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Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 10 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुय-मणंतमक्खयमव्वाबाहमपुनरावत्तगं सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे– ... भुयमोयग भिंग नेल कज्जल पहट्ठभमरगण निद्ध निकुरुंब निचिय कुंचिय पयाहिणावत्त मुद्धसिरए दालिमपुप्फप्पगास तवणिज्जसरिस निम्मल सुनिद्ध केसंत केसभूमी घन निचिय सुबद्ध लक्खणुन्नय कूडागारनिभ पिंडियग्गसिरए छत्तागारुत्तिमंगदेसे निव्वण सम

Translated Sutra: उस समय श्रमण भगवान महावीर आदिकर, तीर्थंकर, स्वयं – संबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवर – पुंडरीक, पुरुषवर – गन्धहस्ती, अभयप्रदायक, चक्षु – प्रदायक, मार्ग – प्रदायक, शरणप्रद, जीवनप्रद, संसार – सागर में भटकते जनों के लिए द्वीप के समान आश्रयस्थान, गति एवं आधारभूत, चार अन्त युक्त पृथ्वी के अधिपति के समान चक्रवर्ती,
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 58 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उवस्सयस्स अंतो वगडाए पिंडए वा लोयए वा खीरं वा दहिं वा सप्पिं वा नवनीए वा तेल्ले वा फाणियं वा पूवे वा सक्कुली वा सिहरिणी वा उक्खिण्णाणि वा विक्खिण्णाणि वा विइकिण्णाणि वा विप्पकिण्णाणि वा, नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अहालंदमवि वत्थए।

Translated Sutra: उपाश्रय के आँगन में मावा, दूध, दहीं, मक्खन, घी, तेल, गुड़, मालपुआ, लड्डु, पूरी, शीखंड़, शिखरण रखे – फैले, ढ़ग के रूप में या छूटे पड़े हो तो साधु – साध्वी को वहाँ हाथ के पर्व की रेखा सूख जाए उतना काल रहना न कल्पे, लेकिन यदि अच्छी तरह से ढ़गरूप से, दीवार की ओर कुंड़ बनाकर, निशानी या अंकित करके या ढ़ँके हुए हो तो शर्दी – गर्मी में रहना
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Gujarati 58 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उवस्सयस्स अंतो वगडाए पिंडए वा लोयए वा खीरं वा दहिं वा सप्पिं वा नवनीए वा तेल्ले वा फाणियं वा पूवे वा सक्कुली वा सिहरिणी वा उक्खिण्णाणि वा विक्खिण्णाणि वा विइकिण्णाणि वा विप्पकिण्णाणि वा, नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अहालंदमवि वत्थए।

Translated Sutra: ઉપાશ્રયમાં પીંડરૂપ ખાદ્ય, માવો આદિ, દૂધ, દહીં, માખણ, ઘી, તેલ, ગોળ, માલપૂવા, પૂરી, શ્રીખંડ – એ બધું ઉત્ક્ષિપ્ત, વ્યતિકીર્ણ અને વિપ્રકીર્ણ હોય તો સાધુ – સાધ્વીને ત્યાં યથાલંદકાળ રહેવું પણ ન કલ્પે.
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 81 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेनाबलस्स नेया भरहे वासंमि विस्सुयजसे महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेयंसी लक्खणजुत्ते मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि निक्खुडाणं निन्नाणय दुग्गमाण य दुक्खप्पवेसाण य वियाणए अत्थसत्थकुसले रयणं सेनावई सुसेने भरहस्स रन्नो अग्गाणीयं आवाड-चिलाएहिं हयमहियपवरवीर घाइयविवडियचिंधद्धयपडागं किच्छप्पाणोवगयं दिसोदिसिं पडिसेहियं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुट्ठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे कमलामेलं आसरयणं दुरुहइ, तए णं तं असीइमंगुलमूसियं नवनउइमंगुलपरिणाहं अट्ठसयमंगुलमायतं बत्तीसमंगुलमूसिय सिरं चउरंगुलकण्णाकं वीसइअंगुलबाहाकं चउरंगुलजण्णुकं

Translated Sutra: सेनापति सुषेण ने राजा भरत के सैन्य के अग्रभाग के अनेक योद्धाओं को आपात किरातों द्वारा हत, मथित देखा। सैनिकों को भागते देखा। सेनापति सुषेण तत्काल अत्यन्त क्रुद्ध, रुष्ट, विकराल एवं कुपित हुआ। वह मिसमिसाहट करता हुआ – कमलामेल नामक अश्वरत्न पर – आरूढ़ हुआ। वह घोड़ा अस्सी अंगुल ऊंचा था, निन्यानवे अंगुल मध्य परिधियुक्त
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

मनुष्य उद्देशक Hindi 145 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगोरुयदीवस्स णं भंते! केरिसए आगार भावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते। से जहानामए–आलिंगपुक्खरेति वा, एवं सवणिज्जे भाणितव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं बहवे एगोरुयदीवया मनुस्सा य मनुस्सीओ य आसयंति जाव विहरंति एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिं तहिं बहवे उद्दालका मोद्दालका रोद्दालका कतमाला नट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालगा नाम दुमगणा पन्नत्ता समणाउसो कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंता कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहिं य पुप्फेहि य अच्छणपडिच्छन्ना सिरीए अतीवअतीव सोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठंति... ...एगोरुयदीवे णं दीवे

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! एकोरुकद्वीप की भूमि आदि का स्वरूप किस प्रकार का है ? गौतम ! एकोरुकद्वीप का भीतरी भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय है। मुरज के चर्मपुट समान समतल वहाँ का भूमिभाग है – आदि। इस प्रकार शय्या की मृदुता भी कहना यावत्‌ पृथ्वीशिलापट्टक का भी वर्णन करना। उस शिलापट्टक पर बहुत से एको – रुकद्वीप के मनुष्य और स्त्रियाँ
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