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Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-५ पद्मावती आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 20 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नगरी। जहा पढमे जाव कण्हे वासुदेवे आहेवच्चं जाव कारेमाणे पालेमाणे विहरइ। तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावई नाम देवी होत्था–वन्नओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। कण्हे वासुदेवे निग्गए जाव पज्जुवासइ। तए णं सा पउमावई देवी इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणी हट्ठतुट्ठा जहा देवई देवी जाव पज्जुवासइ। तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हस्स वासुदेवस्स

Translated Sutra: जम्बूस्वामी ने पुनः पूछा – ‘‘भन्ते ! श्रमण भगवान महावीर ने पंचम वर्ग के दस अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’’ ‘‘हे जंबू ! उस काल उस समय में द्वारका नामक नगरी थी, यावत्‌ श्रीकृष्ण वासुदेव वहाँ राज्य कर रहे थे। श्रीकृष्ण वासुदेव की पद्मावती नाम की महारानी थी। (राज्ञीवर्णन जान लेना)। उस काल उस
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 66 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवस्सयस्स णं इमे अत्थाहिगारा भवंति, तं जहा–

Translated Sutra: आवश्यक के अर्थाधिकारों के नाम इस प्रकार हैं – सावद्ययोगविरति, उत्कीर्तन, गुणवत्‌ प्रतिपत्ति, स्खलित – निन्दा, व्रण – चिकित्सा और गुणधारणा। इस प्रकार से आवश्यकशास्त्र के समुदायार्थ का संक्षेप में कथन करके अब एक – एक अध्ययन का वर्णन करूँगा। उनके नाम यह हैं – सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-९ गुरुत्त्व Hindi 98 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जे कालासवेसियपुत्ते नामं अनगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता थेरे भगवंते एवं वयासी– थेरा सामाइयं न याणंति, थेरा सामाइयस्स अट्ठं न याणंति। थेरा पच्चक्खाणं न याणंति, थेरा पच्चक्खाणस्स अट्ठं न याणंति। थेरा संजमं न याणंति, थेरा संजमस्स अट्ठं न याणंति। थेरा संवरं न याणंति, थेरा संवरस्स अट्ठं न याणंति। थेरा विवेगं न याणंति, थेरा विवेगस्स अट्ठं ण याणंति। थेरा विउस्सग्गं न याणंति, थेरा विउस्सगस्स अट्ठं न याणंति। तए णं थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अनगारं एवं वदासी– जाणामो णं अज्जो! सामाइयं, जाणामो णं अज्जो! सामाइयस्स

Translated Sutra: उस काल और उस समय (भगवान महावीर के शासनकाल) में पार्श्वापत्यीय कालास्यवेषिपुत्र नामक अनगार जहाँ (भगवान महावीर के) स्थविर भगवान बिराजमान थे, वहाँ गए। स्थविर भगवंतों से उन्होंने कहा – ‘हे स्थविरो ! आप सामयिक को नहीं जानते, सामयिक के अर्थ को नहीं जानते, आप प्रत्याख्यान को नहीं जानते और प्रत्याख्यान के अर्थ को नहीं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 330 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणोवासगस्स णं भंते! सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स तस्स णं भंते! किं रियावहिया किरिया कज्जइ? संपराइया किरिया कज्जइ? गोयमा! नो रियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नो रियावहिया किरिया कज्जइ? संपराइया किरिया कज्जइ? गोयमा! समणोवासयस्स णं सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स आया अहिगरणी भवइ, आयाहिगरणवत्तियं च णं तस्स नो रियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ। से तेणट्ठेणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! श्रमण के उपाश्रय में बैठे हुए सामायिक किये हुए श्रमणोपासक को क्या ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है, अथवा साम्परायिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! उसे साम्परायिकी क्रिया लगती है, ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं लगती। भगवन्‌ ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! श्रमणोपाश्रय में बैठे हुए सामयिक किए हुए श्रमणोपासक की आत्मा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२५

उद्देशक-७ संयत Hindi 953 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणएहिं नवहिं वासेहिं ऊणिया पुव्वकोडी। एवं छेदोवट्ठावणिए वि। परिहारविसुद्धिए जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणएहिं एकूणतीसाए वासेहिं ऊणिया पुव्वकोडी। सुहुमसंपराए जहा नियंठे। अहक्खाए जहा सामाइयसंजए। सामाइयसंजया णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! सव्वद्धं। छेदोवट्ठावणियसंजया–पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अड्ढाइज्जाइं वाससयाइं, उक्कोसेणं पण्णासं सागरोवमकोडिसयसहस्साइं। परिहारविसुद्धीयसंजया–पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं देसूणाइं दो वाससयाइं, उक्कोसेणं देसूणाओ दो पुव्वकोडीओ। सुहुमसंपरागसंजया–पुच्छा। गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सामायिकसंयत कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन नौ वर्ष कम पूर्वकोटिवर्ष। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत को भी कहना। परिहारविशुद्धिसंयत जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन २९ वर्ष कम पूर्वकोटिवर्ष पर्यन्त रहता है। सूक्ष्मसम्परायसंयत निर्ग्रन्थ के अनुसार कहना। यथाख्यातसंयत
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२५

उद्देशक-७ संयत Hindi 965 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनसने? अनसने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–इत्तरिए य, आवकहिए य। से किं तं इत्तरिए? इत्तरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–चउत्थे भत्ते, छट्ठे भत्ते, अट्ठमे भत्ते, दसमे भत्ते, दुवाल-समे भत्ते, चोद्दसमे भत्ते, अद्धमासिए भत्ते, मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते जाव छम्मासिए भत्ते। सेत्तं इत्तरिए। से किं तं आवकहिए? आवकहिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पाओवगमणे य, भत्तपच्चक्खाणे य। से किं तं पाओवगमणे? पाओवगमणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–नीहारिमे य, अणीहारिमे य। नियमं अपडिकम्मे सेत्तं पाओवगमणे। से किं तं भत्तपच्चक्खाणे? भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–नीहारिमे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अनशन कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का – इत्वरिक और यावत्कथिक। भगवन्‌ ! इत्वरिक अनशन कितने प्रकार का कहा है ? अनेक प्रकार का यथा – चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त, अष्टम – भक्त, दशम – भक्त, द्वादशभक्त, चतुर्दशभक्त, अर्द्धमासिक, मासिकभक्त, द्विमासिकभक्त, त्रिमासिकभक्त यावत्‌ षाण्मासिक – भक्त। यह इत्वरिक अनशन
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 621 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहासजोगी सिज्झति बुज्झति मुच्चति परिणिव्वाति सव्वदुक्खाणं अंतं करेति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से णं पुव्वामेव सण्णिस्स पंचेंदियस्स पज्जत्तयस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्ज-गुणपरिहीणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तओ अनंतरं च णं बेइंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं दोच्चं वइजोगं निरुंभति, तओ अनंतरं च णं सुहुमस्स पनगजीवस्स अपज्ज-त्तयस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तच्चं कायजोगं निरुंभति। से णं एतेणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वइजोगं निरुंभति, निरुंभित्ता काय-जोगं निरुंभति, निरुंभित्ता जोगनिरोहं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वह तथारूप सयोगी सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, यावत्‌ सर्वदुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! वह वैसा करने में समर्थ नहीं होते। वह सर्वप्रथम संज्ञीपंचेन्द्रियपर्याप्तक जघन्ययोग वाले से असंख्यातगुणहीन मनोयोग का पहले निरोध करते हैं, तदनन्तर द्वीन्द्रियपर्याप्तक जघन्ययोग वाले से असंख्यातगुणहीन
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Hindi 228 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दिट्ठिवाए? दिट्ठिवाए णं सव्वभावपरूवणया आघविज्जति। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–परिकम्मं सुत्ताइं पुव्वगयं अनुओगे चूलिया। से किं तं परिकम्मे? परिकम्मे सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. सिद्धसेणियापरिकम्मे २. मनुस्ससेणियापरिकम्मे ३. पुट्ठसेणियापरिकम्मे ४. ओगाहणसेणियापरिकम्मे ५. उवसंपज्जसेणियापरिकम्मे ६. विप्पजहण-सेणियापरिकम्मे ७. चुयाचुयसेणियापरिकम्मे। से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे? सिद्धसेणियापरिकम्मे चोद्दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. माउयापयाणि २. एगट्ठियपयाणि ३. अट्ठपयाणि ४. पाढो ५. आगासपयाणि ६. केउभूयं ७. रासिबद्धं ८. एगगुणं ९. दुगुणं १०. तिगुणं

Translated Sutra: यह दृष्टिवाद अंग क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? दृष्टिवाद अंग में सर्व भावों की प्ररूपणा की जाती है। वह संक्षेप से पाँच प्रकार का कहा गया है। जैसे – परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका। परिकर्म क्या है ? परिकर्म सात प्रकार का कहा गया है। जैसे – सिद्धश्रेणीका परिकर्म, मनुष्यश्रेणिका परि – कर्म, पृष्टश्रेणिका
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-३ Hindi 198 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहे ववसाए पन्नत्ते, तं जहा–धम्मिए ववसाए, अधम्मिए ववसाए, धम्मियाधम्मिए ववसाए। अहवा–तिविधे ववसाए पन्नत्ते, तं जहा–पच्चक्खे, पच्चइए, आणुगामिए। अहवा–तिविधे ववसाए पन्नत्ते, तं जहा–इहलोइए, परलोइए, ‘इहलोइय-परलोइए’। इहलोइए ववसाए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–लोइए, वेइए, सामइए। लोइए ववसाए तिविधे पन्नत्ते, तं जहा–अत्थे, धम्मे, कामे। वेइए ववसाए तिविधे पन्नत्ते, तं जहा–रिव्वेदे, जउव्वेदे, सामवेदे। सामइए ववसाए तिविधे पन्नत्ते, तं जहा–नाणे, दंसणे, चरित्ते। तिविधा अत्थजोणी पन्नत्ता, तं जहा–सामे, दंडे, भेदे।

Translated Sutra: व्यवसाय तीन प्रकार के हैं, यथा – धार्मिक व्यवसाय, अधार्मिक व्यवसाय, मिश्र व्यवसाय। अथवा – तीन प्रकार व्यवसाय ‘ज्ञान’ कहे गए हैं, यथा – प्रत्यक्ष ‘अवधि आदि’ प्रात्ययिक ‘इन्द्रिय और मन के निमित्त’ से होने वाला और आनुगामिक। अथवा तीन प्रकार के व्यवसाय कहे गए हैं, यथा – ऐहलौकिक व्यवसाय, पारलौकिक व्यवसाय, उभय – लौकिक
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-२ वैतालिक

उद्देशक-२ Hindi 130 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सीओदग पडिदुगंछिणो अपडिण्णस्स लवावसक्किणो । सामाइयमाहु तस्स जं जो गिहिमत्तेऽसनं न भुंजई ॥

Translated Sutra: शीतोदक (सचित्त – जल) से जुगुप्सा करने वाला, अप्रतिज्ञ, निष्काम – प्रवृत्ति से दूर और जो गृह – मत्त भोजन नहीं करे, उसके लिए सामयिक कथित है।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१६ गाथा

Hindi 632 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहाह भगवं–एवं से दंते दविए वोसट्ठकाए त्ति वच्चे–माहणे त्ति वा, समणे त्ति वा, भिक्खू त्ति वा, निग्गंथे त्ति वा। पडिआह–भंते! कहं दंते दविए वोसट्ठकाए त्ति वच्चे–माहणे त्ति वा? समणे त्ति वा? भिक्खू त्ति वा? निग्गंथे त्ति वा? तं ‘णो बूहि’ महामुनी! इतिविरतसव्वपावकम्मे पेज्ज-दोस-कलह-अब्भक्खाण-पेसुण्ण-परपरिवाद-अरतिरति-मायामोस-‘मिच्छादंसणसल्ले विरते’ समिए सहिए सया जए, नो कुज्झे नो माणी ‘माहणे’ त्ति वच्चे। एत्थ वि समणे अनिस्सिए अणिदाणे आदानं च अतिवायं च ‘मुसावायं च’ बहिद्धं च कोहं च माणं च मायं च लोहं च पेज्जं च दोसं च–इच्चेव ‘जतो-जतो’ आदाणाओ अप्पणो पद्दोसहेऊ ‘ततो-ततो’

Translated Sutra: भगवान ने कहा वह दान्त, शुद्ध चैतन्यवान्‌ और देह का विसर्जन करने वाला पुरुष माहन, श्रमण, भिक्षु और निर्ग्रन्थ शब्द से सम्बोधित होता है। पूछा – भदन्त ! दान्त शुद्ध चैतन्यवान्‌ आदि को निर्ग्रन्थ क्यों कहा जाता है? महामुने ! वह हमें कहें। जो सर्व पापकर्मों से विरत है, प्रेय द्वेष, कलह, आरोप, पैशुन्य, परपरिवाद, अरति
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