Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (1387)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

10. उपवृंहणत्व (अदम्भित्व) Hindi 68 View Detail
Mool Sutra: तीर्णः खलु असि अर्णवं महान्तं, किं पुनः तिष्ठसि तीरमागतः। अभित्वर पारं गन्तुम्, समयं गौतम! मा प्रमादये ।।

Translated Sutra: तू इस विशाल संसार-सागर को तैर चुका है। (गोखुर में डूबने की भाँति) अब किनारा हाथ आ जाने पर भी (झूठी मान-प्रतिष्ठा मात्र के लिए) क्यों अटक रहा है? शीघ्र पार हो जा। हे गौतम! क्षणमात्र भी प्रमाद मत कर।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

4. व्यवहार ज्ञान (शास्त्रज्ञान) Hindi 86 View Detail
Mool Sutra: सूची यथा ससूत्रा न नश्यति कचवरे पतिताऽपि। जीवोऽपि तथा ससूत्रो, न नश्यति गतोऽपि संसारे ।।

Translated Sutra: [परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि शास्त्रज्ञान का कोई मूल्य ही नहीं। उसके उपकार को किसी प्रकार भी भुलाया नहीं जा सकता।] जिस प्रकार डोरा पिरोयी सूई कचरे में पड़ जाने पर भी नष्ट नहीं होती, उसी प्रकार शास्त्रज्ञानयुक्त जीव संसार में रहता हुआ भी नष्ट नहीं होता।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

9. अध्यात्मज्ञान-चिन्तनिका Hindi 100 View Detail
Mool Sutra: अध्रुवशरणमेकत्व-मन्यत्वसंसारलोकमशुचित्वं। आस्रवसंवरनिर्जर, धर्मं बोधिं च चिन्त्येत् ।।

Translated Sutra: अनित्य, अशरण, एकत्व, अन्यत्व, संसार, लोक, अशुचित्व, आस्रव, संवर, निर्जरा, धर्म और बोधिदुर्लभ, इन १२ भावनाओं का चिन्तन करना चाहिए।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

10. अनित्य व अशरण संसार Hindi 104 View Detail
Mool Sutra: संगं परिजानामि शल्यमपि चोद्धरामि त्रिविधेन। गुप्तयः समितयः, मम त्राणं शरणं च ।।

Translated Sutra: धन कुटुम्ब आदि रूप संसर्गों की अशरणता को मैं अच्छी तरह जानता हूँ, तथा माया मिथ्या व निदान (कामना) इन तीन मानसिक शल्यों का मन वचन काय से त्याग करता हूँ। तीन गुप्ति व पाँच समिति ही मेरे रक्षक व शरण हैं। इस मोक्ष-मार्ग को न जानने के कारण ही मैं अनादि काल से इस संसार-सागर में भटक रहा हूँ। एक बालाग्र प्रमाण भी क्षेत्र
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

12. देह-दोष दर्शन Hindi 108 View Detail
Mool Sutra: यावत्किंचिद्दुक्खं शारीरं मानसं च संसारे। प्राप्तोऽनन्तकृत्वः कायस्य ममत्वदोषेण ।।

Translated Sutra: इस संसार में शारीरिक व मानसिक जितने भी दुःख हैं, वे सब शरीर-ममत्वरूपी दोष के कारण ही प्राप्त होते हैं। (इसलिए मैं इस ममत्व का त्याग करता हूँ।)
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

15. बोधि-दुर्लभ भावना Hindi 112 View Detail
Mool Sutra: मानुष्यं विग्रहं लब्ध्वा, श्रुतिर्धर्मस्य दुर्लभा। यं श्रुत्वा प्रतिपद्यन्ते, तपः क्षान्तिम् अहिंस्रताम् ।।

Translated Sutra: (चतुर्गति रूप इस संसार में भ्रमण करते हुए प्राणी को मनुष्य तन की प्राप्ति अत्यन्त दुर्लभ है) सौभाग्यवश मनुष्य जन्म पाकर भी श्रुत चारित्र रूप धर्म का श्रवण दुर्लभ है, जिसको सुनकर प्राणी तप, कषाय-विजय व अहिंसादि युक्त संयम को प्राप्त कर लेते हैं।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग)

7. वैराग्य-सूत्र (संन्यास-योग) Hindi 130 View Detail
Mool Sutra: धर्मे च धर्मफले दर्शने च हर्षः च भवति संवेगो। संसारदेहभोगेषु, विरक्तभावः च वैराग्यम् ।।

Translated Sutra: धर्म में, धर्म के फल में और सम्यग्दर्शन में जो हर्ष होता है, वह तो संवेग है, और संसार देह भोगों से विरक्त होना वैराग्य या निर्वेद है।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग)

7. वैराग्य-सूत्र (संन्यास-योग) Hindi 132 View Detail
Mool Sutra: भावे विरक्तो मनुजो विशोकः, एतया दुःखौघपरम्परया। न लिप्यते भवमध्येऽपि सन्, जलेनेव पुष्करिणीपलाशम् ।।

Translated Sutra: जो व्यक्ति भाव से विरक्त है, और दुःखों की परम्परा के द्वारा जिसके चित्त में मोह व शोक उत्पन्न नहीं होता है, वह इस संसार में रहते हुए भी, उसी प्रकार अलिप्त रहता है, जिस प्रकार जल के मध्य कमलिनी का पत्ता।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

9. तप व ध्यान अधिकार - (राज योग)

1. तपोग्नि-सूत्र Hindi 205 View Detail
Mool Sutra: ज्ञानमयवातसहितं, शीलोज्ज्वलं तपो मतोऽग्निः। संसारकरणबीजं, दहति दवाग्निरिव तृणराशिम् ।।

Translated Sutra: ज्ञानमयी वायु से सहित शील द्वारा प्रज्वलित की गयी तप रूपी अग्नि संसार के कारण व बीजभूत कर्म-राशि को इस प्रकार भस्म कर देती है, जिस प्रकार वायु के वेग से प्रचण्ड दावाग्नि तृणराशि को भस्म कर देती है।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

9. तप व ध्यान अधिकार - (राज योग)

9. ध्यान-समाधि सूत्र Hindi 228 View Detail
Mool Sutra: किंचिन् दृष्टिमुपावर्त्य, ध्येये निरुद्धदृष्टिः। आत्मनि स्मृतिं संधाय, संसार-मोक्षार्थम् ।।

Translated Sutra: जिसकी दृष्टि बाह्य ध्येयों में अटकी हुई है, वह उस विषय से अपनी दृष्टि को कुछ क्षण के लिए हटाकर संसार से मुक्त होने के लिए अपनी स्मृति को आत्मा में लगावे।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

1. धर्मसूत्र Hindi 245 View Detail
Mool Sutra: दानं पूजा शीलं, उपवासः बहुविधमपि क्षपणमपि। सम्यक्त्वयुक्तं मोक्षसुखं, सम्यक्त्वेन विना दीर्घसंसारे ।।

Translated Sutra: दान, पूजा, ब्रह्मचर्य, उपवास अनेक प्रकार के व्रत और मुनि लिंग आदि सब एक सम्यग्दर्शन होने पर तो मोक्ष-सुख के कारण हैं और सम्यक्त्व के बिना दीर्घ-संसार के कारण हैं।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

4. पूजा-भक्ति सूत्र Hindi 258 View Detail
Mool Sutra: आर्त्तो जिज्ञासुरर्थार्थी, ज्ञानी चेतिचतुर्विधाः। उपासकास्त्रयस्तत्र, धन्या वस्तुविशेषतः ।।

Translated Sutra: आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी व ज्ञानी इन चार प्रकार के भक्तों में से प्रथम तीन वस्तु की विशेषता के कारण धन्य हैं। परन्तु जिसके मोह व क्षोभ आदि समस्त विक्षेप शान्त हो गये हैं, जो सम्यग्दृष्टि तथा अन्तरात्मा का भर्ता है, जिसका संसार अति निकट रह गया है, ऐसा ज्ञानी तो अपनी तत्त्वनिष्ठारूप नित्य-भक्ति के कारण ही विशेषता
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

7. दान-सूत्र Hindi 265 View Detail
Mool Sutra: यो मुनिः भुक्तावशेषं भुंजति सो भुंजते जिनोपदिष्टम्। संसारसारसौख्यं, क्रमशः निर्वाणवरसौख्यम् ।।

Translated Sutra: जो श्रावक साधु-जनों को खिलाने के पश्चात् शेष बचे अन्न को खाता है वही वास्तव में खाता है। वह संसार के सारभूत देवेन्द्र चक्रवर्ती आदि के उत्तम सुखों को भोगकर क्रम से निर्वाण-सुख को प्राप्त कर लेता है।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

13. उत्तम त्याग Hindi 281 View Detail
Mool Sutra: निर्वेगत्रिकं भावयति, मोहं त्यक्त्वा सर्वद्रव्येषु। यः तस्य भवेत् त्यागः, इति कथितं जिनवरेन्द्रैः ।।

Translated Sutra: जो जीव पर-द्रव्यों के प्रति ममत्व छोड़कर संसार देह और भोगों से उदासीन हो जाता है, उसको त्यागधर्म होता है।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

13. तत्त्वार्थ अधिकार

5. पुण्य-पाप तत्त्व (दो बेड़ियाँ) Hindi 324 View Detail
Mool Sutra: कर्ममशुभं कुशीलं, शुभकर्मं चापि जानीहि सुशीलं। कथं तद्भवति सुशीलं, यत्संसारं प्रवेशयति ।।

Translated Sutra: अशुभ कर्म कुशील है और शुभ कर्म सुशील है, (ऐसा भेद व्यावहारिक जनों को ही शोभा देता है) समता-भोगी के लिए कोई भी कर्म जो संसार में प्रवेश कराये, सुशील कैसे हो सकता है?
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

13. तत्त्वार्थ अधिकार

6. बन्ध तत्त्व (संचित कर्म) Hindi 329 View Detail
Mool Sutra: एतेः तंचभिरसंवरैः, रजमाचित्याऽनुसमयम्। चतुर्विधगतिपर्यन्त-मनुपरिवर्तन्ते संसारम् ।।

Translated Sutra: हिंसा असत्य आदि पाँच प्रधान असंवर या आस्रवद्वार हैं। इनसे प्रति समय अनुरंजित रहने के कारण जीव नित्य ही कर्म-रज का संचय करके चतुर्गति संसार में परिभ्रमण करता रहता है।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

13. तत्त्वार्थ अधिकार

8. मोक्ष तत्त्व (स्वतन्त्रता) Hindi 339 View Detail
Mool Sutra: यत्र च एकः सिद्धस्तत्रानन्ता भवक्षयविमुक्ताः। अन्योन्यसमवगाढाः स्पृष्टाः सर्वेऽपि लोकान्ते ।।

Translated Sutra: लोक-शिखर पर जहाँ एक सिद्ध या मुक्तात्मा स्थित होती है, वहीँ एक दूसरे में प्रवेश पाकर संसार से मुक्त हो जाने वाली अनन्त सिद्धात्माएँ स्थित हो जाती हैं। चरम शरीराकार इन सबके सिर लोकाकाश के ऊपरी अन्तिम छोर को स्पर्श करते हैं।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

14. सृष्टि-व्यवस्था

3. कर्म-कारणवाद Hindi 356 View Detail
Mool Sutra: यः खलु संसारस्थो जीवस्ततस्तु भवति परिणामः। परिणामात्कर्मं कर्मणो भवति गतिषु गतिः ।।

Translated Sutra: संसार स्थित जीव को पूर्व-संस्कारवश स्वयं राग द्वेषादि परिणाम होते हैं। परिणामों के निमित्त से कर्म और कर्मों के निमित्त से चारों गतियों में गमन होना स्वाभाविक है। गति प्राप्त हो जाने पर देह, तथा देह के होने पर इन्द्रियाँ उत्पन्न होती हैं। इन्द्रियों से विषयों का ग्रहण, तथा उससे पुनः राग-द्वेष का होना स्वाभाविक
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

14. सृष्टि-व्यवस्था

3. कर्म-कारणवाद Hindi 358 View Detail
Mool Sutra: जायते जीवस्येवं, भावः संसारचक्रवाले। इति जिनवरैर्भणितोऽनादिनिधनः सनिधनो वा ।।

Translated Sutra: कृपया देखें ३५६; संदर्भ ३५६-३५८
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 44 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए। जप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अनुलोमा वा। तत्थ पडिलोमा–वेत्तेण वा तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्टेज्जा, अनुलोमा–वंदेज्ज वा नमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्मानेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ। तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए

Translated Sutra: कौशलिक अर्हत्‌ ऋषभ कुछ अधिक एक वर्ष पर्यन्त वस्त्रधारी रहे, तत्पश्चात्‌ निर्वस्त्र। जब से वे प्रव्रजित हुए, वे कायिक परिकर्म रहित, दैहिक ममता से अतीत, देवकृत्‌ यावत्‌ जो उपसर्ग आते, उन्हें वे सम्यक्‌ भाव से सहते, प्रतिकूल अथवा अनुकूल परिषह को भी अनासक्त भाव से सहते, क्षमाशील रहते, अविचल रहते। भगवान्‌ ऐसे उत्तम
Jambudwippragnapati જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Gujarati 44 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए। जप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अनुलोमा वा। तत्थ पडिलोमा–वेत्तेण वा तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्टेज्जा, अनुलोमा–वंदेज्ज वा नमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्मानेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ। तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए

Translated Sutra: કૌશલિક ઋષભ અરહંત સાધિક એક વર્ષ વસ્ત્રધારી રહ્યા. ત્યારપછી અચેલક થયા. જ્યારથી કૌશલિક ઋષભ અરહંત મુંડ થઈને ગૃહવાસત્યાગી નિર્ગ્રન્થ પ્રવ્રજ્યા લીધી, ત્યારથી કૌશલિક ઋષભ અરહંત નિત્ય કાયાને વોસિરાવીને, દેહ મમત્ત્વ ત્યજીને, જે કોઈ ઉપસર્ગો ઉપજે છે, તે આ પ્રમાણે – દેવે કરેલ યાવત્‌ પ્રતિકૂળ કે અનુકૂળ ઉપસર્ગોને સહે
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

प्रतिपत्ति भूमिका

Hindi 6 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जीवाभिगमे? जीवाभिगमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–संसारसमावण्णजीवाभिगमे य असंसारसमावण्णजीवाभिगमे य।

Translated Sutra: जीवाभिगम क्या है? जीवाभिगम दो भेद – संसारसमापन्नक जीवाभिगम,असंसारसमापन्नक जीवाभिगम।
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

प्रतिपत्ति भूमिका

Hindi 7 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं असंसारसमावण्णजीवाभिगमे? असंसारसमावण्णजीवाभिगमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अनंतरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे य परंपरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे य। से किं तं अनंतरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे? अनंतरसिद्धासंसारसमावण्णजीवा-भिगमे पन्नरसविहे पन्नत्ते, तं जहा– तित्थसिद्धा अतित्थसिद्धा तित्थगरसिद्धा अतित्थगरसिद्धा सयंबुद्धसिद्धा पत्तेयबुद्धसिद्धा बुद्धबोहियसिद्धा इत्थीलिंगसिद्धा पुरिसलिंगसिद्धा नपुंसकलिंग-सिद्धा सलिंगसिद्धा अन्नलिंगसिद्धा गिहिलिंगसिद्धा एगसिद्धा अनेगसिद्धा। सेत्तं अनंतरसिद्धा। से किं तं परंपरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे?

Translated Sutra: असंसार – प्राप्त जीवाभिगम क्या है ? असंसारप्राप्त जीवाभिगम दो प्रकार का है, अनन्तरसिद्ध असंसार – प्राप्त जीवाभिगम और परंपरसिद्ध असंसारप्राप्त जीवाभिगम। अनन्तरसिद्ध असंसारप्राप्त जीवाभिगम कितने प्रकार का कहा गया है ? पन्द्रह प्रकार का है, यथा तीर्थसिद्ध यावत्‌ अनेकसिद्ध। परम्परसिद्ध असंसारप्राप्त
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

प्रतिपत्ति भूमिका

Hindi 8 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संसारसमावण्णजीवाभिगमे? संसारसमावण्णएसु णं जीवेसु इमाओ नव पडिवत्तीओ एवमाहिज्जंति, तं जहा– १. एगे एवमाहंसु–दुविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। २. एगे एवमाहंसु–तिविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। ३. एगे एवमाहंसु–चउव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। ४. एगे एवमाहंसु–पंचविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। ५. एगे एवमाहंसु–छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। ६. एगे एवमाहंसु–सत्तविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। ७. एगे एवमाहंसु–अट्ठविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। ८. एगे एवमाहंसु–नवविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। ९. एगे एवमाहंसु–दसविहा

Translated Sutra: संसारप्राप्त जीवाभिगम क्या है ? संसारप्राप्त जीवों के सम्बन्ध में ये नौ प्रतिपत्तियाँ हैं – कोई कहते हैं कि संसारप्राप्त जीव दो प्रकार के हैं। कोई कहते हैं कि संसारवर्ती जीव तीन प्रकार के हैं। कोई कहते हैं कि संसार – प्राप्त जीव चार प्रकार के हैं। कोई कहते हैं कि पाँच प्रकार के हैं। यावत्‌ कोई कहते हैं कि
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

द्विविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 9 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जे ते एवमाहंसु दुविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु तं जहा–तसा चेव थावरा चेव।

Translated Sutra: जो दो प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का कथन करते हैं, वे कहते हैं कि जीव त्रस और स्थावर हैं।
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

द्विविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 51 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थावरस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं ठिती पन्नत्ता। तसस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। थावरे णं भंते! थावरेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–अनंताओ उस्सप्पिणीओ ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अनंता लोया असंखेज्जा पुग्गलपरियट्टा, ते णं पुग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जइभागो। ते णं भंते! तसेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! स्थावर की कालस्थिति कितने समय की है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट से बाईस हजार वर्ष की है। भगवन्‌ ! त्रस की भवस्थिति ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट से तेंतीस सागरोपम की। भन्ते ! स्थावर जीव स्थावर के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट से अनंतकाल
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

त्रिविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 52 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ जेते एवमाहंसु तिविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–इत्थी पुरिसा नपुंसगा।

Translated Sutra: (पूर्वोक्त नौ प्रतिपत्तियों में से) जो कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव तीन प्रकार के हैं, वे ऐसा कहते हैं कि जीव तीन प्रकार के हैं – स्त्री, पुरुष और नपुंसक।
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

त्रिविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 72 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिरिक्खजोणित्थियाओ तिरिक्खजोणियपुरिसेहिंतो तिगुणाओ तिरूवाहियाओ, मनुस्सित्थियाओ मनुस्सपुरिसेहिंतो सत्तावीसतिगुणाओ सत्तावीसतिरूवाहियाओ, देवित्थियाओ देवपुरिसेहिंतो बत्तीसइगुणाओ बत्तीसइरूवाहियाओ। सेत्तं तिविधा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता।

Translated Sutra: तिर्यक्‌योनि स्त्रियाँ तिर्यक्‌योनि के पुरुषों से तीन गुनी और त्रिरूप अधिक हैं। मनुष्यस्त्रियाँ मनुष्य – पुरुषों से सत्तावीसगुनी और सत्तावीसरूप अधिक हैं। देवस्त्रियाँ देवपुरुषों से बत्तीसगुनी और बत्तीसरूप अधिक हैं
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

नैरयिक उद्देशक-१ Hindi 74 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ जेते एवमाहंसु चउव्विधा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–नेरइया तिरिक्खजोणिया मनुस्सा देवा।

Translated Sutra: जो आचार्य इस प्रकार कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव चार प्रकार के हैं, वे ऐसा प्रतिपादन करते हैं, यथा – नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देव।
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

तिर्यंच उद्देशक-२ Hindi 134 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता? गोयमा! छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया जाव तसकाइया। से किं तं पुढविकाइया? दुविहा पन्नत्ता तं सुहुमपुढविकाइया बायरपुढविकाइया से किं तं सुहुमपुढविकाइया दुविहा पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य से तं सुहुमपुढविक्काइया से किं तं बादरपुढविक्काइया दुविहा पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य एवं जहा पन्नवणाए, सण्हा सत्तविहा पन्नत्ता, खरा अनेगविहा पन्नत्ता जाव असंखिज्जा से तं बादरपुढविक्काइया से तं पुढविक्काइया एवं चेव जइ पन्नवणाए तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव वणप्फइकाइया एवं जत्थेको तत्थ सिय संखिज्जा सिय

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! संसारसमापन्नक जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! छह प्रकार के – पृथ्वीकायिक यावत्‌ त्रस – कायिक। पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं – सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक। सूक्ष्मपृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। बादरपृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं – पर्याप्त
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

वैमानिक उद्देशक-२ Hindi 343 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! नेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं मनुस्साणं देवाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा मनुस्सा, नेरइया असंखेज्जगुणा, देवा असंखेज्जगुणा, तिरिक्खजोणिया अनंतगुणा। सेत्तं चउव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन नैरयिकों यावत्‌ देवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े मनुष्य हैं, उनसे नैरयिक असंख्यगुण हैं, उनसे देव असंख्यगुण हैं और उनसे तिर्यंच अनन्तगुण हैं।
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पंचविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 344 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु–पंचविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–एगिंदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचिंदिया। से किं तं एगिंदिया? एगिंदिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एवं जाव पंचिंदिया दुविहा –पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एगिंदियस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं। बेइंदिया जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बारस संवच्छराणि। एवं तेइंदियस्स एगूणपण्णं राइंदियाणं, चउरिंदियस्स छम्मासा, पंचिंदियस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं। एगिंदियअपज्जत्तगस्स णं केवतियं

Translated Sutra: जो आचार्यादि ऐसा प्रतिपादन करते हैं कि संसारसमापन्नक जीव पाँच प्रकार के हैं, वे उनके भेद इस प्रकार कहते हैं, यथा – एकेन्द्रिय यावत्‌ पंचेन्द्रिय। भगवन्‌ ! एकेन्द्रिय जीवों के कितने प्रकार हैं ? गौतम ! दो, पर्याप्त और अपर्याप्त। पंचेन्द्रिय पर्यन्त सबके दो – दो भेद कहना। भगवन्‌ ! एकेन्द्रिय जीवों की कितने काल
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पंचविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 345 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! एगिंदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिंदियाणं पंचिंदियाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया, एगिंदिया अनंतगुणा। एवं अपज्जत्तगाणं– सव्वत्थोवा पंचेंदिया अपज्जत्तगा, चउरिंदिया अपज्जत्तगा विसेसा-हिया, तेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, एगिंदिया अपज्जत्तगा अनंतगुणा। सव्वत्थोवा चतुरिंदिया पज्जत्तगा, पंचेंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन एकेन्द्रिय यावत्‌ पंचेन्द्रियों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सब से थोड़े पंचेन्द्रिय हैं, उन से चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उन से त्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उन से द्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं और उन से एकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं। इसी प्रकार अपर्याप्तक एकेन्द्रियादि में सब
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

षडविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 346 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु, तं जहा–पुढविकाइया आउक्काइया तेउक्काइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया तसकाइया। से किं तं पुढविकाइया? पुढविकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमपुढविकाइया बादरपुढविकाइया य। सुहुमपुढविकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एवं बादरपुढवि-काइयावि। एवं जाव वणस्सतिकाइया। से किं तं तसकाइया? तसकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।

Translated Sutra: जो आचार्य ऐसा प्रतिपादन करते हैं कि संसारसमापन्नक जीव छह प्रकार के हैं, उनका कथन इस प्रकार हैं – पृथ्वीकायिक यावत्‌ त्रसकायिक। भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिकों का क्या स्वरूप है ? गौतम ! पृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं – सूक्ष्म और बादर। सूक्ष्मपृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं – पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इसी प्रकार बादरपृथ्वी
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

षडविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 364 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निओदा णं भंते! दव्वट्ठयाए किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, असंखेज्जा, नो अनंता अपज्जत्ता णं भंते! निओदा दव्वट्ठयाए किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, असंखेज्जा, नो अनंता। पज्जत्ता णं भंते! निओदा दव्वट्ठयाए किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, असंखेज्जा, नो अनंता। सुहुमनिओदा णं भंते! दव्वट्ठयाए किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, असंखेज्जा, नो अनंता। अपज्जत्ता णं भंते! सुहुमनिओदा दव्वट्ठयाए किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, असंखेज्जा, नो अनंता। पज्जत्ता णं भंते! सुहुमनिओदा दव्वट्ठयाए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! निगोद द्रव्य की अपेक्षा क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! असंख्यात हैं। इसी प्रकार इनके पर्याप्त और अपर्याप्त सूत्र भी कहना। भगवन्‌ ! सूक्ष्मनिगोद द्रव्य की अपेक्षा संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! असंख्यात हैं। इसी प्रकार पर्याप्त तथा अपर्याप्त सूत्र भी कहना। इसी
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सप्तविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 365 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु सत्तविहा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु, तं जहा–नेरइया तिरिक्खा तिरिक्खजोणिणीओ मनुस्सा मनुस्सीओ देवा देवीओ। नेरइयस्स ठितो जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। तिरिक्खजोणियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिअवमाइं। एवं तिरिक्खजोणिणीएवि, मनुस्साणवि, मनुस्सीणवि। देवाणं ठिती तहा नेरइयाणं। देवीणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं पणपन्नपलिओवमाणि। नेरइयदेवदेवीणं जच्चेव ठिती सच्चेव संचिट्ठणा। तिरिक्खजोणिएणं भंते! तिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। तिरिक्खजोणिणीणं

Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव सात प्रकार के हैं, उनके अनुसार नैरयिक, तिर्यंच, तिरश्ची, मनुष्य, मानुषी, देव और देवी ये सात भेद हैं। नैरयिक की स्थिति जघन्य १०००० वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की है। तिर्यक्‌योनिक की जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम है। तिर्यक्‌स्त्री, मनुष्य और मनुष्यस्त्री
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

अष्टविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 366 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ जेते एवमाहंसु अट्ठविहा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु–पढमसमयनेरइया अपढमसमय-नेरइया पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमनुस्सा अपढम-समयमनुस्सा पढमसमयदेवा अपढमसमयदेवा। पढमसमयनेरइयस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! एगं समयं ठिती पन्नत्ता। अपढमसमयनेरइयस्स जहन्नेणं दसवाससहस्साइं समयूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाइं। एवं सव्वेसिं पढमसमयगाणं एगं समयं। अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं समयूणाइं। मनुस्साणं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं

Translated Sutra: जो आचार्यादि ऐसा कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव आठ प्रकार के हैं, उनके अनुसार – १. प्रथमसमय – नैरयिक, २. अप्रथमसमयनैरयिक, ३. प्रथमसमयतिर्यग्‌योनिक, ४. अप्रथमसमयतिर्यग्‌योनिक, ५. प्रथमसमय मनुष्य ६. अप्रथमसमयमनुष्य, ७. प्रथमसमयदेव और ८. अप्रथमसमयदेव। स्थिति – भगवन्‌ ! प्रथमसमयनैरयिक की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

नवविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 367 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु नवविधा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु–पुढविक्काइया आउक्काइया तेउक्काइया वाउक्काइया वणस्सइकाइया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचेंदिया। ठिती सव्वेसिं भाणियव्वा। पुढविक्काइयाणं संचिट्ठणा पुढविकालो जाव वाउक्काइयाणं, वणस्सईणं वणस्सतिकालो, बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया संखेज्जं कालं, पंचेंदियाणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं। अंतरं सव्वेसिं अनंतं कालं, वणस्सतिकाइयाणं असंखेज्जं कालं। अप्पाबहुगं–सव्वत्थोवा पंचिंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया, तेउक्काइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया,

Translated Sutra: जो नौ प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का कथन करते हैं, वे ऐसा कहते हैं – १. पृथ्वीकायिक, २. अप्‌ – कायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वायुकायिक, ५. वनस्पतिकायिक, ६. द्वीन्द्रिय, ७. त्रीन्द्रिय, ८. चतुरिन्द्रिय और ९. पंचेन्द्रिय। सबकी स्थिति कहना। पृथ्वीकायिकों की संचिट्ठणा पृथ्वीकाल है, इसी तरह वायुकाय पर्यन्त कहना। वनस्पतिकाय
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

दशविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 368 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु दसविधा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु, तं जहा–पढमसमयएगिंदिया अपढमसमयएगिंदिया पढमसमयबेइंदिया अपढमसमयबेइंदिया पढमसमयतेइंदिया अपढमसमय-तेइंदिया पढमसमयचउरिंदिया अपढमसमयचउरिंदिया पढमसमयपंचिंदिया अपढमसमयपंचिंदिया। पढमसमयएगिंदियस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! एगं समयं। अपढमसमयएगिंदियस्स जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं समयूणाइं। एवं सव्वेसिं पढमसमयिकाणं एगं समयं, अपढमसमयिकाणं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं जा जस्स ठिती सा समयूणा जाव पंचिंदियाणं तेत्तीसं सागरोवमाइं

Translated Sutra: जो आचार्यादि दस प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का प्रतिपादन करते हैं, वे कहते हैं – १. प्रथमसमय – एकेन्द्रिय, २. अप्रथमसमयएकेन्द्रिय, ३. प्रथमसमयद्वीन्द्रिय, ४. अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय, ५. प्रथमसमयत्रीन्द्रिय, ६. अप्रथमसमयत्रीन्द्रिय, ७. प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय, ८. अप्रथमसमयचतुरिन्द्रिय, ९. प्रथमसमयपंचेन्द्रिय
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

त्रिविध सर्वजीव Hindi 376 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा तिविहा सव्वजीवा पन्नत्ता–परित्ता अपरित्ता नोपरित्तानोअपरित्ता। परित्ते णं भंते! परित्तेत्ति कालतो केवचिरं होति? परित्ते दुविहे पन्नत्ते–कायपरित्ते य संसार-परित्ते य। कायपरित्ते णं भंते! कायपरित्तेत्ति कालतो केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो। संसारपरित्ते णं भंते! संसारपरित्तेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं। अपरित्ते णं भंते! अपरित्तेत्ति कालओ केवचिरं होति? अपरित्ते दुविहे पन्नत्ते–कायअपरित्ते य संसारअपरित्ते य। कायअपरित्ते जहन्नेणं

Translated Sutra: अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं – परित्त, अपरित्त और नोपरित्त – नोअपरित्त। परित्त दो प्रकार के हैं – कायपरित्त और संसारपरित्त। भगवन्‌ ! कायपरित्त, कायपरित्त के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से असंख्येय काल तक यावत्‌ असंख्येय लोक। भन्ते ! संसारपरित्त, संसारपरित्त
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्रतिपत्ति भूमिका

Gujarati 6 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जीवाभिगमे? जीवाभिगमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–संसारसमावण्णजीवाभिगमे य असंसारसमावण्णजीवाभिगमे य।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૬. તે જીવાભિગમ શું છે ? બે ભેદે છે – સંસાર સમાપન્નક જીવાભિગમ અને અસંસાર સમાપન્નક જીવાભિગમ. સૂત્ર– ૭. તે અસંસાર સમાપન્નક જીવાભિગમ શું છે ? તે બે ભેદે છે – અનંતર સિદ્ધ સમાપન્નક જીવાભિગમ અને પરંપરસિદ્ધ સંસાર સમાપન્નક જીવાભિગમ. તે અનંતસિદ્ધ સંસાર સમાપન્નક જીવાભિગમ શું છે ? તે ૧૫ – ભેદે છે – તીર્થસિદ્ધ યાવત્‌
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्रतिपत्ति भूमिका

Gujarati 7 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं असंसारसमावण्णजीवाभिगमे? असंसारसमावण्णजीवाभिगमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अनंतरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे य परंपरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे य। से किं तं अनंतरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे? अनंतरसिद्धासंसारसमावण्णजीवा-भिगमे पन्नरसविहे पन्नत्ते, तं जहा– तित्थसिद्धा अतित्थसिद्धा तित्थगरसिद्धा अतित्थगरसिद्धा सयंबुद्धसिद्धा पत्तेयबुद्धसिद्धा बुद्धबोहियसिद्धा इत्थीलिंगसिद्धा पुरिसलिंगसिद्धा नपुंसकलिंग-सिद्धा सलिंगसिद्धा अन्नलिंगसिद्धा गिहिलिंगसिद्धा एगसिद्धा अनेगसिद्धा। सेत्तं अनंतरसिद्धा। से किं तं परंपरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे?

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्रतिपत्ति भूमिका

Gujarati 8 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संसारसमावण्णजीवाभिगमे? संसारसमावण्णएसु णं जीवेसु इमाओ नव पडिवत्तीओ एवमाहिज्जंति, तं जहा– १. एगे एवमाहंसु–दुविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। २. एगे एवमाहंसु–तिविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। ३. एगे एवमाहंसु–चउव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। ४. एगे एवमाहंसु–पंचविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। ५. एगे एवमाहंसु–छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। ६. एगे एवमाहंसु–सत्तविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। ७. एगे एवमाहंसु–अट्ठविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। ८. एगे एवमाहंसु–नवविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता। ९. एगे एवमाहंसु–दसविहा

Translated Sutra: તે સંસાર સમાપન્નક જીવાભિગમ શું છે ? સંસાર સમાપન્નક જીવોમાં આ નવ પ્રતિપત્તિઓ મતો આ પ્રકારે છે – કોઈ કહે છે – સંસાર સમાપન્નક જીવો બે ભેદે છે. કોઈ કહે છે ત્રણ ભેદે૦ છે. કોઈ કહે છે ચાર ભેદે૦ છે, કોઈ કહે છે પાંચ ભેદે૦ છે. આ આલાવા મુજબ યાવત્‌ દશ પ્રકારે સંસાર સમાપન્નક જીવો કહેલા છે. ૧ – દ્વિવિધા પ્રતિપત્તિ
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

द्विविध जीव प्रतिपत्ति

Gujarati 9 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जे ते एवमाहंसु दुविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु तं जहा–तसा चेव थावरा चेव।

Translated Sutra: તેમાં જે એમ કહે છે કે, ‘‘બે ભેદે સંસાર સમાપન્નક જીવો છે,’’ તેઓ એમ કહે છે – ત્રસ અને સ્થાવર બે ભેદો છે.’’
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

द्विविध जीव प्रतिपत्ति

Gujarati 51 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थावरस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं ठिती पन्नत्ता। तसस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। थावरे णं भंते! थावरेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–अनंताओ उस्सप्पिणीओ ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अनंता लोया असंखेज्जा पुग्गलपरियट्टा, ते णं पुग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जइभागो। ते णं भंते! तसेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! સ્થવિરની કેટલો કાળ સ્થિતિ કહી છે ? ગૌતમ! જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટથી ૨૨,૦૦૦ સ્થિતિ કહી છે. ભગવન્‌ ! ત્રસની કેટલો કાળ સ્થિતિ કહી છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટથી ૩૩ – સાગરોપમ સ્થિતિ કહી છે. ભગવન્‌ ! સ્થાવર, સ્થાવરત્વમાં કાળથી ક્યાં સુધી રહે ? જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટથી અનંતકાળ
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

त्रिविध जीव प्रतिपत्ति

Gujarati 52 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ जेते एवमाहंसु तिविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–इत्थी पुरिसा नपुंसगा।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૨. તેમાં જે એવું કહે છે કે સંસાર સમાપન્નક જીવો ત્રણ ભેદે છે, તેઓ એમ કહે છે કે તે – સ્ત્રી, પુરુષ, નપુંસક છે. સૂત્ર– ૫૩. ભગવન્‌ ! તે સ્ત્રીઓ કેટલા ભેદે છે ? ત્રણ ભેદે – તિર્યંચ સ્ત્રી, માનુષી સ્ત્રી અને દેવસ્ત્રી. ભગવન્‌ ! તે તિર્યંચયોનિક સ્ત્રી કેટલા ભેદે છે ? ત્રણ ભેદે – જલચરી, સ્થલચરી, ખેચરી. ભગવન્‌ ! તે જલચરી
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

त्रिविध जीव प्रतिपत्ति

Gujarati 72 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिरिक्खजोणित्थियाओ तिरिक्खजोणियपुरिसेहिंतो तिगुणाओ तिरूवाहियाओ, मनुस्सित्थियाओ मनुस्सपुरिसेहिंतो सत्तावीसतिगुणाओ सत्तावीसतिरूवाहियाओ, देवित्थियाओ देवपुरिसेहिंतो बत्तीसइगुणाओ बत्तीसइरूवाहियाओ। सेत्तं तिविधा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૨. તિર્યંચ સ્ત્રીઓ, તિર્યંચ પુરુષોથી ત્રણગણી અને ત્રણ અધિક છે, મનુષ્ય સ્ત્રીઓ – મનુષ્ય પુરુષોથી ૨૭ ગણી અને ૨૭ અધિક છે. દેવસ્ત્રી – દેવપુરુષોથી ૩૨ – ગણી, ૩૨ અધિક છે. સૂત્ર– ૭૩. ત્રણ વેદરૂપ આ પ્રતિપત્તિમાં ભેદ, સ્થિતિ, સંચિઠ્ઠણા, અંતર, અલ્પબહુત્વ, વેદોની બંધ સ્થિતિ, વેદોનો પ્રકાર કહ્યો. આ રીતે ત્રણ ભેદે
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

नैरयिक उद्देशक-१ Gujarati 74 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ जेते एवमाहंसु चउव्विधा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–नेरइया तिरिक्खजोणिया मनुस्सा देवा।

Translated Sutra: તેમાં જે એમ કહે છે – સંસારી જીવો ચાર ભેદે કહ્યા છે, તે એમ કહે છે – નૈરયિક, તિર્યંચ, મનુષ્ય, દેવ. પ્રતિપત્તિ – ૩ ‘નૈરયિક’ – ઉદ્દેશો – ૧
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

तिर्यंच उद्देशक-२ Gujarati 134 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता? गोयमा! छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया जाव तसकाइया। से किं तं पुढविकाइया? दुविहा पन्नत्ता तं सुहुमपुढविकाइया बायरपुढविकाइया से किं तं सुहुमपुढविकाइया दुविहा पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य से तं सुहुमपुढविक्काइया से किं तं बादरपुढविक्काइया दुविहा पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य एवं जहा पन्नवणाए, सण्हा सत्तविहा पन्नत्ता, खरा अनेगविहा पन्नत्ता जाव असंखिज्जा से तं बादरपुढविक्काइया से तं पुढविक्काइया एवं चेव जइ पन्नवणाए तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव वणप्फइकाइया एवं जत्थेको तत्थ सिय संखिज्जा सिय

Translated Sutra: હે ભગવન્‌ ! સંસારી જીવો કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! છ ભેદે છે, તે આ – પૃથ્વીકાયિક યાવત્‌ ત્રસકાયિક. ભગવન્‌ ! તે પૃથ્વીકાયિકો શું છે ? તે બે ભેદે છે – સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક. અને બાદર પૃથ્વીકાયિક. ભગવન્‌ ! તે સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક શું છે ? તે બે ભેદે છે – પર્યાપ્તક અને અપર્યાપ્તક. તે સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક કહ્યા. ભગવન્‌ ! તે બાદર
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

वैमानिक उद्देशक-२ Gujarati 343 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! नेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं मनुस्साणं देवाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा मनुस्सा, नेरइया असंखेज्जगुणा, देवा असंखेज्जगुणा, तिरिक्खजोणिया अनंतगुणा। सेत्तं चउव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा।

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૪૨
Showing 401 to 450 of 1387 Results