Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures
Search :

Search Results (14)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 283 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–१. नाणावरणिज्जं, २. दरिसणावरणिज्जं, ३. वेदणिज्जं, ४. मोहणिज्जं, ५. आउगं, ६. नामं, ७. गोयं, ८. अंतराइयं। नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं बंधट्ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्म-ट्ठिती–कम्मनिसेओ। दरिसावरणिज्जं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्म-ट्ठिती–कम्मनिसेओ। वेदणिज्जं जहन्नेणं दो समया, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही गई है ? गौतम ! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं – ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय यावत्‌ अन्तराय। भगवन्‌ ! ज्ञानावरणीय कर्म की बन्धस्थिति कितने काल की कही गई है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है। उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। अबाधाकाल
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Gujarati 283 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–१. नाणावरणिज्जं, २. दरिसणावरणिज्जं, ३. वेदणिज्जं, ४. मोहणिज्जं, ५. आउगं, ६. नामं, ७. गोयं, ८. अंतराइयं। नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं बंधट्ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्म-ट्ठिती–कम्मनिसेओ। दरिसावरणिज्जं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्म-ट्ठिती–कम्मनिसेओ। वेदणिज्जं जहन्नेणं दो समया, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ,

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! કર્મપ્રકૃતિ કેટલી છે ? ગૌતમ ! આઠ કર્મપ્રકૃતિ છે. તે આ – જ્ઞાનાવરણીય, દર્શનાવરણીય, અંતરાય, મોહનીય, નામ, ગોત્ર, વેદનીય અને આયુ. ભગવન્‌ ! જ્ઞાનાવરણીય કર્મની બંધસ્થિતિ કેટલા કાળની છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટથી ૩૦ કોડાકોડી સાગરોપમ, ૩૦૦૦ વર્ષ અબાધાકાળ, અબાધાકાળ પછીની જે કર્મસ્થિતિછે તેમાં જ
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

त्रिविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 59 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थिवेदस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं बंधठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स दिवड्ढो सत्तभागो पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणो, उक्कोसेणं पन्नरस सागरोवमकोडाकोडीओ। पन्नरस वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती कम्मनिसेओ। इत्थिवेदे णं भंते! किंपगारे पन्नत्ते? गोयमा! फुंफुअग्गिसमाणे पन्नत्ते। सेत्तं इत्थियाओ।

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! स्त्रीवेदकर्म की कितने काल की बन्धस्थिति है ? गौतम ! जघन्य से पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम देढ़ सागरोपम के सातवें भाग और उत्कर्ष से पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागरोपम की बन्धस्थिति है। पन्द्रह सौ वर्ष का अबाधाकाल है। अबाधाकाल से रहित जो कर्मस्थिति है वही अनुभवयोग्य होती है, अतः वही कर्मनिषेक है। हे भगवन्‌
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

त्रिविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 65 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसवेदस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं बंधट्ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अट्ठ संवच्छराणि, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ, दसवाससयाइं अबाहा अबाहूणिया कम्मट्ठिती कम्म-निसेओ। पुरिसवेदे णं भंते! किंपकारे पन्नत्ते? गोयमा! दवग्गिजालसमाणे पन्नत्ते। सेत्तं पुरिसा।

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! पुरुषवेद की कितने काल की बंधस्थिति है ? गौतम ! जघन्य आठ वर्ष और उत्कृष्ट दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम। एक हजार वर्ष का अबाधाकाल है। अबाधाकाल से रहित स्थिति कर्मनिषेक है। भगवन्‌! पुरुषवेद किस प्रकार का हे ? गौतम ! वन की अग्निज्वाला के समान है।
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

त्रिविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 69 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नपुंसगवेदस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं बंधठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स दोन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागेण ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडा-कोडीओ, दोन्नि य वाससहस्साइं अबाधा, अबाहूणिया कम्मठिती कम्मनिसेगो। नपुंसगवेदे णं भंते! किंपगारे पन्नत्ते? गोयमा! महानगरदाहसमाने पन्नत्ते समणाउसो! से तं नपुंसगा।

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! नपुंसकवेद कर्म की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य से सागरोपम के (दो सातिया भाग) भाग में पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम और उत्कृष्ट से बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की बंधस्थिति कही गई है। दो हजार वर्ष का अबाधाकाल है। अबाधाकाल से हीन स्थिति का कर्मनिषेक है अर्थात्‌ अनुभवयोग्य कर्मदलिक की रचना है। भगवन्‌
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

त्रिविध जीव प्रतिपत्ति

Gujarati 59 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थिवेदस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं बंधठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स दिवड्ढो सत्तभागो पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणो, उक्कोसेणं पन्नरस सागरोवमकोडाकोडीओ। पन्नरस वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती कम्मनिसेओ। इत्थिवेदे णं भंते! किंपगारे पन्नत्ते? गोयमा! फुंफुअग्गिसमाणे पन्नत्ते। सेत्तं इत्थियाओ।

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! સ્ત્રીવેદ કર્મની કેટલા કાળની બંધસ્થિતિ કહી છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી પલ્યોપમનો અસંખ્યાત ભાગ ન્યૂન દોઢ સાગરોપમનો સાતમો ભાગ છે. ઉત્કૃષ્ટ – પંદર કોડાકોડી સાગરોપમ સ્ત્રીવેદ બંધની સ્થિતિ છે. ૧૫૦૦ વર્ષનો અબાધાકાળ છે, અબાધાકાળ રૂપ જે કર્મ સ્થિતિ છે, તેમાં કર્મનિષેક રચના થતી નથી. ભગવન્‌ ! સ્ત્રીવેદ કયા પ્રકારે
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

त्रिविध जीव प्रतिपत्ति

Gujarati 65 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसवेदस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं बंधट्ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अट्ठ संवच्छराणि, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ, दसवाससयाइं अबाहा अबाहूणिया कम्मट्ठिती कम्म-निसेओ। पुरिसवेदे णं भंते! किंपकारे पन्नत्ते? गोयमा! दवग्गिजालसमाणे पन्नत्ते। सेत्तं पुरिसा।

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! પુરુષવેદ કર્મની કેટલો કાળ બંધસ્થિતિ છે ? ગૌતમ ! જઘન્ય આઠ વર્ષ, ઉત્કૃષ્ટ દશ સાગરોપમ કોડાકોડી પુરુષવેદનીબંધ સ્થિતિ છે. ૧૦૦૦વર્ષ તેનો અબાધાકાળ છે, અબાધાકાળને છોડીને પછીની કર્મસ્થિતિમાં કર્મનિષેક રચના થાય છે. ભગવન્‌ ! પુરુષવેદ કેવા પ્રકારે છે ? ગૌતમ ! વનની અગ્નિજ્વાલા સમાન છે. પુરુષ અધિકાર પૂરો થયો.
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

त्रिविध जीव प्रतिपत्ति

Gujarati 69 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नपुंसगवेदस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं बंधठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स दोन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागेण ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडा-कोडीओ, दोन्नि य वाससहस्साइं अबाधा, अबाहूणिया कम्मठिती कम्मनिसेगो। नपुंसगवेदे णं भंते! किंपगारे पन्नत्ते? गोयमा! महानगरदाहसमाने पन्नत्ते समणाउसो! से तं नपुंसगा।

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! નપુંસકવેદ કર્મની કેટલા કાળની બંધસ્થિતિ છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી બે સપ્તમાંશ સાગરોપમમાં પલ્યોપમનો અસંખ્યાતભાગ ન્યૂન. ઉત્કૃષ્ટ વીશ સાગરોપમ કોડાકોડી. ૨૦૦૦ વર્ષ અબાધાકાળ. આ અબાધાકાળ હીન કર્મસ્થિતિ તે કર્મનિષેક છે. ભગવન્‌ ! નપુંસકવેદ કેવા પ્રકારે છે ? ગૌતમ ! નપુંસકવેદ મહાનગરના દાહ સમાન કહ્યો છે.
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२३ कर्मप्रकृति

उद्देशक-२ Hindi 541 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो। निद्दापंचयस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स तिन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडा-कोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो। दंसणचउक्कस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ज्ञानावरणीयकर्म की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट तीस कोड़ा कोड़ी सागरोपम। उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। सम्पूर्ण कर्मस्थिति में से अबाधाकाल को कम करने पर कर्मनिषेक का काल है। निद्रापंचक की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम का असंख्या – तवाँ भाग कम, सागरोपम
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२३ कर्मप्रकृति

उद्देशक-२ Hindi 543 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बेइंदिया णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवम-पणुवीसाए तिन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति। एवं णिद्दापंचगस्स वि। एवं जहा एगिंदियाणं भणियं तहा बेइंदियाण वि भाणियव्वं, नवरं–सागरोवमपणुवीसाए सह भाणियव्वा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणा, सेसं तं चेव, जत्थ एगिंदिया णं बंधंति तत्थ एते वि न बंधंति। बेइंदिया णं भंते! जीवा मिच्छत्तवेयणिज्जस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवम-पणुवीसं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति। तिरिक्खजोणियाउअस्स जहन्नेण

Translated Sutra: भगवन्‌ ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म का कितने काल का बन्ध करते हैं ? गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पच्चीस सागरोपम के तीन सप्तमांश भाग का और उत्कृष्ट वही परिपूर्ण बाँधते हैं। इसी प्रकार निद्रापंचक की स्थिति जानना। इसी प्रकार एकेन्द्रिय जीवों की बन्धस्थिति के समान द्वीन्द्रिय जीवों की
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२३ कर्मप्रकृति

उद्देशक-२ Gujarati 541 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो। निद्दापंचयस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स तिन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडा-कोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो। दंसणचउक्कस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं

Translated Sutra: જ્ઞાનાવરણીય કર્મની કેટલા કાળની સ્થિતિ છે ? ગૌતમ ! જઘન્ય અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ ૩૦ કોડાકોડી સાગરોપમ, અબાધા કાળ ૩૦૦ વર્ષ, અબાધાકાળ હીન કર્મની સ્થિતિ તે કર્મનિષેક છે. નિદ્રા પંચક કર્મની કેટલા કાળની સ્થિતિ છે ? જઘન્ય પલ્યોપમનો અસંખ્યાત ભાગ ન્યૂન ૩/૭ સાગરોપમ અને ઉત્કૃષ્ટ ૩૦ કોડાકોડી સાગરોપમ છે. ૩૦૦૦ વર્ષ અબાધાકાળ,
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२३ कर्मप्रकृति

उद्देशक-२ Gujarati 543 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बेइंदिया णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवम-पणुवीसाए तिन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति। एवं णिद्दापंचगस्स वि। एवं जहा एगिंदियाणं भणियं तहा बेइंदियाण वि भाणियव्वं, नवरं–सागरोवमपणुवीसाए सह भाणियव्वा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणा, सेसं तं चेव, जत्थ एगिंदिया णं बंधंति तत्थ एते वि न बंधंति। बेइंदिया णं भंते! जीवा मिच्छत्तवेयणिज्जस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवम-पणुवीसं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति। तिरिक्खजोणियाउअस्स जहन्नेण

Translated Sutra: ભગવન્‌! બેઇન્દ્રિય જીવો જ્ઞાનાવરણીય કર્મનો કેટલો બંધ કરે છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી પલ્યોપમનો અસંખ્યાત ભાગ ન્યૂન સાગરોપમના પચ્ચીશ ૩/૭ ભાગ અને ઉત્કૃષ્ટથી તેટલો જ પૂર્ણ બંધ કરે. એમ નિદ્રાપંચકનો બંધ પણ જાણવો. એમ એકેન્દ્રિયોવત્‌ બેઇન્દ્રિયો પણ કહેવા. પરંતુ પલ્યોપમના અસં૦ ન્યૂન પચ્ચીશ ગણા સાગરોપમનો બંધ કહેવો. બાકી બધું
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-७०

Hindi 148 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे वीतिक्कंते सत्तरिए राइंदिएहिं सेसेहिं वासावासं पज्जोसवेइ। पासे णं अरहा पुरिसादाणीए सत्तरिं वासाइं बहुपडिपुण्णाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे। वासुपुज्जे णं अरहा सत्तरिं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। मोहनिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तरिं सागरोवमकोडाकोडीओ अबाहूणिया कम्मठिई कम्मनिसेगे पन्नत्ते। माहिंदस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सत्तरिं सामाणियसाहस्सीओ पन्नत्ताओ।

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर चतुर्मास प्रमाण वर्षाकाल के बीस दिन अधिक एक मास (पचास दिन) व्यतीत हो जाने पर और सत्तर दिनों के शेष रहने पर वर्षावास करते थे। पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत्‌ परिपूर्ण सत्तर वर्ष तक श्रमण – पर्याय का पालन करके सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। वासुपूज्य
Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय-७०

Gujarati 148 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे वीतिक्कंते सत्तरिए राइंदिएहिं सेसेहिं वासावासं पज्जोसवेइ। पासे णं अरहा पुरिसादाणीए सत्तरिं वासाइं बहुपडिपुण्णाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे। वासुपुज्जे णं अरहा सत्तरिं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। मोहनिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तरिं सागरोवमकोडाकोडीओ अबाहूणिया कम्मठिई कम्मनिसेगे पन्नत्ते। माहिंदस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सत्तरिं सामाणियसाहस्सीओ पन्नत्ताओ।

Translated Sutra: શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે વર્ષાઋતુના ૨૦ અહોરાત્ર સહિત એક માસ વ્યતીત થતાં અને ૭૦ અહોરાત્ર શેષ રહેતા વર્ષાવાસ નિવાસ કર્યો. પુરુષાદાનીય અરિહંત પાર્શ્વ બહુ પ્રતિપૂર્ણ ૭૦ વર્ષ શ્રમણપર્યાય પાળીને સિદ્ધ, બુદ્ધ યાવત્‌ દુઃખમુક્ત થયા. અર્હત્‌ વાસુપૂજ્ય – ૭૦ ધનુષ ઊંચા હતા. મોહનીય કર્મની સ્થિતિ ૭૦ કોડાકોડી સાગરોપમ છે.
Showing 1 to 50 of 14 Results