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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Hindi | 68 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अपरिमियपरिग्गहं समणोवासओ पच्चक्खाइ
इच्छापरिणामं उवसंपज्जइ से परिग्गहे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्तपरिग्गहे अचित्तपरिग्गहे य
इच्छापरिमाणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
धणधन्नपमाणाइक्कमे खित्तवत्थुपमाणाइक्कमे हिरन्नसुवन्नपमाणाइक्कमे दुपयचउप्पय-पमाणाइक्कमे कुवियपमाणाइक्कमे। Translated Sutra: श्रमणोपासक अपरिमित परिग्रह का त्याग करे यानि परिग्रह का परिमाण करे। वो परिग्रह दो तरीके से हैं। सचित्त और अचित्त। ईच्छा (परिग्रह) का परिमाण करनेवाले श्रावक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए। १. घण और धन के प्रमाण में, २. क्षेत्रवस्तु के प्रमाण में, ३. सोने – चाँदी के प्रमाण में, ४. द्वीपद – चतुष्पद के प्रमाण में और | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Gujarati | 68 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अपरिमियपरिग्गहं समणोवासओ पच्चक्खाइ
इच्छापरिणामं उवसंपज्जइ से परिग्गहे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्तपरिग्गहे अचित्तपरिग्गहे य
इच्छापरिमाणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा–
धणधन्नपमाणाइक्कमे खित्तवत्थुपमाणाइक्कमे हिरन्नसुवन्नपमाणाइक्कमे दुपयचउप्पय-पमाणाइक्कमे कुवियपमाणाइक्कमे। Translated Sutra: શ્રમણોપાસક અપરિમિત પરિગ્રહના પચ્ચક્ખાણ કરે. ઇચ્છાનું પરિમાણ સ્વીકાર કરે, એ પાંચમું અણુવ્રત. તે પરિગ્રહ બે ભેદે છે. તે આ પ્રમાણે – સચિત્તનો પરિગ્રહ અને અચિત્તનો પરિગ્રહ. ઇચ્છા પરિમાણ કરેલા શ્રાવકને આ પાંચ અતિચાર જાણવા જોઈએ પરંતુ તે દોષોનું આચરણ ન કરવુંજોઈએ. તે આ પ્રમાણે – ૧) ધન – ધાન્ય પ્રમાણાતિક્રમ, ૨) ક્ષેત્ર | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-३ अनीयश अदि अध्ययन-१ अनीयश |
Hindi | 10 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते तच्चस्स णं भंते! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–१. अनीयसे २. अनंतसेने ३. अजियसेने ४. अणिहयरिऊ ५. देवसेने ६. सत्तुसेने ७. सारणे ८. गए ९. समुद्दे १०. दुम्मुहे ११. कूवए १२. दारुए १३. अनाहिट्ठी।
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने अंतगडदशा के तृतीय वर्ग के १३ अध्ययन फरमाये हैं – जैसे कि – अनीयस, अनन्तसेन, अनिहत, विद्वत्, देवयश, शत्रुसेन, सारण, गज, सुमुख, दुर्मुख, कूपक, दारुक और अनादृष्टि। भगवन् ! यदि श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त भगवान महावीर ने अन्तगडदशा के १३ अध्ययन बताये हैं तो भगवन् ! अन्तगडसूत्र के तीसरे | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-३ अनीयश अदि अध्ययन-१ अनीयश |
Gujarati | 10 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते तच्चस्स णं भंते! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–१. अनीयसे २. अनंतसेने ३. अजियसेने ४. अणिहयरिऊ ५. देवसेने ६. सत्तुसेने ७. सारणे ८. गए ९. समुद्दे १०. दुम्मुहे ११. कूवए १२. दारुए १३. अनाहिट्ठी।
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं Translated Sutra: [૧] હે ભગવન! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે અંતકૃદ્દશા સૂત્રના બીજા વર્ગનો આ અર્થ કહ્યો છે તો ભગવંત મહાવીરે ત્રીજા વર્ગનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! ભગવંત મહાવીરે અંતકૃદ્દશાના ત્રીજા વર્ગના તેર અધ્યયનો કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે – ૧.અનીયસ, ૨.અનંતસેન, ૩.અનિહત, ૪.વિદ્વત, ૫.દેવયશ, ૬.શત્રુસેન, ૭.સારણ, ૮.ગજ, ૯.સુમુખ, ૧૦.દુર્મુખ, ૧૧.કૂપક, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 310 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नयप्पमाणे?
नयप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–पत्थगदिट्ठंतेणं वसहिदिट्ठंतेणं पएसदिट्ठंतेणं।
से किं तं पत्थगदिट्ठंतेणं? पत्थगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वएज्जा–कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगस्स गच्छामि।
तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगं छिंदामि।
तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं तच्छेमि।
तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं उक्किरामि।
तं Translated Sutra: नयप्रमाण क्या है ? वह तीन दृष्टान्तों द्वारा स्पष्ट किया गया है। जैसे कि – प्रस्थक के, वसति के और प्रदेश के दृष्टान्त द्वारा। भगवन् ! प्रस्थक का दृष्टान्त क्या है ? जैसे कोई पुरुष परशु लेकर वन की ओर जाता है। उसे देखकर किसीने पूछा – आप कहाँ जा रहे हैं ? तब अविशुद्ध नैगमनय के मतानुसार उसने कहा – प्रस्थक लेने के लिए | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 310 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नयप्पमाणे?
नयप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–पत्थगदिट्ठंतेणं वसहिदिट्ठंतेणं पएसदिट्ठंतेणं।
से किं तं पत्थगदिट्ठंतेणं? पत्थगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वएज्जा–कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगस्स गच्छामि।
तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगं छिंदामि।
तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं तच्छेमि।
तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं उक्किरामि।
तं Translated Sutra: [૧] નયપ્રમાણનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નયપ્રમાણના ત્રણ પ્રકાર છે. ત્રણ દૃષ્ટાંતથી તેનું સ્વરૂપ સ્પષ્ટ કર્યું છે.. ૧. પ્રસ્થકના દૃષ્ટાંત દ્વારા ૨. વસતિના દૃષ્ટાંત દ્વારા ૩. પ્રદેશના દૃષ્ટાંત દ્વારા. [૨] પ્રસ્થકનું દૃષ્ટાંત શું છે ? કોઈ પુરુષ કુહાડી લઈ વન તરફ જતો હોય, તેને વનમાં જતા જોઈને કોઈ મનુષ્યે પૂછ્યું, તમે ક્યાં | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Hindi | 195 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो वरसिट्ठे नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! सोहम्मवडेंसयस्स महाविमानस्स दाहिणे णं सोहम्मे कप्पे असंखेज्जाइं जोयण-सहस्साइं वीईवइत्ता, एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो वरसिट्ठे नामं महाविमाने पन्नत्ते–अद्धतेरसजोयणसयसहस्साइं–जहा सोमस्स विमाणं तहा जाव अभिसेओ। रायहानी तहेव जाव पासायपंतीओ।
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो इमे देवा आणा उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति, तं जहा–जमकाइया इ वा, जमदेवयकाइया इ वा, पेतकाइया इ वा, पेतदेवयकाइया इ वा, असुरकुमारा, असुरकुमारीओ, कंदप्पा, निरयपाला, Translated Sutra: भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल – यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान कहाँ है ? गौतम ! सौधर्मावतंसक नाम के महाविमान से दक्षिण में, सौधर्मकल्प से असंख्य हजार योजन आगे चलने पर, देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान बताया गया है, जो साढ़े बारह लाख योजन लम्बा – चौड़ा है, इत्यादि | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Gujarati | 195 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो वरसिट्ठे नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! सोहम्मवडेंसयस्स महाविमानस्स दाहिणे णं सोहम्मे कप्पे असंखेज्जाइं जोयण-सहस्साइं वीईवइत्ता, एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो वरसिट्ठे नामं महाविमाने पन्नत्ते–अद्धतेरसजोयणसयसहस्साइं–जहा सोमस्स विमाणं तहा जाव अभिसेओ। रायहानी तहेव जाव पासायपंतीओ।
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो इमे देवा आणा उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति, तं जहा–जमकाइया इ वा, जमदेवयकाइया इ वा, पेतकाइया इ वा, पेतदेवयकाइया इ वा, असुरकुमारा, असुरकुमारीओ, कंदप्पा, निरयपाला, Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૯૫. ભગવન્ ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રના યમ લોકપાલનું વરશિષ્ટ નામે મહાવિમાન ક્યાં આવેલ છે ? ગૌતમ ! સૌધર્માવતંસક મહાવિમાનની દક્ષિણે સૌધર્મકલ્પથી અસંખ્ય હજાર યોજન ગયા પછી શક્રેન્દ્રના યમ લોકપાલનું વરશિષ્ટ નામક મહાવિમાન છે. તે ૧૨|| લાખ યોજન લાંબુ – પહોળું છે, ઇત્યાદિ ‘સોમ’ના વિમાન માફક યાવત્ અભિષેક, રાજધાની, | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१७ अश्व |
Hindi | 184 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सोलसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तरसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था–वण्णओ।
तत्थ णं कनगकेऊ नामं राया होत्था–वण्णओ।
तत्थ णं हत्थिसीसे नयरे बहवे संजत्ता-नावावाणियगा परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया यावि होत्था।
तए णं तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था–सेयं खलु अम्हं गणिमं च धरिमं च मेज्जं च परिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुद्दं पोयवहणेणं ओगाहेत्तए त्ति Translated Sutra: ‘भगवन् ! यदि यावत् निर्वाण को प्राप्त जिनेन्द्रदेव श्रमण भगवान महावीर ने सोलहवें ज्ञात अध्ययन का यह पूर्वोक्त० अर्थ कहा है तो सत्रहवें ज्ञात – अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’ उस काल और उस समय में हस्तिशीर्ष नामक नगर था। (वर्णन) उस नगर में कनककेतु नामक राजा था। (वर्णन) (समझ लेना) उस हस्तिशीर्ष नगर में बहुत – से | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१७ अश्व |
Hindi | 185 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ते संजत्ता-नावावाणियगे एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! गामागर-नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाइं० आहिंडह, लवणसमुद्दं च अभिक्खणं-अभिक्खणं पोयवहणेणं ओगाहेह। तं अत्थियाइं च केइ भे कहिंचि अच्छेरए दिट्ठपुव्वे?
तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा कनगकेऊ एवं वयासी–एवं खलु अम्हे देवानुप्पिया! इहेव हत्थिसीसे नयरे परिवसामो तं चेव जाव कालियदीवंतेणं संछूढा। तत्थ णं बहवे हिरन्नागरे य सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य, बहवे तत्थ आसे पासामो।
किं ते? हरिरेणु जाव अम्हं गंधं आघायंति, आघाइत्ता भीया तत्था उव्विग्गा उव्विग्गमणा तओ अनेगाइं जोयणाइं उब्भमंति। Translated Sutra: फिर राजा ने उन सांयात्रिक नौकावणिकों से कहा – ‘देवानुप्रिय ! तुम लोग ग्रामों में यावत् आकरों में घूमते हो और बार – बार पोतवहन द्वारा लवणसमुद्र में अवगाहन करते हो, तुमने कहीं कोई आश्चर्यजनक – अद्भुत – अनोखी वस्तु देखी है ?’ तब सांयात्रिक नौकावणिकों ने राजा कनककेतु से कहा – ‘देवानुप्रिय ! हम लोग इसी हस्तिशीर्ष | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१७ अश्व |
Gujarati | 184 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सोलसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तरसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था–वण्णओ।
तत्थ णं कनगकेऊ नामं राया होत्था–वण्णओ।
तत्थ णं हत्थिसीसे नयरे बहवे संजत्ता-नावावाणियगा परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया यावि होत्था।
तए णं तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था–सेयं खलु अम्हं गणिमं च धरिमं च मेज्जं च परिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुद्दं पोयवहणेणं ओगाहेत्तए त्ति Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૮૪. ભગવન્ ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીર સ્વામીએ જ્ઞાતાધર્મકથાના સોળમાં અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો ભગવંતે સતરમાં જ્ઞાતઅધ્યયનનો અર્થ શું કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે હસ્તિશીર્ષ નગર હતું. ત્યાં કનકકેતુ રાજા હતો. તે હસ્તિશીર્ષ નગરમાં ઘણા સાંયાત્રિક નૌવણિક રહેતા હતા. તેઓ ધનાઢ્ય યાવત્ ઘણા લોકોથી અપરિભૂત | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१७ अश्व |
Gujarati | 185 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ते संजत्ता-नावावाणियगे एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! गामागर-नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाइं० आहिंडह, लवणसमुद्दं च अभिक्खणं-अभिक्खणं पोयवहणेणं ओगाहेह। तं अत्थियाइं च केइ भे कहिंचि अच्छेरए दिट्ठपुव्वे?
तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा कनगकेऊ एवं वयासी–एवं खलु अम्हे देवानुप्पिया! इहेव हत्थिसीसे नयरे परिवसामो तं चेव जाव कालियदीवंतेणं संछूढा। तत्थ णं बहवे हिरन्नागरे य सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य, बहवे तत्थ आसे पासामो।
किं ते? हरिरेणु जाव अम्हं गंधं आघायंति, आघाइत्ता भीया तत्था उव्विग्गा उव्विग्गमणा तओ अनेगाइं जोयणाइं उब्भमंति। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૮૪ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 626 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तहा चारित्तकुसीले अनेगहा-मूलगुण उत्तर-गुणेसुं। तत्थ मूलगुणा पंच-महव्वयाणी राई-भोयण-छट्ठाणि, तेसुं जे पमत्ते भवेज्जा।
तत्थ पाणाइवायं पुढवि-दगागणिमारुय-वणप्फती-बिति-चउ-पंचेंदियाईणं संघटण-परिया- वण-किलामणोद्दवणे।
मुसावायं सुहुमं बायरं च। तत्थ सुहुमं पयला-उल्ला मरुए एवमादि, बादरो कण्णालीगादि।
अदिन्नादाणं सुहुमं बादरं च। तत्थ सुहुमं तण-डगल-च्छार-मल्लगादिणं गहणे, बादरं हिरन्न-सुवण्णादिणं। मेहुणं दिव्वोरालियं मनोवइ-काय-करण-कारावणानुमइभेदेण अट्ठरसहा; तहा करकम्मादी, सचित्ताचित्त-भेदेणं नवगुत्ति-विराहणेण वा विभूसावत्तिएण वा।
परिग्गहं सुहुमं बादरं च। तत्थ Translated Sutra: अब मूलगुण और उत्तरगुण में चारित्रकुशल अनेक प्रकार के जानना। उसमें पाँच महाव्रत और रात्रि भोजन छठ्ठा – ऐसे मूलगुण बताए हैं। वो छ के लिए जो प्रमाद करे, उसमें प्राणातिपात यानि पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति रूप एकेन्द्रियजीव, दो, तीन, चार, पाँच इन्द्रियवाले जीव का संघट्टा करना, परिताप उत्पन्न करना, किलामणा | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 757 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ हिरन्न-सुवन्ने धन-धन्ने कंस-दूस-फलहाणं।
सयनान आसनान य न य परिभोगो तयं गच्छं॥ Translated Sutra: जिसमें हिरण्य, सुवर्ण, धन, धान्य, काँस आदि धातु, गद्दी शयन, आसन आदि गृहस्थ के इस्तमाल करने के लायक चीजों का उपभोग नहीं होता वो गच्छ। | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 758 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ हिरन्न-सुवन्नं हत्थेण परागयं पि नो च्छिप्पे।
कारण-समप्पियं पि हु खण-निमिसद्धं पि तं गच्छं॥ Translated Sutra: जिसमें किसी कारण से समर्पण किया हो ऐसा पराया सुवर्ण आया हो तो पलभर या आँख के अर्धनिमेष समय जितने पल भी जिसको छूआ नहीं जाता वो गच्छ। | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 868 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अद्ध-तेरस-कोडीओ, दविण-जायस्स जा तहिं।
हिरन्न-वुट्ठिं दावेउं, मंदिरा पडिगच्छइ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ८६५ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Hindi | 1375 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं अनिगूहिय बल-विरिय-पुरिसक्कार-परक्कमो, सम-तण-मणि-लिट्ठु-कंचणोवेक्को॥
परिचत्त-कलत्त-पुत्त-सुहि-सयन-मित्त-बंधव-धन-धन्न-सुवन्न-हिरन्न-मणी-रयण-सार-भंडारो॥
अच्चंत-परम-वेरग्गवासणाजणिय-पवर- सुहज्झाय-परम-धम्म-सद्धा-परो॥
अकिलिट्ठ-निक्कलुस-अदीन-मानसो य वय-नियम-नाण-चरित्त- तवाइ-सयल-भुवणेक्क-मंगल-अहिंसा-लक्खण-खंताइ-दस-विह- धम्माणुट्ठाणेक्कंत-बद्ध-लक्खो॥
सव्वावस्सग्ग-तक्काल-करण-सज्झाय-झाणं आउत्तो, संखाईय-अनेग-कसिण-संजम-पएसु अविखलिओ, संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय-पाव-कम्मो, अनियाणो माया-मोस-विवज्जिओ, साहू वा साहूणी वा एवं गुण-कलिओ, जइ कह वि पमाय -दोसेणं असइं कहिंचि कत्थइ Translated Sutra: देखो सूत्र १३७४ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Hindi | 1484 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ ते णं काले णं ते णं समएणं सुसढणामधेज्जे अनगारे हभूयवं। तेणं च एगेगस्स णं पक्खस्संतो पभूय-ट्ठाणिओ आलोयणाओ विदिन्नाओ सुमहंताइं च। अच्चंत घोर सुदुक्कराइं पायच्छित्ताइं समनुचिन्नाइं। तहा वि तेणं विरएणं विसोहिपयं न समुवलद्धं ति एतेणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ।
से भयवं केरिसा उ णं तस्स सुसढस्स वत्तव्वया गोयमा अत्थि इहं चेव भारहेवासे, अवंती नाम जनवओ। तत्थ य संबुक्के नामं खेडगे। तम्मि य जम्मदरिद्दे निम्मेरे निक्किवे किविणे निरणुकंपे अइकूरे निक्कलुणे णित्तिंसे रोद्दे चंडरोद्दे पयंडदंडे पावे अभिग्गहिय मिच्छादिट्ठी अणुच्चरिय नामधेज्जे Translated Sutra: हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहा ? उस समय में उस समय यहाँ सुसढ़ नाम का एक अनगार था। उसने एक – एक पक्ष के भीतर कईं असंयम स्थानक की आलोचना दी और काफी महान घोर दुष्कर प्रायश्चित्त का सेवन किया। तो भी उस बेचारे को विशुद्धि प्राप्त नहीं हुई। इस कारण से ऐसा कहा। हे भगवंत ! उस सुसढ़ की वक्तव्यता किस तरह की है ? हे गौतम ! इस भारत | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Hindi | 1498 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं पुन काऊणं एरिसा सुलहबोही जाया सा सुगहियनामधेज्जा माहणी जीए एयावइयाणं भव्व-सत्ताणं अनंत संसार घोर दुक्ख संतत्ताणं सद्धम्म देसणाईहिं तु सासय सुह पयाणपुव्वगमब्भुद्धरणं कयं ति। गोयमा जं पुव्विं सव्व भाव भावंतरंतरेहिं णं नीसल्ले आजम्मा-लोयणं दाऊणं सुद्धभावाए जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं। पायच्छित्तसमत्तीए य समाहिए य कालं काऊणं सोहम्मे कप्पे सुरिंदग्गमहिसी जाया तमनुभावेणं।
से भयवं किं से णं माहणी जीवे तब्भवंतरम्मि समणी निग्गंथी अहेसि जे णं नीसल्लमालोएत्ता णं जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं ति। गोयमा जे णं से माहणी जीवे से णं तज्जम्मे बहुलद्धिसिद्धी Translated Sutra: हे भगवंत ! उस ब्राह्मणीने ऐसा तो क्या किया कि जिससे इस प्रकार सुलभ बोधि पाकर सुबह में नाम ग्रहण करने के लायक बनी और फिर उसके उपदेश से कईं भव्य जीव नर – नारी कि जो अनन्त संसार के घोर दुःख में सड़ रहे थे उन्हें सुन्दर धर्मदेश आदि के द्वारा शाश्वत सुख देकर उद्धार किया। हे गौतम ! उसने पूर्वभव में कईं सुन्दर भावना सहित | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 626 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तहा चारित्तकुसीले अनेगहा-मूलगुण उत्तर-गुणेसुं। तत्थ मूलगुणा पंच-महव्वयाणी राई-भोयण-छट्ठाणि, तेसुं जे पमत्ते भवेज्जा।
तत्थ पाणाइवायं पुढवि-दगागणिमारुय-वणप्फती-बिति-चउ-पंचेंदियाईणं संघटण-परिया- वण-किलामणोद्दवणे।
मुसावायं सुहुमं बायरं च। तत्थ सुहुमं पयला-उल्ला मरुए एवमादि, बादरो कण्णालीगादि।
अदिन्नादाणं सुहुमं बादरं च। तत्थ सुहुमं तण-डगल-च्छार-मल्लगादिणं गहणे, बादरं हिरन्न-सुवण्णादिणं। मेहुणं दिव्वोरालियं मनोवइ-काय-करण-कारावणानुमइभेदेण अट्ठरसहा; तहा करकम्मादी, सचित्ताचित्त-भेदेणं नवगुत्ति-विराहणेण वा विभूसावत्तिएण वा।
परिग्गहं सुहुमं बादरं च। तत्थ Translated Sutra: મૂલગુણ અને ઉત્તરગુણમાં ચારિત્રકુશીલ અનેક ભેદે જાણવા. તેમાં પાંચ મહાવ્રત અને રાત્રિભોજન છઠ્ઠું એમ મૂલગુણો કહ્યા. તે છમાં જે પ્રમાદ કરે, તેમાં પ્રાણાતિપાત એટલે પૃથ્વી, પાણી, અગ્નિ, વાયુ, વનસ્પતિરૂપ એકેન્દ્રિય જીવો, બે – ત્રણ – ચાર – પાંચ ઇન્દ્રિયવાળા જીવોનો સંઘટ્ટો કરવો, પરિતાપ ઉપજાવવો, કિલામણા કરવી. મૃષાવાદ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Gujarati | 757 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ हिरन्न-सुवन्ने धन-धन्ने कंस-दूस-फलहाणं।
सयनान आसनान य न य परिभोगो तयं गच्छं॥ Translated Sutra: જેમાં હીરણ્ય, ધન – ધાન્ય, કાંસુ આદિ ધાતુ, શયન – આસન આદિ ગૃહસ્થ ઉપભોગ્ય વસ્તુ ન વપરાય તે ગચ્છ કહેવાય. | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Gujarati | 758 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ हिरन्न-सुवन्नं हत्थेण परागयं पि नो च्छिप्पे।
कारण-समप्पियं पि हु खण-निमिसद्धं पि तं गच्छं॥ Translated Sutra: જેમાં કોઈ કારણે સમર્પણ કરેલ હોય એવું પારકું સુવર્ણ આવેલ હોય તો ક્ષણવારને માટે પણ ન સ્પર્શે તે ગચ્છ જાણ. | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 868 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अद्ध-तेरस-कोडीओ, दविण-जायस्स जा तहिं।
हिरन्न-वुट्ठिं दावेउं, मंदिरा पडिगच्छइ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૬૫ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Gujarati | 1375 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं अनिगूहिय बल-विरिय-पुरिसक्कार-परक्कमो, सम-तण-मणि-लिट्ठु-कंचणोवेक्को॥
परिचत्त-कलत्त-पुत्त-सुहि-सयन-मित्त-बंधव-धन-धन्न-सुवन्न-हिरन्न-मणी-रयण-सार-भंडारो॥
अच्चंत-परम-वेरग्गवासणाजणिय-पवर- सुहज्झाय-परम-धम्म-सद्धा-परो॥
अकिलिट्ठ-निक्कलुस-अदीन-मानसो य वय-नियम-नाण-चरित्त- तवाइ-सयल-भुवणेक्क-मंगल-अहिंसा-लक्खण-खंताइ-दस-विह- धम्माणुट्ठाणेक्कंत-बद्ध-लक्खो॥
सव्वावस्सग्ग-तक्काल-करण-सज्झाय-झाणं आउत्तो, संखाईय-अनेग-कसिण-संजम-पएसु अविखलिओ, संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय-पाव-कम्मो, अनियाणो माया-मोस-विवज्जिओ, साहू वा साहूणी वा एवं गुण-कलिओ, जइ कह वि पमाय -दोसेणं असइं कहिंचि कत्थइ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૭૪ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Gujarati | 1484 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ ते णं काले णं ते णं समएणं सुसढणामधेज्जे अनगारे हभूयवं। तेणं च एगेगस्स णं पक्खस्संतो पभूय-ट्ठाणिओ आलोयणाओ विदिन्नाओ सुमहंताइं च। अच्चंत घोर सुदुक्कराइं पायच्छित्ताइं समनुचिन्नाइं। तहा वि तेणं विरएणं विसोहिपयं न समुवलद्धं ति एतेणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ।
से भयवं केरिसा उ णं तस्स सुसढस्स वत्तव्वया गोयमा अत्थि इहं चेव भारहेवासे, अवंती नाम जनवओ। तत्थ य संबुक्के नामं खेडगे। तम्मि य जम्मदरिद्दे निम्मेरे निक्किवे किविणे निरणुकंपे अइकूरे निक्कलुणे णित्तिंसे रोद्दे चंडरोद्दे पयंडदंडे पावे अभिग्गहिय मिच्छादिट्ठी अणुच्चरिय नामधेज्जे Translated Sutra: હે ભગવન્ ! કયા કારણથી આમ કહ્યું ? તે કાળે, તે સમયે અહીં સુસઢ નામે એક અણગાર હતો. તેણે એક એક પક્ષની અંદર ઘણા અસંયમ સ્થાનકોની આલોચના આપી અને અતિ મહાન ઘોર દુષ્કર પ્રાયશ્ચિત્તોનું સેવન કર્યું. તો પણ તે વિચારોને વિશુદ્ધિ પદ પ્રાપ્ત ન થયું. આ કારણે એમ કહેવાયું. ભગવન્ ! તે સુસઢની વક્તવ્યતા કેવા પ્રકારે છે ? ગૌતમ ! આ ભારતવર્ષમાં | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Gujarati | 1498 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं पुन काऊणं एरिसा सुलहबोही जाया सा सुगहियनामधेज्जा माहणी जीए एयावइयाणं भव्व-सत्ताणं अनंत संसार घोर दुक्ख संतत्ताणं सद्धम्म देसणाईहिं तु सासय सुह पयाणपुव्वगमब्भुद्धरणं कयं ति। गोयमा जं पुव्विं सव्व भाव भावंतरंतरेहिं णं नीसल्ले आजम्मा-लोयणं दाऊणं सुद्धभावाए जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं। पायच्छित्तसमत्तीए य समाहिए य कालं काऊणं सोहम्मे कप्पे सुरिंदग्गमहिसी जाया तमनुभावेणं।
से भयवं किं से णं माहणी जीवे तब्भवंतरम्मि समणी निग्गंथी अहेसि जे णं नीसल्लमालोएत्ता णं जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं ति। गोयमा जे णं से माहणी जीवे से णं तज्जम्मे बहुलद्धिसिद्धी Translated Sutra: હે ભગવન્ ! તે બ્રાહ્મણીએ એવું શું કર્યું હતું કે જેથી આ પ્રમાણે સુલભબોધિ પામીને સવારના પહોરમાં નામ ગ્રહણ કરવા લાયક બની ? તેમજ તેના ઉપદેશથી અનેક ભવ્યજીવો, નર અને નારીના સમુદાય કે જેઓ અનંત સંસારના ઘોર દુઃખમાં સબડી રહેલા હતા તેમને સુંદર ધર્મદેશના વગેરે દ્વારા શાશ્વત સુખ આપીને તેણીએ તેમનો ઉદ્ધાર કર્યો ? હે ગૌતમ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 350 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू नवग-निवेसंसि अयागरंसि वा तंबागरंसि वा तउआगरंसि वा सीसागरंसि वा हिरन्नागरंसि वा सुवण्णागरंसि वा वइरागरंसि वा अनुप्पविसित्ता असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: देखो सूत्र ३४९ | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Gujarati | 350 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू नवग-निवेसंसि अयागरंसि वा तंबागरंसि वा तउआगरंसि वा सीसागरंसि वा हिरन्नागरंसि वा सुवण्णागरंसि वा वइरागरंसि वा अनुप्पविसित्ता असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ – સાધ્વી લોઢા, તાંબા, તરુઆ, શીશા, ચાંદી, સોના કે વજ્રરત્નની ખાણ પાસે વસેલી નવી વસતિમાં જઈને અશન, પાન, ખાદિમ, સ્વાદિમ ગ્રહણ કરે કે કરનારને અનુમોદે તો પ્રાયશ્ચિત્ત. | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 415 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] गोमादी य चउप्पय अपदं फलधन्नमादियं होति ।
अच्चित्त हिरन्नादी दुपयादि सभंड मीसम्मि ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 561 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] गामेगो चोर पडिया वत्थहिरन्नादि गेण्हितुं ते य ।
संपट्ठिते य पल्लिं रूववती महिलिया भणति ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 415 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] गोमादी य चउप्पय अपदं फलधन्नमादियं होति ।
अच्चित्त हिरन्नादी दुपयादि सभंड मीसम्मि ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 561 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] गामेगो चोर पडिया वत्थहिरन्नादि गेण्हितुं ते य ।
संपट्ठिते य पल्लिं रूववती महिलिया भणति ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ अब्रह्म |
Hindi | 19 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण निसेवंति सुरगणा सअच्छरा मोह मोहिय मती, असुर भयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिस पवण थणिया। अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवादिय भूयवादियकंदिय महाकंदिय कूहंड पतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्व तिरिय जोइस विमाणवासि मणुयगणा, जलयर थलयर खहयराय मोहपडिबद्धचित्ता अवितण्हा कामभोग-तिसिया, तण्हाए बलवईए महईए समभिभूया गढिया य अतिमुच्छिया य, अबंभे ओसण्णा, तामसेन भावेण अणुम्मुक्का, दंसण-चरित्तमोहस्स पंजरं पिव करेंतिअन्नोन्नं सेवमाणा।
भुज्जो असुर सुर तिरिय मणुय भोगरत्ति विहार संपउत्ता य चक्कवट्टी सुरनरवतिसक्कया सुरवरव्व देवलोए भरह नग नगर नियम Translated Sutra: उस अब्रह्म नामक पापास्रव को अप्सराओं के साथ सुरगण सेवन करते हैं। कौन – से देव सेवन करते हैं ? जिनकी मति मोह के उदय से मूढ़ बन गई है तथा असुरकुमार, भुजगकुमार, गरुड़कुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार तथा स्तनितकुमार, ये भवनवासी, अणपन्निक, पणपण्णिक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, |