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Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-४ संक्षेप वचन Hindi 151 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेत्तेहिं पलिछिन्नेहिं, आयाणसोय-गढिए बाले। अव्वोच्छिन्नबंधणे, अनभिक्कंतसंजोए। तमंसि अविजाणओ आणाए लंभो नत्थि

Translated Sutra: नेत्र आदि इन्द्रियों पर नियंत्रण का अभ्यास करते हुए भी जो पुनः कर्म के स्रोत में गृद्ध हो जाता है तथा जो जन्म – जन्मों के कर्मबन्धनों को तोड़ नहीं पाता, संयोगों को छोड़ नहीं सकता, मोह – अन्धकार में निमग्न वह बाल – अज्ञानी मानव अपने आत्महित एवं मोक्षोपाय को नहीं जान पाता। ऐसे साधक को आज्ञा का लाभ नहीं प्राप्त होता।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-१ एक चर Hindi 155 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से पासति फुसियमिव, कुसग्गे पणुन्नं निवतितं वातेरितं । एवं बालस्स जीवियं, मंदस्स अविजाणओ ॥ कूराणि कम्माणि बाले पकुव्वमाणे, तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ। मोहेण गब्भं मरनाति एति। एत्थ मोहे पुणो-पुनो

Translated Sutra: वह पुरुष (कामनात्यागी) कुश की नोंक को छुए हुए (बारंबार दूसरे जलकण पड़ने से) अस्थिर और वायु के झोंके से प्रेरित होकर गिरते हुए जलबिन्दु की तरह जीवन को (अस्थिर) जानता – देखता है। बाल, मन्द का जीवन भी इसी तरह अस्थिर है, परन्तु वह (जीवन के अनित्यत्व) को नहीं जान पाता। वह बाल – हिंसादि क्रूर कर्म उत्कृष्ट रूप से करता हुआ
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-१ एक चर Hindi 157 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे छेए से सागारियं ण सेवए। ‘कट्टु एवं अविजाणओ’ बितिया मंदस्स बालया। लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अनासेवनयाए

Translated Sutra: जो कुशल है, वह मैथुन सेवन नहीं करता। जो ऐसा करके उसे छिपाता है, वह उस मूर्ख की दूसरी मूर्खता है। उपलब्ध कामभोगों का पर्यालोचन करके, सर्व प्रकार से जानकर उन्हें स्वयं सेवन न करे और दूसरों को भी कामभोगों के कटुफल का ज्ञान कराकर उनके अनासेवन की आज्ञा दे, ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-४ संक्षेप वचन Gujarati 151 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेत्तेहिं पलिछिन्नेहिं, आयाणसोय-गढिए बाले। अव्वोच्छिन्नबंधणे, अनभिक्कंतसंजोए। तमंसि अविजाणओ आणाए लंभो नत्थि

Translated Sutra: નેત્રાદિ ઇન્દ્રિયના વિષયનો ત્યાગ કરીને જે ફરી કર્મના આશ્રવના કારણોમાં આસક્ત થાય છે, તે અજ્ઞાની કર્મબંધનથી મુક્ત થઈ શકતો નથી. તે ધન – ધાન્યાદિ સંયોગથી મુક્ત થતો નથી. મોહરૂપી અંધકારમાં પડેલ આવા અજ્ઞાની જીવને ભગવંતની આજ્ઞાનો લાભ થતો નથી – તેમ હું કહું છું.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-१ एक चर Gujarati 155 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से पासति फुसियमिव, कुसग्गे पणुन्नं निवतितं वातेरितं । एवं बालस्स जीवियं, मंदस्स अविजाणओ ॥ कूराणि कम्माणि बाले पकुव्वमाणे, तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ। मोहेण गब्भं मरनाति एति। एत्थ मोहे पुणो-पुनो

Translated Sutra: તે તત્ત્વદર્શી જાણે છે કે તૃણના અગ્રભાગે રહેલ, અસ્થિર અને વાયુથી કંપિત થઈને નીચે પડતાં જલબિંદુની માફક અજ્ઞાની, અવિવેકી, પરમાર્થને નહીં જાણતા જીવોનું જીવન પણ અસ્થિર છે. છતાં અજ્ઞાની જીવ ક્રૂર કર્મ કરતો, દુઃખથી મૂઢ બની વિપરીત દશા પામે છે. મોહના કારણે ગર્ભ અને મરણ પામે છે. આ મોહથી ફરી ફરી સંસારમાં ભમે છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-१ एक चर Gujarati 157 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे छेए से सागारियं ण सेवए। ‘कट्टु एवं अविजाणओ’ बितिया मंदस्स बालया। लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अनासेवनयाए

Translated Sutra: જે કુશળ છે તે મૈથુન સેવે નહીં, જે મૈથુન સેવીને પણ, ગુરુ જ્યારે પૂછે ત્યારેછૂપાવે છે, તે એ અજ્ઞાનીની બીજી મૂર્ખતા છે. દીર્ઘદૃષ્ટિથી વિચારીને અને કટુ વિપાકોને જાણીને, ઉપલબ્ધ કામભોગોનું સેવન ન કરે અને બીજાને પણ સેવન કરવાનો ઉપદેશન આપે. તેમ હું કહું છું.
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ हिंसा

Hindi 7 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण करेंति केई पावा असंजया अविरया अणिहुय-परिणाम-दुप्पयोगी पाणवहं भयंकरं बहुविहं परदुक्खुप्पायणप्पसत्ता इमेहिं तसथावरेहिं जीवेहिं पडिणिविट्ठा, किं ते? पाढीण-तिमि-तिमिंगिल-अनेगज्झस-विविहजातिमंदुक्क-दुविहकच्छभ-नक्क-मगर-दुविह गाह-दिलिवेढय-मंदुय-सीमा-गार-पुलुय-सुंसुमार-बहुप्पगारा जलयरविहाणाकते य एवमादी। कुरंग-रुरु-सरभ-चमर-संबर-हुरब्भ-ससय-पसय-गोण-रोहिय-हय-गय-खर-करभ-खग्ग-वानर-गवय-विग-सियाल-कोल-मज्जार-कोलसुणक-सिरियंदलय-आवत्त-कोकंतिय-गोकण्ण-मिय -महिस-वियग्घ- छगल-दीविय- साण- तरच्छ-अच्छ- भल्ल- सद्दूल-सीह- चिल्लला-चउप्पय-विहाणाकए य एवमादी। अयगर-गोनस-वराहि-मउलि-काओदर-दब्भपुप्फ-आसालिय-महोरगा

Translated Sutra: कितने ही पातकी, संयमविहीन, तपश्चर्या के अनुष्ठान से रहित, अनुपशान्त परिणाम वाले एवं जिनके मन, वचन और काम का व्यापार दुष्ट है, जो अन्य प्राणियों को पीड़ा पहुँचाने में आसक्त रहते हैं तथा त्रस और स्थावर जीवों की प्रति द्वेषभाव वाले हैं, वे अनेक प्रकारों से हिंसा किया करते हैं। वे कैसे हिंसा करते हैं ? मछली, बड़े मत्स्य,
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ हिंसा

Gujarati 7 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण करेंति केई पावा असंजया अविरया अणिहुय-परिणाम-दुप्पयोगी पाणवहं भयंकरं बहुविहं परदुक्खुप्पायणप्पसत्ता इमेहिं तसथावरेहिं जीवेहिं पडिणिविट्ठा, किं ते? पाढीण-तिमि-तिमिंगिल-अनेगज्झस-विविहजातिमंदुक्क-दुविहकच्छभ-नक्क-मगर-दुविह गाह-दिलिवेढय-मंदुय-सीमा-गार-पुलुय-सुंसुमार-बहुप्पगारा जलयरविहाणाकते य एवमादी। कुरंग-रुरु-सरभ-चमर-संबर-हुरब्भ-ससय-पसय-गोण-रोहिय-हय-गय-खर-करभ-खग्ग-वानर-गवय-विग-सियाल-कोल-मज्जार-कोलसुणक-सिरियंदलय-आवत्त-कोकंतिय-गोकण्ण-मिय -महिस-वियग्घ- छगल-दीविय- साण- तरच्छ-अच्छ- भल्ल- सद्दूल-सीह- चिल्लला-चउप्पय-विहाणाकए य एवमादी। अयगर-गोनस-वराहि-मउलि-काओदर-दब्भपुप्फ-आसालिय-महोरगा

Translated Sutra: કેટલાક પાપી, અસંયત, અવિરત, તપશ્ચર્યા અનુષ્ઠાન રહિત, અનુપશાંત પરિણામવાળા, મન – વચન – કાયાના દુષ્ટ પરિણામવાળા, ઘણા પ્રકારે બીજાને દુઃખ પહોંચાડવામાં આસક્ત, આ ત્રસ – સ્થાવર જીવો પ્રતિ દ્વેષ રાખનારા, અનેક પ્રકારે ભયંકર પ્રાણવધ – હિંસા કરે છે. તે ક્યા જીવોની હિંસા કરે છે ? પાઠીન, તિમિ, તિમિંગલાદિ અનેક પ્રકારની માછલી,
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-५ नरक विभक्ति

उद्देशक-१ Hindi 311 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जंसी गुहाए जलणेऽतिवट्टे अविजाणओ डज्झइ लुत्तपण्णो । ‘सया य कलुणं’ पुन धम्मठाणं गाढोवणीयं अइदुक्खधम्मं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ३१०
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-५ नरक विभक्ति

उद्देशक-१ Gujarati 311 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जंसी गुहाए जलणेऽतिवट्टे अविजाणओ डज्झइ लुत्तपण्णो । ‘सया य कलुणं’ पुन धम्मठाणं गाढोवणीयं अइदुक्खधम्मं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૧૦
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