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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-१ एक चर | Hindi | 157 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जे छेए से सागारियं ण सेवए।
‘कट्टु एवं अविजाणओ’ बितिया मंदस्स बालया।
लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अनासेवनयाए Translated Sutra: जो कुशल है, वह मैथुन सेवन नहीं करता। जो ऐसा करके उसे छिपाता है, वह उस मूर्ख की दूसरी मूर्खता है। उपलब्ध कामभोगों का पर्यालोचन करके, सर्व प्रकार से जानकर उन्हें स्वयं सेवन न करे और दूसरों को भी कामभोगों के कटुफल का ज्ञान कराकर उनके अनासेवन की आज्ञा दे, ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-१ एक चर | Hindi | 158 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पासह एगे रूवेसु गिद्धे परिणिज्जमाणे।
‘एत्थ फासे’ पुणो-पुणो
आवंती केआवंती लोयंसि आरंभजीवी, एएसु चेव आरंभजीवी।
एत्थ वि बाले परिपच्चमाणे रमति पावेहिं कम्मेहिं, ‘असरणे सरणं’ ति मन्नमाणे।
इहमेगेसिं एगचरिया भवति–से बहुकोहे बहुमाणे बहुमाए बहुलोहे बहुरए बहुनडे बहुसढे बहुसंकप्पे, आसवसक्की पलिउच्छन्ने, उट्ठियवायं पवयमाणे ‘मा से केइ अदक्खू’ अण्णाण-पमाय-दोसेणं, सययं मूढे धम्मं नाभिजाणइ। अट्ठा पया माणव! कम्मकोविया जे अणुवरया, अविज्जाए पलिमोक्खमाहु, आवट्टं अणुपरियट्टंति। Translated Sutra: हे साधको ! विविध कामभोगों में गृद्ध जीवों को देखो, जो नरक – तिर्यंच आदि यातना – स्थानों में पच रहे हैं – उन्हीं विषयों से खिंचे जा रहे हैं। इस संसार प्रवाह में उन्हीं स्थानों का बारंबार स्पर्श करते हैं। इस लोक में जितने भी मनुष्य आरम्भजीवी हैं, वे इन्हीं (विषयासक्तियों) के कारण आरम्भजीवी हैं। अज्ञानी साधक इस | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा |
उद्देशक-२ | Hindi | 493 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा, अणुवीइ ओग्गहं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णविज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया ‘एत्ता, ताव’ ओग्गहं ओगिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो।
से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि? जे तत्थ समनाण वा माहनाण वा छत्तए वा, मत्तए वा, दंडए वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा, नालिया वा, चेलं वा, चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा, चम्म-छेदणए वा, तं नो अंतोहिंतो बाहिं णीणेज्जा, बहियाओ वा नो अंतो पवेसेज्जा, नो सुत्तं वा णं पडिबोहेज्जा, नो तेसिं Translated Sutra: साधु धर्मशाला आदि स्थानों में जाकर, ठहरने के स्थान को देखभाल कर विचारपूर्वक अवग्रह की याचना करे। वह अवग्रह की अनुज्ञा माँगते हुए उक्त स्थान के स्वामी या अधिष्ठाता से कहे कि आपकी ईच्छानुसार – जितने समय तक और जितने क्षेत्र में निवास करने की आप हमें अनुज्ञा देंगे, उतने समय तक और उतने ही क्षेत्र में हम ठहरेंगे। | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा |
उद्देशक-२ | Hindi | 495 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा अणुवीइ ओग्गहं जाणेज्जा–जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णविज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसा, आउसंतस्स आग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो।
से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि? जे तत्थ गाहावईण वा, गाहावइ-पुत्ताण वा इच्चेयाइं आयत्तणाइं उवाइकम्म। अह भिक्खू जाणेज्जा इमाहिं सत्तहिं पडिमाहिं ओग्गहं ओगिण्हित्तए।
तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा–से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु Translated Sutra: साधु या साध्वी पथिकशाला आदि स्थानों में पूर्वोक्त विधिपूर्वक अवग्रह की अनुज्ञा ग्रहण करके रहे। पूर्वोक्त अप्रीतिजनक प्रतिकूल कार्य न करे तथा विविध अवग्रहरूप स्थानों की याचना भी विधिपूर्वक करे। अव – गृहीत स्थानों में गृहस्थ तथा गृहस्थपुत्र आदि के संसर्ग से सम्बन्धित स्थानदोषों का परित्याग करके निवास | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 520 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अभिणिक्खमनाभिप्पायं जानेत्ता भवनवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिणो देवा य देवीओ य सएहि-सएहिं रूवेहिं, सएहिं-सएहिं नेवत्थेहिं, सएहिं-सएहिं चिंधेहिं, सव्विड्ढीए सव्वजुतीए सव्वबल-समुदएणं सयाइं-सयाइं जाण विमाणाइं दुरुहंति, सयाइं-सयाइं जाणविमाणाइं दुरुहित्ता अहाबादराइं पोग्गलाइं परिसाडेति, अहा-बादराइं पोग्गलाइं परिसाडेत्ता अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइंति, अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइत्ता उड्ढं उप्पयंति, उड्ढं उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए सिग्घाए चवलाए तुरियाए दिव्वाए देवगईए अहेणं ओवयमाणा-ओवयमाणा तिरिएणं असंखेज्जाइं दीवसमुद्दाइं Translated Sutra: तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर के अभिनिष्क्रमण के अभिप्राय को जानकर भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव एवं देवियाँ अपने – अपने रूप से, अपने – अपने वस्त्रों में और अपने – अपने चिह्नों से युक्त होकर तथा अपनी – अपनी समस्त ऋद्धि, द्युति और समस्त बल – समुदाय सहित अपने – अपने यान – विमानों पर चढ़ते हैं फिर सब | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-१ एक चर | Gujarati | 157 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जे छेए से सागारियं ण सेवए।
‘कट्टु एवं अविजाणओ’ बितिया मंदस्स बालया।
लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अनासेवनयाए Translated Sutra: જે કુશળ છે તે મૈથુન સેવે નહીં, જે મૈથુન સેવીને પણ, ગુરુ જ્યારે પૂછે ત્યારેછૂપાવે છે, તે એ અજ્ઞાનીની બીજી મૂર્ખતા છે. દીર્ઘદૃષ્ટિથી વિચારીને અને કટુ વિપાકોને જાણીને, ઉપલબ્ધ કામભોગોનું સેવન ન કરે અને બીજાને પણ સેવન કરવાનો ઉપદેશન આપે. તેમ હું કહું છું. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-१ एक चर | Gujarati | 158 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पासह एगे रूवेसु गिद्धे परिणिज्जमाणे।
‘एत्थ फासे’ पुणो-पुणो
आवंती केआवंती लोयंसि आरंभजीवी, एएसु चेव आरंभजीवी।
एत्थ वि बाले परिपच्चमाणे रमति पावेहिं कम्मेहिं, ‘असरणे सरणं’ ति मन्नमाणे।
इहमेगेसिं एगचरिया भवति–से बहुकोहे बहुमाणे बहुमाए बहुलोहे बहुरए बहुनडे बहुसढे बहुसंकप्पे, आसवसक्की पलिउच्छन्ने, उट्ठियवायं पवयमाणे ‘मा से केइ अदक्खू’ अण्णाण-पमाय-दोसेणं, सययं मूढे धम्मं नाभिजाणइ। अट्ठा पया माणव! कम्मकोविया जे अणुवरया, अविज्जाए पलिमोक्खमाहु, आवट्टं अणुपरियट्टंति। Translated Sutra: વિવિધ કામભોગોમાં આસક્ત જીવોને જુઓ. જે નરકાદિ યાતના સ્થાનમાં પકાવાઈ રહ્યા છે. લોકમાં જેટલા સાવદ્ય અનુષ્ઠાન કરનારા છે તે આ સંસારમાં દુઃખોને વારંવાર ભોગવે છે. સાવદ્ય અનુષ્ઠાન કરનારા અન્યતિર્થીક સાધુ કે શિથીલાચારી, ગૃહસ્થ સમાન જ દુઃખના ભાગી હોય છે. સંયમ અંગીકાર કરવા છતાં વિષયાભિલાષાથી પીડિત અજ્ઞાની જીવો અશરણને | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा |
उद्देशक-२ | Gujarati | 493 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा, अणुवीइ ओग्गहं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णविज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया ‘एत्ता, ताव’ ओग्गहं ओगिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो।
से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि? जे तत्थ समनाण वा माहनाण वा छत्तए वा, मत्तए वा, दंडए वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा, नालिया वा, चेलं वा, चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा, चम्म-छेदणए वा, तं नो अंतोहिंतो बाहिं णीणेज्जा, बहियाओ वा नो अंतो पवेसेज्जा, नो सुत्तं वा णं पडिबोहेज्जा, नो तेसिं Translated Sutra: સાધુ ધર્મશાળાદિ સ્થાનમાં અવગ્રહ યાચે, તે સ્થાનના સ્વામીને યાચના કરતા કહે કે, હે આયુષ્યમાન્ ! આપની ઇચ્છાનુસાર જેટલો સમય – જેટલા ક્ષેત્રમાં રહેવાની આપ અનુજ્ઞા આપો તેમ રહીશું. યાવત્ અમારા સાધર્મિક સાધુ આવશે તો યાવત્ તે પણ આ અવધિમાં રહેશે. ત્યાર પછી અમે વિહાર કરીશું. અવગ્રહ લીધા પછી શું કરે ? ત્યાં જે શ્રમણ, | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा |
उद्देशक-२ | Gujarati | 495 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा अणुवीइ ओग्गहं जाणेज्जा–जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णविज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसा, आउसंतस्स आग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो।
से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि? जे तत्थ गाहावईण वा, गाहावइ-पुत्ताण वा इच्चेयाइं आयत्तणाइं उवाइकम्म। अह भिक्खू जाणेज्जा इमाहिं सत्तहिं पडिमाहिं ओग्गहं ओगिण्हित्तए।
तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा–से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु Translated Sutra: સાધુ – સાધ્વી ધર્મશાળાદિમાં અવગ્રહ ગ્રહણ કરીને ગૃહસ્થ કે ગૃહસ્થ – પુત્રાદિના સંબંધ ઉત્પન્ન થતા દોષોથી બચે અને સાધુ આ સાત પ્રતિજ્ઞા થકી અવગ્રહ ગ્રહણ કરવાનું જાણે. તેમાં પહેલી પ્રતિજ્ઞા આ પ્રમાણે – ૧. સાધુ ધર્મશાળાદિમાં વિચાર કરીને અવગ્રહ યાચે યાવત્ વિચરે. ૨. હું બીજા ભિક્ષુઓ માટે ઉપાશ્રયની આજ્ઞા માંગીશ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Gujarati | 520 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अभिणिक्खमनाभिप्पायं जानेत्ता भवनवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिणो देवा य देवीओ य सएहि-सएहिं रूवेहिं, सएहिं-सएहिं नेवत्थेहिं, सएहिं-सएहिं चिंधेहिं, सव्विड्ढीए सव्वजुतीए सव्वबल-समुदएणं सयाइं-सयाइं जाण विमाणाइं दुरुहंति, सयाइं-सयाइं जाणविमाणाइं दुरुहित्ता अहाबादराइं पोग्गलाइं परिसाडेति, अहा-बादराइं पोग्गलाइं परिसाडेत्ता अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइंति, अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइत्ता उड्ढं उप्पयंति, उड्ढं उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए सिग्घाए चवलाए तुरियाए दिव्वाए देवगईए अहेणं ओवयमाणा-ओवयमाणा तिरिएणं असंखेज्जाइं दीवसमुद्दाइं Translated Sutra: ત્યાર પછી શ્રમણ ભગવંત મહાવીરનો અભિનિષ્ક્રમણ અર્થાત સંયમગ્રહણનો અભિપ્રાય જાણીને ભવનપતિ, વ્યંતર, જ્યોતિષ્ક, વૈમાનિક દેવ – દેવીઓ પોતપોતાના રૂપ – વેશ અને ચિહ્નોથી યુક્ત થઈ, સર્વ ઋદ્ધિ – દ્યુતિ – સેના સમૂહની સાથે પોત – પોતાના યાન વિમાનો પર આરૂઢ થાય છે, થઈને બાદર પુદ્ગલોનો ત્યાગ કરી, સૂક્ષ્મ પુદ્ગલો ગ્રહણ કરી | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 15 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे निग्गंथा भगवंतो–अप्पेगइया आभिनिबोहियनाणी अप्पेगइया सुयनाणी अप्पेगइया ओहिनाणी अप्पेगइया मणपज्जवनाणी अप्पेगइया केवलनाणी अप्पेगइया मनबलिया अप्पेगइया वयबलिया अप्पेगइया कायबलिया अप्पेगइया मणेणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया वएणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया काएणं सावाणुग्गहसमत्था ...
...अप्पेगइया खेलोसहिपत्ता अप्पेगइया जल्लोसहिपत्ता अप्पेगइया विप्पोसहिपत्ता अप्पेगइया आमोसहिपत्ता अप्पेगइया सव्वोसहिपत्ता अप्पेगइया कोट्ठबुद्धी अप्पेगइया बीयबुद्धी अप्पेगइया पडबुद्धी अप्पेगइया पयाणुसारी Translated Sutra: उस समय श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी बहुत से निर्ग्रन्थ संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते थे। उनमें कईं मतिज्ञानी यावत् केवलज्ञानी थे। कईं मनोबली, वचनबली, तथा कायबली थे। कईं मन से, कईं वचन से, कईं शरीर द्वारा अपकार व उपकार करने में समर्थ थे। कईं खेलौषधिप्राप्त, कईं जल्लौषधिप्राप्त थे। कईं | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 15 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे निग्गंथा भगवंतो–अप्पेगइया आभिनिबोहियनाणी अप्पेगइया सुयनाणी अप्पेगइया ओहिनाणी अप्पेगइया मणपज्जवनाणी अप्पेगइया केवलनाणी अप्पेगइया मनबलिया अप्पेगइया वयबलिया अप्पेगइया कायबलिया अप्पेगइया मणेणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया वएणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया काएणं सावाणुग्गहसमत्था ...
...अप्पेगइया खेलोसहिपत्ता अप्पेगइया जल्लोसहिपत्ता अप्पेगइया विप्पोसहिपत्ता अप्पेगइया आमोसहिपत्ता अप्पेगइया सव्वोसहिपत्ता अप्पेगइया कोट्ठबुद्धी अप्पेगइया बीयबुद्धी अप्पेगइया पडबुद्धी अप्पेगइया पयाणुसारी Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના અંતેવાસી – શિષ્ય એવા ઘણા નિર્ગ્રન્થો હતા, જેવા કે – કેટલાક આભિનિબોધિકજ્ઞાની, શ્રુતજ્ઞાની, અવધિજ્ઞાની, મન:પર્યવજ્ઞાની, કેવળજ્ઞાની હતા, કેટલાક મનોબલિ, વચનબલિ અને કાયબલિ હતા. કેટલાક મન – વચન કે કાયાથી શાપ દેવામાં કે અનુગ્રહ કરવામાં સમર્થ હતા, કેટલાક ખેલૌષધિ લબ્ધિ પ્રાપ્ત | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक | Hindi | 131 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना कुलसंपन्ना बलसंपन्ना रूवसंपन्ना विनयसंपन्ना नाणसंपन्ना दंसणसंपन्ना चरित्तसंपन्ना लज्जासंपन्ना लाघवसंपन्ना ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलोभा जियनिद्दा जिइंदिया जियपरीसहा जीवियासमरणभयविप्पमुक्का तवप्पहाणा गुणप्पहाणा करणप्पहाणा चरणप्पहाणा निग्गहप्पहाणा निच्छयप्पहाणा मद्दवप्पहाणा अज्जवप्पहाणा लाघवप्पहाणा खंतिप्पहाणा मुत्तिप्पहाणा विज्जा-प्पहाणा मंतप्पहाणा वेयप्पहाणा बंभप्पहाणा नयप्पहाणा नियमप्पहाणा सच्चप्पहाणा सोयप्पहाणा चारुपण्णा सोही अणियाणा Translated Sutra: उस काल और उस समय में पार्श्वापत्यीय स्थविर भगवान पाँच सौ अनगारों के साथ यथाक्रम से चर्या करते हुए, ग्रामानुग्राम जाते हुए, सुखपूर्वक विहार करते हुए तुंगिका नगरी के पुष्पवतिकचैत्य पधारे। यथारूप अवग्रह लेकर संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए वहाँ विहरण करने लगे। वे स्थविर भगवंत जाति – सम्पन्न, कुलसम्पन्न, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१० |
उद्देशक-५ देव | Hindi | 489 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सोमस्स महारन्नो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ?
अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कनगा, कनगलता, चित्तगुत्ता, वसुंधरा। तत्थ णं एगमेगाए देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे पन्नत्ते।
पभू णं ताओ एगामेगा देवी अन्नं एगमेगं देवीसहस्सं परियारं विउव्वित्तए?
एवामेव सपुव्वावरेणं चत्तारि देवीसहस्सा। सेत्तं तुडिए।
पभू णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सोमे महाराया सोमाए रायहानीए, सभाए सुहम्माए, सोमंसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए? अवसेसं जहा चमरस्स, नवरं–परियारो जहा सूरियाभस्स। Translated Sutra: भगवन् ! असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के लोकपाल सोम महाराज की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? आर्यो! चार यथा – कनका, कनकलता, चित्रगुप्ता और वसुन्दधरा। इनमें से प्रत्येक देवी का एक – एक हजार देवियों का परिवार है। इनमें से प्रत्येक देवी एक – एक हजार देवियों के परिवार की विकुर्वणा कर सकती है। इस प्रकार पूर्वापर सब मिलकर | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१४ |
उद्देशक-८ अंतर | Hindi | 630 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! जंभगा देवा, जंभगा देवा?
हंता अत्थि।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जंभगा देवा, जंभगा देवा?
गोयमा! जंभगा णं देवा निच्चं पमुदित-पक्कीलिया कंदप्परतिमोहणसीला। जे णं ते देवे कुद्धे पासेज्जा, से णं पुरिसे महंतं अयसं पाउणेज्जा। जे णं ते देवे तुट्ठे पासेज्जा, से णं महंतं जसं पाउणेज्जा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जंभगा देवा, जंभगा देवा।
कतिविहा णं भंते! जंभगा देवा पन्नत्ता?
गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा– अन्नजंभगा, पाणजंभगा, वत्थजंभगा, लेणजंभगा, सयणजंभगा, पुप्फजंभगा, फलजं-भगा, पुप्फ-फल-जंभगा, विज्जाजंभगा अवियत्तिजंभगा।
जंभगा णं भंते! देवा कहिं वसहिं उवेंति?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! क्या जृम्भक देव होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं। भगवन् ! वे जृम्भक देव किस कारण कहलाते हैं? गौतम ! जृम्भक देव, सदा प्रमोदी, अतीव क्रीड़ाशील, कन्दर्प में रत और मोहन शील होते हैं। जो व्यक्ति उन देवों को क्रुद्ध हुए देखता है, वह महान् अपयश प्राप्त करता है और जो उन देवों को तुष्ट हुए देखता है, वह महान् यश को प्राप्त | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-९ चारण | Hindi | 801 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! चारणा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा चारणा पन्नत्ता, तं जहा–विज्जाचारणा य, जंघाचारणा य।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–विज्जाचारणे-विज्जाचारणे?
गोयमा! तस्स णं छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं विज्जाए उत्तरगुणलद्धिं खममाणस्स विज्जाचारणलद्धी नामं लद्धी समुप्पज्जइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– विज्जाचारणे-विज्जाचारणे।
विज्जाचारणस्स णं भंते! कहं सीहा गतो, कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते?
गोयम! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे जाव किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। देवे णं महिड्ढीए जाव महेसक्खे जाव इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्यरानिवाएहिं Translated Sutra: भगवन् ! चारण कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, यथा – विद्याचारण और जंघाचारण। भगवन् विद्याचारण मुनि को ‘विद्याचारण’ क्यों कहते हैं ? अन्तर – रहित छट्ठ – छट्ठ के तपश्चरणपूर्वक पूर्वश्रुतरूप विद्या द्वारा तपोलब्धि को प्राप्त मुनि को विद्याचारणलब्धि नामकी लब्धि उत्पन्न होती है। इस कारण से यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपसंहार |
Hindi | 1086 | Gatha | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुयदवेया य जक्खो कुंभधरो बंभसंति वेरोट्टा।
विज्जा य अंतहुंडी देउ अविग्घं लिहंतस्स ॥ Translated Sutra: श्रुतदेवता, कुम्भधर यक्ष, ब्रह्मशान्ति, वैरोट्यादेवी, विद्या और अन्तहुंडी, लेखक के लिए अविघ्न प्रदान करे। | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक | Gujarati | 131 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना कुलसंपन्ना बलसंपन्ना रूवसंपन्ना विनयसंपन्ना नाणसंपन्ना दंसणसंपन्ना चरित्तसंपन्ना लज्जासंपन्ना लाघवसंपन्ना ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलोभा जियनिद्दा जिइंदिया जियपरीसहा जीवियासमरणभयविप्पमुक्का तवप्पहाणा गुणप्पहाणा करणप्पहाणा चरणप्पहाणा निग्गहप्पहाणा निच्छयप्पहाणा मद्दवप्पहाणा अज्जवप्पहाणा लाघवप्पहाणा खंतिप्पहाणा मुत्तिप्पहाणा विज्जा-प्पहाणा मंतप्पहाणा वेयप्पहाणा बंभप्पहाणा नयप्पहाणा नियमप्पहाणा सच्चप्पहाणा सोयप्पहाणा चारुपण्णा सोही अणियाणा Translated Sutra: તે કાળે તે સમયે પાર્શ્વનાથના શિષ્યો સ્થવિર ભગવંતો(ભગવંત પાર્શ્વનાથના શિષ્ય – પ્રશિષ્યો) કે જેઓ – જાતિ સંપન્ન, કુળ સંપન્ન, બળ સંપન્ન, રૂપ સંપન્ન, વિનય સંપન્ન, જ્ઞાન સંપન્ન, દર્શન સંપન્ન, ચારિત્ર સંપન્ન, લજ્જા સંપન્ન, લાઘવ સંપન્ન હતા તેમજ એ બધાને કારણે ઓજસ્વી, તેજસ્વી, વર્ચસ્વી, યશસ્વી હતા, જેમણે ક્રોધ – માન – | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१० |
उद्देशक-५ देव | Gujarati | 489 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सोमस्स महारन्नो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ?
अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कनगा, कनगलता, चित्तगुत्ता, वसुंधरा। तत्थ णं एगमेगाए देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे पन्नत्ते।
पभू णं ताओ एगामेगा देवी अन्नं एगमेगं देवीसहस्सं परियारं विउव्वित्तए?
एवामेव सपुव्वावरेणं चत्तारि देवीसहस्सा। सेत्तं तुडिए।
पभू णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सोमे महाराया सोमाए रायहानीए, सभाए सुहम्माए, सोमंसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए? अवसेसं जहा चमरस्स, नवरं–परियारो जहा सूरियाभस्स। Translated Sutra: ભગવન્ ! અસુરેન્દ્ર, અસુરકુમાર રાજ ચમરના સોમ લોકપાલની કેટલી અગ્રમહિષીઓ કહી છે ? હે આર્યો! ચાર. તે આ – કનકા, કનકલતા, ચિત્રગુપ્તા, વસુંધરા. તે પ્રત્યેક દેવીનો એક એક હજારનો પરિવાર છે. તે પ્રત્યેક દેવી, બીજી એક – એક હજાર દેવીના પરિવારને વિકુર્વવા સમર્થ છે. આ પ્રમાણે પૂર્વા – પર થઈને ૪૦૦૦ દેવી થાય. તે એક વર્ગ થયો. ભગવન્ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१४ |
उद्देशक-८ अंतर | Gujarati | 630 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! जंभगा देवा, जंभगा देवा?
हंता अत्थि।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जंभगा देवा, जंभगा देवा?
गोयमा! जंभगा णं देवा निच्चं पमुदित-पक्कीलिया कंदप्परतिमोहणसीला। जे णं ते देवे कुद्धे पासेज्जा, से णं पुरिसे महंतं अयसं पाउणेज्जा। जे णं ते देवे तुट्ठे पासेज्जा, से णं महंतं जसं पाउणेज्जा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जंभगा देवा, जंभगा देवा।
कतिविहा णं भंते! जंभगा देवा पन्नत्ता?
गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा– अन्नजंभगा, पाणजंभगा, वत्थजंभगा, लेणजंभगा, सयणजंभगा, पुप्फजंभगा, फलजं-भगा, पुप्फ-फल-जंभगा, विज्जाजंभगा अवियत्तिजंभगा।
जंभगा णं भंते! देवा कहिं वसहिं उवेंति?
गोयमा! Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૨૮ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-९ चारण | Gujarati | 801 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! चारणा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा चारणा पन्नत्ता, तं जहा–विज्जाचारणा य, जंघाचारणा य।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–विज्जाचारणे-विज्जाचारणे?
गोयमा! तस्स णं छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं विज्जाए उत्तरगुणलद्धिं खममाणस्स विज्जाचारणलद्धी नामं लद्धी समुप्पज्जइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– विज्जाचारणे-विज्जाचारणे।
विज्जाचारणस्स णं भंते! कहं सीहा गतो, कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते?
गोयम! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे जाव किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। देवे णं महिड्ढीए जाव महेसक्खे जाव इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्यरानिवाएहिं Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૦૧. ભગવન્ ! ચારણ કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! બે ભેદે છે. તે આ – વિદ્યાચારણ અને જંઘાચારણ. ભગવન્ ! તે વિદ્યાચારણને વિદ્યાચારણ કેમ કહે છે ? ગૌતમ ! તેમને અંતરરહિત છઠ્ઠ છઠ્ઠના તપશ્ચરણપૂર્વક વિદ્યા દ્વારા ઉત્તરગુણ લબ્ધિને પ્રાપ્ત મુનિને વિદ્યાચારણ લબ્ધિ નામે લબ્ધિ સમુત્પન્ન થઈ હોય છે. તે કારણથી યાવત્ વિદ્યાચારણ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपसंहार |
Gujarati | 1086 | Gatha | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुयदवेया य जक्खो कुंभधरो बंभसंति वेरोट्टा।
विज्जा य अंतहुंडी देउ अविग्घं लिहंतस्स ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૮૦ | |||||||||
Bhaktaparigna | भक्तपरिज्ञा | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Hindi | 72 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विज्जा वि भत्तिमंतस्स सिद्धिमुवयाइ होइ फलया य ।
किं पुण निव्वुइविज्जा सिज्झिहिइ अभत्तिमंतस्स? ॥ Translated Sutra: विद्या भी भक्तिवान् को सिद्ध और फल देनेवाली होती है तो क्या मोक्षविद्या अभक्तिवंत को सिद्ध होगी ? | |||||||||
Bhaktaparigna | भक्तपरिज्ञा | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Hindi | 82 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विज्जा जहा पिसायं सुट्ठुवउत्ता करेइ पुरिसवसं ।
नाणं हिययपिसायं सुट्ठुवउत्तं तह करेइ ॥ Translated Sutra: जिस तरह अच्छे तरीके से आराधन की हुई विद्या द्वारा पुरुष, पिशाच को वश में करता है, वैसे अच्छी तरह से आराधन किया हुआ ज्ञान मन समान पिशाच को वश में करता है। | |||||||||
Bhaktaparigna | ભક્તપરિજ્ઞા | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Gujarati | 72 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विज्जा वि भत्तिमंतस्स सिद्धिमुवयाइ होइ फलया य ।
किं पुण निव्वुइविज्जा सिज्झिहिइ अभत्तिमंतस्स? ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૦ | |||||||||
Bhaktaparigna | ભક્તપરિજ્ઞા | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Gujarati | 82 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विज्जा जहा पिसायं सुट्ठुवउत्ता करेइ पुरिसवसं ।
नाणं हिययपिसायं सुट्ठुवउत्तं तह करेइ ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૨. જેમ સુઆરાધિત વિદ્યાથી પુરુષ, પિશાચને વશ કરે, તેમ સુઆરાધિત જ્ઞાન મન પિશાચને વશ કરે છે. સૂત્ર– ૮૩. જેમ વિધિથી આરાધેલ મંત્ર વડે કૃષ્ણસર્પ ઉપશમે છે, તેમ સુઆરાધિત જ્ઞાન વડે મનરૂપ કૃષ્ણસર્પ વશ થાય. સૂત્ર– ૮૪. જેમ માંકડો ક્ષણમાત્ર પણ નિશ્ચલ ન રહી શકે તેમ વિષયોના આનંદ વિના મન ક્ષત્રમાણ મધ્યસ્થ (નિશ્ચલ) રહી | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 4 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जो परिभवइ मनूसो आयरियं, जत्थ सिक्खए विज्जं ।
तस्स गहिया वि विज्जा दुःक्खेण वि, अप्फला होइ ॥ Translated Sutra: जिनके पास से विद्या – शिक्षा पाई है, वो आचार्य – गुरु का जो मानव पराभव तिरस्कार करता है, उसकी विद्या कैसे भी कष्ट से प्राप्त की हो तो भी निष्फल होती है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 7 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] अविनीयस्स पणस्सइ, जइ वि न नस्सइ न नज्जइ गुणेहिं ।
विज्जा सुसिक्खिया वि हु गुरुपरिभवबुद्धिदोसेणं ॥ Translated Sutra: अविनीत शिष्य की श्रमपूर्वक शीखी हुई विद्या गुरुजन के पराभव करने की बुद्धि के दोष से अवश्य नष्ट होती है, शायद सर्वथा नष्ट न हो तो भी अपने वास्तविक लाभ फल को देनेवाली नहीं होती। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 8 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] विज्जा मनुसरियव्वा न दुव्विनीयस्स होइ दायव्वा ।
परिभवइ दुव्विनीओ तं विज्जं, तं च आयरियं ॥ Translated Sutra: विद्या बार – बार स्मरण करने के योग्य है, संभालने योग्य है। दुर्विनीत – अपात्र को देने के लिए योग्य नहीं है। क्योंकि दुर्विनीत विद्या और विद्या दाता गुरु दोनो पराभव करते हैं। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 10 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] विज्जा वि होइ विलिया गहिया पुरिसेणऽभागधेज्जेण ।
सुकुलकुलबालिया विव असरिसपुरिसं पइं पत्ता ॥ Translated Sutra: विनय आदि गुण से युक्त पुन्यशाली पुरुष द्वारा ग्रहण की गई विद्या भी बलवती बनती है। जैसे उत्तम कुल में पैदा होनेवाली लड़की मामूली पुरुष को पति के रूप में पाकर महान बनती है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 11 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] सिक्खाहि ताव विणयं, किं ते विज्जाइ दुव्विनीयस्स? ।
दुस्सिक्खिओ हु विणओ, सुलभा विज्जा विनीयस्स ॥ Translated Sutra: हे वत्स ! तब तक तू विनय का ही अभ्यास कर, क्योंकि विनय विना – दुर्विनीत ऐसे तुझे विद्या द्वारा क्या प्रयोजन है ? सचमुच विनय शीखना दुष्कर है। विद्या तो विनीत को अति सुलभ होती है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 12 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] विज्जं सिक्खह, विज्जं गुणेह, गहियं च मा पमाएह ।
गहिय-गुणिया हु विज्जा परलोयसुहावहा होइ ॥ Translated Sutra: हे सुविनीत वत्स ! तू विनय से विद्या – श्रुतज्ञान शीख, शीखी हुई विद्या और गुण बार – बार याद कर, उसमें सहज भी प्रमाद मत कर। क्योंकि ग्रहण की हुई और गिनती की हुई विद्या ही परलोक में सुखाकारी बनती है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 13 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] विनएण सिक्खियाणं विज्जाणं परिसमत्तसुत्ताणं ।
सक्का फलमणुभुत्तुं गुरुजणतुट्ठोवइट्ठाणं ॥ Translated Sutra: विनय से शीखी हुई, प्रसन्नतापूर्वक गुरुजन ने उपदेशी हुई और सूत्र द्वारा संपूर्ण कंठस्थ की गई विद्या का फल यकीनन महसूस कर सकते हैं। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 14 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] दुल्लहया आयरिया विज्जाणं दायगा समत्ताणं ।
ववगयचउक्कसाया दुल्लहया सिक्खगा सीसा ॥ Translated Sutra: इस विषम काल में समस्त श्रुतज्ञान के दाता आचार्य भगवंत मिलने अति दुर्लभ हैं और फिर क्रोध, मान आदि चार कषाय रहित श्रुत ज्ञान को शीखनेवाले शिष्य मिलने भी दुर्लभ हैं। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 18 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] देंति फलं विज्जाओ पुरिसाणं भागधेज्जपरियाणं ।
न हु भागधेज्जपरिवज्जियस्स विज्जा फलं देति ॥ Translated Sutra: भागशाली पुरुष को ही विद्याएं फल देनेवाली होती है, लेकिन भाग्यहीन को विद्या नहीं फलती। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 20 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] न हु सुलहा आयरिया विज्जाणं दायगा समत्ताणं ।
उज्जुय अपरित्तंता न हु सुलहा सिक्खगा सीसा ॥ Translated Sutra: सचमुच ! समस्त श्रुतज्ञान के दाता आचार्य भगवंत मिलने सुलभ नहीं है। और फिर सरल और ज्ञानाभ्यास में सतत उद्यमी शिष्य मिलने भी सुलभ नहीं है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 4 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जो परिभवइ मनूसो आयरियं, जत्थ सिक्खए विज्जं ।
तस्स गहिया वि विज्जा दुःक्खेण वि, अप्फला होइ ॥ Translated Sutra: (વિનયગુણ દ્વાર) ૪. જેમની પાસે વિદ્યા – શિક્ષા મેળવે છે, તે આચાર્ય – ગુરુનો જે મનુષ્ય પરાભવ – તિરસ્કાર કરે છે, તેની વિદ્યા ગમે તેટલા કષ્ટે પ્રાપ્ત કરી હોય તો પણ નિષ્ફળ થાય છે. ૫. કર્મોની પ્રબળતાને લઈને જે જીવ ગુરુનો પરાભવ કરે છે, તે અક્કડ – અભિમાની અને વિનયહીન જીવ જગતમાં ક્યાંય યશ કે કીર્તિ પામી શકતો નથી. પરંતુ સર્વત્ર | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 7 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] अविनीयस्स पणस्सइ, जइ वि न नस्सइ न नज्जइ गुणेहिं ।
विज्जा सुसिक्खिया वि हु गुरुपरिभवबुद्धिदोसेणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 8 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] विज्जा मनुसरियव्वा न दुव्विनीयस्स होइ दायव्वा ।
परिभवइ दुव्विनीओ तं विज्जं, तं च आयरियं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 10 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] विज्जा वि होइ विलिया गहिया पुरिसेणऽभागधेज्जेण ।
सुकुलकुलबालिया विव असरिसपुरिसं पइं पत्ता ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 11 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] सिक्खाहि ताव विणयं, किं ते विज्जाइ दुव्विनीयस्स? ।
दुस्सिक्खिओ हु विणओ, सुलभा विज्जा विनीयस्स ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 12 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] विज्जं सिक्खह, विज्जं गुणेह, गहियं च मा पमाएह ।
गहिय-गुणिया हु विज्जा परलोयसुहावहा होइ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 13 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] विनएण सिक्खियाणं विज्जाणं परिसमत्तसुत्ताणं ।
सक्का फलमणुभुत्तुं गुरुजणतुट्ठोवइट्ठाणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 14 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] दुल्लहया आयरिया विज्जाणं दायगा समत्ताणं ।
ववगयचउक्कसाया दुल्लहया सिक्खगा सीसा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 18 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] देंति फलं विज्जाओ पुरिसाणं भागधेज्जपरियाणं ।
न हु भागधेज्जपरिवज्जियस्स विज्जा फलं देति ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 20 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] न हु सुलहा आयरिया विज्जाणं दायगा समत्ताणं ।
उज्जुय अपरित्तंता न हु सुलहा सिक्खगा सीसा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 90 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं जाणिया इतो पुव्वं, किच्चाकिच्चं बहुं जढं ।
तं वंता ताणि सेविज्जा, तेहिं आयारवं सिया ॥ Translated Sutra: जो भिक्षु यह जानकर पूर्वकृत् कृत्य – अकृत्य का परित्याग करे, उन – उन संयम स्थानों का सेवन करे जिससे वह आचारवान बने, पंचाचार पालन से सुरक्षित रहे, अनुत्तरधर्म में स्थिर होकर अपने सर्व दोषों का परित्याग करे, जो धर्मार्थी, भिक्षु शुद्धात्मा होकर अपने कर्तव्यों का ज्ञाता होता है, उनकी इस लोक में कीर्ति होती है | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 90 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं जाणिया इतो पुव्वं, किच्चाकिच्चं बहुं जढं ।
तं वंता ताणि सेविज्जा, तेहिं आयारवं सिया ॥ Translated Sutra: સાધુ – પૂર્વે કરેલ પોતાના કૃત્યો અને અકૃત્યોને જાણીને, તેનો પૂર્ણ રૂપે પરિત્યાગ કરે અને તેવા સંયમ સ્થાનોનું સેવન કરે, જેનાથી તે ભિક્ષુ આચારવાન બને. | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 293 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सओवसंता अममा अकिंचणा सविज्जविज्जाणुगया जसंसिणो ।
उउप्पसन्ने विमले व चंदिमा सिद्धिं विमाणाइ उवेंति ताइणो ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: सदा उपशान्त, ममत्व – रहित, अकिंचन अपनी अध्यात्म – विद्या के अनुगामी तथा जगत् के जीवों के त्राता और यशस्वी हैं, शरद्ऋतु के निर्मल चन्द्रमा के समान सर्वथा विमल साधु सिद्धि को अथवा सौधर्मावतंसक आदि विमानों को प्राप्त करते हैं। – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Gujarati | 293 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सओवसंता अममा अकिंचणा सविज्जविज्जाणुगया जसंसिणो ।
उउप्पसन्ने विमले व चंदिमा सिद्धिं विमाणाइ उवेंति ताइणो ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૯૨ |