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Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Hindi 5 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से आयावाई, लोगावाई, कम्मावाई, किरियावाई।

Translated Sutra: (जो उस गमनागमन करनेवाली परिणामी नित्य आत्मा जान लेता है) वही आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी एवं क्रियावादी है।
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Hindi 44 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कनग पुलग निघस पम्ह गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोऊहले

Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, जिनकी देह की ऊंचाई सात हाथ थी, जो समचतुरस्र – संस्थान संस्थित थे – जो वज्र – ऋषभ – नाराच – संहनन थे, कसौटी पर खचित स्वर्ण – रेखा की आभा लिए हुए कमल के समान जो गौर वर्ण थे, जो उग्र तपस्वी थे, दीप्त तपस्वी थे, तप्त तपस्वी, जो कठोर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३० समवसरण लेश्यादि

उद्देशक-१ थी ११ Hindi 998 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! समोसरणा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि समोसरणा पन्नत्ता, तं० किरियावादी, अकिरियावादी, अन्नाणियवादी, वेणइयवादी जीवा णं भंते! किं किरियावादी? अकिरियावादी? अन्नाणियवादी? वेणइयवादी? गोयमा! जीवा किरियावादी वि, अकिरियावादी वि, अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि। सलेस्सा णं भंते! जीवा किं किरियावादी–पुच्छा। गोयमा! किरियावादी वि, अकिरियावादी वि, अन्नाणियावादी वि, वेणइयवादी वि। एवं जाव सुक्कलेस्सा। अलेस्सा णं भंते! जीवा–पुच्छा। गोयमा! किरियावादी, नो अकिरियावादी, नो अन्नाणियवादी, नो वेणइयवादी। कण्हपक्खिया णं भंते! जीवा किं किरियावादी–पुच्छा। गोयमा! नो किरियावादी,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! समवसरण कितने कहे हैं? गौतम! चार, यथा – क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी, विनयवादी। भगवन्‌ ! जीव क्रियावादी हैं, अक्रियावादी हैं, अज्ञानवादी हैं या विनयवादी हैं ? गौतम ! जीव क्रियावादी भी हैं, अक्रियावादी भी हैं, अज्ञानवादी भी हैं और विनयवादी भी हैं। भगवन्‌ ! सलेश्य जीव क्रियावादी भी हैं? इत्यादि प्रश्न।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३० समवसरण लेश्यादि

उद्देशक-१ थी ११ Hindi 999 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किरियावादी णं भंते! नेरइया किं नेरइयाउयं–पुच्छा। गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मनुस्साउयं पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति। अकिरियावादी णं भंते! नेरइया–पुच्छा। गोयमा! नो नेरइयाउयं, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मनुस्साउयं पि पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति। एवं अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि। सलेस्सा णं भंते! नेरइया किरियावादी किं नेरइयाउयं? एवं सव्वे वि नेरइया जे किरियावादी जे मनुस्साउयं एगं पकरेंति, जे अकिरियावादी अन्नाणियवादी वेणइयवादी ते सव्वट्ठाणेसु वि नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मनुस्साउयं पि पकरेंति, नो

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या क्रियावादी नैरयिक जीव नैरयिकायुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे नारक, तिर्यञ्च और देव का आयुष्य नहीं बाँधते, किन्तु मनुष्य का आयुष्य बाँधते हैं। भगवन्‌ ! अक्रियावादी नैरयिक जीव नैरयिक का आयुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे नैरयिक और देव का आयुष्य नहीं बाँधते, किन्तु तिर्यञ्च और मनुष्य का आयुष्य बाँधते हैं।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३० समवसरण लेश्यादि

उद्देशक-१ थी ११ Hindi 1000 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतरोववन्नगा णं भंते! नेरइया किं किरियावादी–पुच्छा। गोयमा! किरियावादी वि जाव वेणइयवादी वि। सलेस्सा णं भंते! अनंतरोववन्नगा नेरइया किं किरियावादी? एवं चेव। एवं जहेव पढमुद्देसे नेरइयाणं वत्तव्वया तहेव इह वि भाणियव्वा, नवरं–जं जं अत्थि अनंतरोववन्नगाणं नेरइयाणं तं तं भाणियव्वं। एवं सव्वजीवाणं जाव वेमाणियाणं, नवरं–अनंतरोववन्नगाणं जं जहिं अत्थि तं तहिं भाणियव्वं। किरियावादी णं भंते! अनंतरोववन्नगा नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति–पुच्छा। गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियाउयं, नो मनुस्साउयं, नो देवाउयं पकरेंति। एवं अकिरियावादी वि अन्नाणियवादी वि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या अनन्तरोपपन्नक नैरयिक क्रियावादी हैं ? गौतम ! वे क्रियावादी भी हैं, यावत्‌ विनयवादी भी हैं। भगवन्‌ ! क्या सलेश्य अनन्तरोपपन्नक नैरयिक क्रियावादी हैं ? गौतम ! पूर्ववत्‌। प्रथम उद्देशक में नैरयिकों की वक्तव्यता समान यहाँ भी कहना चाहिए। विशेष यह है कि अनन्तरोपपन्न नैरयिकों में से जिसमें जो बोल सम्भव
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३० समवसरण लेश्यादि

उद्देशक-१ थी ११ Hindi 1001 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परंपरोववन्नगा णं भंते! नेरइया किरियावादी? एवं जहेव ओहिओ उद्देसओ तहेव परंपरोववन्नएसु वि नेरइयादीओ तहेव निरवसेसं भाणियव्वं, तहेव तियदंडगसंगहिओ। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! परम्परोपपन्नक नैरयिक क्रियावादी हैं ? इत्यादि। गौतम ! औघिक उद्देशकानुसार परम्परोप – पन्नक नैरयिक आदि (नारक से वैमानिक तक) हैं और उसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त समग्र उद्देशक तीन दण्डक सहित करना ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Hindi 35 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खातं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ। कयरा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ? इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– अकिरियावादी यावि भवति–नाहियवादी नाहियपण्णे नाहियदिठ्ठी, नो सम्मावादी, नो नितियावादी, नसंति-परलोगवादी, नत्थि इहलोए नत्थि परलोए नत्थि माता नत्थि पिता नत्थि अरहंता नत्थि चक्कवट्टी नत्थि बलदेवा नत्थि वासुदेवा नत्थि सुक्कड-दुक्कडाणं फलवित्तिविसेसो, नो सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति, नो दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति, अफले कल्लाणपावए,

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ ! वो निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्वमुख से मैंने ऐसा सूना है। यह (जिन प्रवचन में) स्थविर भगवंत ने निश्चय से ग्यारह उपासक प्रतिमा बताई है। स्थविर भगवंत ने कौन – सी ग्यारह उपासक प्रतिमा बताई है? स्थविर भगवंत ने जो ११ उपासक प्रतिमा बताई है, वो इस प्रकार है – (दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषध, दिन में ब्रह्मचर्य,
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Hindi 36 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: क्रियावादी कौन है ? वो क्रियावादी इस प्रकार का है जो आस्तिकवादी है, आस्तिक बुद्धि है, आस्तिक दृष्टि है। सम्यक्‌वादी और नित्य यानि मोक्षवादी है, परलोकवादी है। वो मानते हैं कि यह लोक, परलोक है, माता – पिता है, अरिहंत चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव है, सुकृत – दुष्कृत कर्म का फल है, सदा चरित कर्म शुभ फल और असदाचरित कर्म
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Hindi 37 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं नो सम्मं पट्ठविताइं भवंति। एवं दंसनसावगोत्ति पढमा उवासगपडिमा।

Translated Sutra: (उपासक प्रतिमा – १) क्रियावादी मानव सर्व (श्रावक श्रमण) धर्म रूचिवाला होता है। लेकिन सम्यक्‌ प्रकार से कईं शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पच्चक्‌खाण, पौषधोपवास का धारक नहीं होता (लेकिन) सम्यक्‌ श्रद्धावाला होता है, यह प्रथम दर्शन – उपासक प्रतिमा जानना। (जो उत्कृष्ट से एक मास की होती है।)
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-४ Hindi 367 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि वादिसमोसरणा पन्नत्ता, तं० किरियावादी, अकिरियावादी, अन्नाणियावादी, वेणइयावादी। नेरइयाणं चत्तारि वादिसमोसरणा पन्नत्ता, तं जहा– किरियावादी, अकिरियावादी, अन्नाणियावादी, वेणइयावादी। एवमसुरकुमाराणवि जाव थणियकुमाराणं। एवं– विगलिंदियवज्जं जाव वेमाणियाणं।

Translated Sutra: वाद करने वालों के समोसरण चार हैं। यथा – क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी। विकलेन्द्रियों को छोड़कर शेष सभी दण्डकों में वादियों के चार समवसरण हैं।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 712 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठ अकिरियावाई पन्नत्ता, तं जहा–एगावाई, अणेगावाई, मितवाई, णिम्मितवाई, सायवाई, समुच्छेद-वाई, नितावाई, णसंतपरलोगवाई।

Translated Sutra: अक्रियावादी आठ हैं, यथा – एक वादी – आत्मा एक ही है ऐसा कहने वाले, अनेकवादी – सभी भावों को भिन्न मानने वाले, मितवादी – अनन्त जीव हैं फिर भी जीवों की एक नियत संख्या मानने वाले। निर्मितवादी – ‘‘यह सृष्टि किसी की बनाई हुई है’’ ऐसा मानने वाले। सातवादी – सुख से रहना, किन्तु तपश्चर्या न करना। समुच्छेदवादी – प्रतिक्षण
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१ समय

उद्देशक-१ Hindi 13 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कुव्वं च कारयं चेव सव्वं कुव्वं न विज्जइ । एवं अकारओ अप्पा ‘ते उ एवं’ पगब्भिया ॥

Translated Sutra: आत्मा समस्त कार्य करती है, कराती है, किन्तु वह कर्ता नहीं है। अतः आत्मा अकर्ता है। ऐसा वे (अक्रियावादी) कहते हैं।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१ समय

उद्देशक-२ Hindi 51 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहावरं पुरक्खायं किरियावाइदरिसणं । कम्मचिंतापणट्ठाणं दुक्खखंधविवद्धणं ॥

Translated Sutra: अब इसके बाद क्रियावादी दर्शन है, जो पूर्व कथित है। कर्म – चिन्तन नष्ट करने के कारण यह संसार – प्रवर्धक है।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१२ समवसरण

Hindi 537 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ‘सच्चं असच्चं इति चिंतयंता’ असाहु ‘साहु त्ति’ उदाहरंता । जेमे जणा वेणइया अनेगे पुट्ठा वि भावं विणइंसु नाम ॥

Translated Sutra: सत्य का असत्य चिन्तन करनेवाले, असाधु को साधु कहनेवाले अनेक विनयवादी हैं, जो पूछने पर विनय को प्रमाण बतलाते हैं। ऐसा वे (विनयवादी) अज्ञानवश कहते हैं कि हमें यही अर्थ अवभाषित होता है। अक्रियावादी भविष्य और क्रिया का कथन नहीं करते। सूत्र – ५३७, ५३८
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१२ समवसरण

Hindi 542 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा हि अंधे सह जोइणा वि रूवाणि नो पस्सइ हीननेत्ते । संतं पि ते एवमकिरियआता किरियं न पस्संति निरुद्धपण्णा ॥

Translated Sutra: जैसे नेत्रहीन अन्धा प्रकाश होने पर भी रूपों को नहीं देख पाता है वैसे ही निरुद्धप्रज्ञ अक्रियावादी क्रिया को भी नहीं देख पाते हैं।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Hindi 672 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: एवामेव समणुगम्ममाणा इमेहिं चेव दोहिं ठाणेहिं समोयरंति, तं जहा–धम्मे चेव, अधम्मे चेव। उवसंते चेव, अणुवसंते चेव। तत्थ णं जे से ‘पढमट्ठाणस्स अधम्मपक्खस्स’ विभंगे एवमाहिए, तस्स णं इमाइं तिण्णि तेवट्ठाइं पावादुयसयाइं भवंतीति मक्खायाइं, तं जहा–किरियावाईणं अकिरियावाईणं अण्णाणियवाईणं वेणइयवाईणं। तेवि निव्वाणमाहंसु, तेवि पलिमोक्खलमाहंसु तेवि लवंति सावगा, तेवि लवंति सावइत्तारो।

Translated Sutra: सम्यक्‌ विचार करने पर ये तीनों पक्ष दो ही स्थानों में समाविष्ट हो जाते हैं – जैसे कि धर्म में और अधर्म में, उपशान्त और अनुपशान्त में। पहले जो अधर्मस्थान का विचार पूर्वोक्त प्रकार से किया गया है, उसमें इन ३६३ प्रावादुकों का समावेश हो जाता है, यह पूर्वाचार्यो न कहा है। वे इस प्रकार हैं – क्रियावादी, अक्रियावादी,
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१८ संजयीय

Hindi 584 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पडंति नरए घोरे जे नरा पावकारिणो । दिव्वं च गइं गच्छंति चरित्ता धम्ममारियं ॥

Translated Sutra: जो मनुष्य पाप करते हैं, वे घोर नरक में जाते हैं। और जो आर्यधर्म का आचरण करते हैं, वे दिव्य गति को प्राप्त करते हैं।यह क्रियावादी आदि एकान्तवादियों का सब कथन मायापूर्वक है, अतः मिथ्या वचन है, निरर्थक है। मैं इन मायापूर्ण वचनों से बचकर रहता हूँ, बचकर चलता हूँ। वे सब मेरे जाने हुए हैं, जो मिथ्यादृष्टि और अनार्य
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