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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 23 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भावावस्सयं?
भावावस्सयं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। Translated Sutra: भावावश्यक क्या है ? दो प्रकार का है – आगमभावावश्यक और नोआगमभावावश्यक। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 24 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आगमओ भावावस्सयं?
आगमओ भावावस्सयं–जाणए उवउत्ते। से तं आगमओ भावावस्सयं। Translated Sutra: आगमभावावश्यक क्या है ? जो आवश्यक पद का ज्ञाता हो और साथ ही उपयोग युक्त हो, वह आगमभावावश्यक है। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 25 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ भावावस्सयं?
नोआगमओ भावावस्सयं तिविहं पन्नत्तं, तं जहा–लोइयं कुप्पावयणियं लोगुत्तरियं। Translated Sutra: नोआगमभावावश्यक किसे कहते हैं ? तीन प्रकार का है। लौकिक, कुप्रावचनिक और लोकोत्तरिक। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 26 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं भावावस्सयं?
लोइयं भावावस्सयं–पुव्वण्हे भारहं, अवरण्हे रामायणं।
से तं लोइयं भावावस्सयं। Translated Sutra: लौकिक भावावश्यक क्या है ? दिन के पूर्वार्ध में महाभारत का और उत्तरार्ध में रामायण का वाचन करने, श्रवण करने को लौकिक नोआगमभावावश्यक कहते हैं। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 28 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोगुत्तरियं भावावस्सयं?
लोगुत्तरियं भावावस्सयं–जण्णं इमं समणे वा समणी वा सावए वा साविया वा तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविए अन्नत्थ कत्थइ मणं अकरेमाणे उभओ कालं आवस्सयं करेति।
से तं लोगुत्तरियं भावावस्सयं। से तं नोआगमओ भावावस्सयं। से तं भावावस्सयं। Translated Sutra: लोकोत्तरिक भावावश्यक क्या है ? दत्तचित्त और मन की एकाग्रता के साथ, शुभ लेश्या एवं अध्यवसाय से सम्पन्न, यथाविध क्रिया को करने के लिए तत्पर अध्यवसायों से सम्पन्न होकर, तीव्र आत्मोत्साहपूर्वक उसके अर्थ में उपयोगयुक्त होकर एवं उपयोगी करणों को नियोजित कर, उसकी भावना से भावित होकर जो ये श्रमण, श्रमणी, श्रावक, श्राविकायें | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 36 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दव्वसुयं?
दव्वसुयं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। Translated Sutra: द्रव्यश्रुत क्या है ? दो प्रकार का है। जैसे – आगमद्रव्यश्रुत, नोआगमद्रव्यश्रुत। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 37 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आगमओ दव्वसुयं?
आगमओ दव्वसुयं–जस्स णं सुए त्ति पदं सिक्खियं ठियं जिय मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए। कम्हा? अनुवओगो दव्वमिति कट्टु।
नेगमस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ एगं दव्वसुयं, दोन्नि अनुवउत्ता आगमओ दोन्नि दव्वसुयाइं, तिन्नि अनुवउत्ता आगमओ तिन्नि दव्वसुयाइं, एवं जावइया अनुवउत्ता तावइयाइं ताइं नेगमस्स आगमओ दव्वसुयाइं।
एवमेव ववहारस्स वि।
संगहस्स एगो वा अनेगा वा अनुवउत्तो Translated Sutra: आगम की अपेक्षा द्रव्यश्रुत का क्या स्वरूप है ? जिस साधु आदि ने श्रुत यह पद सीखा है, स्थिर, जित, मित, परिजित किया है यावत् जो ज्ञायक हैं वह अनुपयुक्त नहीं होता है आदि। यह आगम द्रव्यश्रुत का स्वरूप है | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 38 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ दव्वसुयं?
नोआगमओ दव्वसुयं तिविहं पन्नत्तं, तं जहा–जाणगसरीरदव्वसुयं भवियसरीरदव्वसुयं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं। Translated Sutra: नोआगमद्रव्यश्रुत क्या है ? तीन प्रकार का है। ज्ञायकशरीरद्रव्यश्रुत, भव्यशरीरद्रव्यश्रुत, ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्य – तिरिक्तद्रव्यश्रुत। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 41 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं?
जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं–पत्तय-पोत्थय-लिहियं।
अहवा सुयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंडयं बोंडयं कीडयं वालयं वक्कयं।
से किं तं अंडयं?
अंडयं–हंसगब्भाइ। से तं अंडयं।
से किं तं बोंडयं?
बोंडयं–फलिहमाइ। से तं बोंडयं।
से किं तं कीडयं?
कीडयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–पट्टे मलए अंसुए चीणंसुए किमिरागे। से तं कीडयं।
से किं तं वालयं?
वालयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–उन्निए उट्टिए मियलोमिए कुतवे किट्टिसे। से तं वालयं।
से किं तं वक्कयं? वक्कयं–सणमाइ। से तं वक्कयं।
से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं।
से तं Translated Sutra: ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्त – द्रव्यश्रुत क्या है ? ताड़पत्रों अथवा पत्रों के समूहरूप पुस्तक में लिखित श्रुत ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यश्रुत हैं। अथवा वह पाँच प्रकार का है – अंडज, बोंडज, कीटज, वालज, बल्कज। अंडज किसे कहते हैं ? हंसगर्भादि से बने सूत्र को अंडज कहते हैं। बोंडज किसे कहते हैं ? | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 42 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भावसुयं?
भावसुयं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। Translated Sutra: भावश्रुत क्या है ? दो प्रकार का है। यथा – आगमभावश्रुत और नोआगमभावश्रुत। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 43 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आगमओ भावसुयं?
आगमओ भावसुयं–जाणए उवउत्ते। से तं आगमओ भावसुयं। Translated Sutra: आगमभावश्रुत क्या है ? जो श्रुत का ज्ञाता होने के साथ उसके उपयोग से भी सहित हो, वह आगमभावश्रुत है। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 44 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ भावसुयं?
नोआगमओ भावसुयं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–लोइयं लोगुत्तरियं। Translated Sutra: नोआगम की अपेक्षा भावश्रुत क्या है ? दो प्रकार का है। लौकिक, लोकोत्तरिक। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 45 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं भावसुयं?
लोइयं भावसुयं–जं इमं अन्नाणिएहिं मिच्छदिट्ठीहिं सच्छंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं, तं जहा–
भारहं २. रामायणं ३-४. हंभीमासुरुत्तं ५. कोडिल्लयं ६. घोडमुहं ७. सगभद्दियाओ ८. कप्पासियं ९. नागसुहुमं १०. कणगसत्तरी ११. वेसियं १२. वइसेसियं १३. बुद्धवयणं १४. काविलं १५. लोगायतं १६. सट्ठितंतं १७. माढरं १८. पुराणं १९. वागरणं २०. नाडगादि। अहवा बावत्तरिकलाओ चत्तारि वेया संगोवंगा।
से तं लोइयं भावसुयं। Translated Sutra: लौकिक (नोआगम) भावश्रुत क्या है ? अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों द्वारा अपनी स्वच्छन्द बुद्धि और मति से रचित महाभारत, रामायण, भीमासुरोक्त, अर्थशास्त्र, घोटकमुख, शटकभद्रिका, कार्पासिक, नागसूत्र, कनकसप्तति, वैशेकिशास्त्र, बौद्धशास्त्र, कामशास्त्र, कपिलशास्त्र, लोकायतशास्त्र, षष्ठितंत्र, माठरशास्त्र, पुराण, व्याकरण, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 46 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोगुत्तरियं भावसुयं?
लोगुत्तरियं भावसुयं– जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पन्ननाणदंसणधरेहिं तीय-पडुप्पन्न मनागयजाणएहिं सव्वन्नूहिं सव्वदरिसीहिं तेलोक्कचहिय-महियपूइएहिं पणीयं दुवालसंगं गणि-पिडगं, तं जहा–
१.आयारो २. सूयगडो ३. ठाणं ४. समवाओ ५. वियाहपन्नत्ती ६. नायाधम्मकहाओ ७. उवासगदसाओ ८. अंतगडदसाओ ९. अनुत्तरोव-वाइयदसाओ १०. पण्हावागरणाइं ११. विवागसुयं १२. दिट्ठिवाओ।
से तं लोगुत्तरियं भावसुयं। से तं नोआगमओ भावसुयं। से तं भावसुयं। Translated Sutra: लोकोत्तरिक (नोआगम) भावश्रुत क्या है ? उत्पन्न केवलज्ञान और केवलदर्शन को धारण करनेवाले, भूत – भविष्यत् और वर्तमान कालिक पदार्थों को जानने वाले, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, त्रिलोकवर्ती जीवों द्वारा अवलोकित, पूजित, अप्रतिहत श्रेष्ठ ज्ञान – दर्शन के धारक अरिहंत भगवंतो द्वारा प्रणीत आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 47 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा नामधेज्जा भवंति, तं जहा– Translated Sutra: उदात्तादि विविध स्वरों तथा ककारादि अनेक व्यंजनों से युक्त उस श्रुत के एकार्थवाचक नाम इस प्रकार हैं – श्रुत, सूत्र, ग्रन्थ, सिद्धान्त, शासन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापना, आगम, ये सभी श्रुत के एकार्थक पर्याय हैं। इस प्रकार से श्रुत की वक्तव्यता समाप्त हुई। सूत्र – ४७–४९ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 48 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुय सुत्त गंथ सिद्धंत, सासने आण वयण उवएसे ।
पन्नवण आगमे य, एगट्ठा पज्जवा सुत्ते ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४७ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 52 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दव्वखंधे?
दव्वक्खंधे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ दव्वखंधे?
आगमओ दव्वखंधे–जस्स णं खंधे त्ति पदं सिक्खियं सेसं जहा दव्वा-वस्सए तहा भाणियव्वं नवरं खंधाभिलाओ जाव से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे जाणगसरीर-भविय-सरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे तिविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्ते अचित्ते मीसए। Translated Sutra: द्रव्यस्कन्ध क्या है ? दो प्रकार का है। आगमद्रव्यस्कन्ध और नोआगमद्रव्यस्कन्ध। आगमद्रव्यस्कन्ध क्या है ? जिसने स्कन्धपद को गुरु से सीखा है, स्थित किया है, जित, मित किया है यावत् नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त आत्मा आगम से एक द्रव्यस्कन्ध है, दो अनुपयुक्त आत्माऍं दो, इस प्रकार जितनी भी अनुपयुक्त आत्माऍं हैं, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 60 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भावखंधे?
भावखंधे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। Translated Sutra: भावस्कन्ध क्या है ? दो प्रकार का है। आगमभावस्कन्ध, नोआगमभावस्कन्ध। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 61 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आगमओ भावखंधे?
आगमओ भावखंधे–जाणए उवउत्ते। से तं आगमओ भावखंधे। Translated Sutra: आगमभावस्कन्ध क्या है ? स्कन्ध पद के अर्थ का उपयोगयुक्त ज्ञाता आगमभावस्कन्ध है। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 62 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ भावखंधे?
नोआगमओ भावखंधे–एएसिं चेव सामाइय-माइयाणं छण्हं अज्झयणाणं समुदय-समिति-समागमेणं निप्फन्ने आवस्सयसुयखंधे भावखंधे त्ति लब्भइ।
से तं नोआगमओ भावखंधे। से तं भावखंधे। Translated Sutra: नोआगमभावस्कन्ध क्या है ? परस्पर – सम्बन्धित सामायिक आदि छह अध्ययनों के समुदाय के मिलने से निष्पन्न आवश्यकश्रुतस्कन्ध नोआगमभावस्कन्ध है। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 70 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं उवक्कमे?
उवक्कमे छव्वीहे पन्नत्ते तं जहा–१. नामोवक्कमे २. ठवणोवक्कमे ३. दव्वोवक्कमे ४. खेत्तोवक्कमे ५. कालोवक्कमे ६. भावोवक्कमे। से नामट्ठवणाओ गयाओ ।
से किं तं दव्वोवक्कमे? दव्वोवक्कमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ दव्वोवक्कमे?
आगमओ दव्वोवक्कमे–जस्स णं उवक्कमे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए,
नो अनुप्पेहाए। कम्हा? अनुवओगो Translated Sutra: उपक्रम क्या है ? उपक्रम के छह भेद हैं। नाम – उपक्रम, स्थापना – उपक्रम, द्रव्य – उपक्रम, क्षेत्र – उपक्रम, काल – उपक्रम, भाव – उपक्रम। नाम और स्थापना – उपक्रम का स्वरूप नाम एवं स्थापना आवश्यक के समान जानना द्रव्य – उपक्रम क्या है ? दो प्रकार का है – आगमद्रव्य – उपक्रम, नोआगमद्रव्य – उपक्रम इत्यादि पूर्ववत् जानना | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 76 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मीसए दव्वोवक्कमे?
मीसए दव्वोवक्कमे–से चेव थासगआयंसगाइमंडिए आसाइ।
से तं मीसए दव्वोवक्कमे। से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वोवक्कमे। से तं नोआगमओ दव्वोवक्कमे। से तं दव्वोवक्कमे। Translated Sutra: मिश्रद्रव्योपक्रम क्या है ? स्थासक, दर्पण आदि से विभूषित एवं मंडित अश्वाद सम्बन्धी उपक्रम मिश्रद्रव्योपक्रम हैं। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 79 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भावोवक्कमे?
भावोवक्कमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ भावोवक्कमे? आगमओ भावोवक्कमे–जाणए उवउत्ते।
से तं आगमओ भावोवक्कमे।
से किं तं नोआगमओ भावोवक्कमे?
नोआगमओ भावोवक्कमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पसत्थे य अपसत्थे य।
से किं तं अपसत्थे भावोवक्कमे?
अपसत्थे भावोवक्कमे–डोडिणि-गणिया अमच्चाईणं। से तं अपसत्थे भावोवक्कमे।
से किं तं पसत्थे भावोवक्कमे?
पसत्थे भावोवक्कमे–गुरुमाईणं।
से तं पसत्थे भावोवक्कमे।से तं नोआगमओ भावोवक्कमे।
से तं भावोवक्कमे। से तं उवक्कमे। Translated Sutra: भावोपक्रम क्या है ? दो प्रकार हैं। आगमभावोपक्रम, नोआगमभावोपक्रम। भगवन् ! आगमभावोपक्रम क्या है ? उपक्रम के अर्त को जानने के साथ जो उसके उपयोग से भी युक्त हो, वह आगमभावोपक्रम हैं। नोआगमभावोपक्रम दो प्रकार का है। प्रशस्त और अप्रशस्त। अप्रशस्त भावोपक्रम क्या है ? डोडणी ब्राह्मणी, गणिका और अमात्यादि का अन्य | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 82 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नामानुपुव्वी?
नामानुपुव्वी– जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा आनुपुव्वी त्ति नामं कज्जइ। से तं नामानुपुव्वी।
से किं तं ठवणानुपुव्वी?
ठवणानुपुव्वी– जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भाव-ठवणाए वा आनुपुव्वी त्ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणानुपुव्वी।
नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा।
से किं तं दव्वानुपुव्वी?
दव्वानुपुव्वी दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ Translated Sutra: नाम (स्थापना) आनुपूर्वी क्या है ? नाम और स्थापना आनुपूर्वी का स्वरूप नाम और स्थापना आवश्यक जैसा जानना। द्रव्यानुपूर्वी का स्वरूप भी ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी के पहले तक सभेद द्रव्यावश्यक के समान जानना चाहिए। ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी क्या है ? दो प्रकार की | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 95 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागं फुसंति–किं संखेज्जइभागं फुसंति? असंखेज्जइभागं फुसंति? संखेज्जे भागे फुसंति? असंखेज्जे भागे फुसंति? सव्वलोगं फुसंति?
एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागं वा फुसंति, असंखेज्जइभागं वा फुसंति, संखेज्जे भागे वा फुसंति, असंखेज्जे भागे वा फुसंति, सव्वलोगं वा फुसंति। नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोगं फुसंति।
नेगम-ववहाराणं अनानुपुव्विदव्वाणं पुच्छा। एगदव्वं पडुच्च नो संखेज्जइभागं फुसंति, असंखेज्जइभागं फुसंति नो संखेज्जे भागे फुसंति, नो असंखेज्जे भागे फुसंति, नो सव्वलोगं फुसंति। नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोगं Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसंमत आनुपूर्वीद्रव्य क्या लोक के संख्यातवें भाग का अथवा असंख्यातवें भाग का या संख्यात भागों का अथवा असंख्यात भागों का अथवा समस्त लोक का स्पर्श करते हैं ? नैगम – व्यवहारनय की अपेक्षा एक आनुपूर्वीद्रव्य लोक के संख्यातवें भाग का यावत् अथवा सर्वलोक का स्पर्श करता है, किन्तु अनेक (आनुपूर्वी) | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 108 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] संगहस्स आनुपुव्विदव्वाइं किं अत्थि? नत्थि? नियमा अत्थि। एवं दोन्नि वि।
संगहस्स आनुपुव्विदव्वाइं किं संखेज्जाइं? असंखेज्जाइं? अनंताइं?
नो संखेज्जाइं नो असंखेज्जाइं नो अनंताइं, नियमा एगो रासी। एवं दोन्नि वि।
संगहस्स आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागे होज्जा–किं संखेज्जइभागे होज्जा? असंखे-ज्जइभागे होज्जा? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा? सव्वलोए होज्जा?
नो संखेज्जइभागे होज्जा, नो असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नियमा सव्वलोए होज्जा। एवं दोन्नि वि।
संगहस्स आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति Translated Sutra: संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य हैं अथवा नहीं हैं ? नियमतः हैं। इसी प्रकार दोनों द्रव्यों के लिये भी समझना। संग्रह – नयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य संख्यात हैं, असंख्यात हैं, या अनन्त हैं ? वह नियमतः एक राशि रूप हैं। इसी प्रकार दोनों द्रव्यों के लिये भी जानना। संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य लोक के कितने भाग में | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 111 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा ओवनिहिया दव्वानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा– पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–परमाणुपोग्गले दुपएसिए तिपएसिए जाव दसपएसिए संखेज्जपएसिए असंखेज्जपएसिए अनंतपएसिए। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–अनंतपएसिए असंखेज्जपएसिए संखेज्जपएसिए दसपएसिए जाव तिपएसिए दुपएसिए परमाणुपोग्गले। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए अनंतगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। से तं ओवनिहिया दव्वानुपुव्वी।
से Translated Sutra: अथवा औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी तीन प्रकार की है। पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है – परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशिक स्कन्ध, त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध रूप क्रमात्मक | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 116 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं किं अत्थि? नत्थि? नियमा अत्थि। एवं दोन्नि वि।
नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं किं संखेज्जाइं? असंखेज्जाइं? अनंताइं? नो संखेज्जाइं, असंखेज्जाइं, नो अनंताइं। एवं दोन्नि वि।
नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागे होज्जा–किं संखेज्जइभागे होज्जा? असंखेज्जइभागे होज्जा? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा? सव्वलोए होज्जा? एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागे वा होज्जा, असंखेज्जइभागे वा होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, देसूणे लोए वा होज्जा। नानादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोए Translated Sutra: सत्पदप्ररूपणता क्या है ? नैगम – व्यवहारनयसंमत क्षेत्रानुपूर्वीद्रव्य है या नहीं ? नियमतः हैं। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों के लिए भी समझना। नैगम – व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्य क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अथवा अनन्त हैं ? वह नियमतः असंख्यात हैं। इसी प्रकार दोनों द्रव्यों के लिए भी | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
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Hindi | 147 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं एगनामे? एगनामे– Translated Sutra: एकनाम क्या है ? द्रव्यों, गुणों एवं पर्यायों के जो नाम लोक में रूढ़ हैं, उन सबकी ‘नाम’ ऐसी एक संज्ञा आगम रूप निकष में कही गई है। यह एकनाम है। सूत्र – १४७–१४९ | |||||||||
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Hindi | 148 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नामानि जानि कानि वि, दव्वाण गुणाण पज्जवाणं च ।
तेसिं आगम-निहसे, नामंति परूविया सन्ना ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४७ | |||||||||
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Hindi | 152 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तं पुण नामं तिविहं, इत्थी पुरिसं नपुंसगं चेव ।
एएसिं तिण्हंपि य, अंतम्मि परूवणं वोच्छं ॥ Translated Sutra: उस त्रिनाम के पुनः तीन प्रकार हैं। स्त्रीनाम, पुरुषनाम और नपुंसकनाम। इन तीनों प्रकार के नामों का बोध उनके अंत्याक्षरो द्वारा होता है। पुरुषनामों के अंत में ‘आ, ई, ऊ, ओ’ इन चार में से कोई एक वर्ण होता है तथा स्त्रीनामों के अंत में ‘ओ’ को छोड़कर शेष तीन वर्ण होते हैं। जिन शब्दों के अन्त में अं, इं या उं वर्ण हो, उनको | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
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Hindi | 157 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अंकारंतं धन्नं, इंकारंतं नपुंसगं अच्छिं ।
उंकारंतं पीलुं, महुं च अंता नपुंसाणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५२ | |||||||||
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Hindi | 159 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं चउनामे? चउनामे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमेणं लोवेणं पयईए विगारेणं।
से किं तं आगमेणं? आगमेणं–पद्मानि पयांसि कुंडानि। से तं आगमेणं।
से किं तं लोवेणं? लोवेणं–ते अत्र = तेत्र, पटो अत्र = पटोत्र, घटो अत्र = घटोत्र, रथो अत्र = रथोत्र। से तं लोवेणं।
से किं तं पयईए? पयईए–अग्नी एतौ, पटू इमौ, शाले एते, माले इमे। से तं पयईए।
से किं तं विगारेणं? विगारेणं–दण्डस्य अग्रं = दण्डाग्रम्, सो आगता = सागता, दधि इदं = दधीदम्, नदी ईहते = नदीहते, मधु उदकं = मधूदकम्, वधू ऊहते = वधूहते। से तं विगारेणं।
से तं चउनामे। Translated Sutra: चतुर्नाम क्या है ? चार प्रकार हैं। आगमनिष्पन्ननाम, लोपनिष्पन्ननाम, प्रकृतिनिष्पन्ननाम, विकारनिष्पन्ननाम। आगम – निष्पन्ननाम क्या है ? पद्मानि, पयांसि, कुण्डानि आदि ये सब आगमनिष्पन्ननाम हैं। लोपनिष्पन्ननाम क्या है ? ते + अत्र – तेऽत्र, पटो + अत्र – पटोऽत्र, घटो + अत्र – घटोऽत्र, रथो + अत्र रथोऽत्र, ये लोपनिष्पन्ननाम | |||||||||
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Hindi | 161 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं छनामे? छनामे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. उदइए २. उवसमिए ३. खइए ४. खओवसमिए ५. पारिणामिए ६. सन्निवाइए।
से किं तं उदइए? उदइए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–उदए य उदयनिप्फन्ने य।
से किं तं उदए? उदए–अट्ठण्हं कम्मपयडीणं उदए णं। से तं उदए।
से किं तं उदयनिप्फन्ने? उदयनिप्फन्ने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– जीवोदयनिप्फन्ने य अजीवो-दयनिप्फन्ने य।
से किं तं जीवोदयनिप्फन्ने? जीवोदयनिप्फन्ने अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–नेरइए तिरिक्ख-जोणिए मनुस्से देवे पुढविकाइए आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए वणस्सइकाइए तसकाइए, कोहकसाई मानकसाई मायाकसाई लोभकसाई, इत्थिवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए, कण्हलेसे Translated Sutra: छहनाम क्या है ? छह प्रकार हैं। औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सान्निपातिक। औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार का है। औदयिक और उदयनिष्पन्न। औदयिक क्या है ? ज्ञानावरणादिक आठ कर्मप्रकृतियों के उदय से होने वाला औदयिकभाव है। उदयनिष्पन्न औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार हैं – जीवोदयनिष्पन्न, अजीवोदयनिष्पन्न। जीवोदयनिष्पन्न | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
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Hindi | 163 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उक्कावाया दिसादाहा गज्जियं विज्जू निग्घाया जूवया जक्खालित्ता धूमिया महिया रयुग्घाओ चंदोवरागा सूरोवरागा चंदपरिवेसा सूरपरिवेसा पडिचंदा पडिसूरा इंदधणू उदगमच्छा कविहसिया अमोहा वासा वासधरा गामा नगरा घरा पव्वता पायाला भवणा निरया रयणप्पभा सक्करप्पभा वालुयप्पभा पंकप्पभा धूमप्पभा तमा तमतमा सोहम्मे ईसाणे सणंकुमारे माहिंदे बंभलोए लंतए महासुक्के सहस्सारे आणए पाणए आरणे अच्चुए गेवेज्जे अनुत्तरे ईसिप्पब्भारा परमाणुपोग्गले दुपएसिए जाव अनंतपएसिए।
से तं साइपारिणामिए।
से किं तं अनाइ-पारिणामिए? अनाइ-पारिणामिए–धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगास-त्थिकाए जीवत्थिकाए Translated Sutra: उल्कापात, दिग्दाह, मेघगर्जना, विद्युत, निर्घात्, यूपक, यक्षादिप्त, धूमिका, महिका, रजोद्घात, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, चन्द्रपरिवेष, सूर्यपरिवेष, प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, उदकमत्स्य, कपिहसित, अमोघ, वर्ष, वर्षधर पर्वत, ग्राम, नगर, घर, पर्वत, पातालकलश, भवन, नरक, रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
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Hindi | 177 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] रिसभेण उ एसज्जं, सेनावच्चं धनानि य ।
वत्थगंधमलंकारं, इत्थीओ सयनानि य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७५ | |||||||||
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Hindi | 183 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसिं णं सत्तण्हं सराणं तओ गामा पन्नत्ता, तं जहा–सज्जगामे मज्झिमगामे गंधारगामे।
सज्जगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– Translated Sutra: इन सात स्वरों के तीन ग्राम हैं। षड्जग्राम, मध्यमग्राम, गांधारग्राम। षड्जग्राम की सात मूर्च्छनाऍं हैं। मंगी, कौरवीया, हरित, रजनी, सारकान्ता, सारसी और शुद्धषड्ज। मध्यमग्राम की सात मूर्च्छनाऍं हैं। उतरमंदा, रजनी, उत्तरा, उत्तरायता, अश्वक्रान्ता, सौवीरा, अभिरुद्गता। गांधारग्राम की सात मूर्च्छनाऍं हैं। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
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Hindi | 185 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मज्झिमगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– Translated Sutra: देखो सूत्र १८३ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
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Hindi | 187 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गंधारगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– Translated Sutra: देखो सूत्र १८३ | |||||||||
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Hindi | 188 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नंदी य खुड्डिया पूरिमा य चउत्थी य सुद्धगंधारा ।
उत्तरगंधारा वि य, पंचमिया हवइ मुच्छा उ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १८३ | |||||||||
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Hindi | 223 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विनओवयार-गुज्झ-गुरुदार-मेरावइक्कमुप्पन्नो ।
वेलणओ नाम रसो, लज्जासंकाकरणलिंगो ॥ Translated Sutra: विनय करने योग्य माता – पिता आदि गुरुजनों का विनयन करने से, गुप्त रहस्यों को प्रकट करने से तथा गुरुपत्नी आदि के साथ मर्यादा का उल्लंघन करने से व्रीडनकरस उत्पन्न होता है। लज्जा और शंका उत्पन्न होना, इस रस के लक्षण हैं। इस लौकिक व्यवहार से अधिक लज्जास्पद अन्य बात क्या हो सकती है – मैं तो इससे बहुत लजाती हूँ कि | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
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Hindi | 225 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] असुइ-कुणव-दुद्दंसण-संजोगब्भासगंधनिप्फन्नो ।
निव्वेयविहिंसालक्खणो रसो होइ बीभत्सो ॥ Translated Sutra: अशुचि, शव, मृत शरीर, दुर्दर्शन को बारंबार देखने रूप अभ्यास से या उसकी गंध से बीभत्सरस उत्पन्न होता है। निर्वेद और अविहिंसा बीभत्सरस के लक्षण हैं। अपवित्र मल से भरे हुए झरनों से व्याप्त और सदा सर्वकाल स्वभावतः दुर्गन्ध – युक्त यह शरीर सर्व कलहों का मूल है। ऐसा जानकर जो व्यक्ति उसकी मूर्च्छा का त्याग करते हैं, | |||||||||
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Hindi | 249 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दंदे? दंदे–दन्ताश्च ओष्ठौ च दन्तोष्ठम्, स्तनौ च उदरं च स्तनोदरम्, वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्, अश्वाश्च महिषाश्च अश्वमहिषम्, अहिश्च नकुलश्च अहिनकुलम्। से तं दंदे।
से किं तं बहुव्वीही? बहुव्वीही–फुल्ला जम्मि गिरिम्मि कुडय-कयंबा सो इमो गिरी फुल्लिय-कुडय-कयंबो। से तं बहुव्वीही।
से किं तं कम्मधारए? कम्मधारए–धवलो वसहो धवलवसहो, किण्हो मिगो किण्हमिगो, सेतो पडो सेतपडो, रत्तो पडो रत्तपडो। से तं कम्मधारए।
से किं तं दिगू? दिगू–तिन्नि कडुयाणि तिकडुयं, तिन्नि महुराणि तिमहुरं, तिन्नि गुणा तिगुणं, तिन्नि पुराणि तिपुरं, तिन्नि सराणि तिसरं, तिन्नि पुक्खराणि Translated Sutra: द्वन्द्वसमास क्या है ? ‘दंताश्च ओष्ठौ च इति दंतोष्ठम्’, ‘स्तनौ च उदरं च इति स्तनोदरम्’, ‘वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्’ ये सभी शब्द द्वन्द्वसमास रूप हैं। बहुव्रीहिसमास का लक्षण यह है – इस पर्वत पर पुष्पित कुटज और कदंब वृक्ष होने से यह पर्वत फुल्लकुटजकदंब है। यहाँ ‘फुल्लकुटजकदंब’ पर बहुव्रीहिसमास | |||||||||
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Hindi | 253 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दव्वप्पमाणे? दव्वप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पएसनिप्फन्ने य विभागनिप्फन्ने य।
से किं तं पएसनिप्फन्ने? पएसनिप्फन्ने–परमाणुपोग्गले दुपएसिए जाव दसपएसिए संखेज्ज-पएसिए असंखेज्जपएसिए अनंतपएसिए। से तं पएसनिप्फन्ने।
से किं तं विभागनिप्फन्ने? विभागनिप्फन्ने पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. माने २. उम्माने ३. ओमाने ४. गणिमे ५. पडिमाणे।
से किं तं माने? माणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–धन्नमाणप्पमाणे य रसमाणप्पमाणे य।
से किं तं धन्नमाणप्पमाणे? धन्नमाणप्पमाणे–दो असतीओ पसती दो पसतीओ सेतिया, चत्तारि सेतियाओ कुलओ, चत्तारि कुलया पत्थो, चत्तारि पत्थया आढगं, चत्तारि Translated Sutra: द्रव्यप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, यथा – प्रदेशनिष्पन्न और विभागनिष्पन्न। प्रदेशनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण क्या है ? परमाणु पुद्गल, द्विप्रदेशों यावत् दस प्रदेशों, संख्यात प्रदेशों, असंख्यात प्रदेशों और अनन्त प्रदेशों से जो निष्पन्न – सिद्ध होता है। विभागनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण पाँच प्रकार है। मानप्रमाण, | |||||||||
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Hindi | 265 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं परमाणू? परमाणू दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुहुमे य वावहारिए य।
तत्थ सुहुमो ठप्पो।
से किं तं वावहारिए? वावहारिए–अनंताणं सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं से एगे वावहारिए परमाणुपोग्गले निप्फज्जइ।
१. से णं भंते! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा? हंता ओगाहेज्जा। से णं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ।
२. से णं भंते! अगणिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा। से णं तत्थ डहेज्जा? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ।
३. से णं भंते! पोक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा। Translated Sutra: भगवन् ! परमाणु क्या है ? दो प्रकार का सूक्ष्म परमाणु और व्यवहार परमाणु। इनमें से सूक्ष्म परमाणु स्थापनीय है। अनन्तानंत सूक्ष्म परमाणुओं के समुदाय एक व्यावहारिक परमाणु निष्पन्न होता है। व्यावहारिक परमाणु तलवार की धार या छुरे की धार को अवगाहित कर सकता है ? हाँ, कर सकता है। तो क्या वह उस से छिन्न – भिन्न हो सकता | |||||||||
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अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 267 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंताणं वावहारियपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं सा एगा उसण्ह-सण्हिया इ वा, सण्हसण्हिया इ वा, उड्ढरेणू इ वा, तसरेणू इ वा, रहरेणू इ वा, वालग्गे इ वा, लिक्खा इ वा, जूया इ वा, जवमज्झे इ वा, अंगुले इ वा? ।
अट्ठ उसण्हसण्हियाओ सा एगा सण्हसण्हिया, अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उड्ढरेणू, अट्ठ उड्ढरेणूओ सा एगा तसरेणू, एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ देवकुरु-उत्तरकुरुगाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे अट्ठ देवकुरु-उत्तरकुरु-गाणं मणुस्साणं वालग्गा हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं वालग्गा हेमवय-हेरन्नवयाणं मणुस्साणं Translated Sutra: अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र से भी कोई जिसका छेदन – भेदन करने में समर्थ नहीं है, उसको ज्ञानसिद्ध केवली भगवान् परमाणु कहते हैं। वह सर्व प्रमाणों का आदि प्रमाण है। उस अनन्तान्त व्यावहारिक परमाणुओं के समुदयसमितिसमागम से एक उत्श्र्लक्ष्णलक्ष्णिका, श्र्लक्ष्णश्र्लक्ष्णिका, ऊर्ध्व – रेणु, त्रसरेणु और रथरेणु उत्पन्न | |||||||||
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Hindi | 275 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समए? समयस्स णं परूवणं करिस्सामि–से जहानामए तुन्नागदारए सिया तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पातंके थिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय-पास-पिट्ठं-तरोरुपरिणते तलजमलजुयल-परिघनिभबाहू चम्मेट्ठग-दुहण-मुट्ठिय-समाहत-निचित-गत्तकाए उरस्सबलसमन्नागए लंघण, पवण-जइण-वायामसमत्थे छेए दक्खे पत्तट्ठे कुसले मेहावी निउणे निउणसिप्पोवगए एगं महतिं पडसाडियं वा पट्टसाडियं वा गहाय सयराहं हत्थमेत्तं ओसारेज्जा। तत्थ चोयए पन्नवयं एवं वयासी–जेणं कालेणं तेणं तुन्नागदारएणं तीसे पडसाडियाए वा पट्टसाडियाए वा सयराहं हत्थमेत्तं ओसारिए से समए भवइ? नो इणमट्ठे समट्ठे।
कम्हा? जम्हा संखेज्जाणं Translated Sutra: समय किसे कहते हैं ? समय की प्ररूपणा करूँगा। जैसे कोई एक तरुण, बलवान्, युगोत्पन्न, नीरोग, स्थिरहस्ताग्र, सुद्रढ़ – विशाल हाथ – पैर, पृष्ठभाग, पृष्ठान्त और उरु वाला, दीर्घता, सरलता एवं पीनत्व की दृष्टि से समान, समश्रेणी में स्थित तालवृक्षयुगल अथवा कपाट – अर्गला तुल्य दो भुजाओं का धारक, चर्मेष्टक, मुद्गर मुष्टिक | |||||||||
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Hindi | 282 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं वावहारियउद्धारपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं वावहारिय-उद्धार-पलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं पन्नवणट्ठं पन्नविज्जति।
से तं वावहारिए उद्धारपलिओवमे।
से किं तं सुहुमे उद्धारपलिओवमे? सुहुमे उद्धारपलिओवमे से जहानामए पल्ले सिया–जोयणं आयाम-विक्खं-भेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले–
एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं ।
सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥
तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाइं कज्जइ। ते णं वालग्गा दिट्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणग-जीवस्स Translated Sutra: व्यावहारिक उद्धार पल्योपम और सागरोपम का क्या प्रयोजन है ? इनसे किसी प्रयोजन की सिद्धि नहीं होती है। ये दोनों केवल प्ररूपणामात्र के लिए हैं। सूक्ष्म उद्धार पल्योपम क्या है ? इस प्रकार है – धान्य के पल्य के समान कोई एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा एवं कुछ अधिक तीन योजन की परिधिवाला पल्य हो। इस पल्य | |||||||||
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Hindi | 286 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं वावहारियअद्धापलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं वावहारिय-अद्धा-पलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं पन्नवणट्ठं पन्नविज्जति।
से तं वावहारिए अद्धापलिओवमे।
से किं तं सुहुमे अद्धापलिओवमे? सुहुमे अद्धापलिओवमे – से जहानामए पल्ले सिया–जोयणं आयाम-विक्खं-भेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले–
एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं ।
सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥
तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाइं कज्जइ, ते णं वालग्गे दिठ्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणगजी-वस्स सरीरोगाहणाओ Translated Sutra: व्यावहारिक अद्धा पल्योपम और सागरोपम से किस प्रयोजन की सिद्धि होती है ? कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है। ये केवल प्ररूपणा के लिये हैं। सूक्ष्म अद्धापल्योपम का स्वरूप इस प्रकार है – एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा, एक योजन ऊंचा एवं साधिक तीन योजन की परिधिवाला एक पल्य हो। उस पल्य को एक – दो – तीन दिन के यावत् बालाग्र | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 295 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं वावहारियखेत्तपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं वावहारिय-खेत्त-पलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं केवलं पन्नवणट्ठं पन्नविज्जइ।
से तं वावहारिए खेत्तपलिओवमे।
से किं तं सुहुमे खेत्तपलिओवमे? सुहुमे खेत्तपलिओवमे – से जहानामए पल्ले सिया–जोयणं आयाम-विक्खं-भेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले–
एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं ।
सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥
तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाइं कज्जइ, ते णं वालग्गा दिठ्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणग-जीवस्स सरीरोगाहणाओ Translated Sutra: भगवन् ! इन व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम और सागरोपम से कौन – सा प्रयोजन सिद्ध होता है ? गौतम ! इन से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। मात्र इनके स्वरूप की प्ररूपणा ही की गई है। भगवन् ! सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम क्या है ? वह इस प्रकार जानना – जैसे धान्य के पल्य के समान एक पल्य हो जो एक योजन लम्बा – चौड़ा, एक योजन ऊंचा और कुछ |