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Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-८ Hindi 381 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–उच्छुमेरगं वा, अंक-करेलुयं वा, करेरुगं वा, सिंघाडगं वा, पूतिआलुगं वा–अन्नयरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थपरिणयं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–उप्पलं वा, उप्पल-नालं वा, भिसं वा, भिस-मुनालं वा, पोक्खलं वा, पोक्खल-विभंगं वा–अन्नतरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थपरिणयं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षार्थ प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ इक्षुखण्ड – है, अंककरेलु, निक्खा – रक, कसेरू, सिंघाड़ा एवं पूतिआलुक नामक वनस्पति है, अथवा अन्य इसी प्रकार की वनस्पति विशेष है, जो अपक्व तथा अशस्त्र – परिणत है, तो उसे अप्रासुक और अनैषणीय जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। गृहस्थ के यहाँ भिक्षा के
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-५ आजीविक Hindi 403 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आजीवियसमयस्स णं अयमट्ठे–अक्खीणपडिभोइणो सव्वे सत्ता; से हंता, छेत्ता, भेत्ता, लुंपित्ता, विलुंपित्ता, उद्दवइत्ता आहारमाहारेंति। तत्थ खलु इमे दुवालस आजीवियोवासगा भवंति, तं जहा–१. ताले २. तालपलंबे ३. उव्विहे ४. संविहे ५. अवविहे ६. उदए ७. नामुदए ८. णम्मुदए ९. अणुवालए १. संखवालए ११. अयंपुले १२. कायरए – इच्चेते दुवालस आजीविओवासगा अरहंतदेवतागा, अम्मापिउसुस्सूसगा, पंचफल-पडिक्कंता, तं जहा–उंबरेहिं, वडेहिं, बोरेहिं, सतरेहिं, पिलक्खूहिं पलंडु-ल्हसुणकंदमूलविवज्जगा, अनिल्लंछिएहिं अनक्कभिन्नेहिं गोणेहि तसपाणविवज्जिएहिं छेत्तेहिं वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति। एए वि ताव एवं

Translated Sutra: आजीविक के सिद्धान्त का यह अर्थ है कि समस्त जीव अक्षीणपरिभोजी होते हैं। इसलिए वे हनन करके, काटकर, भेदन करके, कतर कर, उतार कर और विनष्ट करके खाते हैं। ऐसी स्थिति (संसार के समस्त जीव असंयत और हिंसादिदोषपरायण हैं) में आजीविक मत में ये बारह आजीविकोपासक हैं – ताल, तालप्रलम्ब, उद्विध, संविध, अवविध, उदय, नामोदय, नर्मोदय,
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 90 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तणमूल कंदमूले, वंसमूले ति यावरे । संखेज्जमसंखेज्जा, बोधव्वाणंतजीवा य ॥

Translated Sutra: तृणमूल, कन्दमूल और वंशीमूल, ये और इसी प्रकार के दूसरे संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त जीववाले हैं
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 145 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कंदा य कंदमूला य, रुक्खमूला इ यावरे । गुच्छा य गुम्म वल्ली य, वेलुयाणि तणाणि य ।

Translated Sutra: कन्द, कन्दमूल, वृक्षमूल, गुच्छ, गुल्म, वल्ली, वेणु, और तृण। तथा – पद्म, उत्पल, शृंगाटक, हढ, शैवाल, कृष्णक, पनक, अवक, कच्छ, भाणी और कन्दक्य। (इन वनस्पतियों की) त्वचा, छल्ली, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल, मूल, अग्र, मध्य और बीज (इन) में से किसी की योनि कुछ और किसी की कुछ कही गई है। सूत्र – १४५–१४७
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अदत्त

Hindi 15 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण करेंति चोरियं तक्करा परदव्वहरा छेया कयकरण लद्धलक्खा साहसिया लहुस्सगा अतिमहिच्छ लोभगत्था, दद्दर ओवीलका य गेहिया अहिमरा अणभंजका भग्गसंधिया रायदुट्ठकारी य विसयनिच्छूढा लोकवज्झा, उद्दहक गामघाय पुरघाय पंथघायग आलीवग तित्थभेया लहुहत्थ संपउत्ता जूईकरा खंडरक्खत्थीचोर पुरिसचोर संधिच्छेया य गंथिभेदगपरधनहरणलोमावहार- अक्खेवी हडकारक निम्मद्दग गूढचोर गोचोर अस्सचोरग दासिचोरा य एकचोरा ओकड्ढक संपदायक उच्छिंपक सत्थघायक बिलकोलीकारका य निग्गाह विप्पलुंपगा बहुविहतेणिक्कहरणबुद्धी, एते अन्नेय एवमादी परस्स दव्वाहि जे अविरया। विपुलबल-परिग्गहा य बहवे रायाणो

Translated Sutra: उस चोरी को वे चोर – लोग करते हैं जो परकीय द्रव्य को हरण करने वाले हैं, हरण करने में कुशल हैं, अनेकों बार चोरी कर चूके हैं और अवसर को जानने वाले हैं, साहसी हैं, जो तुच्छ हृदय वाले, अत्यन्त महती ईच्छा वाले एवं लोभ से ग्रस्त हैं, जो वचनों के आडम्बर से अपनी असलियत को छिपाने वाले हैं – आसक्त हैं, जो सामने से सीधा प्रहार
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२३. श्रावकधर्मसूत्र Hindi 325 View Detail
Mool Sutra: वज्जणमणंतगुंबरि, अच्चंगाणं च भोगओ माणं। कम्मयओ खरकम्मा-इयाण अवरं इमं भणियं।।२५।।

Translated Sutra: भोगोपभोग-परिमाणव्रत दो प्रकार का है -- भोजनरूप तथा कार्य का व्यापाररूप। कन्दमूल आदि अनन्तकायिक वनस्पति, उदुम्बर फल तथा मद्यमांसादि का त्याग या परिमाण भोजनविषयक भोगोपभोगपरिमाण व्रत है, और खरकर्म अर्थात् हिंसापरक आजीविका आदि का त्याग व्यापार-विषयक भोगोपभोगपरिमाण व्रत है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२३. श्रावकधर्मसूत्र Hindi 325 View Detail
Mool Sutra: वर्जनमनन्तकमुदम्बरि-अत्यङ्गानां च भोगतो मानम्। कर्मकतः खरकर्मादिकानां अपरं इदं भणितम्।।२५।।

Translated Sutra: भोगोपभोग-परिमाणव्रत दो प्रकार का है -- भोजनरूप तथा कार्य का व्यापाररूप। कन्दमूल आदि अनन्तकायिक वनस्पति, उदुम्बर फल तथा मद्यमांसादि का त्याग या परिमाण भोजनविषयक भोगोपभोगपरिमाण व्रत है, और खरकर्म अर्थात् हिंसापरक आजीविका आदि का त्याग व्यापार-विषयक भोगोपभोगपरिमाण व्रत है।
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