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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
उद्देशक-३ अनवद्यतप | Hindi | 149 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमं निरुद्धाउयं संपेहाए
दुक्खं च जाण अदुवागमेस्सं।
पुढो फासाइं च फासे।
लोयं च पास विप्फंदमाणं।
जे निव्वुडा पावेहिं कम्मेहिं, अनिदाणा ते वियाहिया।
तम्हा तिविज्जो नो पडिसंजलिज्जासि। Translated Sutra: यह मनुष्य – जीवन अल्पायु है, यह सम्प्रेक्षा करता हुआ साधक अकम्पित रहकर क्रोध का त्याग करे। (क्रोधादि से) वर्तमानमें अथवा भविष्यमें उत्पन्न होनेवाले दुःखों को जाने। क्रोधी पुरुष भिन्न – भिन्न नरकादि स्थानोंमें विभिन्न दुःखों का अनुभव करता है। प्राणीलोक को इधर – उधर भाग – दौड़ करते देख ! जो पुरुष पापकर्मों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-५ चरम | Hindi | 766 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! चरमा वि नेरइया? परमा वि नेरइया? हंता अत्थि।
से नूनं भंते! चरमेहिंतो नेरइएहिंतो परमा नेरइया महाकम्मतरा चेव, महाकिरियतरा चेव, महस्सवतरा चेव, महावेयणतरा चेव; परमेहिंतो वा नेरइएहिंतो चरमा नेरइया अप्पकम्मतरा चेव, अप्पकिरियतरा चेव, अप्पस्सवतरा चेव, अप्पवेयणतरा चेव?
हंता गोयमा! चरमेहिंतो नेरइएहिंतो परमा जाव महावेयणतरा चेव, परमेहिंतो वा नेरइएहिंतो चरमा नेरइया जाव अप्पवेयणतरा चेव।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जाव अप्पवेयणतरा चेव?
गोयमा! ठितिं पडुच्च। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ जाव अप्पवेयणतरा चेव।
अत्थि णं भंते! चरमा वि असुरकुमारा? परमा वि असुरकुमारा? Translated Sutra: भगवन् ! क्या नैरयिक चरम (अल्पायुष्क) भी हैं और परम (अधिक आयुष्य वाले) भी हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! क्या चरम नैरयिकों की अपेक्षा परम नैरयिक महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महास्रव वाले और महा वेदना वाले हैं ? तथा परम नैरयिकों की अपेक्षा चरम नैरयिक अल्पकर्म, अल्पक्रिया, अल्पास्रव और अल्पवेदना वाले हैं ? हाँ, गौतम | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-६ आयु | Hindi | 244 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहन्नं भंते! जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति?
गोयमा! पाणे अइवाएत्ता, मुसं वइत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अनेस-णिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेत्ता–एवं खलु जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति?
कहन्नं भंते! जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति?
गोयमा! नो पाणे अइवाएत्ता, नो मुसं वइत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा फासुएणं एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेत्ता–एवं खलु जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति।
कहन्नं भंते! जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति?
गोयमा! पाणे अइवाएत्ता, मुसं वइत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा हीलित्ता निंदित्ता खिसित्ता गरहित्ता अवमन्नित्ता Translated Sutra: भगवन् ! जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म किस कारण से बाँधते हैं ? गौतम ! तीन कारणों से जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म बाँधते हैं – (१) प्राणियों की हिंसा करके, (२) असत्य भाषण करके और (३) तथारूप श्रमण या माहन को अप्रासुक, अनेषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम – दे कर। जीव अल्पायुष्कफल वाला कर्म बाँधते हैं भगवन् ! जीव दीर्घायु | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-४ प्राणातिपात | Hindi | 735 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जावतिया णं भंते! वरा अंधगवण्हिणो जीवा तावतिया परा अंधगवण्हिणो जीवा?
हंता गोयमा! जावतिया वरा अंधगवण्हिणो जीवा तावतिया परा अंधगवण्हिणो जीवा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जितने अल्प आयुवाले अन्धकवह्नि जीव हैं, उतने ही उत्कृष्ट आयुवाले अन्धकवह्नि जीव हैं ? हाँ, गौतम! जितने अल्पायुष्क अन्धकवह्नि जीव हैं, उतने ही उत्कृष्टायुष्क अन्धकवह्नि जीव हैं। भगवन् ! इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ हिंसा |
Hindi | 8 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कयरे? जे ते सोयरिया मच्छबंधा साउणिया वाहा कूरकम्मादीवित बंधप्पओग तप्प गल जाल वीरल्लग आयसीदब्भवग्गुरा कूडछेलिहत्था हरिएसा ऊणिया य वीदंसग पासहत्था वनचरगा लुद्धगा य महुघात-पोतघाया एणीयारा पएणीयारा सर दह दीहिअ तलाग पल्लल परिगालण मलण सोत्तबंधण सलिलासयसोसगा विसगरलस्स य दायगा उत्तण वल्लर दवग्गिणिद्दय पलीवका।
कूरकम्मकारी इमे य बहवे मिलक्खुया, के ते?
सक जवण सवर बब्बर कायमुरुंड उड्ड भडग निण्णग पक्काणिय कुलक्ख गोड सीहल पारस कोंच अंध दविल चिल्लल पुलिंद आरोस डोंब पोक्कण गंधहारग बहलीय जल्ल रोम मास बउस मलया य चुंचुया य चूलिय कोंकणगा मेद पल्हव मालव मग्गर आभासिया अणक्क Translated Sutra: वे हिंसक प्राणी कौन हैं ? शौकरिक, मत्स्यबन्धक, मृगों, हिरणों को फँसाकर मारने वाले, क्रूरकर्मा वागुरिक, चीता, बन्धनप्रयोग, छोटी नौका, गल, जाल, बाज पक्षी, लोहे का जाल, दर्भ, कूटपाश, इन सब साधनों को हाथ में लेकर फिरने वाले, चाण्डाल, चिड़ीमार, बाज पक्षी तथा जाल को रखने वाले, वनचर, मधु – मक्खियों का घात करने वाले, पोतघातक, | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-१ | Hindi | 133 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तिहिं ठाणेहिं जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा–पाणे अतिवातित्ता भवति, मुसं वइत्ता भवति, तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अनेसणिज्जेणं असनपानखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता भवति–इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पगरेंति।
तिहिं ठाणेहिं जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा–नो पाणे अतिवातित्ता भवइ, नो मुसं वइत्ता भवइ, तहारूवं समणं वा माहणं वा ‘फासुएणं एसणिज्जेणं’ असनपानखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता भवइ–इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति।
तिहिं ठाणेहिं जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा–पाणे अतिवातित्ता भवइ, Translated Sutra: तीन कारणों से जीव अल्पायु रूप कर्म का बंध करते हैं, यथा – वह प्राणियों की हिंसा करता है, झूठ बोलता है, और तथारूप श्रमण – माहन को अप्रासुक अशन आहार, पान, खादिम तथा स्वादिम वहराता है, इन तीन कारणों से जीव अल्पायु रूप कर्म का बंध करते हैं। तीन कारणों से जीव दीर्घायु रूप कर्मों का बंध करते हैं, यथा – यदि वह प्राणियों | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-१ | Hindi | 249 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि अंतकिरियाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–
१. तत्थ खलु इमा पढमा अंतकिरिया–अप्पकम्मपच्चायाते यावि भवति। से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले लूहे तीरट्ठी उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी। तस्स णं नो तहप्पगारे तवे भवति, नो तहप्पगारा वेयणा भवति। तहप्पगारे पुरिसज्जाते दीहेणं परियाएणं सिज्झति बुज्झति मुच्चति परिनिव्वाति सव्वदुक्खाणमंतं करेइ, जहा–से भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी–पढमा अंतकिरिया।
२. अहावरा दोच्चा अंतकिरिया–महाकम्मपच्चायाते यावि भवति। से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले लूहे Translated Sutra: चार प्रकार की अन्त क्रियाएं कही गई हैं, उनमें प्रथम अन्तक्रिया इस प्रकार है – कोई अल्पकर्मा व्यक्ति मनुष्य – भव में उत्पन्न होता है, वह मुण्डित होकर गृहस्थावस्था से अनगार धर्म में प्रव्रजित होने पर उत्तम संयम, संवर और समाधि का पालन करने वाला रूक्षवृत्ति वाला संसार को पार करने का अभिलाषी; शास्त्राध्ययन के लिए | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Hindi | 804 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियव्वा–आउसंतो! नियंठा! इह खलु परिव्वायया वा परिव्वाइयाओ
वा अन्नयरेहिंतो तित्थायतणेहिंतो आगम्म धम्मस्सवणवत्तियं उवसंकमेज्जा?
हंता उवसंकमेज्जा।
‘किं तेसिं’ तहप्पगाराणं धम्मे आइक्खियव्वे?
हंता आइक्खियव्वे।
किं ते तहप्पगारं धम्मं सोच्चा निसम्म एवं वएज्जा–इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अनुत्तरंकेवलियं पडिपुण्णं णेयाउयं संसुद्धं सल्लकत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं निज्जाणमग्गं निव्वाणमग्गं अवितहं असंदिद्धं सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं। एत्थ ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिणिव्वंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। इमाणाए Translated Sutra: भगवान श्री गौतमस्वामी ने (पुनः) कहा – मुझे निर्ग्रन्थों से पूछना है – आयुष्मन् निर्ग्रन्थो ! इस लोक में परिव्राजक अथवा परिव्राजिकाएं किन्हीं दूसरे तीर्थस्थानों से चलकर धर्मश्रवण के लिए क्या निर्ग्रन्थ साधुओं के पास आ सकती हैं ? निर्ग्रन्थ – हाँ, आ सकती हैं। श्री गौतमस्वामी – क्या उन व्यक्तियों को धर्मोपदेश | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१४ इषुकारीय |
Hindi | 447 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ते कामभोगेसु असज्जमाणा मानुस्सएसुं जे यावि दिव्वा ।
मोक्खाभिकंखी अभिजायसड्ढा तायं उवागम्म इमं उदाहु ॥ Translated Sutra: मनुष्य तथा देवता – सम्बन्धी काम भोगों में अनासक्त मोक्षाभिलाषी, श्रद्धासंपन्न उन दोनों पुत्रों ने पिता के समीप आकर कहा – ‘‘जीवन की क्षणिकता को हमने जाना है, वह विघ्न बाधाओं से पूर्ण है, अल्पायु हैं। इसलिए घर में हमें कोई आनन्द नहीं मिल रहा है। अतः आपकी अनुमति चाहते हैं कि हम मुनिधर्म का आचरण करें।’’ सूत्र |