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Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 74 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निरुद्धपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ तद्दिवसं आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। से किमाहु भंते? अत्थि णं थेराणं तहारूवाणि कुलाणि कडाणि पत्तियाणि थेज्जाणि वेसासियाणि संमयाणि सम्मुइकराणि अनुमयाणि बहुमयाणि भवंति, तेहिं कडेहिं तेहिं पत्तिएहिं तेहिं थेज्जेहिं तेहिं वेसासिएहिं तेहिं संमएहिं तेहिं सम्मुइकरेहिं जं से निद्धपरियाए समणे निग्गंथे, कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए तद्दिवसं।

Translated Sutra: निरुद्धवास पर्याय – (एक बार दीक्षा लेने के बाद जिसका पर्याय छेद हुआ है ऐसे) श्रमण निर्ग्रन्थ को उसी दिन आचार्य – उपाध्याय पदवी देना कल्पे, हे भगवंत ! ऐसा क्यों कहा ? उस स्थविर साधु को पूर्व के तथारूप कुल हैं। जैसे कि प्रतीतिकारक, दान देने में धीर, भरोसेमंद, गुणवंत, साधु बार – बार वहोरने पधारे उसमें खुशी हो और दान
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 75 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निरुद्धवासपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए समुच्छेयकप्पंसि। तस्स णं आयारपकप्पस्स देसे अहिज्जिए देसे नो अहिज्जिए, से य अहिज्जिस्सामि त्ति अहिज्जइ, एवं से कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। से य अहिज्जिस्सामि त्ति नो अहिज्जइ, एवं से नो कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: निरुद्ध वास पर्याय – पहले दीक्षा ली हो उसे छोड़कर पुनः दीक्षा लिए कुछ साल हुए हो ऐसे श्रमण – निर्ग्रन्थ को आचार्य – उपाध्याय कालधर्म पाए तब पदवी देना कल्पे। यदि वो बहुसूत्री न हो तो भी समुचयरूप से वो आचार प्रकल्प – निसीह के कुछ अध्ययन पढ़े हैं और बाकी के पढूँगा ऐसा चिन्तवन करते हैं वो यदि पढ़े तो उसे आचार्य – उपाध्याय
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 76 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथस्स णं नवडहरतरुणस्स आयरिय-उवज्झाए वीसंभेज्जा, नो से कप्पइ अनायरियउवज्झायस्स होत्तए। कप्पइ से पुव्वं आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ पच्छा उवज्झायं। से किमाहु भंते? दुसंगहिए समणे निग्गंथे, तं जहा–आयरिएणं उवज्झाएण य।

Translated Sutra: वो साधु जो दीक्षा में छोटे हैं। तरुण हैं। ऐसे साधु की आचार्य – उपाध्याय काल कर गए हो उनके बिना रहना न कल्पे, पहले आचार्य और फिर उपाध्याय की स्थापना करके रहना कल्पे। ऐसा क्यों कहा ? वो साधु नए हैं – तरुण हैं इसलिए उसे आचार्य – उपाध्याय आदि के संग बिना रहना न कल्पे, यदि साध्वी नवदीक्षित और तरुण हो तो उसे आचार्य –
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 77 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथीए णं नवडहरतरुणीए आयरिय-उवज्झाए पवत्तणी य वीसंभेज्जा, नो से कप्पइ, अनायरियउवज्झाइयाए अपवत्तणीए य होत्तए। कप्पइ से पुव्वं आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ पच्छा उवज्झायं तओ पच्छा पवत्तिणिं। से किमाहु भंते? तिसंगहिया समणी निग्गंथी, तं जहा–आयरिएणं उवज्झाएणं पवत्तिणीए य

Translated Sutra: देखो सूत्र ७६
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 78 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा, तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरित्तं वा उवज्झायत्तं वा पवत्तित्तं वा थेरत्तं वा गणित्तं वा गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेतए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: जो साधु गच्छ छोड़कर जाए, फिर मैथुन सेवन करे, सेवन करके फिर दीक्षा ले तो उसे दीक्षा लेने के बाद तीन साल तक आचार्य से गणावच्छेदक तक का पदवी देना या धारण करना न कल्पे। तीन साल बीतने के बाद चौथे साल स्थिर हो, उपशान्त हो, क्लेष से निवर्ते, विषय से निवर्ते ऐसे साधु को आचार्य से गणावच्छेदक तक की छह पदवी देना या धारण करना
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 79 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ७८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 80 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा, तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ७८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 81 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए आयरिय-उवज्झायत्तं अनिक्खिवित्ता मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: आचार्य – उपाध्याय उनका पद छोड़े बिना मैथुन सेवन करे तो जावज्जीव के लिए उसे आचार्य यावत्‌ गणावच्छेदक के छह पदवी देना या धारण करना न कल्पे, लेकिन यदि वो पदवी छोड़कर जाए, फिर मैथुन धर्म सेवन करे तो उसे तीन साल तक आचार्य पदवी देना या धारण करना न कल्पे लेकिन चौथा साल बैठे तब यदि वो स्थिर, उपशान्त, कषाय – विषय रहित हुआ
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 82 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए आयरिय-उवज्झायत्तं निक्खिवित्ता मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा, तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८१
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 83 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म ओहायइ तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: यदि कोई साधु गच्छ में से नीकलकर विषय सेवन के लिए द्रव्यलिंग छोड़ देने के लिए देशान्तर जाए, मैथुन सेवन करके फिर से दीक्षा ले। तीन साल तक उसे आचार्य आदि छ पदवी देना या धारण करना न कल्पे, तीन साल पूरे होने से चौथा साल बैठे तब यदि वो साधु स्थिर – उपशान्त – विषय – कषाय से निवर्तित हो तो उन्हें पदवी देना – धारण करना कल्पे,
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 84 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता ओहाएज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 85 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता ओहाएज्जा तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिवियरस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 86 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए आयरियउवज्झायत्तं अनिक्खिवित्ता ओहाएज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 87 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए आयरियउवज्झायत्तं निक्खिवित्ता ओहाएज्जा, तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 88 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य बहुस्सुए बब्भागमे बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: साधु जो किसी एक या ज्यादा, गणावच्छेदक, आचार्य, उपाध्याय या सभी बहुश्रुत हो, कईं आगम के ज्ञाता हो, कईं गाढ़ – आगाढ़ के कारण से माया – कपट सहित झूठ बोले, असत्य भाखे उस पापी जीव को जावज्जीव के लिए आचार्य – उपाध्याय – प्रवर्तक, स्थविर, गणि या गणावच्छेदक की पदवी देना या धारण करना न कल्पे। सूत्र – ८८–९४
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 89 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइए बहुस्सुए बब्भागमे बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 90 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए बहुस्सुए बब्भागमे बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 91 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे भिक्खुणो बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पई आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 92 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे गणावच्छेइया बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 93 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे आयरिय-उवज्झाया बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 94 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे भिक्खुणो बहवे गणावच्छेइया बहवे आयरिय-उवज्झाया बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८८
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उद्देशक-४ Hindi 95 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ आयरिय-उवज्झायस्स एगाणियस्स हेमंतगिम्हासु चारए।

Translated Sutra: आचार्य – उपाध्याय को गर्मी या शीतकाल में अकेले विचरना न कल्पे, खुद के सहित दो के साथ विचरना कल्पे। सूत्र – ९५, ९६
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 96 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ आयरिय-उवज्झायस्स अप्पबिइयस्स हेमंतगिम्हासु चारए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ९५
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 97 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पबिइयस्स हेमंतगिम्हासु चारए।

Translated Sutra: गणावच्छेदक को खुद के सहित दो लोगों को गर्मी या शीतकाल में विचरना न कल्पे, खुद के सहित तीन को विचरना कल्पे। सूत्र – ९७, ९८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 98 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पबिइयस्स हेमंतगिम्हासु चारए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ९७
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 99 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ आयरिय-उवज्झायस्स अप्पबिइयस्स वासावासं वत्थए।

Translated Sutra: आचार्य – उपाध्याय को खुद के सहित दो को वर्षावास रहना न कल्पे, तीन को कल्पे। सूत्र – ९९, १००
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 100 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ आयरिय-उवज्झायस्स अप्पतइयस्स वासावासं वत्थए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ९९
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 101 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पतइयस्स वासावासं वत्थए।

Translated Sutra: गणावच्छेदक को खुद के सहित तीन को वर्षावास रहना न कल्पे, चार को कल्पे। सूत्र – १०१, १०२
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उद्देशक-४ Hindi 102 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पचउत्थस्स वासावासं वत्थए।

Translated Sutra: देखो सूत्र १०१
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उद्देशक-४ Hindi 103 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रायहाणीए वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आसमंसि वा संवाहंसि वा सन्निवेसंसि वा बहूणं आयरिय-उवज्झायाणं अप्पबियाणं बहूणं गणावच्छेइयाणं अप्पतइयाणं कप्पइ हेमंतगिम्हासु चारए अन्नमन्ननिस्साए।

Translated Sutra: वे गाँव, नगर, निगम, राजधानी, खेड़ा, कसबो, मंड़प, पाटण, द्रोणमुख, आश्रम, संवाह सन्निवेश के लिए अनेक आचार्य, उपाध्याय खुद के साथ दो, अनेक गणावच्छेदक को खुद के साथ तीन को आपस में गर्मी या शीत काल में विचरना कल्पे और अनेक आचार्य – उपाध्याय को खुद के साथ तीन और अनेक गणावच्छेदक को खुद के साथ चार को अन्योन्य निश्रा में वर्षावास
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 104 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रायहाणीए वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आसमंसि वा संवाहंसि वा सन्निवेसंसि वा बहूणं आयरिय-उवज्झायाणं अप्पतइयाणं बहूणं गणावच्छेइयाणं अप्पचउत्थाणं कप्पइ वासावासं वत्थए अन्नमन्ननिस्साए।

Translated Sutra: देखो सूत्र १०३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 105 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गामानुगामं दूइज्जमाणो भिक्खू य जं पुरओ कट्टु विहरइ से य आहच्च वीसंभेज्जा, अत्थियाइं त्थ अन्ने केइ उवसंपज्जणारिहे, से उवसंपज्जियव्वे। नत्थियाइं त्थ अन्ने केइ उवसंपज्जणारिहे, अप्पणो य से कप्पाए असमत्ते एवं से कप्पइ एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसं अन्ने साहम्मिया विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए। नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए। तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएज्जा–वसाहि अज्जो! एगरायं वा दुरायं वा। एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए। जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा

Translated Sutra: एक गाँव से दूसरे गाँव विचरते, या चातुर्मास रहे साधु जो आचार्य आदि को आगे करके विचरते हो वो आचार्य आदि शायद काल करे तो अन्य किसी को अंगीकार करके उस पदवी पर स्थापित करके विचरना कल्पे। यदि किसी को कल्पाक – वडील रूप से स्थापन करने के उचित न हो और खुद आचार प्रकल्प – निसीह पढ़े हुए न हो तो उसको एक रात्रि की प्रतिज्ञा अंगीकार
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 106 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वासावासं पज्जोसविओ भिक्खू जं पुरओ कट्टु विहरइ, से य आहच्च वीसंभेज्जा, अत्थियाइं त्थ अन्ने केइ उवसंपज्जणारिहे, से उवसंपज्जियव्वे। नत्थियाइं त्थ अन्ने केइ उवसंपज्जणारिहे, अप्पणो य से कप्पाए असमत्ते एवं से कप्पइ एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसं अन्ने साहम्मिया विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए। नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए। तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएज्जा–वसाहि अज्जो! एगरायं वा दुरायं वा। एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए। जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ,

Translated Sutra: देखो सूत्र १०५
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उद्देशक-४ Hindi 107 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए गिलायमाणे अन्नयरं वएज्जा–अज्जो! ममंसि णं कालगयंसि समाणंसि अयं समुक्कसियव्वे। से य समुक्कसणारिहे समुक्कसियव्वे, से य नो समुक्कसणारिहे नो समुक्कसियव्वे। अत्थियाइं त्थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से समुक्क-सियव्वे, नत्थियाइं त्थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से चेव समुक्कसियव्वे। तंसि च णं समुक्किट्ठंसि परो वएज्जा–दुस्समुक्किट्ठं ते अज्जो! निक्खिवाहि। तस्स णं निक्खिवमाणस्स नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा। जे तं साहम्मिया अहाकप्पेणं नो उट्ठाए विहरंति सव्वेसिं तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: आचार्य – उपाध्याय बीमारी उत्पन्न हो तब या वेश छोड़कर जाए तब दूसरों को ऐसा कहे कि हे आर्य ! मैं काल करु तब इसे आचार्य की पदवी देना। वे यदि आचार्य पदवी देने के योग्य हो तो उसे पदवी देना। योग्य न हो तो न देना। यदि कोई दूसरे वो पदवी देने के लिए योग्य हो तो उसे देना, यदि कोई वो पदवी के लिए योग्य न हो तो पहले कहा उसे ही पदवी
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 108 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए ओहायमाणे अन्नयरं वएज्जा–अज्जो! ममंसि णं ओहावियंसि समाणंसि अयं समुक्कसियव्वे। से य समुक्कसणारिहे समुक्कसियव्वे, से य नो समुक्कसणारिहे नो समुक्कसियव्वे। अत्थियाइं त्थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से समुक्कसियव्वे, नत्थियाइं त्थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से चेव समुक्कसियव्वे। तंसि च णं समुक्किट्ठंसि परो वएज्जा– दुस्समुक्किट्ठं ते अज्जो! निक्खिवाहि। तस्स णं निक्खिवमाणस्स नत्थि केई छेए वा परिहारे वा। जे तं साहम्मिया अहाकप्पेणं नो उट्ठाए विहरंति सव्वेसिं तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र १०७
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उद्देशक-४ Hindi 109 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए सरमाणे परं चउरायाओ पंचरायाओ कप्पागं भिक्खुं नो उवट्ठावेइ। अत्थियाइं त्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, नत्थि से केइ छेए वा परिहारे वा। नत्थियाइं त्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, से संतरा छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: आचार्य – उपाध्याय जो नवदीक्षित छेदोपस्थापनीय (बड़ी दीक्षा) को उचित हुआ है ऐसा जानने के बाद भी या विस्मरण होने से उसके वडील चार या पाँच रात से ज्यादा उस नवदीक्षित को उपस्थापना न करे तो आचार्य आदि को प्रायश्चित्त आता है। यदि उसके साथ पिता आदि किसी वडील ने दीक्षा ली हो और पाँच, दस या पंद्रह रात के बाद दोनों को साथ
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उद्देशक-४ Hindi 110 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए असरमाणे परं चउरायाओ पंचरायाओ कप्पागं भिक्खुं नो उवट्ठावेइ। अत्थियाइं त्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, नत्थि से केइ छेए वा परिहारे वा। नत्थियाइं त्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, से संतरा छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र १०९
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उद्देशक-४ Hindi 111 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए सरमाणे वा असरमाणे वा परं दसरायकप्पाओ कप्पागं भिक्खुं नो उवट्ठावेइ। अत्थियाइं त्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, नत्थि से केइ छेए वा परिहारे वा। नत्थियाइं त्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, संवच्छरं तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: आचार्य – उपाध्याय स्मरण रखे या भूल जाए या नवदीक्षित साधु को (नियत वक्त के बाद) भी दशरात्रि जाने के बाद भी उपस्थापना (वड़ी दीक्षा) हुई नहीं, नियत सूत्रार्थ प्राप्त उस साधु के किसी वडील हो और उसे वडील रखने के लिए वो पढ़े नहीं तब तक साधु को उपस्थापना न करे तो कोई प्रायश्चित्त नहीं आता लेकिन यदि किसी ऐसे कारण बिना उपस्थापना
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उद्देशक-४ Hindi 112 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा तं च केइ साहम्मिए पासित्ता वएज्जा–कं अज्जो! उवसंपज्जित्ताणं विहरसि? जे तत्थ सव्वराइणिए तं वएज्जा। राइणिए तं वएज्जा–अह भंते! कस्स कप्पाए? जे तत्थ सव्वबहुसए तं वएज्जा, जं वा से भगवं वक्खइ तस्स आणा-उववाय वयणनिद्देसे चिट्ठिस्सामि।

Translated Sutra: जो साधु गच्छ को छोड़कर ज्ञान आदि कारण से अन्य गच्छ अपनाकर विचरे तब कोई साधर्मिक साधु देखकर पूछे कि हे आर्य ! किस गच्छ को अंगीकार करके विचरते हो ? तब उस गच्छ के सभी रत्नाधिक साधु के नाम दे। यदि रत्नाधिक पूछे कि किसकी निश्रा में विचरते हो ? तो वो सब बहुश्रुत के नाम दे और कहे कि जिस तरह भगवंत कहेंगे उस तरह उनकी आज्ञा
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उद्देशक-४ Hindi 113 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे साहम्मिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिचारियं चारए। नो ण्हं कप्पइ थेरे अनापुच्छित्ता एगयओ अभिनिचारियं चारए, कप्पइ ण्हं थेरे आपुच्छित्ता एगयओ अभिनिचारियं चारए। थेरा य से वियरेज्जा एव ण्हं कप्पइ एगयओ अभिनिचारियं चारए, थेरा य से नो वियरेज्जा एव ण्हं नो कप्पइ एगयओ अभिनिचारियं चारए। जं तत्थ थेरेहिं अविइण्णे अभिनिचारियं चरंति से संतरा छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: बहुत साधर्मिक एक मांड़लीवाले साधु ईकट्ठे विचरना चाहे तो स्थविर को पूछे बिना वैसे विचरना या रहना न कल्पे। स्थविर को पूछे तब भी यदि वो आज्ञा दे तो इकट्ठे विचरना – रहना कल्पे यदि आज्ञा न दे तो न कल्पे। यदि आज्ञा के बिना विचरे तो जितने दिन आज्ञा बिना विचरे उतने दिन का छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त आता है।
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उद्देशक-४ Hindi 114 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चरियापविट्ठे भिक्खू जाव चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा, सच्चेव आलोयणा सच्चेव पडिक्कमणा सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे।

Translated Sutra: आज्ञा बिना चलने के लिए प्रवृत्त साधु चार – पाँच रात्रि विचरकर स्थविर को देखे तब उनकी आज्ञा बिना जो विचरण किया उसकी आलोचना करे, प्रतिक्रमण करे, पूर्व की आज्ञा लेकर रहे लेकिन हाथ की रेखा सूख जाए उतना काल भी आज्ञा बिना न रहे।
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उद्देशक-४ Hindi 115 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चरियापविट्ठे भिक्खू परं चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्क-मेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा। भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अनुण्णवेयव्वे सिया–अनुजाणह भंते! मिओग्गहं अहालंदं धुवं नितियं वेउट्ठियं, तओ पच्छा कायसंफासं।

Translated Sutra: कोई साधु आज्ञा बिना अन्य गच्छ में जाने के लिए प्रवर्ते, चार या पाँच रात्रि के अलावा आज्ञा बिना रहे फिर स्थविर को देखकर फिर से आलोवे, फिर से प्रतिक्रमण करे, आज्ञा बिना जितने दिन रहे उतने दिन का छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त आता है। साधु के संयम भाव को टिकाए रखने के लिए दूसरी बार स्थविर की आज्ञा माँगकर रहे। उस साधु
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उद्देशक-४ Hindi 116 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चरियानियट्टे भिक्खू जाव चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा, सच्चेव आलोयणा सच्चेव पडिक्कमणा सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे।

Translated Sutra: अन्य गच्छ में जाने के लिए प्रवृत्त होकर निवर्तेल साधु चार या पाँच रात दूसरे गच्छ में रहे फिर स्थविर को देखकर सत्यरूप से आलोचना – प्रतिक्रमण करे, आज्ञा लेकर पूर्व आज्ञा में रहे लेकिन आज्ञा बिना पलभर भी न रहे
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उद्देशक-४ Hindi 117 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चरियानियट्टे भिक्खू परं चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेय-परि-हारस्स उवट्ठाएज्जा। भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अण्णुन्नवेयव्वे सिया–अनुजाणह भंते! मिओग्गहं अहालंदं धुवं नितियं वेउट्टियं, तओ पच्छा कायसंफासं।

Translated Sutra: आज्ञा बिना चलने से निवृत्त होनेवाले साधु चार या पाँच रात गच्छ में रहे फिर स्थविर को देखकर फिर से आलोचना करे – प्रतिक्रमण करे – जितनी रात आज्ञा बिना रहे उतनी रात का छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त स्थविर उसे दे। साधु संयम के भाव से दूसरी बार स्थविर की आज्ञा लेकर अन्य गच्छ में रहे आदि पूर्ववत्‌।
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उद्देशक-४ Hindi 118 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो साहम्मिया एगयओ विहरंति, तं जहा–सेहे य राइणिए य। तत्थ सेहतराए पलिच्छन्ने, राइणिए अपलिच्छन्ने। सेहतराएणं राइणिए उवसंपज्जियव्वे, भिक्खोववायं च दलयइ कप्पागं।

Translated Sutra: दो साधर्मिक साधु ईकट्ठे होकर विचरे। उसमें एक शिष्य है और एक रत्नाधिक है। शिष्य को पढ़े हुए साधु का परिवार बड़ा है, रत्नाधिक को ऐसा परिवार छोटा है। वो शिष्य रत्नाधिक के पास आकर उन्हें भिक्षा लाकर दे और विनयादिक सर्व कार्य करे, अब यदि रत्नाधिक का परिवार बड़ा हो और शिष्य का छोटा हो तो रत्नाधिक ईच्छा होने पर शिष्य
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उद्देशक-४ Hindi 119 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो साहम्मिया एगयओ विहरंति, तं जहा–सेहे य राइणिए य। तत्थ राइणिए पलिच्छन्ने, सेहतराए अपलिच्छन्ने। इच्छा राइणिए सेहतरागं उवसंपज्जइ इच्छा नो उवसंपज्जइ, इच्छा भिक्खोववायं दलयइ कप्पागं इच्छा नो दलयइ कप्पागं।

Translated Sutra: देखो सूत्र ११८
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उद्देशक-४ Hindi 120 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो भिक्खुणो एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अन्नमन्नमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अन्नमन्नं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।

Translated Sutra: दो साधु, गणावच्छेदक, आचार्य या उपाध्याय बड़ों को आपस में वंदन आदि करे बिना रहना न कल्पे, लेकिन अन्योन्य एक – एक को वडील रूप से अपनाकर विचरना कल्पे। सूत्र – १२०–१२२
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उद्देशक-४ Hindi 121 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो गणावच्छेइया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अन्नमन्नमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अन्नमन्नं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र १२०
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उद्देशक-४ Hindi 122 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो आयरिय-उवज्झाया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अन्नमन्नमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ ण्हं अहा राइणियाए अन्नमन्नं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र १२०
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उद्देशक-४ Hindi 123 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे भिक्खुणो एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अन्नमन्नमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अन्नमन्नं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।

Translated Sutra: कुछ साधु, गणावच्छेदक, आचार्य या यह सब ईकट्ठे होकर विचरे उनको अन्योन्य एक एक को वडील किए बिना विचरण न कल्पे। लेकिन छोटों को बड़ों को वडील की तरह स्थापित करके – वंदन करके विचरना कल्पे – ऐसा मैं (तुम्हें) कहता हूँ। सूत्र – १२३–१२६
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