Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles
Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Hindi | 12 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं वाणियगामे विजयमित्ते नामं सत्थवाहे परिवसइ–अड्ढे।
तस्स णं विजयमित्तस्स सुभद्दा नामं भारिया होत्था।
तस्स णं विजयमित्तस्स पुत्ते सुभद्दाए भारियाए अत्तए उज्झियए नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदिय सरीरे लक्खण वंजण गुणोववेए माणुम्माणप्पमाण पडिपुण्ण सुजाय सव्वंग-सुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे परिसा निग्गया। राया निग्गओ, जहा कूणिओ निग्गओ। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया राया य गओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमगोत्तेणं जाव संखित्तविउलतेयलेसे Translated Sutra: उस वाणिजग्राम नगर में विजयमित्र नामक एक धनी सार्थवाह निवास करता था। उस विजयमित्र की अन्यून पञ्चेन्द्रिय शरीर से सम्पन्न सुभद्रा नाम की भार्या थी। उस विजयमित्र का पुत्र और सुभद्रा का आत्मज उज्झितक नामक सर्वाङ्गसम्पन्न और रूपवान् बालक था। उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान महावीर वाणिजग्राम नामक नगर में |