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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ अंड |
Hindi | 60 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जे से सागरदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए से णं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव से वनमयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरी-अंडयंसि संकिए कंखिए वितिगिंछस-मावण्णे भेयसमावण्णे कलुससमावण्णे किण्णं ममं एत्थ कीलावणए मयूरीपोयए भविस्सइ उदाहु नो भविस्सइ? त्ति कट्टु तं मयूरी-अंडयं अभिक्खणं-अभिक्खणं उव्वत्तेइ परियत्तेइ आसारेइ संसारेइ चालेइ फंदेइ घट्टेइ खोभेइ अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि टिट्टियावेइ।
तए णं से मयूरी-अंडए अभिक्खणं-अभिक्खणं उव्वत्तिज्जमाणे परियत्तिज्जमाणे आसारि-ज्जमाणे संसारिज्जमाणे Translated Sutra: तत्पश्चात् उनमें जो सागरदत्त का पुत्र सार्थवाह दारक था, वह कल सूर्य के देदीप्यमान होने पर जहाँ वन – मयूरी का अंडा था, वहाँ आया। आकर उस मयूरी अंडे में शंकित हुआ, उसके फल की आकांक्षा करने लगा कि कब इससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होगी ? विचिकित्सा को प्राप्त हुआ, भेद को प्राप्त हुआ, कलुषता को प्राप्त हुआ। अत एव वह विचार | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ अंड |
Hindi | 61 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जिनदत्तपुत्ते जेणेव से मयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरी-अंडयंसि निस्संकिए [निक्कंखिए निव्वितिगिंछे?] सुव्वत्तए णं मम एत्थ कीलावणए मयूरीपोयए भविस्सइ त्ति कट्टु तं मयूरी-अंडयं अभिक्खणं-अभिक्खणं नो उव्वत्तेइ नो परियत्तेइ नो आसारेइ नो संसारेइ नो चालेइ नो फंदेइ नो घट्टेइ नो खोभेइ अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि नो टिट्टियावेइ।
तए णं से मयूरी-अंडए अनुव्वत्तिज्जमाणे जाव अटिट्टियाविज्जमाणे कालेणं समएणं उब्भिन्ने मयूरी-पोयए एत्थ जाए।
तए णं से जिनदत्तपुत्ते तं मयूरी-पोययं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठे मयूर-पोसए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं Translated Sutra: जिनदत्त का पुत्र जहाँ मयूरी का अंडा था, वहाँ आया। आकर उस मयूरी के अंडे के विषय में निःशंक रहा। ‘मेरे इस अंडे में से क्रड़ा करने के लिए बढ़िया गोलाकार मयूरी – बालक होगा’ इस प्रकार निश्चय करके, उस मयूरी के अंडे को उसने बार – बार उलटा – पलटा नहीं यावत् बजाया नहीं आदि। इस कारण उलट – पलट न करने से और न बजाने से उस काल | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-३ आहार परिज्ञा |
Hindi | 689 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरं पुरक्खायं–नानाविहाणं जलचराणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं, तं जहा–मच्छाणं कच्छभाणं गाहाणं मगराणं सुंसुमाराणं। तेसिं च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए पुरिसस्स य कम्म कडाए जोणिए, एत्थ णं मेहुणवत्तियाए नामं संजोगे समुप्पज्जइ। ते दुहओ वि सिणेहिं संचिणंति। तत्थ णं जीवा इत्थित्ताए पुरिसत्ताए नपुंसगत्ताए विउट्टंति।
ते जीवा माउओयं पिउसुक्कं तदुभय-संसट्ठं कलुसं किब्बिसं तप्पढमयाए आहारमाहारेंति। तओ पच्छा जं से माया नानावि-हाओ रसवईओ आहारमाहारेति, तओ एगदेसेणं ओयमाहारेंति। अनुपुव्वेणं वुड्ढा पलिपागमणुपवण्णा, तओ कायाओ अभिणिव-ट्टमाणा अंडं वेगया जणयंति, Translated Sutra: इसके पश्चात् तीर्थंकरदेव ने पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जलचरों का वर्णन किया है, जैसे कि – मत्स्यों से लेकर सुंसुमार तक के जीव पंचेन्द्रियजलचर तिर्यंच हैं। वे जीव अपने – अपने बीज और अवकाश के अनुसार स्त्री और पुरुष का संयोग होने पर स्व – स्वकर्मानुसार पूर्वोक्त प्रकार के गर्भमें उत्पन्न होते हैं। फिर वे जीव | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Hindi | 20 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं भगवओ गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पन्ने–अहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा। पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ त्ति कट्टु पुरिमताले नयरे उच्च नीय मज्झिम कुलाइं अडमाणे अहापज्जत्तं समुदाणं गिण्हइ, गिण्हित्ता पुरिमताले नयरे मज्झंमज्झेणं पडि-निक्खमइ जाव समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– एवं खलु अहं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाए Translated Sutra: तदनन्तर भगवान गौतम के हृदय में उस पुरुष को देखकर यह सङ्कल्प उत्पन्न हुआ यावत् पूर्ववत् वे नगर से बाहर नीकले तथा भगवान के पास आकर निवेदन करने लगे। यावत् भगवन् ! वह पुरुष पूर्वभव में कौन था ? जो इस तरह अपने कर्मों का फल पा रहा है ? इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम ! उस काल तथा उस समय इस जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Gujarati | 20 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं भगवओ गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पन्ने–अहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा। पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ त्ति कट्टु पुरिमताले नयरे उच्च नीय मज्झिम कुलाइं अडमाणे अहापज्जत्तं समुदाणं गिण्हइ, गिण्हित्ता पुरिमताले नयरे मज्झंमज्झेणं पडि-निक्खमइ जाव समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– एवं खलु अहं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाए Translated Sutra: ત્યારે તે ગૌતમસ્વામીએ તે પુરુષને જોયો, જોઈને આ આવા પ્રકારે આધ્યાત્મિક, પ્રાર્થિત વિચાર આવ્યો. યાવત્ પૂર્વવત્ ત્યાંથી નીકળ્યા, એમ કહ્યું – ભગવન્ ! હું આપની આજ્ઞા પામી પૂર્વવત્ ગૌચરી લેવા નીકળ્યો યાવત્ આ પુરુષને આવા કષ્ટમાં જોયો, તો હે ભગવન ! આ પુરુષ પૂર્વભવે કોણ હતો ? આદિ. હે ગૌતમ ! તે કાળે તે સમયે આ જંબૂદ્વીપ |