साइं परिक्खेवेणं पन्नत्ते पउमवरवलसंडदारा दारंतरा य तहेव संखेज्जाइं जोयण-सतसहस्साइं दारतरं जाव अट्ठो वावीओ खोतोदगपडिहत्थाओ उप्पातपव्वयका सव्ववइरामया अच्छा असोग वीतसोगा य एत्थ दुवे देवा महिड्ढीया जाव परिवसंति से तेण जाव संखेज्जं सव्वं नंदिस्सरोदण्णं समुद्दं अरुणे नामं दीवे वट्टे,

Translated Sutra: नंदीश्वर समुद्र को चारों ओर से घेरे हुए अरुणद्वीप है जो गोल है और वलयाकार रूप से संस्थित है। वह समचक्रवाल विष्कम्भ वाला है। उसका चक्रवाल विष्कम्भ संख्यात लाख योजन है और वही उसकी परिधि है। पद्मवरवेदिका, वनखण्ड, द्वार, द्वारान्तर भी संख्यात लाख योजन प्रमाण है। इसी द्वीप का ऐसा नाम इस कारण है कि यहाँ पर वावड़ियाँ
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Hindi 297 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अरुणण्णं दीवं अरुणोदे नामं समुद्दे तस्स वि तहेव परिक्खेवो अट्ठो खोतोदगे नवरिं सुभद्द सुमनभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया सेसं तहेव अरुणोदगं समुद्दं अरुनवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाण, तहेव संखेज्जगं सव्वं जाव अट्ठो खोयोदगपडिहत्थाओ उप्पायपव्वतया सव्ववइरामया अच्छा अरुणवर-भद्द अरुनवरमहाभद्द एत्थ दो देवा महिड्ढीया एवं अरुनवरोदेवि समुद्दे जाव देवा अरुणवर अरुण-महावरा य एत्थ दो देवा सेसं तहेव, अरुनवरोदण्णं समुद्दं अरुनवरावभासे नामं दीवे वट्टे जाव देवा अरुणवरावभासभद्दारुनवरावभासमहाभद्दा यत्थ दो देवा महिड्ढीया एवं अरुनवरावभासे समुद्दे नवरि देवा अरुणवरावभासवरारुनवरावभासमहावरा

Translated Sutra: अरुणद्वीप को चारों ओर से घेरकर अरुणोद समुद्र अवस्थित है। उसका विष्कम्भ, परिधि, अर्थ, उसका इक्षुरस जैसा पानी आदि सब पूर्ववत्‌। विशेषता यह है कि इसमें सुभद्र और सुमनभद्र नामक दो महर्द्धिक देव रहते हैं। उस अरुणोदक समुद्र को अरुणवर द्वीप चारों ओर से घेरकर स्थित है। वह गोल और वलयाकार संस्थान वाला है। उसी तरह
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Hindi 299 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कुंडलवरोभासं णं समुद्दं रुयगे नामं दीवे वट्टे वलया जाव चिट्ठति किं समचक्क विसमचक्कवाल गोयमा समचक्कवाल नो विसमचक्कवालसंठिते केवतियं चक्कवाल पन्नत्ते सव्वट्ठ मनोरमा एत्थ दो देवा सेसं तहेव रुयगोदे नामं समुद्दे जहा खोतोदे समुद्दे संखेज्जाइं जोयणसतसहस्साइं चक्कवाल संखेज्जाइं जोयणसतसहस्साइं परिक्खेवेणं दारा दारंतरंपि संखेज्जाइं जोतिसंपि सव्वं संखेज्जं भाणियव्वं अट्ठोवि जहेव खोदोदस्स नवरि सुमनसोमनसा एत्थ दो देवा महिड्ढीया तहेव रुयगाओ आढत्तं असंखेज्जं विक्खंभा परिक्खेवो दारा दारंतरं च जोइसं च सव्वं असंखेज्जं भाणियव्वं रुयगोदण्णं समुद्दं रुयगवरं

Translated Sutra: कुण्डलवराभाससमुद्र को चारों ओर से घेरकर रुचक द्वीप अवस्थित है, जो गोल और वलयाकार है। वह समचक्रवाल विष्कम्भ वाला है। इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत्‌ यावत्‌ वहाँ सर्वार्थ और मनोरम नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। रुचकोदक नामक समुद्र क्षोदोद समुद्र की तरह संख्यात लाख योजन चक्रवाल विष्कम्भ वाला, संख्यात लाख योजन
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Hindi 300 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] हारद्दीवे हारभद्द हारमहाभद्दा एत्थ हारसमुद्दे हारवरहारवरमहावरा एत्थ दो देवा महिड्ढीया हारवरे दीवे हारवरभद्दहारवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया हारवरोए समुद्दे हारवरहारवर महावरा एत्थ हारवराभासे दीवे हारवरावभासभद्द हारवरावभासमहाभद्दा एत्थ हारवरावभासोए समुद्दे हारवराव-भासवर-हारवरावभासमहावरा एत्थ एवं सव्वेवि तिपडोयारा नेतव्वा जाव सूरवरोभासोए समुद्दे दीवेसु भद्दनामा वरणामा होंति उद्दहीसु जाव पच्छिमभावं च खोत्तवरादीसु सयंभूरमणपज्जंतेसु वावीओ खोओदगपडिहत्थाओ पव्वयका य सव्ववइरामया देवदीवे दीवे दो देवा महिड्ढीया देवभद्द देवमहाभद्दा एत्थ देवोदे

Translated Sutra: हार द्वीप में हारभद्र और हारमहाभद्र नाम के दो देव हैं। हारसमुद्र में हारवर और हारवर – महावर नाम के दो महर्द्धिक देव हैं। हारवरद्वीप में हारवरभद्र और हारवरमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव हैं। हारवरोदसमुद्र में हारवर और हारवरमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव हैं। हारवरावभासद्वीप में हारवरावभासभद्र और हारवरावभास
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Hindi 165 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरसीओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामय-कूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण सुब्भ रययवालुयाओ वेरुलिय-मणिफालियपडलपच्चोयडाओ सुहोयारसुउत्ताराओ नानामणितित्थ सुबद्धाओ चाउक्कोणाओ आनुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछण्णपत्तभिसमुणालाओ बहुउप्पल कुमुद नलिन सुभग सोगंधिय पोंडरीय सयपत्त सहस्सपत्त फुल्ल केसरोवचियाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ

Translated Sutra: उस वनखण्ड के मध्य में उस – उस भाग में उस उस स्थान पर बहुत – सी छोटी – छोटी चौकोनी वावडियाँ हैं, गोल – गोल अथवा कमलवाली पुष्करिणियाँ हैं, जगह – जगह नहरों वाली दीर्घिकाएं हैं, टेढ़ीमेढ़ी गुंजालिकाएं हैं, जगह – जगह सरोवर हैं, सरोवरों की पंक्तियाँ हैं, अनेक सरसर पंक्तियाँ और बहुत से कुओं की पंक्तियाँ हैं। वे स्वच्छ हैं,
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Hindi 293 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] खीरोदण्णं समुद्दं घयवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव– से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–घयवरे दीवे? घयवरे दीवे? गोयमा! घयवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ जाव विहरंति, नवरं–घयोदगपडिहत्थाओ पव्वतादो सव्वकनगमया, कनगकनगप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति। से तेणट्ठेणं। जोतिसं संखेज्जं। घयवरण्णं दीवं घयोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव– से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–घयोदे समुद्दे? घयोदे समुद्दे? गोयमा! घयोदस्स

Translated Sutra: वर्तुल और वलयाकार संस्थान – संस्थित घृतवर नामक द्वीप क्षीरोदसमुद्र को सब ओर से घेर कर स्थित है। वह समचक्रवाल संस्थान वाला है। उसका विस्तार और परिधि संख्यात लाख योजन की है। उसके प्रदेशों की स्पर्शना आदि से लेकर यह घृतवरद्वीप क्यों कहलाता है, यहाँ तक का वर्णन पूर्ववत्‌। गौतम ! घृतवरद्वीप में स्थान – स्थान
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Hindi 294 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] खोदोदण्णं समुद्दं नंदिस्सरवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति। पुव्वक्कमेणं जाव जीवोववातो। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नंदिस्सरवरे दीवे? नंदिस्सरवरे दीवे? गोयमा! नंदिस्सरवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ जाव विहरंति, नवरं–खोदोदग-पडिहत्थाओ पव्वतगादी पुव्वभणिता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा। अदुत्तरं च णं गोयमा! नंदिस्सरवरे दीवे चउद्दिसिं चक्कवालविक्खंभेणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि अंजनगपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–पुरत्थिमेणं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं। ते णं अंजनग-पव्वता

Translated Sutra: क्षोदोदकसमुद्र को नंदीश्वर नाम का द्वीप चारों ओर से घेर कर स्थित है। यह गोल और वलयाकार है। यह नन्दीश्वरद्वीप समचक्रवाल विष्कम्भ से युक्त है। परिधि से लेकर जीवोपपाद तक पूर्ववत्‌। भगवन्‌ ! नंदीश्वरद्वीप के नाम का क्या कारण है ? गौतम ! नंदीश्वरद्वीप में स्थान – स्थान पर बहुत – सी छोटी – छोटी बावड़ियाँ यावत्‌
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Hindi 295 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नंदिस्सरवरण्णं दीवं नंदिस्सरोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरि-क्खित्ताणं चिट्ठइ। जच्चेव खोदोदसमुद्दस्स वत्तव्वता सच्चेव इहं पि अट्ठसाहिया। सुमनसोमनसा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति। चंदादि संखेज्जा। सेसं जहा तारगस्स।

Translated Sutra: उक्त नंदीश्वरद्वीप को चारों ओर से घेरे हुए नंदीश्वर समुद्र है, जो गोल है एवं वलयाकार संस्थित है इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत्‌। विशेषता यह है कि यहाँ सुमनस और सौमनसभद्र नामक दो महर्द्धिक देव रहते हैं।
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Gujarati 165 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरसीओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामय-कूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण सुब्भ रययवालुयाओ वेरुलिय-मणिफालियपडलपच्चोयडाओ सुहोयारसुउत्ताराओ नानामणितित्थ सुबद्धाओ चाउक्कोणाओ आनुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछण्णपत्तभिसमुणालाओ बहुउप्पल कुमुद नलिन सुभग सोगंधिय पोंडरीय सयपत्त सहस्सपत्त फुल्ल केसरोवचियाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ

Translated Sutra: તે વનખંડના મધ્યમાં તે – તે દેશમાં, ત્યાં – ત્યાં ઘણી જ નાની – નાની ચોખૂણી વાવડીઓ છે. ગોળ – ગોળ કે કમળયુક્ત પુષ્કરિણીઓ છે. સ્થાને – સ્થાને નહેરોવાળી દીર્ઘિકાઓ છે. વાંકી – ચૂંકી ગુંજાલિકાઓ છે. સ્થાને – સ્થાને સરોવર છે, સરોવરની પંક્તિઓ છે. અનેક સરસર પંક્તિઓ અને ઘણા જ કૂવાની પંક્તિઓ છે. તે સ્વચ્છ છે અને મૃદુ પુદ્‌ગલોથી
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Gujarati 293 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] खीरोदण्णं समुद्दं घयवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव– से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–घयवरे दीवे? घयवरे दीवे? गोयमा! घयवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ जाव विहरंति, नवरं–घयोदगपडिहत्थाओ पव्वतादो सव्वकनगमया, कनगकनगप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति। से तेणट्ठेणं। जोतिसं संखेज्जं। घयवरण्णं दीवं घयोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव– से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–घयोदे समुद्दे? घयोदे समुद्दे? गोयमा! घयोदस्स

Translated Sutra: ઘૃતવર નામક દ્વીપ ગોળ – વલયાકાર સંસ્થાને રહેલ યાવત્‌ ક્ષીરોદ સમુદ્રને ચારે બાજુથી ઘેરીને રહેલ છે. તે સમચક્રવાલ સંસ્થિત છે, વિષમચક્રવાલ નથી. વિસ્તાર અને પરિધિ સંખ્યાત લાખ યોજન છે. તેના પ્રદેશોની સ્પર્શના જીવોત્પત્તિ આદિ પૂર્વવત કહેવું. ગૌતમ ! ઘૃતવર દ્વીપમાં ત્યાં – ત્યાં ઘણી જ નાની – નાની વાવડી યાવત્‌ ઘૃતોદકથી
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Gujarati 294 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] खोदोदण्णं समुद्दं नंदिस्सरवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति। पुव्वक्कमेणं जाव जीवोववातो। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नंदिस्सरवरे दीवे? नंदिस्सरवरे दीवे? गोयमा! नंदिस्सरवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ जाव विहरंति, नवरं–खोदोदग-पडिहत्थाओ पव्वतगादी पुव्वभणिता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा। अदुत्तरं च णं गोयमा! नंदिस्सरवरे दीवे चउद्दिसिं चक्कवालविक्खंभेणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि अंजनगपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–पुरत्थिमेणं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं। ते णं अंजनग-पव्वता

Translated Sutra: નંદીશ્વર નામક દ્વીપ વૃત્ત – વલયાકાર સંસ્થિત છે. આદિ પૂર્વવત્‌, તે ક્ષોદોદ સમુદ્રને ચોતરફથી ઘેરીને રહેલ છે. પરિધિ, પદ્મવરવેદિકા, વનખંડ, દ્વાર, દ્વારાંતર, પ્રદેશ, જીવ પૂર્વવત્‌. ભગવન્‌ ! નંદીશ્વરદ્વીપના નામનું કારણ શું છે ? ગૌતમ! સ્થાને સ્થાને ઘણી નાની – નની વાવડી યાવત્‌ બિલપંક્તિઓ છે, જેમાં ઇક્ષુરસ જેવું જળ ભરેલું
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Gujarati 295 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नंदिस्सरवरण्णं दीवं नंदिस्सरोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरि-क्खित्ताणं चिट्ठइ। जच्चेव खोदोदसमुद्दस्स वत्तव्वता सच्चेव इहं पि अट्ठसाहिया। सुमनसोमनसा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति। चंदादि संखेज्जा। सेसं जहा तारगस्स।

Translated Sutra: નંદીશ્વરદ્વીપ ચોતરફથી નંદીશ્વરસમુદ્ર જે વૃત્ત અને વલયાકારે રહેલ છે, તેનાથી ઘેરાયેલ છે ઈત્યાદિ બધું વર્ણન પૂર્વવત્‌ ક્ષૌદોદક અનુસાર કહેવું. વિશેષ એ કે – અહીં સુમનસ અને સૌમનસભદ્ર નામના બે મહર્દ્ધિક દેવ યાવત્‌ વસે છે. બાકી બધું વર્ણન પૂર્વવત્‌ જાણવું.
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Gujarati 296 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नंदिसरोदं समुद्दं अरुणे नामं दीवे वट्टे वलयागार जाव संपरिक्खित्ता णं चिट्ठति अरुणे णं भंते दीवे किं समचक्कवालसंठिते विसमचक्कवालसंठिए गोयमा समचक्कवालसंठिते नो विसमचक्कवाल-संठिते केवतियं चक्कवालसंठिते संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं संखेज्जाइं जोयण-सयसहस्साइं परिक्खेवेणं पन्नत्ते पउमवरवलसंडदारा दारंतरा य तहेव संखेज्जाइं जोयण-सतसहस्साइं दारतरं जाव अट्ठो वावीओ खोतोदगपडिहत्थाओ उप्पातपव्वयका सव्ववइरामया अच्छा असोग वीतसोगा य एत्थ दुवे देवा महिड्ढीया जाव परिवसंति से तेण जाव संखेज्जं सव्वं नंदिस्सरोदण्णं समुद्दं अरुणे नामं दीवे वट्टे,

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૯૬. નંદીશ્વર સમુદ્ર, અરુણ નામક વૃત્ત – વલયાકાર દ્વીપ વડે યાવત્‌ ઘેરાઈને રહેલ છે. ભગવન્‌ ! અરુણદ્વીપ શું સમચક્રવાલ સંસ્થિત છે કે વિષમચક્રવાલ સંસ્થિત ? ગૌતમ ! સમચક્રવાલ સંસ્થિત છે, વિષમ ચક્રવાલ સંસ્થિત નથી. તેનો ચક્રવાલ વિષ્કંભ કેટલો છે ? સંખ્યાત લાખ યોજન ચક્રવાલ વિષ્કંભ અને સંખ્યાત લાખ યોજન પરિધિ છે.
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Gujarati 297 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अरुणण्णं दीवं अरुणोदे नामं समुद्दे तस्स वि तहेव परिक्खेवो अट्ठो खोतोदगे नवरिं सुभद्द सुमनभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया सेसं तहेव अरुणोदगं समुद्दं अरुनवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाण, तहेव संखेज्जगं सव्वं जाव अट्ठो खोयोदगपडिहत्थाओ उप्पायपव्वतया सव्ववइरामया अच्छा अरुणवर-भद्द अरुनवरमहाभद्द एत्थ दो देवा महिड्ढीया एवं अरुनवरोदेवि समुद्दे जाव देवा अरुणवर अरुण-महावरा य एत्थ दो देवा सेसं तहेव, अरुनवरोदण्णं समुद्दं अरुनवरावभासे नामं दीवे वट्टे जाव देवा अरुणवरावभासभद्दारुनवरावभासमहाभद्दा यत्थ दो देवा महिड्ढीया एवं अरुनवरावभासे समुद्दे नवरि देवा अरुणवरावभासवरारुनवरावभासमहावरा

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૯૬
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चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Gujarati 299 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कुंडलवरोभासं णं समुद्दं रुयगे नामं दीवे वट्टे वलया जाव चिट्ठति किं समचक्क विसमचक्कवाल गोयमा समचक्कवाल नो विसमचक्कवालसंठिते केवतियं चक्कवाल पन्नत्ते सव्वट्ठ मनोरमा एत्थ दो देवा सेसं तहेव रुयगोदे नामं समुद्दे जहा खोतोदे समुद्दे संखेज्जाइं जोयणसतसहस्साइं चक्कवाल संखेज्जाइं जोयणसतसहस्साइं परिक्खेवेणं दारा दारंतरंपि संखेज्जाइं जोतिसंपि सव्वं संखेज्जं भाणियव्वं अट्ठोवि जहेव खोदोदस्स नवरि सुमनसोमनसा एत्थ दो देवा महिड्ढीया तहेव रुयगाओ आढत्तं असंखेज्जं विक्खंभा परिक्खेवो दारा दारंतरं च जोइसं च सव्वं असंखेज्जं भाणियव्वं रुयगोदण्णं समुद्दं रुयगवरं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૯૬
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Gujarati 300 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] हारद्दीवे हारभद्द हारमहाभद्दा एत्थ हारसमुद्दे हारवरहारवरमहावरा एत्थ दो देवा महिड्ढीया हारवरे दीवे हारवरभद्दहारवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया हारवरोए समुद्दे हारवरहारवर महावरा एत्थ हारवराभासे दीवे हारवरावभासभद्द हारवरावभासमहाभद्दा एत्थ हारवरावभासोए समुद्दे हारवराव-भासवर-हारवरावभासमहावरा एत्थ एवं सव्वेवि तिपडोयारा नेतव्वा जाव सूरवरोभासोए समुद्दे दीवेसु भद्दनामा वरणामा होंति उद्दहीसु जाव पच्छिमभावं च खोत्तवरादीसु सयंभूरमणपज्जंतेसु वावीओ खोओदगपडिहत्थाओ पव्वयका य सव्ववइरामया देवदीवे दीवे दो देवा महिड्ढीया देवभद्द देवमहाभद्दा एत्थ देवोदे

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૯૬
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ हिंसा

Hindi 8 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कयरे? जे ते सोयरिया मच्छबंधा साउणिया वाहा कूरकम्मादीवित बंधप्पओग तप्प गल जाल वीरल्लग आयसीदब्भवग्गुरा कूडछेलिहत्था हरिएसा ऊणिया य वीदंसग पासहत्था वनचरगा लुद्धगा य महुघात-पोतघाया एणीयारा पएणीयारा सर दह दीहिअ तलाग पल्लल परिगालण मलण सोत्तबंधण सलिलासयसोसगा विसगरलस्स य दायगा उत्तण वल्लर दवग्गिणिद्दय पलीवका। कूरकम्मकारी इमे य बहवे मिलक्खुया, के ते? सक जवण सवर बब्बर कायमुरुंड उड्ड भडग निण्णग पक्काणिय कुलक्ख गोड सीहल पारस कोंच अंध दविल चिल्लल पुलिंद आरोस डोंब पोक्कण गंधहारग बहलीय जल्ल रोम मास बउस मलया य चुंचुया य चूलिय कोंकणगा मेद पल्हव मालव मग्गर आभासिया अणक्क

Translated Sutra: वे हिंसक प्राणी कौन हैं ? शौकरिक, मत्स्यबन्धक, मृगों, हिरणों को फँसाकर मारने वाले, क्रूरकर्मा वागुरिक, चीता, बन्धनप्रयोग, छोटी नौका, गल, जाल, बाज पक्षी, लोहे का जाल, दर्भ, कूटपाश, इन सब साधनों को हाथ में लेकर फिरने वाले, चाण्डाल, चिड़ीमार, बाज पक्षी तथा जाल को रखने वाले, वनचर, मधु – मक्खियों का घात करने वाले, पोतघातक,
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अदत्त

Hindi 15 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण करेंति चोरियं तक्करा परदव्वहरा छेया कयकरण लद्धलक्खा साहसिया लहुस्सगा अतिमहिच्छ लोभगत्था, दद्दर ओवीलका य गेहिया अहिमरा अणभंजका भग्गसंधिया रायदुट्ठकारी य विसयनिच्छूढा लोकवज्झा, उद्दहक गामघाय पुरघाय पंथघायग आलीवग तित्थभेया लहुहत्थ संपउत्ता जूईकरा खंडरक्खत्थीचोर पुरिसचोर संधिच्छेया य गंथिभेदगपरधनहरणलोमावहार- अक्खेवी हडकारक निम्मद्दग गूढचोर गोचोर अस्सचोरग दासिचोरा य एकचोरा ओकड्ढक संपदायक उच्छिंपक सत्थघायक बिलकोलीकारका य निग्गाह विप्पलुंपगा बहुविहतेणिक्कहरणबुद्धी, एते अन्नेय एवमादी परस्स दव्वाहि जे अविरया। विपुलबल-परिग्गहा य बहवे रायाणो

Translated Sutra: उस चोरी को वे चोर – लोग करते हैं जो परकीय द्रव्य को हरण करने वाले हैं, हरण करने में कुशल हैं, अनेकों बार चोरी कर चूके हैं और अवसर को जानने वाले हैं, साहसी हैं, जो तुच्छ हृदय वाले, अत्यन्त महती ईच्छा वाले एवं लोभ से ग्रस्त हैं, जो वचनों के आडम्बर से अपनी असलियत को छिपाने वाले हैं – आसक्त हैं, जो सामने से सीधा प्रहार
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-५ अपरिग्रह

Hindi 45 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जो सो वीरवरवयणविरतिपवित्थर-बहुविहप्पकारो सम्मत्तविसुद्धमूलो धितिकंदो विणयवेइओ निग्गततिलोक्कविपुल-जसनिचियपीणपीवरसुजातखंधो पंचमहव्वयविसालसालो भावणतयंत ज्झाण सुभजोग नाण पल्लववरंकुरधरो बहुगुणकुसुमसमिद्धो सीलसुगंधो अणण्हयफलो पुणो य मोक्खवरबीजसारो मंदरगिरि सिहरचूलिका इव इमस्स मोक्खर मोत्तिमग्गस्स सिहरभूओ संवर-वरपायवो। चरिमं संवरदारं। जत्थ न कप्पइ गामागर नगर खेड कब्बड मडंब दोणमुह पट्टणासमगयं च किंचि अप्पं व बहुं व अणुं व थूलं व तस थावरकाय दव्वजायं मणसा वि परिघेत्तुं। न हिरण्ण सुवण्ण खेत्त वत्थुं, न दासी दास भयक पेस हय गय गवेलगं व, न जाण जुग्ग सयणासणाइं,

Translated Sutra: श्रीवीरवर – महावीर के वचन से की गई परिग्रहनिवृत्ति के विस्तार से यह संवरवर – पादप बहुत प्रकार का है। सम्यग्दर्शन इसका विशुद्ध मूल है। धृति इसका कन्द है। विनय इसकी वेदिका है। तीनों लोकों में फैला हुआ विपुल यश इसका सघन, महान और सुनिर्मित स्कन्ध है। पाँच महाव्रत इसकी विशाल शाखाएं हैं। भावनाएं इस संवरवृक्ष
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Hindi 32 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं वनसंडाणं तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहूओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरसीओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकूलाओ समतीराओ वयरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण सुज्झ रयय वालुयाओ वेरुलिय मणि फालिय पडल पच्चोयडाओ सुओयार सुउत्ताराओ नानामणितित्थ सुबद्धाओ चाउक्कोणाओ आनुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछन्नपत्तभिस मुणालाओ बहुउप्पल कुमुय नलिन सुभग सोगंधिय पोंडरीय सयवत्त सहस्सपत्त केसरफुल्लोवचियाओ छप्पयपरि-भुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ पडिहत्थभमंतमच्छकच्छभ अनेगसउणमिहुणग-पविचरिताओ पत्तेयं-पत्तेयं

Translated Sutra: उन वनखण्डों में जहाँ – तहाँ स्थान – स्थान पर अनेक छोटी – छोटी चौरस वापिकाएं – बावड़ियाँ, गोल पुष्करिणियाँ, दीर्घिकाएं, गुंजालिकाएं, फूलों से ढंकी हुई सरोवरों की पंक्तियाँ, सर – सर पंक्तियाँ एवं कूपपंक्तियाँ बनी हुई हैं। इन सभी वापिकाओं आदि का बाहरी भाग स्फटिमणिवत्‌ अतीव निर्मल, स्निग्ध है। इनके तट रजत – मय
Rajprashniya રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Gujarati 32 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं वनसंडाणं तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहूओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरसीओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकूलाओ समतीराओ वयरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण सुज्झ रयय वालुयाओ वेरुलिय मणि फालिय पडल पच्चोयडाओ सुओयार सुउत्ताराओ नानामणितित्थ सुबद्धाओ चाउक्कोणाओ आनुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछन्नपत्तभिस मुणालाओ बहुउप्पल कुमुय नलिन सुभग सोगंधिय पोंडरीय सयवत्त सहस्सपत्त केसरफुल्लोवचियाओ छप्पयपरि-भुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ पडिहत्थभमंतमच्छकच्छभ अनेगसउणमिहुणग-पविचरिताओ पत्तेयं-पत्तेयं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૧
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

२. जिनशासनसूत्र English 20 View Detail
Mool Sutra: तस्य मुखोद्गतवचनं, पूर्वापरदोषविरहितं शुद्धम्। `आगम' इति परिकथितं, तेन तु कथिता भवन्ति तत्त्वार्थाः।।४।।

Translated Sutra: That which has come from the mouth of the worthy souls is pure and completely free from contradictions is called the agama or the Scripture and what is recorded in the Scriptures is verily true.
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

२. जिनशासनसूत्र Gujarati 20 View Detail
Mool Sutra: तस्य मुखोद्गतवचनं, पूर्वापरदोषविरहितं शुद्धम्। `आगम' इति परिकथितं, तेन तु कथिता भवन्ति तत्त्वार्थाः।।४।।

Translated Sutra: અર્હંતોના મુખમાંથી નીકળેલા, પૂર્વાપરદોષથી રહિત એટલે કે સુસંગત અને શુદ્ધ વચનોને આગમ કહેવામાં આવે છે. આવા આગમો દ્વારા તત્ત્વની સમજ મેળવી શકાય છે.
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

२. जिनशासनसूत्र Hindi 20 View Detail
Mool Sutra: तस्य मुखोद्गतवचनं, पूर्वापरदोषविरहितं शुद्धम्। `आगम' इति परिकथितं, तेन तु कथिता भवन्ति तत्त्वार्थाः।।४।।

Translated Sutra: अर्हत् के मुख से उद्भूत, पूर्वापरदोष-रहित शुद्ध वचनों को आगम कहते हैं। उस आगम में जो कहा गया है वही सत्यार्थ है। (अर्हत् द्वारा उपदिष्ट तथा गणधर द्वारा संकलित श्रुत आगम है।)
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Hindi 193 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता पुक्खरवरं णं दीवं पुक्खरोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति। ता पुक्खरोदे णं समुद्दे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? ता पुक्खरोदे समचक्कवालसंठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते। ता पुक्खरोदे णं समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा? ता संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा। ता पुक्खरवरोदे णं समुद्दे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव। ता पुक्खरोदे णं समुद्दे संखेज्जा चंदा पभासेंसु वा जाव संखेज्जाओ तारागणकोडिकोडीओ

Translated Sutra: पुष्करोद नामक समुद्र वृत्त एवं वलयाकार है, वह चारो तरफ से पुष्करवर द्वीप को घीरे हुए स्थित है। समचक्रवाल संस्थित है, उसका चक्रवाल विष्कम्भ संख्यात हजार योजन का है, परिधि भी संख्यात हजार योजन की है। उस पुष्करोद समुद्र में संख्यात चंद्र यावत्‌ संख्यात तारागण कोड़ाकोड़ी शोभित हुए थे – होते हैं और होंगे। इसी अभिलाप
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Gujarati 193 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता पुक्खरवरं णं दीवं पुक्खरोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति। ता पुक्खरोदे णं समुद्दे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? ता पुक्खरोदे समचक्कवालसंठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते। ता पुक्खरोदे णं समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा? ता संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा। ता पुक्खरवरोदे णं समुद्दे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव। ता पुक्खरोदे णं समुद्दे संखेज्जा चंदा पभासेंसु वा जाव संखेज्जाओ तारागणकोडिकोडीओ

Translated Sutra: તે પુષ્કરવર દ્વીપને પુષ્કરોદ નામક વૃત્ત, વલયાકાર સંસ્થાન સંસ્થિત સમુદ્ર ચોતરફથી ઘેરીને રહેલ છે. તે પુષ્કરોદ સમુદ્ર શું સમચક્રવાલ સંસ્થિત છે યાવત્‌ તે વિષમ ચક્રવાલ સંસ્થિત નથી. તે પુષ્કરોદ સમુદ્ર કેટલા ચક્રવાલ વિષ્કંભથી અને કેટલા પરિક્ષેપથી કહેલ છે, તેમ કહેવું? તે સંખ્યાત લાખ યોજન આયામ – વિષ્કંભથી અને સંખ્યાત
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 641 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा –आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नीयागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राय भवति–महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति–उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, ‘नागा नागपुत्ता’, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता, पसत्थारो पसत्थपुत्ता, सेणावई सेणावइपुत्ता। तेसिं

Translated Sutra: इस मनुष्य लोक में पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाओं में उत्पन्न कईं प्रकार के मनुष्य होते हैं, जैसे कि – उन मनुष्यों में कईं आर्य होते हैं अथवा कईं अनार्य होते हैं, कईं उच्चगोत्रीय होते हैं, कईं नीचगोत्रीय। उनमें से कोई भीमकाय होता है, कईं ठिगने कद के होते हैं। कोई सुन्दर वर्ण वाले होते हैं, तो कोई बूरे वर्ण
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Hindi 8 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए तप्पढमयाए थूलयं पाणाइवायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं–न करेमि न कारवेमि, मनसा वयसा कायसा। तयानंतरं च णं थूलयं मुसावायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं–न करेमि न कारवेमि, मनसा वयसा कायसा। तयानंतरं च णं थूलयं अदिण्णादाणं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं–न करेमि न कारवेमि, मनसा वयसा कायसा। तयानंतरं च णं सदारसंतोसीए परिमाणं करेइ–नन्नत्थ एक्काए सिवनंदाए भारियाए, अवसेसं सव्वं मेहुणविहिं पच्चक्खाइ। तयानंतरं च णं इच्छापरिमाणं करेमाणे– (१) हिरण्ण-सुवण्णविहिपरिमाणं करेइ–नन्नत्थ चउहिं हिरण्णकोडीहिं

Translated Sutra: तब आनन्द गाथापति ने श्रमण भगवान महावीर के पास प्रथम स्थूल प्राणातिपात – परित्याग किया। मैं जीवन पर्यन्त दो करण – करना, कराना तथा तीन योग – मन, वचन एवं काया से स्थूल हिंसा का परित्याग करता हूँ, तदनन्तर उसने स्थूल मृषावाद – का परित्याग किया, मैं जीवन भर के लिए दो कारण और तीन योग से स्थूल मृषावाद का परित्याग किया,
Upasakdashang ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Gujarati 8 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए तप्पढमयाए थूलयं पाणाइवायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं–न करेमि न कारवेमि, मनसा वयसा कायसा। तयानंतरं च णं थूलयं मुसावायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं–न करेमि न कारवेमि, मनसा वयसा कायसा। तयानंतरं च णं थूलयं अदिण्णादाणं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं–न करेमि न कारवेमि, मनसा वयसा कायसा। तयानंतरं च णं सदारसंतोसीए परिमाणं करेइ–नन्नत्थ एक्काए सिवनंदाए भारियाए, अवसेसं सव्वं मेहुणविहिं पच्चक्खाइ। तयानंतरं च णं इच्छापरिमाणं करेमाणे– (१) हिरण्ण-सुवण्णविहिपरिमाणं करेइ–नन्नत्थ चउहिं हिरण्णकोडीहिं

Translated Sutra: ત્યારે આનંદ ગાથાપતિ શ્રમણ ભગવંત મહાવીર પાસે – ૧. પહેલા સ્થૂલ પ્રાણાતિપાતનું પ્રત્યાખ્યાન કરે છે. યાવજ્જીવન માટે, (દ્વિવિધ – ત્રિવિધે) મન, વચન, કાયા વડે સ્થૂળ હિંસા કરીશ નહીં, કરાવીશ નહીં. ૨. ત્યારપછી સ્થૂલ મૃષાવાદનું પ્રત્યાખ્યાન કરે છે. યાવજ્જીવન માટે (દ્વિવિધ, ત્રિવિધે) – મન, વચન, કાયાથી જાવજ્જીવને માટે સ્થૂળ
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 384 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ते घोररूवा ठिय अंतलिक्खे असुरा तहिं तं जणं तालयंति । ते भिन्नदेहे रुहिरं वमंते पासित्तु भद्दा इणमाहु भुज्जो ॥

Translated Sutra: आकाश में स्थित भयंकर रूप वाले असुरभावापन्न क्रुद्ध यक्ष उनको प्रताड़ित करने लगे। कुमारों को क्षत – विक्षत और खून की उल्टी करते देखकर भद्रा ने पुनः कहा – जो भिक्षु का अपमान करते हैं, वे नखों से पर्वत खोदते हैं, दातों से लोहा चबाते हैं और पैरों से अग्नि को कुचलते हैं।महर्षि आशीविष, घोर तपस्वी, घोर व्रती, घोर पराक्रमी
Vipakasutra विपाकश्रुतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-१ मृगापुत्र

Hindi 10 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मियापुत्ते णं भंते! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! मियापुत्ते दारए छव्वीसं वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले सीहकुलंसि सीहत्ताए पच्चायाहिइ। से णं तत्थ सीहे भविस्सइ–अहम्मिए बहुनगरनिग्गयजसे सूरे दढप्पहारी साहसिए सुबहुं पावं कम्मं कलिकलुसं समज्जिणइ समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता सिरीसवेसु उववज्जिहिइ। तत्थ णं कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसेणं

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! यह मृगापुत्र नामक दारक यहाँ से मरणावसर पर मृत्यु को पाकर कहाँ जाएगा ? और कहाँ पर उत्पन्न होगा ? हे गौतम ! मृगापुत्र दारक २६ वर्ष के परिपूर्ण आयुष्य को भोगकर मृत्यु का समय आने पर काल करके इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में वैताढ्य पर्वत की तलहटी में सिंहकुल में सिंह के रूप में उत्पन्न
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