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Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 161 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं छनामे? छनामे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. उदइए २. उवसमिए ३. खइए ४. खओवसमिए ५. पारिणामिए ६. सन्निवाइए। से किं तं उदइए? उदइए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–उदए य उदयनिप्फन्ने य। से किं तं उदए? उदए–अट्ठण्हं कम्मपयडीणं उदए णं। से तं उदए। से किं तं उदयनिप्फन्ने? उदयनिप्फन्ने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– जीवोदयनिप्फन्ने य अजीवो-दयनिप्फन्ने य। से किं तं जीवोदयनिप्फन्ने? जीवोदयनिप्फन्ने अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–नेरइए तिरिक्ख-जोणिए मनुस्से देवे पुढविकाइए आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए वणस्सइकाइए तसकाइए, कोहकसाई मानकसाई मायाकसाई लोभकसाई, इत्थिवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए, कण्हलेसे

Translated Sutra: छहनाम क्या है ? छह प्रकार हैं। औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सान्निपातिक। औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार का है। औदयिक और उदयनिष्पन्न। औदयिक क्या है ? ज्ञानावरणादिक आठ कर्मप्रकृतियों के उदय से होने वाला औदयिकभाव है। उदयनिष्पन्न औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार हैं – जीवोदयनिष्पन्न, अजीवोदयनिष्पन्न। जीवोदयनिष्पन्न
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Hindi 215 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहा कप्पट्ठिती पन्नत्ता, तं जहा–सामाइयसंजयकप्पट्ठिती, छेदोवट्ठावणिय-संजयकप्पट्ठिती, निव्विसमाणकप्पट्ठिती, निव्विट्ठकाइयकप्पट्ठिती, जिणकप्पट्ठिती, थेरकप्पट्ठिती।

Translated Sutra: कल्पदशा (साधु – साध्वी की आचार मर्यादा) छ तरह की होती है। वो इस प्रकार सामायिक चारित्रवाले की छेदोपस्थापना रूप, परिहार विशुद्धि तप स्वीकार करनेवाले की, पारिहारिक तप पूरे करनेवाले की, जिनकल्प की और स्थविर कल्प की ऐसे छ तरह की आचार मर्यादा है। (विस्तार से समझने के लिए भाष्य और वृत्ति देखें।) इस प्रकार मैं (तुम्हें)
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

उपसंहार

Hindi 135 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] महानिसीह-कप्पाओ ववहाराओ तहेव य । साहु-साहुणिअट्ठाए गच्छायारं समुद्धियं ॥

Translated Sutra: महानिशीथ, कल्प और व्यवहारभाष्य में से साधु – साध्वी के लिए यह गच्छाचार प्रकरण उद्धृत किया है।
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3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

3. ज्ञान-कर्म समन्वय Hindi 37 View Detail
Mool Sutra: हयं नाणं कियाहीणं, हया अन्नाणओ किया। पासंतो पंगुलो दड्ढो, धावमाणो य अंधओ ।।

Translated Sutra: क्रिया-विहीन ज्ञान भी नष्ट है और ज्ञान-विहीन क्रिया भी। नगर में आग लगने पर, पंगु तो देखता-देखता जल गया और अन्धा दौड़ता-दौड़ता।
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3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

3. ज्ञान-कर्म समन्वय Hindi 38 View Detail
Mool Sutra: संजोगसिद्धीइ फलं वयंति, न हु एगचक्केण रहो पयाइ। अंधो य पंगू य वणे समिच्चा, ते संपउत्ता नगरं पविट्ठा ।।

Translated Sutra: संयोग सिद्ध हो जाने पर ही फल प्राप्त होते हैं। एक चक्र से कभी रथ नहीं चलता। न दिखने के कारण तो अन्धा और न चलने के कारण पंगु दोनों ही उस समय तक वन से बाहर निकल नहीं पाये, जब तक कि परस्पर मिलकर पंगु अन्धे के कन्धे पर नहीं बैठ गया। पंगु ने मार्ग बताया और अन्धा चला। इस प्रकार दोनों वन से निकलकर नगर में प्रविष्ट हो गये।
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7. व्यवहार-चारित्र अधिकार - (साधना अधिकार) [कर्म-योग]

2. मोक्षमार्ग में चारित्र (कर्म) का स्थान Hindi 141 View Detail
Mool Sutra: सुबहुं पि सुयमहीयं, किं काही चरणविप्पहीणस्स। अंधस्स जह पलित्ता, दीवसयसहस्सकोड़ी वि ।।

Translated Sutra: भले ही बहुत सारे शास्त्र पढ़े हों, परन्तु चारित्रहीन के लिए वे सब किस काम के? हजारों करोड़ भी जगे हुए दीपक अन्धे के लिए किस काम के?
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8. आत्मसंयम अधिकार - (विकर्म योग)

9. सामायिक-सूत्र Hindi 187 View Detail
Mool Sutra: जो समो सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य। तस्स सामाइयं होइ, इई केवलिभासियं ।।

Translated Sutra: जो मुनि त्रस व स्थावर सभी भूतों अर्थात् देहधारियों में समता भाव युक्त होता है, उसको सामायिक होती है, ऐसा केवली भगवान् ने कहा है।
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8. आत्मसंयम अधिकार - (विकर्म योग)

9. सामायिक-सूत्र Hindi 188 View Detail
Mool Sutra: सावज्जजोगंपरिक्खणट्ठा, सामाइयं केवलियं पसत्थं। गिहत्थधम्मापरमं ति नच्चा, कुज्जा बुहो आयहियं परत्था ।।

Translated Sutra: सावद्य योग से अर्थात् पापकार्यों से अपनी रक्षा करने के लिए पूर्णकालिक सामायिक या समता ही प्रशस्त है (परन्तु वह प्रायः साधुओं को ही सम्भव है)। गृहस्थों के लिए भी वह परम धर्म है, ऐसा जानकर स्व-पर के हितार्थ बुधजन सामायिक अवश्य करें।
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8. आत्मसंयम अधिकार - (विकर्म योग)

9. सामायिक-सूत्र Hindi 190 View Detail
Mool Sutra: सामाइयं उ कए, समणो इव सावहो हवइ जम्हा। एएण कारणेण बहुसो सामाइयं कुज्जा ।।

Translated Sutra: सामायिक के समय श्रावक श्रमण के तुल्य हो जाता है। इसलिए सामायिक दिन में अनेक बार करनी चाहिए।
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11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

13. उत्तम त्याग Hindi 279 View Detail
Mool Sutra: सव्वे भावे जम्हा, पच्चक्खाई परेत्ति णादूणं। तम्हा पच्चक्खाणं, णाणं णियमा मुणेदव्वं ।।

Translated Sutra: अपने से अतिरिक्त सभी पदार्थों को `ये मुझसे पर हैं' ऐसा जानकर, ज्ञान ही प्रत्याख्यान करता है, इसलिए ज्ञान या आत्मा ही स्वयं स्वभाव से प्रत्याख्यान या त्याग स्वरूप है, ऐसा जानना चाहिए।
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12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग)

3. पुद्गल द्रव्य (तन्मात्रा महाभूत) Hindi 298 View Detail
Mool Sutra: ओरालियो य देहो, देहो वेउव्विओ य तेजइओ। आहारय कम्मइओ, पुग्गलदव्वप्पगा सव्वे ।।

Translated Sutra: मनुष्यादि के स्थूल शरीर `औदारिक' कहलाते हैं और देवों व नारकियों के `वैक्रियिक'। इन स्थूल शरीरों में स्थित इनमें कान्ति व स्फूर्ति उत्पन्न करने वाली तेज शक्ति `तैजस शरीर' है। योगी जनों का ऋद्धि-सम्पन्न अदृष्ट शरीर `आहारक' कहलाता है। और रागद्वेषादि तथा इनके कारण से संचित कर्मपुंज `कार्मण शरीर' माना गया है। ये पाँचों
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13. तत्त्वार्थ अधिकार

6. बन्ध तत्त्व (संचित कर्म) Hindi 331 View Detail
Mool Sutra: रत्तो बंधदि कम्मं, मुच्चदि कम्मेहिं रागरहिदप्पा। एसो बंधसमासो, जीवाणं जाण णिच्छयदो ।।

Translated Sutra: रागी जीव ही कर्मों को बाँधता है, और राग-रहित उनसे मुक्त होता है। परमार्थतः संसारी जीवों के लिए राग ही एक मात्र बन्ध का कारण व बन्धस्वरूप है।
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13. तत्त्वार्थ अधिकार

8. मोक्ष तत्त्व (स्वतन्त्रता) Hindi 337 View Detail
Mool Sutra: लाउअ एरण्डफले, अग्गीधूमे उसू धणुविमुक्के। गइपुव्वपओगेणं, एवं सिद्धाण वि गती तु ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार मिट्टी का लेप धुल जाने पर तूम्बी स्वतः जल के ऊपर आ जाती है, जिस प्रकार एरण्ड का बीज गर्मी के दिनों में चटखकर स्वयं ऊपर की ओर जाता है, जिस प्रकार अग्नि की शिखा तथा धूम का स्वाभाविक ऊर्ध्व गमन होता है और जिस प्रकार धनुष्य से छूटे हुए बाण का पूर्व प्रयोग के कारण ऊपर की ओर गमन होता है, उसी प्रकार पूर्व प्रयोगवश
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13. तत्त्वार्थ अधिकार

8. मोक्ष तत्त्व (स्वतन्त्रता) Hindi 339 View Detail
Mool Sutra: जत्थ य एगो सिद्धो, तत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का। अन्नोन्नसमोगाढा, पुट्ठा सव्वे वि लोगंते ।।

Translated Sutra: लोक-शिखर पर जहाँ एक सिद्ध या मुक्तात्मा स्थित होती है, वहीँ एक दूसरे में प्रवेश पाकर संसार से मुक्त हो जाने वाली अनन्त सिद्धात्माएँ स्थित हो जाती हैं। चरम शरीराकार इन सबके सिर लोकाकाश के ऊपरी अन्तिम छोर को स्पर्श करते हैं।
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

3. वस्तु की जटिलता Hindi 370 View Detail
Mool Sutra: तम्हा वत्थूणं चिय, जो सरिसो पज्जवो स सामन्नं। जो विसरिसो विसेसो, स मओऽणत्थंतरं तत्तो ।।

Translated Sutra: प्रत्येक वस्तु में दो अंश होते हैं। सदृश रूप से सदा अनुगत रहनेवाला गुण तो सामान्य अंश है और एक-दूसरे से विसदृश ऐसी बाल-वृद्धादि पर्यायें विशेष अंश हैं। दोनों एक-दूसरे से पृथक् कुछ नहीं हैं। (इसलिए वस्तु सामान्यविशेषात्मक है।)
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

1. नयवाद Hindi 381 View Detail
Mool Sutra: जावंतो वयणपहा, तावंतो वा नया विसद्दाओ। ते चेव य परसमया, सम्मत्तं समुदया सव्वे ।।

Translated Sutra: जगत् में जो कुछ भी बोलने में आता है वह सब वास्तव में किसी न किसी नय में गर्भित है। पृथक् पृथक् रहे हुए ये सभी पर-समय अर्थात् मिथ्यादृष्टि हैं, और परस्पर में समुदित हो जाने पर सभी सम्यग्दृष्टि हैं। (कारण अगली गाथा में बताया गया है।)
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

2. पक्षपात-निरसन Hindi 382 View Detail
Mool Sutra: न समेन्ति न च समेया, सम्मत्तं णेव वत्थुणो गमगा। वत्थुविघाताय नया, विरोहओ वेरिणो चेव ।।

Translated Sutra: परस्पर विरोधी होने के कारण ये नय या पक्ष क्योंकि एक-दूसरे के साथ मैत्रीभाव से मेल नहीं करते हैं और पृथक्-पृथक् अपने-अपने पक्ष का ही राग अलापते रहते हैं, इसलिए न तो सम्यक्भाव को प्राप्त हो पाते हैं, और न अनेकान्तस्वरूप वस्तु के ज्ञापक ही हो पाते हैं, बल्कि वैरियों की भाँति एक-दूसरे के साथ विवाद करते रहने के कारण
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

2. पक्षपात-निरसन Hindi 383 View Detail
Mool Sutra: सव्वे समयंति सम्मं, चेगवसाओ नया विरुद्धा वि। भिच्च-ववहारिणो इव, राओदासीणवसवत्ती ।।

Translated Sutra: किसी एक स्याद्वादी के वशवर्ती हो जाने पर, परस्पर विरुद्ध भी ये सभी नयवाद समुदित होकर उसी प्रकार सम्यक्त्वभाव को प्राप्त हो जाते हैं, जिस प्रकार राजा के वशवर्ती हो जाने पर अनेक अभिप्रायों को रखने वाला भृत्य-समूह एक हो जाता है। अथवा किसी व्यवहारकुशल निष्पक्ष व्यक्ति को प्राप्त हो जाने पर, धन-धान्यादि के अर्थ
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

3. नयवाद की सार्वभौमिकता Hindi 389 View Detail
Mool Sutra: जमणेगधम्मणो वत्थुणो, तदंसे च सव्वपडिवत्ती। अन्धव्व गयावयवे, तो मिच्छद्दिट्ठिणो वीसु ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार हाथी को टटोल-टटोल कर देखने वाले जन्मान्ध पुरुष उसके एक एक अंग को ही पूरा हाथी मान बैठते हैं, उसी प्रकार अनेक धर्मात्मक वस्तु के विषय में अपनी अपनी अटकल दौड़ानेवाले मिथ्यादृष्टि मनुष्य वस्तु के किसी एक एक अंश को ही सम्पूर्ण वस्तु मान बैठते हैं।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

3. नयवाद की सार्वभौमिकता Hindi 390 View Detail
Mool Sutra: परसयएगनयमयं, तप्पडिवक्खनयओ निवत्तेज्जा। समए व परिग्गहियं, परेण जं दोसबुद्धीए ।।

Translated Sutra: एकान्त पक्षपाती वे पर-समय या मिथ्यादृष्टि स्वाभिप्रेत एक नय को मान कर उसके प्रतिपक्षभूत अन्य नयों या मतों का निराकरण करने लगते हैं। अथवा दूसरों के धर्म या मत में जो बात ग्रहण की गयी हो, उसमें दोष देखने लगते हैं।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

4. नय की हेयोपादेयता Hindi 393 View Detail
Mool Sutra: अत्थं जो न समिक्खइ, निक्खेव-नय-प्पमाणओविहिणा। तस्साजुत्तं जुत्तं, जुत्तमजुत्तं व पडिहाइ ।।

Translated Sutra: जो मनुष्य पदार्थ के स्वरूप की प्रमाण नय व निक्षेप से सम्यक् प्रकार समीक्षा नहीं करता है, उसे कदाचित् अयुक्त भी युक्त प्रतिभासित होता है और युक्त भी अयुक्त। (इसलिए नयातीत उस तत्त्व का निर्णय करने के लिए नयज्ञान प्रयोजनीय है।)
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

5. नय-योजना-विधि Hindi 396 View Detail
Mool Sutra: पज्जउ गउणं किज्जा, दव्वं पि य जोहु गिहणए लोए। सो दव्वत्थिय भणिओ, विवरीओ पज्जेयत्थिओ ।।

Translated Sutra: पर्याय को गौण करके जो द्रव्य को मुख्यतः ग्रहण करता है, वह द्रव्यार्थिक नय है। उससे विपरीत पर्यायार्थिक नय है। अर्थात् द्रव्य को गौण करके जो पर्याय का मुख्यतः ग्रहण है, वह पर्यायार्थिक नय है।
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17. स्याद्वाद अधिकार - (सर्वधर्म-समभाव)

1. सर्वधर्म-समभाव Hindi 399 View Detail
Mool Sutra: जं पुण समत्तपज्जाय, वत्थुगमग त्ति समुदिया तेणं। सम्मत्तं चक्खुमओ, सव्वगयावयवगहणे व्व ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार नेत्रवान् पुरुष सांगोपांग हाथी को ही हाथी के रूप में ग्रहण करता है, उसके किसी एक अंग को नहीं; उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि व्यक्ति समस्त पर्यायों या विशेषों से विशिष्ट समुदित वस्तु को ही तत्त्वरूपेण ग्रहण करता है, उसके किसी एक धर्म या विशेष को नहीं।
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17. स्याद्वाद अधिकार - (सर्वधर्म-समभाव)

1. सर्वधर्म-समभाव Hindi 400 View Detail
Mool Sutra: उदधाविव सर्वसिन्धवः, समुदीर्णास्त्वयिनाथ दृष्ट्यः। न च तासु भवान् प्रदृश्यते, प्रविभक्तासु सरित्स्वोदधिः ।।

Translated Sutra: हे नाथ! जिस प्रकार सभी नदियाँ समुद्र में मिल जाती हैं, उसी प्रकार सभी दृष्टियाँ अर्थात् धर्म, आपकी स्याद्वादी दृष्टि में आकर मिल जाते हैं। जिस प्रकार भिन्न-भिन्न नदियों में सागर नहीं रहता, उसी प्रकार विभिन्न एकान्तवादी पक्षों में आप अर्थात् स्याद्वाद नहीं रहता।
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18. आम्नाय अधिकार

1. जैनधर्म की शाश्वतता Hindi 408 View Detail
Mool Sutra: जंबूद्दीवे भरहेरावएसु वासेसु, एगसमए एगजुगे दो। अरहंतवंसा उप्पज्जिंसु वा, उप्पज्जिंति वा उप्पज्जिस्संति वा ।।

Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप के भरत और ऐरावत इन दो वर्षों या क्षेत्रों में एक साथ अर्हंत या तीर्थंकर वंशों की उत्पत्ति अतीत में हुई है, वर्तमान में हो रही है और भविष्य में भी इसी प्रकार होती रहेगी। (वर्तमान युग के तीर्थंकरों में ऋषभदेव प्रथम हैं, अरिष्टनेमि २२ वें, पार्श्वनाथ २३ वें और भगवान् महावीर अन्तिम अर्थात् २४ वें
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18. आम्नाय अधिकार

4. श्वेताम्बर सूत्र Hindi 420 View Detail
Mool Sutra: एवमेव महापउम्मो वि, अरहा समणाणं निग्गंथाणं। पंचमहव्वयाइं जाव, अचेलगं धम्मं पण्णविहिउ ।।

Translated Sutra: इसी प्रकार आगामी तीर्थंकर भगवान् महापद्म भी पंच महाव्रतों से युक्त अचेलक धर्म का ही प्ररूपण करेंगे।
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3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

3. ज्ञान-कर्म समन्वय Hindi 37 View Detail
Mool Sutra: हतं ज्ञानं क्रियाहीनं, हताऽज्ञानतः क्रिया। पश्यन् पंगुर्दग्धो, धावमानश्चान्धकः ।।

Translated Sutra: क्रिया-विहीन ज्ञान भी नष्ट है और ज्ञान-विहीन क्रिया भी। नगर में आग लगने पर, पंगु तो देखता-देखता जल गया और अन्धा दौड़ता-दौड़ता।
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3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

3. ज्ञान-कर्म समन्वय Hindi 38 View Detail
Mool Sutra: संयोगसिद्धौ फलं वदन्ति, न खल्वेकचक्रेण रथः प्रयाति। अन्धश्च पंगुश्च वने समेत्य, तौ संप्रयुक्तौ नगरं प्रविष्टौ ।।

Translated Sutra: संयोग सिद्ध हो जाने पर ही फल प्राप्त होते हैं। एक चक्र से कभी रथ नहीं चलता। न दिखने के कारण तो अन्धा और न चलने के कारण पंगु दोनों ही उस समय तक वन से बाहर निकल नहीं पाये, जब तक कि परस्पर मिलकर पंगु अन्धे के कन्धे पर नहीं बैठ गया। पंगु ने मार्ग बताया और अन्धा चला। इस प्रकार दोनों वन से निकलकर नगर में प्रविष्ट हो गये।
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7. व्यवहार-चारित्र अधिकार - (साधना अधिकार) [कर्म-योग]

2. मोक्षमार्ग में चारित्र (कर्म) का स्थान Hindi 141 View Detail
Mool Sutra: सुबह्वपि श्रुतमधीतं, किं करिष्यति चरणविप्रहीनस्य। अन्धस्य यथा प्रदीप्ता, दीपशतसहस्रकोटिरपि ।।

Translated Sutra: भले ही बहुत सारे शास्त्र पढ़े हों, परन्तु चारित्रहीन के लिए वे सब किस काम के? हजारों करोड़ भी जगे हुए दीपक अन्धे के लिए किस काम के?
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8. आत्मसंयम अधिकार - (विकर्म योग)

9. सामायिक-सूत्र Hindi 187 View Detail
Mool Sutra: यः समः सर्वभूतेषु त्रसेषु स्थावरेषु च। तस्य सामायिकं भवतीति केवलिभाषितम् ।।

Translated Sutra: जो मुनि त्रस व स्थावर सभी भूतों अर्थात् देहधारियों में समता भाव युक्त होता है, उसको सामायिक होती है, ऐसा केवली भगवान् ने कहा है।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

8. आत्मसंयम अधिकार - (विकर्म योग)

9. सामायिक-सूत्र Hindi 188 View Detail
Mool Sutra: सावद्ययोगपरिरक्षणार्थं सामायिकं केवलिकं प्रशस्तम्। गृहस्थधर्मान् परमिति ज्ञात्वा, कुर्याद् बुध आत्महितं परार्थम् ।।

Translated Sutra: सावद्य योग से अर्थात् पापकार्यों से अपनी रक्षा करने के लिए पूर्णकालिक सामायिक या समता ही प्रशस्त है (परन्तु वह प्रायः साधुओं को ही सम्भव है)। गृहस्थों के लिए भी वह परम धर्म है, ऐसा जानकर स्व-पर के हितार्थ बुधजन सामायिक अवश्य करें।
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8. आत्मसंयम अधिकार - (विकर्म योग)

9. सामायिक-सूत्र Hindi 190 View Detail
Mool Sutra: सामायिके तु कृते श्रमण इव श्रावको भवति यस्मात्। एतेन कारणेन बहुशः सामायिकं कुर्यात् ।।

Translated Sutra: सामायिक के समय श्रावक श्रमण के तुल्य हो जाता है। इसलिए सामायिक दिन में अनेक बार करनी चाहिए।
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11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

13. उत्तम त्याग Hindi 279 View Detail
Mool Sutra: ज्ञानं सर्वान्भावान्, प्रत्याख्याति परानिति ज्ञात्वा। तस्मात् प्रत्याख्यानं, ज्ञानं नियमात् मन्तव्यम् ।।

Translated Sutra: अपने से अतिरिक्त सभी पदार्थों को `ये मुझसे पर हैं' ऐसा जानकर, ज्ञान ही प्रत्याख्यान करता है, इसलिए ज्ञान या आत्मा ही स्वयं स्वभाव से प्रत्याख्यान या त्याग स्वरूप है, ऐसा जानना चाहिए।
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12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग)

3. पुद्गल द्रव्य (तन्मात्रा महाभूत) Hindi 298 View Detail
Mool Sutra: औदारिकश्च देहो, देहो वैक्रियकश्च तैजसः। आहारकः कार्माणः, पुद्गलद्रव्यात्मिकाः सर्वे ।।

Translated Sutra: मनुष्यादि के स्थूल शरीर `औदारिक' कहलाते हैं और देवों व नारकियों के `वैक्रियिक'। इन स्थूल शरीरों में स्थित इनमें कान्ति व स्फूर्ति उत्पन्न करने वाली तेज शक्ति `तैजस शरीर' है। योगी जनों का ऋद्धि-सम्पन्न अदृष्ट शरीर `आहारक' कहलाता है। और रागद्वेषादि तथा इनके कारण से संचित कर्मपुंज `कार्मण शरीर' माना गया है। ये पाँचों
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13. तत्त्वार्थ अधिकार

6. बन्ध तत्त्व (संचित कर्म) Hindi 331 View Detail
Mool Sutra: रक्तो बध्नाति कर्मं, मुच्यते कर्माभिः रागरहितात्मा। एष बन्धसामासो, जीवानां जानीहि निश्चयतः ।।

Translated Sutra: रागी जीव ही कर्मों को बाँधता है, और राग-रहित उनसे मुक्त होता है। परमार्थतः संसारी जीवों के लिए राग ही एक मात्र बन्ध का कारण व बन्धस्वरूप है।
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13. तत्त्वार्थ अधिकार

8. मोक्ष तत्त्व (स्वतन्त्रता) Hindi 337 View Detail
Mool Sutra: अलाबु च ऐरण्डफलमग्निर्धूमश्चेषुर्धनुविप्रमुक्तः। गतिः पूर्वप्रयोगेणैवं सिद्धानामपि गतिस्तु ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार मिट्टी का लेप धुल जाने पर तूम्बी स्वतः जल के ऊपर आ जाती है, जिस प्रकार एरण्ड का बीज गर्मी के दिनों में चटखकर स्वयं ऊपर की ओर जाता है, जिस प्रकार अग्नि की शिखा तथा धूम का स्वाभाविक ऊर्ध्व गमन होता है और जिस प्रकार धनुष्य से छूटे हुए बाण का पूर्व प्रयोग के कारण ऊपर की ओर गमन होता है, उसी प्रकार पूर्व प्रयोगवश
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13. तत्त्वार्थ अधिकार

8. मोक्ष तत्त्व (स्वतन्त्रता) Hindi 339 View Detail
Mool Sutra: यत्र च एकः सिद्धस्तत्रानन्ता भवक्षयविमुक्ताः। अन्योन्यसमवगाढाः स्पृष्टाः सर्वेऽपि लोकान्ते ।।

Translated Sutra: लोक-शिखर पर जहाँ एक सिद्ध या मुक्तात्मा स्थित होती है, वहीँ एक दूसरे में प्रवेश पाकर संसार से मुक्त हो जाने वाली अनन्त सिद्धात्माएँ स्थित हो जाती हैं। चरम शरीराकार इन सबके सिर लोकाकाश के ऊपरी अन्तिम छोर को स्पर्श करते हैं।
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

3. वस्तु की जटिलता Hindi 370 View Detail
Mool Sutra: तस्माद् वस्तूनामेव, यः सदृशः पर्ययः स सामान्यम्। यो विसदृशो विशेषः, स मतोऽनर्थान्तरं ततः ।।

Translated Sutra: प्रत्येक वस्तु में दो अंश होते हैं। सदृश रूप से सदा अनुगत रहनेवाला गुण तो सामान्य अंश है और एक-दूसरे से विसदृश ऐसी बाल-वृद्धादि पर्यायें विशेष अंश हैं। दोनों एक-दूसरे से पृथक् कुछ नहीं हैं। (इसलिए वस्तु सामान्यविशेषात्मक है।)
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

1. नयवाद Hindi 381 View Detail
Mool Sutra: यावन्तो वचनपथास्तावन्तो, वा नया अपि शब्दात्। त एव च परसमयाः, सम्यक्त्वं समुदिता सर्वे ।।

Translated Sutra: जगत् में जो कुछ भी बोलने में आता है वह सब वास्तव में किसी न किसी नय में गर्भित है। पृथक् पृथक् रहे हुए ये सभी पर-समय अर्थात् मिथ्यादृष्टि हैं, और परस्पर में समुदित हो जाने पर सभी सम्यग्दृष्टि हैं। (कारण अगली गाथा में बताया गया है।)
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

2. पक्षपात-निरसन Hindi 382 View Detail
Mool Sutra: न समयन्ति न च समेताः, सम्यक्त्वं नैव वस्तुनो गमकाः। वस्तुविघाताय नया, विरोधतो वैरिण इव ।।

Translated Sutra: परस्पर विरोधी होने के कारण ये नय या पक्ष क्योंकि एक-दूसरे के साथ मैत्रीभाव से मेल नहीं करते हैं और पृथक्-पृथक् अपने-अपने पक्ष का ही राग अलापते रहते हैं, इसलिए न तो सम्यक्भाव को प्राप्त हो पाते हैं, और न अनेकान्तस्वरूप वस्तु के ज्ञापक ही हो पाते हैं, बल्कि वैरियों की भाँति एक-दूसरे के साथ विवाद करते रहने के कारण
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

2. पक्षपात-निरसन Hindi 383 View Detail
Mool Sutra: सर्वे समयन्ति समम्यक्त्वं, चैकवशाद् नया विरुद्धा अपि। भूत्यव्यवहारिण इव, राजोदासीनवशवर्तिनः ।।

Translated Sutra: किसी एक स्याद्वादी के वशवर्ती हो जाने पर, परस्पर विरुद्ध भी ये सभी नयवाद समुदित होकर उसी प्रकार सम्यक्त्वभाव को प्राप्त हो जाते हैं, जिस प्रकार राजा के वशवर्ती हो जाने पर अनेक अभिप्रायों को रखने वाला भृत्य-समूह एक हो जाता है। अथवा किसी व्यवहारकुशल निष्पक्ष व्यक्ति को प्राप्त हो जाने पर, धन-धान्यादि के अर्थ
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

3. नयवाद की सार्वभौमिकता Hindi 389 View Detail
Mool Sutra: यदनेकधर्मणो वस्तुनस्तदंशे, च सर्वप्रतिपत्तिः। अन्धा इव गजावयवे, ततो मिथ्यादृष्टयो विष्वक् ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार हाथी को टटोल-टटोल कर देखने वाले जन्मान्ध पुरुष उसके एक एक अंग को ही पूरा हाथी मान बैठते हैं, उसी प्रकार अनेक धर्मात्मक वस्तु के विषय में अपनी अपनी अटकल दौड़ानेवाले मिथ्यादृष्टि मनुष्य वस्तु के किसी एक एक अंश को ही सम्पूर्ण वस्तु मान बैठते हैं।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

3. नयवाद की सार्वभौमिकता Hindi 390 View Detail
Mool Sutra: परसमयैकनयमतं, तत्प्रतिपक्षनयतो निवर्तयेत्। समये वा परिगृहीतं, परेण यद् दोषबुद्धया ।।

Translated Sutra: एकान्त पक्षपाती वे पर-समय या मिथ्यादृष्टि स्वाभिप्रेत एक नय को मान कर उसके प्रतिपक्षभूत अन्य नयों या मतों का निराकरण करने लगते हैं। अथवा दूसरों के धर्म या मत में जो बात ग्रहण की गयी हो, उसमें दोष देखने लगते हैं।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

4. नय की हेयोपादेयता Hindi 393 View Detail
Mool Sutra: अर्थ यो न समीक्षते, निक्षेपनयप्रमाणतो विधिना। तस्यायुक्तं युक्तं, युक्तमयुक्तं वा प्रतिभाति ।।

Translated Sutra: जो मनुष्य पदार्थ के स्वरूप की प्रमाण नय व निक्षेप से सम्यक् प्रकार समीक्षा नहीं करता है, उसे कदाचित् अयुक्त भी युक्त प्रतिभासित होता है और युक्त भी अयुक्त। (इसलिए नयातीत उस तत्त्व का निर्णय करने के लिए नयज्ञान प्रयोजनीय है।)
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

5. नय-योजना-विधि Hindi 396 View Detail
Mool Sutra: पर्यायं गौणं कृत्वा, द्रव्यमपि च यो गृह्णाति लोके। स द्रव्यार्थिकः भणितः, विपरीतः पर्यायार्थिकः ।।

Translated Sutra: पर्याय को गौण करके जो द्रव्य को मुख्यतः ग्रहण करता है, वह द्रव्यार्थिक नय है। उससे विपरीत पर्यायार्थिक नय है। अर्थात् द्रव्य को गौण करके जो पर्याय का मुख्यतः ग्रहण है, वह पर्यायार्थिक नय है।
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17. स्याद्वाद अधिकार - (सर्वधर्म-समभाव)

1. सर्वधर्म-समभाव Hindi 399 View Detail
Mool Sutra: यत् पुनः समस्तपर्याय-वस्तुगमका इति समुदितास्तेन। सम्यक्त्वं चक्षुष्मन्तः, सर्वगजावयवग्रहण इव ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार नेत्रवान् पुरुष सांगोपांग हाथी को ही हाथी के रूप में ग्रहण करता है, उसके किसी एक अंग को नहीं; उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि व्यक्ति समस्त पर्यायों या विशेषों से विशिष्ट समुदित वस्तु को ही तत्त्वरूपेण ग्रहण करता है, उसके किसी एक धर्म या विशेष को नहीं।
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17. स्याद्वाद अधिकार - (सर्वधर्म-समभाव)

1. सर्वधर्म-समभाव Hindi 400 View Detail
Mool Sutra: उदधाविव सर्वसिन्धवः, समुदीर्णास्त्वयिनाथ दृष्ट्यः। न च तासु भवान् प्रदृश्यते, प्रविभक्तासु सरित्स्वोदधिः ।।

Translated Sutra: हे नाथ! जिस प्रकार सभी नदियाँ समुद्र में मिल जाती हैं, उसी प्रकार सभी दृष्टियाँ अर्थात् धर्म, आपकी स्याद्वादी दृष्टि में आकर मिल जाते हैं। जिस प्रकार भिन्न-भिन्न नदियों में सागर नहीं रहता, उसी प्रकार विभिन्न एकान्तवादी पक्षों में आप अर्थात् स्याद्वाद नहीं रहता।
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18. आम्नाय अधिकार

1. जैनधर्म की शाश्वतता Hindi 408 View Detail
Mool Sutra: जम्बूद्वीपे भरतैरावतेषु वर्षेषु, एकसमये एकयुगे द्वौ। अर्हंद्वंशौ उत्पन्नौ वा, उत्पद्येते वा उत्पत्स्यतः वा ।।

Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप के भरत और ऐरावत इन दो वर्षों या क्षेत्रों में एक साथ अर्हंत या तीर्थंकर वंशों की उत्पत्ति अतीत में हुई है, वर्तमान में हो रही है और भविष्य में भी इसी प्रकार होती रहेगी। (वर्तमान युग के तीर्थंकरों में ऋषभदेव प्रथम हैं, अरिष्टनेमि २२ वें, पार्श्वनाथ २३ वें और भगवान् महावीर अन्तिम अर्थात् २४ वें
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18. आम्नाय अधिकार

4. श्वेताम्बर सूत्र Hindi 420 View Detail
Mool Sutra: एवमेव महापद्मोऽपि, अर्हन् श्रमणाणां निर्ग्रन्थानाम्। पंचमहाव्रतानि यावदचेलकं धर्मं प्रज्ञापयिष्यति ।।

Translated Sutra: इसी प्रकार आगामी तीर्थंकर भगवान् महापद्म भी पंच महाव्रतों से युक्त अचेलक धर्म का ही प्ररूपण करेंगे।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 590 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) एयं तु जं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स वक्खाणं तं महया पबंधेणं अनंत-गम-पज्जवेहिं सुत्तस्स य पिहब्भूयाहिं निज्जुत्ती-भास-चुण्णीहिं जहेव अनंत-नाण-दंसण-धरेहिं तित्थयरेहिं वक्खाणियं, तहेव समासओ वक्खाणिज्जं तं आसि (२) अह-न्नया काल-परिहाणि-दोसेणं ताओ निज्जुत्ती-भास चुण्णीओ वोच्छिण्णाओ (३) इओ य वच्चंतेणं काल समएणं महिड्ढी-पत्ते पयाणुसारी वइरसामी नाम दुवालसंगसुयहरे समुप्पन्ने (४) तेणे यं पंच-मंगल-महा-सुयक्खंधस्स उद्धारो मूल-सुत्तस्स मज्झे लिहिओ (५) मूलसुत्तं पुन सुत्तत्ताए गणहरेहिं, अत्थत्ताए अरहंतेहिं, भगवंतेहिं, धम्मतित्थंकरेहिं, तिलोग-महिएहिं, वीर-जिणिंदेहिं,

Translated Sutra: यह पंचमंगल महाश्रुतस्कंध नवकार का व्याख्यान महा विस्तार से अनन्तगम और पर्याय सहित सूत्र से भिन्न ऐसे निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि से अनन्त ज्ञान – दर्शन धारण करनेवाले तीर्थंकर ने जिस तरह व्याख्या की थी। उसी तरह संक्षेप से व्याख्यान किया जाता था। लेकिन काल की परिहाणी होने के दोष से वो निर्युक्ति भाष्य, चूर्णिका
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