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Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-१ चमरेन्द्र अग्रमहिषी

अध्ययन-१ काली

Hindi 220 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं रायगिहस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं गुणसिलए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मा नामं थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा कुलसंपण्णा जाव चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगया पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडा पुव्वाणुपुव्विं चरमाणा गामाणुगामं दूइज्ज-माणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। परिसा निग्गया। धम्मो

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। (वर्णन) उस राजगृह के बाहर ईशान कोण में गुणशील नामक चैत्य था। (वर्णन समझ लेना) उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी आर्य सुधर्मा नामक स्थविर उच्चजाति से सम्पन्न, कुल से सम्पन्न यावत्‌ चौदह पूर्वों के वेत्ता और चार ज्ञानों से युक्त थे। वे पाँच सौ अनगारों से परिवृत्त
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 5 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं चंपाए नयरीए परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा जामेव दिसिं पाउब्भूया, तामेव दिसिं पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अनगारस्स जेट्ठे अंतेवासी अज्जजंबू नामं अनगारे कासवगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंस-संठाण-संठिए वइररिसह-नाराय-संघयणे कनग-पलग-निघस-पम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे उराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउल-तेयलेस्से अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से अज्जजंबूनामे अनगारे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले संजायसड्ढे

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ चम्पा नगरी में परिषद्‌ नीकली। कूणिक राजा भी नीकला। धर्म का उपदेश दिया। उपदेश सूनकर परिषद्‌ जिस दिशा से आई थी, उसी दिशा में लौट गई। उस काल और उस समय में आर्य सुधर्मा अनगार के ज्येष्ठ शिष्य आर्य जम्बू नामक अनगार थे, जो काश्यप गोत्रीय और सात हाथ ऊंचे शरीर वाले, यावत्‌ आर्य सुधर्मा से न बहुत दूर, न बहुत
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 34 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं पुरओ कट्टु जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवा-गच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एस णं देवानुप्पिया! मेहे कुमारे अम्हं एगे पुत्ते इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अनुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीवियऊसासए हिययणंदिजणए उंबरपुप्फं पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण दरिसणयाए? से जहानामए उप्पले ति वा पउमे ति वा कुमुदे ति वा पंके जाए जले संवड्ढिए नोवलिप्पइ पंकरएणं नोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव मेहे

Translated Sutra: मेघकुमार के माता – पिता मेघकुमार को आगे करके जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वहाँ आकर श्रमण भगवान महावीर को तीन बार प्रदक्षिणा तरफ से आरंभ करके प्रदक्षिणा करते हैं। वन्दन करते हैं, नमस्कार करते हैं। फिर कहते हैं – हे देवानुप्रिय ! यह मेघकुमार हमारा इकलौता पुत्र है। प्राणों के समान और उच्छ्‌वास के समान है। हृदय
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 35 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से मेहे कुमारे सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–आलित्ते णं भंते! लोए, पलित्ते णं भंते! लोए, आलित्त पलित्ते णं भंते! लोए जराए मरणेण य। से जहानामए केइ गाहावई अगारंसि ज्झियायमाणंसि जे तत्थ भंडे भवइ अप्पभारे मोल्लगरुए तं गहाय आयाए एगंतं अवक्कमइ–एस मे नित्थारिए समाणे पच्छा पुरा य लोए हियाए सुहाए खमाए निस्सेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ। एवामेव मम वि एगे आयाभंडे इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे। एस मे नित्थारिए

Translated Sutra: मेघकुमार ने स्वयं ही पंचमुष्टि लोच किया। जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वहाँ आया। भगवान महावीर को तीन बार दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा की। फिर वन्दन – नमस्कार किया और कहा – भगवन्‌ ! यह संसार जरा और मरण से आदीप्त है, यह संसार प्रदीप्त है। हे भगवन्‌ ! यह संसार आदीप्त – प्रदीप्त है। जैसे कोई गाथापति अपने घर में आग लग जाने
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 37 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं मेहा! इ समणे भगवं महावीरे मेहं कुमारं एवं वयासी–से नूनं तुमं मेहा! राओ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि समणेहिं निग्गंथेहिं वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्माणुजोगचिंताए य उच्चारस्स वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणेहि य निग्गच्छमाणेहि य अप्पेगइएहिं हत्थेहिं संघट्टिए अप्पेगइएहिं पाएहिं संघट्टिए अप्पेगइएहिं सीसे संघट्टिए अप्पेगइएहिं पोट्टे संघट्टिए अप्पेगइएहिं कायंसि संघट्टिए अप्पेगइएहिं ओलंडिए अप्पेगइएहिं पोलंडिए अप्पेगइएहिं पाय-रय-रेणु-गुंडिए कए। एमहालियं च णं राइं तुमं नो संचाएसि मुहुत्तमवि अच्छिं निमिल्लावेत्तए। तए णं तुज्ज मेहा! इमेयारूवे अज्झत्थिए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ ‘हे मेघ’ इस प्रकार सम्बोधन करके श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने मेघकुमार से कहा – ‘हे मेघ! तुम रात्रि के पहले और पीछले काल के अवसर पर, श्रमण निर्ग्रन्थों के वाचना पृच्छना आदि के लिए आवागमन करने के कारण, लम्बी रात्रि पर्यन्त थोड़ी देर के लिए भी आँख नहीं मींच सके। मेघ ! तब तुम्हारे मन में इस प्रकार का विचार
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 52 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा भद्दा सत्थवाही पंथगस्स दासचेडगस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा आसुरुत्ता रुट्ठा कुविया चंडिक्किया मिसि मिसेमाणी धनस्स सत्थवाहस्स पओसमावज्जइ। तए णं से धने सत्थवाहे अन्नया कयाइं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सएण य अत्थसारेणं रायकज्जाओ अप्पाणं मोयावेइ, मोयावेत्ता चारगसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अलंकारियकम्मं कारवेइ जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहधोयमट्टियं गेण्हइ, गेण्हित्ता पोक्ख-रिणीं ओगाहइ, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता ण्हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए

Translated Sutra: तब भद्रा सार्थवाही दास चेटक पंथक के मुख से यह अर्थ सूनकर तत्काल लाल हो गई, रुष्ट हुई यावत्‌ मिसमिसाती हुई धन्य सार्थवाह पर प्रद्वेष करने लगी। तत्पश्चात्‌ धन्य सार्थवाह को किसी समय मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिवार के लोगों ने अपने साभूत अर्थ से – राजदण्ड से मुक्त कराया। मुक्त होकर वह कारागार से
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 54 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जहा णं जंबू! धनेणं सत्थवाहेणं नो धम्मो त्ति वा तवो त्ति वा कयपडिकया इ वा लोगजत्ता इ वा नायए इ वा घाडियए इ वा सहाए इ वा सुहि त्ति वा विजयस्स तक्करस्स ताओ विपुलाओ असन-पान-खाइम-साइमाओ संविभागे कए, नण्णत्थ सरीरसारक्खणट्ठाए। एवामेव जंबू! जे णं अम्हं निग्गंथे वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे ववगय-ण्हाणुमद्दण-पुप्फ-गंध-मल्लालंकार-विभूसे इमस्स ओरालिय-सरीरस्स नो वण्णहेउं वा नो रूवहेउं वा नो बलहेउं वा नो विसयहेउं वा तं विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं आहारमाहारेइ, नन्नत्थ नाणदंसणचरित्ताणं बहणट्ठयाए, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं

Translated Sutra: जम्बू ! जैसे धन्य सार्थवाह ने ‘धर्म है’ ऐसा समझकर या तप, प्रत्युपकार, मित्र आदि मानकर विजय चोर को उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में से संविभाग नहीं किया था, सिवाय शरीर की रक्षा करने के। इसी प्रकार हे जम्बू ! हमारा जो साधु या साध्वी यावत्‌ प्रव्रजित होकर स्नान, उपामर्दन, पुष्प, गंध, माला, अलंकार आदि शृंगार को
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

Hindi 60 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जे से सागरदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए से णं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव से वनमयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरी-अंडयंसि संकिए कंखिए वितिगिंछस-मावण्णे भेयसमावण्णे कलुससमावण्णे किण्णं ममं एत्थ कीलावणए मयूरीपोयए भविस्सइ उदाहु नो भविस्सइ? त्ति कट्टु तं मयूरी-अंडयं अभिक्खणं-अभिक्खणं उव्वत्तेइ परियत्तेइ आसारेइ संसारेइ चालेइ फंदेइ घट्टेइ खोभेइ अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि टिट्टियावेइ। तए णं से मयूरी-अंडए अभिक्खणं-अभिक्खणं उव्वत्तिज्जमाणे परियत्तिज्जमाणे आसारि-ज्जमाणे संसारिज्जमाणे

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ उनमें जो सागरदत्त का पुत्र सार्थवाह दारक था, वह कल सूर्य के देदीप्यमान होने पर जहाँ वन – मयूरी का अंडा था, वहाँ आया। आकर उस मयूरी अंडे में शंकित हुआ, उसके फल की आकांक्षा करने लगा कि कब इससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होगी ? विचिकित्सा को प्राप्त हुआ, भेद को प्राप्त हुआ, कलुषता को प्राप्त हुआ। अत एव वह विचार
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

Hindi 61 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जिनदत्तपुत्ते जेणेव से मयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरी-अंडयंसि निस्संकिए [निक्कंखिए निव्वितिगिंछे?] सुव्वत्तए णं मम एत्थ कीलावणए मयूरीपोयए भविस्सइ त्ति कट्टु तं मयूरी-अंडयं अभिक्खणं-अभिक्खणं नो उव्वत्तेइ नो परियत्तेइ नो आसारेइ नो संसारेइ नो चालेइ नो फंदेइ नो घट्टेइ नो खोभेइ अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि नो टिट्टियावेइ। तए णं से मयूरी-अंडए अनुव्वत्तिज्जमाणे जाव अटिट्टियाविज्जमाणे कालेणं समएणं उब्भिन्ने मयूरी-पोयए एत्थ जाए। तए णं से जिनदत्तपुत्ते तं मयूरी-पोययं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठे मयूर-पोसए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं

Translated Sutra: जिनदत्त का पुत्र जहाँ मयूरी का अंडा था, वहाँ आया। आकर उस मयूरी के अंडे के विषय में निःशंक रहा। ‘मेरे इस अंडे में से क्रड़ा करने के लिए बढ़िया गोलाकार मयूरी – बालक होगा’ इस प्रकार निश्चय करके, उस मयूरी के अंडे को उसने बार – बार उलटा – पलटा नहीं यावत्‌ बजाया नहीं आदि। इस कारण उलट – पलट न करने से और न बजाने से उस काल
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ काचबो

Hindi 62 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं तच्चस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं वाणारसीए नयरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए गंगाए महानईए मयंगतीरद्दहे नामं दहे होत्था–अनुपुव्वसुजाय-वप्प-गंभीरसीयलजले अच्छ-विमल-सलिल-पलिच्छण्णे संछण्ण-पत्त-पुप्फ -पलासे बहुउप्पल-पउम-कुमुय-नलिण-सुभग-सोगं-धिय-पुंडरीय-महापुंडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्त केसरपुप्फोवचिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं बहूणं मच्छाण य कच्छभाण य गाहाण य मगराण य सुंसुमाराण य सयाणि

Translated Sutra: ‘भगवन्‌ ! श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञात अंग के चौथे ज्ञात – अध्ययन का क्या अर्थ फरमाया है ?’ हे जम्बू! उस काल और उस समय में वाराणसी नामक नगरी थी। उस वाराणसी नगरी के बाहर गंगा नामक महानदी के ईशान कोण में मृतगंगातीर द्रह नामक एक द्रह था। उसके अनुक्रम से सुन्दर सुशोभित तट थे। जल गहरा और शीतल था। स्वच्छ एवं निर्मल जल
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 65 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थावच्चापुत्ते वि निग्गए। जहा मेहे तहेव धम्मं सोच्चा निसम्म जेणेव थावच्चा गाहावइणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पायग्गहणं करेइ। जहा मेहस्स तहा चेव निवेयणा। तए णं तं थावच्चापुत्तं थावच्चा गाहावइणी जाहे नो संचाएइ विसयाणुलोमाहि य विसय-पडिकूलाहि य बहूहिं आघवणाहि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा ताहे अकामिया चेव थावच्चापुत्तस्स दारगस्स निक्खमणमणुमन्नित्था। तए णं सा थावच्चा गाहावइणी आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं

Translated Sutra: मेघकुमार की तरह थावच्चापुत्र भी भगवान को वन्दना करने के लिए नीकला। उसी प्रकार धर्म को श्रवण करके और हृदय में धारण करके जहाँ थावच्चा गाथापत्नी थी, वहाँ आया। आकर माता के पैरों को ग्रहण किया। मेघकुमार समान थावच्चापुत्र का वैराग्य निवेदना समझनी। माता जब विषयों के अनुकूल और विषयों के प्रतिकूल बहुत – सी आघवणा,
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 68 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सुए अन्नया कयाइ जेणेव सेलगपुरे नगरे जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया। सेलओ निग्गच्छइ। तए णं से सेलए सुयस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे सुयं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं जाव नवरं देवानुप्पिया! पंथगपामोक्खाइं पंच मंतिसयाइं आपुच्छामि, मंडुयं च कुमारं रज्जे ठावेमि। तओ पच्छा देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वयामि। अहासुहं देवानुप्पिया। तए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ शुक परिव्राजक ने सुदर्शन से इस प्रकार कहा – ‘हे सुदर्शन ! चलें, हम तुम्हारे धर्माचार्य थावच्चा – पुत्र के समीप प्रकट हों – चलें और इन अर्थों को, हेतुओं को, प्रश्नों को, कारणों को तथा व्याकरणों को पूछें।’ अगर वह मेरे इन अर्थों, हेतुओं, प्रश्नों, कारणों और व्याकरणों का उत्तर देंगे तो मैं उन्हें वन्दना
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 72 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवामेव समणाउसो! जे निग्गंथे वा निग्गंथी वा ओसन्ने ओसन्नविहारी, पासत्थे पासत्थविहारी कुसीले कुसील-विहारी पमत्ते पमत्तविहारी संसत्ते संसत्तविहारी उउबद्ध-पीढ-फलग-सेज्जा-संथारए पमत्ते विहरइ, से णं इहलोए चेव बहूणं सम-णाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे निंदणिज्जे खिंसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे, परलोए वि य णं आगच्छइ बहूणि दंडणाणि य अनादियं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंत-संसार कंतारं भुज्जो-भुज्जो अनुपरियट्टिस्सइ। तए णं ते पंथगवज्जा पंच अनगारसया इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणा अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी –एवं खलु देवानुप्पिया!

Translated Sutra: हे आयुष्मन्‌ श्रमणों ! इसी प्रकार जो साधु या साध्वी आलसी होकर, संस्तारक आदि के विषय में प्रमादी होकर रहता है, वह इसी लोक में बहुत – से श्रमणों, बहुत – सी श्रमणियों, बहुत – से श्रावकों और बहुत – सी श्राविकाओं की हीलना का पात्र होता है। यावत्‌ वह चिरकाल पर्यन्त संसार – भ्रमण करता है। तत्पश्चात्‌ पंथक को छोड़कर पाँच
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 73 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेलए रायरिसी पंथगपामोक्खा पंच अनगारसया जेणेव पुंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छंति, उवाग-च्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहंति, दुरुहित्ता मेघघनसन्निगासं देवसन्निवायं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहंति, पडिलेहित्ता जाव संलेहणा-ज्झूसणा-ज्झूसिया भत्तपाण-पडियाइक्खिया पाओवगमणंणुवन्ना। तए णं से सेलए रायरिसी पंथगपामोक्खा पंच अनगारसया बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसित्ता, सट्ठिं भत्ताइं अनसणाए छेदित्ता जाव केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्धा बुद्धा मुत्ता अंतगडा परिनिव्वुडा सव्व-दुक्खप्पहीणा। एवामेव

Translated Sutra: इसी प्रकार हे आयुष्मन्‌ श्रमणों ! जो साधु या साध्वी इस तरह विचरेगा वह इस लोक में बहुसंख्यक साधुओं, साध्वीयों, श्रावकों और श्राविकाओं के द्वारा अर्चनीय, वन्दनीय, नमनीय, पूजनीय, सत्कारणीय और सम्माननीय होगा। कल्याण, मंगल, देव और चैत्य स्वरूप होगा। विनयपूर्वक उपासनीय होगा। परलोक में उसे हाथ, कान एवं नासिका के
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-७ रोहिणी

Hindi 75 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं छट्ठस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था। सुभूमिभागे उज्जाणे। तत्थ णं रायगिहे नयरे धने नामं सत्थवाहे परिवसइ–अड्ढे जाव अपरिभूए। भद्दा भारिया–अहीनपंचिंदियसरीरा जाव सुरूवा। तस्स णं धनस्स सत्थवाहस्स पुत्ता भद्दाए भारियाए अत्तया चत्तारि सत्थवाहदारगा होत्था, तं जहा–धणपाले धणदेवे धणगोवे धणरक्खिए। तस्स णं धनस्स सत्थवाहस्स चउण्हं पुत्ताणं भारियाओ चत्तारि सुण्हाओ होत्था, तं जहा–उज्झिया भोगवइया रक्खिया रोहिणिया। तए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि श्रमण यावत्‌ निर्वाणप्राप्त भगवान महावीर ने छठे ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो भगवन्‌ ! सातवें ज्ञात – अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। उस राजगृह नगर में श्रेणिक राजा था। राजगृह नगर के बाहर ईशानकोण में सुभूमिभाग उद्यान था। उस राजगृह नगर में धन्य नामक
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 76 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अठमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणु इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, निसढस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सोओदाए महानदीए दाहिणेणं, सुहावहस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सलिलावई नामं विजए पन्नत्ते। तत्थ णं सलिलावईविजए वीयसोगा नामं रायहाणी–नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोग-भूया। तीसे णं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए इंदकुंभे

Translated Sutra: ’भगवन्‌ ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने सातवे ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है, तो आठवे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’ ‘हे जम्बू ! उस काल और उस समय में, इसी जम्बूद्वीप में महाविदेह नामक वर्ष में, मेरु पर्वत से पश्चिम में, निषध नामक वर्षधर पर्वत से उत्तर में, शीतोदा महानदी से दक्षिण में, सुखावह नामक वक्षार पर्वत से पश्चिम
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 95 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तेसिं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्मा सुभेणं परिणामेणं पसत्थेणं अज्झवसाणेणं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणाणं सण्णिपुव्वे जाइसरणे समुप्पन्ने, एयमट्ठं सम्मं अभिसमागच्छंति। तए णं मल्ली अरहा जियसत्तुपामोक्खे छप्पि रायाणो समुप्पन्नजाईसरणे जाणित्ता गब्भधराणं दाराइं विहाडेइ। तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छंति। तए णं महब्बलपामोक्खा सत्तवि य बालवयंसा एगयओ अभिसमन्नागया वि होत्था। तए णं मल्ली अरहा ते जियसत्तुपामोक्खे

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली से पूर्वभव का यह वृत्तान्त सूनने और हृदय में धारण करने से, शुभ परिणामों, प्रशस्त अध्यवसायों, विशुद्ध होती हुई लेश्याओं और जातिस्मरण को आच्छादित करने वाले कर्मों के क्षयोपशम के कारण, ईहा – अपोह तथा मार्गणा और गवेषणा – विशेष विचार करने से जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 109 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सव्वदेवाणं आसणाइं चलेंति, समोसढा धम्मं सुणेंति, सुणेत्ता जेणेव नंदीसरे दीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अट्ठाहियं महिमं करेंति, करेत्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया। कुंभए वि निग्गच्छइ। तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेट्ठपुत्ते रज्जे ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीयाओ सीयाओ दुरूढा समाणा सव्विड्ढीए जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छंति जाव पज्जुवासंति। तए णं मल्ली अरहा तीसे महइमहालियाए परिसाए, कुंभगस्स रन्नो, तेसिं च जियसत्तु-पामोक्खाणं छण्हं राईणं धम्मं परिकहेइ। परिसा जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया।

Translated Sutra: उस काल और उस समय में सब देवों के आसन चलायमान हुए। तब वे सब देव वहाँ आए, सबने धर्मोपदेश श्रवण किया। नन्दीश्वर द्वीप में जाकर अष्टाह्निका महोत्सव किया। फिर जिस दिशा में प्रकट हुए थे, उसी दिशा में लौट गए। कुम्भ राजा भी वन्दना करने के लिए नीकला। तत्पश्चात्‌ वे जितशत्रु वगैरह छहों राजा अपने – अपने ज्येष्ठ पुत्रों
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ माकंदी

Hindi 135 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अण गारियं पव्वइए समाणे पुनरवि मानुस्सए कामभोगे आसयइ पत्थयइ पीहेइ अभिलसइ, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावयाण य हीलणिज्जे जाव चाउरंतं संसारकंतारं भुज्जो-भुज्जो अनुपरियट्टिस्सइ–जहा व से जिनरक्खिए।

Translated Sutra: इसी प्रकार हे आयुष्मन्‌ श्रमणों ! जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी आचार्य – उपाध्याय के समीप प्रव्रजित होकर, फिर से मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों का आश्रय लेता है, याचना करता है, स्पृहा करता है, या दृष्ट अथवा अदृष्ट शब्दादिक के भोग की ईच्छा करता है, वह मनुष्य इसी भव में बहुत – से साधुओं, बहुत – सी साध्वीयों, बहुत – से
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ माकंदी

Hindi 137 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भोगे अवयक्खंता, पडंति संसारसागरे घोरे । भोगेहिं निरवयक्खा, तरंति संसारकंतारं ॥

Translated Sutra: चारित्र ग्रहण करके भी जो भोगों की ईच्छा करते हैं, वे घोर संसार – सागर में गिरते हैं और जो भोगों की ईच्छा नहीं करते, वे संसार रूपी कान्तार पार कर जाते हैं।
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ माकंदी

Hindi 140 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे। जिनपालिए धम्मं सोच्चा पव्वइए। एगारसंगवी। मासियाए संलेहणाए अप्पाणं ज्झोसेत्ता, सट्ठिं भत्ताइं अनसणाए छेएत्ता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववन्ने। दो सागरोवमाइं ठिई। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अण गारियं पव्वइए समाणे मानुस्सए कामभोगे नो पुनरवि आसयइ पत्थयइ पीहेइ, सेणं इह भवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावयाण य अच्चणिज्जे जाव चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ–जहा

Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर, जहाँ चम्पा नगरी थी और जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ पधारे। भगवान को वन्दना करने के लिए परीषद्‌ नीकली। कूणिक राजा भी नीकला। जिनपालित ने धर्मोपदेश श्रवण करके दीक्षा अंगीकार की। क्रमशः ग्यारह अंगों का ज्ञाता होकर, अन्त में एक मास का अनशन करके यावत्‌ सौधर्म कल्प में देव
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१२ उदक

Hindi 144 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जियसत्तू राया अन्नया कयाइ ण्हाए कयवलिकम्मे जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे बहूहिं ईसर जाव सत्थवाहपभिईहिं सद्धिं भोयणमंडवंसि भोयणवेलाए सुहासणवरगए विउलं असनं पानं खाइमं साइमं आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे एवं च णं विहरइ। जिमिय-भुत्तुत्तरागए वि य णं समाणे आयंते चोक्खे परम सुइभूए तंसि विपुलंसि असन-पान-खाइम-साइमंसि जायविम्हए ते बहवे ईसर जाव सत्थवाहपभिइओ एवं वयासी–अहो णं देवानुप्पिया! इमे मणुण्णे असन-पान-खाइम-साइमे वण्णेणं उववेए गंधेणं उववेए रसेणं उववेए फासेणं उववेए अस्सायणिज्जे विसायणिज्जे पीणणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे

Translated Sutra: वह जितशत्रु राजा एक बार – किसी समय स्नान करके, बलिकर्म करके, यावत्‌ अल्प किन्तु बहुमूल्य आभरणों से शरीर को अलंकृत करके, अनेक राजा, ईश्वर यावत्‌ सार्थवाह आदि के साथ भोजन के समय पर सुखद आसन पर बैठ कर, विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन जीम रहा था। यावत्‌ जीमने के अनन्तर, हाथ – मुँह धोकर, परम शुचि होकर उस विपुल अशन,
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र

Hindi 152 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे पोट्टिलाए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झ-त्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं तेयलि-पुत्तस्स पुव्विं इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा आसि, इयाणिं अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा जाया। नेच्छइ णं तेयलीपुत्ते मम नामगोयमवि सवणयाए किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा? तं सेयं खलु ममं सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए पव्वइत्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठि यम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव तेयलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं

Translated Sutra: एक बार किसी समय, मध्य रात्रि में जब वह कुटुम्ब के विषय में चिन्ता करती जाग रही थी, तब उसे विचार उत्पन्न हुआ – ‘मैं पहले तेतलिपुत्र को इष्ट थी, अब अनिष्ट हो गई हूँ; यावत्‌ दर्शन और परिभोग का तो कहना ही क्या है ? अत एव मेरे लिए सुव्रता आर्या के निकट दीक्षा ग्रहण करना ही श्रेयस्कर है।’ पोट्टिला दूसरे दिन प्रभात होने
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१५ नंदीफळ

Hindi 157 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं चोद्दसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, पन्नरसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। जियसत्तू राया। तत्थ णं चंपाए नयरीए धने नामं सत्थवाहे होत्था–अड्ढे जाव अपरिभूए। तीसे णं चंपाए नयरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए अहिच्छत्ता नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमिय-समिद्धा वण्णओ। तत्थ णं अहिच्छत्ताए नयरीए कनगकेऊ नामं राया होत्था–महया वण्णओ। तए णं तस्स धनस्स सत्थवाहस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे

Translated Sutra: ‘भगवन्‌ ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने चौदहवें ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो पन्द्रहवें ज्ञात – अध्ययन का श्रमण भगवान महावीर ने क्या अर्थ कहा है ?’ उस काल और उस समय में चम्पा नगरी थी। उसके बाहर पूर्णभद्र चैत्य था। जितशत्रु राजा था। धन्य सार्थवाह था, जो सम्पन्न था यावत्‌ किसी से पराभूत होनेवाला नहीं था। उस
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Hindi 180 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा दोवई देवी अन्नया कयाइ आवण्णसत्ता जाया यावि होत्था। तए णं सा दोवई देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सुरूवं दारगं पयाया–सूमाल कोमलयं गयतालुयसमाणं। तए णं तस्स णं दारगस्स निव्वत्तबारसाहस्स अम्मापियरो इमं एयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्णं नामधेज्जं करेंति जम्हा णं अम्हं एस दारए पंचण्हं पंडवाणं पुत्ते दोवईए देवीए अत्तए, तं होउ णं इमस्स दारगस्स नामधेज्जं पंडुसेने-पंडुसेने। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति पंडुसेणत्ति। तए णं तं पंडुसेणं दारयं अम्मापियरो साइरेगट्ठवासजायगं चेव सोहणंसि तिहि-करण-मुहुत्तंसि कलायरियस्स उवणेंति। तए णं से

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ एक बार किसी समय द्रौपदी देवी गर्भवती हुई। फिर द्रौपदी देवी ने नौ मास यावत्‌ सम्पूर्ण होने पर सुन्दर रूप वाले और सुकुमार तथा हाथी के तालु के समान कोमल बालक को जन्म दिया। बारह दिन व्यतीत होने पर बालक के माता – पिता को ऐसा विचार उत्पन्न हुआ कि – क्योंकि हमारा यह बालक पाँच पाण्डवों का पुत्र है और द्रौपदी
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 185 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ते संजत्ता-नावावाणियगे एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! गामागर-नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाइं० आहिंडह, लवणसमुद्दं च अभिक्खणं-अभिक्खणं पोयवहणेणं ओगाहेह। तं अत्थियाइं च केइ भे कहिंचि अच्छेरए दिट्ठपुव्वे? तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा कनगकेऊ एवं वयासी–एवं खलु अम्हे देवानुप्पिया! इहेव हत्थिसीसे नयरे परिवसामो तं चेव जाव कालियदीवंतेणं संछूढा। तत्थ णं बहवे हिरन्नागरे य सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य, बहवे तत्थ आसे पासामो। किं ते? हरिरेणु जाव अम्हं गंधं आघायंति, आघाइत्ता भीया तत्था उव्विग्गा उव्विग्गमणा तओ अनेगाइं जोयणाइं उब्भमंति।

Translated Sutra: फिर राजा ने उन सांयात्रिक नौकावणिकों से कहा – ‘देवानुप्रिय ! तुम लोग ग्रामों में यावत्‌ आकरों में घूमते हो और बार – बार पोतवहन द्वारा लवणसमुद्र में अवगाहन करते हो, तुमने कहीं कोई आश्चर्यजनक – अद्‌भुत – अनोखी वस्तु देखी है ?’ तब सांयात्रिक नौकावणिकों ने राजा कनककेतु से कहा – ‘देवानुप्रिय ! हम लोग इसी हस्तिशीर्ष
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 186 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं अत्थेगइया आसा जेणेव उक्किट्ठा सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधा तेणेव उवागच्छंति। तेसु उक्किट्ठेसु सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधेसु मुच्छिया गढिया गिद्धा अज्झोववण्णा पयत्ता यावि होत्था। तए णं ते आसा ते उक्किट्ठे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे आसेवमाणा तेहिं बहूहिं कूडेहि य पासेहि य गलएसु य पाएसु य बज्झंति। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा ते आसे गिण्हंति, गिण्हित्ता एगट्ठियाहिं पोयवहणे संचारेंति, कट्ठस्स य तणस्स य पाणियस्स य तंदुलाण य समियस्स य गोरसस्स य जाव अन्नेसिं च बहूणं पोयवहण-पाउग्गाणं पोयवहणं भरेंति। तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव

Translated Sutra: उन घोड़ों में से कितनेक घोड़े जहाँ वे उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध थे, वहाँ पहुँचे। वे उन उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध में मूर्च्छित हुए, अति आसक्त हो गए और उनका सेवन करने में प्रवृत्त हो गए। उस उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध का सेवन करने वाले वे अश्व कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बहुत से कूट पाशों
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१८ सुंसमा

Hindi 211 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से धने सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुबहुं धन-कनगं सुंसुमं च दारियं अवहरियं जाणित्ता महत्थं महग्घं महरिहं पाहुडं गहाय जेणेव नगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं महग्घं महरिहं पाहुडं उवनेइ, उवनेत्ताएवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! चिलाए चोरसेनावई सीहगुहाओ चोरपल्लीओ इहं हव्वमागम्म पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं मम गिहं धाएत्ता सुबहुं धन-कनगं सुंसुमं च दारियं गहाय रायगिहाओ पडि-निक्खमित्ता जेणेव सीहगुहा तेणेव पडिगए। तं इच्छामो णं देवानुप्पिया! सुंसुमाए दारियाए कूवं गमित्तए। तुब्भं णं देवानुप्पिया! से विपुले धनकनगे, ममं

Translated Sutra: चोरों के चले जाने के पश्चात्‌ धन्य सार्थवाह अपने घर आया। आकर उसने जाना कि मेरा बहुत – सा धन कनक और सुंसुमा लड़की का अपहरण कर लिया गया है। यह जानकर वह बहुमूल्य भेंट लेकर के रक्षकों के पास गया और उनसे कहा – ‘देवानुप्रियो ! चिलात नामक चोरसेनापति सिंहगुफा नामक चोरपल्ली से यहाँ आकर, पाँच सौ चोरों के साथ, मेरा घर लूटकर
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१८ सुंसमा

Hindi 212 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए समोसढे। तए णं धने सत्थवाहे सुपुत्ते धम्मं सोच्चा पव्वइए। एक्कारसंगवी। मासियाए संलेहणाए सोहम्मे कप्पे उववन्ने। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। जहा वि य णं जंबू! धनेणं सत्थवाहेणं नो वण्णहेउं वा नो रूवहेउं वा नो बलहेउं वा नो विसयहेउं वा सुंसुमाए दारियाए मंससोणिए आहारिए, नन्नत्थ एगाए रायगिह-संपावणट्ठयाए। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे इमस्स ओरालियसरीरस्स वंतासवस्स पित्तासवस्स खेलासवस्स सुक्कासवस्स सोणियासवस्स

Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर राजगृह के गुणशील चैत्य में पधारे। उस समय धन्य सार्थवाह वन्दना करने के लिए भगवान के निकट पहुँचा। धर्मोपदेश सूनकर दीक्षित हो गया। क्रमशः ग्यारह अंगों का वेत्ता मुनि हो गया। अन्तिम समय आने पर एक मास की संलेखना करके सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुआ। वहाँ से च्यवन करके महाविदेह
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१९ पुंडरीक

Hindi 217 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कंडरीयस्स रन्नो तं पणीयं पाणभोयणं आहारियस्स समाणस्स अइजागरएण य अइभोयप्पसंगेण य से आहारे नो सम्मं परिणमइ। तए णं तस्स कंडरीयस्स रन्नो तंसि आहारंसि अपरिणममाणंसि पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया–उज्जला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा। पित्तज्जर-परिगय-सरीरे दाहवक्कंतीए यावि विहरइ। तए णं से कंडरीए राया रज्जे य रट्ठे य अंतेउरे य मानुस्सएसु य कामभोगेसु मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अट्टदुहट्टवसट्टे अकामए अवसवसे कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववन्ने। एवामेव समणाउसो!

Translated Sutra: प्रणीत आहार करने वाले कण्डरीक राजा को अति जागरण करने से और मात्रा से अधिक भोजन करने के कारण वह आहार अच्छी तरह परिणत नहीं हुआ, पच नहीं सका। उस आहार का पाचन न होने पर, मध्यरात्रि के समय कण्डरीक राजा के शरीर में उज्ज्वल, विपुल, कर्कश, अन्यन्त गाढ़ी, प्रचंड और दुःखद वेदना उत्पन्न हो गई। उसका शरीर पित्तज्वर से व्याप्त
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१९ पुंडरीक

Hindi 218 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पुंडरीए अनगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता थेराणं अंतिए दोच्चंपि चाउज्जामं धम्मं पडिवज्जइ, छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए ज्झाण ज्झियाइ, तइयाए पोरिसीए जाव उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदानस्स भिक्खायरियं अडमाणे सीयलुक्ख पाण भोयणं पडिगाहेइ, पडिगाहेत्ता अहापज्जत्तमिति कट्टु पडिनियत्तेइ, जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भत्तपानं पडिदंसेइ, पडिदंसेत्ता थेरेहिं भगवंतेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववण्णे बिलमिव पन्नगभूएणं

Translated Sutra: पुंडरिकीणी नगरी से रवाना होने के पश्चात्‌ पुंडरीक अनगार वहाँ पहुँचे जहाँ स्थविर भगवान थे। उन्होंने स्थविर भगवान को वन्दना की, नमस्कार किया। स्थविर के निकट दूसरी बार चातुर्याम धर्म अंगीकार किया। फिर षष्ठभक्त के पारणक में, प्रथम प्रहर में स्वाध्याय किया, (दूसरे प्रहर में ध्यान किया), तीसरे प्रहर में यावत्‌
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Gujarati 184 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सोलसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तरसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं कनगकेऊ नामं राया होत्था–वण्णओ। तत्थ णं हत्थिसीसे नयरे बहवे संजत्ता-नावावाणियगा परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया यावि होत्था। तए णं तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था–सेयं खलु अम्हं गणिमं च धरिमं च मेज्जं च परिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुद्दं पोयवहणेणं ओगाहेत्तए त्ति

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૮૪. ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીર સ્વામીએ જ્ઞાતાધર્મકથાના સોળમાં અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો ભગવંતે સતરમાં જ્ઞાતઅધ્યયનનો અર્થ શું કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે હસ્તિશીર્ષ નગર હતું. ત્યાં કનકકેતુ રાજા હતો. તે હસ્તિશીર્ષ નગરમાં ઘણા સાંયાત્રિક નૌવણિક રહેતા હતા. તેઓ ધનાઢ્ય યાવત્‌ ઘણા લોકોથી અપરિભૂત
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Gujarati 185 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ते संजत्ता-नावावाणियगे एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! गामागर-नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाइं० आहिंडह, लवणसमुद्दं च अभिक्खणं-अभिक्खणं पोयवहणेणं ओगाहेह। तं अत्थियाइं च केइ भे कहिंचि अच्छेरए दिट्ठपुव्वे? तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा कनगकेऊ एवं वयासी–एवं खलु अम्हे देवानुप्पिया! इहेव हत्थिसीसे नयरे परिवसामो तं चेव जाव कालियदीवंतेणं संछूढा। तत्थ णं बहवे हिरन्नागरे य सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य, बहवे तत्थ आसे पासामो। किं ते? हरिरेणु जाव अम्हं गंधं आघायंति, आघाइत्ता भीया तत्था उव्विग्गा उव्विग्गमणा तओ अनेगाइं जोयणाइं उब्भमंति।

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૮૪
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Gujarati 186 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं अत्थेगइया आसा जेणेव उक्किट्ठा सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधा तेणेव उवागच्छंति। तेसु उक्किट्ठेसु सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधेसु मुच्छिया गढिया गिद्धा अज्झोववण्णा पयत्ता यावि होत्था। तए णं ते आसा ते उक्किट्ठे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे आसेवमाणा तेहिं बहूहिं कूडेहि य पासेहि य गलएसु य पाएसु य बज्झंति। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा ते आसे गिण्हंति, गिण्हित्ता एगट्ठियाहिं पोयवहणे संचारेंति, कट्ठस्स य तणस्स य पाणियस्स य तंदुलाण य समियस्स य गोरसस्स य जाव अन्नेसिं च बहूणं पोयवहण-पाउग्गाणं पोयवहणं भरेंति। तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૮૪
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

Gujarati 61 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जिनदत्तपुत्ते जेणेव से मयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरी-अंडयंसि निस्संकिए [निक्कंखिए निव्वितिगिंछे?] सुव्वत्तए णं मम एत्थ कीलावणए मयूरीपोयए भविस्सइ त्ति कट्टु तं मयूरी-अंडयं अभिक्खणं-अभिक्खणं नो उव्वत्तेइ नो परियत्तेइ नो आसारेइ नो संसारेइ नो चालेइ नो फंदेइ नो घट्टेइ नो खोभेइ अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि नो टिट्टियावेइ। तए णं से मयूरी-अंडए अनुव्वत्तिज्जमाणे जाव अटिट्टियाविज्जमाणे कालेणं समएणं उब्भिन्ने मयूरी-पोयए एत्थ जाए। तए णं से जिनदत्तपुत्ते तं मयूरी-पोययं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठे मयूर-पोसए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૮
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ काचबो

Gujarati 62 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं तच्चस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं वाणारसीए नयरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए गंगाए महानईए मयंगतीरद्दहे नामं दहे होत्था–अनुपुव्वसुजाय-वप्प-गंभीरसीयलजले अच्छ-विमल-सलिल-पलिच्छण्णे संछण्ण-पत्त-पुप्फ -पलासे बहुउप्पल-पउम-कुमुय-नलिण-सुभग-सोगं-धिय-पुंडरीय-महापुंडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्त केसरपुप्फोवचिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं बहूणं मच्छाण य कच्छभाण य गाहाण य मगराण य सुंसुमाराण य सयाणि

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે જ્ઞાતાધર્મકથાના ત્રીજા જ્ઞાત અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો, તો ચોથા ‘જ્ઞાત’ નો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે વારાણસી નગરી હતી. તે વારાણસી નગરી બહાર ઈશાન કોણમાં ગંગા મહાનદીના મૃતગંગાતીર નામે દ્રહ હતું. અનુક્રમથી આપ મેળેબનેલ આ દ્રહ સુંદર કિનારાથી સુશોભિત હતો. તેનું જળ શીતલ
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Gujarati 65 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थावच्चापुत्ते वि निग्गए। जहा मेहे तहेव धम्मं सोच्चा निसम्म जेणेव थावच्चा गाहावइणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पायग्गहणं करेइ। जहा मेहस्स तहा चेव निवेयणा। तए णं तं थावच्चापुत्तं थावच्चा गाहावइणी जाहे नो संचाएइ विसयाणुलोमाहि य विसय-पडिकूलाहि य बहूहिं आघवणाहि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा ताहे अकामिया चेव थावच्चापुत्तस्स दारगस्स निक्खमणमणुमन्नित्था। तए णं सा थावच्चा गाहावइणी आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं

Translated Sutra: થાવચ્ચા પુત્ર, મેઘકુમારની માફક નીકળ્યો. તેની જેમજ ધર્મ સાંભળ્યો, અવધાર્યો, પછી થાવચ્ચા ગાથાપત્ની પાસે આવ્યો. આવીને માતાના પગે પડ્યો. મેઘકુમારની માફક નિવેદના કરી, માતા જ્યારે વિષયને અનુકૂળ અને પ્રતિકૂળ ઘણી જ આઘવણા, પન્નવણા, સંજ્ઞાપના અને વિજ્ઞાપના વડે સામાન્ય કથન કરતા કે યાવત્‌ આજીજી કરતા પણ તેને મનાવવામાં
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Gujarati 66 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सेलगपुरे नामं नगरे होत्था। सुभूमिभागे उज्जाणे। सेलए राया। पउमावई देवी। मंडुए कुमारे जुवराया। तस्स णं सेलगस्स पंथगपामोक्खा पंच मंतिसया होत्था–उप्पत्तियाए वेणइयाए कम्मियाए पारिणामियाए उववेया रज्जधुरं चिंतयंति। थावच्चापुत्ते सेलगपुरे समोसढे। राया निग्गए। तए णं से सेलए राया थावच्चापुत्तस्स अनगारस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमणे परम-सोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता थावच्चा-पुत्तं अनगारं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– सद्दहामि

Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૬. તે કાળે, તે સમયે શૈલકપુર નગર હતું. સુભૂમિભાગ ઉદ્યાન હતું. શૈલક રાજા, પદ્માવતી દેવી, મંડુકકુમાર યુવરાજ. તે શૈલકને પંથક આદિ ૫૦૦ મંત્રી હતા. તેઓ ઔત્પાતિકી, વૈનયિકી આદિ ચાર પ્રકારની બુદ્ધિયુક્ત થઈ રાજ્યધૂરાના ચિંતક હતા. થાવચ્ચાપુત્ર, શૈલકપુરે પધાર્યા, રાજા નીકળ્યો, ધર્મકથા કહી, ધર્મ સાંભળ્યો, પછી કહ્યું
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Gujarati 68 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सुए अन्नया कयाइ जेणेव सेलगपुरे नगरे जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया। सेलओ निग्गच्छइ। तए णं से सेलए सुयस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे सुयं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं जाव नवरं देवानुप्पिया! पंथगपामोक्खाइं पंच मंतिसयाइं आपुच्छामि, मंडुयं च कुमारं रज्जे ठावेमि। तओ पच्छा देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वयामि। अहासुहं देवानुप्पिया। तए

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૬
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Gujarati 69 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स तेहिं अंतेहि य पंतेहि य तुच्छेहि य लूहेहि य अरसेहि य विरसेहि य सीएहि य उण्हेहि य कालाइक्कंतेहि य पमाणाइक्कंतेहि य निच्चं पाणभोयणेहि य पयइ-सुकुमालस्स सुहोचियस्स सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया –उज्जला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा। कंडु-दाह-पित्तज्जर-परिगयसरीरे यावि विहरइ। तए णं से सेलए तेणं रोयायंकेणं सुक्के भुक्खे जाए यावि होत्था। तए णं से सेलए अन्नया कयाइ पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव सेल-गपुरे नयरे जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૯. ત્યારપછી તે પ્રકૃતિ સુકુમાર અને સુખોચિત શૈલકરાજર્ષિને તેવા અંત, પ્રાંત, તુચ્છ, રૂક્ષ, અરસ, વિરસ, શીત, ઉષ્ણ, કાલાતિક્રાંત, પ્રમાણાતિક્રાંત નિત્ય ભોજનપાન વડે શરીરમાં ઉત્કટ યાવત્‌ દુઃસહ્ય વેદના ઉત્પન્ન થઈ, ખુજલી – દાહ – પિત્તજ્વર વ્યાપ્ત શરીરી થઈ યાવત્‌ વિચરતા હતા. ત્યારે શૈલકરાજર્ષિ તે રોગાંતકથી
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Gujarati 72 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवामेव समणाउसो! जे निग्गंथे वा निग्गंथी वा ओसन्ने ओसन्नविहारी, पासत्थे पासत्थविहारी कुसीले कुसील-विहारी पमत्ते पमत्तविहारी संसत्ते संसत्तविहारी उउबद्ध-पीढ-फलग-सेज्जा-संथारए पमत्ते विहरइ, से णं इहलोए चेव बहूणं सम-णाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे निंदणिज्जे खिंसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे, परलोए वि य णं आगच्छइ बहूणि दंडणाणि य अनादियं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंत-संसार कंतारं भुज्जो-भुज्जो अनुपरियट्टिस्सइ। तए णं ते पंथगवज्जा पंच अनगारसया इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणा अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी –एवं खलु देवानुप्पिया!

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૯
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Gujarati 73 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेलए रायरिसी पंथगपामोक्खा पंच अनगारसया जेणेव पुंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छंति, उवाग-च्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहंति, दुरुहित्ता मेघघनसन्निगासं देवसन्निवायं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहंति, पडिलेहित्ता जाव संलेहणा-ज्झूसणा-ज्झूसिया भत्तपाण-पडियाइक्खिया पाओवगमणंणुवन्ना। तए णं से सेलए रायरिसी पंथगपामोक्खा पंच अनगारसया बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसित्ता, सट्ठिं भत्ताइं अनसणाए छेदित्ता जाव केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्धा बुद्धा मुत्ता अंतगडा परिनिव्वुडा सव्व-दुक्खप्पहीणा। एवामेव

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૯
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Gujarati 32 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तुमं सि णं जाया! अम्हं एगे पुत्ते इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अनुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविय-उस्सासिए हियय-णंदि-जणणे उंबरपुप्फं व दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए? नो खलु जाया! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पओगं संहित्तए। तं भुंजाहि ताव जाया! विपुले मानुस्सए कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो। तओ पच्छा अम्हेहिं कालगएहिं परिणयवए वड्ढिय-कुलवंसतंतु-कज्जम्मि निरावयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइस्ससि। तए णं से मेहे कुमारे अम्मापिऊहिं एवं वुत्ते समाणे अम्मापियरो एवं वयासी–तहेव णं तं अम्मो! जहेव णं

Translated Sutra: હે પુત્ર! તું અમારો એક જ પુત્ર છે, અમને ઇષ્ટ, કાંત, પ્રિય, મનોજ્ઞ, મણામ, વિશ્રામનું સ્થાન છો. અમોને સમ્મત, બહુમત, અનુમત ભાંડ – કરંડક સમાન છો. તું અમારે રત્ન, રત્નરૂપ, જીવિતના ઉચ્છ્‌વાસ સમાન, હૃદયમાં આનંદનો જનક, ઉંબર પુષ્પ સમાન છો. તારું નામ શ્રવણ પણ દુર્લભ છે, તો દર્શનની વાત જ શું કરવી ? હે પુત્ર ! ક્ષણભરને માટે અમે તારો
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Gujarati 34 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं पुरओ कट्टु जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवा-गच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एस णं देवानुप्पिया! मेहे कुमारे अम्हं एगे पुत्ते इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अनुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीवियऊसासए हिययणंदिजणए उंबरपुप्फं पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण दरिसणयाए? से जहानामए उप्पले ति वा पउमे ति वा कुमुदे ति वा पंके जाए जले संवड्ढिए नोवलिप्पइ पंकरएणं नोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव मेहे

Translated Sutra: ત્યાર પછી મેઘકુમારના માતાપિતાએ મેઘકુમારને આગળ કરીને શ્રમણ ભગવંત મહાવીર પાસે આવ્યા. આવીને ભગવંતને ત્રણ વખત આદક્ષિણ પ્રદક્ષિણા કરે છે, કરીને વંદન – નમસ્કાર કરે છે, કરીને આમ કહ્યું – હે દેવાનુપ્રિય ! મેઘકુમાર અમારો એક જ પુત્ર છે, ઇષ્ટ – કાંત યાવત્‌ જીવિત ઉચ્છ્‌વાસ સમાન, હૃદયને આનંદજનક, ઉંબરના પુષ્પવત્‌ છે, તેનું
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Gujarati 35 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से मेहे कुमारे सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–आलित्ते णं भंते! लोए, पलित्ते णं भंते! लोए, आलित्त पलित्ते णं भंते! लोए जराए मरणेण य। से जहानामए केइ गाहावई अगारंसि ज्झियायमाणंसि जे तत्थ भंडे भवइ अप्पभारे मोल्लगरुए तं गहाय आयाए एगंतं अवक्कमइ–एस मे नित्थारिए समाणे पच्छा पुरा य लोए हियाए सुहाए खमाए निस्सेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ। एवामेव मम वि एगे आयाभंडे इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे। एस मे नित्थारिए

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૫. ત્યારે તે મેઘકુમારે સ્વયં જ પંચમુષ્ટિક લોચ કર્યો, કરીને શ્રમણ ભગવંત મહાવીર પાસે આવે છે. આવીને ભગવંતને ત્રણ વખત આદક્ષિણ પ્રદક્ષિણ કરે છે, વંદન – નમસ્કાર કરે છે, કરીને આમ કહ્યું – ભગવન્‌ ! આ લોક જરા – મરણથી આદીપ્ત છે, પ્રદીપ્ત છે, આદીપ્ત – પ્રદીપ્ત છે. જેમ કોઈ ગાથાપતિ, પોતાનું ઘર બળી જાય ત્યારે તે ઘરમાં
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Gujarati 37 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं मेहा! इ समणे भगवं महावीरे मेहं कुमारं एवं वयासी–से नूनं तुमं मेहा! राओ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि समणेहिं निग्गंथेहिं वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्माणुजोगचिंताए य उच्चारस्स वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणेहि य निग्गच्छमाणेहि य अप्पेगइएहिं हत्थेहिं संघट्टिए अप्पेगइएहिं पाएहिं संघट्टिए अप्पेगइएहिं सीसे संघट्टिए अप्पेगइएहिं पोट्टे संघट्टिए अप्पेगइएहिं कायंसि संघट्टिए अप्पेगइएहिं ओलंडिए अप्पेगइएहिं पोलंडिए अप्पेगइएहिं पाय-रय-रेणु-गुंडिए कए। एमहालियं च णं राइं तुमं नो संचाएसि मुहुत्तमवि अच्छिं निमिल्लावेत्तए। तए णं तुज्ज मेहा! इमेयारूवे अज्झत्थिए

Translated Sutra: ત્યારે મેઘને આમંત્રી શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે મેઘકુમારને આમ કહ્યું – હે મેઘ ! તું રાત્રિના પહેલા અને છેલ્લા કાળ સમયમાં શ્રમણ – નિર્ગ્રન્થને વાચના, પૃચ્છના આદિ માટે જવા આવવાના કારણે લાંબી રાત્રિ મુહૂર્ત્ત માત્ર પણ ઊંઘી શક્યો નહીં, ત્યારે હે મેઘ ! આ આવા સ્વરૂપનો આધ્યાત્મિક યાવત્‌ સંકલ્પ થયો કે – જ્યાં સુધી હું ઘેર
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Gujarati 52 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा भद्दा सत्थवाही पंथगस्स दासचेडगस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा आसुरुत्ता रुट्ठा कुविया चंडिक्किया मिसि मिसेमाणी धनस्स सत्थवाहस्स पओसमावज्जइ। तए णं से धने सत्थवाहे अन्नया कयाइं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सएण य अत्थसारेणं रायकज्जाओ अप्पाणं मोयावेइ, मोयावेत्ता चारगसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अलंकारियकम्मं कारवेइ जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहधोयमट्टियं गेण्हइ, गेण्हित्ता पोक्ख-रिणीं ओगाहइ, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता ण्हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए

Translated Sutra: ત્યારે તે ભદ્રા સાર્થવાહી, પંથક દાસચેટકની પાસે આ વાત સાંભળી ક્રોધિત થઇ, રોષાયમાન બની યાવત્‌ ધુંવાફુંવા થતી ધન્ય સાર્થવાહ પ્રત્યે પ્રદ્વેષ કરવા લાગી. ત્યારે તે ધન્ય સાર્થવાહ અન્ય કોઈ દિવસે મિત્ર – જ્ઞાતિજન – નિજક – સ્વજન – સંબંધી – પરિજન સાથે પોતાના સારભૂત દ્રવ્યથી રાજદંડથી પોતાને છોડાવ્યો, છોડાવીને કેદખાના
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Gujarati 53 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा जाव पुव्वाणुपुव्विं चरमाणा गामाणुगामं दूइज्जमाणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगि-ण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। परिसा निग्गया धम्मो कहिओ। तए णं तस्स धनस्स सत्थवाहस्स बहुजनस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा इहमागया इहसंपत्ता। तं गच्छामि? णं थेरे भगवंते वंदामि नमंसामि एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता ण्हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૩. તે કાળે, તે સમયે ધર્મઘોષ નામે જાતિસંપન્ન સ્થવિર ભગવંત યાવત્‌ પૂર્વાનુપૂર્વી ચાલતા રાજગૃહનગરે ગુણશીલ ચૈત્યમાં યાવત્‌ યથાપ્રતિરૂપ અવગ્રહ લઈને સંયમ અને તપ વડે આત્માને ભાવિત કરતા વિચરે છે, પર્ષદા નીકળી, ધર્મઘોષ સ્થવિરે દેશના આપી. ત્યારે તે ધન્ય સાર્થવાહે ઘણા લોકો પાસે આ વાત સાંભળી, સમજી આવા પ્રકારનો
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Gujarati 54 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जहा णं जंबू! धनेणं सत्थवाहेणं नो धम्मो त्ति वा तवो त्ति वा कयपडिकया इ वा लोगजत्ता इ वा नायए इ वा घाडियए इ वा सहाए इ वा सुहि त्ति वा विजयस्स तक्करस्स ताओ विपुलाओ असन-पान-खाइम-साइमाओ संविभागे कए, नण्णत्थ सरीरसारक्खणट्ठाए। एवामेव जंबू! जे णं अम्हं निग्गंथे वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे ववगय-ण्हाणुमद्दण-पुप्फ-गंध-मल्लालंकार-विभूसे इमस्स ओरालिय-सरीरस्स नो वण्णहेउं वा नो रूवहेउं वा नो बलहेउं वा नो विसयहेउं वा तं विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं आहारमाहारेइ, नन्नत्थ नाणदंसणचरित्ताणं बहणट्ठयाए, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૩
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

Gujarati 58 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते सत्थवाहदारगा पुव्वावरण्हकालसमयंसि देवदत्ताए गणियाए सद्धिं थूणामंडवाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता हत्थसंगेल्लीए सुभूमिभागे उज्जाणे बहूसु आलिघरएसु य कयलिघरएसु य लत्ताघरएसु य अच्छणघरएसु य पेच्छणघरएसु य पसाहणघरएसु य मोहणघरएसु य सालघरएसु य जालघरएसु य कुसुमघरएसु य उज्जाणसिरिं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૮. ત્યારપછી તે સાર્થવાહ પુત્રો દિવસના પાછલા પ્રહરમાં દેવદત્તા ગણિકા સાથે સ્થૂણામંડપથી નીકળ્યા. હાથમાં હાથ નાંખીને સુભૂમિભાગમાં ઘણા આલિગૃહો, કદલીગૃહો, લતાગૃહો, આસનગૃહો, પ્રેક્ષણગૃહો, પ્રસાધનગૃહો મોહનગૃહો, સાલગૃહો, જાલગૃહો અને કુસુમગૃહોમાં ઉદ્યાનની શોભાને અનુભવતા વિચરે છે. સૂત્ર– ૫૯. ત્યારપછી
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