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Anuttaropapatikdashang अनुत्तरोपपातिक दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र...

अध्ययन-१

Hindi 11 Sutra Ang-09 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे। परिसा निग्गया। सेणिए निग्गए। धम्मकहा। परिसा पडिगया। तए णं से सेणिए राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इमासि णं भंते! इंदभूइपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं कतरे अनगारे महादुक्करकारए चेव महानिज्जरतराए चेव? एवं खलु सेणिया! इमासि णं इंदभूइपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं धन्ने अनगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ, इमासिं णं

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। गुणशैलक चैत्य था। श्रेणिक राजा था। उसी काल और उसी समय में श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामी उक्त चैत्य में बिराजमान हुए। यह सूनकर पर्षदा नीकली, भगवान की सेवा में उपस्थित हुई, श्रेणिक राजा भी उपस्थित हुआ। भगवान ने धर्म – कथा सुनाई और लोग वापिस चले गए। श्रेणिक राजा ने इस कथा को
Anuttaropapatikdashang અનુત્તરોપપાતિક દશાંગસૂત્ર Ardha-Magadhi

वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र...

अध्ययन-१

Gujarati 11 Sutra Ang-09 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे। परिसा निग्गया। सेणिए निग्गए। धम्मकहा। परिसा पडिगया। तए णं से सेणिए राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इमासि णं भंते! इंदभूइपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं कतरे अनगारे महादुक्करकारए चेव महानिज्जरतराए चेव? एवं खलु सेणिया! इमासि णं इंदभूइपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं धन्ने अनगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ, इमासिं णं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૧. તે કાળે તે સમયે રાજગૃહનગર, ગુણશીલ ચૈત્ય, શ્રેણિક રાજા હતા. તે કાળે તે સમયે ભગવંત મહાવીર પધાર્યા, પર્ષદા નીકળી. શ્રેણિક નીકળ્યો. ધર્મકથા કહી, પર્ષદા પાછી ગઈ. ત્યારે શ્રેણિકે ભગવંત મહાવીરની પાસે ધર્મ સાંભળી, સમજીને ભગવંતને વંદન – નમન કર્યા. પછી પૂછ્યું – હે ભગવન્‌ ! આ ઇન્દ્રભૂતિ આદિ ૧૪,૦૦૦ શ્રમણોમાં કયા
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