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Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-९ राजगृह Hindi 268 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: कइविहा णं भंते! देवलोगा पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा देवलोगा पन्नत्ता, तं जहा–भवनवासी वाणमंतर-जोतिसिय-वेमानियभेदेणं। भवनवासी दसविहा, वाणमंतरा अट्ठविहा, जोतिसिया पंचविहा वेमाणिया दुविहा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देवगण कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! चार प्रकार के – भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क वैमानिक भवनवासी दस प्रकार के हैं। वाणव्यन्तर आठ प्रकार के हैं, ज्योतिष्क पाँच प्रकार के हैं और वैमानिक दो प्रकार के हैं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१ वेदना Hindi 273 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! जे महावेदने से महानिज्जरे? जे महानिज्जरे से महावेदने? महावेदणस्स य अप्पवेदणस्स य से सेए जे पसत्थनिज्जराए? हंता गोयमा! जे महावेदने से महानिज्जरे, जे महानिज्जरे से महावेदने, महावेदनस्स य अप्पवेदनस्स य से सेए जे पसत्थ-निज्जराए। छट्ठ-सत्तमासु णं भंते! पुढवीसु नेरइया महावेदना? हंता महावेदना। ते णं भंते! समणेहिंतो निग्गंथेहिंतो महानिज्जरतरा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणं खाइ अट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जे महावेदने से महानिज्जरे? जे महानिज्जरे से महावेदने? महावेदणस्स य अप्पवेदणस्स य से सेए जे पसत्थनिज्जराए? गोयमा! से जहानामए दुवे वत्था सिया–एगे वत्थे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या यह निश्चित है कि जो महावेदना वाला है, वह महानिर्जरा वाला है और जो महानिर्जरा वाला है, वह महावेदना वाला है ? तथा क्या महावेदना वाला और अल्पवेदना वाला, इन दोनों में वही जीव श्रेयान्‌ (श्रेष्ठ) है, जो प्रशस्तनिर्जरा वाला है ? हाँ, गौतम ! जो महावेदना वाला है इत्यादि जैसा ऊपर कहा है, इसी प्रकार समझना चाहिए भगवन्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१ वेदना Hindi 274 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! करणे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे करणे पन्नत्ते, तं जहा–मनकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे। नेरइयाणं भंते! कतिविहे करणे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–मनकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे। एवं पंचिंदियाणं सव्वेसिं चउव्विहे करणे पन्नत्ते। एगिंदियाणं दुविहे–कायकरणे य, कम्मकरणे य। विगलिंदियाणं तिविहे–वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे। नेरइयाणं भंते! किं करणओ असायं वेदनं वेदेंति? अकरणओ असायं वेदनं वेदेंति? गोयमा! नेरइया णं करणओ असायं वेदनं वेदेंति, नो अकरणओ असायं वेदनं वेदेंति। से केणट्ठेणं? गोयमा! नेरइया णं चउव्विहे करणे पन्नत्ते, तं जहा–मनकरणे,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! करण कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! करण चार प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – मन – करण, वचन – करण, काय – करण और कर्म – करण। भगवन्‌ ! नैरयिक जीवों के कितने प्रकार के करण कहे गए हैं ? गौतम ! चार प्रकार के। मन – करण, वचन – करण, काय – करण और कर्म – करण। इसी प्रकार समस्त पंचेन्द्रिय जीवों के ये चार प्रकार के
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१ वेदना Hindi 275 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं महावेदना महानिज्जरा? महावेदना अप्पनिज्जरा? अप्पवेदना महानिज्जरा? अप्पवेदना अप्पनिज्जरा? गोयमा! अत्थेगतिया जीवा महावेदना महानिज्जरा, अत्थेगतिया जीवा महावेदना अप्प-निज्जरा, अत्थेगतिया जीवा अप्पवेदना महानिज्जरा, अत्थेगतिया जीवा अप्पवेदना अप्पनिज्जरा। से केणट्ठेणं? गोयमा! पडिमापडिवन्नए अनगारे महावेदने महानिज्जरे। छट्ठ-सत्तमासु पुढवीसु नेरइया महावेदना अप्पनिज्जरा। सेलेसिं पडिवन्नए अनगारे अप्पवेदने महानिज्जरे। अनुत्तरोववाइया देवा अप्पवेदना अप्पनिज्जरा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव (क्या) महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं, अथवा अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? गौतम ! कितने ही जीव महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं, कितने ही जीव महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं, कईं जीव अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं, तथा कईं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 280 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! महाकम्मस्स, महाकिरियस्स, महासवस्स, महावेदणस्स सव्वओ पोग्गला बज्झंति, सव्वओ पोग्गला चिज्जंति, सव्वओ पोग्गला उवचिज्जंति; सया समियं पोग्गला बज्झंति, सया समियं पोग्गला चिज्जंति, सया समियं पोग्गला उवचिज्जंति; सया समियं च णं तस्स आया दुरूवत्ताए दुवण्णत्ताए दुगंधत्ताए दुरसत्ताए दुफासत्ताए, अनिट्ठत्ताए अकंतत्ताए अप्पियत्ताए असुभत्ताए अमणुन्नत्ताए अमणामत्ताए अनिच्छियत्ताए अभिज्झियत्ताए अहत्ताए–नो उड्ढत्ताए, दुक्खत्ताए–नो सुहत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति? हंता गोयमा! महाकम्मस्स तं चेव। से केणट्ठेणं? गोयमा! से जहानामए वत्थस्स अहयस्स वा, धोयस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या निश्चय ही महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महाश्रव वाले और महावेदना वाले जीव के सर्वतः पुद्‌गलों का बन्ध होता है ? सर्वतः पुद्‌गलों का चय होता है ? सर्वतः पुद्‌गलों का उपचय होता है ? सदा सतत पुद्‌गलों का चय होता है ? सदा सतत पुद्‌गलों का उपचय होता है ? क्या सदा निरन्तर उसका आत्मा दुरूपता में, दुर्वर्णता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 281 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वत्थस्स णं भंते! पोग्गलोवचए किं पयोगसा? वीससा? गोयमा! पयोगसा वि, वीससा वि। जहा णं भंते! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए पयोगसा वि, वीससा वि, तहा णं जीवाणं कम्मोवचए किं पयोगसा? वीससा? गोयमा! पयोगसा, नो वीससा। से केणट्ठेणं? गोयमा! जीवाणं तिविहे पयोगे पन्नत्ते, तं जहा– मनप्पयोगे, वइप्पयोगे, कायप्पयोगे। इच्चेएणं तिविहेणं पयोगेणं जीवाणं कम्मोवचए पयोगसा, नो वीससा। एवं सव्वेसिं पंचिंदियाणं तिविहे पयोगे भाणियव्वे। पुढवीकाइयाणं एगविहेणं पयोगेणं, एवं जाव वणस्सइकाइयाणं। विगलिंदियाणं दुविहे पयोगे पन्नत्ते, तं जहा–वइपयोगे, कायपयोगे य। इच्चेएणं दुविहेणं पयोगेणं कम्मोवचए पयोगसा,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वस्त्र में जो पुद्‌गलों का उपचय होता है, वह क्या प्रयोग (पुरुष – प्रयत्न) से होता है, अथवा स्वाभाविक रूप से ? गौतम ! वह प्रयोग से भी होता है, स्वाभाविक रूप से भी होता है। भगवन्‌ ! जिस प्रकार वस्त्र में पुद्‌गलों का उपचय प्रयोग से और स्वाभाविक रूप से होता है, तो क्या उसी प्रकार जीवों के कर्मपुद्‌गलों का उपचय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 282 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वत्थस्स णं भंते! पोग्गलोवचए किं सादीए सपज्जवसिए? सादीए अपज्जवसिए? अनादीए सपज्जवसिए? अनादीए अपज्जवसिए? गोयमा! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिए, नो सादीए अपज्जवसिए, नो अनादीए सपज्जवसिए, नो अनादीए अपज्जवसिए। जहा णं भंते! वत्थस्स पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिए, नो सादीए अपज्जवसिए, नो अनादीए सपज्जवसिए, नो अनादीए अपज्जवसिए, तहा णं जीवाणं कम्मोवचए पुच्छा। गोयमा! अत्थेगतियाणं जीवाणं कम्मोवचए सादीए सपज्जवसिए, अत्थेगतियाणं अनादीए सपज्जवसिए, अत्थेगतियाणं अनादीए अपज्जवसिए, नो चेव णं जीवाणं कम्मोवचए सादीए अपज्जवसिए। से केणट्ठेणं? गोयमा! इरियावहियबंधयस्स कम्मोवचए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वस्त्र में पुद्‌गलों का जो उपचय होता है, वह सादि – सान्त है, सादिअनन्त है, अनादि – सान्त है, अथवा अनादि – अनन्त है ? गौतम ! वस्त्र में पुद्‌गलों का जो उपचय होता है, वह सादि – सान्त होता है, किन्तु न तो वह सादि – अनन्त होता है, न अनादि – सान्त होता है और न अनादि – अनन्त होता है। हे भगवन्‌ ! जिस प्रकार वस्त्र में पुद्‌गलोपचय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 283 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–१. नाणावरणिज्जं, २. दरिसणावरणिज्जं, ३. वेदणिज्जं, ४. मोहणिज्जं, ५. आउगं, ६. नामं, ७. गोयं, ८. अंतराइयं। नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं बंधट्ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्म-ट्ठिती–कम्मनिसेओ। दरिसावरणिज्जं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्म-ट्ठिती–कम्मनिसेओ। वेदणिज्जं जहन्नेणं दो समया, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही गई है ? गौतम ! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं – ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय यावत्‌ अन्तराय। भगवन्‌ ! ज्ञानावरणीय कर्म की बन्धस्थिति कितने काल की कही गई है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है। उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। अबाधाकाल
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 284 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जं णं भंते! कम्मं किं इत्थी बंधइ? पुरिसो बंधइ? नपुंसओ बंधइ? नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ बंधइ? गोयमा! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ, नपुंसओ वि बंधइ। नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ सिय बंधइ सिय नो बंधइ। एवं आउगवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ। आउगं णं भंते! कम्मं किं इत्थी बंधइ? पुरिसो बंधइ? नपुंसओ बंधइ? नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ बंधइ? गोयमा! इत्थी सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। पुरिसो सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। नपुंसओ सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ न बंधइ। नाणावरणिज्जं णं भंते! कम्मं किं संजए बंधइ? अस्संजए बंधइ? संजयासंजए बंधइ? नोसंजए नोअसंजए नोसंजयासंजए बंधइ? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या स्त्री बाँधती है ? पुरुष बाँधता है, अथवा नपुंसक बाँधता है ? अथवा नो – स्त्री – नोपुरुष – नोनपुंसक बाँधता है ? गौतम ! ज्ञानावरणीयकर्म को स्त्री भी बाँधती है, पुरुष भी बाँधता है और नपुंसक भी बाँधता है, परन्तु नोस्त्री – नोपुरुष – नोनपुंसक होता है, वह कदाचित्‌ बाँधता है, कदाचित्‌ नहीं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 285 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! जीवाणं इत्थीवेदगाणं पुरिसवेदगाणं, नपुंसगवेदगाणं, अवेदगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा पुरिसवेदगा, इत्थिवेदगा संखेज्जगुणा, अवेदगा अनंतगुणा, नपुंसगवेदगा अनंतगुणा। एएसिं सव्वेसिं पदाणं अप्पबहुगाइं उच्चारेयव्वाइं जाव सव्वत्थोवा जीवा अचरिमा, चरिमा अनंतगुणा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक, नपुंसकवेदक और अवेदक; इन जीवों में से कौन किससे अल्प है, बहुत है, तुल्य है अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े जीव पुरुषवेदक हैं, उनसे संख्येयगुणा स्त्रीवेदक जीव हैं, उनसे अनन्तगुणा अवेदक हैं और उनसे भी अनन्तगुणा नपुंसकवेदक हैं। इन सर्व पदों का यावत्‌ सबसे थोड़े अचरम जीव हैं और
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-४ सप्रदेशक Hindi 286 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसे? अपदेसे? गोयमा! नियमा सपदेसे। नेरइए णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसे? अपदेसे? गोयमा! सिय सपदेसे, सिय अपदेसे। एवं जाव सिद्धे। जीवा णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा? अपदेसा? गोयमा! नियमा सपदेसा। नेरइया णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा? अपदेसा? गोयमा! १. सव्वे वि ताव होज्जा सपदेसा २. अहवा सपदेसा य अपदेसे य ३. अहवा सपदेसा य अपदेसा य। एवं जाव थणियकुमारा। पुढविकाइया णं भंते! किं सपदेसा? अपदेसा? गोयमा! सपदेसा वि, अपदेसा वि। एवं जाव वणप्फइकाइया। सेसा जहा नेरइया तहा जाव सिद्धा। आहारगाणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। अनाहारगाणं जीवेगिंदियवज्जा छब्भंगा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव कालादेश से सप्रदेश हैं या अप्रदेश हैं ? गौतम ! कालादेश से जीव नियमतः सप्रदेश हैं। भगवन्‌ ! क्या नैरयिक जीव कालादेश से सप्रदेश है या अप्रदेश हैं ? गौतम ! एक नैरयिक जीव कालादेश से कदाचित्‌ सप्रदेश है और कदाचित्‌ अप्रदेश है। इस प्रकार यावत्‌ एक सिद्ध – जीव – पर्यन्त कहना चाहिए। भगवन्‌ ! कालादेश की
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-४ सप्रदेशक Hindi 288 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं पच्चक्खाणी? अपच्चक्खाणी? पच्चक्खाणापच्चक्खाणी? गोयमा! जीवा पच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि, पच्चक्खाणापच्चक्खाणी वि। सव्वजीवाणं एवं पुच्छा। गोयमा! नेरइया अपच्चक्खाणी जाव चउरिंदिया [सेसा दो पडिसेहेयव्वा] । पंचिंदियतिरिक्खजोणिया नो पच्चक्खाणी, अप-च्चक्खाणी वि, पच्चक्खाणा-पच्चक्खाणी वि। मणूसा तिन्नि वि। सेसा जहा नेरइया। जीवा णं भंते! किं पच्चक्खाणं जाणंति? अपच्चक्खाणं जाणंति? पच्चक्खाणापच्चक्खाणं जाणंति? गोयमा! जे पंचिंदिया ते तिन्नि वि जाणंति, अवसेसा पच्चक्खाणं न जाणंति, अपच्चक्खाणं न जाणंति, पच्चक्खाणापच्चक्खाणं न जाणंति। जीवा णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव प्रत्याख्यानी है, अप्रत्याख्यानी है या प्रत्याख्याना – प्रत्याख्यानी है ? गौतम ! जीव प्रत्याख्यानी भी है, अप्रत्याख्यानी भी है और प्रत्याख्याना – प्रत्याख्यानी भी हैं। इसी तरह सभी जीवों के सम्बन्ध में प्रश्न है। गौतम ! नैरयिक जीव यावत्‌ चतुरिन्द्रिय जीव अप्रत्याख्यानी है, इन जीवों में शेष
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 291 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किमियं भंते! तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? किं पुढवी तमुक्काए त्ति पव्वच्चति? आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? गोयमा! नो पुढवि तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति, आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति। से केणट्ठेणं? गोयमा! पुढविकाए णं अत्थेगइए सुभे देसं पकासेइ, अत्थेगइए देसं नो पकासेइ। से तेणट्ठेणं। तमुक्काए णं भंते! कहिं समुट्ठिए? कहिं संनिट्ठिए? गोयमा! जंबूदीवस्स दीवस्स बहिया तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे वीईवइत्ता, अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एगपएसियाए सेढीए–एत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए। सत्तरस-एक्कवीसे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ‘तमस्काय’ किसे कहा जाता है ? क्या ‘तमस्काय’ पृथ्वी को कहते हैं या पानी को ? गौतम ! पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती, किन्तु पानी ‘तमस्काय’ कहलाता है। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! कोई पृथ्वीकाय ऐसा शुभ है, जो देश को प्रकाशित करता है और कोई पृथ्वीकाय ऐसा है, जो देश को प्रकाशित नहीं करता इस कारण से पृथ्वी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 292 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! कण्हरातीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कण्हरात्तीओ पन्नत्ताओ। कहि णं भंते! एयाओ अट्ठ कण्हरातीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! उप्पिं सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं, हव्विं बंभलोए कप्पे रिट्ठे विमानपत्थडे, एत्थ णं अक्खाडग-समचउरंस-संठाणसंठियाओ अट्ठ कण्हरातीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–पुरत्थिमे णं दो, पच्चत्थिमे णं दो, दाहिणे णं दो, उत्तरे णं दो। पुरत्थिमब्भंतरा कण्हराती दाहिण-बाहिरं कण्हरातिं पुट्ठा, दाहिणब्भंतरा कण्हराती पच्चत्थिम-बाहिरं कण्हरातिं पुट्ठा, पच्चत्थिमब्भंतरा कण्हराती उत्तर-बाहिरं कण्हरातिं पुट्ठा, उत्तरब्भंतरा कण्हराती पुरत्थिमबाहिरं कण्हरातिं पुट्ठा। दो

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कृष्णराजियाँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! आठ। भगवन्‌ ! ये आठ कृष्णराजियाँ कहाँ है ? गौतम! ऊपर सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों से ऊपर और ब्रह्मलोक देवलोक के अरिष्ट नामक विमान के (तृतीय) प्रस्तट से नीचे, अखाड़ा के आकार की समचतुरस्र संस्थान वाली आठ कृष्णराजियाँ हैं। यथा – पूर्व में दो, पश्चिम में दो, दक्षिण में
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 294 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कण्हरातीओ णं भंते! केवतियं आयामेणं? केवतियं विक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ताओ? गोयमा! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परि-क्खेवेणं पन्नत्ताओ। कण्हरातीओ णं भंते! केमहालियाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे जाव देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभावे इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबूदीवं दीवं तिहिं अच्छरानिवाएहिं तिसत्तक्खुत्तो अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छिज्जा, से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जाव एकाहं वा, दुयाहं वा, तियाहं वा, उक्कोसेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कृष्णराजियों का आयाम, विष्कम्भ और परिक्षेप कितना है ? गौतम ! कृष्णराजियों का आयाम असंख्येय हजार योजन है, विष्कम्भ संख्येय हजार योजन है और परिक्षेप असंख्येय हजार योजन कहा गया है। भगवन्‌ ! कृष्णराजियाँ कितनी बड़ी कही गई हैं ? गौतम ! तीन चुटकी बजाए, उतने समय में इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की इक्कीस बार परिक्रमा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 295 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं अट्ठण्हं कण्हराईणं अट्ठसु ओवासंतरेसु अट्ठ लोगंतिगविमाना पन्नत्ता, तं जहा–१. अच्ची २.अच्चीमाली ३. वइरोयणे ४. पभंकरे ५. चंदाभे ६. सूराभे ७. सुक्काभे ८. सुपइट्ठाभे, मज्झे रिट्ठाभे। कहि णं भंते! अच्चि-विमाने पन्नत्ते? गोयमा! उत्तर-पुरत्थिमे णं। कहि णं भंते! अच्चिमाली विमाने पन्नत्ते? गोयमा! पुरत्थिमे णं। एवं परिवाडीए नेयव्वं जाव– कहि णं भंते! रिट्ठे विमाने पन्नत्ते? गोयमा! बहुमज्झदेसभाए। एएसु णं अट्ठसु लोगंतियविमानेसु अट्ठविहा लोगंतिया देवा परिवसंति, तं जहा–

Translated Sutra: इन आठ कृष्णराजियों के आठ अवकाशान्तरों में आठ लोकान्तिक विमान हैं। यथा – अर्चि, अर्चमाली, वैरोचन, प्रभंकर, चन्द्राभ, सूर्याभ, शुक्राभ और सुप्रतिष्ठाभ। इन सबके मध्य में रिष्टाभ विमान है। भगवन्‌ ! अर्चि विमान कहाँ है ? गौतम ! अर्चि विमान उत्तर और पूर्व के बीच में हैं। भगवन्‌ ! अर्चिमाली विमान कहाँ हैं ? गौतम ! अर्चिमाली
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 297 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सारस्सया देवा परिवसंति? गोयमा! अच्चिम्मि विमाने परिवसंति। कहि णं भंते! आइच्चा देवा परिवसंति? गोयमा! अच्चिमालिम्मि विमाने। एवं नेयव्वं जहाणुपुव्वीए जाव– कहि णं भंते! रिट्ठा देवा परिवसंति? गोयमा! रिट्ठम्मि विमाने। सारस्सयमाइच्चाणं भंते! देवाणं कति देवा, कति देवसया पन्नत्ता? गोयमा! सत्त देवा, सत्त देवसया परिवारो पन्नत्तो। वण्ही–वरुणाणं देवाणं चउद्दस देवा, चउद्दस देवसहस्सा परिवारो पन्नत्तो। गद्दतोय–तुसियाणं देवाणं सत्त देवा, सत्त देव-सहस्सा परिवारो पन्नत्तो। अवसेसाणं नव देवा, नव देवसया परिवारो पन्नत्तो।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सारस्वत देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! सारस्वत देव अर्चि विमान में रहते हैं। भगवन्‌ ! आदित्य देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! आदित्य देव अर्चिमाली विमान में रहते हैं। इस प्रकार अनुक्रम से रिष्ट विमान तक जान लेना चाहिए। भगवन्‌ ! रिष्टदेव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! रिष्टदेव रिष्ट विमान में रहते हैं। भगवन्‌ ! सारस्वत और आदित्य,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 299 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लोगंतिगविमाना णं भंते! किंपइट्ठिया पन्नत्ता? गोयमा! वाउपइट्ठिया पन्नत्ता। एवं नेयव्वं विमानाण पइट्ठाणं, बाहुल्लुच्चत्तमेव संठाणं, बंभलोय-वत्तव्वया नेयव्वा जाव– लोयंतियविमानेसु णं भंते! सव्वे पाणा भूया जीवा सत्ता पुढविकाइयत्ताए, आउकाइयत्ताए, तेउकाइयत्ताए, वाउकाइयत्ताए, वणप्फइकाइयत्ताए, देवत्ताए, देवित्ताए उववन्नपुव्वा? हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतक्खुत्तो, नो चेव णं देवित्ताए। लोगंतिय देवाणं भंते! केवइयं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठ सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। लोगंतियविमानेहिंतो णं भंते! केवतियं अबाहाए लोगंते पन्नत्ते? गोयमा! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोकान्तिक विमान किसके आधार पर प्रतिष्ठित है ? गौतम ! लोकान्तिक विमान वायुप्रतिष्ठित है। इस प्रकार – जिस तरह विमानों का प्रतिष्ठान, विमानों का बाहल्य, विमानों की ऊंचाई और विमानों के संस्थान आदि का वर्णन जीवाजीवाभिगमसूत्र के देव – उद्देशक में ब्रह्मलोक की वक्तव्यता में कहा है, तदनुसार यहाँ भी कहना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-६ भव्य Hindi 300 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा। रयणप्पभाईणं आवासा भाणियव्वा जाव अहेसत्तमाए। एवं जत्तिया आवासा ते भाणियव्वा जाव– कति णं भंते! अनुत्तरविमाना पन्नत्ता? गोयमा! पंच अनुत्तरविमाना पन्नत्ता, तं० विजए, वेजयंते, जयंते, अपराजिए, सव्वट्ठसिद्धे।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीयाँ कितनी हैं ? गौतम ! सात हैं। यथा – रत्नप्रभा यावत्‌ तमस्तमःप्रभा। रत्नप्रभापृथ्वी से लेकर अधःसप्तमी पृथ्वी तक, जिस पृथ्वी के जितने आवास हों, उतने कहने चाहिए। भगवन्‌ ! यावत्‌ अनुत्तर – विमान कितने हैं ? गौतम ! पाँच अनुत्तरविमान हैं। – विजय, यावत्‌ सर्वार्थसिद्ध विमान।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-६ भव्य Hindi 301 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु अन्नयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! तत्थगए चेव आहारेज्ज वा? परिणामेज्ज वा? सरीरं वा बंधेज्जा? गोयमा! अत्थेगतिए तत्थगए चेव आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेज्जा; अत्थेगतिए तओ पडिनियत्तति, तत्तो पडिनियत्तित्ता इहमागच्छइ, आगच्छित्ता दोच्चं पि मारणंतियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावास-सयसहस्सेसु अन्नयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए, तओ पच्छा आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो जीव मारणान्तिक – समुद्‌घात से समवहत हुआ है और समवहत होकर इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से किसी एक नारकावास में नैरयिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य है, भगवन्‌ ! क्या वह वहाँ जाकर आहार करता है ? आहार को परिणमाता है ? और शरीर बाँधता है ? गौतम ! कोई जीव वहाँ जाकर ही आहार करता है, आहार को परिणमाता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 302 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सालीणं, वीहीणं, गोधूमाणं, जवाणं, जवजवाणं– एएसि णं धन्नाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्ला-उत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं पिहियाणं मुद्दियाणं लंछियाणं केवतियं कालं जोणी संचिट्ठइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि संवच्छराइं। तेण परं जोणी पमिलायइ, तेण परं जोणी पविद्धंसइ, तेण परं बीए अबीए भवति, तेण परं जोणीवोच्छेदे पन्नत्ते समणाउसो। अह भंते! कल-मसूर-तिल- मुग्ग-मास- निप्फाव-कुलत्थ- आलिसंदग-सतीण- पलिमंथगमाईणं–एएसि णं धन्नाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं पिहियाणं मुद्दियाणं लंछियाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! शालि, व्रीहि, गेहूँ, जौ तथा यवयव इत्यादि धान्य कोठे में सुरक्षित रखे हो, बाँस के पल्ले से रखे हों, मंच पर रखे हों, माल में डालकर रखे हों, गोबर से उनके मुख उल्लिप्त हों, लिप्त हों, ढँके हुए हों, मुद्रित हों, लांछित किए हुए हों; तो उन (धान्यों) की योनि कितने काल तक रहती है ? हे गौतम ! उनकी योनि कम से कम अन्तर्मुहूर्त्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 303 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगस्स णं भंते! मुहुत्तस्स केवतिया ऊसासद्धा वियाहिया? गोयमा! असंखेज्जाणं समयाणं समुदय-समिति-समागमेणं सा एगा आवलिय त्ति पवुच्चइ, संखेज्जा आवलिया ऊसासो, संखेज्जा आवलिया निस्सासो–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! एक – एक मुहूर्त्त के कितने उच्छ्‌वास कहे गये हैं ? गौतम ! असंख्येय समयों के समुदाय की समिति के समागम से अर्थात्‌ असंख्यात समय मिलकर जितना काल होता है, उसे एक ‘आवलिका’ कहते हैं। संख्येय आवलिका का एक ‘उच्छ्‌वास’ होता है और संख्येय आवलिका का एक ‘निःश्वास’ होता है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 307 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं मुहुत्तपमाणेणं तीसमुहुत्ता अहोरत्तो, पन्नरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो, दो मासा उडू, तिन्नि उडू अयणे, दो अयणा संवच्छरे, पंच संवच्छराइं जुगे, वीसं जुगाइं वाससयं, दस वाससयाइं वाससहस्सं, सयं वाससहस्साणं वाससयसहस्सं, चउरासीइं वाससयसहस्साणि से एगे पुव्वंगे, चउरासीइं पुव्वंगा सयसहस्साइं से एगे पुव्वे, एवं तुडियंगे, तुडिए, अडडंगे, अडडे, अववंगे, अववे, हूहूयंगे, हूहूए, उप्पलंगे, उप्पले, पउमंगे, पउमे, नलिणंगे, नलिणे, अत्थनिउरंगे, अत्थनिउरे, अउयंगे, अउए, नउयंगे, नउए, पउयंगे, पउए, चूलियंगे, चूलिया, सीसपहेलियंगे, सीसपहेलिया। एताव ताव गणिए, एताव ताव गणियस्स विसए, तेण परं ओवमिए। से

Translated Sutra: इस मुहूर्त्त के अनुसार तीस मुहूर्त्त का एक ‘अहोरात्र’ होता है। पन्द्रह ‘अहोरात्र’ का एक ‘पक्ष’ होता है। दो पक्षों का एक ‘मास’ होता है। दो ‘मासों’ की एक ‘ऋतु’ होती है। तीन ऋतुओं का एक ‘अयन’ होता है। दो अयन का एक ‘संवत्सर’ (वर्ष) होता है। पाँच संवत्सर का एक ‘युग’ होता है। बीस युग का एक सौ वर्ष होता है। दस वर्षशत
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शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 308 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सत्थेण सुतिक्खेण वि, छेत्तुं भेत्तुं व जं किर न सक्का । तं परमाणुं सिद्धा, वदंति आदिं पमाणाणं ॥

Translated Sutra: (हे गौतम !) जो सुतीक्ष्ण शस्त्रों द्वारा भी छेदा – भेदा न जा सके ऐसे परमाणु को सिद्ध भगवान समस्त प्रमाणों का आदिभूत प्रमाण कहते हैं।
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शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 312 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए उत्तिमट्ठपत्ताए, भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहानामए–आलिंगपुक्खरे ति वा, एवं उत्तर-कुरुवत्तव्वया नेयव्वा जाव तत्थ णं बहवे भारया मनुस्सा मनुस्सीओ य आसयंति सयंति चिट्ठंति निसीयंति तुयट्टंति हसंति रमंति ललंति। तीसे णं समाए भारहे वासे तत्थ-तत्थ देसे-देसे तहिं-तहिं बहवे उद्दाला कोद्दाला जाव कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव छव्विहा मनुस्सा अनुसज्जित्था, तं जहा–पम्हगंधा, मियगंधा, अममा, तेतली, सहा, सणिंचारी। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप में उत्तमार्थ – प्राप्त इस अवसर्पिणीकाल के सुषम – सुषमा नामक आरे में भरतक्षेत्र के आकार, भाव – प्रत्यवतार किस प्रकार के थे ? गौतम ! भूमिभाग बहुत सम होने से अत्यन्त रमणीय था। जैसे कोई मुरज नामक वाद्य का चर्मचण्डित मुखपट हो, वैसा बहुत ही सम भरतक्षेत्र का भूभाग था। इस प्रकार उस
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शतक-६

उद्देशक-८ पृथ्वी Hindi 313 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–रयणप्पभा जाव ईसीपब्भारा। अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए गेहा इ वा? गेहावणा इ वा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए अहे गामा इ वा? जाव सन्निवेसा इ वा? नो इणट्ठे समट्ठे। अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे ओराला बलाहया संसेयंति? संमुच्छंति? वासं वासंति? हंता अत्थि। तिन्नि वि पकरेंति–देवो वि पकरेति, असुरो वि पकरेति, नागो वि पकरेति। अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बादरे थणियसद्दे? हंता अत्थि। तिन्नि वि पकरेंति। अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे बादरे अगनिकाए? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कितनी पृथ्वीयाँ कही गई हैं ? गौतम ! आठ। – रत्नप्रभा यावत्‌ ईषत्प्राग्भारा। भगवन्‌ ! रत्न – प्रभापृथ्वी के नीचे गृह अथवा गृहापण हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे ग्राम यावत्‌ सन्निवेश हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे महान्‌ मेघ संस्वेद
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-८ पृथ्वी Hindi 315 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! आउयबंधे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे आउयबंधे पन्नत्ते, तं जहा–जातिनामनिहत्ताउए, गतिनामनिहत्ताउए, ठितिनाम-निहत्ताउए, ओगाहणानामनिहत्ताउए, पएसनामनिहत्ताउए, अनुभागनामनिहत्ताउए। दंडओ जाव वेमाणियाणं। जीवा णं भंते! किं जातिनामहित्ता? गतिनामनिहत्ता? ठितिनामनिहत्ता? ओगाहणानाम-निहत्ता? पएसनामनिहत्ता? अनुभागनामनिहत्ता? गोयमा! जातिनामनिहत्ता वि जाव अनुभागनामनिहत्ता वि। दंडओ जाव वेमाणियाणं। जीवा णं भंते! किं जातिनामनिहत्ताउया? जाव अनुभागनामनिहत्ताउया? गोयमा! जातिनामनिहत्ताउया वि जाव अनुभागनामनिहत्ताउया वि। दंडओ जाव वेमाणियाणं एवं एए दुवालस दंडगा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आयुष्यबन्ध कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का – जातिनामनिधत्तायु, गतिनामनिध – त्तायु, स्थितिनामनिधत्तायु, अवगाहनानामनिधत्तायु, प्रदेशनामनिधत्तायु और अनुभागनामनिधत्तायु। यावत्‌ वैमानिकों तक दण्डक कहना। भगवन्‌ ! क्या जीव जातिनामनिधत्त हैं ? गतिनामनिधत्त हैं ? यावत्‌ अनुभागनामनिधत्त हैं ?
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-८ पृथ्वी Hindi 316 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे किं उस्सिओदए? पत्थडोदए? खुभियजले? अक्खुभियजले? गोयमा! लवणे णं समुद्दे उस्सिओदए, नो पत्थडोदए, खुभियजले, नो अखुभियजले। जहा णं भंते! लवणसमुद्दे उस्सिओदए, नो पत्थडोदए; खुभियजले, नो अखुभियजले; तहा णं बाहिरगा समुद्दा किं उस्सिओदगा? पत्थडोदगा? खुभियजला? अखुभियजला? गोयमा! बाहिरगा समुद्दा नो उस्सिओदगा, पत्थडोदगा; नो खुभियजला, अखुभियजला पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठंति। अत्थि णं भंते! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहया संसेयंति? संमुच्छंति? वासं वासंति? हंता अत्थि। जहा णं भंते! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहया संसेयंति, संमुच्छंति,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या लवणसमुद्र, उछलते हुए जल वाला है, सम जल वाला है, क्षुब्ध जल वाला है अथवा अक्षुब्ध जल वाला है ? गौतम ! लवणसमुद्र उच्छितोदक है, किन्तु प्रस्तृतोदक नहीं है; वह क्षुब्ध जल वाला है, किन्तु अक्षुब्ध जल वाला नहीं है। यहाँ से प्रारम्भ करके जीवाभिगम सूत्र अनुसार यावत्‌ इस कारण से, हे गौतम ! बाहर के (द्वीप – ) समुद्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-९ कर्म Hindi 317 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणे कति कम्मप्पगडीओ बंधति? गोयमा! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, छव्विहबंधए वा। बंधुद्देसो पन्नवणाए नेयव्वो।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ज्ञानावरणीयकर्म को बाँधता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को बाँधता है ? गौतम ! सात प्रकृतियों को बाँधता है, आठ प्रकार को बाँधता है अथवा छह प्रकृतियों को बाँधता है। यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का बंध – उद्देशक कहना चाहिए।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-९ कर्म Hindi 318 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महानुभागे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगवण्णं एगरूवं विउव्वित्तए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। देवे णं भंते! बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगवण्णं एगरूवं विउव्वित्तए? हंता पभू। से णं भंते! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति? तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति? अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति? गोयमा! नो इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति, तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति, नो अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति। एवं एएणं गमेणं जाव १. एगवण्णं एगरूवं २. एगवण्णं अनेगरूवं ३. अनेगवण्णं एगरूवं ४. अनेगवण्णं अनेगरूवं–चउभंगो। देवे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! महर्द्धिक यावत्‌ महानभाग देव बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण किये बिना एक वर्ण वाले और एक रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! क्या वह देव बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? हाँ, गौतम ! समर्थ है। भगवन्‌ ! क्या वह देव इहगत पुद्‌गलों को ग्रहण करके
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-९ कर्म Hindi 319 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] १. अविसुद्धलेसे णं भंते! देवे असमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेसं देवं, देविं, अन्नयरं जाणइ-पासइ? नो तिणट्ठे समट्ठे। एवं–२. अविसुद्धलेसे देवे असमोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं ३. अविसुद्धलेसे देवे समोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेसं देवं ४. अविसुद्धलेसे देवे समोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं ५. अविसुद्धलेसे देवे समोहयासमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेसं देवं ६. अविसुद्धलेसे देवे समोहयासमोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं ७. विसुद्धलेसे देवे असमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्ध-लेसं देवं ८. विसुद्धलेसे देवे असमोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं। ९. विसुद्धलेसे णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या अविशुद्ध लेश्या वाला देव असमवहत – आत्मा से अविशुद्ध लेश्या वाले देव को या देवी को या अन्यतर को जानता और देखता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इसी तरह अविशुद्ध लेश्या वाला देव अनुपयुक्त आत्मा से विशुद्ध लेश्या वाले देव को, देवी या अन्यतर को जानता – देखता है ? अविशुद्ध लेश्या वाला देव उपयुक्त आत्मा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 320 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति जावतिया रायगिहे नयरे जीवा, एवइयाणं जीवाणं नो चक्किया केइ सुहं वा दुहं वा जाव कोलट्ठिगमायमवि, निप्फावमायमवि, कलमायमवि, मासमायमवि, मुग्गमायमवि, जूयामायमवि लिक्खामायमवि अभिनिवट्टेत्ता उवदंसेत्तए। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जं णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि सव्वलोए वि य णं सव्वजीवाणं नो चक्किया केइ सुहं वा दुहं वा जाव कोलट्ठिगमायमवि, निप्फावमायमवि, कलमायमवि, मास-मायमवि, मुग्गमायमवि, जूयामायमवि, लिक्खामायमवि अभिनिवट्टेत्ता उवदंसेत्तए। से केणट्ठेणं?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि राजगृह नगर में जितने जीव हैं, उन सबके दुःख या सुख को बेर की गुठली जितना भी, बाल (एक धान्य) जितना भी, कलाय जितना भी, उड़द जितना भी, मूँग – प्रमाण, यूका प्रमाण, लिक्षा प्रमाण भी बाहर नीकाल कर नहीं दिखा सकता। भगवन्‌ ! यह बात यों कैसे हो सकती है ? गौतम ! जो अन्यतीर्थिक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 321 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जीवे? जीवे जीवे? गोयमा! जीवे ताव नियमा जीवे, जीवे वि नियमा जीवे। जीवे णं भंते! नेरइए? नेरइए जीवे? गोयमा! नेरइए ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय नेरइए, सिय अनेरइए। जीवे णं भंते! असुरकुमारे? असुरकुमारे जीवे? गोयमा! असुरकुमारे ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय असुरकुमारे, सिय नोअसुरकुमारे। एवं दंडओ भाणियव्वो जाव वेमाणियाणं। जीवति भंते! जीवे? जीवे जीवति? गोयमा! जीवति ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय जीवति, सिय नो जीवति। जीवति भंते! नेरइए? नेरइए जीवति? गोयमा! नेरइए ताव नियमा जीवति, जीवति पुण सिय नेरइए, सिय अनेरइए। एवं दंडओ नेयव्वो जाव वेमाणियाणं। भवसिद्धिए णं भंते! नेरइए? नेरइए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव चैतन्य है या चैतन्य जीव है ? गौतम ! जीव तो नियमतः चैतन्य स्वरूप है और चैतन्य भी निश्चितरूप से जीवरूप है। भगवन्‌ ! क्या जीव नैरयिक है या नैरयिक जीव है ? गौतम ! नैरयिक तो नियमतः जीव है और जीव तो कदाचित्‌ नैरयिक भी हो सकता है, कदाचित्‌ नैरयिक से भिन्न भी हो सकता है। भगवन्‌ ! क्या जीव, असुरकुमार है या असुरकुमार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 322 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति–एवं खलु सव्वे पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतदुक्खं वेदनं वेदेंति। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जं णं ते अन्नउत्थिया जाव मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि– अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतदुक्खं वेदनं वेदेंति, आहच्च सायं। अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतसायं वेदनं वेदेंति, आहच्च अस्सायं। अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता वेमायाए वेदनं वेदेंति–आहच्च सायमसायं। से केणट्ठेणं? गोयमा! नेरइया एगंतदुक्खं वेदनं वेदेंति, आहच्च सायं। भवनवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया एगंतसायं वेदनं वेदेंति, आहच्च अस्सायं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एकान्तदुःखरूप वेदना को वेदते हैं, तो भगवन्‌ ! ऐसा कैसे हो सकता है ? गौतम ! अन्यतीर्थिक जो यह कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत्‌ प्ररूपणा करता हूँ – कितने
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 323 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! जे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति तं किं आयसरीरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति? अनंतरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति? परंपरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति? गोयमा! आयसरीरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति, नो अनंतरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति, नो परंपरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति। जहा नेरइया तहा जाव वेमाणियाणं दंडओ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक जीव जिन पुद्‌गलों का आत्मा (अपने) द्वारा ग्रहण – आहार करते हैं, क्या वे आत्म – शरीरक्षेत्रावगाढ़ पुद्‌गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं ? या अनन्तरक्षेत्रावगाढ़ पुद्‌गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं ? अथवा परम्परक्षेत्रावगाढ़ पुद्‌गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं ? गौतम ! वे आत्म – शरीरक्षेत्रावगाढ़
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 324 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! आयाणेहिं जाणइ-पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं? गोयमा! केवली णं पुरत्थिमे णं मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ जाव निव्वुडे दंसणे केवलिस्स। से तेणट्ठेणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या केवली भगवान इन्द्रियों द्वारा जानते – देखते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! केवली भगवान पूर्व दिशा में मित को भी जानते हैं और अमित को भी जानते हैं; यावत्‌ केवली का (ज्ञान और) दर्शन परिपूर्ण और निरावरण होता है। हे गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा जाता है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 328 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वदासी–जीवे णं भंते! कं समयमणाहारए भवइ? गोयमा! पढमे समए सिय आहारए सिय अनाहारए, बितिए समए सिय आहारए सिय अनाहारए, ततिए समए सिय आहारए सिय अनाहारए, चउत्थे समए नियमा आहारए। एवं दंडओ–जीवा य एगिंदिया य चउत्थे समए, सेसा ततिए समए। जीवे णं भंते! कं समयं सव्वप्पाहारए भवति? गोयमा! पढमसमयोववन्नए वा चरिमसमयभवत्थे वा, एत्थ णं जीवे सव्वप्पाहारए भवति। दंडओ भाणियव्वो जाव वेमाणियाणं।

Translated Sutra: उस काल और उस समय में, यावत्‌ गौतमस्वामी ने पूछा – भगवन्‌ ! (परभव में जाता हुआ) जीव किस समय में अनाहारक होता है ? गौतम ! (परभव में जाता हुआ) जीव, प्रथम समय में कदाचित्‌ आहारक होता है और कदाचित्‌ अनाहारक होता है; द्वीतिय समय में भी कदाचित्‌ आहारक और कदाचित्‌ अनाहारक होता है, तृतीय समय में भी कदाचित्‌ आहारक और कदाचित्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 329 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किंसंठिए णं भंते! लोए पन्नत्ते? गोयमा! सुपइट्ठगसंठिए लोए पन्नत्ते–हेट्ठा विच्छिण्णे, मज्झे संखित्ते, उप्पिं विसाले; अहे पलियंकसंठिए, मज्झे वरवइरवि-ग्गहिए, उप्पिं उद्धमुइंगाकारसंठिए। तंसि च णं सासयंसि लोगंसि हेट्ठा विच्छिण्णंसि जाव उप्पिं उद्धमुइंगाकारसंठियंसि उप्पन्ननाण-दंसणधरे अरहा जिने केवली जीवे वि जाणइ-पासइ, अजीवे वि जाणइ-पासइ, तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोक का संस्थान किस प्रकार का है ? गौतम ! सुप्रतिष्ठिक के आकार का है। वह नीचे विस्तीर्ण है और यावत्‌ ऊपर मृदंग के आकार का है। ऐसे इस शाश्वत लोक में उत्पन्न केवलज्ञान – दर्शन के धारक, अर्हन्त, जिन, केवली जीवों को भी जानते और देखते हैं तथा अजीवों को भी जानते और देखते हैं। इसके पश्चात्‌ वे सिद्ध, बुद्ध और मुक्त
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शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 330 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणोवासगस्स णं भंते! सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स तस्स णं भंते! किं रियावहिया किरिया कज्जइ? संपराइया किरिया कज्जइ? गोयमा! नो रियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नो रियावहिया किरिया कज्जइ? संपराइया किरिया कज्जइ? गोयमा! समणोवासयस्स णं सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स आया अहिगरणी भवइ, आयाहिगरणवत्तियं च णं तस्स नो रियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ। से तेणट्ठेणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! श्रमण के उपाश्रय में बैठे हुए सामायिक किये हुए श्रमणोपासक को क्या ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है, अथवा साम्परायिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! उसे साम्परायिकी क्रिया लगती है, ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं लगती। भगवन्‌ ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! श्रमणोपाश्रय में बैठे हुए सामयिक किए हुए श्रमणोपासक की आत्मा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 331 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणोवासगस्स णं भंते! पुव्वामेव तसपाणसमारंभे पच्चक्खाए भवइ, पुढविसमारंभे अपच्चक्खाए भवइ। से य पुढविं खणमाणे अन्नयरं तसं पाणं विहिंसेज्जा, से णं भंते! तं वयं अतिचरति? नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु से तस्स अतिवायाए आउट्टति। समणोवासगस्स णं भंते! पुव्वामेव वणप्फइसमारंभे पच्चक्खाए। से य पुढविं खणमाणे अन्नयरस्स रुक्खस्स मूलं छिंदेज्जा, से णं भंते! तं वयं अतिचरति? नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु से तस्स अतिवायाए आउट्टति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जिस श्रमणोपासक ने पहले से ही त्रस – प्राणियों के समारम्भ का प्रत्याख्यान कर लिया हो, किन्तु पृथ्वीकाय के समारम्भ का प्रत्याख्यान नहीं किया हो, उस श्रमणोपासक से पृथ्वी खोदते हुए किसी त्रसजीव की हिंसा हो जाए, तो भगवन्‌ ! क्या उसके व्रत (त्रसजीववध – प्रत्याख्यान) का उल्लंघन होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ
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शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 332 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणोवासए णं भंते! तहारूवं समणं वा माहणं वा फासु-एसणिज्जेणं असनपान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेमाणे किं लब्भइ? गोयमा! समणोवासए णं तहारूवं समणं वा माहणं वा फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेमाणे तहा रूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा समाहिं उप्पाएति, समाहिकारए णं तामेव समाहिं पडिलभइ। समणोवासए णं भंते! तहारूवं समणं वा माहणं वा फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेमाणे किं चयति? गोयमा! जीवियं चयति, दुच्चयं चयति, दुक्करं करेति, दुल्लहं लहइ, बोहिं बुज्झइ, तओ पच्छा सिज्झति जाव अंतं करेति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तथारूप श्रमण और माहन को प्रासुक, एषणीय, अशन, पान, खादिम और स्वादिम द्वारा प्रति – लाभित करते हुए श्रमणोपासक को क्या लाभ होता है ? गौतम ! वह श्रमणोपासक तथारूप श्रमण या माहन को समाधि उत्पन्न करता है। उन्हें समाधि प्राप्त कराने वाला श्रमणोपासक उसी समाधि को स्वयं भी प्राप्त करता है। भगवन्‌ ! तथारूप श्रमण
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शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 333 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! अकम्मस्स गती पण्णायति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! अकम्मस्स गती पण्णायति? गोयमा! निस्संगयाए, निरंगणयाए, गतिपरिणामेणं, बंधनछेदणयाए, निरिंधणयाए, पुव्वप्पओगेणं अकम्मस्स गती पण्णायति कहन्नं भंते! निस्संगयाए, निरंगणयाए, गतिपरिणामेणं अकम्मस्स गती पण्णायति? से जहानामए केइ पुरिसे सुक्कं तुंबं निच्छिड्डं निरूवहयं आनुपुव्वीए परिकम्मेमाणे-परिकम्मेमाणे दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, वेढेत्ता अट्ठहिं मट्टियालेवेहिं लिंपइ, लिंपित्ता उण्हे दलयति, भूतिं-भूतिं सुक्कं समाणं अत्थाहमतारमपोरिसियंसि उदगंसि पक्खिवेज्जा से नूनं गोयमा! से तुंबे तेसिं अट्ठण्हं मट्टियालेवाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या कर्मरहित जीव की गति होती है ? हाँ, गौतम ! अकर्म जीव की गति होती – है। भगवन्‌ ! अकर्म जीव की गति कैसे होती है ? गौतम ! निःसंगता से, नीरागता से, गतिपरिणाम से, बन्धन का छेद हो जाने से, निरिन्धता – (कर्मरूपी इन्धन से मुक्ति) होने से और पूर्वप्रयोग से कर्मरहित जीव की गति होती है। भगवन्‌ ! निःसंगता से, नीरागता से,
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शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 334 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुक्खी भंते! दुक्खेणं फुडे? अदुक्खी दुक्खेणं फुडे? गोयमा! दुक्खी दुक्खेणं फुडे, नो अदुक्खी दुक्खेणं फुडे। दुक्खी भंते! नेरइए दुक्खेणं फुडे? अदुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे? गोयमा! दुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे, नो अदुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे। एवं दंडओ जाव वेमाणियाणं। एवं पंच दंडगा नेयव्वा–१. दुक्खी दुक्खेणं फुडे २. दुक्खी दुक्खं परियायइ ३. दुक्खी दुक्खं उदीरेइ ४. दुक्खी दुक्खं वेदेति ५. दुक्खी दुक्खं निज्जरेति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या दुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है अथवा अदुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! दुःखी जीव ही दुःख से स्पृष्ट होता है, किन्तु अदुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट नहीं होता। भगवन्‌ ! क्या दुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है या अदुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! दुःखी नैरयिक ही दुःख से स्पृष्ट होता
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शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 335 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारस्स णं भंते! अणाउत्तं गच्छमाणस्स वा, चिट्ठमाणस्स वा, निसीयमाणस्स वा, तुयट्टमाणस्स वा, अणाउत्तं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं गेण्हमाणस्स वा, निक्खिवमाणस्स वा तस्स णं भंते! किं रियावहिया किरिया कज्जइ? संपराइया किरिया कज्जइ? गोयमा! नो रियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ। से केणट्ठेणं? गोयमा! जस्स णं कोह-मान-माया-लोभा वोच्छिन्ना भवंति तस्स णं रियावहिया किरिया कज्जइ, जस्स णं कोह-मान-माया -लोभा अवोच्छिन्ना भवंति तस्स णं संपराइया किरिया कज्जइ। अहासुत्तं रीयमाणस्स रियावहिया किरिया कज्जइ, उस्सुत्तं रीयमाणस्स संपराइया किरिया कज्जइ। से णं उस्सुत्तमेव

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उपयोगरहित गमन करते हुए, खड़े होते हुए, बैठते हुए या सोते हुए और इसी प्रकार बिना उपयोग के वस्त्र, पात्र, कम्बल और पादप्रोंछन ग्रहण करते हुए या रखते हुए अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है अथवा साम्परायिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! ऐसे अनगार को साम्परायिकी क्रिया लगती है। भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 336 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सइंगालस्स, सधूमस्स, संजोयणादोसदुट्ठस्स पान-भोयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? गोयमा! जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असन-पान-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! सइंगाले पान-भोयणे। जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असन-पान-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता महया अप्पत्तियं कोहकिलामं करेमाणे आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! सधूमे पान-भोयणे। जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असन-पान-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता गुणुप्पायणहेउं अन्नदव्वेणं सद्धिं संजोएत्ता आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! संजोयणादोसदुट्ठे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अंगारदोष, धूमदोष और संयोजनादोष से दूषित पान भोजन का क्या अर्थ कहा गया है ? गौतम! जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी प्रासुक और एषणीय अशन – पान – खादिम – स्वादिमरूप आहार ग्रहण करके उसमें मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और आसक्त होकर आहार करते हैं, हे गौतम ! यह अंगारदोष से दूषित आहार – पानी हैं। जो निर्ग्रन्थ अथवा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 337 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! खेत्तातिक्कंतस्स, कालातिक्कंतस्स, मग्गातिक्कंतस्स, पमाणातिक्कंतस्स पान-भोयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? गोयमा! जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असन-पान-खाइम-साइमं अणुग्गए सूरिए पडिग्गाहेत्ता उग्गए सूरिए आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! खेत्तातिक्कंते पान-भोयणे। जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असनं-पान-खाइम-साइमं पढमाए पोरिसीए पडिग्गाहेत्ता पच्छिमं पोरिसिं उवाइणावेत्ता आहारमाहारेइ एस णं गोयमा! कालातिक्कंते पान-भोयणे। जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असन-पान-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता परं अद्धजोयणमेराए वीइक्कमावेत्ता आहारमाहारेइ,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रान्त, मार्गातिक्रान्त और प्रमाणातिक्रान्त पान – भोजन का क्या अर्थ है ? गौतम ! जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी, प्रासुक और एषणीय अशन – पान – खादिम – स्वादिमरूप चतुर्विध आहार को सूर्योदय से पूर्व ग्रहण करके सूर्योदय के पश्चात्‌ उस आहार को करते हैं, तो हे गौतम ! यह क्षेत्रातिक्रान्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 338 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सत्थातीतस्स, सत्थपरिणामियस्स, एसियस्स, वेसियस्स, सामुदाणियस्स पान-भोयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? गोयमा! जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा निक्खित्तसत्थमुसले ववगयमाला-वन्नग-विलेवने ववगय-चुय-चइय-चत्तदेहं, जीव-विप्पजढं, अकयं, अकारियं, असंकप्पियं, अनाहूयं, अकीयकडं, अनुद्दिट्ठं, नव-कोडीपरिसुद्धं, दसदोसविप्पमुक्कं, उग्गमुप्पायणेसणासुपरिसुद्धं, वीतिंगालं, वीतधूमं, संजोयणा- दोसविप्पमुक्कं, असुरसुरं, अचवचवं, अदुयं, अविलंबियं, अपरिसाडिं, अक्खोवंजण वणाणुलेवणभूयं, संजमजायामायवत्तियं, संजमभारवहणट्ठयाए बिलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणेणं आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! सत्थातीतस्स,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! शस्त्रातीत, शस्त्रपरिणामित, एषित, व्येषित, सामुदायिक भिक्षारूप पान – भोजन का क्या अर्थ है? गौतम ! जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी शस्त्र और मूसलादि का त्याग किये हुए हैं, पुष्प – माला और विलेपन से रहित हैं, वे यदि उस आहार को करते हैं, जो कृमि आदि जन्तुओं से रहित, जीवच्युत और जीवविमुक्त है, जो साधु के लिए नहीं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 339 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! सव्वपाणेहिं, सव्वभूएहिं, सव्वजीवेहिं, सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स सुपच्चक्खायं भवति? दुपच्चक्खायं भवति? गोयमा! सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स सिय सुपच्चक्खायं भवति, सिय दुपच्चक्खायं भवति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स सिय सुपच्चक्खायं भवति सिय दुपच्चक्खायं भवति? गोयमा! जस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स नो एवं अभिसमन्नागयं भवति– इमे जीवा, इमे अजीवा, इमे तसा, इमे थावरा, तस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! ‘मैंने सर्व प्राण, सर्व भूत, सर्व जीव और सभी तत्त्वों की हिंसा का प्रत्याख्यान किया है’, इस प्रकार कहने वाले के सुप्रत्याख्यान होता है या दुष्प्रत्याख्यान होता है ? गौतम ! ‘मैंने सभी प्राण यावत्‌ सभी तत्त्वों की हिंसा का प्रत्याख्यान किया है’, ऐसा कहने वाले के कदाचित्‌ सुप्रत्याख्यान होता है कदाचित्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 340 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! पच्चक्खाणे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पच्चक्खाणे पन्नत्ते, तं जहा–मूलगुणपच्चक्खाणे य, उत्तरगुणपच्चक्खाणे य। मूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सव्वमूलगुणपच्चक्खाणे य, देसमूलगुणपच्चक्खाणे य। सव्वमूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिन्नादानाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं। देसमूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! प्रत्याख्यान दो प्रकार का कहा गया है। मूलगुणप्रत्याख्यान और उत्तरगुणप्रत्याख्यान। भगवन्‌ ! मूलगुणप्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! दो प्रकार का – सर्वमूलगुणप्रत्या – ख्यान और देशमूलगुणप्रत्याख्यान। भगवन्‌ ! सर्वमूलगुणप्रत्याख्यान
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 342 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देसुत्तरगुणपच्चक्खाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. दिसिव्वयं २. उवभोगपरिभोगपरिमाणं ३. अनत्थदंड-वेरमणं ४. सामाइयं ५. देसावगासियं ६. पोसहोववासो ७. अतिहिसंविभा गो। अपच्छिममारणंतिय-संलेहणा-ज्झूसणाराहणता।

Translated Sutra: देश – उत्तरगुणप्रत्याख्यान कितने प्रकार का है ? गौतम ! सात प्रकार का – दिग्व्रत, उपभोग – परिभोगपरिणाम अनर्थदण्डविरमण, सामायिक, देशावकाशिक, पौषधोपवास, अतिथि – संविभाग तथा अपश्चिम मारणान्तिक – संलेखना – जोषणा – आराधना।
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