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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 322 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अजीवपज्जवा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–रूविअजीवपज्जवा य अरूविअजीवपज्जवा य।
अरूविअजीवपज्जवा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–धम्मत्थिकाए, धम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पदेसा, अधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकायस्स देसे, अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, आगासत्थिकाए, आगासत्थिकायस्स देसे, आगासत्थिकायस्स पदेसा, अद्धासमए। Translated Sutra: भगवन् ! अजीवपर्याय कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, रूपी अजीवपर्याय और अरूपी अजीव – पर्याय। भगवन् ! अरूपी – अजीव के पर्याय कितने प्रकार के हैं? गौतम! दस। (१) धर्मास्तिकाय, (२) धर्मास्तिकाय का देश, (३) धर्मास्तिकाय के प्रदेश, (४) अधर्मास्तिकाय, (५) अधर्मास्तिकाय का देश, (६) अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, (७) आकाशास्तिकाय, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 323 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] रूविअजीवपज्जवा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–खंधा खंधदेसा खंधपदेसा परमाणुपोग्गले।
ते णं भंते! किं संखेज्जा असंखेज्जा अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता? गोयमा! अनंता परमाणु पोग्गला, अनंता दुपदेसिया खंधा जाव अनंता दसपदेसिया खंधा, अनंता संखेज्जपदेसिया खंधा, अनंता असंखेज्जपदेसिया खंधा, अनंता अनंतपदेसिया खंधा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति ते णं नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा अनंता। Translated Sutra: भगवन् ! रूपी अजीव पर्याय कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! चार – स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्ध – प्रदेश और परमाणुपुद्गल (के पर्याय)। भगवन् ! क्या वे संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं। भगवन् ! किस हेतु से आप ऐसा कहते हैं ? गौतम ! परमाणु – पुद्गल अनन्त हैं; द्विप्रदेशिक यावत् दशप्रदेशिक – स्कन्ध | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 324 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गलाणं भंते! केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! परमाणुपोग्गलाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति– परमाणुपोग्गलाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाते तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए सिय हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए– जदि हीने असंखेज्जभागहीने वा संखेज्जभागहीने वा संखेज्जगुणहीने वा असंखेज्जगुणहीने वा। अह अब्भहिए असंखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्ज-भागमब्भहिए वा संखेज्जगुणमब्भहिए वा असंखेज्जगुणमब्भहिए वा।
कालवण्णपज्जवेहिं सिय हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए– जदि हीने अनंतभागहीने Translated Sutra: भगवन् ! परमाणुपुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? गौतम ! अनन्त। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! एक परमाणुपुद्गल, दूसरे परमाणुपुद्गल से द्रव्य, प्रदेशों और अवगाहना की दृष्टि से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अत्यधिक है। यदि हीन है, तो असंख्यातभाग हीन है, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 325 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जहन्नपदेसियाणं भंते! खंधाणं पुच्छा। गोयमा! अनंता।
से केणट्ठेणं? गोयमा! जहन्नपदेसिते खंधे जहन्नपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए सिय हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए–जदि हीने पदेसहीने। अह अब्भहिए पदेसमब्भहिए। ठितीए चउट्ठाणवडिते वण्ण-गंध-रस-उवरिल्लचउफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते।
उक्कोसपएसियाणं भंते! खंधाणं पुच्छा। गोयमा! अनंता।
से केणट्ठेणं? गोयमा! उक्कोसपएसिए खंधे उक्कोसपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पएसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते। ठितीए चउट्ठाणवडिते। वण्णादि-अट्ठफास-पज्जवेहि य छट्ठाणवडिते।
अजहन्नमनुक्कोसपदेसियाणं Translated Sutra: भगवन् ! जघन्यप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! एक जघन्यप्रदेशी स्कन्ध दूसरे जघन्यप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है और कदाचित् अधिक है। यदि हीन हो तो एक प्रदेशहीन और यदि अधिक हो तो भी एक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 327 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] निरयगती णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता।
तिरियगती णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता।
मनुयगती णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारसा मुहुत्ता।
देवगती णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता।
सिद्धगती णं भंते! केवतियं कालं विरहिया सिज्झणयाए पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा।
निरयगती णं भंते! केवतियं कालं Translated Sutra: भगवन् ! नरकगति कितने काल तक उपपात से विरहित है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त्त तक। भगवन् ! तिर्यञ्चगति कितने काल तक उपपात से विरहित है ? गौतम ! नरकगति समान जानना। भगवन् ! मनुष्यगति कितने काल तक उपपात से विरहित है ? गौतम ! नरकगति समान जानना। भगवन् ! देवगति कितने काल तक उपपात से विरहित है ? गौतम ! | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 328 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता।
सक्करप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं सत्त रातिंदियाणि।
वालुयप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अद्धमासं।
पंकप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं मासं।
धूमप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं Translated Sutra: भगवन् ! रत्नप्रभा – पृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात से विरहित हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त्त तक। शर्कराप्रभापृथ्वी के नारक जघन्य एक समय और उत्कृष्टतः सात रात्रि – दिन तक उपपात से विरहित रहते हैं। वालुकापृथ्वी के नारक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अर्द्धमास तक उपपात से विरहित रहते हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 329 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उव्वट्टणाए पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता।
एवं सिद्धवज्जा उव्वट्टणा वि भाणितव्वा जाव अनुत्तरोववाइय त्ति, नवरं–जोइसिय-वेमानिएसु चयणं ति अभिलावो कायव्वो। Translated Sutra: भगवन् ! रत्नप्रभा के नैरयिक कितने काल तक उद्वर्त्तना विरहित कहे हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त्त। उपपात – विरह समान सिद्धों को छोड़कर अनुत्तरौपपातिक देवों तक कहना। विशेष यह कि ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के निरूपण में ‘च्यवन’ शब्द कहना। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 330 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं संतरं उववज्जंति? निरंतरं उववज्जंति? गोयमा! संतरं पि उववज्जंति, निरंतरं पि उववज्जंति।
तिरिक्खजोणिया णं भंते! किं संतरं उववज्जंति? निरंतरं उववज्जंति? गोयमा! संतरं पि उववज्जंति, निरंतरं पि उववज्जंति।
मनुस्सा णं भंते! किं संतरं उववज्जंति? निरंतरं उववज्जंति? गोयमा! संतरं पि उववज्जंति, निरंतरं पि उववज्जंति।
देवा णं भंते! किं संतरं उववज्जंति? निरंतरं उववज्जंति? गोयमा! संतरं पि उववज्जंति, निरंतरं पि उववज्जंति।
रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते! किं संतरं उववज्जंति? निरंतरं उववज्जंति? गोयमा! संतरं पि उववज्जंति, निरंतरं पि उववज्जंति। एवं जाव अहेसत्तमाए Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ? गौतम ! दोनों। इसी तरह तिर्यंचयोनिक, मनुष्य, देव, , असुरकुमारादिभवनपति, ये सब सान्तर और निरन्तर उत्पन्न होते हैं। पृथ्वीकायिक से लेकर वनस्पति – कायिक तक सब निरन्तर ही उत्पन्न होते हैं। द्वीन्द्रिय यावत् सर्वार्थसिद्ध देव तक सब सान्तर और निरन्तर भी उत्पन्न | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 331 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं संतरं उव्वट्टंति? निरंतरं उव्वट्टंति? गोयमा! संतरं पि उव्वट्टंति, निरंतरं पि उव्वट्टंति।
एवं जहा उववाओ भणितो तहा उव्वट्टणा वि सिद्धवज्जा भाणितव्वा जाव वेमानिया, नवरं–जोइसियवेमाणिएसु चयणं ति अभिलावो कातव्वो। Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक सान्तर उद्वर्त्तन करते हैं अथवा निरन्तर उद्वर्त्तन करते हैं ? गौतम ! वे सान्तर भी उद्वर्त्तन करते हैं और निरन्तर भी, उपपात के कथन अनुसार सिद्धों को छोड़कर उद्वर्त्तना में भी वैमानिकों तक कहना। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 332 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। एवं जाव अहेसत्तमाए।
असुरकुमारा णं भंते! एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा। एवं नागकुमारा जाव थणियकुमारा वि भाणियव्वा
पुढविकाइया णं भंते! एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! अनुसमयं अविरहियं असंखेज्जा उववज्जंति। एवं जाव वाउकाइया।
वणस्सतिकाइया णं भंते! एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! सट्ठाणुववायं पडुच्च अनुसमयं अविरहिया अनंता उववज्जंति, परट्ठाणुववायं पडुच्च Translated Sutra: भगवन् ! एक समय में कितने नैरयिक उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात। इसी प्रकार सातवीं नरकपृथ्वी तक समझ लेना। असुरकुमार से स्तनितकुमार तक यहीं कहना। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव एक समयमें कितने उत्पन्न होते हैं? गौतम ! प्रतिसमय बिना विरह के असंख्यात उत्पन्न होते हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 333 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! एगसमएणं केवतिया उव्वट्टंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उव्वट्टंति।
एवं जहा उववाओ भणितो तहा उव्वट्टणा वि सिद्धवज्जा भाणितव्वा जाव अनुत्तरोववाइया, नवरं–जोइसिय-वेमानियाणं चयणेणं अभिलावो कातव्वो। Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक एक समय में कितने उद्वर्तित होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात। उपपात के समान सिद्धों को छोड़कर अनुत्तरौपपातिक देवों तक उद्वर्त्तना में भी कहना। विशेष यह कि ज्योतिष्क और वैमानिक के लिए ‘च्यवन’ शब्द कहना। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 334 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! कतोहिंतो उववज्जंति? किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति।
जदि तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? बेइंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? तेइंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? चउरिंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो एगिंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो नो बेइंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो नो तेइंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! नैरयिक, तिर्यंचयोनिकों तथा मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! यदि तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो कौन से तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) सिर्फ पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! यदि पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 337 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] असुरकुमारा णं भंते! कतोहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुएहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति। एवं जेहिंतो नेरइयाणं उववाओ तेहिंतो असुरकुमाराण वि भाणितव्वो, नवरं–असंखेज्जवासाउय-अकम्मभूमग-अंतरदीवगमनुस्सतिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववज्जंति। सेसं तं चेव। एवं जाव थणियकुमारा भाणियव्वा। Translated Sutra: भगवन् ! असुरकुमार कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार नारकों के समान असुरकुमारों का भी उपपात कहना। विशेष यह कि असंख्यातवर्ष की आयुवाले, अकर्मभूमिज एवं अन्तर्दीपज मनुष्यों और तिर्यंचयोनिकों से भी उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 338 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? किं नेरइएहिंतो जाव देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो मनुस्सेहिंतो देवेहिंतो वि उववज्जंति।
जदि तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो वि जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववज्जंति।
जदि एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं पुढविकाइएहिंतो जाव वणप्फइ-काइएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! पुढविकाइएहिंतो वि जाव वणप्फइकाइएहिंतो वि उववज्जंति।
जदि पुढविकाइएहिंतो उववज्जंति किं Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! तिर्यंचयोनिकों, मनुष्ययोनिकों तथा देवों से उत्पन्न होते हैं। यदि (वे) तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं। यदि एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं तो पृथ्वीकायिकों | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 340 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! कतोहिंतो उववज्जंति? किं नेरइएहिंतो उववज्जंति जाव देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नेरइएहिंतो वि तिरिक्खजोणिएहिंतो वि मनूसेहिंतो वि देवेहिंतो वि उववज्जंति।
जदि नेरइएहिंतो उववज्जंति किं रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमा-पुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो वि जाव अहेसत्तमापुढवि-नेरइएहिंतो वि उववज्जंति।
जदि तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं एगिंदिएहिंतो उववज्जंति जाव पंचेंदिएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! एगिंदिएहिंतो वि जाव पंचेंदिएहिंतो वि उववज्जंति।
जदि एगिंदिएहिंतो उववज्जंति किं पुढविकाइएहिंतो Translated Sutra: भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! नैरयिकों यावत् देवों से भी उत्पन्न होते हैं। यदि नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं तो रत्नप्रभापृथ्वी यावत् अधःसप्तमी के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं। यदि तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 341 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सा णं भंते! कतोहिंतो उववज्जंति? किं नेरइएहिंतो जाव देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नेरइएहिंतो वि उववज्जंति जाव देवेहिंतो वि उववज्जंति।
जदि नेरइएहिंतो उववज्जंति किं रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो जाव अहेसत्तमापुढवि-नेरइएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! रतणप्पभापुढविनेरइएहिंतो वि जाव तमापुढविनेरइएहिंतो वि उववज्जंति, नो अहेसत्तमापुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति।
जदि तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? एवं जेहिंतो पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं उववाओ भणितो तेहिंतो मनुस्साण वि निरवसेसो भाणितव्वो, नवरं–अहेसत्तमापुढविनेरइय-तेउ-वाउकाइएहिंतो Translated Sutra: भगवन् ! मनुष्य कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! नैरयिकों से यावत् देवों से उत्पन्न होते हैं। यदि नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, तो रत्नप्रभापृथ्वी यावत् तमःप्रभापृथ्वी तक के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, अधःसप्तमीपृथ्वी के नहीं। यदि मनुष्य तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रिय आदि से | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 342 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वाणमंतरदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? किं नेरइएहिंतो जाव देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! जेहिंतो असुरकुमारा तेहिंतो भाणियव्वा। Translated Sutra: भगवन् ! वाणव्यन्तर देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! असुरकुमारों की उत्पत्ति के समान वाणव्यन्तर देवों की भी उत्पत्ति कहना। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 343 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जोइसियदेवा णं भंते! कतोहिंतो उववज्जंति? गोयमा! एवं चेव, नवरं–सम्मुच्छिमअसंखेज्ज-वासाउय-खहयर-अंतरदीवमनुस्सवज्जेहिंतो उववज्जावेयव्वा। Translated Sutra: भगवन् ! ज्योतिष्क देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! ज्योतिष्क देवों का उपपात असुरकुमारों के समान समझना। विशेष यह कि ज्योतिष्कों की उत्पत्ति सम्मूर्च्छिम असंख्यातवर्षायुष्क – खेचर – पंचेन्द्रिय – तिर्यग्योनिकों को तथा अन्तर्द्वीपज मनुष्यों को छोड़कर कहना। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 344 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वेमानिया णं भंते कओहिंतो उववज्जंति किं नेरइएहिंतो पंचेंदियतिरिक्खजोणिहिंतो मनुस्सेहिंतो देवेहिंतो गोयमा नो नेरइएहिंतो उववज्जंति पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति मनुस्सेहिंतो उववज्जंति नो देवेहिंतो उववज्जंति एवं चेव वेमानिया वि सोहम्मीसाणगा भाणितव्वा। एवं सणंकुमारगा वि, नवरं–असंखेज्जवासाउयअकम्मभूमगवज्जेहिंतो उववज्जंति। एवं जाव सहस्सार-कप्पोवगवेमानियदेवा भाणितव्वा।
आणयदेवा णं भंते! कतोहिंतो उववज्जंति? किं नेरइएहिंतो जाव देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो।
जदि Translated Sutra: भगवन् ! वैमानिक देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों तथा मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार सौधर्म और ईशान कल्प के देवों में कहना। सनत्कुमार देवों में भी यहीं कहना। विशेष यह कि ये असंख्यातवर्षायुष्क अकर्मभूमिकों को छोड़कर उत्पन्न होते हैं। सहस्रारकल्प तक भी यहीं कहना। आनत | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 345 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति? किं नेरइएसु उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति? मनुस्सेसु उववज्जंति? देवेसु उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएसु उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, मनुस्सेसु उववज्जंति, नो देवेसु उववज्जंति।
जदि तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएसु जाव पंचेंदियतिरिक्ख-जोणिएसु उववज्जंति? गोयमा! नो एगिंदिएसु जाव नो चउरिंदिएसु उववज्जंति, पंचेंदिएसु उववज्जंति। एवं जेहिंतो उववाओ भणितो तेसु उव्वट्टणा वि भाणितव्वा, नवरं–सम्मुच्छिमेसु न उववज्जंति। एवं सव्वपुढवीसु भाणितव्वं, नवरं–अहेसत्तमाओ मनुस्सेसु Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक जीव अनन्तर उद्वर्त्तन करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे तिर्यंचयोनिकों में या मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं। यदि (वे) तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों में ही उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार उपपात के समान उद्वर्त्तना भी कहना। विशेष यह कि वे सम्मूर्च्छिमों | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 346 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] असुरकुमारा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति? किं नेरइएसु उववज्जंति जाव देवेसु उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएसु उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, मनुस्सेसु उववज्जंति, नो देवेसु उववज्जंति।
जदि तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएसु जाव पंचेंदियतिरिक्ख-जोणिएसु उववज्जंति? गोयमा! एगिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, नो बेइंदिएसु जाव नो चउरिंदिएसु उववज्जंति, पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति।
जदि एगिंदिएसु उववज्जंति किं पुढविकाइयएगिंदिएसु जाव वणस्सइकाइयएगिंदिएसु उववज्जंति? गोयमा! पुढविकाइयएगिंदिएसु वि आउकाइयएगिंदिएसु Translated Sutra: भगवन् ! असुरकुमार अनन्तर उद्वर्त्तना करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं। यदि (वे) तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो वे एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रियों तिर्यंचयोनिकों में ही उत्पन्न होते हैं। यदि एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं तो (वे) पृथ्वीकायिक, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 347 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइया णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति? किं नेरइएसु जाव देवेसु? गोयमा! नो नेरइएसु उववज्जंति तिरिक्खजोणियमनुस्सेसु उववज्जंति, नो देवेसु। एवं जहा एतेसिं चेव उववाओ तहा उव्वट्टणा वि देववज्जा भाणितव्वा।
एवं आउ-वणस्सइ-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदिया वि। एवं तेऊ वाऊ वि नवरं–मनुस्सवज्जेसु उववज्जंति। Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव अनन्तर उद्वर्त्तन करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम (वे) तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं। इनके उपपात के समान इनकी उद्वर्त्तना भी कहनी चाहिए। इसी प्रकार अप्कायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रियों (की भी उद्वर्त्तना कहना।) इसी प्रकार तेजस्कायिक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 348 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति कहिं उववज्जंति? किं नेरइएसु जाव देवेसु? गोयमा! नेरइएसु उववज्जंति जाव देवेसु उववज्जंति।
जदि नेरइएसु उववज्जंति किं रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जंति जाव अहेसत्तमापुढवि-नेरइएसु उववज्जंति? गोयमा! रयणप्पभापुढविनेरइएसु वि उववज्जंति जाव अहेसत्तमापुढवि-नेरइएसु वि उववज्जंति।
जदि तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति किं एगिंदिएसु जाव पंचिंदिएसु? गोयमा! एगिंदिएसु वि उववज्जंति जाव पंचिंदिएसु वि उववज्जंति। एवं जहा एतेसिं चेव उववाओ उव्वट्टणा वि तहेव भाणितव्वा, नवरं–असंखेज्जवासाउएसु वि एते उववज्जंति।
जदि मनुस्सेसु Translated Sutra: भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक अनन्तर उद्वर्त्तना करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम (वे) नैरयिकों यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं। यदि (वे) नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, तो रत्नप्रभा यावत् अधः – सप्तमीपृथ्वी के नैरयिकों में भी उत्पन्न होते हैं। यदि (वे) तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो एकेन्द्रियों | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 349 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति? किं नेरइएसु उववज्जंति जाव देवेसु उववज्जंति? गोयमा! नेरइएसु वि उववज्जंति जाव देवेसु वि उववज्जंति। एवं निरंतरं सव्वेसु ठाणेसु पुच्छा। गोयमा! सव्वेसु ठाणेसु उववज्जंति, न कहिंचि पडिसेहो कायव्वो जाव सव्वट्ठगसिद्ध-देवेसु वि उववज्जंति। अत्थेगतिया सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति। Translated Sutra: भगवन् ! मनुष्य अनन्तर उद्वर्त्तन करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) नैरयिकों यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! क्या (मनुष्य) नैरयिक आदि सभी स्थानों में उत्पन्न होते हैं ? हा गौतम ! होते हैं, कहीं भी इनके उत्पन्न होने का निषेध नहीं करना, यावत् कईं मनुष्य सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होते हैं, परिनिर्वाण | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 351 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! कतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति? गोयमा! नियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा।
पुढविकाइया णं भंते! कतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति? गोयमा! पुढविकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सोवक्कमाउया य निरुवक्कमाउया य। तत्थ णं जेते निरुवक्कम्माउया ते नियमा तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। तत्थ णं जेते सोवक्कमाउया ते सिय तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति, सिय तिभागतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति, सिय तिभागतिभागतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। आउ-तेउ-वाउ-वणस्सइकाइयाणं बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाण Translated Sutra: भगवन् ! आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर नैरयिक परभव का आयु बांधता है ? गौतम ! नियत से छह मास आयु शेष रहने पर। इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक कहना। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर परभव का आयु बांधते हैं ? गौतम ! पृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं, सोपक्रम आयुवाले और निरुपक्रम आयुवाले। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 352 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविधे णं भंते! आउयबंधे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विधे आउयबंधे पन्नत्ते, तं जहा–जातिनाम-निहत्ताउए, गइनामनिहत्ताउए, ठितीनामनिहत्ताउए, ओगाहणाणामनिहत्ताउए, पदेसणामनिहत्ताउए, अनुभावनामनिहत्ताउए।
नेरइयाणं भंते! कतिविहे आउयबंधे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे आउयबंधे पन्नत्ते, तं जहा–जातिनामनिहत्ताउए, गतिनामनिहत्ताउए, ठितीनामनिहत्ताउए, ओगाहणानामनिहत्ताउए, पदेसनाम-निहत्ताउए, अनुभावनामनिहत्ताउए। एवं जाव वेमानियाणं।
जीवा णं भंते! जातिणामणिहत्ताउयं कतिहिं आगरिसेहिं पकरेंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं अट्ठहिं।
नेरइया णं भंते! जाइनामनिहत्ताउयं Translated Sutra: भगवन् ! आयुष्य का बन्ध कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का। जातिनामनिधत्तायु, गतिनाम – निधत्तायु, स्थितिनामनिधत्तायु, अवगाहनानामनिधत्तायु, प्रदेशनामनिधत्तायु और अनुभावनामनिधत्तायु। भगवन् ! नैरयिकों का आयुष्यबन्ध कितने प्रकार का कहा है ? पूर्ववत् जानना। इसी प्रकार वैमानिकों तक समझ लेना। भगवन् | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-७ उच्छवास |
Hindi | 353 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा? गोयमा! सततं संतयामेव आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा।
असुरकुमारा णं भंते! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा? गोयमा! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं सातिरेगस्स पक्खस्स आणमंति वा जाव नीससंति वा।
नागकुमारा णं भंते! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा? गोयमा! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं मुहुत्तपुहत्तस्स। एवं जाव थणियकुमाराणं।
पुढविकाइया णं भंते! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा जाव नीससंति वा? गोयमा! वेमायाए आणमंति वा जाव नीससंति Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक कितने काल से उच्छ्वास लेते और निःश्वास छोड़ते हैं ? गौतम ! सतत सदैव उच्छ्वास – निःश्वास लेते रहते हैं। भगवन् ! असुरकुमार ? गौतम ! वे जघन्यतः सात स्तोक में और उत्कृष्टतः एक पक्ष में श्वास लेते और छोड़ते हैं। भगवन् ! नागकुमार ? गौतम ! वे जघन्य सात स्तोक और उत्कृष्टतः मुहूर्त्तपृथक्त्व में श्वास | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-८ संज्ञा काळ |
Hindi | 354 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! सण्णाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! दस सण्णाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–आहारसण्णा, भय-सण्णा, मेहुणसण्णा, परिग्गहसण्णा, कोहसण्णा, मानसण्णा, मायासण्णा, लोभसण्णा, लोगसण्णा, ओघसण्णा।
नेरइयाणं भंते! कति सण्णाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! दस सण्णाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–आहारसण्णा, भयसण्णा, मेहुणसण्णा, परिग्गहसण्णा, कोहसण्णा, मानसण्णा, मायासण्णा, लोभ-सण्णा, लोगसण्णा, ओघसण्णा।
असुरकुमाराणं भंते! कति सण्णाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! दस सण्णाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–आहारसण्णा जाव ओघसण्णा। एवं जाव थणियकुमाराणं। एवं पुढविकाइयाणं वेमानियावसाणाणं नेयव्वं। Translated Sutra: भगवन् ! संज्ञाएं कितनी हैं ? गौतम ! दश। आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा, क्रोधसंज्ञा, मानसंज्ञा, मायासंज्ञा, लोभसंज्ञा, लोकसंज्ञा और ओघसंज्ञा। भगवन् ! नैरयिकों में कितनी संज्ञाएं हैं ? हे गौतम ! पूर्ववत् दश। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक यावत् वैमानिक तक सभी जीवों में दश संज्ञाएं हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-८ संज्ञा काळ |
Hindi | 355 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं आहारसण्णोवउत्ता भयसण्णोवउत्ता मेहुणसण्णोवउत्ता परिग्गहसण्णोवउत्ता? गोयमा! ओसन्नकारणं पडुच्च भयसण्णोवउत्ता, संतइभावं पडुच्च आहारसण्णोवउत्ता वि जाव परिग्गहसण्णोवउत्ता वि।
एतेसि णं भंते! नेरइयाणं आहारसण्णोवउत्ताणं भयसण्णोवउत्ताणं मेहुणसण्णोवउत्ताणं परिग्गहसण्णोवउत्ताण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा नेरइया मेहुणसण्णोवउत्ता, आहारसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा, परिग्गहसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा, भयसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा।
तिरिक्खजोणिया णं भंते! किं आहारसण्णोवउत्ता जाव परिग्गहसण्णोवउत्ता? Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक कौन सी संज्ञावाले हैं ? गौतम ! बहुलता से बाह्य कारण की अपेक्षा वे भयसंज्ञा से उपयुक्त हैं, (किन्तु) आन्तरिक अनुभवरूप से (वे) आहार – भय – मैथुन और परिग्रहसंज्ञोपयुक्त भी हैं। भगवन् ! इन आहारसंज्ञोपयुक्त, भयसंज्ञोपयुक्त, मैथुनसंज्ञोपयुक्त एवं परिग्रहसंज्ञोपयुक्त नारकों में से कौन किनसे अल्प, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-९ योनी |
Hindi | 357 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! किं सीता जोणी? उसिणा जोणी? सीतोसिणा जोणी? गोयमा! सीता वि जोणी, उसिणा वि जोणी, नो सीतोसिणा जोणी।
असुरकुमाराणं भंते! किं सीता जोणी? उसिणा जोणी? सीतोसिणा जोणी? गोयमा! नो सीता, नो उसिणा, सीतोसिणा जोणी। एवं जाव थणियकुमाराणं।
पुढविकाइयाणं भंते! किं सीता जोणी? उसिणा जोणी? सीतोसिणा जोणी? गोयमा! सीता वि जोणी, उसिणा वि जोणी, सीतोसिणा वि जोणी। एवं आउ-वाउ-वणस्सति-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाण वि पत्तेयं भाणियव्वं।
तेउक्काइयाणं नो सीता, उसिणा, नो सीतोसिणा।
पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते! किं सीता जोणी? उसिणा जोणी? सीतोसिणा जोणी? गोयमा! सीता वि जोणी, उसिणा वि जोणी, सीतोसिणा Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिकों की कौन सी योनि है ? गौतम ! शीतयोनि और उष्ण योनि होती है, शीतोष्ण नहीं होती। असुरकुमार देवों की केवल शीतोष्ण योनि होती है। इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक समझना। भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की कौन सी योनि है ? गौतम ! शीत, उष्ण और शीतोष्ण योनि होती है। इसी तरह अप्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-९ योनी |
Hindi | 358 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! जोणी पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा जोणी पन्नत्ता। तं० सचित्ता, अचित्ता, मीसिया।
नेरइयाणं भंते! किं सचित्ता जोणी? अचित्ता जोणी? मीसिया जोणी? गोयमा! नो सचित्ता जोणी, अचित्ता जोणी, नो मीसिया जोणी।
असुरकुमाराणं भंते! किं सचित्ता जोणी? अचित्ता जोणी? मीसिया जोणी? गोयमा! नो सचित्ता जोणी, अचित्ता जोणी, नो मीसिया जोणी। एवं जाव थणियकुमाराणं।
पुढविकाइयाणं भंते! किं सचित्ता जोणी? अचित्ता जोणी? मीसिया जोणी? गोयमा! सचित्ता वि जोणी, अचित्ता वि जोणी, मीसिया वि जोणी। एवं जाव चउरिंदियाणं। सम्मुच्छिमपंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं सम्मुच्छिममनुस्साण य एवं चेव।
गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं Translated Sutra: भगवन् ! योनि कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार की। सचित्त योनि, अचित्त योनि और मिश्र योनि। भगवन् ! नैरयिकों की योनि क्या सचित्त है, अचित्त है अथवा मिश्र है ? गौतम ! नारकों की योनि केवल अचित्त होती है। इसी तरह असुरकुमार से स्तनितकुमार तक जानना। पृथ्वीकायिक जीवों की योनि सचित्त, अचित्त और मिश्र होती है। इसी | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-९ योनी |
Hindi | 359 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! जोणी पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा जोणी पन्नत्ता, तं जहा–संवुडा जोणी, वियडा जोणी, संवुडवियडा जोणी।
नेरइयाणं भंते! किं संवुडा जोणी? वियडा जोणी? संवुडवियडा जोणी? गोयमा! संवुडा जोणी, नो वियडा जोणी, नो संवुडवियडा जोणी। एवं जाव वणस्सइकाइयाणं।
बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! नो संवुडा जोणी, वियडा जोणी, नो संवुडवियडा जोणी। एवं जाव चउरिंदियाणं। सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं सम्मुच्छिममनुस्साण य एवं चेव।
गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गब्भवक्कंतियमनुस्साण य नो संवुडा जोणी, नो वियडा जोणी, संवुडवियडा जोणी।
वाणमंतर-जोइसिय-वेमानियाणं जहा नेरइयाणं।
एतेसि Translated Sutra: भगवन् ! योनि कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार की। संवृत योनि, विवृत योनि और संवृत – विवृतयोनि। भगवन् ! नैरयिकों की योनि क्या संवृत होती है, विवृत होती है अथवा संवृत – विवृत है ? गौतम ! नैरयिकों की योनि केवल संवृत होती है। इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों तक कहना। द्वीन्द्रिय जीवों की योनि विवृत होती है। इसी | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-९ योनी |
Hindi | 360 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! जोणी पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा जोणी पन्नत्ता, तं जहा–कुम्मुण्णया, संखावत्ता, वंसीपत्ता कुम्मुण्णया णं जोणी उत्तमपुरिसमाऊणं। कुम्मुण्णयाए णं जोणीए उत्तमपुरिसा गब्भे वक्कमंति, तं जहा–अरहंता चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा। संखावत्ता णं जोणी इत्थिरयणस्स। संखावत्ताए णं जोणीए बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति विउक्कमंति चयंति उवचयंति, नो चेव णं निप्फज्जंति। वंसीपत्ता णं जोणी पिहुजणस्स। वंसीपत्ताए णं जोणीए पिहुजणा गब्भे वक्कमंति। Translated Sutra: भगवन् ! योनि कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार की। कूर्मोन्नता, शंखावर्त्ता और वंशीपत्रा। कूर्मोन्नता योनि में उत्तमपुरुष गर्भ में उत्पन्न होते हैं। जैसे – अर्हन्त, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव। शंखावर्त्ता योनि स्त्रीरत्न की होती है। शंखावर्त्ता योनि में बहुत – से जीव और पुद्गल आते हैं, गर्भरूप में | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१० चरिम |
Hindi | 361 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–रयणप्पभा, सक्करप्पभा, वालु-यप्पभा, पंकप्पभा, धूमप्पभा, तमप्पभा, तमतमप्पभा, ईसीपब्भारा।
इमा णं भंते! रयणप्पभा पुढवी किं चरिमा अचरिमा चरिमाइं अचरिमाइं चरिमंतपदेसा अचरिमंतपदेसा? गोयमा! इमा णं रतणप्पभा पुढवी नो चरिमा नो अचरिमा नो चरिमाइं नो अचरिमाइं नो चरिमंतपदेसा नो अचरिमंतपदेसा, नियमा अचरिमं च चरिमाणि य चरिमंतपदेसा य अचरिमंत-पएसा य। एवं जाव अहेसत्तमा पुढवी। सोहम्मादी जाव अनुत्तरविमाना एवं चेव। ईसीपब्भारा वि एवं चेव। लोगे वि एवं चेव। एवं अलोगे वि। Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीयाँ कितनी कही गई है ? गौतम ! आठ पृथ्वीयाँ हैं – रत्नप्रभा, शर्करप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, तमस्तमःप्रभा और ईषत्प्राग्भारा। भगवन् ! क्या यह रत्नप्रभापृथ्वी चरम है, अचरम है, अनेक चरमरूप है, अनेक अचरमरूप है, चरमान्त बहुप्रदेशरूप है अथवा अचरमान्त बहुप्रदेशरूप है ? गौतम ! नियमतः | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१० चरिम |
Hindi | 362 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए अचरिमस्स य चरिमाण य चरिमंतपएसाण य अचरिमंतपएसाण य दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठपएसट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे, चरिमाइं असंखेज्जगुणाइं, अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाइं। पदेसट्ठयाए सव्वत्थोवा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए चरिमंतपदेसा, अचरिमंतपएसा असंखेज्जगुणा, चरिमंतपएसा य अचरिमंत-पएसा य दो वि विसेसाहिया। दव्वट्ठपदेसट्ठयाए सव्वत्थोवा इमीसे रतणप्पभाए पुढवीए दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे, चरिमाइं असंखेज्जगुणाइं, अचरिमं च चरिमाणि Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के अचरम और बहुवचनान्त चरम, चरमान्तप्रदेशों तथा अचरमान्तप्रदेशों में द्रव्यों, प्रदेशों से और द्रव्य – प्रदेश की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प है, बहुत है, तुल्य है अथवा विशेषाधिक है ? गौतम! द्रव्य से इस रत्नप्रभापृथ्वी का एक अचरम सबसे कम है। उससे (बहुवचनान्त) चरम असंख्यातगुणे हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१० चरिम |
Hindi | 363 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अलोगस्स णं भंते! अचरिमस्स य चरिमाण य चरिमंतपएसाण य अचरिमंतपएसाण य दव्वट्ठयाए पदेसट्ठयाए दव्वट्ठपदेसट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवे अलोगस्स दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे, चरिमाइं असंखेज्जगुणाइं, अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाइं। पदेसट्ठयाए सव्वत्थोवा अलोगस्स चरिमंतपदेसा अचरिमंत-पदेसा अनंतगुणा, चरिमंतपदेसा य अचरिमंतपदेसा य दो वि विसेसाहिया। दव्वट्ठ- पदेसट्ठयाए सव्वत्थोवे अलोगस्स दव्व ट्ठयाए एगे अचरिमे, चरिमाइं असंखेज्जगुणाइं, अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाइं, चरिमंतपदेसा असंखेज्जगुणा, अचरिमंतपदेसा Translated Sutra: भगवन् ! अलोक के अचरम, चरमों, चरमान्तप्रदेशों और अचरमान्तप्रदेशों में अल्पबहुत्व – गौतम ! द्रव्य से – सबसे कम अलोक का एक अचरम है। उससे असंख्यातगुणे (बहुवचनान्त) चरम हैं। अचरम और (बहुवच – नान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं। प्रदेशों से – सबसे कम अलोक के चरमान्तप्रदेश हैं, उनसे अनन्तगुणे अचर – मान्त प्रदेश हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१० चरिम |
Hindi | 364 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! किं चरिमे १ अचरिमे २ अवत्तव्वए ३? चरिमाइं ४ अचरिमाइं ५ अवत्तव्वयाइं ६? उदाहु चरिमे य अचरिमे य ७ उदाहु चरिमे य अचरिमाइं च ८ उदाहु चरिमाइं च अचरिमे य ९ उदाहु चरिमाइं च अचरिमाइं च १०? [पढमा चउभंगी] ।
उदाहु चरिमे य अवत्तव्वए य ११ उदाहु चरिमे य अवत्तव्वयाइं च १२ उदाहु चरिमाइं च अवत्तव्वए य १३ उदाहु चरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च १४? [बीया चउभंगी] ।
उदाहु अचरिमे य अवत्तव्वए य १५ उदाहु अचरिमे य अवत्तव्वयाइं त १६ उदाहु अचरिमाइं च अवत्तव्वए य १७ उदाहु अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च १८? [तइया चउभंगी] ।
उदाहु चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वए य १९ उदाहु चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वयाइं Translated Sutra: भगवन् ! परमाणुपुद्गल क्या चरम है ? अचरम है ? अवक्तव्य है ? अथवा अनेक चरमरूप है ?, अनेक अचरमरूप है ?, बहुत अवक्तव्यरूप है ? अथवा चरम और अचरम है ? या एक चरम और अनेक अचरमरूप है ? अथवा अनेक चरमरूप और एक अचरम है ? या अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप है ? यह प्रथम चतुर्भंगी हुई। अथवा चरम और अवक्तव्य है ? अथवा एक चरम और बहुत अवक्तव्यरूप | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१० चरिम |
Hindi | 365 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दुपएसिए णं भंते! खंधे पुच्छा। गोयमा! दुपएसिए खंधे सिय चरिमे १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्वए ३, सेसा भंगा परिसेहेयव्वा।
तिपएसिए णं भंते! खंधे पुच्छा। गोयमा! तिपएसिए खंधे सिय चरिमे १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्वए ३ नो चरिमाइं ३ नो अचरिमाइं ५ नो अवत्तव्वयाइं ६, नो चरिमे य अचरिमे य ७ नो चरिमे य अचरिमाइं ८ सिय चरिमाइं च अचरिमे य ९ नो चरिमाइं च अचरिमाइं च १०, सिय चरिमे य अवत्तव्वए य ११, सेसा भंगा पडिसेहेयव्वा।
चउपएसिए णं भंते! खंधे पुच्छा। गोयमा! चउपएसिए णं खंधे सिय चरिमे १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्वए ३ नो चरिमाइं ४ नो अचरिमाइं ५ नो अवत्तव्वयाइं ६, नो चरिमे य अचरिमे य ७ नो चरिमे य अचरिमाइं Translated Sutra: भगवन् ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध के विषय में प्रश्न – गौतम ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध कथंचित् चरम और कथंचित् अवक्तव्य है। भगवन् ! त्रिप्रदेशिक स्कन्ध ? गौतम ! कथंचित् चरम है, कथंचित् अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अचरम है और कथंचित् एक चरम और एक अवक्तव्य है। भगवन् ! चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध ? गौतम ! कथंचित् | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१० चरिम |
Hindi | 372 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! संठाणा पन्नत्ता? गोयमा! पंच संठाणा पन्नत्ता, तं जहा–परिमंडले वट्टे तंसे चउरंसे आयते।
परिमंडला णं भंते! संठाणा किं संखेज्जा असंखेज्जा अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता। एवं जाव आयता।
परिमंडले णं भंते! संठाणे किं संखेज्जपएसिए असंखेज्जपएसिए अनंतपएसिए? गोयमा! सिय संखेज्जपएसिए सिय असंखेज्जपदेसिए सिय अनंतपदेसिए। एवं जाव आयते।
परिमंडले णं भंते! संठाणे संखेज्जपदेसिए किं संखेज्जपदेसोगाढे असंखेज्जपएसोगाढे अनंतपएसोगाढे? गोयमा! संखेज्जपएसोगाढे, नो असंखेज्जपएसोगाढे नो अनंतपएसोगाढे। एवं जाव आयते।
परिमंडले णं भंते! संठाणे असंखेज्जपदेसिए किं Translated Sutra: भगवन् ! संस्थान कितने कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच – परिमण्डल, वृत्त, त्र्यस्र, चतुरस्र और आयत। भगवन् ! परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। इसी प्रकार यावत् आयत तक समझना। भगवन् ! परिमण्डलसंस्थान संख्यातप्रदेशी है, असंख्यातप्रदेशी है अथवा अनन्तप्रदेशी है ? गौतम ! कदाचित् | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१० चरिम |
Hindi | 373 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गतिचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे।
नेरइए णं भंते! गतिचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे। एवं निरंतरं जाव वेमाणिए।
नेरइया णं भंते! गतिचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा? गोयमा! चरिमा वि अचरिमा वि। एवं निरंतरं जाव वेमानिया।
नेरइए णं भंते! ठितीचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे। एवं निरंतरं जाव वेमाणिए।
नेरइया णं भंते! ठितीचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा? गोयमा! चरिमा वि अचरिमा वि। एवं निरंतरं जाव वेमानिया।
नेरइए णं भंते! भवचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे। एवं निरंतरं जाव वेमाणिए।
नेरइया Translated Sutra: भगवन् ! जीव गतिचरम से चरम है अथवा अचरम ? गौतम ! कथंचित् चरम है, कथंचित् अचरम है। भगवन्! (एक) नैरयिक गतिचरम से चरम है या अचरम ? गौतम ! कथंचित् चरम और कथंचित् अचरम है। इसी प्रकार (एक) वैमानिक तक जानना। भगवन् ! (अनेक) नैरयिक गतिचरम से चरम हैं अथवा अचरम ? गौतम ! चरम भी हैं और अचरम भी। इसी प्रकार (अनेक) वैमानिक तक कहना। भगवन् | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-११ भाषा |
Hindi | 375 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! मण्णामीति ओहारिणी भासा? चिंतेमीति ओहारिणी भासा? अह मण्णामीति ओहारिणी भासा? अह चिंतेमीति ओहारिणी भासा? तह मण्णामीति ओहारिणी भासा? तह चिंतेमीति ओहारिणी भासा? हंता गोयमा! मण्णामीति ओहारिणी भासा, चिंतेमीति ओहारिणी भासा, अह मण्णामीति ओहारिणी भासा, अह चिंतेमीति ओहारिणी भासा, तह मण्णामीति ओहारिणी भासा, तह चिंतेमीति ओहारिणी भासा।
ओहारिणी णं भंते! भासा किं सच्चा मोसा सच्चामोसा असच्चामोसा? गोयमा! सिय सच्चा, सिय मोसा, सिय सच्चामोसा, सिय असच्चामोसा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–ओहारिणी णं भासा सिय सच्चा सिय मोसा सिय सच्चामोसा सिय असच्चामोसा? गोयमा! आराहणी Translated Sutra: भगवन् ! मैं ऐसा मानता हूँ कि भाषा अवधारिणी है; मैं ऐसा चिन्तन करता हूँ कि भाषा अवधारिणी है; भगवन् ! क्या मैं ऐसा मानूँ ? क्या ऐसा चिन्तन करूँ कि भाषा अवधारिणी है ? हाँ, गौतम ! यह सर्व सत्य है। भगवन् ! अवधारिणी भाषा क्या सत्य है, मृषा है, सत्यामृषा है, अथवा असत्यामृषा है ? गौतम ! वह कदाचित् सत्य होती है, कदाचित् मृषा | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-११ भाषा |
Hindi | 376 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! गाओ मिया पसू पक्खी पन्नवणी णं एसा भासा? न एसा भासा मोसा? हंता गोयमा! गाओ मिया पसू पक्खी पन्नवणी णं एसा भासा, न एसा भासा मोसा।
अह भंते! जा य इत्थिवऊ जा य पुमवऊ जा य नपुंसगवऊ पन्नवणी णं एसा भासा? न एसा भासा मोसा? हंता गोयमा! जा य इत्थिवऊ जा य पुमवऊ जा य नपुंसगवऊ पन्नवणी णं एसा भासा, न एसा भासा मोसा।
अह भंते! जा य इत्थिआणमणी जा य पुमआणमणी जा य नपुंसगआणमणी पन्नवणी णं एसा भासा? न एसा भासा मोसा? हंता गोयमा! जा य इत्थिआणमणी जा य पुमआणमणी जा य नपुंसगआणमणी पन्नवणी णं एसा भासा, न एसा भासा मोसा।
अह भंते! जा य इत्थीपन्नवणी जा य पुमपन्नवणी जा य नपुंसगपन्नवणी पन्नवणी णं एसा भासा? न एसा Translated Sutra: भगवन् ! ‘गायें’, ‘मृग’, ‘पशु’, ‘पक्षी’ क्या यह भाषा प्रज्ञापनी हैं ? यह भाषा मृषा नहीं है ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है। भगवन् ! जो स्त्रीवचन, पुरुषवचन अथवा नपुंसकवचन है, क्या यह प्रज्ञापनी भाषा है ? यह भाषा मृषा नहीं है ? हाँ, ऐसा ही है। भगवन् ! यह जो स्त्री – आज्ञापनी, पुरुष – आज्ञापनी अथवा नपुंसक – आज्ञापनी है, क्या यह प्रज्ञापनी | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-११ भाषा |
Hindi | 377 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणइ बुयमाणे अहमेसे बुयामि अहमेसे बुयामीति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, नन्नत्थ सण्णिणो।
अह भंते! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणति आहारमाहारेमाणे अहमेसे आहारमाहारेमि अहमेसे आहारमाहारेमि त्ति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, नन्नत्थ सण्णिणो।
अह भंते! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणति अयं मे अम्मापियरो अयं मे अम्मापियरो त्ति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, नन्नत्थ सण्णिणो।
अह भंते! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणति अयं मे अतिराउले अयं मे अतिराउले त्ति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, नन्नत्थ सण्णिणो।
अह भंते! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणति Translated Sutra: भगवन् ! क्या मन्द कुमार अथवा मन्द कुमारिका बोलती हुई ऐसा जानती है कि मैं बोल रही हूँ ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, सिवाय संज्ञी के। भगवन् ! क्या मन्द कुमार अथवा मन्द कुमारिका आहार करती हुई जानती है कि मैं इस आहार को करता हूँ या करती हूँ ? गौतम ! संज्ञी को छोड़कर यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! क्या मन्द कुमार अथवा | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-११ भाषा |
Hindi | 378 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! मनुस्से महिसे आसे हत्थो सीहे वग्घे वगे दीविए अच्छे तरच्छे परस्सरे सियाले विराले सुणए कोलसुणए कोक्कंतिए ससए चित्तए चिल्ललए जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वा सा एगवऊ? हंता गोयमा! मनुस्से जाव चिल्ललए जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वा सा एगवऊ।
अह भंते! मनुस्सा जाव चिल्ललगा जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वा सा बहुवऊ? हंता गोयमा! मनुस्सा जाव चिल्ललगा सव्वा सा बहुवऊ।
अह भंते! मनुस्सी महिसी बलवा हत्थिणिया सीही वग्घी वगी दीविया अच्छी तरच्छी परस्सरी सियाली विराली सुणिया कोलसुणिया कोक्कंतिया ससिया चित्तिया चिल्ललिया जा यावन्ना तहप्पगारा सव्वा सा इत्थिवऊ? हंता गोयमा! मनुस्सी जाव Translated Sutra: भगवन् ! मनुष्य, महिष, अश्व, हाथी, सिंह, व्याघ्र, वृक, द्वीपिक, ऋक्ष, तरक्ष, पाराशर, रासभ, सियार, बिडाल, शुनक, कोलशुनक, लोमड़ी, शशक, चीता और चिल्ललक, ये और इसी प्रकार के जो अन्य जीव हैं, क्या वे सब एकवचन हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! मनुष्यों से लेकर बहुत चिल्ललक तथा इसी प्रकार के जो अन्य प्राणी हैं, वे सब क्या बहुवचन हैं ? | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-११ भाषा |
Hindi | 379 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भासा णं भंते! किमादीया किंपहवा किंसंठिया किंपज्जवसिया? गोयमा! भासा णं जीवादीया सरीरपहवा वज्जसंठिया लोगंतपज्जवसिया पन्नत्ता। Translated Sutra: भगवन् ! भाषा की आदि क्या है ? भाषा का प्रभव – स्थान क्या है ? आकार कैसा है ? पर्यवसान कहाँ होता है ? गौतम ! भाषा की आदि जीव है। उत्पादस्थान शरीर है। वज्र के आकार की हैं। लोक के अन्त में उसका पर्यवसान होता है। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-११ भाषा |
Hindi | 382 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! भासा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा भासा पन्नत्ता, तं० पज्जत्तिया य अपज्जत्तिया य।
पज्जत्तिया णं भंते! भासा कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सच्चा य मोसा य।
सच्चा णं भंते! भासा पज्जत्तिया कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–जनवयसच्चा ठवणासच्चा नामसच्चा रूवसच्चा पडुच्चसच्चा ववहारसच्चा भावसच्चा जोगसच्चा ओवम्मसच्चा। Translated Sutra: भगवन् ! भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! दो प्रकार की। पर्याप्तिका और अपर्याप्तिका। पर्याप्तिका भाषा दो प्रकार की है। सत्या और मृषा। भगवन् ! सत्या – पर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! दस प्रकार की। जनपदसत्या, सम्मतसत्या, स्थापनासत्या, नामसत्या, रूपसत्या, प्रतीत्यसत्या, व्यवहारसत्या, भाव – सत्या, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-११ भाषा |
Hindi | 384 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मोसा णं भंते! भासा पज्जत्तिया कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–कोहनिस्सिया माननिस्सिया मायानिस्सिया लोभनिस्सिया पेज्जनिस्सिया दोसनिस्सिया हासनिस्सिया भयनिस्सिया अक्खाइयानिस्सिया उवघायनिस्सिया। Translated Sutra: भगवन् ! मृषा – पर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! दस प्रकार की। क्रोधनिःसृता, माननिःसृता, मायानिःसृता, लोभनिःसृता, प्रेयनिःसृता, द्वेषनिःसृता, हास्यनिःसृता, भयनिःसृता, आख्यायिका – निःसृता और उपघातनिःसृता। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-११ भाषा |
Hindi | 386 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अपज्जत्तिया णं भंते! भासा कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सच्चामोसा य असच्चामोसा य
सच्चामोसा णं भंते! भासा अपज्जत्तिया कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–उप्पन्नमिस्सिया, विगयमिस्सिया, उप्पन्नविगयमिस्सिया, जीवमिस्सिया अजीवमिस्सिया जीवा-जीवमिस्सिया अनंतमिस्सिया परित्तमिस्सिया, अद्धामिस्सिया अद्धद्धामिस्सिया।
असच्चामोसा णं भंते! भासा अप्पज्जत्तिया कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दुवालसविहा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: भगवन् ! अपर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! दो प्रकार की। सत्या – मृषा और असत्यामृषा। भगवन् ! सत्यामृषा – अपर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! दस प्रकार की। उत्पन्नमिश्रिता, विगत – मिश्रिता, उत्पन्न – विगतमिश्रिता, जीवमिश्रिता, अजीवमिश्रिता, जीवाजीवमिश्रिता, अनन्त – मिश्रिता, परित्तमिश्रिता, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-११ भाषा |
Hindi | 389 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं भासगा अभासगा? गोयमा! जीवा भासगा वि अभासगा वि।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जीवा भासगा वि अभासगा वि? गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नगा य असंसारसमावन्नगा य। तत्थ णं जेते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा। सिद्धा णं अभासगा। तत्थ णं जेते संसारसमावन्नगा ते णं दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सेलेसिपडिवणन्नगा य असेलेसिपडिवणन्नगा य। तत्थ णं जेते सेलेसिपडिवणन्नगा ते णं अभासगा। तत्थ णं जेते असेलेसिपडिवणन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–एगिंदिया य अनेगिंदिया य। तत्थ णं जेते एगिंदिया ते णं अभासगा। तत्थ णं जेते अनेगिंदिया ते दुविहा पन्नत्ता, तं Translated Sutra: भगवन् ! जीव भाषक हैं या अभाषक ? गौतम ! दोनों। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? गौतम! जीव दो प्रकार के हैं। संसारसमापन्नक और असंसारसमापन्नक। जो असंसारसमापन्नक जीव हैं, वे सिद्ध हैं और सिद्ध अभाषक होते हैं, जो संसारसमापन्नक जीव हैं, वे दो प्रकार के हैं – शैलेशीप्रतिपन्नक और अशैलेशीप्रतिपन्नक। जो शैलेषीप्रतिपन्नक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-११ भाषा |
Hindi | 390 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! भासज्जाता पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि भासज्जाता पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमेगं भासज्जातं, बितियं मोसं, ततियं सच्चामोसं, चउत्थं असच्चामोसं।
जीवा णं भंते! किं सच्चं भासं भासंति? मोसं भासं भासंति? सच्चामोसं भासं भासंति? असच्चामोसं भासं भासंति? गोयमा! जीवा सच्चं पि भासं भासंति, मोसं पि भासं भासंति, सच्चामोसं पि भासं भासंति, असच्चामोसं पि भासं भासंति।
नेरइया णं भंते! किं सच्चं भासं भासंति जाव असच्चामोसं भासं भासंति? गोयमा! नेरइया णं सच्चं पि भासं भासंति जाव असच्चामोसं पि भासं भासंति। एवं असुरकुमारा जाव थणियकुमारा।
बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदिया य नो सच्चं नो मोसं Translated Sutra: भगवन् ! भाषाजात कितने हैं ? गौतम ! चार। सत्यभाषाजात, मृषाभाषाजात, सत्यामृषाभाषाजात और असत्यामृषाभाषाजात। भगवन् ! जीव क्या सत्यभाषा बोलते हैं, मृषाभाषा बोलते हैं, सत्यामृषाभाषा बोलते हैं अथवा असत्या – मृषाभाषा बोलते हैं ? गौतम ! चारों भाषा बोलते हैं। भगवन् ! क्या नैरयिक सत्यभाषा बोलते हैं, यावत् असत्या |