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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-२ दुःखानुभव | Hindi | 122 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आसेवित्ता एतमट्ठं, इच्चेवेगे समुट्ठिया, तम्हा तं बिइयं नो सेवए।
निस्सारं पासिय नाणी, उववायं चवणं नच्चा। अनन्नं चर माहणे!
से न छणे न छनावए, छणंतं णाणुजाणइ।
निव्विंद नंदिं अरते पयासु।
अणोमदंसी निसन्ने पावेहिं कम्मेहिं। Translated Sutra: इस प्रकार कईं व्यक्ति इस अर्थ का आसेवन करके संयम – साधना में संलग्न हो जाते हैं। इसलिए वे फिर दुबारा उनका आसेवन नहीं करते। हे ज्ञानी ! विषयों को निस्सार देखकर (तू विषयाभिलाषा मत कर)। केवल मनुष्यों के ही, जन्म – मरण नहीं, देवों के भी उपपात और च्यवन निश्चित हैं, यह जानकर (विषय – सुखों में आसक्त मत हो)। हे माहन ! तू अनन्य | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-३ अपरिग्रह | Hindi | 167 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ‘जुद्धारिहं खलु दुल्लहं’।
जहेत्थ कुसलेहि परिण्णा-विवेगे भासिए।
चुए हु बाले गब्भाइसु रज्जइ।
अस्सिं चेयं पव्वुच्चति, रूवंसि वा छणंसि वा।
से हु एगे संविद्धपहे मुनी, अन्नहा लोगमुवेहमाणे।
इति कम्मं परिण्णाय, सव्वसो से ण हिंसति। संजमति नोपगब्भति।
उवेहमानो पत्तेयं सायं।
वण्णाएसी नारभे कंचणं सव्वलोए।
एगप्पमुहे विदिसप्पइण्णे, निव्विन्नचारी अरए पयासु। Translated Sutra: (अन्तर – भाव) युद्ध के योग अवश्य ही दुर्लभ है। जैसे कि तीर्थंकरों ने इस (भावयुद्ध) के परिज्ञा और विवेक (ये दो शस्त्र) बताए हैं। (मोक्ष – साधना के लिए उत्थित होकर) भ्रष्ट होनेवाला अज्ञानी साधक गर्भ आदि में फँस जाता है। इस अर्हत् शासनमें यह कहा जाता है – रूप (तथा रसादि)में एवं हिंसामें (आसक्त होनेवाला उत्थित होकर | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-२ दुःखानुभव | Gujarati | 122 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आसेवित्ता एतमट्ठं, इच्चेवेगे समुट्ठिया, तम्हा तं बिइयं नो सेवए।
निस्सारं पासिय नाणी, उववायं चवणं नच्चा। अनन्नं चर माहणे!
से न छणे न छनावए, छणंतं णाणुजाणइ।
निव्विंद नंदिं अरते पयासु।
अणोमदंसी निसन्ने पावेहिं कम्मेहिं। Translated Sutra: વધ – પરિતાપ આદિનું આસેવન કરી, છેલ્લે તે સર્વેનો ત્યાગ કરી કેટલાયે પ્રાણી સંયમમાર્ગમાં ઉદ્યમવંત થયા છે. તેથી જ્ઞાની પુરુષો કામભોગને અસાર સમજી છોડ્યા પછી ફરી મૃષાવાદ આદિ અસંયમનું સેવન ન કરે. હે જ્ઞાની મુનિ! વિષયોને સાર રહિત જાણો, દેવોના પણ ઉપપાત – ચ્યવન અર્થાત્ જન્મ અને મરણ નિશ્ચિત છે તે જાણીને હે માહણ ! તું અનન્ય | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-३ अपरिग्रह | Gujarati | 167 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ‘जुद्धारिहं खलु दुल्लहं’।
जहेत्थ कुसलेहि परिण्णा-विवेगे भासिए।
चुए हु बाले गब्भाइसु रज्जइ।
अस्सिं चेयं पव्वुच्चति, रूवंसि वा छणंसि वा।
से हु एगे संविद्धपहे मुनी, अन्नहा लोगमुवेहमाणे।
इति कम्मं परिण्णाय, सव्वसो से ण हिंसति। संजमति नोपगब्भति।
उवेहमानो पत्तेयं सायं।
वण्णाएसी नारभे कंचणं सव्वलोए।
एगप्पमुहे विदिसप्पइण्णे, निव्विन्नचारी अरए पयासु। Translated Sutra: હે સાધક આ કર્મ – શરીર સાથે યુદ્ધ કર, બીજા સાથે લડતા શું મળશે ? ભાવયુદ્ધ કરવા માટે જે ઔદારિક શરીર આદિ મળેલ છે, તે વારંવારપ્રાપ્ત થવા દુર્લભ છે. તીર્થંકરોએ આત્મયુદ્ધના સાધનરૂપે સમ્યક્ જ્ઞાન અને સમ્યક્ આચારરૂપ વિવેક બતાવેલ છે. ધર્મથી ચ્યુત અજ્ઞાની જીવ ગર્ભાદિમાં ફસાય છે. આ જિન – શાસનમાં એવું કહ્યું છે – જે રૂપાદિમાં | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-१० समाधि |
Hindi | 475 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुयक्खायधम्मे वितिगिच्छतिण्णे लाढे चरे आयतुले पयासु ।
आयं न कुज्जा इह जीवियट्ठी चयं न कुज्जा सुतवस्सि भिक्खू ॥ Translated Sutra: जो स्वाख्यातधर्मी एवं विचिकित्सातीर्ण है वह प्राणियों पर आत्मवत् व्यवहार कर लाढ़ देश में विचरण करे। जीवन के लिए आय न करे और सुतपस्वी भिक्षु संचय न करे। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-१० समाधि |
Hindi | 476 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्विंदियाभिणिव्वुडे पयासु चरे मुनी सव्वओ विप्पमुक्के ।
पासाहि पाणे य पुढो विसण्णे ‘दुक्खेन अट्टे’ परिपच्चमाणे ॥ Translated Sutra: मुनि प्राणियों पर सर्व – इन्द्रियों से संयत तथा सर्वथा विप्रमुक्त होकर विचरण करे। पृथक् – पृथक् रूप से विषण्ण, दुःख से आर्त और परितप्त प्राणियों को देखे। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-१० समाधि |
Hindi | 487 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गुत्ते वईए य समाहिपत्ते लेसं समाहट्टु परिव्वएज्जा ।
गिहं न छाए न वि छादएज्जा सम्मिस्सिभावं पजहे पयासु ॥ Translated Sutra: गुप्त – वाची एवं समाधि – प्राप्त (भिक्षु) विशुद्ध लेश्याओं को ग्रहण कर परिव्रजन करे, स्वयं गृहच्छादन न करे और दूसरों से न करवाए। प्रजा के साथ एक स्थान पर न रहे। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-१४ ग्रंथ |
Hindi | 594 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कालेन पुच्छे समियं पयासु आइक्खमाणो दवियस्स वित्तं ।
तं सोयकारी य पुढो पवेसे संखाइमं केवलियं समाहिं ॥ Translated Sutra: प्रजा के मध्य द्रव्य एवं चित्त के व्याख्याकार से उचित समय पर समाधि के विषय में पूछे और कैवलिक – समाधि को जानकर उसे हृदय में स्थापित करे। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-१४ ग्रंथ |
Hindi | 599 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भूयाभिसंकाए दुगुंछमाणे न निव्वहे मंतपएन गोयं ।
न किंचिमिच्छे मणुए पयासुं असाहुधम्माणि न संवएज्जा ॥ Translated Sutra: जीव – हिंसा की आशंका से जुगुप्सित मुनि मंत्र पद से गौत्र का निर्वाह न करे। वह मनुज प्रजासे कुछ भी ईच्छा न करे, असाधु धर्मों का संवाद न करे। | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-१४ ग्रंथ |
Gujarati | 594 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कालेन पुच्छे समियं पयासु आइक्खमाणो दवियस्स वित्तं ।
तं सोयकारी य पुढो पवेसे संखाइमं केवलियं समाहिं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૯૧ | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-१४ ग्रंथ |
Gujarati | 599 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भूयाभिसंकाए दुगुंछमाणे न निव्वहे मंतपएन गोयं ।
न किंचिमिच्छे मणुए पयासुं असाहुधम्माणि न संवएज्जा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૯૬ | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-१० समाधि |
Gujarati | 475 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुयक्खायधम्मे वितिगिच्छतिण्णे लाढे चरे आयतुले पयासु ।
आयं न कुज्जा इह जीवियट्ठी चयं न कुज्जा सुतवस्सि भिक्खू ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૭૩ | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-१० समाधि |
Gujarati | 476 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्विंदियाभिणिव्वुडे पयासु चरे मुनी सव्वओ विप्पमुक्के ।
पासाहि पाणे य पुढो विसण्णे ‘दुक्खेन अट्टे’ परिपच्चमाणे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૭૩ | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-१० समाधि |
Gujarati | 487 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गुत्ते वईए य समाहिपत्ते लेसं समाहट्टु परिव्वएज्जा ।
गिहं न छाए न वि छादएज्जा सम्मिस्सिभावं पजहे पयासु ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૮૫ |