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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-६ स्वप्न Hindi 679 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसि इमे दस महासुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तं जहा. एगं णं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुविणे पराजियं पासित्ता णं पडिबुद्धे. एगं णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे. एगं णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे. एगं णं महं दामदुगं सव्वरयणामयं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे. एगं णं महं सेयं गोवग्गं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे. एगं णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमियं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे. एगं णं महं सागरं उम्मीवीयीसहस्सकलियं

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर अपने छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में इन दस महास्वप्नों को देखकर जागृत हुए () एक महान घोर और तेजस्वी रूप वाले ताड़वृक्ष के समान लम्बे पिशाच को स्वप्न में पराजित किया () श्वेत पाँखों वाले एक महान्‌ पुंस्कोकिल का स्वप्न () चित्र विचित्र पंखों वाले पुंस्कोकिल का स्वप्न () स्वप्न में
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-६ स्वप्न Hindi 680 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं हयपंतिं वा गयपंतिं वा नरपंतिं वा किन्नरपंतिं वा किंपुरिसपंतिं वा महोरग-पंतिं वा गंधव्वपंतिं वा वसभपंतिं वा पासमाणे पासति, द्रुहमाणे द्रुहति, द्रूढमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं दामिणिं पाईणपडिणायतं दुहओ समुद्दे पुट्ठं पासमाणे पासति, संवेल्लेमाणे संवेल्लेइ, संवेल्लियमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं रज्जुं पाईणपडिणायतं

Translated Sutra: कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में एक महान्‌ अश्वपंक्ति, गजपंक्ति अथवा यावत्‌ वृषभ पंक्ति का अवलोकन करता हुआ देखे, और उस पर चढ़ने का प्रयत्न करता हुआ चढ़े तथा अपने आपको उस पर चढ़ा हुआ माने ऐसा स्वप्न देखकर तुरन्त जागृत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत्‌ सभी दुःखों का अन्त करता है कोई स्त्री या पुरुष
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-६ स्वप्न Hindi 681 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! कोट्ठपुडाण वा जाव केयइपुडाण वा अणुवायंसि उब्भिज्जमाणाण वा निब्भिज्जमाणाण वा उक्किरिज्जमाणाण वा विक्किरिज्जमाणाण वा ठाणाओ वा ठाणं संकामिज्जमाणाणं किं कोट्ठे वाति जाव केयई वाति? गोयमा! नो कोट्ठे वाति जाव नो केयई वाति, घाणसहगया पोग्गला वांति सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कोई व्यक्ति यदि कोष्ठपुटों यावत्‌ केतकीपुटों को खोले हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेकर जाता है और अनुकूल हवा चलती हो तो क्या उसका गन्ध बहता है अथवा कोष्ठपुट यावत्‌ केतकीपुट वायु में बहता है? गौतम ! कोष्ठपुट यावत्‌ केतकीपुट नहीं बहते, किन्तु घ्राण सहगामी गन्धगुणोपेत पुद्‌गल बहते हैं हे भगवन्‌!
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-७ उपयोग Hindi 682 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! उवओगे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे उवओगे पन्नत्ते, एवं जहा उवओगपदं पन्नवणाए तहेव निरवसेसं नेयव्वं, पासणयापदं नेयव्वं सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उपयोग कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का प्रज्ञापनासूत्र का उपयोग पद तथा पश्यत्तापद कहना हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-८ लोक Hindi 683 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केमहालए णं भंते! लोए पन्नत्ते? गोयमा! महतिमहालए लोए पन्नत्ते, जहा बारसमसए तहेव जाव असंखेज्जाओ जोयण-कोडाकोडीओ परिक्खेवेणं लोयस्स णं भंते! पुरत्थिमिल्ले चरिमंते किं जीवा, जीवदेसा, जीवपदेसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपदेसा? गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि जे जीवदेसा ते नियमं एगिंदियदेसा , अहवा एगिंदियदेसा बेइंदियस्स देसेएवं जहा दसमसए अग्गेयी दिसा तहेव, नवरंदेसेसु अनिंदियाण -इल्लविरहिओ जे अरूवी अजीवा ते छव्विहा, अद्धासमयो नत्थि सेसं तं चेव निरवसेसं लोगस्स णं भंते! दाहिणिल्ले चरिमंते किं जीवा? एवं चेव एवं पच्चत्थिमिल्ले

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोक कितना विशाल कहा गया है ? गौतम ! लोक अत्यन्त विशाल कहा गया है इसकी समस्त वक्तव्यता बारहवें शतक अनुसार कहना भगवन्‌ ! क्या लोक के पूर्वीय चरमान्त में जीव हैं, जीवदेश हैं, जीवप्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीव के देश हैं और अजीव के प्रदेश हैं ? गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, परन्तु जीव के देश हैं, जीव के प्रदेश हैं, अजीव
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-८ लोक Hindi 684 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! लोगस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ पच्चत्थिमिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छति? पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ पुरत्थिमिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छति? दाहिणिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरिल्लं चरिमंतं एगसम-एणं गच्छति? उत्तरिल्लाओ चरिमंताओ दाहिणिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छति? उवरिल्लाओ चरिमंताओ हेट्ठिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छति? हेट्ठिल्लाओ चरिमंताओ उवरिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छति? हंता गोयमा! परमाणुपोग्गले णं लोगस्स पुरत्थिमिल्लं तं चेव जाव उवरिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या परमाणु पुद्‌गल एक समय में लोक के पूर्वीय चरमान्त से पश्चिमीय चरमान्त में, पश्चिमीय चरमान्त से पूर्वीय चरमान्त में, दक्षिणी चरमान्त से उत्तरीय चरमान्त में, उत्तरीय चरमान्त से दक्षिणी चरमान्त में, ऊपर के चरमान्त से नीचे के चरमान्त में और नीचे के चरमान्त से ऊपर के चरमान्त में जाता है ? हाँ, गौतम
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-८ लोक Hindi 685 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! वासं वासति, वासं नो वासतीति हत्थं वा पायं वा बाहं वा ऊरुं वा आउंटावेमाणे वा पसारेमाणे वा कतिकिरिए? गोयमा! जावं णं से पुरिसे वासं वासति, वासं नो वासतीति हत्थं वा पायं वा वाहं वा ऊरुं वा आउंटावेति वा पसारेति वा, तावं णं से पुरिसे काइयाए अहिगरणियाए पाओसियाए पारितावणियाए पाणातिवायकिरियाएपंचहिं किरियाहिं पुट्ठे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वर्षा बरस रही है अथवा नहीं बरस रही है ? यह जानने के लिए कोई पुरुष अपने हाथ, पैर, बाहु या ऊरु को सिकोड़े या फैलाए तो उसे कितनी क्रियाएं लगती हैं ? गौतम ! उसे कायिकी आदि पाँचों क्रियाएं लगती हैं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-८ लोक Hindi 686 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महिड्ढिए जाव महेसक्खे लोगंते ठिच्चा पभू अलोगंसि हत्थं वा पायं वा बाहं वा ऊरुं वा आउंटावे-त्तए वा पसारेत्तए वा? नो इणट्ठे समट्ठे से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइदेवे णं महिड्ढिए जाव महेसक्खे लोगंते ठिच्चा नो पभू अलोगंसि हत्थं वा पायं वा बाहं वा ऊरुं वा आउंटावेत्तए वा पसारेत्तए वा? गोयमा! जीवाणं आहारोवचिया पोग्गला, बोंदिचिया पोग्गला, कलेवरचिया पोग्गला पोग्गलामेव एप्प जीवाण अजीवाण गतिपरियाए आहिज्जइ अलोए णं नेवत्थि जीवा, नेवत्थि पोग्गला से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइदेवे महिड्ढिए जाव महेसक्खे लोगंते ठिच्चा नो पभू आलोगंसि हत्थं वा पायं वा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या महर्द्धिक यावत्‌ महासुखसम्पन्न देव लोकान्त में रहकर अलोक में अपने हाथ यावत्‌ ऊरु को सिकोड़ने और पसारने में समर्थ है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं भगवन्‌ ! इसका क्या कारण है ? गौतम ! जीवों के अनुगत आहारोपचित पुद्‌गल, शरीरोपचित पुद्‌गल और कलेवरोपचित पुद्‌गल होते हैं तथा पुद्‌गलों के आश्रित ही जीवों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-९ बलीन्द्र Hindi 687 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहिण्णं भंते! बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तिरियमसंखेज्जे जहेव चमरस्स जाव बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो रुयगिंदे नामं उप्पायपव्वए पन्नत्ते सत्तरस एक्कवीसे जोयणसए एवं पमाणं जहेव तिगिच्छकूडस्स पासायवडेंगस्स वि तं चेव पमाणं, सीहासणं सपरिवारं बलिस्स परियारेणं, अट्ठो तहेव, नवरंरुयगिंदप्पभाइंरुयगिंदप्पभाइंरुयगिंदप्पभाइं सेसं तं चेव जाव बलिचंचाए रायहानीए अन्नेसिं जाव रुयगिंदस्स णं उप्पायपव्वयस्स उत्तरे णं छक्कोडिसए तहेव जाव

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की सुधर्मा सभा कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में तीरछे असंख्येय द्वीपसमुद्रों को उल्लंघ कर इत्यादि, चमरेन्द्र की वक्तव्यता अनुसार कहना; यावत्‌ (अरुणवरद्वीप की बाह्य वेदिका से अरुणवरद्वीप समुद्र में) बयालीस हजार योजन अवगाहन करने के बाद वैरोचनेन्द्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-१० अवधिज्ञान Hindi 688 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! ओही पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा ओही पन्नत्ता ओहीपदं निरवसेसं भाणियव्वं सेवं भंते! सेवं भंते! जाव विहरइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अवधिज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! दो प्रकार का यहाँ अवधिपद सम्पूर्ण कहना चाहिए हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-११ थी १४ Hindi 689 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दीवकुमारा णं भंते! सव्वे समाहारा? सव्वे समुस्सासनिस्सासा? नो इणट्ठे समट्ठे एवं जहा पढमसए बितियउद्देसए दीवकुमाराणं वत्तव्वया तहेव जाव समाउया, समुस्सासनिस्सासा दीवकुमाराणं भंते! कति लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहाकण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा, तेउलेस्सा एएसि णं भंते! दीवकुमाराणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा दीवकुमारा तेउलेस्सा, काउलेस्सा असंखेज्जगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया एएसि णं भंते! दीवकुमाराणं कण्हलेसाणं जाव तेउलेस्साण

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सभी द्वीपकुमार समान आहार और समान निःश्वास वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है प्रथम शतक के द्वीतिय उद्देशक में द्वीपकुमारों के अनुसार कितने ही समआयुष्य वाले और सम उच्छ्‌वास निःश्वास वाले होते हैं, तक कहना चाहिए भगवन्‌ ! द्वीपकुमारों में कितनी लेश्याएं हैं ? चार कृष्ण यावत्‌ तेजो भगवन्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-११ थी १४ Hindi 690 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उदहिकुमारा णं भंते! सव्वे समाहारा? एवं चेव सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सभी उदधिकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि प्रश्न गौतम ! पूर्ववत्‌ कहना चाहिए हे भगवन्‌ यह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-११ थी १४ Hindi 691 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं दिसाकुमारा वि

Translated Sutra: द्वीपकुमारों के अनुसार दिशाकुमारों के विषय में भी कहना चाहिए
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-११ थी १४ Hindi 692 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं थणियकुमारा वि सेवं भंते! सेवं भंते! जाव विहरइ

Translated Sutra: द्वीपकुमारों के अनुसार स्तनितकुमारों के विषय में भी कहना चाहिए हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, भगवन् यह इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-१ कुंजर Hindi 693 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नमो सुयदेवयाए भगवईए

Translated Sutra: भगवती श्रुतदेवता को नमस्कार हो
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-१ कुंजर Hindi 694 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] . कुंजर . संजय . सेलेसि, . किरिय . ईसान -. पुढवि -. दग १०-११. वाऊ १२. एगिंदिय १३. नाग १४. सुवण्ण, १५. विज्जु १६-१७. वातग्गि सत्तरसे

Translated Sutra: (सत्तरहवें शतक में) सत्तरह उद्देशक हैं कुञ्जर, संयत, शैलेशी, क्रिया, ईशान, पृथ्वी, उदक, वायु, एकेन्द्रिय, नाग, सुवर्ण, विद्युत, वायुकुमार और अग्निकुमार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-१ कुंजर Hindi 695 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी उदायी णं भंते! हत्थिराया कओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता उदायि-हत्थिरायत्ताए उववन्ने? गोयमा! असुरकुमारेहिंतो देवेहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता उदायिहत्थिरायत्ताए उववन्ने उदायी णं भंते! हत्थिराया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्ठितियंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिंति भूयानंदे णं भंते! हत्थिराया कओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा भगवन्‌ ! उदायी नामक प्रधान हस्तिराज, किस गति से मरकर बिना अन्तर के यहाँ हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ ? गौतम ! वह असुरकुमार देवों में से मरकर सीधा यहाँ उदायी हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ है भगवन्‌ ! उदायी हस्तिराज यहाँ से काल के अवसर पर काल करके कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ?
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-१ कुंजर Hindi 696 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! तलमारुहइ, आरुहित्ता तलाओ तलफलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कतिकिरिए? गोयमा! जावं णं से पुरिसे तलमारुहइ, आरुहित्ता तलाओ तलफलं पचालेइ वा पवाडेइ वा तावं णं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठे जेसिं पि णं जीवाणं सरीरेहिंतो तले निव्वत्तिए, तलफले निव्वत्तिए ते वि णं जीवा काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा अहे णं भंते! से तलफले अप्पणो गरुयत्ताए भारियत्ताए गरुयसंभारियत्ताए अहे वीससाए पच्चोवयमाणे जाइं तत्थ पाणाइं जाव जीवियाओ ववरोवेति, तए णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए? गोयमा! जावं णं से तलफले अप्पणो गरुयत्ताए जाव जीवियाओ ववरोवेति तावं णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कोई पुरुष, ताड़ के वृक्ष पर चढ़े और फिर उस ताड़ से ताड़ के फल को हिलाए अथवा गिराए तो उस पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? गौतम ! उस पुरुष को कायिकी आदि पाँचों क्रियाएं लगती हैं जिन जीवों के शरीर से ताड़ का वृक्ष और ताड़ का फल उत्पन्न हुआ है, उन जीवों को भी कायिकी आदि पाँचों क्रियाएं लगती हैं भगवन्‌ ! यदि वह ताड़फल
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-१ कुंजर Hindi 697 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! पंच सरीरगा पन्नत्ता, तं जहाओरालिए जाव कम्मए कति णं भंते! इंदिया पन्नत्ता? गोयमा! पंच इंदिया पन्नत्ता, तं जहासोइंदिए जाव फासिंदिए कतिविहे णं भंते! जोए पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे जोए पन्नत्ते, तं जहामणजोए, वइजोए, कायजोए जीवे णं भंते! ओरालियसरीरं निव्वत्तेमाणे कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए एवं पुढविकाइए वि एवं जाव मनुस्से जीवा णं भंते! ओरालियसरीरं निव्वत्तेमाणा कतिकिरिया? गोयमा! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि एवं पुढविकाइया वि एवं जाव मनुस्सा एवं वेउव्वियसरीरेण वि दो दंडगा, नवरंजस्स अत्थि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! शरीर कितने कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच, यथा औदारिक यावत्‌ कार्मण शरीर भगवन्‌ ! इन्द्रियाँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! पाँच, यथा श्रोत्रेन्द्रिय यावत्‌ स्पर्शेन्द्रिय भगवन्‌ ! योग कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! तीन प्रकार का यथा मनोयोग, वचनयोग और काययोग भगवन्‌ ! औदारिकशरीर को निष्पन्न करता हुआ जीव कितनी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-१ कुंजर Hindi 698 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! भावे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे भावे पन्नत्ते, तं० ओदइए, ओवसमिए खइए, खओवसमिए, पारिणामिए, सन्निवाइए से किं तं ओदइए? ओदइए भावे दुविहे पन्नत्ते, तं जहाउदए , उदयनिप्फन्ने एवं एएणं अभिलावेणं जहा अनुओगदारे छन्नामं तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव सेत्तं सन्निवाइए भावे सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! भाव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! छह प्रकार के यथा औदयिक यावत्‌ सान्निपातिक भगवन्‌ ! औदयिक भाव कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का यथा उदय और उदयनिष्पन्न इस प्रकार अनुयोगद्वार सूत्रानुसार छह नामों की समग्र वक्तव्यता कहना हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-२ संयत Hindi 699 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! संजत-विरत-पडिहत-पच्चक्खातपावकम्मे धम्मे ठिते? अस्संजत-अविरत-अपडिहत-अपच्चक्खात-पावकम्मे अधम्मे ठिते? संजतासंजते धम्माधम्मे ठिते? हंता गोयमा! संजत-विरत-पडिहत-पच्चक्खातपावकम्मे धम्मे ठिते, अस्संजत-अविरत-अपडिहत-अपच्चक्खातपावकम्मे अधम्मे ठिते, संजतासंजते धम्माधम्मे ठिते एयंसि णं भंते! धम्मंसि वा, अधम्मंसि वा, धम्माधम्मंसि वा चक्किया केइ आसइत्तए वा, सइतए वा, चिट्ठइत्तए वा, निसीइत्तए वा तुयट्टित्तए वा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे से केणं खाइं अट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ जाव संजतासंजते धम्माधम्मे ठिते? गोयमा! संजत-विरत-पडिहत-पच्चक्खातापावकम्मे धम्मे ठिते,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या संयत, प्राणातिपातादि से विरत, जिसने पापकर्म का प्रतिघात और प्रत्याख्यान किया है, ऐसा जीव धर्म में स्थित है? तथा असंयत, अविरत और पापकर्म का प्रतिघात एवं प्रत्याख्यान नहीं करनेवाला जीव अधर्ममें स्थित है ? एवं संयतासंयत जीव धर्माधर्ममें स्थित होता है ? हाँ, गौतम ! संयत विरत यावत्‌ धर्माधर्म में स्थित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-२ संयत Hindi 700 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंतिएवं खलु समणा पंडिया, समणोवासया बालपंडिया, जस्स णं एगपाणाए वि दंडे अनिक्खित्ते से णं एगंतबाले त्ति वत्तव्वं सिया से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव एगंतबाले त्ति वत्तव्वं सिया, जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमिएवं खलु समणा पंडिया, समणोवासगा बालपंडिया, जस्स णं एगपाणाए वि दंडे निक्खित्ते से णं नो एगंतबाले त्ति वत्तव्वं सिया जीवा णं भंते! किं बाला? पंडिया? बालपंडिया? गोयमा! बाला वि, पंडिया वि, बालपंडिया वि नेरइयाणंपुच्छा गोयमा! नेरइया बाला, नो

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि (हमारे मत में) ऐसा है कि श्रमण पण्डित हैं, श्रमणोपासक बाल पण्डित हैं और जिस मनुष्य ने एक भी प्राणी का दण्ड छोड़ा हुआ नहीं है, उसे एकान्त बाल कहना चाहिए; तो हे भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिकों का यह कथन कैसे यथार्थ हो सकता है ? गौतम ! अन्यतीर्थिकों ने जो
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-२ संयत Hindi 701 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंतिएवं खलु पाणातिवाए, मुसावाए जाव मिच्छादंसणसल्ले वट्ट माणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया पाणाइवायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया उप्पत्तियाए वेणइयाए कम्मयाए पारिणामियाए वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया ओग्गहे, ईहा-अवाए धारणाए वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया नेरइयत्ते तिरिक्ख-मनुस्स-देवत्ते वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि प्राणातिपात, मृषावाद यावत्‌ मिथ्यादर्शन शल्य में प्रवृत्त हुए प्राणी का जीव अन्य है और उस जीव से जीवात्मा अन्य है प्राणातिपात विरमण यावत्‌ परिग्रह विरमण में, क्रोधाविवेक यावत्‌ मिथ्यादर्शन शल्य त्याग में प्रवर्तमान प्राणी का
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-२ संयत Hindi 702 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महिड्ढिए जाव महेसक्खे पुव्वामेव रूवी भवित्ता पभू अरूविं विउव्वित्ता णं चिट्ठित्तए? नो इणट्ठे समट्ठे से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइदेवे णं महिड्ढिए जाव महेसक्खे पुव्वामेव रूवी भवित्ता नो पभू अरूविं विउव्वित्ता णं चिट्ठित्तए? गोयमा! अहमेयं जाणामि, अहमेयं पासामि, अहमेयं बुज्झामि, अहमेयं अभिसमण्णागच्छामि, मए एयं नायं, मए एयं दिट्ठं, मम एयं बुद्धं, मए एयं अभिसमण्णागयंजण्णं तहागयस्स जीवस्स सरूविस्स, सकम्मस्स, सरागस्स, सवेदस्स, समोहस्स, सलेसस्स, ससरीरस्स, ताओ सरीराओ अविप्पमुक्कस्स एवं पण्णायति, तं जहाकालत्ते वा जाव सुक्किलत्ते वा, सुब्भिगंधत्ते

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या महर्द्धिक यावत्‌ महासुख सम्पन्न देव, पहले रूपी होकर बाद में अरूपी की विक्रिया करने में समर्थ है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है भगवन्‌ ! ऐसा क्यों कहते हैं ? गौतम ! मैं यह जानता हूँ, मैं यह देखता हूँ, मैं यह निश्चित जानता हूँ, मैं यह सर्वथा जानता हूँ; मैंने यह जाना है, मैंने यह देखा है, मैंने यह निश्चित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-३ शैलेषी Hindi 703 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सेलेसिं पडिवन्नए णं भंते! अनगारे सया समियं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमति? नो इणट्ठे समट्ठे, नन्नत्थेगेणं परप्पयोगेणं कतिविहा णं भंते! एयणा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहादव्वेयणा, खेत्तेयणा, कालेयणा, भवेयणा, भावेयणा दव्वेयणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहानेरइयदव्वेयणा, तिरिक्खजोणियदव्वेयणा, मनुस्सदव्वेयणा, देवदव्वेयणा से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइनेरइयदव्वेयणा-नेरइयदव्वेयणा? गोयमा! जण्णं नेरइया नेरइयदव्वे वट्टिंसु वा, वट्टंति वा, वट्टिस्संति वा ते णं तत्थ नेरइया नेरइयदव्वे वट्टमाणा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! शैलेशी अवस्था प्राप्त अनगार क्या सदा निरन्तर काँपता है, विशेषरूप से काँपता है, यावत्‌ उन उन भावों (परिणमनों) में परिणमता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है सिवाय एक परप्रयोग के भगवन्‌ ! एजना कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! पाँच प्रकार की यथा द्रव्य एजना, क्षेत्र एजना, काल एजना, भव एजना और भाव एजना भगवन्‌
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शतक-१७

उद्देशक-३ शैलेषी Hindi 704 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! चलणा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा चलणा पन्नत्ता, तं जहासरीरचलणा, इंदियचलणा, जोगचलणा सरीरचलणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहाओरालियसरीरचलणा जाव कम्मगसरीरचलणा इंदियचलणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहासोइंदियचलणा जाव फासिंदियचलणा जोगचलणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहामनजोगचलणा, वइजोगचलणा, कायजोगचलणा से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइओरालियसरीरचलणा-ओरालियसरीरचलणा? गोयमा! जण्णं जीवा ओरालियसरीरे वट्टमाणा ओरालियसरीरपायोग्गाइं दव्वाइं ओरालियसरीरत्ताए परिणामेमाणा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! चलना कितने प्रकार की है ? गौतम ! चलना तीन प्रकार की है, यथा शरीरचलना, इन्द्रियचलना और योगचलना भगवन्‌ ! शरीरचलना कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की यथा औदारिकशरीर चलना, यावत्‌ कार्मणशरीरचलना भगवन्‌ ! इन्द्रियचलना कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! पाँच प्रकार की यथा श्रोत्रेन्द्रियचलना यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-३ शैलेषी Hindi 705 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! संवेगे, निव्वेए, गुरुसाहम्मियसुस्सूसणया, आलोयणया, निंदणया, गरहणया, खमावणया, विउसमणया, सुयसहायता भावे अप्पडिबद्धया, विणिवट्टणया, विवित्तसयनासनसेवणया, सोइंदियसंवरे जाव फासिंदियसंवरे, जोगपच्चक्खाणे, सरीरपच्चक्खाणे, कसायपच्चक्खाणे, संभोगपच्चक्खाणे, उवहिपच्चक्खाणे, भत्तपच्चक्खाणे, खमा, विरागया, भावसच्चे, जोगसच्चे, करणसच्चे, मणसमन्नाहरणया, वइसमन्नाहरणया, कायसमन्नाहरणया, कोहविवेगे जाव मिच्छा-दंसणसल्लविवेगे, नाणसंपन्नया, दंसणसंपन्नया, चरित्तसंपन्नया वेदणअहियासणया, मारणंतिय-अहियासणया एए णं किंपज्जवसाणफला पन्नत्ता समणाउसो! गोयमा! संवेगे, निव्वेए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! संवेग, निर्वेद, गुरु साधर्मिक शुश्रूषा, आलोचना, निन्दना, गर्हणा, क्षमापना, श्रुत सहायता, व्युपशमना, भाव में अप्रतिबद्धता, विनिवर्त्तना, विविक्तशयनासनसेवनता, श्रोत्रेन्द्रिय संवर यावत्‌ स्पर्शेन्द्रिय संवर, योग प्रत्याख्यान, शरीर प्रत्याख्यान, कषायप्रत्याख्यान, सम्भोग प्रत्याख्यान,
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शतक-१७

उद्देशक-४ क्रिया Hindi 706 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे जाव एवं वयासीअत्थि णं भंते! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ? हंता अत्थि सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ? अपुट्ठा कज्जइ? गोयमा! पुट्ठा कज्जइ, नो अपुट्ठा कज्जइ जाव निव्वाघाएणं छद्दिसिं, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं, सिय चउदिसिं, सिय पंचदिसिं सा भंते! किं कडा कज्जइ? अकडा कज्जइ? गोयमा! कड कज्जइ, नो अकडा कज्जइ सा भंते! किं अत्तकडा कज्जइ? परकडा कज्जइ? तदुभयकडा कज्जइ? गोयमा! अत्तकडा कज्जइ, नो परकडा कज्जइ, नो तदुभयकडा कज्जइ सा भंते! किं आनुपुव्विं कडा कज्जइ? अनानुपुव्विं कडा कज्जइ? गोयमा! आनुपुव्विं कडा कज्जइ, नो अनानुपुव्विं कडा कज्जइ जा कडा

Translated Sutra: उस काल उस समय में राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा भगवन्‌ ! क्या जीव प्राणातिपातिक्रिया करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं भगवन्‌ ! वह स्पृष्ट की जाती है या अस्पृष्ट की जाती है ? गौतम ! वह स्पृष्ट की जाती है, अस्पृष्ट नहीं की जाती; इत्यादि प्रथम शतक के छठे उद्देशक के अनुसार, वह क्रिया अनुक्रम से की जाती है, बिना अनुक्रम के
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शतक-१७

उद्देशक-४ क्रिया Hindi 707 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: जीवाणं भंते! किं अत्तकडे दुक्खे? परकडे दुक्खे? तदुभयकडे दुक्खे? गोयमा! अत्तकडे दुक्खे, नो परकडे दुक्खे, नो तदुभयकडे दुक्खे एवं जाव वेमाणियाणं जीवा णं भंते! किं अत्तकडं दुक्खं वेदेति? परकडं दुक्खं वेदेति? तदुभयकडं दुक्खं वेदेति? गोयमा! अत्तकडं दुक्खं वेदेंति, नो परकडं दुक्खं वेदेंति, नो तदुभयकडं दुक्खं वेदेंति एवं जाव वेमाणियाणं जीवाणं भंते! किं अत्तकडा वेयणा? परकडा वेयणा? तदुभयकडा वेयणा? गोयमा! अत्तकडा वेयणा, नो परकडा वेयणा, नो तदुभयकडा वेयणा एवं जाव वेमाणियाणं जीवा णं भंते! किं अत्तकडं वेयणं वेदेंति? परकडं वेयणं वेदेंति? तदुभयकडं वेयणं वेदेंति? गोयमा! जीवा अत्तकडं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीवों का दुःख आत्मकृत है, परकृत है, अथवा उभयकृत है ? गौतम ! (जीवों का) दुःख आत्म कृत है, परकृत नहीं और उभयकृत है इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना चाहिए भगवन्‌ ! जीव क्या आत्म कृत दुःख वेदते हैं, परकृत दुःख वेदते हैं, या उभयकृत दुःख वेदते हैं ? गौतम ! जीव आत्मकृत दुःख वेदते हैं, परकृत दुःख नहीं वेदते और उभयकृत
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शतक-१७

उद्देशक-५ ईशान Hindi 708 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहिं णं भंते! ईसानस्स देविंदस्स देवरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं जहा ठाणपदे जाव मज्झे ईसानवडेंसए से णं ईसानवडेंसए महाविमाने अद्धतेरसजोयणसय-सहस्साइंएवं जहा दसमसए सक्कविमान-वत्तव्वया सा इह वि ईसानस्स निरवसेसा भाणियव्वा जाव आयरक्ख त्ति ठिती सातिरेगाइं दो सागरोवमाइं, सेसं तं चेव जाव ईसाने देविंदे देवराया, ईसाने देविंदे देवराया सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देवेन्द्र देवराज ईशान की सुधर्मा सभा कहाँ कही है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर पर्वत के उत्तर में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अत्यन्त सम रमणीय भूभाग से ऊपर चन्द्र और सूर्य का अतिक्रमण करके आगे जाने पर इत्यादि वर्णन यावत्‌ प्रज्ञापना सूत्र के स्थान पद के अनुसार, यावत्‌ मध्य भाग में ईशानावतंसक
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शतक-१७

उद्देशक-६ पृथ्वीकायिक Hindi 709 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढविक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा? पुव्विं संपाउणित्ता पच्छा उववज्जेज्जा? गोयमा! पुव्विं वा उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा, पुव्विं वा संपाउणित्ता पच्छा उववज्जेज्जा से केणट्ठेणं जाव पच्छा उववज्जेज्जा? गोयमा! पुढविक्काइयाणं तओ समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहावेदनासमुग्घाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए मारणंति-यसमुग्घाएणं समोहण्णमाणे देसेण वा समोहण्णति, सव्वेण वा समोहण्णति, देसेण वा समोहण्णमाणे पुव्विं संपाउणित्ता

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी में मरण समुद्‌घात करके सौधर्मकल्प में पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे आहार ग्रहण करते हैं, अथवा पहले आहार ग्रहण करते हैं और पीछे उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे पुद्‌गल ग्रहण करते हैं; अथवा
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शतक-१७

उद्देशक-७ पृथ्वीकायिक Hindi 710 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइए णं भंते! सोहम्मे कप्पे समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुढविक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा? सेसं तं चेव जहा रयणप्पभाए पुढविक्काइए सव्वकप्पेसु जाव ईसिपब्भाराए ताव उववाइओ, एवं सोहम्मपुढविक्काइओ वि सत्तसु वि पुढवीसु उववाएयव्वो जाव अहेसत्तमाए एवं जहा सोहम्मपुढविकाइओ सव्वपुढवीसु उववाइओ, एवं जाव ईसिंपब्भारापुढविक्काइओ सव्वपुढवीसु उववाएयव्वो जाव अहेसत्तमाए सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो पृथ्वीकायिक जीव, सौधर्मकल्प में मरण समुद्‌घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी में पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य है, वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे आहार (पुद्‌गल) ग्रहण करते हैं अथवा पहले आहार (पुद्‌गल) ग्रहण करते हैं और पीछे उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के पृथ्वीकायिक जीवों यावत्‌
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शतक-१७

उद्देशक-८ अप्कायिक Hindi 711 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आउक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे आउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए? एवं जहा पुढविक्काइओ तहा आउक्काइओ वि सव्वकप्पेसु जाव ईसिंपब्भाराए तहेव उववाएयव्वो एवं जहा रयणप्पभआउक्काइओ उववाइओ तहा जाव अहेसत्तमआउक्काइओ उववाएयव्वो जाव ईसिंपब्भाराए सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो अप्कायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी में मरण समुद्‌घात करके सौधर्मकल्प में अप्कायिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य हैं इत्यादि प्रश्न गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के अनुसार अप्कायिक जीवों के विषय में सभी कल्पों में यावत्‌ ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक उत्पाद कहना चाहिए रत्नप्रभापृथ्वी के अप्कायिक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-९ अप्कायिक Hindi 712 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आउक्काइए णं भंते! सोहम्मे कप्पे समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घनोदहिवलएसु आउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते? सेसं तं चेव, एवं जाव अहेसत्तमाए जहा सोहम्मआउक्काइओ एवं जाव ईसिंपब्भारा-आउक्काइओ जाव अहेसत्तमाए उववाएयव्वो सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो अप्कायिक जीव, सौधर्मकल्प में मरण समुद्‌घात करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनोदधि वलयों में अप्कायिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य हैं इत्यादि प्रश्न गौतम ! शेष सभी पूर्ववत्‌ जिस प्रकार सौधर्मकल्प के अप्कायिक जीवों का नरक पृथ्वीयों में उत्पाद कहा, उसी प्रकार ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक के अप्कायिक
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शतक-१७

उद्देशक-१० ११ वायुकायिक Hindi 713 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वाउक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए जाव जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते? जहा पुढविक्काइओ तहा वाउक्काइओ वि, नवरंवाउक्काइयाणं चत्तारि समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहावेदनासमुग्घाए जाव वेउव्वियसमुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए णं समोहण्णमाणे देसेण वा समोहण्णइ, सेसं तं चेव जाव अहेसत्तमाए समोहओ ईसिंपब्भाराए उववाएयव्वो सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो वायुकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी में मरण समुद्‌घात करके सौधर्मकल्प में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य हैं, इत्यादि प्रश्न गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के समान वायुकायिक जीवों का भी कथन करना चाहिए विशेषता यह है कि वायुकायिक जीवों में चार समुद्‌घात कहे गए हैं, यथा वेदनासमुद्‌घात यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-१० ११ वायुकायिक Hindi 714 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वाउक्काइए णं भंते! सोहम्मे कप्पे समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घनवाए, तनुवाए घनवायवलएसु, तणुवायवलएसु वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते? सेसं तं चेव एवं जहा सोहम्मे वाउक्काइओ सत्तसु वि पुढवीसु उववाइओ एवं जाव ईसिंपब्भारावाउक्काइओ अहेसत्तमाए जाव उववाएयव्वो सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो वायुकायिक जीव, सौधर्मकल्प में समुद्‌घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी के घनवात, तनुवात, घनवातवलयों और तनुवातवलयों में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य हैं इत्यादि पूर्ववत्‌ प्रश्न गौतम ! शेष सब पूर्ववत्‌ कहना चाहिए जिस प्रकार सौधर्मकल्प के वायुकायिक जीवों का उत्पाद सातों नरकपृथ्वीयों में
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शतक-१७

उद्देशक-१२ एकेन्द्रिय Hindi 715 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगिंदिया णं भंते! सव्वे समहारा? एवं जहा पढमसए बितियउद्देसए पुढविक्काइयाणं वत्तव्वया भणिया सा चेव एगिंदियाणं इह भाणियव्वा जाव समाउया, समोववन्नगा एगिंदियाणं भंते! कति लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहाकण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा तेउलेस्सा एएसि णं भंते! एगिंदियाणं कण्हलेस्साणं नीललेस्साणं काउलेस्साणं तेउलेस्साण कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा एगिंदिया तेउलेस्सा, काउलेस्सा अनंतगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्ह-लेस्सा विसेसाहिया एएसि णं भंते! एगिंदियाणं कण्हलेसाणं इड्ढी? जहेव

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सभी एकेन्द्रिय जीव समान आहार वाले हैं ? सभी समान शरीर वाले हैं इत्यादि पूर्ववत्‌ प्रश्न गौतम ! प्रथम शतक के द्वीतिय उद्देशकमें पृथ्वीकायिक जीवों के अनुसार यहाँ एकेन्द्रिय जीवों के विषयमें कहना भगवन्‌ ! एकेन्द्रिय जीवों में कितनी लेश्याएं कही गई है ? गौतम ! चार लेश्याएं कही गई है यथा कृष्ण
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-१३ थी १७ Hindi 716 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नागकुमारा णं भंते! सव्वे समाहारा? जहा सोलसमसए दीवकुमारुद्देसे तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव इड्ढी सेवं भंते! सेवं भंते! जाव विहरइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सभी नागकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत्‌ प्रश्न गौतम ! जैसे सोलहवें शतक के द्वीपकुमार उद्देशक में कहा है, उसी प्रकार सब कथन, ऋद्धि तक कहना चाहिए हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-१३ थी १७ Hindi 717 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुवण्णकुमारा णं भंते! सव्वे समाहारा? एवं चेव सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सभी सुवर्णकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत्‌ प्रश्न गौतम ! पूर्ववत्‌ हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-१३ थी १७ Hindi 718 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विज्जुकुमारा णं भंते! सव्वे समाहारा? एवं चेव सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सभी विद्युत्कुमार देव समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत्‌ प्रश्न गौतम ! पूर्ववत्‌ हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-१३ थी १७ Hindi 719 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वायुकुमारा णं भंते! सव्वे समाहारा? एवं चेव सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सभी वायुकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत्‌ प्रश्न (गौतम !) पूर्ववत्‌ हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-१३ थी १७ Hindi 720 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अग्गिकुमारा णं भंते! सव्वे समाहारा? एवं चेव सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सभी अग्निकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत्‌ प्रश्न (गौतम !) पूर्ववत्‌ हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१ प्रथम Hindi 721 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] . पढमे . विसाह . मायंदिए . पाणाइवाय . असुरे . गुल . केवलि . अनगारे, . भविए तह . सोमिलट्ठारसे

Translated Sutra: अठारहवें शतक में दस उद्देशक हैं यथा प्रथम, विशाखा, माकन्दिक, प्राणातिपात, असुर, गुड़, केवली, अनगार, भाविक तथा सोमिल
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१ प्रथम Hindi 722 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासीजीवे णं भंते! जीवभावेणं किं पढमे? अपढमे? गोयमा! नो पढमे, अपढमे एवं नेरइए जाव वेमाणिए सिद्धे णं भंते! सिद्धभावेणं किं पढमे? अपढमे? गोयमा! पढमे, नो अपढमे जीवा णं भंते! जीवभावेणं किं पढमा? अपढमा? गोयमा! नो पढमा, अपढमा एवं जाव वेमाणिया सिद्धा णंपुच्छा गोयमा! पढमा, नो अपढमा आहारए णं भंते! जीवे आहारभावेणं किं पढमे? अपढमे? गोयमा! नो पढमे, अपढमे एवं जाव वेमाणिए पोहत्तिए एवं चेव अनाहारए णं भंते! जीवे अनाहारभावेणंपुच्छा गोयमा! सिय पढमे, सिय अपढमे नेरइए णं भंते! जीवे अनाहारभावेणंपुच्छा एवं नेरइए जाव वेमाणिए नो पढमे, अपढमे

Translated Sutra: उस काल उस समयमें राजगृह नगरमें यावत्‌ पूछा भगवन्‌ ! जीव, जीवभाव से प्रथम है, अथवा अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम है इस प्रकार नैरयिक से लेकर वैमानिक तक जानना भगवन्‌ ! सिद्ध जीव, सिद्धभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम है, अप्रथम नहीं है भगवन्‌ ! अनेक जीव, जीवत्व की अपेक्षा से प्रथम हैं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१ प्रथम Hindi 723 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो जेण पत्तपुव्वो, भावो सो तेण अपढमओ होइ सेसेसु होइ पढमो, अपत्तपुव्वेसु भावेसु

Translated Sutra: जिस जीव को जो भाव पूर्व से प्राप्त है, उस भाव की अपेक्षा से वह जीव अप्रथम है, किन्तु जिन्हें जो भाव पहले कभी प्राप्त नहीं हुआ है, उस भाव की अपेक्षा से वह जीव प्रथम कहलाता है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१ प्रथम Hindi 724 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जीवभावेण किं चरिमे? अचरिमे? गोयमा! नो चरिमे, अचरिमे नेरइए णं भंते! नेरइयभावेणंपुच्छा गोयमा! सिय चरिमे, सिय अचरिमे एवं जाव वेमाणिए सिद्धे जहा जीवे जीवा णंपुच्छा गोयमा! नो चरिमा, अचरिमानेरइया चरिमा वि, अचरिमा विएवं जाव वेमाणिया सिद्धा जहा जीवा आहारए सव्वत्थ एगत्तेणं सिय चरिमे, सिय अचरिमे; पुहत्तेणं चरिमा वि, अचरिमा वि अनाहारओ जीवो सिद्धो एगत्तेण वि पुहत्तेण वि नो चरिमो, अचरिमो सेसट्ठाणेसु एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारओ भवसिद्धीओ जीवपदे एगत्त-पुहत्तेणं चरिमे, नो अचरिमे सेसट्ठाणेसु जहा आहारओ अभवसिद्धीओ सव्वत्थ एगत्त-पुहत्तेणं नो चरिमे,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव, जीवभाव की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? गौतम ! चरम नहीं, अचरम है भगवन्‌ ! नैरयिक जीव, नैरयिकभाव की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? गौतम ! वह कदाचित्‌ चरम है, और कदाचित्‌ अचरम है इसी प्रकार वैमानिक तक जानना चाहिए सिद्ध का कथन जीव के समान जानना चाहिए अनेक जीवों के विषय में चरम अचरम सम्बन्धी प्रश्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१ प्रथम Hindi 725 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो जं पाविहिति पुणो, भावं सो तेण अचरिमो होइ अच्चंतविओगो जस्स, जेण भावेण सो चरिमो

Translated Sutra: जो जीव, जिस भाव को पुनः प्राप्त करेगा, वह जीव उस भाव की अपेक्षा से अचरम होता है; और जिस जीव का जिस भाव के साथ सर्वथा वियोग हो जाता है; वह जीव उस भाव की अपेक्षा चरम होता है हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है सूत्र ७२५, ७२६
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१ प्रथम Hindi 726 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ

Translated Sutra: देखो सूत्र ७२५
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-२ विशाखा Hindi 727 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विसाहा नामं नगरी होत्थावण्णओ बहुपुत्तिए चेइएवण्णओ सामी समोसढे जाव पज्जुवासइ तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरेएवं जहा सोलसमसए बितियउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमानेणं आगओ, नवरंएत्थं आभियोगा वि अत्थि जाव बत्तीसतिविहं नट्टविहिं उवदंसेत्ता जाव पडिगए भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीजहा तइयसए ईसानस्स तहेव कूडागारदिट्ठंतो, तहेव पुव्वभवपुच्छा जाव अभिसमन्नागए? गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासीएवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे

Translated Sutra: उस काल एवं उस समय में विशाखा नामकी नगरी थी वहाँ बहुपुत्रिक नामक चैत्य था (वर्णन) एक बार वहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ, यावत्‌ परीषद्‌ पर्युपासना करने लगी उस काल और उस समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, वज्रपाणि, पुरन्दर इत्यादि सोलहवें शतक के द्वीतिय उद्देशक में शक्रेन्द्र का जैसा वर्णन है,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-३ माकंदी पुत्र Hindi 728 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे होत्थावण्णओ गुणसिलए चेइएवण्णओ जाव परिसा पडिगया तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी मागंदियपुत्ते नामं अनगारे पगइभद्दएजहा मंडियपुत्ते जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी से नूनं भंते! काउलेस्से पुढविकाइए काउलेस्सेहिंतो, पुढविकाइएहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता माणुसं विग्गहं लभति, लभित्ता केवलं बोहिं बुज्झति, बुज्झित्ता तओ पच्छा सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति? हंता मागंदियपुत्ता! काउलेस्से पुढविकाइए जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति से नूनं भंते! काउलेस्से आउकाइए काउलेस्सेहिंतो आउकाइएहिंतो अनंतरं

Translated Sutra: उस काल उस समयमें राजगृह नगर था वहाँ गुणशील नामक चैत्य था यावत्‌ परीषद्‌ वन्दना करके वापिस लौट गई उस काल एवं उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी यावत्‌ प्रकृतिभद्र माकन्दिपुत्र नामक अनगार ने, मण्डितपुत्र अनगार के समान यावत्‌ पर्युपासना करते हुए पूछा भगवन्‌ ! क्या कापोतलेश्यी पृथ्वीकायिक जीव,
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