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Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 29 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म ओसन्नविहारं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए अत्थियाइं त्थ केइ सेसे, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएज्जा।

Translated Sutra: देखो सूत्र २६
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 30 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म संसत्तविहारं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, अत्थियाइं त्थ केइ सेसे, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएज्जा।

Translated Sutra: देखो सूत्र २६
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 31 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म परपासंडपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नत्थि णं तस्स तप्पत्तियं केइ छेए वा परिहारे वा, नन्नत्थ एगाए आलोयणाए।

Translated Sutra: जो साधु गण (गच्छ) को छोड़कर (कारणविशेष) पर पाखंड़ी रूप से विचरे फिर उसी गण (गच्छ) को अंगीकार करके विहरना चाहे तो उस साधु को चारित्र छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त की कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं दिखता, केवल उसे आलोचना देना, लेकिन जो साधु गच्छ छोड़कर गृहस्थ पर्याय धारण करे वो फिर उसी गच्छ में आना चाहे तो उस छेद या परिहार तप
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 32 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म ओहावेज्जा से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नत्थि णं तस्स केइ तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा, नन्नत्थ एगाए सेहोवट्ठावणियाए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ३१
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 33 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं सेवित्ता इच्छेज्जा आलोएत्तए, जत्थेव अप्पणो आयरिय-उवज्झाए पासेज्जा, तेसंतियं आलोएज्जा पडिक्कमेज्जा निंदेज्जा गरहेज्जा विउट्टेज्जा विसोहेज्जा, अकर-णयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा।

Translated Sutra: जो साधु अन्य किसी अकृत्य स्थान (न करने लायक स्थान) सेवन करके आलोचना करना चाहे तो जहाँ खुद के आचार्य – उपाध्याय हो वहाँ जाकर उनसे विशुद्धि करवाना कल्पे। फिर से वैसा करने के लिए तत्पर होना और योग्य तप रूप कर्म द्वारा प्रायश्चित्त ग्रहण करना। यदि अपने आचार्य – उपाध्याय पास में न मिले तो जो गुणग्राही गम्भीर साधर्मिक
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 34 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो चेव अप्पणो आयरिय-उवज्झाए पासेज्जा, जत्थेव संभोइयं साहम्मियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागमं, तस्संतियं आलोएज्जा जाव पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा। नो चेव संभोइयं साहम्मियं बहुस्सुयं बब्भागमं पासेज्जा, जत्थेव अन्नसंभोइयं साहम्मियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागमं, तस्संतियं आलोएज्जा जाव पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा। नो चेव अन्नसंभोइयं साहम्मियं बहुस्सुयं बब्भागमं पासेज्जा, जत्थेव सारूवियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागमं, तस्संतियं आलोएज्जा जाव पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा। नो चेव सारूवियं बहुस्सुयं बब्भागमं पासेज्जा, जत्थेव समणोवासगं पच्छाकडं पासेज्जा बहुस्सुयं

Translated Sutra: देखो सूत्र ३३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 35 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो चेव सम्मंभावियाइं चेइयाइं पासेज्जा, बहिया गामस्स वा नगरस्स वा निगमस्स वा रायहाणीए वा खेडस्स वा कब्बडस्स वा मडंबस्स वा पट्टणस्स वा दोणमुहस्स वा आसमस्स वा संवाहस्स वा संनिवेसस्स वा पाईणाभिमुहे वा उदीणाभिमुहे वा करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वएज्जा– एवइया मे अवराहा, एवइक्खुत्तो अहं अवरद्धो, अरहंताणं सिद्धाणं अंतिए आलोएज्जा पडिक्कमेज्जा निंदेज्जा गरहेज्जा विउट्टेज्जा विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जासि।

Translated Sutra: देखो सूत्र ३३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 36 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो साहम्मिया एगओ विहरंति एगे तत्थ अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा, ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं।

Translated Sutra: एक सामाचारी वाले और साधु के साथ विचरते हो तब उसमें से एक अकृत्य स्थानक को यानि दोष सेवन करे फिर आलोचना करे तब उसे प्रायश्चित्त स्थान में स्थापित करना और दूसरे को वैयावच्च करना, लेकिन यदि दोनों अकृत्य स्थानक का सेवन करे तो एक की वडील की तरह स्थापना करके दूसरे को परिहार तप में रखना, उसका तप पूरा होने पर से वडील
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 37 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो साहम्मिया एगओ विहरंति, दो वि ते अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा, एगं तत्थ कप्पागं ठवइत्ता एगे निव्विसेज्जा, अह पच्छा से वि निव्विसेज्जा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ३६
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 38 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे साहम्मिया एगओ विहरंति, एगे तत्थ अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा, ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं।

Translated Sutra: एक सामाचारी वाले कईं साधु साथ में विचरते हो और उसमें से एक दोष का सेवन करे, फिर आलोचना करे तो उसे परिहार तप के लिए स्थापित करना और दूसरे उसकी वैयावच्च करे, यदि सभी साधु ने दोष का सेवन किया हो तो एक को वडील रूप में वैयावच्च के लिए स्थापित करे और अन्य परिहार तप करे। वो पूरा होने पर वैयावच्च करनेवाले साधु परिहार तप
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 39 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे साहम्मिया एगओ विहरंति, सव्वे वि ते अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा, एगं तत्थ कप्पागं ठवइत्ता अवसेसा निव्विसेज्जा, अह पच्छा से वि निव्विसेज्जा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ३८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 40 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू गिलायमाणे अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा, से य संथरेज्जा ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं। से य नो संथरेज्जा अनुपरिहारिएणं करणिज्जं वेयावडियं। से तं अनुपरिहारिएणं कीरमाणं वेयावडियं साइज्जेज्जा, से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया।

Translated Sutra: परिहार तप सेवन करके साधु बीमार हो जाए, दूसरे किसी दोष – स्थान का सेवन करके आलोचना करे तब यदि वो परिहार तप कर सके तो उन्हें तप में रखे और दूसरों को उसकी वैयावच्च करना, यदि वो तप वहन कर सके ऐसे न हो तो अनुपरिहारी उसकी वैयावच्च करे, लेकिन यदि वो समर्थ होने के बावजूद अनुपरिहारी से वैयावच्च करवाए तो उसे सम्पूर्ण प्रायश्चित्त
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 41 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठियं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: परिहार कल्पस्थित साधु बीमार हो जाए तब उस को गणावच्छेदक निर्यामणा करना न कल्पे, अग्लान होवे तो उसकी वैयावच्च जब तक वो रोगमुक्त होवे तब तक करनी चाहिए, बाद में उसे ‘यथालघुसक’ नामक व्यवहार में स्थापित करे। ‘अनवस्थाप्य’ साधु के लिए एवं ‘पारंचित’ साधु के लिए भी उपरोक्त कथन ही जानना। सूत्र – ४१–४३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 42 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अणवट्ठप्पं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र ४१
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 43 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पारंचियं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पाइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र ४१
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 44 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] खित्तचित्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: व्यग्रचित्त या चित्तभ्रम होनेवाला, हर्ष के अतिरेक से पागल होनेवाला, भूत – प्रेत आदि वळगाडवाले, उन्मादवाले, उपसर्ग से ग्लान बने, क्रोध – कलह से बीमार, काफी प्रायश्चित्त आने से भयभ्रान्त बने, अनसन करके व्यग्रचित्त बने, धन के लोभ से चित्तभ्रम होकर बीमार बने, किसी भी साधु गणावच्छेदक के पास आए तो उसे बाहर नीकालना
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 46 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जक्खाइट्ठं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 47 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उम्मायपत्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 48 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उवसग्गपत्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 49 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] साहिगरणं भिक्खूं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 50 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सपायच्छित्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 51 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भत्तपाणपडियाइक्खित्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 52 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठजायं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 53 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अणवट्ठप्पं भिक्खुं अगिहिभूयं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए।

Translated Sutra: अनवस्थाप्य या पारंचित प्रायश्चित्त को वहन कर रहे साधु को गृहस्थ वेश दिए बिना गणावच्छेदक को पुनः संयम में स्थापित करना न कल्पे, गृहस्थ का (या उसके जैसे) निशानीवाला करके स्थापित करना कल्पे, लेकिन यदि उसके गण को (गच्छ या श्रमणसंघ को) प्रतीति हो यानि कि योग्य लगे तो गणावच्छेदक को वो दोनों तरह के साधु को गृहस्थवेश
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 57 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अणवट्ठप्पं भिक्खुं अगिहिभूयं वा गिहिभूयं वा कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए, जहा तस्स गणस्स पत्तियं सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र ५३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 58 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पारंचियं भिक्खुं अगिहिभूयं वा गिहिभूयं वा कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए, जहा तस्स गणस्स पत्तियं सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र ५३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 59 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो साहम्मिया एगओ विहरंति, एगे तत्थ अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा–अहं णं भंते! अमुगेणं साहुणा सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पडिसेवी। से य पुच्छियव्वे किं अज्जो! पडिसेवी उदाहु अपडिसेवी? से य वएज्जा–पडिसेवी, परिहारपत्ते। से य वएज्जा–नो पडिसेवी, नो परिहारपत्ते। जं से पमाणं वयइ से पमाणाओ घेतव्वे। से किमाहु भंते! सच्चपइण्णा ववहारा।

Translated Sutra: समान सामाचारीवाले दो साधु साथ में विचरते हो, उसमें से कोइ एक अन्य को आरोप लगाने को अकृत्य (दोष) स्थान का सेवन करे, फिर आलोचना करे कि मैंने अमुक साधु को आरोप लगाने के लिए दोष स्थानक सेवन किया। तब (आचार्य) दूसरे साधु को पूछे – हे आर्य ! तुमने कुछ दोष का सेवन किया है या नहीं? यदि वो कहे कि दोषसेवन किया है तो उसे प्रायश्चित्त
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 60 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म ओहानुप्पेही वच्चेज्जा, से य अनोहाइए चेव इच्छेजा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। तत्थ णं थेराणं इमेयारूवे विवादे समुप्पज्जित्था–इमं भो जाणह किं पडिसेवी? अपडिसेवी? से य पुच्छियव्वे सिया किं अज्जो! पडिसेवी उदाहु अपडिसेवी? से य वएज्जा–पडिसेवी, परिहारपत्ते। से य वएज्जा–नो पडिसेवी, नो परिहारपत्ते। जं से पमाणं वयइ से पमाणाओ घेतव्वे। से किमाहु भंते? सच्चपइण्णा ववहारा।

Translated Sutra: जो साधु अपने गच्छ से नीकलकर मोह के उदय से असंयम सेवन के लिए जाए। राह में चलते हुए उसके साथ भेजे गए साधु उसे उपशान्त करे तब शुभ कर्म के उदय से असंयम स्थान सेवन किए बिना फिर उसी गच्छ में आना चाहे तब उसने असंयम स्थान सेवन किया या नहीं ऐसी चर्चा स्थविर में हो तब साथ गए साधु को पूछे, हे आर्य! वो दोष का प्रतिसेवी है या अप्रतिसेवी
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 61 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगपक्खियस्स भिक्खुस्स कप्पति इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा, जहा वा तस्स गणस्स पत्तियं सिया।

Translated Sutra: एकपक्षी यानि एक गच्छवर्ती साधु को आचार्य – उपाध्याय कालधर्म पाए तब गण की प्रतीति के लिए यदि पदवी के योग्य कोई न मिले तो ईत्वर यानि कि अल्पकाल के लिए दूसरों को उस पदवी के लिए स्थापन करना।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 62 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे परिहारिया बहवे अपरिहारिया इच्छेज्जा एगमासं वा दुमासं वा तिमासं वा चउमासं वा पंचमासं वा छम्मासं वा वत्थए। ते अन्नमन्नं संभुंजंति, अन्नमन्नं नो संभुंजंति मासं, तओ पच्छा सव्वे वि एगओ संभुंजंति।

Translated Sutra: कईं पड़िहारी (प्रायश्चित्त सेवन करनेवाले) और कईं अपड़िहारी यानि कि दोष रहित साधु इकट्ठे बसना चाहे तो वैयावच्च आदि की कारण से एक, दो, तीन, चार, पाँच या छह मास साथ रहे तो साथ आहार करे या न करे, उसके बाद एक मास साथ में आहार करे। (वृत्तिगत विशेष) स्पष्टीकरण इस यह है कि जो पड़िहारी की वैयावच्च करते हैं ऐसे अपड़िहारी साथ आहार
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 63 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठियस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ असनं वा पानंवा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अनुप्पदाउं वा। थेरा य णं वएज्जा–इमं ता अज्जो! तुमं एएसिं देहि वा अनुप्पदेहि वा? एवं से कप्पइ दाउं वा अनुप्पदाउं वा। कप्पइ से लेवं अनुजाणावेत्तए अनुजाणह भंते! लेवाए? एवं से कप्पइ लेवं समासेवित्तए।

Translated Sutra: परिहार कल्पस्थिति में रहे (यानि प्रायश्चित्त वहन करनेवाले) साधु को (अपने आप) अशन, पान, खादिम, स्वादिम देना या दिलाना न कल्पे। यदि स्थविर आज्ञा दे कि हे आर्य ! तुम यह आहार उस परिहारी को देना या दिलाना तो देना कल्पे यदि स्थविर की आज्ञा हो तो परिहारी साधु को विगई लेना कल्पे।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 64 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू सएणं पडिग्गहेणं बहिया अप्पणो वेयावडियाए गच्छेजा। थेरा य णं वएज्जा-पडिग्गाहेहि णं अज्जो! अहं पि भोक्खामि वा पाहामि वा। एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए। तत्थ नो कप्पइ अपरिहारियस्स परिहारियस्स पडिग्गहंसि असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा भोत्तए वा पायए वा, कप्पइ से सयंसि वा पडिग्गहंसि सयंसि वा पलासगंसि सयंसि वा कमढगंसि सयंसि वा खुव्वगंसि पाणिंसि वा उद्धट्टु-उद्धट्टु भोत्तए वा पायए वा। एस कप्पो अपरिहारियस्स परिहारियाओ।

Translated Sutra: परिवार कल्पस्थित साधु स्थविर की वैयावच्च करते हो तब (अपने आहार अपने पात्र में और स्थविर का आहार स्थविर के पात्र में ऐसे अलग – अलग लाए) पड़िहारी अपना आहार लाकर बाहर स्थविर की वैयावच्च के लिए फिर से जाते हैं तब (यदि) स्थविर कहे कि हे आर्य ! तुम्हारे पात्र में हमारे आहार – पानी भी साथ लाना। हम वो आहार करेंगे, पानी पीएंगे
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 65 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू थेराणं पडिग्गहेणं बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा। थेरा य णं वएज्जा–पडिग्गाहेहि णं अज्जो! तुमं पि भोक्खसि वा पाहिसि वा। एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए। तत्थ नो कप्पइ परिहारियस्स अपरिहारियस्स पडिग्गहंसि असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा भोत्तए वा पायए वा, कप्पइ से सयंसि वा पडिग्गहंसि सयंसि वा पलासगंसि सयंसि वा कमढगंसि सयंसि वा खुव्वगंसि पाणिंसि वा उद्धट्टु-उद्धट्टु भोत्तए वा पायए वा। एस कप्पो परिहारियस्स अपरिहारियाओ।

Translated Sutra: परिहार कल्प स्थित साधु स्थविर के पात्र लेकर बाहर स्थविर की वैयावच्च के लिए जाते देखकर स्थविर उस साधु को ऐसा कहे कि हे आर्य ! तुम्हारा आहार भी साथ में उसी पात्र में लाना और तुम भी उसे खाना और पानी पीना तो इस प्रकार लाना कल्पे लेकिन वहाँ परिहारी को अपरिहारी स्थविर के पात्र में अशन आदि आहार खाना या पीना न कल्पे लेकिन
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 66 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य इच्छेज्जा गणं धारेत्तए, भगवं च से अपलिच्छन्ने एवं से नो कप्पइ गणं धारेत्तए। भगवं च से पलिच्छन्ने एवं से कप्पइ गणं धारेत्तए।

Translated Sutra: साधु गच्छ नायकपन धारण करना चाहे तो हे भगवंत ! यदि वो साधु आयारो – निसीह आदि सूत्र संग्रह रहित है तो गच्छनायकपन धारण कर सके ? यदि ऐसा न हो तो गच्छ नायकपन धारण करना न कल्पे लेकिन यदि वो आयारो – निसीह आदि सूत्र संग्रह सहित और शिष्य आदि परिवारवाला हो तो गच्छ नायकपन धारण कर सके।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 67 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य इच्छेज्जा गणं धारेत्तए, नो से कप्पइ थेरे अनापुच्छित्ता गणं धारेत्तए, कप्पइ से थेरे आपुच्छित्ता गणं धारेत्तए। थेरा य से वियरेज्जा एवं से कप्पइ गणं धारेत्तए, थेरा य से नो वियरेज्जा एवं से नो कप्पइ गणं धारेत्तए। जण्णं थेरेहिं अविइण्णं गणं धारेज्जा, से संतरा छेओ वा परिहारो वा।

Translated Sutra: जो कोई साधु गच्छ नायकपन धारण करना चाहे उसे स्थविर को पूछे बिना गच्छ नायकपन धारण करना न कल्पे स्थविर को पूछकर गच्छ नायकपन धारण करना कल्पे। स्थविर आज्ञा दे तो कल्पे और आज्ञा न दे तो न कल्पे। जितने दिन वो आज्ञा रहित गच्छ नायकपन धारे तो उतने दिन का छेद या तप का प्रायश्चित्त आता है।
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उद्देशक-३ Hindi 68 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे बहुस्सुए बब्भागमे जहन्नेणं आयारपकप्पधरे कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: तीन साल का पर्याय हो ऐसे श्रमण – निर्ग्रन्थ हो और फिर आचार – संयम, प्रवचन – गच्छ की सारसंभाळादिक संग्रह और पाणेसणादि उपग्रह के लिए कुशल हो, जिसका आचार खंड़ित नहीं हुआ, भेदन नहीं हुआ, सबल दोष नहीं लगा, संक्लिष्ट आचार युक्त चित्तवाला नहीं, बहुश्रुत, कईं आगम के ज्ञाता, जघन्य से आचार प्रकल्प – निसीह सूत्रार्थ के धारक
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उद्देशक-३ Hindi 70 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे बहुस्सुए बब्भागमे जहन्नेणं दसा-कप्प-ववहारधरे कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: पाँच साल के पर्यायवाले श्रमण – निर्ग्रन्थ यदि आचार – संयम, प्रवचन – गच्छ की सर्व फिक्र की प्रज्ञा – उपधि आदि के उपग्रह में कुशल हो, जिसका आचार छेदन – भेदन न हो, क्रोधादिक से जिसका चारित्र मलिन नहीं और फिर जो बहुसूत्री आगमज्ञाता है और जघन्य से दसा – कप्प – व्यवहार सूत्र के धारक हैं उन्हें यह पद देना न कल्पे। सूत्र
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उद्देशक-३ Hindi 72 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे बहुस्सुए बब्भागमे जहन्नेणं ठाणसमवायधरे कप्पइ आयरियत्ताए उवज्झायत्ताए पवत्तित्ताए थेरत्ताए गणित्ताए गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: आठ साल के पर्यायवाले श्रमण – निर्ग्रन्थ में ऊपर के सर्व गुण और जघन्य से ठाण, समवाय ज्ञाता हो उसे आचार्य से गणावच्छेदक पर्यन्त की पदवी देना कल्पे, लेकिन जिनमें उक्त गुण नहीं है उसे पदवी देना न कल्पे। सूत्र – ७२, ७३
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उद्देशक-३ Hindi 74 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निरुद्धपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ तद्दिवसं आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। से किमाहु भंते? अत्थि णं थेराणं तहारूवाणि कुलाणि कडाणि पत्तियाणि थेज्जाणि वेसासियाणि संमयाणि सम्मुइकराणि अनुमयाणि बहुमयाणि भवंति, तेहिं कडेहिं तेहिं पत्तिएहिं तेहिं थेज्जेहिं तेहिं वेसासिएहिं तेहिं संमएहिं तेहिं सम्मुइकरेहिं जं से निद्धपरियाए समणे निग्गंथे, कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए तद्दिवसं।

Translated Sutra: निरुद्धवास पर्याय – (एक बार दीक्षा लेने के बाद जिसका पर्याय छेद हुआ है ऐसे) श्रमण निर्ग्रन्थ को उसी दिन आचार्य – उपाध्याय पदवी देना कल्पे, हे भगवंत ! ऐसा क्यों कहा ? उस स्थविर साधु को पूर्व के तथारूप कुल हैं। जैसे कि प्रतीतिकारक, दान देने में धीर, भरोसेमंद, गुणवंत, साधु बार – बार वहोरने पधारे उसमें खुशी हो और दान
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उद्देशक-३ Hindi 75 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निरुद्धवासपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए समुच्छेयकप्पंसि। तस्स णं आयारपकप्पस्स देसे अहिज्जिए देसे नो अहिज्जिए, से य अहिज्जिस्सामि त्ति अहिज्जइ, एवं से कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। से य अहिज्जिस्सामि त्ति नो अहिज्जइ, एवं से नो कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: निरुद्ध वास पर्याय – पहले दीक्षा ली हो उसे छोड़कर पुनः दीक्षा लिए कुछ साल हुए हो ऐसे श्रमण – निर्ग्रन्थ को आचार्य – उपाध्याय कालधर्म पाए तब पदवी देना कल्पे। यदि वो बहुसूत्री न हो तो भी समुचयरूप से वो आचार प्रकल्प – निसीह के कुछ अध्ययन पढ़े हैं और बाकी के पढूँगा ऐसा चिन्तवन करते हैं वो यदि पढ़े तो उसे आचार्य – उपाध्याय
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उद्देशक-३ Hindi 76 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथस्स णं नवडहरतरुणस्स आयरिय-उवज्झाए वीसंभेज्जा, नो से कप्पइ अनायरियउवज्झायस्स होत्तए। कप्पइ से पुव्वं आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ पच्छा उवज्झायं। से किमाहु भंते? दुसंगहिए समणे निग्गंथे, तं जहा–आयरिएणं उवज्झाएण य।

Translated Sutra: वो साधु जो दीक्षा में छोटे हैं। तरुण हैं। ऐसे साधु की आचार्य – उपाध्याय काल कर गए हो उनके बिना रहना न कल्पे, पहले आचार्य और फिर उपाध्याय की स्थापना करके रहना कल्पे। ऐसा क्यों कहा ? वो साधु नए हैं – तरुण हैं इसलिए उसे आचार्य – उपाध्याय आदि के संग बिना रहना न कल्पे, यदि साध्वी नवदीक्षित और तरुण हो तो उसे आचार्य –
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उद्देशक-३ Hindi 77 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथीए णं नवडहरतरुणीए आयरिय-उवज्झाए पवत्तणी य वीसंभेज्जा, नो से कप्पइ, अनायरियउवज्झाइयाए अपवत्तणीए य होत्तए। कप्पइ से पुव्वं आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ पच्छा उवज्झायं तओ पच्छा पवत्तिणिं। से किमाहु भंते? तिसंगहिया समणी निग्गंथी, तं जहा–आयरिएणं उवज्झाएणं पवत्तिणीए य

Translated Sutra: देखो सूत्र ७६
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उद्देशक-३ Hindi 78 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा, तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरित्तं वा उवज्झायत्तं वा पवत्तित्तं वा थेरत्तं वा गणित्तं वा गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेतए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: जो साधु गच्छ छोड़कर जाए, फिर मैथुन सेवन करे, सेवन करके फिर दीक्षा ले तो उसे दीक्षा लेने के बाद तीन साल तक आचार्य से गणावच्छेदक तक का पदवी देना या धारण करना न कल्पे। तीन साल बीतने के बाद चौथे साल स्थिर हो, उपशान्त हो, क्लेष से निवर्ते, विषय से निवर्ते ऐसे साधु को आचार्य से गणावच्छेदक तक की छह पदवी देना या धारण करना
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उद्देशक-३ Hindi 79 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ७८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 80 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा, तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ७८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 81 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए आयरिय-उवज्झायत्तं अनिक्खिवित्ता मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: आचार्य – उपाध्याय उनका पद छोड़े बिना मैथुन सेवन करे तो जावज्जीव के लिए उसे आचार्य यावत्‌ गणावच्छेदक के छह पदवी देना या धारण करना न कल्पे, लेकिन यदि वो पदवी छोड़कर जाए, फिर मैथुन धर्म सेवन करे तो उसे तीन साल तक आचार्य पदवी देना या धारण करना न कल्पे लेकिन चौथा साल बैठे तब यदि वो स्थिर, उपशान्त, कषाय – विषय रहित हुआ
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उद्देशक-३ Hindi 82 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए आयरिय-उवज्झायत्तं निक्खिवित्ता मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा, तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८१
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उद्देशक-३ Hindi 83 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म ओहायइ तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: यदि कोई साधु गच्छ में से नीकलकर विषय सेवन के लिए द्रव्यलिंग छोड़ देने के लिए देशान्तर जाए, मैथुन सेवन करके फिर से दीक्षा ले। तीन साल तक उसे आचार्य आदि छ पदवी देना या धारण करना न कल्पे, तीन साल पूरे होने से चौथा साल बैठे तब यदि वो साधु स्थिर – उपशान्त – विषय – कषाय से निवर्तित हो तो उन्हें पदवी देना – धारण करना कल्पे,
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उद्देशक-३ Hindi 84 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता ओहाएज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८३
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उद्देशक-३ Hindi 85 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता ओहाएज्जा तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिवियरस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८३
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