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Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1388 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इणमो सव्वमवि पायच्छित्ते गोयमा जावइयं एगत्थ संपिंडियं हवेज्जा तावइयं चेव एगस्स णं गच्छाहिवइणो मय-हर पवत्तिनीए य चउगुणं उवइसेज्जा। जओ णं सव्वमवि एएसिं पयंसियं हवेज्जा, अहाणमिमे चेव पमायवसं गच्छेज्जा, तओ अन्नेसिं संते धी बल वीरिए सुट्ठुतरा-गमच्चुज्जमं हवेज्जा। अहा णं किं चि सुमहंतमवि तवाणुट्ठाणमब्भुज्जमेज्जा, ता णं न तारिसाए धम्म सद्धाए, किं तु मंदुच्छाहे सम-णुट्ठेज्जा। भग्गपरिणामस्स य निरत्थगमेव कायकेसे। जम्हा एयं, तम्हा उ अच्चिंताणंत निरनुबंधि पुन्न पब्भारेणं संजुज्जमाणे वि साहुणो न संजुज्जंति। एवं च सव्वमवि गच्छाहिवइयादीणं दोसेणेव पवत्तेज्जा।

Translated Sutra: हे गौतम ! जितने यह सभी प्रायश्चित्त हैं उसे इकट्ठा करके गिनती की जाए तो उतना प्रायश्चित्त एक गच्छा – धिपति को गच्छ के नायक को और साध्वी समुदाय की नायक प्रवर्तिनी को चार गुना प्रायश्चित्त बताना, क्योंकि उनको तो यह सब पता चला है। और जो यह परिचित और यह गच्छनायक प्रमाद करनेवाले हो तो दूसरे, बल, वीर्य होने के बावजूद
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1390 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं जया णं से सीसे जहुत्त संजम किरियाए पवट्टंति तहाविहे य केई कुगुरू तेसिं दिक्खं परूवेज्जा, तया णं सीसा किं समनुट्ठेज्जा गोयमा घोर वीर तव संजमे से भयवं कहं गोयमा अन्न गच्छे पविसित्ताणं। से भयवं जया णं तस्स संतिएणं सिरिगारेणं विम्हिए समाणे अन्नगच्छेसुं पवेसमेव न लभेज्जा, तया णं किं कुव्विज्जा गोयमा सव्व-पयारेहिं णं तं तस्स संतियं सिरियारं फुसावेज्जा। से भयवं केणं पयारेणं तं तस्स संतियं सिरियारं सव्व पयारेहि णं फुसियं हवेज्जा गोयमा अक्खरेसुं से भयवं किं णामे ते अक्खरे गोयमा जहा णं अप्पडिग्गाही कालकालंतरेसुं पि अहं इमस्स सीसाणं वा सीसिणीगाणं वा। से भयवं

Translated Sutra: हे भगवंत ! जब शिष्य यथोक्त संयमक्रिया में व्यवहार करता हो तब कुछ कुगुरु उस अच्छे शिष्य के पास उनकी दीक्षा प्ररूपे तब शिष्य का कौन – सा कर्तव्य उचित माना जाता है ? हे गौतम ! घोर वीर तप का संयम करना। हे भगवंत ! किस तरह ? हे गौतम ! अन्य गच्छ में प्रवेश करके। हे भगवंत ! उसके सम्बन्धी स्वामीत्व की फारगति दिए बिना दूसरे गच्छ
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1403 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कयाइं पावाइं इमाइं जेहिं अट्ठी न बज्झए। तेसिं तित्थयरवयणेहिं सुद्धी अम्हाण कीरउ॥

Translated Sutra: जो हितार्थी आत्मा है वो अल्प पाप भी नहीं बाँधते। उनकी शुद्धि तीर्थंकर भगवंत के वचन से होती है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1404 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परिचिच्चाणं तयं कम्मं घोर-संसार-दुक्खदं। मणो-वइ-काय-किरियाहिं सीलभारं धरेमि अहं॥

Translated Sutra: हम जैसों की शुद्धि कैसे होगी ? घोर संसार के दुःख देनेवाले वैसे पापकर्म का त्याग करके मन, वचन, काया की क्रिया से शील के बोझ मैं धारण करूँगा। जिस तरह सारे भगवंत, केवली, तीर्थंकर, चारित्रयुक्त आचार्य, उपाध्याय और साधु और फिर जिस तरह से पाँच लोकपाल, जो जीव धर्म के परीचित हैं, उनके समक्ष मैं तल जितना भी पाप नहीं छिपाऊंगा।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1426 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवमालोयणं दाउं पायच्छित्तं चरेत्तु णं। कलि-कलुस-कम्म-मल-मुक्के जइ नो सिज्झेज्ज तक्खणं॥

Translated Sutra: इस प्रकार आलोचना प्रकट करके प्रायश्चित्त का सेवन करके क्लेश और कर्ममल से सर्वथा मुक्त होकर शायद वो पल या उस भव में मुक्ति न पाए तो नित्य उद्योतवाला स्वयं प्रकाशित देवदुंदुभि के मधुर शब्दवाले सैंकड़ो अप्सरा से युक्त ऐसे वैमानिक उत्तम देवलोक में जाते हैं। वहाँ से च्यवकर फिर से यहाँ आकर उत्तम कुल में उत्पन्न
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1498 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं पुन काऊणं एरिसा सुलहबोही जाया सा सुगहियनामधेज्जा माहणी जीए एयावइयाणं भव्व-सत्ताणं अनंत संसार घोर दुक्ख संतत्ताणं सद्धम्म देसणाईहिं तु सासय सुह पयाणपुव्वगमब्भुद्धरणं कयं ति। गोयमा जं पुव्विं सव्व भाव भावंतरंतरेहिं णं नीसल्ले आजम्मा-लोयणं दाऊणं सुद्धभावाए जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं। पायच्छित्तसमत्तीए य समाहिए य कालं काऊणं सोहम्मे कप्पे सुरिंदग्गमहिसी जाया तमनुभावेणं। से भयवं किं से णं माहणी जीवे तब्भवंतरम्मि समणी निग्गंथी अहेसि जे णं नीसल्लमालोएत्ता णं जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं ति। गोयमा जे णं से माहणी जीवे से णं तज्जम्मे बहुलद्धिसिद्धी

Translated Sutra: हे भगवंत ! उस ब्राह्मणीने ऐसा तो क्या किया कि जिससे इस प्रकार सुलभ बोधि पाकर सुबह में नाम ग्रहण करने के लायक बनी और फिर उसके उपदेश से कईं भव्य जीव नर – नारी कि जो अनन्त संसार के घोर दुःख में सड़ रहे थे उन्हें सुन्दर धर्मदेश आदि के द्वारा शाश्वत सुख देकर उद्धार किया। हे गौतम ! उसने पूर्वभव में कईं सुन्दर भावना सहित
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मङ्गलं

Hindi 1 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एस करेमि पणामं तित्थयराणं अनुत्तरगईणं । सव्वेसिं च जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च ॥

Translated Sutra: अब मैं उत्कृष्ट गतिवाले तीर्थंकर को, सर्व जिन को, सिद्ध को और संयत (साधु) को नमस्कार करता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 127 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जह पच्छिमम्मि काले पच्छिमतित्थयरदेसियमुयारं । पच्छा निच्छयपत्थं उवेमि अब्भुज्जयं मरणं ॥

Translated Sutra: जैसे अंतिम काल में अंतिम तीर्थंकर भगवान ने उदार उपदेश दिया वैसे मैं निश्चय मार्गवाला अप्रतिबद्ध मरण अंगीकार करता हूँ।
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 2 Gatha Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जयइ सुयाणं पभवो तित्थयराणं अपच्छिमो जयइ । जयइ गुरू लोगाणं, जयइ महप्पा महावीरो ॥

Translated Sutra: समग्र श्रुतज्ञान के मूलस्रोत, वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीस तीर्थंकरों में अन्तिम, लोकों के गुरु महात्मा महावीर सदा जयवन्त हैं।
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 7 Gatha Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कम्मरय-जलोह-विणिग्गयस्स सुयरयण-दीहनालस्स । पंचमहव्वयथिरकन्नियस्स गुणकेसरालस्स ॥

Translated Sutra: जो संघ रूपी पद्म, कर्म – रज तथा जल – राशि से ऊपर उठा हुआ है – जिस का धार श्रुतरत्नमय दीर्घ नाल है, पाँच महाव्रत जिसकी सुदृढ़ कर्णिकाऍं हैं, उत्तरगुण जिसका पराग है, जो भावुक जनरूपी मधुकरों से घिरा हुआ है, तीर्थंकर रूप सूर्य के केवलज्ञान रूप तेज से विकसित है, श्रमणगण रूप हजार पाँखूड़ी वाले उस संघपद्म का सदा कल्याण हो। सूत्र
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 79 Gatha Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नेरइयदेवतित्थंकरा य, ओहिस्सबाहिरा हुंति । पासंति सव्वओ खलु, सेसा देसेण पासंति ॥

Translated Sutra: नारक, देव एवं तीर्थंकर अवधिज्ञान से युक्त ही होते हैं और वे सब दिशाओं तथा विदिशाओं में देखते हैं। मनुष्य एवं तिर्यंच ही देश से देखते हैं।
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 87 Sutra Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनंतरसिद्धकेवलनाणं? अनंतरसिद्धकेवलनाणं पन्नरसविहं पन्नत्तं, तं जहा–१. तित्थसिद्धा २. अतित्थसिद्धा ३. तित्थयरसिद्धा ४. अतित्थयरसिद्धा ५. सयंबुद्धसिद्धा ६. पत्तेयबुद्धसिद्धा ७. बुद्धबोहियसिद्धा ८. इत्थिलिंगसिद्धा ९. पुरिसलिंगसिद्धा १०. नपुंसगलिंगसिद्धा ११. सलिंगसिद्धा १२. अन्नलिंगसिद्धा १३. गिहिलिंगसिद्धा १४. एगसिद्धा १५. अनेगसिद्धा। से त्तं अनंतरसिद्धकेवलनाणं।

Translated Sutra: अनन्तरसिद्ध केवलज्ञान १५ प्रकार से वर्णित है। यथा – तीर्थसिद्ध, अतीर्थसिद्ध, तीर्थंकरसिद्ध, अतीर्थंकर सिद्ध, स्वयंबुद्धसिद्ध, प्रत्येकबुद्धसिद्ध, बुद्धबोधितसिद्ध, स्त्रीलिंगसिद्ध, पुरुषलिंगसिद्ध, नपुंसकलिंगसिद्ध, स्वलिंग – सिद्ध, अन्यलिंगसिद्ध, गृहिलिंगसिद्ध, एकसिद्ध और अनेकसिद्ध।
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 91 Gatha Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] केवलनाणेनत्थे, नाउं जे तत्थ पन्नवणजोगे । ते भासइ तित्थयरो, वइजोग तयं हवइ सेसं ॥

Translated Sutra: केवलज्ञान के द्वारा सब पदार्थों को जानकर उनमें जो पदार्थ वर्णन करने योग्य होते हैं, उन्हें तीर्थंकर देव अपने प्रवचनों में प्रतिपादन करते हैं। वह उनका वचनयोग होता है अर्थात्‌ वह अप्रदान द्रव्यश्रुत है।
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 134 Sutra Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सम्मसुयं? सम्मसुयं जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पन्ननाणदंसणधरेहिं तेलोक्क चहिय-महिय-पूइएहिं तीय-पडुप्पन्नमनागयजाणएहिं सव्वण्णूहिं सव्वदरिसीहिं पणीयं दुवालसंगं गणिपिडगं, तं जहा– आयारो सूयगडो ठाणं समवाओ वियाहपन्नत्ती नायाधम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगड-दसाओ अनुत्तरोववाइयदसाओ पण्हावागरणाइं विवागसुयं दिट्ठिवाओ। इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं चोद्दसपुव्विस्स सम्मसुयं, अभिन्नदसपुव्विस्स सम्मसुयं, तेण परं भिन्नेसु भयणा। से त्तं सम्मसुयं।

Translated Sutra: – सम्यक्‌श्रुत किसे कहते हैं ? सम्यक्‌श्रुत उत्पन्न ज्ञान और दर्शन को धारण करनेवाले, त्रिलोकवर्ती जीवों द्वारा आदर – सन्मानपूर्वक देखे गये तथा यथावस्थित उत्कीर्तित, भावयुक्त नमस्कृत, अतीत, वर्तमान और अनागत को जाननेवाले, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी अर्हंत – तीर्थंकर भगवंतों द्वारा प्रणीत – अर्थ से कथन किया हुआ
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 136 Sutra Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं साइयं सपज्जवसियं, अनाइयं अपज्जवसियं च? इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं– वुच्छित्तिनयट्ठयाए साइयं सपज्जवसियं, अवुच्छित्तिनयट्ठयाए अणाइयं अपज्जवसियं। तं समासओ चउव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। तत्थ दव्वओ णं सम्मसुयं एगं पुरिसं पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, बहवे पुरिसे य पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं। खेत्तओ णं–पंचभरहाइं पंचएरवयाइं पडुच्च साइयं सप-ज्जवसियं, पंच महाविदेहाइं पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं। कालओ णं–ओसप्पिणिं उस्सप्पिणिं च पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, नोओसप्पिणिं नोउस्स-प्पिणिं च पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं। भावओ णं–जे जया जिनपन्नत्ता

Translated Sutra: – सादि सपर्यवसित और अनादि अपर्यवसितश्रुत का क्या स्वरूप है ? यह द्वादशाङ्गरूप गणिपिटक पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से सादि – सान्त हैं, और द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से आदि अन्त रहित है। यह श्रुतज्ञान संक्षेप में चार प्रकार से वर्णित किया गया है, जैसे – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से, एक पुरुष
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 137 Sutra Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गमियं? (से किं तं अगमियं?) गमियं दिट्ठिवाओ। अगमियं कालियं सुयं। से त्तं गमियं। से त्तं अगमियं तं समासओ दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंगपविट्ठं, अंगबाहिरं च। से किं तं अंगबाहिरं? अंगबाहिरं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आवस्सयं च, आवस्सयवइरित्तं च। से किं तं आवस्सयं? आवस्सयं छव्विहं पन्नत्तं, तं जहा– सामाइयं, चउवीसत्थओ, वंदनयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चक्खाणं। से त्तं आवस्सयं। से किं तं आवस्सयवइरित्तं? आवस्सयवइरित्तं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–कालियं च, उक्कालियं च। से किं तं उक्कालियं? उक्कालियं अनेगविहं पन्नत्तं, तं जहा– १ दसवेयालियं २ कप्पियाकप्पियं ३ चुल्लकप्पसुयं

Translated Sutra: – गमिक – श्रुत क्या है ? आदि, मध्य या अवसान में कुछ शब्द – भेद के साथ उसी सूत्र को बार – बार कहना गमिक – श्रुत है। दृष्टिवाद गमिक – श्रुत है। गमिक से भिन्न आचाराङ्ग आदि कालिकश्रुत अगमिक – श्रुत हैं। अथवा श्रुत संक्षेप में दो प्रकार का है – अङ्गप्रविष्ट और अङ्गबाह्य। अङ्गबाह्य दो प्रकार का है – आवश्यक, आवश्यक से
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 150 Sutra Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दिट्ठिवाए? दिट्ठिवाए णं सव्वभावपरूवणा आघविज्जइ। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. परिकम्मे २. सुत्ताइं ३. पुव्वगए ४. अनुओगे ५. चूलिया। से किं तं परिकम्मे? परिकम्मे सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. सिद्धसेणियापरिकम्मे २. मनुस्ससेणियापरिकम्मे, ३. पुट्ठसेणियापरिकम्मे ४. ओगाढसेणियापरिकम्मे ५. उवसंपज्जसेणियापरिकम्मे ६. विप्पजहण-सेणियापरिकम्मे ७. चुयाचुयसेणियापरिकम्मे। से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे? सिद्धसेणियापरिकम्मे चउद्दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. माउगापयाइं २. एगट्ठियपयाइं ३. अट्ठापयाइं ४. पाढो ५. आगासपयाइं ६. केउभूयं ७. रासिबद्धं ८. एगगुणं ९. दुगुणं

Translated Sutra: दृष्टिवाद क्या है ? दृष्टिवाद – सब नयदृष्टियों का कथन करने वाले श्रुत में समस्त भावों की प्ररूपणा है। संक्षेप में पाँच प्रकार का है। परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका। परिकर्म सात प्रकार का है, सिद्ध – श्रेणिकापरिकर्म, मनुष्य – श्रेणिकापरिकर्म, पुष्ट – श्रेणिकापरिकर्म, अवगाढ – श्रेणिका – परिकर्म,
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 154 Sutra Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से त्तं पुव्वगए। से किं तं अनुओगे? अनुओगे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–मूलपढमानुओगे गंडियानुओगे य। से किं तं मूलपढमानुओगे? मूलपढमानुओगे णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमनाइं, आउं, चवणाइं, जम्म-णाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पयाओ, तित्थपवत्त-णाणि य, सीसा, गणा, गणहरा, अज्जा, पवत्तिणीओ, संघस्स चउव्विहस्स जं च परिमाणं, जिन-मन-पज्जव-ओहिनाणी, समत्तसुयनाणिणो य, वाई, अनुत्तरगई य, उत्तरवेउव्विणो य मुणिणो, जत्तिया सिद्धा सिद्धिपहो जह देसिओ, जच्चिरं च कालं पाओवगया, जे जहिं जत्तियाइं भत्ताइं छेइत्ता अंतगडे मुनिवरु-त्तमे तम-रओघ-विप्पमुक्के मुक्खसुहमनुत्तरं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अनुयोग कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का है, मूलप्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग। मूलप्रथमानुयोग में अरिहन्त भगवंतों के पूर्व भवों, देवलोक में जाना, आयुष्य, च्यवनकर तीर्थंकर रूप में जन्म, जन्माभिषेक तथा राज्याभिषेक, राज्यलक्ष्मी, प्रव्रज्या, घोर तपश्चर्या, केवलज्ञान की उत्पत्ति, तीर्थ की प्रवृत्ति, शिष्य
Nirayavalika निरयावलिकादि सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ काल

Hindi 7 Sutra Upang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे कालीए देवीए अन्नया कयाइ कुडुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु ममं पुत्ते काले कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं तिहिं आससहस्सेहिं तिहिं रहसहस्सेहिं तिहिं मनुयकोडीहिं गरुलव्वूहे एक्कारसमेणं खंडेणं कूणिएणं रन्ना सद्धिं रहमुसलं संगामं ओयाए– से मन्ने किं जइस्सइ? नो जइस्सइ? जीविस्सइ? पराजिणिस्सइ? नो पराजिणिस्सइ? कालं णं कुमारं अहं जीवमाणं पासिज्जा? ओहयमन संकप्पा करयलपल्हत्थ- मुही अट्टज्झाणोवगया ओमंथियवयणनयनकमला दीनविवन्नवयणा झियाइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए। परिसा

Translated Sutra: तब एक बार अपने कुटुम्ब – परिवार की स्थिति पर विचार करते हुए काली देवी के मन में इस प्रकार का संकल्प उत्पन्न हुआ – ‘मेरा पुत्रकुमार काल ३००० हाथियों आदि को लेकर यावत्‌ रथमूसल संग्राम में प्रवृत्त हुआ है। तो क्या वह विजय प्राप्त करेगा अथवा नहीं ? वह जीवित रहेगा अथवा नहीं ? शत्रु को पराजित करेगा या नहीं ? क्या मैं
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Hindi 325 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अप्पणो संघाडिं अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा सिव्वावेति, सिव्वावेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी अपनी संघाटिका यानि की ओढ़ने का वस्त्र, जिसे कपड़ा कहते हैं वो – परतीर्थिक, गृहस्थ या श्रावक के पास सीलाई करवाए, उस कपड़े को दीर्घसूत्री करे, मतलब शोभा आदि के लिए लम्बा धागा डलवाए, दूसरों को वैसा करने के लिए प्रेरित करे या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। सूत्र – ३२५, ३२६
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 11 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू पदमग्गं वा, संकमं वा, अवलंबनं वा अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा कारेति, कारेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पास चलने का मार्ग, पानी, कीचड़ आदि को पार करने का पुल या ऊपर चड़ने की सीड़ी आदि अवलम्बन खुद करे या करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 12 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू दगवीणियं अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा कारेति, कारेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी अन्य तीर्थिक या गृहस्थ के पास पानी के निकाल का नाला, भिक्षा आदि स्थापन करने का सिक्का और उसका ढक्कन, आहार या शयन के लिए सूत की या डोर की चिलिमिलि यानि परदा, सूई, कातर, नाखून छेदनी, कान – खुतरणी आदि साधन का समारकाम करवाए, धार नीकलवाए। इसमें से कोई भी काम खुद करे, दूसरों के पास करवाए या वो दोष करनेवाले
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 39 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू लाउपायं वा दारुपायं वा मट्टियापायं वा अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा परिघट्टावेति वा संठवेति वा जमावेति वा, अलमप्पणो करणयाए सुहुममवि नो कप्पइ, जाणमाणे सरमाणे अन्नमन्नस्स वियरति, वियरंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी तुंबड़ा के बरतन, लकड़ी में से बने बरतन या मिट्टी के बरतन यानि किसी भी तरह के पात्रा को अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पास निर्माण, संस्थापन, पात्र के मुख आदि ठीक करवाए, पात्र के किसी भी हिस्से का समारकाम करवाए, खुद करने के शक्तिमान न हो, खुद थोड़ा – सा भी करने के लिए समर्थ नहीं है ऐसे खुद की ताकत को जानते हो
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 40 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू दंडयं वा लट्ठियं वा अवलेहणियं वा वेणुसूइयं वा अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा परिघट्टावेति वा संठवेति वा जमावेति वा, अलमप्पणो करणयाए सुहुममवि नो कप्पइ जाणमाणे सरमाणे अन्नमन्नस्स वियरति, वियरंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी दंड़, लकड़ी, वर्षा आदि की कारण से पाँव में लगी कीचड़ साफ करने की शूली, वांस की शूली, यह सब चीजों को अन्य तीर्थिक या गृहस्थ के पास तैयार करवाए, समारकाम करवाए या किसी को दे दे। यह सब खुद करे – करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त।
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 57 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू गिहधूमं अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा परिसाडावेति, परिसाडावेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी जिस घर में रहे हो वहाँ अन्य तीर्थिक या गृहस्थ के पास धुँआ करवाए, करे या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त।
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 98 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा परिहारिओ अपरिहारिएण सद्धिं गाहावइ-कुलं पिंडवायपडियाए अनुपविसति वा निक्खमति वा, अनुपविसंतं वा निक्खमंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी अन्य तीर्थिक, गृहस्थ, ‘परिहारिक’ अर्थात्‌ मूल – उत्तरगुणवाले तपस्वी या ‘अपारिहारिक’ अर्थात्‌ मूल – उत्तरगुण में दोषवाले पासत्था के साथ गृहस्थ के कुल में भिक्षा लेने की बूद्धि से, भिक्षा लेने के लिए या भिक्षा लेकर प्रवेश करे या बाहर नीकले, दूसरों को वैसी प्रेरणा दे या वैसा करनेवाले के अनुमोदे
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 99 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अन्नउत्थिएण वा, गारत्थिएण वा, परिहारिओ अपरिहारिएण सद्धिं बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा निक्खमति वा पविसति वा, निक्खमंतं वा पविसंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी अन्यतीर्थिक, गृहस्थ, पारिहारिक या अपारिहारिक के साथ (अपने उपाश्रय – वसति की हद) बाहर ‘विचारभूमि’ मल, मूत्र आदि के लिए जाने कि जगह या ‘विहारभूमि’ स्वाध्याय के लिए की जगह में प्रवेश करे या वहाँ से बाहर नीकले, उक्त अन्य तीर्थिक आदि चार के साथ एक गाँव से दूसरे गाँव विचरण करे। यह काम दूसरों से करवाए,
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 118 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा अन्नउत्थियं वा गारत्थियं वा असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा ओभासति, ओभासंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी धर्मशाला, उपवन, गाथापति का कुल या तापस के निवास स्थान में रहे अन्यतीर्थिक या गृहस्थ ऐसे किसी एक पुरुष, कईं पुरुष या एक स्त्री, कईं स्त्रियों के पास १. दीनता पूर्वक (ओ भाई ! ओ बहन मुझे कोई दे उस तरह से) २. कुतूहल से, ३. एक बार सामने से लाकर दे तब पहले ‘ना’ कहे, फिर उसके पीछे – पीछे जाकर या आगे – पीछे उसके
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१० Hindi 651 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू पज्जोसवणाए गोलोममाइं पि वालाइं उवाइणावेति, उवाइणावेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी पर्युषण काल में (संवत्सरी प्रतिक्रमण के वक्त) गाय के रोम जितने भी बाल धारण करे, रखे, उस दिन थोड़ा भी आहार करे, (कुछ भी खाए – पीए), अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ पर्युषणा करे (पर्युषणा – करण सुनाए) करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। सूत्र – ६५१–६५३
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-११ Hindi 665 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अन्नउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पाँव को एक या अनेकबार प्रमार्जन करे, करवाए, अनुमोदना करे, (इस सूत्र से आरम्भ करके) एक गाँव से दूसरे गाँव जाते हुए यानि कि विचरण करते हुए जो साधु – साध्वी अन्य तीर्थिक या गृहस्थ के मस्तक को आवरण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। (यहाँ ६६५ से ७१७ कुल – ५३ सूत्र हैं।
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१२ Hindi 753 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू निग्गंथीए संघाडिं अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा सिव्वावेति, सिव्वावेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी का (साध्वी साधुका) ओढ़ने का कपड़ा अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पास सीलवाए, दूसरों को सीने के लिए कहे, सीनेवाले की अनुमोदना करे।
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१२ Hindi 760 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू पुरेकम्मकडेण हत्थेण वा मत्तेण वा दव्वीए वा भायणेण वा असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी सचित्त जल से धोने समान पूर्वकर्म करे या गृहस्थ या अन्यतीर्थिक से हंमेशा गीले रहनेवाले या गीले धारण, कड़छी, मापी आदि से दिए गए अशन, पान, खादिम, स्वादिम ग्रहण करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। सूत्र – ७६०, ७६१
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१२ Hindi 786 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा उवहिं वहावेति, वहावेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पास उपधि वहन करवाए और उसकी निश्रा में रहे (इन सबको) अशन – आदि (दूसरों को कहकर) दिलाए, दूसरों को वैसा करने के लिए प्रेरित करे, वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। सूत्र – ७८६, ७८७
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१३ Hindi 800 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अन्नउत्थियं वा गारत्थियं वा सिप्पं वा सिलोगं वा अट्ठापदं वा कक्कडगं वा वुग्गहं वा सलाहं वा सलाहकहत्थयं वा सिक्खावेति, सिक्खावेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी अन्य तीर्थिक या गृहस्थ को शिल्पश्लोक, पासा, निमित्त या सामुद्रिक शास्त्र, काव्य – कला, भाटाई शीखलाए, सरोष, कठिन, दोनों तरह के वचन कहे, या अन्यतीर्थिक की आशातना करे, दूसरों के पास यह काम करवाए या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। सूत्र – ८००–८०४
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१३ Hindi 805 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अन्नउत्थियाण वा गारत्थियाण वा कोउगकम्मं करेति, करेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ नीचे बताए अनुसार कार्य करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। कौतुककर्म, भूतिकर्म, देवआह्वान पूर्वक प्रश्न पूछने, पुनः प्रश्न करना, शुभाशुभ फल समान उत्तर कहना, प्रति उत्तर कहना, अतित, वर्तमान या आगामी काल सम्बन्धी निमित्त – ज्योतिष कथन करना, लक्षण ज्योतिष
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१५ Hindi 917 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा अप्पणो पाए आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पास अपने पाँव एक या बार बार प्रमार्जन करे, दूसरों को प्रमार्जन करने के लिए प्रेरित करे, प्रमार्जन करनेवाले की अनुमोदना करे। (इस सूत्र से आरम्भ करके) जो साधु – साध्वी एक गाँव से दूसरे गाँव विचरनेवाले अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पास अपने सिर का आच्छादन करवाए, दूसरों को वैसा
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१५ Hindi 980 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अन्नउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा देति, देंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को अशन – पान, खादिम, स्वादिम, वस्त्र – पात्र, कंबल, रजोहरण दे, दिलाए या देनेवाले की अनुमोदना करे। सूत्र – ९८०, ९८१
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१६ Hindi 1094 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अन्नउत्थिएहिं वा गारत्थिएहिं वा सद्धिं भुंजति, भुंजंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ बैठकर, या दो – तीन या चारों ओर से अन्यतीर्थिक आदि हो उसके बीच बैठकर आहार करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। सूत्र – १०९४, १०९५
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१७ Hindi 1123 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जा निग्गंथी निग्गंथस्स पाए अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो कोई साध्वी अन्य तीर्थिक या गृहस्थ के पास साधु के पाँव प्रक्षालन आदि शरीर परिकर्म करवाए, दूसरों को वैसा करने की प्रेरणा दे या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे वहाँ से आरम्भ करके एक गाँव से दूसरे गाँव विचरण करते हुए किसी साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को कहकर साधु के मस्तक को आच्छादन करे, करवाए, अनुमोदना करे तो
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१७ Hindi 1176 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथे निग्गंथीए पाए अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो किसी साधु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को कहकर (ऊपर बताए मुताबित) साध्वी के पाँव प्रक्षालन आदि शरीर – परिकर्म करवाए, दूसरों को ऐसा करने के लिए कहे या ऐसा करनेवाले साधु की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त सूत्र – ११७६–१२२९
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१९ Hindi 1358 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अन्नउत्थियं वा गारत्थियं वा वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ, पासत्था, अवसन्न, कुशील, नीतिय या संसक्त को वाचना दे, दिलाए, देनेवाले की अनुमोदना करे या उनके पास से सूत्रार्थ पढ़े, स्वीकार करे, स्वीकार करने के लिए कहे, स्वीकार करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। (नोंध – पासत्था, अवसन्न, कुशील, नीतिय और संसक्त का अर्थ एवं समझ उद्देशक
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

पिण्ड

Hindi 1 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पिंडे उग्गम उप्पायणेसणा जोयणा पमाणे य । इंगाल धूम कारण अट्ठविहा पिंडनिज्जुत्ती ॥

Translated Sutra: पिंड़ यानि समूह। वो चार प्रकार के – नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। यहाँ संयम आदि भावपिंड़ उपकारक द्रव्यपिंड़ है। द्रव्यपिंड़ के द्वारा भावपिंड़ की साधना की जाती है। द्रव्यपिंड़ तीन प्रकार के हैं। आहार, शय्या, उपधि। इस ग्रंथ में मुख्यतया आहारपिंड़ के बारे में सोचना है। पिंड़ शुद्धि आठ प्रकार से सोचनी है। उद्‌गम, उत्पादना,
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

पिण्ड

Hindi 68 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह मीसओ य पिंडो एएसिं विय नवण्ह पिंडाणं । दुगसंजोगाईओ नायव्वो जाव वरमोति ॥

Translated Sutra: भावपिंड़ दो प्रकार के हैं। १. प्रशस्त, २. अप्रशस्त। प्रशस्त – एक प्रकार से दश प्रकार तक हैं। प्रशस्त भावपिंड़ एक प्रकार से यानि संयम। दो प्रकार यानि ज्ञान और चारित्र। तीन प्रकार यानि ज्ञान, दर्शन और चारित्र। चार प्रकार यानि ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। पाँच प्रकार यानि – १. प्राणातिपात विरमण, २. मृषावाद विरमण,
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उद्गम्

Hindi 117 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संजमठाणाणं कंडगाण लेसाठिईविसेसाणं । भावं अहे करेई तम्हा तं भावऽहेकम्मं ॥

Translated Sutra: संयमस्थान – कंड़क संयमश्रेणी, लेश्या एवं शाता वेदनीय आदि के समान शुभ प्रकृति में विशुद्ध विशुद्ध स्थान में रहे साधु को आधाकर्मी आहार जिस प्रकार से नीचे के स्थान पर ले जाता है, उस कारण से वो अधःकर्म कहलाता है। संयम स्थान का स्वरूप देशविरति समान पाँचवे गुण – स्थान में रहे सर्व उत्कृष्ट विशुद्ध स्थानवाले जीव
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उद्गम्

Hindi 334 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कीयगडंपिय दुविहं दव्वे भावे य दुविहमेक्केक्कं । आयकियं च परकियं परदव्वं तिविहऽचित्ताइ ॥

Translated Sutra: साधु के लिए बिका हुआ लाकर देना क्रीतदोष कहलाता है। क्रीतदोष दो प्रकार से है। १. द्रव्य से और २. भाव से। द्रव्य के और भाव के दो – दो प्रकार – आत्मक्रीत और परक्रीत। परद्रव्यक्रीत तीन प्रकार से। सचित्त, अचित्त और मिश्र। आत्मद्रव्यक्रीत – साधु अपने पास के निर्माल्यतीर्थ आदि स्थान में रहे प्रभावशाली प्रतिमा की
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उद्गम्

Hindi 351 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परियट्टियंपि दुविहं लोइय लोगुत्तरं समासेणं । एक्केक्कंपिय दुविहं तद्दव्वे अन्नदव्वे य ॥

Translated Sutra: साधु के लिए चीज की अदल – बदल करके देना परावर्तित। परावर्तित दो प्रकार से। लौकिक और लोकोत्तर। लौकिक में एक चीज देकर ऐसी ही चीज दूसरों से लेना। या एक चीज देकर उसके बदले में दूसरी चीज लेना। लोकोत्तर में भी ऊक्त अनुसार वो चीज देकर वो चीज लेनी या देकर उसके बदले में दूसरी चीज लेना लौकिक तद्रव्य – यानि खराबी घी आदि
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उद्गम्

Hindi 407 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनिसिट्ठं पडिकुट्ठं अनुनायं कप्पए सुविहियाणं । लड्डग चोल्लग जंते संखडि खीरावणाईसु ॥

Translated Sutra: मालिक ने अनुमति न दी हो तो दिया गया ग्रहण करे वो अनिसृष्ट दोष कहलाता है। श्री तीर्थंकर भगवंतने बताया है कि, राजा अनुमति न दिया हुआ भक्तादि साधु को लेना न कल्पे। लेकिन अनुमति दी हो तो लेना कल्पे। अनुमति न दिए हुए कईं प्रकार के हैं। वो १. मोदक सम्बन्धी, २. भोजन सम्बन्धी, ३. शेलड़ी पीसने का यंत्र, कोला आदि सम्बन्धी,
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

एषणा

Hindi 655 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] घेत्तव्वमलोवकडं लेवकडे मा हु पच्छकम्माई । न य रसगेहिपसंगो इअ वुत्ते चोयगो भणइ ॥

Translated Sutra: लिप्त का अर्थ है – जिस अशनादि से हाथ, पात्र आदि खरड़ाना, जैसे की दहीं, दूध, दाल आदि द्रव्यों को लिप्त कहलाते हैं। जिनेश्वर परमात्मा के शासन में ऐसे लिप्त द्रव्य लेना नहीं कल्पता, क्योंकि लिप्त हाथ, भाजन आदि धोने में पश्चात्कर्म लगते हैं तथा रस की आसक्ति का भी संभव होता है। लिप्त हाथ, लिप्त भाजन, शेष बचे हुए द्रव्य
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उपसंहार

Hindi 711 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सोलसउग्गमदोसा सोलस उप्पायणाए दोसा उ । दस एसणाए दोसा संजोयणमाइ पंचेव ॥

Translated Sutra: इस आहार की विधि जिस अनुसार सर्व भाव को देखनेवाले तीर्थंकर ने बताई है उस अनुसार मैंने समझ दी है। जिससे धर्मावशयक को हानि न पहुँचे ऐसा करना। शास्त्रोक्त विधि के अनुसार राग – द्वेष बिना यतनापूर्वक व्यवहार करनेवाला आत्मकल्याण की शुद्ध भावनावाले साधु का यतना करते हुए जो कुछ पृथ्वीकायादि की संघट्ट आदि विराधना
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 5 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अज्झयणमिणं चित्तं, सुयरयणं दिट्ठिवाय-नीसंदं । जह वण्णियं भगवया, अहमवि तह वण्णइस्सामि ॥

Translated Sutra: दृष्टिवाद के निःस्यन्द रूप विचित्र श्रुतरत्नरूप इस प्रज्ञापना – अध्ययन का श्रीतीर्थंकर भगवान्‌ ने जैसा वर्णन किया है, मैं भी उसी प्रकार वर्णन करूँगा।
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