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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2467 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] उडुबद्ध वासासु होंति चतुरो विदिण्णकालो तु ।
एत्थ जयंता जदि वि तु आवज्जे तह वि सुद्धा तु ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2474 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] कालातीते दोसा दव्वक्खओ होति अच्छमानाणं ।
तम्हा उ न चिट्ठेज्जा अतिरित्तं दुविहकालंमि ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2480 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] एसो उ कालकप्पो एवं वक्खाणिओ समासेणं ।
अहुणा हु उवहिकप्पं गुरूवदेसेण वोच्छामि ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2492 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] अतिहिमदेसे य तहा कारणियगयाण सिसिरकालंमि ।
परिभुंजंताण य को विवाद चरणे अनुवघातो ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2551 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जिन-थेर-अहालंदे परिहरिते अज्ज मासकप्पो उ ।
खेत्ते कालमुवस्सयपिंडग्गहणे य नाणत्तं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2553 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] नत्थि उ खेत्तं जिनकप्पियाण उडुबद्ध मासकालो तु ।
वासासुं चउमासा वसही अममत्त अपरिकम्मा ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2555 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] थेराण अत्थि खेत्तं तु उग्गहो जाव जोयण सकोसं ।
नगरे पुन वसहीए विकाले उडुबद्धि मासो तु ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2559 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] अहलंदियाण गच्छे अप्पडिबद्धाण जह जिनाणं तु ।
नवरं कालविसेसो उडुवासे पणग चतुमासो ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2563 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] अज्जाण परिग्गहियाण उग्गहो जो तु सो तु आयरिए ।
काले दो दो मासा उडुबद्धे तासि कप्पो तु ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2567 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] उडुवास कालतीते जिनकप्पीणं तु गुरुग गुरुगा य ।
होंति दिनंमि दिनंमी थेराणं ते च्चिय लहूओ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2570 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] एतेहिं दोसेहिं जदि असंपत्ति लग्गती तह वि ।
दिवसे दिवसे सो खलु कालातीते वसंतो तु ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2573 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] दुविहे विहारकाले वासावासे तहेव उडुबद्धे ।
मासातीते अनुवहि वासातीते भवे उवही ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2588 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] मोहतिगिच्छाए गते णट्ठे खेत्तादि अहव कालगते ।
आयरिए तंमि गणे पीलादीरक्खणट्ठाए ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2614 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] सव्वस्स वि कायव्वं निच्छयओ किं कुलं व अकुलं वा ।
काले सभावममत्ते गारवलज्जाए काहिंति ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2616 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] किमनुण्ण कस्सऽणुण्णा केवतिकालं पवत्तियाऽनुण्णा ।
आयरियत्त सुतं वा अणुण्णव्वइ जं तु साऽनुण्णा ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2617 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] यस्स त्ति सीसस्स तु गुरुगुणजुत्तस्स होयऽणुण्णा उ ।
केवति काल पवित्ती आदिकरेणुसभसेनस्स ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 103 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] यासहरा अनुजत्ता अत्थाणी जोग्ग किड्डकाले य ।
घडगससवेसु कया उ मोयगा लड्डगपियस्स ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०१ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
पिण्ड |
Hindi | 1 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पिंडे उग्गम उप्पायणेसणा जोयणा पमाणे य ।
इंगाल धूम कारण अट्ठविहा पिंडनिज्जुत्ती ॥ Translated Sutra: पिंड़ यानि समूह। वो चार प्रकार के – नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। यहाँ संयम आदि भावपिंड़ उपकारक द्रव्यपिंड़ है। द्रव्यपिंड़ के द्वारा भावपिंड़ की साधना की जाती है। द्रव्यपिंड़ तीन प्रकार के हैं। आहार, शय्या, उपधि। इस ग्रंथ में मुख्यतया आहारपिंड़ के बारे में सोचना है। पिंड़ शुद्धि आठ प्रकार से सोचनी है। उद्गम, उत्पादना, | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
पिण्ड |
Hindi | 5 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नामंठवणपिंडो दव्वे खेत्ते य काल भावे य ।
एसो खलु पिंडस्स उ निक्खेवो छव्विहो होइ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
पिण्ड |
Hindi | 27 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एए उ अनाएसा तिन्निवि कालनियमस्सऽसंभवओ ।
लुक्खेयरमंडगपवणसंभवासंभवाईहिं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २३ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
पिण्ड |
Hindi | 39 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो पुन वीसमिज्जइ तं एवं वीयरायआणाए ।
पत्ते धोवणकाले उवहिं वीसामए साहू ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २३ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
पिण्ड |
Hindi | 49 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वाउक्काओ तिविहो सच्चित्तो मीसओ य अच्चित्तो ।
सच्चित्तो पुन दुविहो निच्छयववहारओ चेव ॥ Translated Sutra: वायुकाय पिंड़ – सचित्त, मिश्र, अचित्त। सचित्त दो प्रकार से – निश्चय से और व्यवहार से। निश्चय से सचित्त – रत्नप्रभादि पृथ्वी के नीचे वलयाकार में रहा घनवात, तनुवात, काफी शर्दी में जो पवन लगे वो, काफी दुर्दिन में वाता हुआ वायु आदि। व्यवहार से सचित्त – पूरब आदि दिशा का पवन, काफी शर्दी और काफी दुर्दिन रहित लगता पवन। | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
पिण्ड |
Hindi | 53 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निद्धेयरो य कालो एगंतसिणिद्धमज्झिमजहन्नो ।
लुक्खोवि होइ तिविहो जहन्नमज्झो य उक्कोसो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४९ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
पिण्ड |
Hindi | 67 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खमगाइ कालकज्जाइएसु पुच्छिज्ज देवयं कंचि ।
पंथे सुभासुभे वा पुच्छेई च्छाए दिव्व उवओगो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६३ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
पिण्ड |
Hindi | 68 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अह मीसओ य पिंडो एएसिं विय नवण्ह पिंडाणं ।
दुगसंजोगाईओ नायव्वो जाव वरमोति ॥ Translated Sutra: भावपिंड़ दो प्रकार के हैं। १. प्रशस्त, २. अप्रशस्त। प्रशस्त – एक प्रकार से दश प्रकार तक हैं। प्रशस्त भावपिंड़ एक प्रकार से यानि संयम। दो प्रकार यानि ज्ञान और चारित्र। तीन प्रकार यानि ज्ञान, दर्शन और चारित्र। चार प्रकार यानि ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। पाँच प्रकार यानि – १. प्राणातिपात विरमण, २. मृषावाद विरमण, | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 117 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संजमठाणाणं कंडगाण लेसाठिईविसेसाणं ।
भावं अहे करेई तम्हा तं भावऽहेकम्मं ॥ Translated Sutra: संयमस्थान – कंड़क संयमश्रेणी, लेश्या एवं शाता वेदनीय आदि के समान शुभ प्रकृति में विशुद्ध विशुद्ध स्थान में रहे साधु को आधाकर्मी आहार जिस प्रकार से नीचे के स्थान पर ले जाता है, उस कारण से वो अधःकर्म कहलाता है। संयम स्थान का स्वरूप देशविरति समान पाँचवे गुण – स्थान में रहे सर्व उत्कृष्ट विशुद्ध स्थानवाले जीव | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 150 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साउं पज्जत्तं आयरेण काले रिउक्खमं निद्धं ।
तग्गुणविकत्थणाए अमुंजमाणेऽवि अनुमन्ना ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११७ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 160 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नामं ठवणा दविए खेत्ते काले य पवयणे लिंगे ।
दंसण नाण धरित्ते अभिग्गहे भावनाओ य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११७ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 162 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खेत्ते समाणदेसी कालंमि समाण उ एक्क कालसंभूओ ।
पवयणि संघे गयरो लिंगे रयहरणमुहपोत्ती ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११७ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 167 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पासंडियसमणाणं गिहिनिग्गंयाणं चेव उ विभासा ।
जह नामंमि तहेव य खेत्ते काले य नायव्वं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११७ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 216 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अविकालकरहीखीरं ल्हसुण पलंडू सुरा य गोमंसं ।
वेयसमएवि अभयं किंचि अभोज्जं अपेज्जं च ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११७ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 241 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ओहेन विभागेन य ओहे ठप्पं तु बारस विभागे ।
उद्दिट्ठ कडे कम्मे एक्केक्कि चउक्कओ भेओ ॥ Translated Sutra: औद्देशिक दोष दो प्रकार से हैं। १. ओघ से और २. विभाग से। ओघ से यानि सामान्य और विभाग से यानि अलग – अलग। ओघ औद्देशिक का बयान आगे आएगा, इसलिए यहाँ नहीं करते। विभाग औद्देशिक बारह प्रकार से है। वो १.उदिष्ट, २.कृत और ३.कर्म। हर एक के चार प्रकार यानि बारह प्रकार होते हैं। ओघ औद्देशिक – पूर्वभवमें कुछ भी दिए बिना इस भव | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 254 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छिन्नमछिन्नं दुविहं दव्वे खेत्ते य काल भावे य ।
निप्फइयनिप्फन्नं नायव्वं जं जहिं कमइ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २४१ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 264 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अमुगंति पुणो रद्धं दाहमकप्पं तु आरओ कप्पं ।
खेत्ते अंतो बार्हि काले सुइव्वं परेव्वं वा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २४१ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 273 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बायर सुहुमं भावे उ पूइयं सुहुममुवरि वोच्छामि ।
उवगरण भत्तपाने दुविहं पुन बायरं पूइं ॥ Translated Sutra: पूतिकर्म दो प्रकार से हैं। एक सूक्ष्मपूति और दूसरी बाहर पूति। सूक्ष्मपूति आगे बताएंगे। बादरपूति दो प्रकार से। उपकरणपूति और भक्तपानपूति। पूतिकर्म – यानि शुद्ध आहार के आधाकर्मी आहार का मिलना। यानि शुद्ध आहार भी अशुद्ध बनाए। पूति चार प्रकार से। नामपूति, स्थापनापूति, द्रव्यपूति और भावपूति। नामपूति – पूति | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 302 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सट्ठाणपरट्ठाणे दुविहं ठवियं तु होइ नायव्वं ।
खीराइ परंपरए हत्थगय धरंतरं जाव ॥ Translated Sutra: गृहस्थने अपने लिए आहार बनाया हो उसमें से साधु को देने के लिए रख दे वो तो स्थापना दोषवाला आहार कहलाता है। स्थापना के छह प्रकार – स्वस्थान स्थापना, परस्थान स्थापना, परम्पर स्थापना, अनन्तर स्थापना, चिरकाल स्थापना और इत्वरकाल स्थापना। स्वस्थान स्थापना – आहार आदि जहाँ तैयार किया हो वहीं चूल्हे पर साधु को देने | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 308 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नवनीय मंयुतक्कं व जाव अत्तट्ठिया व गिण्हंति ।
देसूणा जाव धयं कुसणंपिय जत्तियं कालं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३०२ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 334 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कीयगडंपिय दुविहं दव्वे भावे य दुविहमेक्केक्कं ।
आयकियं च परकियं परदव्वं तिविहऽचित्ताइ ॥ Translated Sutra: साधु के लिए बिका हुआ लाकर देना क्रीतदोष कहलाता है। क्रीतदोष दो प्रकार से है। १. द्रव्य से और २. भाव से। द्रव्य के और भाव के दो – दो प्रकार – आत्मक्रीत और परक्रीत। परद्रव्यक्रीत तीन प्रकार से। सचित्त, अचित्त और मिश्र। आत्मद्रव्यक्रीत – साधु अपने पास के निर्माल्यतीर्थ आदि स्थान में रहे प्रभावशाली प्रतिमा की | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 351 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परियट्टियंपि दुविहं लोइय लोगुत्तरं समासेणं ।
एक्केक्कंपिय दुविहं तद्दव्वे अन्नदव्वे य ॥ Translated Sutra: साधु के लिए चीज की अदल – बदल करके देना परावर्तित। परावर्तित दो प्रकार से। लौकिक और लोकोत्तर। लौकिक में एक चीज देकर ऐसी ही चीज दूसरों से लेना। या एक चीज देकर उसके बदले में दूसरी चीज लेना। लोकोत्तर में भी ऊक्त अनुसार वो चीज देकर वो चीज लेनी या देकर उसके बदले में दूसरी चीज लेना लौकिक तद्रव्य – यानि खराबी घी आदि | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 363 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुन्न व असइ कालो पगयं व पहेणगं व पासुत्ता ।
इय एइ काइ घेत्तुं दीवेइ य कारणं तं तु ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३५७ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 386 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मालोहडंपि दुविहं जहन्नमुक्कोसगं च बोद्धव्वं ।
अग्गतले पे हि जहन्नं तव्ववरीयं तु उक्कोसं ॥ Translated Sutra: मालापहृत दो प्रकार से हैं – १. जघन्य और २. उत्कृष्ट। पाँव का तलवा ऊपर करके शीका आदि में रही चीज दे तो जघन्य और उसके अलावा कोठी बड़े घड़े आदि में से या सीड़ी आदि पर चड़कर लाकर दे तो उत्कृष्ट मालापहृत। यहाँ चार भेद भी बताए हैं। ऊर्ध्व – मालापहृत – शींकु, छाजली या मजले पर से लाकर दे वो। अधो – मालापहृत – भोंयरे में से लाकर | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 395 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अच्छिज्जंपिय तिविहं पभू य सामी य तेणए चेव ।
अच्छिज्जं पडिकुट्ठं समणाण न कप्पए घेत्तुं ॥ Translated Sutra: दूसरों के पास से बलात्कार से जो अशन आदि छिनकर साधु को दिया जाए उसे आच्छेद्य दोष कहते हैं। आच्छेद्य तीन प्रकार से हैं। प्रभु – घर का नायक, स्वामिराजा या गाँव का मुखी, नायक और स्तेन – चोर। यह तीनों दूसरों से बलात्कार से छिनकर आहार आदि दे तो ऐसे अशन आदि साधु को लेना न कल्पे। प्रभु आछेद्य – मुनि का भक्त घर का नायक | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 423 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आहाकम्मुद्देसिय चरमतिगं पूइ मीसजाए य ।
बायरपाहुडियाविय अज्झोयरए य चरिमदुगं ॥ Translated Sutra: विशोधि कोटि – यानि जितना साधु के लिए सोचा या पकाया हो उतना दूर किया जाए तो बाकी बचा है उसमें से साधु ग्रहण कर सके यानि साधु को लेना कल्पे। अविशोधि कोटि – यानि उतना हिस्सा अलग करने के बावजूद भी साधु ग्रहण न कर सके। यानि साधु को लेना न कल्पे। जिस पात्र में ऐसा यानि अविशोधि कोटि आहार ग्रहण हो गया हो उस पात्र में से | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 429 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दव्वाइओ विवेगो दव्वे जं दव्व जं जहिं खेत्तो ।
काले अकालहीनं असढो जं पस्सई भावे ॥ Translated Sutra: विवेक (परठना) चार प्रकार से – द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। द्रव्य विवेक – दोषवाले द्रव्य का त्याग। क्षेत्र विवेक – जिस क्षेत्र में द्रव्य का त्याग करे वो, काल विवेक, पता चले कि तुरन्त देर करने से पहले त्याग करे। भाव विवेक – भाव से मूर्च्छा रखे बिना उसका त्याग करे वो या असठ साधु जिन्हें दोषवाला देखके उसका त्याग | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 430 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुक्कोल्लसरिसपाए असरिसपाए य एत्थ चउभंगो ।
तुल्लेतुल्लनिवाए तत्थ दुवे दोन्नऽतुल्ला उ ॥ Translated Sutra: अशुद्ध आहार त्याग करने में नीचे के अनुसार चतुर्भंगी बने। शुष्क और आर्द्र दोनो समान चीज में गिरा हुआ और अलग चीज में गिरा हुआ उसके चार प्रकार हैं – १. एकदम शुष्क, २. शुष्क में आर्द्र, ३. आर्द्र में शुष्क, ४. आर्द्र में आर्द्र। शुष्क से शुष्क – शुष्क चीज में दूसरी चीज हो, यानि वाल, चने आदि सूखे हैं। वाल में चने हो या | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 434 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कोडीकरणं दुविहं उग्गमकोडी विसोहिकोडी य ।
उग्गमकोडी छक्कं विसोहिकोडी अनेगविहा ॥ Translated Sutra: अब दूसरी प्रकार से विशोधिकोटि अविशोधिकोटि समझाते हैं। कोटिकरण दो प्रकार से – उद्गमकोटि और विशोधिकोटि। उद्गमकोटि छह प्रकार से, आगे कहने के अनुसार – विशोधिकोटि कईं प्रकार से ९ – १८ – २७ – ५४ – ९० और २७० भेद होते हैं। ९ – प्रकार – वध करना, करवाना और अनुमोदना करना। पकाना और अनुमोदना करना। बिकता हुआ लेना, दिलाना | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उत्पादन |
Hindi | 445 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खीराहारो रोवइ मज्झ कपासाय देहि णं पिज्जे ।
पच्छा व मज्झ दाहिति अलं व मुज्जो व एहामि ॥ Translated Sutra: पूर्व परिचित घर में साधु भिक्षा के लिए गए हो, वहाँ बच्चे को रोता देखकर बच्चे की माँ को कहे कि, यह बच्चा अभी स्तनपान पर जिन्दा है, भूख लगी होगी इसलिए रो रहा है। इसलिए मुझे जल्द वहोराओ, फिर बच्चे को खिलाना या ऐसा कहे कि, पहले बच्चे को स्तनपान करवाओ फिर मुझे वहोरावो, या तो कहे कि, अभी बच्चे को खिला दो फिर मैं वहोरने के | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उत्पादन |
Hindi | 470 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नियमा तिकालविसएऽवि निमित्ते छव्विहे भवे दोसा ।
सज्जं तु वट्टमाणे आउभए तत्थिमं नायं ॥ Translated Sutra: जो किसी आहारादि के लिए गृहस्थ को वर्तमानकाल भूत, भावि के फायदे, नुकसान, सुख, दुःख, आयु, मौत आदि से जुड़े हुए निमित्त ज्ञान से कथन करे, वो साधु पापी है। क्योंकि निमित्त कहना पाप का उपदेश है। इसलिए किसी दिन अपना घात हो, दूसरों का घात हो या ऊभय का घात आदि अनर्थ होना मुमकीन है। इसलिए साधु को निमित्त आदि कहकर भिक्षा नहीं | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उत्पादन |
Hindi | 474 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कोवो वडवागब्भं च पुच्छिओ पंचपुंडमाहंसु ।
फालण दिट्ठे जइ नेव तो तुहं अवितहं कइ वा ॥ Translated Sutra: आजीविका पाँच प्रकार से होती है। जाति – सम्बन्धी, कुल सम्बन्धी, गण सम्बन्धी, कर्म सम्बन्धी, शील्प सम्बन्धी। इन पाँच प्रकारों में साधु इस प्रकार बोले कि जिससे गृहस्थ समझे कि, यह हमारी जाति का है, या तो साफ बताए कि मैं ब्राह्मण आदि हूँ। इस प्रकार खुद को ऐसा बताने के लिए भिक्षा लेना, वो आजीविका दोषवाली मानी जाती | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उत्पादन |
Hindi | 478 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सम्ममसम्मा किरिया अनेन ऊणाऽहिया व विवरीया ।
समिहामंताहुइठाण जागकाले य घोसाई ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४७४ |