Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (71)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Hindi 19 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–से जहावि अनगारे उज्जुकडे, णियागपडिवण्णे, अमायं कुव्वमाणे वियाहिए।

Translated Sutra: मैं कहता हूँ – जिस आचरण से अनगार होता है। जो ऋजुकृत्‌ हो, नियाग – प्रतिपन्न – मोक्ष मार्ग के प्रति एकनिष्ठ होकर चलता हो, कपट रहित हो। जिस श्रद्धा के साथ संयम – पथ पर कदम बढ़ाया है, उसी श्रद्धा के साथ संयम का पालन करे। विस्रोत – सिका – अर्थात्‌ लक्ष्य के प्रति शंका व चित्त की चंचलता के प्रवाहमें न बहें, शंका का त्याग
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-१ भावसुप्त Hindi 110 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लोयंसि जाण अहियाय दुक्खं। समयं लोगस्स जाणित्ता, एत्थ सत्थोवरए। जस्सिमे सद्दा य रूवा य गंधा य रसा य फासा य अभिसमन्नागया भवंति...

Translated Sutra: इस बात को जान लो कि लोक में अज्ञान अहित के लिए होता है। लोक में इस आचार को जानकर (संयम में बाधक) जो शस्त्र हैं, उनसे उपरत रहे। जिस पुरुष ने शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श को सम्यक्‌ प्रकार से परिज्ञात किया है – (जो उनमें रागद्वेष न करता हो)। वह आत्मवान्‌, ज्ञानवान्‌, वेदवान्‌, धर्मवान्‌ और ब्रह्मवान्‌ होता है। जो पुरुष
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-१ भावसुप्त Hindi 113 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पासिय आउरे पाणे, अप्पमत्तो परिव्वए। मंता एयं मइमं! पास। आरंभजं दुक्खमिणं ति नच्चा। माई पमाई पुनरेइ गब्भं। उवेहमानो सद्द-रूवेसु अंजू, माराभिसंकी मरणा पमुच्चति। अप्पमत्तो कामेहिं, उवरतो पावकम्मेहिं, वीरे आयगुत्ते ‘जे खेयण्णे’। जे पज्जवजाय-सत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे, जे असत्थस्स खेयण्णे, से पज्जवजाय-सत्थस्स खेयण्णे। अकम्मस्स ववहारो न विज्जइ। कम्मुणा उवाही जायइ। कम्मं च पडिलेहाए।

Translated Sutra: (सुप्त) मनुष्यों को दुःखों से आतुर देखकर साधक सतत अप्रमत्त होकर विचरण करे। हे मतिमान्‌ ! तू मननपूर्वक इन (दुखियों) को देख। यह दुःख आरम्भज है, यह जानकर (तू निरारम्भ होकर अप्रमत्त भाव से आत्महित में प्रवृत्त रह)। मया और प्रमाद के वश हुआ मनुष्य बार – बार जन्म लेता है। शब्द और रूप आदि के प्रति जो उपेक्षा करता है, वह
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-५ ह्रद उपमा Hindi 177 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तुमंसि नाम सच्चेव जं ‘हंतव्वं’ ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं ‘अज्जावेयव्वं’ ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं ‘परितावेयव्वं’ ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं ‘परिघेतव्वं’ ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं ‘उद्दवेयव्वं’ ति मन्नसि। अंजू चेय-पडिबुद्ध-जीवी, तम्हा ण हंता न विघायए। अणुसंवेयणमप्पाणेणं, जं ‘हंतव्वं’ ति नाभिपत्थए।

Translated Sutra: तू वही है, जिसे तू हनन योग्य मानता है; तू वही है, जिसे तू आज्ञा में रखने योग्य मानता है; तू वही है, जिसे तू परिताप देने योग्य मानता है; तू वही है, जिसे तू दास बनाने हेतु ग्रहण करने योग्य मानता है; तू वही है, जिसे तू मारने योग्य मानता है। ज्ञानी पुरुष ऋजु होते हैं, वह प्रतिबोध पाकर जीने वाला होता है। इसके कारण वह स्वयं
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 535 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सामाइयं खाओवसमियं चरित्तं पडिवन्नस्स मणपज्जवनाणे नामं नाणे समुप्पन्ने–अड्ढाइज्जेहिं दीवेहिं दोहि य समुद्देहिं सण्णीणं पंचेंदियाणं पज्जत्ताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाइं भावाइं जाणेइ। तओ णं समणे भगवं महावीरे पव्वइते समाणे मित्त-नाति-सयण-संबंधिवग्गं पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ– ‘बारसवासाइं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा, माणुसा वा, तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे ‘अनाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविहमणवयणकायगुत्ते’ सम्मं सहिस्सामि खमिस्सामि

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर को क्षायोपशमिक सामायिकचारित्र ग्रहण करते ही मनःपर्यवज्ञान समुत्पन्न हुआ; वे अढ़ाई द्वीप और दो समुद्रों में स्थित पर्याप्त संज्ञीपंचेन्द्रिय, व्यक्त मन वाले जीवों के मनोगत भावों को स्पष्ट जानने लगे। उधर श्रमण भगवान महावीर ने प्रव्रजित होते ही अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन – सम्बन्धी वर्ग
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 15 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेगमस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ एगं दव्वावस्सयं, दोन्नि अनुवउत्ता आगमओ दोन्नि दव्वा-वस्सयाइं, तिन्नि अनुवउत्ता आगमओ तिन्नि दव्वावस्सयाइं, एवं जावइया अनुवउत्ता तावइयाइं ताइं नेगमस्स आगमओ दव्वावस्सयाइं। एवमेव ववहारस्स वि। संगहस्स एगो वा अनेगा वा अनुवउत्तो वा अनुवउत्ता वा आगमओ दव्वावस्सयं वा दव्वा-वस्सयाणि वा, से एगे दव्वावस्सए। उज्जुसुयस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ एगं दव्वावस्सयं, पुहत्तं नेच्छइ। तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अनुवउत्ते अवत्थू। कम्हा? जइ जाणए अनुवउत्ते न भवइ। से तं आगमओ दव्वावस्सयं।

Translated Sutra: नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त आत्मा एक आगमद्रव्य – आवश्यक है। दो अनुपयुक्त आत्माऍं दो आगमद्रव्य – आवश्यक हैं। इसी प्रकार जितनी भी अनुपयुक्त आत्माऍं हैं, वे सभी उतनी ही नैगमनय की अपेक्षा आगमद्रव्य – आवश्यक हैं। इसी प्रकार व्यवहारनय भी जानना। संग्रहनय एक अनुपयुक्त आत्मा एक द्रव्य – आवश्यक और अनेक अनुपयुक्त
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 52 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दव्वखंधे? दव्वक्खंधे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। से किं तं आगमओ दव्वखंधे? आगमओ दव्वखंधे–जस्स णं खंधे त्ति पदं सिक्खियं सेसं जहा दव्वा-वस्सए तहा भाणियव्वं नवरं खंधाभिलाओ जाव से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे जाणगसरीर-भविय-सरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे तिविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्ते अचित्ते मीसए।

Translated Sutra: द्रव्यस्कन्ध क्या है ? दो प्रकार का है। आगमद्रव्यस्कन्ध और नोआगमद्रव्यस्कन्ध। आगमद्रव्यस्कन्ध क्या है ? जिसने स्कन्धपद को गुरु से सीखा है, स्थित किया है, जित, मित किया है यावत्‌ नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त आत्मा आगम से एक द्रव्यस्कन्ध है, दो अनुपयुक्त आत्माऍं दो, इस प्रकार जितनी भी अनुपयुक्त आत्माऍं हैं,
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 310 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नयप्पमाणे? नयप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–पत्थगदिट्ठंतेणं वसहिदिट्ठंतेणं पएसदिट्ठंतेणं। से किं तं पत्थगदिट्ठंतेणं? पत्थगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वएज्जा–कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगस्स गच्छामि। तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगं छिंदामि। तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं तच्छेमि। तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं उक्किरामि। तं

Translated Sutra: नयप्रमाण क्या है ? वह तीन दृष्टान्तों द्वारा स्पष्ट किया गया है। जैसे कि – प्रस्थक के, वसति के और प्रदेश के दृष्टान्त द्वारा। भगवन्‌ ! प्रस्थक का दृष्टान्त क्या है ? जैसे कोई पुरुष परशु लेकर वन की ओर जाता है। उसे देखकर किसीने पूछा – आप कहाँ जा रहे हैं ? तब अविशुद्ध नैगमनय के मतानुसार उसने कहा – प्रस्थक लेने के लिए
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 311 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संखप्पमाणे? संखप्पमाणे अट्ठविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसंखा २. ठवणसंखा ३. दव्वसंखा ४. ओवम्मसंखा ५. परिमाणसंखा ६. जाणणासंखा ७. गणणासंखा ८. भावसंखा। से किं तं नामसंखा? नामसंखा–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदु भयाण वा संखा ति नामं कज्जइ। से तं नामसंखा। से किं तं ठवणसंखा? ठवणसंखा–जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा संखा ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणसंखा। नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया

Translated Sutra: संख्याप्रमाण क्या है ? आठ प्रकार का है। यथा – नामसंख्या, स्थापनासंख्या, द्रव्यसंख्या, औपम्यसंख्या, परिमाण – संख्या, ज्ञानसंख्या, गणनासंख्या, भावसंख्या। नामसंख्या क्या है ? जिस जीव का अथवा अजीव का अथवा जीवों का अथवा अजीवों का अथवा तदुभव का अथवा तदुभयों का संख्या ऐसा नामकरण कर लिया जाता है, उसे नामसंख्या कहते
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 318 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वत्तव्वया? वत्तव्वया तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–ससमयवत्तव्वया परसमयवत्तव्वया ससमय-परसमयवत्तव्वया। से किं तं ससमयवत्तव्वया? ससमयवत्तव्वया–जत्थ णं ससमए आघविज्जइ पन्नविज्जइ परूविज्जइ दंसिज्जइ निदंसिज्जइ उवदंसिज्जइ। से तं ससमयवत्तव्वया। से किं तं परसमयवत्तव्वया? परसमयवत्तव्वया–जत्थ णं परसमए आघविज्जइ पन्नविज्जइ परूविज्जइ दंसिज्जइ निदंसिज्जइ उवदंसिज्जइ। से तं परसमयवत्तव्वया। से किं तं ससमय-परसमयवत्तव्वया? ससमय-परसमयवत्तव्वया–जत्थ ससमए परसमए आघविज्जइ पन्नवि-ज्जइ परूविज्जइ दंसिज्जइ निदंसिज्जइ० उवदंसिज्जइ। से तं ससमय-परसमयवत्तव्वया। इयाणि

Translated Sutra: वक्तव्यता क्या है ? तीन प्रकार की है, यथा – स्वसमयवक्तव्यता, परसमयवक्तव्यता और स्वसमय – परसमयवक्तव्यता। अविरोधी रूप से स्वसिद्धान्त के कथन, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन करने को स्वसमयवक्तव्यता कहते हैं। जिस वक्तव्यता में परसमय – का कथन यावत्‌ उपदर्शन किया जाता है, उसे परसमयवक्तव्यता कहते
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 343 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नए? सत्त मूलनया पन्नत्ता, तं जहा–नेगमे संगहे ववहारे उज्जुसुए सद्दे समभिरूढे एवंभूए। तत्थ–

Translated Sutra: नय क्या है ? मूल नय सात हैं। नैगमनय, संग्रहनय, व्यवहारनय, ऋजुसूत्रनय, शब्दनय, समभिरूढनय और एवंभूत – नय। जो अनेक प्रकारों से वस्तु के स्वरूप को जानता है, अनेक भावों से वस्तु का निर्णय करता है (वह नैगमनय है।) शेष नयों के लक्षण कहूँगा – सुनो। सम्यक्‌ प्रकार से गृहीत – यह संग्रहनय का वचन है। इस प्रकार से संक्षेप में
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 15 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे निग्गंथा भगवंतो–अप्पेगइया आभिनिबोहियनाणी अप्पेगइया सुयनाणी अप्पेगइया ओहिनाणी अप्पेगइया मणपज्जवनाणी अप्पेगइया केवलनाणी अप्पेगइया मनबलिया अप्पेगइया वयबलिया अप्पेगइया कायबलिया अप्पेगइया मणेणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया वएणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया काएणं सावाणुग्गहसमत्था ... ...अप्पेगइया खेलोसहिपत्ता अप्पेगइया जल्लोसहिपत्ता अप्पेगइया विप्पोसहिपत्ता अप्पेगइया आमोसहिपत्ता अप्पेगइया सव्वोसहिपत्ता अप्पेगइया कोट्ठबुद्धी अप्पेगइया बीयबुद्धी अप्पेगइया पडबुद्धी अप्पेगइया पयाणुसारी

Translated Sutra: उस समय श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी बहुत से निर्ग्रन्थ संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते थे। उनमें कईं मतिज्ञानी यावत्‌ केवलज्ञानी थे। कईं मनोबली, वचनबली, तथा कायबली थे। कईं मन से, कईं वचन से, कईं शरीर द्वारा अपकार व उपकार करने में समर्थ थे। कईं खेलौषधिप्राप्त, कईं जल्लौषधिप्राप्त थे। कईं
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Hindi 55 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहा सजोगी सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ? नो इणट्ठे समट्ठे। से णं पुव्वामेव सन्निस्स पंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं विदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा, असंखेज्ज-गुणपरिहीणं विइयं वइजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तगस्स जहन्न-जोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तइयं कायजोगं णिरुंभइ। से णं एएणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वयजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता कायजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता जोगनिरोहं करेइ, करेत्ता अजोगत्तं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सयोगी सिद्ध होते हैं ? यावत्‌ सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। वे सबसे पहले पर्याप्त, संज्ञी, पंचेन्द्रिय जीव के जघन्य मनोयोग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन मनोयोग का निरोध करते हैं। उसके बाद पर्याप्त बेइन्द्रिय जीव के जघन्य वचन – योग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन वचन – योग
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-९ प्रयोगबंध Hindi 427 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! अट्ठविहे पन्नत्ते, तं जहा– नाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे जाव अंतराइयकम्मा-सरीरप्पयोगबंधे। नाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं? गोयमा! नाणपडिणीययाए, नाणणिण्हवणयाए, नाणंतराएणं, नाणप्पदोसेणं, नानच्चासात-णयाए, नाणविसंवादणाजोगेणं नाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं नाणाव-रणिज्ज-कम्मासरीरप्पयोगबंधे। दरिसणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं? गोयमा! दंसणपडिनीययाए, दंसणनिण्हवणयाए, दंसणतराएणं, दंसणप्पदोसेणं, दंसणच्चा-सातणयाए, दंसणविसंवादणाजोगेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कार्मणशरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! आठ प्रकार का। ज्ञानवरणीयकार्मण – शरीरप्रयोगबंध, यावत् अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगबंध। भगवन् ! ज्ञानवरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! ज्ञान की प्रत्यनीकता करने से, ज्ञान का निह्नव करने से, ज्ञान मे अन्तराय देने से, ज्ञान से प्रद्वेष
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 395 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आभिनिबोहियनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वं खेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वं कालं जाणइ-पासइ। भावओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वे भावे जाणइ-पासइ। सुयनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वखेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं सुयनाणी उवउत्ते

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आभिनिबोधिकज्ञान का विषय कितना व्यापक है ? गौतम ! संक्षेप में चार प्रकार का है। यथा – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से आभिनिबोधिकज्ञानी आदेश (सामान्य) से सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है, क्षेत्र से सामान्य से सभी क्षेत्र को जानता और देखता है, इसी प्रकार काल से भी और भाव से भी जानना। भगवन्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-५ असुरकुमार Hindi 739 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते! असुरकुमारा एगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमारदेवत्ताए उववन्ना। तत्थ णं एगे असुरकुमारे देवे उज्जुयं विउव्विस्सामीति उज्जुयं विउव्वइ, वंकं विउव्विस्सामीति वंकं विउव्वइ, जं जहा इच्छइ तं जहा विउव्वइ। एगे असुरकुमारे देवे उज्जुयं विउव्विस्सामीति वंकं विउव्वइ, वंकं विउव्विस्सामीति उज्जुयं विउव्वइ, जं जहा इच्छति तं तहा विउव्वइ, से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! असुरकुमारा देवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–मायिमिच्छदिट्ठीउववन्नगा य, अमायि-सम्मदिट्ठीउववन्नगा य। तत्थ णं जे से मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए असुरकुमारे देवे से णं उज्जुयं विउव्विस्सामीति वंकं विउव्वइ जाव

Translated Sutra: भगवन्‌ ! दो असुरकुमार, एक ही असुरकुमारावास में असुरकुमार रूप से उत्पन्न हुए, उनमें से एक असुर – कुमार देव यदि वह चाहे कि मैं ऋजु से विकुर्वणा करूँगा; तो वह ऋजु – विकुर्वणा कर सकता है और यदि वह चाहे कि मैं वक्र रूप में विकुर्वणा करूँगा, तो वह वक्र – विकुर्वणा कर सकता है। जब कि एक असुरकुमारदेव चाहता है कि मैं ऋजु
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा

Hindi 27 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पंचासवपरिण्णाया तिगुत्ता छसु संजया । पंचनिग्गहणा धीरा निग्गंथा उज्जुदंसिणो ॥

Translated Sutra: वे निर्ग्रन्थ पांच आश्रवों को परित्याग करने वाले, तीन गुप्तियों से गुप्त, षड्‌जीवनिकाय के प्रति संयमशील, पांच इन्द्रियों का निग्रह करने वाले, धीर और ऋजुदर्शी होते हैं।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ छ जीवनिकाय

Hindi 73 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तवोगुणपहाणस्स उज्जुमइ खंतिसंजमरयस्स । परीसहे जिणंतस्स सुलहा सुग्गइ तारिसगस्स ॥

Translated Sutra: जो श्रमण तपोगुण में प्रधान है,ऋजुमति है, क्षान्ति एवं संयम में रत है, तथा परीषहों को जीतने वाला है; ऐसे श्रमण को सुगति सुलभ है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 162 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिया य भिक्खू इच्छेज्जा सेज्जमागम्म भोत्तुयं । सपिंडपायमागम्म उंडुयं पडिलेहिया ॥

Translated Sutra: कदाचित्‌ भिक्षु बसति में आकर भोजन करना चाहे तो पिण्डपात सहित आकर भोजन भूमि प्रतिलेखन कर ले। विनयपूर्वक गुरुदेव के समीप आए और ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करे। जाने – आने में और भक्तपान लेने में (लगे) समस्त अतिचारों का क्रमशः उपयोगपूर्वक चिन्तन कर ऋजुप्रज्ञ और अनुद्विग्न संयमी अव्याक्षिप्त चित्त से गुरु के पास
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

3. नयवाद की सार्वभौमिकता Hindi 388 View Detail
Mool Sutra: बोद्धानामृजुसूत्रतो मतमभूद्वेदान्तिनां संग्रहात्, सांख्यानां तत् एव नैगमनयाद्, योगश्च वैशेषिकः।

Translated Sutra: (जितने भी दर्शन हैं या होंगे, वे सभी अपने अपने किसी विशेष दृष्टिकोण से ही तत्त्व का निरूपण करते हैं। इसलिए सभी किसी न किसी नय का अनुसरण करते हैं।) यथा-अनित्यत्ववादी बौद्ध-दर्शन `ऋजुसूत्र' नय का अनुसरण करता है, अद्वैत व अभेदवादी वेदान्त व सांख्य-दर्शन `संग्रह' नय का, भेदवादी योग व वैशेषिक-दर्शन `नैगम' नय का, और शब्दाद्वैतवादी
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

9. तप व ध्यान अधिकार - (राज योग)

9. ध्यान-समाधि सूत्र Hindi 224 View Detail
Mool Sutra: शुचिके समे विचित्ते, देशे निर्जन्तुकेऽनुज्ञाते। ऋजुकायतदेहोऽचलं, बद्धवा पल्यंकम् ।।

Translated Sutra: पवित्र, सम, निर्जन्तुक तथा स्वामी अथवा देवता आदि से जिसके लिए अनुज्ञा ले ली गयी हो, ऐसे स्थान में शरीर व कमर को सीधा रखते हुए निश्चल पर्यंकासन बाँध कर ध्यान किया जाता है।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

11. उत्तम आर्जव (सरलता) Hindi 274 View Detail
Mool Sutra: यथा बालो जल्पन्, कार्यमकार्यं च ऋजुकं भणति। तत्तथाऽऽलोचयेन्मायामद-विप्रमुक्त एव ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार बालक बोलता हुआ कार्य व अकार्य को सरलता से कह देता है, उसी प्रकार सरलता से अपने दोषों की आलोचना करनेवाला साधु माया व मद से मुक्त होता है।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

3. नयवाद की सार्वभौमिकता Hindi 388 View Detail
Mool Sutra: शब्दब्रह्मविदोऽपि शब्दनयतः, सर्वैर्नयैर्गुम्फिता, जैनी दृष्टिरितीह सारतरता, प्रत्यक्षमुद्वीक्ष्वते ।।

Translated Sutra: (जितने भी दर्शन हैं या होंगे, वे सभी अपने अपने किसी विशेष दृष्टिकोण से ही तत्त्व का निरूपण करते हैं। इसलिए सभी किसी न किसी नय का अनुसरण करते हैं।) यथा-अनित्यत्ववादी बौद्ध-दर्शन `ऋजुसूत्र' नय का अनुसरण करता है, अद्वैत व अभेदवादी वेदान्त व सांख्य-दर्शन `संग्रह' नय का, भेदवादी योग व वैशेषिक-दर्शन `नैगम' नय का, और शब्दाद्वैतवादी
Jitakalpa जीतकल्प सूत्र Ardha-Magadhi

तप प्रायश्चित्तं

Hindi 69 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुरिसा गीयाऽगीया सहाऽसहा तह सढाऽसढा केई । परिणामाऽपरिणामा अइपरिणामा य वत्थूणं ॥

Translated Sutra: पुरुष में कोई गीतार्थ हो कोई अगीतार्थ हो, कोई सहनशील हो, कोई असहनशील हो, कोई ऋजु हो कोई मायावी हो, कुछ श्रद्धा परिणामी हो, कुछ अपरिणामी हो, और कुछ अपवाद का ही आचरण करनेवाले अति – परिणामी भी हो, कुछ धृति – संघयण और उभय से संपन्न हो, कुछ उससे हिन हो, कुछ तप शक्तिवाले हो, कुछ वैयावच्ची हो, कुछ दोनों ताकतवाले हो, कुछ में
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

मनुष्य उद्देशक Hindi 145 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगोरुयदीवस्स णं भंते! केरिसए आगार भावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते। से जहानामए–आलिंगपुक्खरेति वा, एवं सवणिज्जे भाणितव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं बहवे एगोरुयदीवया मनुस्सा य मनुस्सीओ य आसयंति जाव विहरंति एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिं तहिं बहवे उद्दालका मोद्दालका रोद्दालका कतमाला नट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालगा नाम दुमगणा पन्नत्ता समणाउसो कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंता कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहिं य पुप्फेहि य अच्छणपडिच्छन्ना सिरीए अतीवअतीव सोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठंति... ...एगोरुयदीवे णं दीवे

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! एकोरुकद्वीप की भूमि आदि का स्वरूप किस प्रकार का है ? गौतम ! एकोरुकद्वीप का भीतरी भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय है। मुरज के चर्मपुट समान समतल वहाँ का भूमिभाग है – आदि। इस प्रकार शय्या की मृदुता भी कहना यावत्‌ पृथ्वीशिलापट्टक का भी वर्णन करना। उस शिलापट्टक पर बहुत से एको – रुकद्वीप के मनुष्य और स्त्रियाँ
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 82 Sutra Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं च दुविहं उप्पज्जइ, तं जहा–उज्जुमई य विउलमई य। तं समासओ चउव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। तत्थ दव्वओ णं उज्जुमई अनंते अनंतपएसिए खंधे जाणइ पासइ। ते चेव विउलमई अब्भहियतराए विउलतराए विसुद्धतराए वितिमिरतराए जाणइ पासइ। खेत्तओ णं उज्जुमई अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेट्ठिल्ले खुड्डागपयरे, उड्ढं जाव जोइसस्स उवरिमतले, तिरियं जाव अंतोमनुस्सखेत्ते अड्ढाइज्जेसु दीवसमुद्देसु, पन्नरससु कम्मभूमीसु, तीसाए अकम्मभूमीसु, छप्पन्नए अंतरदीवगेसु, सण्णीणं पंचेंदियाणं पज्जत्तयाणं मणोगए भावे जाणइ पासइ। तं चेव विउलमई अड्ढाइज्जेहिमंगुलेहिं अब्भहियतरं

Translated Sutra: मनःपर्यवज्ञान दो प्रकार से उत्पन्न होता है। ऋजुमति, विपुलमति। यह संक्षेप से चार प्रकार से है। द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से। द्रव्य से – ऋजुमति अनन्त अनन्तप्रदेशिक स्कन्धों को जानता व देखता है, और विपुलमति उन्हीं स्कन्धों को कुछ अधिक विपुल, विशुद्ध और निर्मल रूप से जानता व देखता है। क्षेत्र से – ऋजुमति
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 150 Sutra Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दिट्ठिवाए? दिट्ठिवाए णं सव्वभावपरूवणा आघविज्जइ। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. परिकम्मे २. सुत्ताइं ३. पुव्वगए ४. अनुओगे ५. चूलिया। से किं तं परिकम्मे? परिकम्मे सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. सिद्धसेणियापरिकम्मे २. मनुस्ससेणियापरिकम्मे, ३. पुट्ठसेणियापरिकम्मे ४. ओगाढसेणियापरिकम्मे ५. उवसंपज्जसेणियापरिकम्मे ६. विप्पजहण-सेणियापरिकम्मे ७. चुयाचुयसेणियापरिकम्मे। से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे? सिद्धसेणियापरिकम्मे चउद्दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. माउगापयाइं २. एगट्ठियपयाइं ३. अट्ठापयाइं ४. पाढो ५. आगासपयाइं ६. केउभूयं ७. रासिबद्धं ८. एगगुणं ९. दुगुणं

Translated Sutra: दृष्टिवाद क्या है ? दृष्टिवाद – सब नयदृष्टियों का कथन करने वाले श्रुत में समस्त भावों की प्ररूपणा है। संक्षेप में पाँच प्रकार का है। परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका। परिकर्म सात प्रकार का है, सिद्ध – श्रेणिकापरिकर्म, मनुष्य – श्रेणिकापरिकर्म, पुष्ट – श्रेणिकापरिकर्म, अवगाढ – श्रेणिका – परिकर्म,
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२० Hindi 1375 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू बहुसोवि मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स मासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी कईं बार (एक नहीं, दो नहीं लेकिन तीन – तीन बार) एक मास के बाद निर्वर्तन पाए ऐसा पाप – कर्मानुष्ठान सेवन करके गुरु के समक्ष आलोचना करे तब भी ऋजु भाव से आलोचना करे तो एक मास और कपट भाव से आलोचना करे तो दो मास का प्रायश्चित्त आता है। उसी तरह से दो, तीन, चार, पाँच मास निर्वर्तन योग्य पाप के लिए निःशल्य आलोचना
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१६ प्रयोग

Hindi 441 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! गइप्पवाए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–पओगगती ततगती बंधणच्छेदनगती उववायगती विहायगती। से किं तं पओगगती? पओगगती पन्नरसविहा पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमणप्पओगगती एवं जहा पओगे भणिओ तहा एसा वि भाणियव्वा जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगती। जीवाणं भंते! कतिविहा पओगगती पन्नत्ता? गोयमा! पन्नरसविहा पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमणप्पओगगती जाव कम्मासरीरकायप्पओगगती। नेरइयाणं भंते! कतिविहा पओगगती पन्नत्ता? गोयमा! एक्कारसविहा पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमणप्पओगगती एवं उवउज्जिऊण जस्स जतिविहा तस्स ततिविहा भाणितव्वा जाव वेमानियाणं। जीवा णं भंते! किं सच्चमनप्पओगगती

Translated Sutra: भगवन्‌ ! गतिप्रपात कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच – प्रयोगगति, ततगति, बन्धनछेदनगति, उपपात – गति और विहायोगति। वह प्रयोगगति क्या है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार की, सत्यमनःप्रयोगगति यावत्‌ कार्मणशरीरकायप्रयोगगति। प्रयोग के समान प्रयोगगति भी कहना। भगवन्‌ ! जीवों की प्रयोगगति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 621 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहासजोगी सिज्झति बुज्झति मुच्चति परिणिव्वाति सव्वदुक्खाणं अंतं करेति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से णं पुव्वामेव सण्णिस्स पंचेंदियस्स पज्जत्तयस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्ज-गुणपरिहीणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तओ अनंतरं च णं बेइंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं दोच्चं वइजोगं निरुंभति, तओ अनंतरं च णं सुहुमस्स पनगजीवस्स अपज्ज-त्तयस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तच्चं कायजोगं निरुंभति। से णं एतेणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वइजोगं निरुंभति, निरुंभित्ता काय-जोगं निरुंभति, निरुंभित्ता जोगनिरोहं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वह तथारूप सयोगी सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, यावत्‌ सर्वदुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! वह वैसा करने में समर्थ नहीं होते। वह सर्वप्रथम संज्ञीपंचेन्द्रियपर्याप्तक जघन्ययोग वाले से असंख्यातगुणहीन मनोयोग का पहले निरोध करते हैं, तदनन्तर द्वीन्द्रियपर्याप्तक जघन्ययोग वाले से असंख्यातगुणहीन
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ अहिंसा

Hindi 34 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एसा सा भगवती अहिंसा, जा सा– भीयाणं पिव सरणं, पक्खीणं पिव गयणं। तिसियाणं पिव सलिलं, खुहियाणं पिव असणं। समुद्दमज्झे व पोतवहणं, चउप्पयाणं व आसमपयं। दुहट्टियाणं व ओसहिबलं, अडवीमज्झे व सत्थगमणं। एत्तो विसिट्ठतरिका अहिंसा, जा सा– पुढवि जल अगणि मारुय वणप्फइ बीज हरित जलचर थलचर खहचर तसथावर सव्वभूय खेमकरी। [सूत्र] एसा भगवती अहिंसा, जा सा– अपरिमियनाणदंसणधरेहिं सीलगुण विनय तव संजमनायकेहिं तित्थंकरेहिं सव्वजग-वच्छलेहिं तिलोगमहिएहिं जिणचंदेहिं सुट्ठु दिट्ठा, ओहिजिणेहिं विण्णाया, उज्जुमतीहिं विदिट्ठा, विपुलमतीहिं विदिता, पुव्वधरेहिं अधीता, वेउव्वीहिं पतिण्णा। आभिनिबोहियनाणीहिं

Translated Sutra: यह अहिंसा भगवती जो है सो भयभीत प्राणियों के लिए शरणभूत है, पक्षियों के लिए आकाश में गमन करने समान है, प्यास से पीड़ित प्राणियों के लिए जल के समान है, भूखों के लिए भोजन के समान है, समुद्र के मध्य में जहाज समान है, चतुष्पद के लिए आश्रम समान है, दुःखों से पीड़ित के लिए औषध समान है, भयानक जंगल में सार्थ समान है। भगवती अहिंसा
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ सत्य

Hindi 36 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! बितियं च सच्चवयणं–सुद्धं सुइयं सिवं सुजायं सुभासियं सुव्वयं सुकहियं सुदिट्ठं सुपतिट्ठियं सुपतिट्ठियजसं सुसंजमियवयणबुइयं सुरवर नरवसभ पवर बलवग सुविहियजण बहुमयं परमसाहु-धम्मचरणं तव नियम परिग्गहियं सुगतिपहदेसगं च लोगुत्तमं वयमिणं विज्जाहरगगणगमणविज्जाण साहकं सग्गमग्गसिद्धिपहदेसकं अवितहं, तं सच्चं उज्जुयं अकुडिलं भूयत्थं, अत्थतो विसुद्धं उज्जोयकरं पभासकं भवति सव्वभावाण जीवलोगे अविसंवादि जहत्थमधुरं पच्चक्खं दइवयं व जं तं अच्छेरकारकं अवत्थंतरेसु बहुएसु माणुसाणं। सच्चेण महासमुद्दमज्झे चिट्ठंति, न निमज्जंति मूढाणिया वि पोया। सच्चेण य उदगसंभमंसि

Translated Sutra: हे जम्बू ! द्वितीय संवर सत्यवचन है। सत्य शुद्ध, शुचि, शिव, सुजात, सुभाषित होता है। यह उत्तम व्रतरूप है और सम्यक्‌ विचारपूर्वक कहा गया है। इसे ज्ञानीजनों ने कल्याण के समाधान के रूप में देखा है। यह सुप्रतिष्ठित है, समीचीन रूप में संयमयुक्त वाणी से कहा गया है। सत्य सुरवरों, नरवृषभों, अतिशय बलधारियों एवं सुविहित
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-५ अपरिग्रह

Hindi 45 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जो सो वीरवरवयणविरतिपवित्थर-बहुविहप्पकारो सम्मत्तविसुद्धमूलो धितिकंदो विणयवेइओ निग्गततिलोक्कविपुल-जसनिचियपीणपीवरसुजातखंधो पंचमहव्वयविसालसालो भावणतयंत ज्झाण सुभजोग नाण पल्लववरंकुरधरो बहुगुणकुसुमसमिद्धो सीलसुगंधो अणण्हयफलो पुणो य मोक्खवरबीजसारो मंदरगिरि सिहरचूलिका इव इमस्स मोक्खर मोत्तिमग्गस्स सिहरभूओ संवर-वरपायवो। चरिमं संवरदारं। जत्थ न कप्पइ गामागर नगर खेड कब्बड मडंब दोणमुह पट्टणासमगयं च किंचि अप्पं व बहुं व अणुं व थूलं व तस थावरकाय दव्वजायं मणसा वि परिघेत्तुं। न हिरण्ण सुवण्ण खेत्त वत्थुं, न दासी दास भयक पेस हय गय गवेलगं व, न जाण जुग्ग सयणासणाइं,

Translated Sutra: श्रीवीरवर – महावीर के वचन से की गई परिग्रहनिवृत्ति के विस्तार से यह संवरवर – पादप बहुत प्रकार का है। सम्यग्दर्शन इसका विशुद्ध मूल है। धृति इसका कन्द है। विनय इसकी वेदिका है। तीनों लोकों में फैला हुआ विपुल यश इसका सघन, महान और सुनिर्मित स्कन्ध है। पाँच महाव्रत इसकी विशाल शाखाएं हैं। भावनाएं इस संवरवृक्ष
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

प्रदेशीराजान प्रकरण

Hindi 64 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–से केस णं भंते! तुज्झं नाणे वा दंसणे वा, जेणं तुब्भं मम एयारूवं अज्झत्थियं चिंतियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं समुप्पण्णं जाणह पासह? तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–एवं खलु पएसी! अम्हं समणाणं निग्गंथाणं पंचविहे नाणे पन्नत्ते, तं जहा–आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे ओहिनाणे मनपज्जवनाणे केवलनाणे। से किं तं आभिणिबोहियनाणे? आभिणिबोहियनाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा– उग्गहो ईहा अवाए धारणा। से किं तं उग्गहे? उग्गहे दुविहे पन्नत्ते, जहा नंदीए जाव से तं धारणा। से तं आभिणिबोहियनाणे। से किं तं सुयनाणं? सुयनाणं दुविहं पन्नत्तं,

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ प्रदेशी राजा ने कहा – भदन्त ! तुम्हें ऐसा कौन सा ज्ञान और दर्शन है कि जिसके द्वारा आपने मेरे इस प्रकार के आन्तरिक यावत्‌ मनोगत संकल्प को जाना और देखा ? तब केशी कुमारश्रमण ने कहा – हे प्रदेशी ! निश्चय ही हम निर्ग्रन्थ श्रमणों के शास्त्रों में ज्ञान के पाँच प्रकार बतलाए हैं। आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान,
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३१. लेश्यासूत्र Hindi 543 View Detail
Mool Sutra: चागी भद्दो चोक्खो, अज्जवकम्मो य खमदि बहुगं पि। साहुगुरुपूजणरदो, लक्खणमेयं तु पम्मस्स।।१३।।

Translated Sutra: त्यागशीलता, परिणामों में भद्रता, व्यवहार में प्रामाणिकता, कार्य में ऋजुता, अपराधियों के प्रति क्षमाशीलता, साधु-गुरुजनों की पूजा-सेवा में तत्परता--ये पद्मलेश्या के लक्षण हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३९. नयसूत्र Hindi 698 View Detail
Mool Sutra: नेगम-संगह-ववहार-उज्जुसुए चेव होई बोधव्वा। सद्दे य समभिरूढे, एवंभूए य मूलनया।।९।।

Translated Sutra: (द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय के भेदरूप) मूल नय सात हैं--नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३९. नयसूत्र Hindi 706 View Detail
Mool Sutra: जो एयसमयवट्टी, गिह्णइ, दव्वे धुवत्तपज्जायं। सो रिउसुत्तो सुहुमो, सव्वं पि सद्दं जहा खणियं।।१७।।

Translated Sutra: जो द्रव्य में एकसमयवर्ती (वर्तमान) अध्रुव पर्याय को ग्रहण करता है उसे सूक्ष्मऋजुसूत्रनय कहते हैं। जैसे सब शब्दक्षणिक हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३९. नयसूत्र Hindi 707 View Detail
Mool Sutra: मणुयाइयपज्जाओ, मणुसो त्ति सगट्ठिदीसु वट्टंतो। जो भणइ तावकालं, सो थूलो होइ रिउसुत्तो।।१८।।

Translated Sutra: और जो अपनी स्थितिपर्यन्त रहनेवाली मनुष्यादि पर्याय को उतने समय तक एक मनुष्यरूप से ग्रहण करता है, वह स्थूल-ऋजुसूत्रनय है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

४१. समन्वयसूत्र Hindi 727 View Detail
Mool Sutra: परसमएगनयमयं, तप्पडिवक्खनयओ निवत्तेज्जा। समए व परिग्गहियं, परेण जं दोसबुद्धीए।।६।।

Translated Sutra: नय-विधि के ज्ञाता को पर-समयरूप (एकान्त या आग्रहपूर्ण) अनित्यत्व आदि के प्रतिपादक ऋजुसूत्र आदि नयों के अनुसार लोक में प्रचलित मतों का निवर्तन या परिहार नित्यादि का कथन करनेवाले द्रव्यार्थिक नय से करना चाहिए। तथा स्वसमयरूप जिन-सिद्धान्त में भी अज्ञान या द्वेष आदि दोषों से युक्त किसी व्यक्ति ने दोषबुद्धि से
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र English 462 View Detail
Mool Sutra: यथा बालो जल्पन्, कार्यमकार्यं च ऋजुकं भणति। तत् तथाऽऽलोचयेन्मायामदविप्रमुक्त एव।।२४।।

Translated Sutra: Just as a child speaks of its good and bad acts in a straight-forward manner, similarly one ought to confess one’s guilt with a mind free from deceit and pride.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३९. नयसूत्र English 698 View Detail
Mool Sutra: नैगम-संग्रह-व्यवहार-ऋजुसूत्रश्च भवन्ति बोद्धव्यः। शब्दश्च समभिरूढः, एवंभूताश्च मूलनयाः।।९।।

Translated Sutra: Naigam, samgraha, vyavahara, rjusutra, sabda, samabhirudha and evambhuta-these are the seven basic stand-points.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३९. नयसूत्र English 706 View Detail
Mool Sutra: यः एकसमयवर्तिनं, गृह्णाति द्रव्ये ध्रुवत्वपर्यायम्। स ऋजुसूत्रः सूक्ष्मः, सर्वोऽपि शब्दः यथा क्षणिकः।।१७।।

Translated Sutra: The naya which grasps the evanescent modes of an enternal substance, is called Rjusutra naya, for example ‘to say that’ all the sound is momentary’.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३९. नयसूत्र English 707 View Detail
Mool Sutra: मनुजादिकपर्यायो, मनुष्य इति स्वकस्थितिषु वर्तमानः। यः भणति तावत्कालं, स स्थूलो भवति ऋजुसूत्रः।।१८।।

Translated Sutra: On the other hand that naya which attritubes a mode like man-ness etc. to a being, throughout the course of that period during which this being continues to exhibit that mode is the sub-type of Rjusutranaya, called Sthularjusutranaya.
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Gujarati 462 View Detail
Mool Sutra: यथा बालो जल्पन्, कार्यमकार्यं च ऋजुकं भणति। तत् तथाऽऽलोचयेन्मायामदविप्रमुक्त एव।।२४।।

Translated Sutra: જેમ બાળક સારી-ખોટી વાતોને સરળભાવે બોલી નાખે છે તેમ કપટ અને અભિમાન તજીને પોતાના દોષોની આલોચના કરવી જોઈએ.
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३९. नयसूत्र Gujarati 698 View Detail
Mool Sutra: नैगम-संग्रह-व्यवहार-ऋजुसूत्रश्च भवन्ति बोद्धव्यः। शब्दश्च समभिरूढः, एवंभूताश्च मूलनयाः।।९।।

Translated Sutra: મૂળ નયો સાત છે : નૈગમ, સંગ્રહ, વ્યવહાર, ઋજુસૂત્ર, શબ્દ, સમભિરૂઢ અને એવંભૂત.
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३९. नयसूत्र Gujarati 706 View Detail
Mool Sutra: यः एकसमयवर्तिनं, गृह्णाति द्रव्ये ध्रुवत्वपर्यायम्। स ऋजुसूत्रः सूक्ष्मः, सर्वोऽपि शब्दः यथा क्षणिकः।।१७।।

Translated Sutra: વસ્તુની એક-એક સમયની અવસ્થા પર દૃષ્ટિ સ્થાપીને જે કથન કરાય તે સૂક્ષ્મ ઋજુસૂત્ર નય છે. દા.ત. "શબ્દ ક્ષણિક છે" એ કથન. (શબ્દ બીજી જ ક્ષણે નાશ પામે છે, તે શબ્દરૂપે નાશ પામે છે, પદાર્થરૂપે તો રહે છે. કિંતુ ઋજુસૂત્રનય દ્રવ્યને લક્ષ્યમાં નથી લેતો, પર્યાયનો
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३९. नयसूत्र Gujarati 707 View Detail
Mool Sutra: मनुजादिकपर्यायो, मनुष्य इति स्वकस्थितिषु वर्तमानः। यः भणति तावत्कालं, स स्थूलो भवति ऋजुसूत्रः।।१८।।

Translated Sutra: અમુક સમય મર્યાદા સુધી ચાલુ રહેનાર અવસ્થાઓને સ્વીકારે તે સ્થૂળ ઋજુસૂત્રનય છે. જેમ કે મનુષ્ય દેહમાં હોય ત્યાં સુધી જીવને મનુષ્ય ગણવો.
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 462 View Detail
Mool Sutra: यथा बालो जल्पन्, कार्यमकार्यं च ऋजुकं भणति। तत् तथाऽऽलोचयेन्मायामदविप्रमुक्त एव।।२४।।

Translated Sutra: जैसे बालक अपने कार्य-अकार्य को सरलतापूर्वक माँ के समक्ष व्यक्त कर देता है, वैसे ही साधु को भी अपने समस्त दोषों की आलोचना माया-मद (छल-छद्म) त्यागकर करनी चाहिए।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३१. लेश्यासूत्र Hindi 543 View Detail
Mool Sutra: त्यागी भद्रः चोक्षः, आर्जवकर्मा च क्षमते बहुकमपि। साधुगुरुपूजनरतो, लक्षणमेत् तु पद्मस्य।।१३।।

Translated Sutra: त्यागशीलता, परिणामों में भद्रता, व्यवहार में प्रामाणिकता, कार्य में ऋजुता, अपराधियों के प्रति क्षमाशीलता, साधु-गुरुजनों की पूजा-सेवा में तत्परता--ये पद्मलेश्या के लक्षण हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३९. नयसूत्र Hindi 698 View Detail
Mool Sutra: नैगम-संग्रह-व्यवहार-ऋजुसूत्रश्च भवन्ति बोद्धव्यः। शब्दश्च समभिरूढः, एवंभूताश्च मूलनयाः।।९।।

Translated Sutra: (द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय के भेदरूप) मूल नय सात हैं--नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत।
Showing 1 to 50 of 71 Results