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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ सामायिक |
Hindi | 1 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] Translated Sutra: अरिहंत को नमस्कार हो, सिद्ध को नमस्कार हो, आचार्य को नमस्कार हो, उपाध्याय को नमस्कार हो, लोक में रहे सर्व साधु को नमस्कार हो, इस पाँच (परमेष्ठि) को किया गया नमस्कार सर्व पाप का नाशक है। सर्व मंगल में प्रथम (उत्कृष्ट) मंगल है। अरिहंत शब्द के लिए तीन पाठ हैं। अरहंत, अरिहंत और अरूहंत। यहाँ अरहंत शब्द का अर्थ है – जो | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ सामायिक |
Hindi | 2 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] करेमि भंते सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि
तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: हे भगवंत ! (हे पूज्य !) में (आपकी साक्षी में) सामायिक का स्वीकार करता हूँ यानि समभाव की साधना करता हूँ। जिन्दा हूँ तब तक सर्व सावद्य (पाप) योग का प्रत्याख्यान करता हूँ। यानि मन, वचन, काया की अशुभ प्रवृत्ति न करने का नियम करता हूँ। (जावज्जीव के लिए) मन से, वचन से, काया से (उस तरह से तीन योग से पाप व्यापार) मैं खुद न करूँ, | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ वंदन |
Hindi | 10 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए,
अणुजाणह मे मिउग्गहं निसीहि
अहोकायं काय-संफासं
खमणिज्जो मे किलामो, अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो वइक्कंतो
जत्ता भे जवणिज्जं च भे,
खामेमि खमासमणो देवसियं वइक्कमं आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाणं देवसियाए आसायणाए तित्तीसन्नयराए
जं किंचि मिच्छाए मणदुक्कडाए वयदुक्कडाए कायदुक्कडाए कोहाए माणाए मायाए लोभाए सव्वकालियाए सव्वमिच्छोवयाराए सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ
तस्स खमासमणो पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: (शिष्य कहता है) हे क्षमा (आदि दशविध धर्मयुक्त) श्रमण, (हे गुरुदेव !) आपको मैं इन्द्रिय और मन की विषय विकार के उपघात रहित निर्विकारी और निष्पाप प्राणातिपात आदि पापकारी प्रवृत्ति रहित काया से वंदन करना चाहता हूँ। मुझे आपकी मर्यादित भूमि में (यानि साड़े तीन हाथ अवग्रह रूप – मर्यादा के भीतर) नजदीक आने की (प्रवेश करने | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 11 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] करेमि भंते सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि
तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: ‘‘करेमि भंते’’ की व्याख्या – पूर्व सूत्र – २ समान जानना। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 13 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि लोगुत्तमा अरहंता लोगुत्तमा सिद्धा लोगुत्तमा साहू लोगुत्तमा केवलिपन्नत्तो धम्मो लोगुत्तमो। Translated Sutra: क्षायोपशमिक आदि भाव रूप ‘भावलोक’ में चार को उत्तम बताया है। अर्हंत, सिद्ध, साधु और केवली प्ररूपित धर्म। [अर्हंतो को सर्व शुभ प्रकृति का उदय है। यानि वो शुभ औदयिक भाव में रहते हैं। इसलिए वो भावलोक में उत्तम हैं। सिद्ध चौदह राजलोक को अन्त में मस्तक पर बिराजमान होते हैं। वो क्षेत्रलोक में उत्तम हैं। साधु श्रुतधर्म | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 14 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि सरणं पवज्जामि अरहंते सरणं पवज्जामि सिद्धे सरणं पवज्जामि साहू सरणं पवज्जामि केवलिपन्नत्तं धम्मं सरणं पवज्जामि। Translated Sutra: शरण – यानि सांसारिक दुःख की अपेक्षा से रक्षण पाने के लिए आश्रय पाने की प्रवृत्ति। ऐसे चार शरण को मैं अंगीकार करता हूँ। मैं अरिहंत – सिद्ध – साधु और केवली भगवंत के बताए धर्म का शरण अंगीकार करता हूँ। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 18 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि गोचरचरिआए भिक्खायरिआए उग्घाडकवाडउग्घाडणाए साणा-वच्छा-दारसंघट्टणाए मंडी-पाहुडियाए बलि-पाहुडियाए ठवणा-पाहुडियाए संकिए सहसागारे
अणेसणाए [पाणेसणाए] पाणभोयणाए बीयभोयणाए हरियभोयणाए पच्छाकम्मियाए पुरेकम्मियाए अदिट्ठहडाए दगसंसट्ठहडाए रयसंसट्ठहडाए परिसाडणियाए पारिट्ठावणियाए ओहासणभिक्खाए जं उग्गमेणं उप्पायणेसणाए
अपरिसुद्धं परिग्गहियं परिभुत्तं वा जं न परिट्ठवियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। (किसका ?) भिक्षा के लिए गोचरी घूमने में, लगे हुए अतिचार का (किस तरह से?) सांकल लगाए हुए या सामान्य से बन्ध किए दरवाजे – जाली आदि खोलने से कूत्ते – बछड़े या छोटे बच्चे का (केवल तिर्यंच का) संघट्टा – स्पर्श करने से, किसी बरतन आदि में अलग नीकालकर दिया गया आहार लेने से, अन्य धर्मी मूल भाजन में से | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 19 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि चाउक्कालं सज्झायस्स अकरणयाए उभओकालं भंडोवगरणस्स
अप्पडिलेहणाए दुप्पडिलेहणाए अप्पमज्जणाए दुप्पमज्जणाए
अइक्कमे वइक्कमे अइयारे अणायारे
जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। (लेकिन किसका ?) दिन और रात के पहले और अन्तिम दो प्रहर ऐसे चार काल स्वाध्याय न करने के समान अतिचार का, दिन की पहली – अन्तिम पोरिसी रूप उभयकाल से पात्र – उपकरण आदि की प्रतिलेखना (दृष्टि के द्वारा देखना) न की या अविधि से की, सर्वथा प्रमार्जना न की या अविधि से प्रमार्जना की और फिर अतिक्रम – व्यतिक्रम, | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 22 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि पंचहिं किरियाहिं काइयाए अहिगरणियाए पाउसियाए पारितावणियाए पाणाइवायकिरियाए। Translated Sutra: कायिकी, अधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी, प्राणातिपातिकी उन पाँच में से किसी क्रिया या प्रवृत्ति करने से, शब्द – रूप, गंध, रस, स्पर्श उन पाँच कामगुण से, प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह उन पाँच के विरमण यानि न रूकने से, इर्या, भाषा, एषणा, वस्त्र, पात्र लेना, रखना, मल, मूत्र, कफ, मैल, नाक का मैल को निर्जीव | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 25 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चउद्दसहिं भूयगामेहिं, पन्नरसहिं परमाहम्मिएहिं, सोलसहिं गाहासोलसएहिं, सत्तरसविहे असंजमे, अट्ठारसविहे अबंभे, एगूणवीसाए नायज्झयणेहिं, वीसाए असमाहिट्ठाणेहिं। Translated Sutra: इहलोक – परलोक आदि सात भय स्थान के कारण से, जातिमद – कुलमद आदि आँठ मद का सेवन करने से, वसति – शुद्धि आदि ब्रह्मचर्य की नौ वाड़ का पालन न करने से, क्षमा आदि दशविध धर्म का पालन न करने से, श्रावक की ग्यारह प्रतिमा में अश्रद्धा करने से, बारह तरह की भिक्षु प्रतिमा धारण न करने से या उसके विषय में अश्रद्धा करने से, अर्थाय – | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 37 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] करेमि भंते सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि
तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: ‘करेमि भंते’ – पूर्व सूत्र २ में बताए अनुसार अर्थ समझना। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 39 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स
उत्तरीकरणेणं पायच्छित्तकरणेणं विसोहीकरणेणं विसल्लीकरणेणं
पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउसग्गं।
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अन्नत्थ
ऊससिएणं नीससिएणं खासिएणं छीएणं जंभाइएणं उड्डएणं वायनिसग्गेणं भमलीए पित्तमुच्छाए
सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं
एवमाइएहिं आगारेहिं
अभग्गो अविराहिओ हुज्ज मे काउस्सग्गो
जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि
तावकायं ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: वो (ईयापथिकी विराधना के परिणाम से उत्पन्न होनेवाला) पापकर्म का पूरी तरह से नाश करने के लिए, प्रायश्चित्त करने से, विशुद्धि करने के द्वारा, शल्य रहित करने के द्वारा और तद् रूप उत्तरक्रिया करने के लिए यानि आलोचना – प्रतिक्रमण आदि से पुनः संस्करण करने के लिए मैं कायोत्सर्ग में स्थिर होता हूँ। ‘‘अन्नत्थ’’ के | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 58 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो उवट्ठिओमि अब्भिंतरपक्खियं खामेउं
इच्छं खामेमि अब्भिंतर पक्खियं पन्नरस्सण्हं दिवसाणं पन्नरसण्हं राईणं
जंकिंचि अपत्तियं परपत्तियं
भत्ते पाणे विनए वेयावच्चे आलावे संलावे उच्चासणे समासणे अंतरभासाए उवरिभासाए
जंकिंचि मज्झ विनयपरिहीणं सुहुमं वा बायरं वा
तुब्भे जाणह अहं न जाणामि
तस्स मिच्छामि दुक्कडम्। Translated Sutra: हे क्षमाश्रमण ! मैं इच्छा रखता हूँ। (क्या ईच्छा रखता है वो बताते हैं) पाक्षिक के भीतर हुए अतिचार की क्षमा माँगने के लिए उसके सम्बन्धी निवेदन करने के लिए उपस्थित हुआ हूँ। (गुरु कहते हैं खमाओ तब शिष्य बोले) ‘‘ईच्छं’’। मैं पाक्षिक के भीतर हुए अतिचार को खमाता हूँ। पंद्रह दिन और पंद्रह रात में, आहार – पानी में, विनय | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 59 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो
पिअं च मे जं मे
हट्ठाणं तुट्ठाणं अप्पायं काणं अभग्गजोगाणं सुसीलाणं सुव्वयाणं सायरिय उवज्झायाणं
नाणेणं दंसणेणं चरित्तेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणाणं
बहुसुभेणं भे दिवसो पोसहो पक्खो वइक्कंतो
अन्नो य भे कल्लालेणं
पज्जुवट्ठिओ
सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि
–तुब्भेहिं समं। Translated Sutra: हे क्षमाश्रमण (पूज्य) ! मैं ईच्छा रखता हूँ। (क्या चाहता है वो बताता है) – और मुझे प्रिय या मंजूर भी है। जो आपका (ज्ञानादि – आराधना पूर्वक पक्ष शुरू हुआ और पूर्ण हुआ वो मुझे प्रिय है) निरोगी ऐसे आपका, चित्त की प्रसन्नतावाले, आतंक से, सर्वथा रहित, अखंड़ संयम व्यापारवाले, अठ्ठारह हजार शीलांग सहित, सुन्दर पंच महाव्रत | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Hindi | 67 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परदारगमणं समणोवासओ पच्चक्खाइ
सदारसंतोसं वा पडिवज्जइ से य परदारगमणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–ओरालियपरदारगमणे वेउव्वियपरदारगमणे
सदारसंतोस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
अपरिगहियागमणे इत्तरियपरिगहियागमणे अनंगकीडा परवीवाहकरणे कामभोगतिव्वाभिलासे Translated Sutra: श्रमणोपासक को परदारागमन का त्याग करना या स्वपत्नी में संतोष रखे यानि अपनी पत्नी के साथ अब्रह्म आचरण में नियम रखे, परदारा गमन दो तरह से बताया है वो इस प्रकार – औदारिक और वैक्रिय। स्वदारा संतोष का नियम करनेवाले श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए। – अपरिगृहिता गमन, दूसरे के द्वारा परिगृहित के साथ गमन, अनंगक्रीड़ा, | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Hindi | 68 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अपरिमियपरिग्गहं समणोवासओ पच्चक्खाइ
इच्छापरिणामं उवसंपज्जइ से परिग्गहे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्तपरिग्गहे अचित्तपरिग्गहे य
इच्छापरिमाणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
धणधन्नपमाणाइक्कमे खित्तवत्थुपमाणाइक्कमे हिरन्नसुवन्नपमाणाइक्कमे दुपयचउप्पय-पमाणाइक्कमे कुवियपमाणाइक्कमे। Translated Sutra: श्रमणोपासक अपरिमित परिग्रह का त्याग करे यानि परिग्रह का परिमाण करे। वो परिग्रह दो तरीके से हैं। सचित्त और अचित्त। ईच्छा (परिग्रह) का परिमाण करनेवाले श्रावक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए। १. घण और धन के प्रमाण में, २. क्षेत्रवस्तु के प्रमाण में, ३. सोने – चाँदी के प्रमाण में, ४. द्वीपद – चतुष्पद के प्रमाण में और | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Hindi | 70 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उवभोगपरिभोगवए दुविहे पन्नत्ते तं जहा–भोअणओ कम्मओ अ,
भोअणओ समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
सचित्ताहारे सचित्तपडिबद्धाहारे अप्पउलिओसहिभक्खणया तुच्छोसहिभक्खणया दुप्पउलि- ओसहिभक्खणया। Translated Sutra: उपभोग – परिभोग व्रत दो प्रकार से – भोजनविषयक परिमाण और कर्मादानविषयक परिमाण, भोजन सम्बन्धी परिमाण करनेवाले श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए। अचित्त आहार करे, सचित्त प्रतिबद्ध आहार करे, अपक्व दुष्पक्व आहार करे, तुच्छ वनस्पति का भक्षण करे। कर्मादान सम्बन्धी नियम करनेवाले को यह पंद्रह कर्मादान जानने | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Hindi | 72 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनत्थदंडे चउव्विहे पन्नत्ते तं जहा–
अवज्झाणारिए पमत्तायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे
अनत्थदंडवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
कंदप्पे कुक्कुइए मोहरिए संजुत्ताहिगरणे उवभोगपरिभोगाइरेगे। Translated Sutra: अनर्थदंड़ चार प्रकार से बताया है वो इस प्रकार – अपध्यान – प्रमादाचरण – हत्याप्रदान और पापकर्मोपदेश। अनर्थदंड़ विरमण व्रत धारक श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए वो इस प्रकार – काम विकार सम्बन्ध से हुआ अतिचार, कुत्सित चेष्टा, मौखर्य, वाचालता, हत्या अधिकरण का इस्तमाल, भोग का अतिरेक। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Hindi | 79 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पोसहोववासे चउव्विहे पन्नत्ते तं जहा–
आहारपोसहे सरीरसक्कारपोसहे बंभचेरपोसहे अव्वावारपोसहे,
पोसहोववासस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-सिज्जासंथारए, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-सिज्जासंथारए, अप्पडि-लेहिय-दुप्पडिलेहिय-उच्चारपासवणभूमीओ, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-उच्चारपासवणभूमीओ, पोसहोववासस्स सम्मं अननुपालणया। Translated Sutra: पौषधोपवास चार तरह से बताया है वो इस प्रकार – आहार पौषध, देह सत्कार पौषध, ब्रह्मचर्य पौषध और अव्यापार पौषध। पौषधोपवास, व्रतधारी श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए, वो इस प्रकार – अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित, शय्या संथारो, अप्रमार्जित, दुष्प्रमार्जित मल – मूत्र त्याग भूमि, पौषधोपवास की सम्यक् परिपालना | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Hindi | 80 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अतिहिसंविभागो नाम नायागयाणं कप्पणिज्जाणं अन्नपाणाईणं दव्वाणं देसकालसद्धा-सक्कारकमजुअं पराए भत्तीए आयाणुग्गहबुद्धीए संजयाणं दानं,
अतिहिंसविभागस्स समणोवसएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
सच्चित्तनिक्खेवणया सचित्तपिहणया कालाइक्कमे परवएसे मच्छरिया य। Translated Sutra: अतिथि संविभाग यानि साधु – साध्वी को कल्पनीय अन्न – पानी देना, देश, काल, श्रद्धा, सत्कार युक्त श्रेष्ठ भक्तिपूर्वक अनुग्रह बुद्धि से संयतो को दान देना। वो अतिथि संविभाग व्रतयुक्त श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए। वो इस प्रकार – अचित्त निक्षेप, सचित्त के द्वारा ढूँढ़ना, भोजनकाल बीतने के बाद दान देना, | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Hindi | 81 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थं पुण समणोवासगधम्मे पंचाणुव्वयाइं तिन्नि गुणव्वयाइं आवकहियाइं चत्तारि सिक्खा-वयाइं इत्तरियाइं एयस्स पुणो समणोवासगधम्मस्स मूलवत्थु सम्मत्तं तं जहा–
तं निसग्गेण वा अभिगमेणं वा पंच अइयारविसुद्धं अणुव्वय-गुणव्वयाइं च अभिग्गा अन्नेवि पडिमादओ विसेसकरणजोगा।
अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणया इमीसे समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, काम-भोगासंसप्पओगे। Translated Sutra: इस प्रकार श्रमणोपासक धर्म में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और यावत्कथिक या इत्वरकथिक यानि चिरकाल या अल्पकाल के चार शिक्षाव्रत बताए हैं। इन सबसे पहले श्रमणोपासक धर्म में मूल वस्तु सम्यक्त्व है। वो निसर्ग से और अभिमान से दो प्रकार से है। पाँच अतिचार रहित विशुद्ध अणुव्रत और गुणव्रत की प्रतिज्ञा के सिवा दूसरी | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ सामायिक |
Gujarati | 2 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] करेमि भंते सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि
तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: હે ભદંત ! હું સામાયિક સ્વીકાર કરું છું. જાવજ્જીવને માટે સર્વે સાવદ્ય યોગના પચ્ચક્ખાણ કરું છું. (કેવી રીતે?) ત્રિવિધ, ત્રિવિધ વડે (અર્થાત્) મન, વચન, કાયા વડે હું (તે) કરું નહીં, કરાવું નહીં, કરનારને અનુમોદું નહીં. હે ભદંત ! હું તેને પ્રતિક્રમું છું, નિંદું છું, ગર્હુ છું. (મારા તે ભૂતકાલીન પર્યાયરૂપ) આત્માને વોસિરાવું | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ वंदन |
Gujarati | 10 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए,
अणुजाणह मे मिउग्गहं निसीहि
अहोकायं काय-संफासं
खमणिज्जो मे किलामो, अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो वइक्कंतो
जत्ता भे जवणिज्जं च भे,
खामेमि खमासमणो देवसियं वइक्कमं आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाणं देवसियाए आसायणाए तित्तीसन्नयराए
जं किंचि मिच्छाए मणदुक्कडाए वयदुक्कडाए कायदुक्कडाए कोहाए माणाए मायाए लोभाए सव्वकालियाए सव्वमिच्छोवयाराए सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ
तस्स खमासमणो पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: શિષ્ય કહે છે – હે ક્ષમા (આદિ દશવિધ ધર્મથી યુક્ત) શ્રમણ ! આપને હું ઇન્દ્રિયો તથા મનની વિષયવિકારના ઉપઘાત રહિત, નિર્વિકારી અને નિષ્પાપ કાયા વડે વંદન કરવાને ઇચ્છું છું. મને આપની મર્યાદિત ભૂમિમાં પ્રવેશવાની અનુજ્ઞા આપો. નિસીહી (એમ કહી શિષ્ય અવગ્રહમાં પ્રવેશે.) અધોકાય એટલે આપના ચરણને હું મારી કાયા વડે સ્પર્શુ છું. | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Gujarati | 11 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] करेमि भंते सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि
तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: કરેમિ ભંતે! × યાવત્ વોસિરામિ. (પૂર્વ સૂત્ર ૨ મુજબ તેનો અર્થ જાણવો) | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Gujarati | 18 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि गोचरचरिआए भिक्खायरिआए उग्घाडकवाडउग्घाडणाए साणा-वच्छा-दारसंघट्टणाए मंडी-पाहुडियाए बलि-पाहुडियाए ठवणा-पाहुडियाए संकिए सहसागारे
अणेसणाए [पाणेसणाए] पाणभोयणाए बीयभोयणाए हरियभोयणाए पच्छाकम्मियाए पुरेकम्मियाए अदिट्ठहडाए दगसंसट्ठहडाए रयसंसट्ठहडाए परिसाडणियाए पारिट्ठावणियाए ओहासणभिक्खाए जं उग्गमेणं उप्पायणेसणाए
अपरिसुद्धं परिग्गहियं परिभुत्तं वा जं न परिट्ठवियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: હું પ્રતિક્રમણ કરું છું. (શેનું?) ભિક્ષા માટે ગૌચરી ફરવામાં લાગેલા અતિચારોનું (કઈ રીતે?) બંધ કરેલા બારણા – જાળી વગેરે ઉઘાડવાથી, કૂતરા – વાછરડાં કે નાના બાળકનો સંઘટ્ટો થવાથી, મંડી પ્રાભૃતિક, બલિ પ્રાભૃતિક કે સ્થાપના પ્રાભૃતિક લેવાથી, શંકિત – સહસાકારિત (આહાર લેવાથી), અનેષણાથી, જીવોવાળી વસ્તુનું – બીજનું કે હરિતનું | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Gujarati | 19 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि चाउक्कालं सज्झायस्स अकरणयाए उभओकालं भंडोवगरणस्स
अप्पडिलेहणाए दुप्पडिलेहणाए अप्पमज्जणाए दुप्पमज्जणाए
अइक्कमे वइक्कमे अइयारे अणायारे
जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: હું પ્રતિક્રમણ કરું છું. (શેનું?) ચાર કાળ સ્વાધ્યાય ન કરવા. રૂપ અતિચારોનું, ઉભયકાળ ભાંડ અને ઉપકરણની પડિલેહણા ન કરી કે દુષ્ટ પડિલેહણા કરી, પ્રમાર્જના ન કરી કે દુષ્પ્રમાર્જના કરી, અતિક્રમ – વ્યતિક્રમ – અતિચાર કે અનાચારના સેવનરૂપ મેં જે કોઈ દૈવસિક અતિચાર કર્યો હોય, તેનું મિચ્છામિ દુક્કડમ્ – મારું દુષ્કૃત મિથ્યા | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Gujarati | 37 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] करेमि भंते सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि
तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: હે ભગવન્ ! હું સામાયિકનો સ્વીકાર કરું છું – યાવત્ – મારા (બહિર) આત્માને વોસિરાવું છું. (આખું સૂત્ર જોવા માટે જુઓ સૂત્ર – ૨) | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Gujarati | 39 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स
उत्तरीकरणेणं पायच्छित्तकरणेणं विसोहीकरणेणं विसल्लीकरणेणं
पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउसग्गं।
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अन्नत्थ
ऊससिएणं नीससिएणं खासिएणं छीएणं जंभाइएणं उड्डएणं वायनिसग्गेणं भमलीए पित्तमुच्छाए
सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं
एवमाइएहिं आगारेहिं
अभग्गो अविराहिओ हुज्ज मे काउस्सग्गो
जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि
तावकायं ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: તેનું ઉત્તરીકરણ કરવા માટે, પ્રાયશ્ચિત્ત કરવા વડે, વિશુદ્ધિ કરવા વડે, શલ્ય રહિત કરવા વડે પાપકર્મોના નિર્ઘાતનને માટે હું કાયોત્સર્ગમાં સ્થિર થાઉં છું. અન્નત્થ (સિવાય કે, નીચેના કારણો સિવાય) શ્વાસ લેવાથી, શ્વાસ મૂકવાથી, ઉધરસથી, છીંકથી, બગાસાથી, ઓડકારથી, વાતનિસર્ગથી, ભ્રમરીથી, પિત્ત મૂર્છાથી. સૂક્ષ્મ અંગ સંચાલનથી, | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Gujarati | 58 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो उवट्ठिओमि अब्भिंतरपक्खियं खामेउं
इच्छं खामेमि अब्भिंतर पक्खियं पन्नरस्सण्हं दिवसाणं पन्नरसण्हं राईणं
जंकिंचि अपत्तियं परपत्तियं
भत्ते पाणे विनए वेयावच्चे आलावे संलावे उच्चासणे समासणे अंतरभासाए उवरिभासाए
जंकिंचि मज्झ विनयपरिहीणं सुहुमं वा बायरं वा
तुब्भे जाणह अहं न जाणामि
तस्स मिच्छामि दुक्कडम्। Translated Sutra: હે ક્ષમાશ્રમણ ! હું ઇચ્છું છું (શું ?) પાક્ષિકની અંદર થયેલ અતિચારોની ક્ષમા માંગવાને, તે માટે ઉપસ્થિત થયો છું. પંદર દિવસ અને પંદર રાત્રિમાં જે કંઈ – અપ્રીતિ કે વિશેષથી અપ્રીતિ થયેલી હોય (કયા વિષયમાં ?) ભોજનમાં, પાણીમાં, વિનયમાં, વૈયાવચ્ચમાં, આલાપ – સંલાપમાં, ઉચ્ચ આસન કે સમ આસનમાં રાખવા, વચ્ચે બોલવામાં ગુરુની ઉપરવટ | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Gujarati | 59 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो
पिअं च मे जं मे
हट्ठाणं तुट्ठाणं अप्पायं काणं अभग्गजोगाणं सुसीलाणं सुव्वयाणं सायरिय उवज्झायाणं
नाणेणं दंसणेणं चरित्तेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणाणं
बहुसुभेणं भे दिवसो पोसहो पक्खो वइक्कंतो
अन्नो य भे कल्लालेणं
पज्जुवट्ठिओ
सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि
–तुब्भेहिं समं। Translated Sutra: હે ક્ષમાશ્રમણ ! હું ઇચ્છું છું. (શું ઇચ્છે છે ?) મને જે પ્રિય અને માન્ય પણ છે. જે આપનો (જ્ઞાનાદિ આરાધના – પૂર્વક પક્ષ શરૂ થયો અને પૂર્ણ થયો તે મને પ્રિય છે) નિરોગી એવા આપનો, ચિત્તની પ્રસન્નતાવાળા – આતંકથી સર્વથા રહિત, અખંડ સંયમ વ્યાપારવાળા, શીલાંગ સહિત, સુવ્રતી, બીજા પણ આચાર્ય, ઉપાધ્યાય સહિત, જ્ઞાન – દર્શન – ચારિત્ર | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Gujarati | 67 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परदारगमणं समणोवासओ पच्चक्खाइ
सदारसंतोसं वा पडिवज्जइ से य परदारगमणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–ओरालियपरदारगमणे वेउव्वियपरदारगमणे
सदारसंतोस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
अपरिगहियागमणे इत्तरियपरिगहियागमणे अनंगकीडा परवीवाहकरणे कामभोगतिव्वाभिलासे Translated Sutra: શ્રમણોપાસકે પરદારાગમનના પચ્ચક્ખાણ કરવા અથવા સ્વપત્નીમાં સંતોષ રાખવો. (તે ચોથું વ્રત). તે પરદારાગમન બે ભેદે છે, તે આ પ્રમાણે – (૧) ઔદારિક પરદારાગમન, (૨) વૈક્રિય પરદારાગમન. સ્વદારા સંતોષ વ્રત લેનાર શ્રમણોપાસકે આ પાંચ અતિચાર જાણવા જોઈએ. તે આ પ્રમાણે – (૧) અપરિગૃહિતા ગમન, (૨) ઇત્વરિક પરિગૃહિતાગમન, (૩) અનંગક્રીડા, (૪) | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Gujarati | 68 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अपरिमियपरिग्गहं समणोवासओ पच्चक्खाइ
इच्छापरिणामं उवसंपज्जइ से परिग्गहे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्तपरिग्गहे अचित्तपरिग्गहे य
इच्छापरिमाणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
धणधन्नपमाणाइक्कमे खित्तवत्थुपमाणाइक्कमे हिरन्नसुवन्नपमाणाइक्कमे दुपयचउप्पय-पमाणाइक्कमे कुवियपमाणाइक्कमे। Translated Sutra: શ્રમણોપાસક અપરિમિત પરિગ્રહના પચ્ચક્ખાણ કરે. ઇચ્છાનું પરિમાણ સ્વીકાર કરે, એ પાંચમું અણુવ્રત. તે પરિગ્રહ બે ભેદે છે. તે આ પ્રમાણે – સચિત્તનો પરિગ્રહ અને અચિત્તનો પરિગ્રહ. ઇચ્છા પરિમાણ કરેલા શ્રાવકને આ પાંચ અતિચાર જાણવા જોઈએ પરંતુ તે દોષોનું આચરણ ન કરવુંજોઈએ. તે આ પ્રમાણે – ૧) ધન – ધાન્ય પ્રમાણાતિક્રમ, ૨) ક્ષેત્ર | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Gujarati | 70 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उवभोगपरिभोगवए दुविहे पन्नत्ते तं जहा–भोअणओ कम्मओ अ,
भोअणओ समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
सचित्ताहारे सचित्तपडिबद्धाहारे अप्पउलिओसहिभक्खणया तुच्छोसहिभक्खणया दुप्पउलि- ओसहिभक्खणया। Translated Sutra: ઉપભોગ – પરિભોગવ્રત બે ભેદે કહેલ છે. તે આ – ભોજન વિષયક અને કર્માદાન વિષયક. ભોજન સંબંધી પરિમાણ કરનાર શ્રાવકે આ પાંચ અતિચાર જાણવા જોઈએ – સચિત્તાહાર, સચિત્તપ્રતિબદ્ધાહાર, અપક્વ ઔષધિ ભક્ષણ, તુચ્છૌષધિ ભક્ષણ, દુષ્પક્વ ઔષધિ ભક્ષણ. | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Gujarati | 79 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पोसहोववासे चउव्विहे पन्नत्ते तं जहा–
आहारपोसहे सरीरसक्कारपोसहे बंभचेरपोसहे अव्वावारपोसहे,
पोसहोववासस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-सिज्जासंथारए, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-सिज्जासंथारए, अप्पडि-लेहिय-दुप्पडिलेहिय-उच्चारपासवणभूमीओ, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-उच्चारपासवणभूमीओ, पोसहोववासस्स सम्मं अननुपालणया। Translated Sutra: પૌષધોપવાસ ચાર ભેદે કહેલ છે, તે આ પ્રમાણે – આહાર પૌષધ, શરીર સત્કાર પૌષધ, બ્રહ્મચર્ય પૌષધ, અવ્યાપાર પૌષધ. પૌષધોપવાસ વ્રતધારી શ્રાવકે આ પાંચ અતિચારો જાણવા જોઈએ. તે આ પ્રમાણે – અપ્રતિલેખિત – દુષ્પ્રતિલેખિત શય્યા સંસ્તારક, અપ્રમાર્જિત – દુષ્પ્રમાર્જિત શય્યા સંસ્તારક. અપ્રતિલેખિત દુષ્પ્રતિલેખિત ઉચ્ચાર પ્રશ્રવણ | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Gujarati | 81 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थं पुण समणोवासगधम्मे पंचाणुव्वयाइं तिन्नि गुणव्वयाइं आवकहियाइं चत्तारि सिक्खा-वयाइं इत्तरियाइं एयस्स पुणो समणोवासगधम्मस्स मूलवत्थु सम्मत्तं तं जहा–
तं निसग्गेण वा अभिगमेणं वा पंच अइयारविसुद्धं अणुव्वय-गुणव्वयाइं च अभिग्गा अन्नेवि पडिमादओ विसेसकरणजोगा।
अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणया इमीसे समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, काम-भोगासंसप्पओगे। Translated Sutra: આ પ્રમાણે શ્રાવકધર્મમાં પાંચ અણુવ્રત, ત્રણ ગુણવ્રત અને યાવત્કથિત કે ઇત્વરકથિત અર્થાત ચિરકાળ કે અલ્પકાળ માટે ચાર શિક્ષાવ્રત કહ્યા છે. આ બધાની પૂર્વે શ્રાવકધર્મની મૂલ વસ્તુ સમ્યક્ત્વ છે તે આ – તે નિસર્ગથી કે અભિગમથી બે ભેદે અથવા પાંચ અતિચાર રહિત વિશુદ્ધ અણુવ્રત અને ગુણવ્રતની પ્રતિજ્ઞા સિવાય બીજી પણ પ્રતિમા | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-१ जीव अस्तित्व | Hindi | 4 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जं पुण जाणेज्जा–सहसम्मुइयाए, परवागरणेणं, अन्नेसिं वा अंतिए सोच्चा तं जहा–पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दक्खिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अहे वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अन्नयरीओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अनुदिसाओ वा आगओ अहमंसि।
एवमेगेसिं जं णातं भवइ–अत्थि मे आया ओववाइए।
जो इमाओ ‘दिसाओ अनुदिसाओ वा’ अनुसंचरइ सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अनुदिसाओ ‘जो आगओ अनुसंचरइ’ सोहं। Translated Sutra: कोई प्राणी अपनी स्वमति, स्वबुद्धि से अथवा प्रत्यक्ष ज्ञानियों के वचन से, अथवा उपदेश सूनकर यह जान लेता है, कि मैं पूर्वदिशा, या दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, ऊर्ध्व अथवा अन्य किसी दिशा या विदिशा से आया हूँ। कुछ प्राणियों को यह भी ज्ञात होता है – मेरी आत्मा भवान्तर में अनुसंचरण करने वाली है, जो इन दिशाओं, अनुदिशाओं में | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-१ जीव अस्तित्व | Hindi | 8 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अपरिण्णाय-कम्मे खलु अयं पुरिसे, जो इमाओ दिसाओ वा अनुदिसाओ वा अनुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अनुदिसाओ सहेति। Translated Sutra: यह पुरुष, जो अपरिज्ञातकर्मा है वह इन दिशाओं व अनुदिशाओं में अनुसंचरण करता है। अपने कृत – कर्मों के साथ सब दिशाओं/अनुदिशाओं में जाता है। अनेक प्रकार की जीव – योनियों को प्राप्त होता है। वहाँ विविध प्रकार के स्पर्शों का अनुभव करता है। इस सम्बन्धमें भगवान् ने परिज्ञा विवेक का उपदेश किया है। सूत्र – ८–१० | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-१ जीव अस्तित्व | Hindi | 11 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। Translated Sutra: अपने इस जीवन के लिए, प्रशंसा व यश के लिए, सम्मान की प्राप्ति के लिए, पूजा आदि पाने के लिए, जन्म – सन्तान आदि के जन्म पर, अथवा स्वयं के जन्म निमित्त से, मरण – सम्बन्धी कारणों व प्रसंगों पर, मुक्ति के प्रेरणा या लालसा से, दुःख के प्रतीकार हेतु – रोग, आतंक, उपद्रव आदि मिटाने के लिए। | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-२ पृथ्वीकाय | Hindi | 17 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तं से अहियाए, तं से अबोहीए।
से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए।
सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णातं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए।
इच्चत्थं गढिए लोए।
जमिणं ‘विरूवरूवेहिं सत्थेहिं’ पुढवि-कम्म-समारंभेणं पुढवि-सत्थं समारंभेमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसइ।
से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे।
अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे, अप्पेगे गुप्फमब्भे, अप्पेगे गुप्फमच्छे, अप्पेगे जंघमब्भे, अप्पेगे जंघमच्छे, अप्पेगे जाणुमब्भे, अप्पेगे जाणुमच्छे, अप्पेगे ऊरुमब्भे, अप्पेगे ऊरुमच्छे, अप्पेगे कडिमब्भे, अप्पेगे कडिमच्छे, Translated Sutra: वह (हिंसावृत्ति) उसके अहित के लिए होती है। उसकी अबोधि के लिए होती है। वह साधक हिंसा के उक्त दुष्परिणामों को अच्छी तरह समझता हुआ, संयम – साधना में तत्पर हो जाता है। कुछ मनुष्यों के या अनगार मुनियों के समीप धर्म सूनकर यह ज्ञात होता है कि, ‘यह जीव हिंसा ग्रन्थि है, यह मोह है, यह मृत्यु है और यही नरक है।’ (फिर भी) जो मनुष्य | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-२ पृथ्वीकाय | Hindi | 18 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाता भवंति।
एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाता भवंति।
तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं पुढवि-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं पुढवि-सत्थं समारंभावेज्जा, नेवण्णे
पुढवि-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा।
जस्सेते पुढवि-कम्म-समारंभा परिण्णाता भवंति,
से हु मुनी परिण्णात-कम्मे। Translated Sutra: जो पृथ्वीकायिक जीवों पर शस्त्र का समारंभ नहीं करता, वह वास्तव में इन आरंभों का ज्ञाता है। यह (पृथ्वीकायिक जीवों की अव्यक्त वेदना) जानकर बुद्धिमान मनुष्य न स्वयं पृथ्वीकाय का समारंभ करे, न दूसरों से पृथ्वीकाय का समारंभ करवाए और न उसका समारंभ करने वाले का अनुमोदन करे। जिसने पृथ्वीकाय सम्बन्धी समारंभ को जान | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-३ अप्काय | Hindi | 19 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–से जहावि अनगारे उज्जुकडे, णियागपडिवण्णे, अमायं कुव्वमाणे वियाहिए। Translated Sutra: मैं कहता हूँ – जिस आचरण से अनगार होता है। जो ऋजुकृत् हो, नियाग – प्रतिपन्न – मोक्ष मार्ग के प्रति एकनिष्ठ होकर चलता हो, कपट रहित हो। जिस श्रद्धा के साथ संयम – पथ पर कदम बढ़ाया है, उसी श्रद्धा के साथ संयम का पालन करे। विस्रोत – सिका – अर्थात् लक्ष्य के प्रति शंका व चित्त की चंचलता के प्रवाहमें न बहें, शंका का त्याग | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-३ अप्काय | Hindi | 20 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जाए सद्धाए णिक्खंतो, तमेवअणुपालिया। विजहित्तु विसोत्तियं। Translated Sutra: देखो सूत्र १९ | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-५ वनस्पतिकाय | Hindi | 47 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे।
अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे। (जाव) अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए।
से बेमि–इमंपि जाइधम्मयं, एयंपि जाइधम्मयं। इमंपि बुड्ढिधम्मयं, एयंपि बुड्ढिधम्मयं। इमंपि चित्तमंतयं, एयंपि चित्तमंतयं। इमंपि छिन्नं मिलाति, एयंपि छिन्नं मिलाति। इमंपि आहारगं, एयंपि आहारगं। इमंपि अनिच्चयं, एयंपि अनिच्चयं। इमंपि असासयं, एयंपि असासयं। इमंपि चयावचइयं, एयंपि चयावचइयं। इमंपि विपरिनामधम्मयं, एयंपि विपरिनामधम्मयं। Translated Sutra: मैं कहता हूँ – यह मनुष्य भी जन्म लेता है, यह वनस्पति भी जन्म लेती है। यह मनुष्य भी बढ़ता है, यह वनस्पति भी बढ़ती है। यह मनुष्य भी चेतना युक्त है, यह वनस्पति भी चेतना युक्त है। यह मनुष्य शरीर छिन्न होने पर म्लान हो जाता है। यह वनस्पति भी छिन्न होने पर म्लान होती है। यह मनुष्य भी आहार करता है, यह वनस्पति भी आहार करती | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-५ वनस्पतिकाय | Hindi | 48 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति।
एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति।
तं परिण्णाय मेहावी– नेव सयं वणस्सइ-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं वणस्सइ-सत्थं समारंभावेज्जा, नेवन्नेवणस्सइ-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा।
जस्सेते वणस्सइ-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुनी परिण्णाय-कम्मे। Translated Sutra: जो वनस्पतिकायिक जीवों पर शस्त्र का समारंभ करता है, वह उन आरंभो/आरंभजन्य कटुफलों से अनजान रहता है। जो वनस्पतिकायिक जीवों पर शस्त्र का प्रयोग नहीं करता, उसके लिए आरंभ परिज्ञात है। यह जानकर मेधावी स्वयं वनस्पति का समारंभ न करे, न दूसरों से समारंभ करवाए और न समारंभ करने वालों का अनुमोदन करे जिसको यह वनस्पति सम्बन्धी | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-३ अप्काय | Hindi | 21 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पणया वीरा महावीहिं। Translated Sutra: वीर पुरुष महापथ के प्रति प्रणत – अर्थात् समर्पित होते हैं। | |||||||||
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श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-३ अप्काय | Hindi | 22 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकुतोभयं। Translated Sutra: मुनि की आज्ञा से लोक को – अर्थात् अप्काय के जीवों का स्वरूप जानकर उन्हें अकुतोभय बना दे। संयत रहे | |||||||||
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उद्देशक-३ अप्काय | Hindi | 23 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि– नेव सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, नेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा।
जे लोयं अब्भाइक्खइ, से अत्ताणं अब्भाइक्खइ। जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ, से लोयं अब्भाइक्खइ। Translated Sutra: मैं कहता हूँ – मुनि स्वयं, लोक – अप्कायिक जीवों के अस्तित्व का अपलाप न करे। न अपनी आत्मा का अपलाप करे। जो लोक का अपलाप करता है, वह वास्तव में अपना ही अपलाप करता है। जो अपना अपलाप करता है, वह लोक के अस्तित्व को अस्वीकार करता है। | |||||||||
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उद्देशक-३ अप्काय | Hindi | 24 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास।
अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा।
जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदय-कम्म-समारंभेणं उदय-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे
विहिंसति।
तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता।
इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं।
से सयमेव उदय-सत्थं समारंभति, अन्नेहिं वा उदय-सत्थं समारंभावेति, अन्ने वा उदय-सत्थं समारंभंते समणुजाणति।
तं से अहियाए, तं से अबोहीए।
से तं सुबंज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए।
सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं नायं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए।
इच्चत्थं गढिए लोए।
जमिणं ‘विरूवरूवेहिं Translated Sutra: तू देख ! सच्चे साधक हिंसा (अप्काय की) करने में लज्जा अनुभव करते हैं। और उनको भी देख, जो अपने आपको ‘अनगार’ घोषित करते हैं, वे विविध प्रकार के शस्त्रों द्वारा जल सम्बन्धी आरंभ – समारंभ करते हुए जल – काय के जीवों की हिंसा करते हैं। और साथ ही तदाश्रित अन्य अनेक जीवों की भी हिंसा करते हैं। इस विषय में भगवान ने परिज्ञा | |||||||||
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उद्देशक-३ अप्काय | Hindi | 25 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इह च खलु भो! अनगाराणं उदय-जीवा वियाहिया।
सत्थं चेत्थ अणुवीइ पासा। Translated Sutra: हे मनुष्य ! इस अनगार – धर्म में, जल को ‘जीव’ कहा है। जलकाय के जो शस्त्र हैं, उन पर चिन्तन करके देख | |||||||||
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उद्देशक-३ अप्काय | Hindi | 26 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ‘पुढो सत्थं’ पवेइयं। Translated Sutra: भगवान ने जलकाय के अनेक शस्त्र बताए हैं। |