Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (28178)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1134 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परियट्टणाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? परियट्टणाए णं वंजणाइं जणयइ, वंजणलद्धिं च उप्पाएइ।

Translated Sutra: भन्ते ! परावर्तना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? परावर्तना से व्यंजन स्थिर होता है। और जीव पदानुसारिता आदि व्यंजन – लब्धि को प्राप्त होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1135 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनुप्पेहाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? अनुप्पेहाए णं आउयवज्जाओ सत्तकम्मप्पगडीओ धनियबंधनबद्धाओ सिढिलबंधनबद्धाओ पकरेइ, दीहकालट्ठिइयाओ हस्सकालट्ठिइयाओ पकरेइ, तिव्वानुभावाओ मंदानुभावाओ पकरेइ, बहुपएसग्गाओ अप्पपएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ सिय नो बंधइ। असाया-वेयणिज्जं च णं कम्मं नो भुज्जो भुज्जो उवचिणाइ अनाइयं च णं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं खिप्पामेव वीइवयइ।

Translated Sutra: भन्ते! अनुप्रेक्षा से जीव को क्या प्राप्त होता है? अनुप्रेक्षा से जीव आयुष्‌ कर्म छोड़कर शेष ज्ञानावरणादि सात कर्म प्रकृतियों के प्रगाढ़ बन्धन को शिथिल करता है। उनकी दीर्घकालीन स्थिति को अल्पकालीन करता है। उनके तीव्र रसानुभाव को मन्द करता है। बहुकर्म प्रदेशों को अल्प – प्रदेशों में परिवर्तित करता है। आयुष्‌
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1141 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वोदाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ? वोदाणेणं अकिरियं जणयइ। अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! व्यवदान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? व्यवदान से जीव को अक्रिया प्राप्त होती है। अक्रिय होने से वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है, सब दुःखों का अन्त करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1142 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुहसाएणं भंते! जीवे किं जणयइ? सुहसाएणं अनुस्सुयत्तं जणयइ। अनुस्सुयाए णं जीवे अनुकंपए अनुब्भडे विगयसोगे चरित्तमोहणिज्जं कम्मं खवेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! वैषयिक सुखों की स्पृहा के निवारण से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सुख – शात से विषयों के प्रति अनुत्सुकता होती है। अनुत्सुकता से जीव अनुकम्पा करने वाला, अनुद्‌भट, शोकरहित होकर चारित्रमोहनीय कर्म का क्षय करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1143 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अप्पडिबद्धयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? अप्पडिबद्धयाए णं निस्संगत्तं जणयइ। निस्संगत्तेणं जीवे एगे एगग्गचित्ते दिया य राओ य असज्जमाणे अप्पडिबद्धे यावि विहरइ।

Translated Sutra: भन्ते ! अप्रतिबद्धता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? अप्रतिबद्धता से जीव निस्संग होता है। निस्संग होने से जीव एकाकी होता है, एकाग्रचित्त होता है। दिन – रात सदा सर्वत्र विरक्त और अप्रतिबद्ध होकर विचरण करता है
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1144 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विवित्तसयणासणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? विवित्तसयणासणयाए णं चरित्तगुत्तिं जणयइ। चरित्तगुत्ते य णं जीवे विवित्ताहारे दढचरित्ते एगंतरए मोक्खभावपडिवन्ने अट्ठविहकम्मगंठिं निज्जरेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! विविक्त शयनासन से जीव को क्या प्राप्त होता है ? विविक्त शयनासन से जीव चारित्र की रक्षा करता है। चारित्र की रक्षा करने वाला विविक्ताहारी दृढ चारित्री, एकान्तप्रिय, मोक्ष भाव से संपन्न जीव आठ प्रकार के कर्मों की ग्रन्थि का निर्जरण करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1145 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विनियट्टणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? विनियट्टणयाए णं पावकम्माणं अकरणयाए अब्भुट्ठेइ, पुव्वबद्धाण य निज्जरणयाए तं नियत्तेइ, तओ पच्छा चाउरंतं संसारकंतारं वीइवयइ।

Translated Sutra: भन्ते ! विनिवर्तना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? विनिवर्तना से – मन और इन्द्रियों को विषयों से अलग रखने की साधना से जीव पाप कर्म न करने के लिए उद्यत रहता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा से कर्मों को निवृत्त करता है। चार अन्तवाले संसार कान्तार को शीघ्र ही पार कर जाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1146 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संभोगपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ? संभोगपच्चक्खाणेणं आलंबणाइं खवेइ। निरालंबणस्स य आययट्ठिया जोगा भवंति। सएणं लाभेण संतुस्सइ, परलाभं नो आसाएइ नो तक्केइ नो पीहेइ नो पत्थेइ नो अभिलसइ। परलाभं अना-सायमाणे अतक्केमाणे अपीहेमाणे अपत्थेमाणे अनभिलसमाणे दुच्चं सुहसेज्जं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।

Translated Sutra: भन्ते ! सम्भोग के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सम्भोग (एक – दूसरे के साथ सहभोजन आदि के संपर्क) के प्रत्याख्यान से परावलम्बन से निरालम्ब होता है। निरालम्ब होने से उसके सारे प्रयत्न आयतार्थ हो जाते हैं। स्वयं के उपार्जित लाभ से सन्तुष्ट होता है। दूसरों के लाभ का आस्वादन नहीं करता है। उसकी कल्पना,
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1148 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आहारपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ? आहारपच्चक्खाणेणं जीवियासंसप्पओगं वोच्छिंदइ, वोच्छिंदित्ता जीवे आहारमंतरेणं न संकिलिस्सइ।

Translated Sutra: भन्ते ! आहार के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? आहार के प्रत्याख्यान से जीव जीवन की आशंसा के प्रयत्नों को विच्छिन्न कर देता है। जीवन की कामना के प्रयत्नों को छोड़कर वह आहार के अभाव में भी क्लेश को प्राप्त नहीं होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1150 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जोगपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ? जोगपच्चक्खाणेणं अजोगत्तं जणयइ। अजोगी णं जीवे नवं कम्मं न बंधइ पुव्वबद्धं निज्जरेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! योग – प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मन, वचन, काय से सम्बन्धित योग – प्रत्याख्यान से अयोगत्व को प्राप्त होता है। अयोगी जीव नए कर्मों का बन्ध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1152 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सहायपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ? सहायपच्चक्खाणेणं एगीभावं जणयइ। एगीभावभूए वि य णं जीवे एगग्गं भावेमाणे अप्पसद्दे अप्पज्झंज्झे अप्पकलहे अप्पकसाए अप्पतुमंतुमे संजमबहुले संवरबहुले समाहिए यावि भवइ।

Translated Sutra: भन्ते! सहाय – प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सहाय – प्रत्याख्यान से जीव एकीभाव को प्राप्त होता है। एकीभाव प्राप्त साधक एकाग्रता भावना करता हुआ विग्रहकारी शब्द, वाक्‌कलह झगड़ा – टंटा, क्रोधादि कषाय तथा तू, तू, मैं, मैं आदि से मुक्त रहता है। संयम और संवर में व्यापकता प्राप्त कर समाधिसम्पन्न होता
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1153 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भत्तपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ? भत्तपच्चक्खाणेणं अनेगाइं भवसयाइं निरुंभइ।

Translated Sutra: भन्ते ! भक्त प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? भक्त – प्रत्याख्यान से जीव अनेक प्रकार के सैकड़ों भवों का, जन्म – मरणों का निरोध करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1154 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सब्भावपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ? सब्भावच्चक्खाणेणं अनियट्टिं जणयइ। अनियट्टिपडिवन्ने य अनगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ, तं जहा–वेयणिज्जं आउयं नामं गोयं। तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! सद्‌भाव प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सद्‌भाव प्रत्याख्यान से जीव अनिवृत्ति को प्राप्त होता है। अनिवृत्ति को प्राप्त अनगार केवली के शेष रहे हुए वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र – इन चार भवोपग्राही कर्मों का क्षय करता है। वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1155 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पडिरूवयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? पडिरूवयाए णं लाघवियं जणयइ। लहुभूए णं जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसत्थलिंगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु वीससणिज्जरूवे अप्पडिलेहे जिइंदिए विउलतवसमिइसमन्नागए यावि भवइ।

Translated Sutra: भन्ते ! प्रतिरूपता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? प्रतिरूपता से – जिनकल्प जैसे आचार के पालन से जीव उपकरणों की लघुता को प्राप्त होता है। लघुभूत होकर जीव अप्रमत्त, प्रकट लिंगवाला, प्रशस्त लिंगवाला, विशुद्ध सम्यक्त्व से सम्पन्न, सत्त्व और समिति से परिपूर्ण, सर्व प्राण, भूत जीव और सत्त्वों के लिए विश्वसनीय, अल्प
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1158 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वीयरागयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? वीयरागयाए णं नेहानुबंधनानि तण्हानुबंधनानि य वोच्छिंदइ मनुस्सेसु सद्दफरिसरसरूवगंधेसु चेव विरज्जइ।

Translated Sutra: भन्ते ! वीतरागता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वीतरागता से जीव स्नेह और तृष्णा के अनुबन्धनों का विच्छेद करता है। मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध से विरक्त होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1161 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जवयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? अज्जवयाए णं काउज्जुययं भावुज्जुययं भासुज्जुययं अविसंवायणं जणयइ। अविसंवायण-संपन्नयाए णं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ।

Translated Sutra: भन्ते ! ऋजुता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? ऋजुता से जीव काय, भाव, भाषा की सरलता और अविसंवाद को प्राप्त होता है। अविसंवाद – सम्पन्न जीव धर्म का आराधक होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1163 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भावसच्चेणं भंते! जीवे किं जणयइ? भावसच्चेणं भावविसोहिं जणयइ। भावविसोहीए वट्टमाणे जीवे अरहंतपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुट्ठेइ, अरहंतपन्नतस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुट्ठित्ता परलोगधम्मस्स आराहए हवइ।

Translated Sutra: भन्ते ! भाव – सत्य से जीव को क्या प्राप्त होता है ? भाव – सत्य से जीव भाव – विशुद्धि को प्राप्त होता है। भाव – विशुद्धि में वर्तमान जीव अर्हत्‌ प्रज्ञप्त धर्म की आराधना में उद्यत होता है। अर्हत्‌ प्रज्ञप्त धर्म की आराधना में उद्यत होकर परलोक में भी धर्म का आराधक होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1175 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चरित्तसंपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? चरित्तसंपन्नयाए णं सेलेसीभावं जणयइ। सेलेसिं पडिवन्ने य अनगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ। तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! चारित्र – सम्पन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? चारित्र – सम्पन्नता से जीव शैलेशीभाव को प्राप्त होता है। शैलेशी भाव को प्राप्त अनगार चार केवलि – सत्क कर्मों का क्षय करता है। तत्पश्चात्‌ वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है और सब दुःखों का अन्त करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1176 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोइंदियनिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ? सोइंदियनिग्गहेणं मणुन्नामनुन्नेसु सद्देसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! श्रोत्रेन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? श्रोत्रेन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्दों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है। फिर शब्दनिमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1177 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चक्खिंदियनिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ? चक्खिंदियनिग्गहेणं मणुन्नामनुन्नेसु रूवेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइय कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! चक्षुष्‌ – इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? चक्षुष्‌ – इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ रूपों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है। फिर रूपनिमित्तक कर्म का बंध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1178 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] घाणिंदियनिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ? घाणिंदियनिग्गहेणं मणुन्नामनुन्नेसु गंधेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! घ्राण – इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? घ्राण – इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्धों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है। फिर गन्धनिमित्तक कर्म का बंध नहीं करता है। पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1179 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जिब्भिंदियनिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ? जिब्भिंदियनिग्गहेणं मणुन्नामनुन्नेसु रसेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! जिह्वा – इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? जिह्वा – इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ रसों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है। फिर रसनिमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता है। पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1180 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] फासिंदियनिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ? फासिंदियनिग्गहेणं मणुन्नामनुन्नेसु फासेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! स्पर्शन – इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? स्पर्शन – इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ स्पर्शों में होने वाले राग – द्वेष का निग्रह करता है। फिर स्पर्श – निमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1181 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कोहविजएणं भंते! जीवे किं जणयइ? कोहविजएणं खंतिं जणयइ, कोहवेयणिज्जं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! क्रोध – विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? क्रोध – विजय से जीव क्षान्ति को प्राप्त होता है। क्रोध – वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं करता है। पूर्व – बद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1182 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मानविजएणं भंते! जीवे किं जणयइ? मानविजएणं मद्दवं जणयइ, मानवेयणिज्जं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! मान – विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मान – विजय से जीव मृदुता को प्राप्त होता है। मान – वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं करता है। पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1183 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मायाविजएणं भंते! जीवे किं जणयइ? मायाविजएणं उज्जुभावं जणयइ, मायावेयणिज्जं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! माया – विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मायाविजय से ऋजुता को प्राप्त होता है। माया – वेदनीय कर्म का बंध नहीं करता है। पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1184 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लोभविजएणं भंते! जीवे किं जणयइ? लोभविजएणं संतोसीभावं जनयइ, लोभवेयणिज्जं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! लोभ – विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? लोभ – विजय से जीव सन्तोष – भाव को प्राप्त होता है। लोभ – वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं करता है। पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1185 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पेज्जदोसमिच्छादंसणविजएणं भंते! जीवे किं जणयइ? पेज्जदोसमिच्छादंसणविजएणं नाणदंसणचरित्ताराहणयाए अब्भुट्ठेइ। अट्ठविहस्स कम्मस्स कम्मगंठिविमोयणयाए तप्पढमयाए जहाणुपुव्विं अट्ठवीसइविहं मोहणिज्जं कम्मं उग्घाएइ, पंचविहं नाणावरणिज्जं नवविहं दंसणावरणिज्जं पंचविहं अंतरायं एए तिन्नि वि कम्मंसे जुगवं खवेइ। तओ पच्छा अनुत्तरं अनंतं कसिणं पडिपुण्णं निरावरणं वितिमिरं विसुद्धं लोगालोगप्पभावगं केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेइ। जाव सजोगी भवइ ताव य इरियावहियं कम्मं बंधइ सुहफरिसं दुसमयठिइयं। तं पढमसमए बद्धं बिइयसमए वेइयं तइयसमए निज्जिण्णं तं बद्धं पुट्ठं उदीरियं

Translated Sutra: भन्ते ! राग, द्वेष और मिथ्यादर्शन के विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? राग, द्वेष और मिथ्या – दर्शन के विजय से जीव ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना के लिए उद्यत होता है। आठ प्रकार की कर्म – ग्रन्थि को खोलने के लिए सर्व प्रथम मोहनीय कर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों का क्रमशः क्षय करता है। अनन्तर ज्ञानावरणीय कर्म
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1186 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहाउयं पालइत्ता अंतोमुहुत्तद्धावसेसाउए जोगनिरोहं करेमाणे सुहुमकिरियं अप्पडिवाइ सुक्कज्झाणं ज्झायमाणे तप्पढमयाए मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वइजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता आनापाननिरोहं करेइ, करेत्ता ईसि पंचरहस्सक्खरुच्चारद्धाए य णं अनगारे समुच्छिन्नकिरियं अनियट्टिसुक्कज्झाणं ज्झियायमाणे वेयणिज्जं आउयं नामं गोत्तं च एए चत्तारि वि कम्मंसे जुगवं खवेइ।

Translated Sutra: केवल ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात्‌ शेष आयु को भोगता हुआ, जब अन्तर्मुहूर्त्तपरिणाम आयु शेष रहती है, तब वह योग निरोध में प्रवृत्त होता है। तब ‘सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाति’ नामक शुक्ल – ध्यान को ध्याता हुआ प्रथम मनोयोग का निरोध करता है, अनन्तर वचनयोग का निरोध करता है, उसके पश्चात्‌ आनापान का निरोध करता है। श्वासोच्छ्‌वास
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1187 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ ओरालियकम्माइं च सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसेढिपत्ते अफुसमाणगई उड्ढं एगसमएणं अविग्गहेणं तत्थ गंता सागारोवउत्ते सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्व-दुक्खाणमंतं करेइ।

Translated Sutra: उसके बाद वह औदारिक और कार्मण शरीर को सदा के लिए पूर्णरूप से छोड़ता है। फिर ऋजु श्रेणि को प्राप्त होता है और एक समय में अस्पृशद्‌गतिरूप ऊर्ध्वगति से बिना मोड़ लिए सीधे लोकाग्र में जाकर साकारोपयुक्त – ज्ञानोपयोगी सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है। सभी दुःखों का अन्त करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1188 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एस खलु सम्मत्तपरक्कमस्स अज्झयणस्स अट्ठे समणेणं भगवया महावीरेणं आघविए पन्नविए परूविए दंसिए उवदंसिए।

Translated Sutra: श्रमण भगवान्‌ महावीर के द्वारा सम्यक्त्व – पराक्रम अध्ययन का यह पूर्वोक्त अर्थ आख्यात है, प्रज्ञापित है, प्ररूपित है, दर्शित है और उपदर्शित है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1189 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा उ पावगं कम्मं रागदोससमज्जियं । खवेइ तवसा भिक्खू तमेगग्गमणो सुण ॥

Translated Sutra: भिक्षु राग और द्वेष से अर्जित पाप – कर्म का तप के द्वारा जिस पद्धति से क्षय करता है, उस पद्धति को तुम एकाग्र मन से सुनो।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1190 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पाणवहमुसावाया अदत्तमेहुणपरिग्गहा विरओ । राईभोयणविरओ जीवो भवइ अनासवो ॥

Translated Sutra: प्राण – वध, मृषावाद, अदत्त, मैथुन, परिग्रह और रात्रि भोजन की विरति से एवं पाँच समिति और तीन गुप्ति से – सहित, कषाय से रहित, जितेन्द्रिय, निरभिमानी, निःशल्य जीव अनाश्रव होता है। सूत्र – ११९०, ११९१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1192 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं तु विवच्चासे रागद्दोससमज्जियं । जहा खवयइ भिक्खू तं मे एगमणो सुण ॥

Translated Sutra: उक्त धर्म – साधना से विपरीत आचरण करने पर राग – द्वेष से अर्जित कर्मों को भिक्षु किस प्रकार क्षीण करता है, उसे एकाग्र मन से सुनो।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1193 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा महातलायस्स सन्निरुद्धे जलागमे । उस्सिंचणाए तवणाए कमेणं सोसणा भवे ॥

Translated Sutra: किसी बड़े तालाब का जल, जल आने के मार्ग को रोकने से, पहले के जल को उलीचने से और सूर्य के ताप से क्रमशः जैसे सूख जाता है – उसी प्रकार संयमी के करोड़ों भवों के संचित कर्म, पाप कर्म के आने के मार्ग को रोकने पर तप से नष्ट होते हैं। सूत्र – ११९३, ११९४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1195 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सो तवो दुविहो वुत्तो बाहिरब्भंतरो तहा । बाहिरो छव्विहो वुत्तो एवमब्भंतरो तवो ॥

Translated Sutra: वह तप दो प्रकार का है – बाह्य और आभ्यन्तर। बाह्य तप छह प्रकार का है। आभ्यन्तर तप भी छह प्रकार का कहा है। अनशन, ऊनोदरिका, भिक्षाचर्या, रस – परित्याग, काय – क्लेश और संलीनता – यह बाह्य तप है। सूत्र – ११९५, ११९६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1197 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इत्तिरिया मरणकाले दुविहा अनसना भवे । इत्तिरिया सावकंखा निरवकंखा बिइज्जिया ॥

Translated Sutra: अनशन तप के दो प्रकार हैं – इत्वरिक और मरणकाल। इत्वरिक सावकांक्ष होता है। मरणकाल निरवकांक्ष होता है।संक्षेप से इत्वरिक – तप छह प्रकार का है – श्रेणि, तप, धन – तप, वर्ग – तप – वर्ग – वर्ग तप और छठा प्रकीर्ण तप। इस प्रकार मनोवांछित नाना प्रकार के फल को देने वाला ‘इत्वरिक’ अनशन तप जानना। सूत्र – ११९७–११९९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1200 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जा सा अनसना मरणे दुविहा सा वियाहिया । सवियारअवियारा कायचिट्ठं पई भवे ॥

Translated Sutra: कायचेष्टा के आधार पर मरणकालसम्बन्धी अनशन के दो भेद हैं – सविचार और अविचार अथवा मरणकाल अनशन के सपरिकर्म और अपरिकर्म ये दो भेद हैं। अविचार अनशन के निर्हांही और अनिर्हारी – ये दो भेद भी होते हैं। दोनों में आहार का त्याग होता है। सूत्र – १२००, १२०१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1202 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ओमोयरियं पंचहा समासेण वियाहियं । दव्वओ खेत्तकालेणं भावेणं पज्जवेहि य ॥

Translated Sutra: संक्षेप में अवमौदर्य द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्यायों की अपेक्षा से पाँच प्रकार का हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1203 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो जस्स उ आहारो तत्तो ओमं तु जो करे । जहन्नेणेगसित्थाई एवं दव्वेण ऊ भवे ॥

Translated Sutra: जो जितना भोजन कर सकता है, उसमें से कम – से – कम एक सिक्थ तथा एक ग्रास आदि के रूप में कम भोजन करना, द्रव्य से ‘ऊणोदरी’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1204 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गामे नगरे तह रायहानि-निगमे य आगरे पल्ली । खेडे कब्बडदोणमुह-पट्टणमडंबसंबाहे ॥

Translated Sutra: ग्राम, नगर, राजधानी, निगम, आकर, पल्ली, खेड़, कर्बट, द्रोणमुख, पत्तन, मण्डप, संबाध – आश्रम – पद, विहार, सन्निवेश, समाज, घोष, स्थली, सेना का शिबिर, सार्थ, संवर्त, कोट – पाडा, गली और घर – इन क्षेत्रों में तथा इसी प्रकार के दूसरे क्षेत्रों में निर्धारित क्षेत्र – प्रमाण के अनुसार भिक्षा के लिए जाना, क्षेत्र से ‘ऊणोदरी’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1208 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दिवसस्स पोरुसीणं चउण्हं पि उ जत्तिओ भवे काले । एवं चरमाणो खलु कालोमाणं मुणेयव्वो ॥

Translated Sutra: दिवस के चार प्रहर होते हैं। उन चार प्रहरों में भिक्षा का जो नियत समय है, तदनुसार भिक्षा के लिए जाना, यह काल से ‘ऊणोदरी’ तप है। अथवा कुछ भागन्यून तृतीय प्रहर में भिक्षा की एषणा करना, काल की अपेक्षा से ‘ऊणोदरी’ तप है। सूत्र – १२०८, १२०९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1210 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इत्थी वा पुरिसो वा अलंकिओ वाणलंकिओ वा वि । अन्नयरवयत्थो वा अन्नयरेणं व वत्थेणं ॥

Translated Sutra: स्त्री अथवा पुरुष, अलंकृत अथवा अनलंकृत, विशिष्ट आयु और अमुक वर्ण के वस्त्र – अथवा अमुक विशिष्ट वर्ण एवं भाव से युक्त दाता से ही भिक्षा ग्रहण करना, अन्यथा नहीं – इस प्रकार की चर्या वाले मुनि को भाव से ‘ऊणोदरी’ तप है। सूत्र – १२१०, १२११
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1212 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दव्वे खेत्ते काले भावम्मि य आहिया उ जे भावा । एएहिं ओमचरओ पज्जवचरओ भवे भिक्खू ॥

Translated Sutra: द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में जो – जो पर्याय कथन किये हैं, उन सबसे ऊणोदरी तप करने वाला ‘पर्यवचरक’ होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1213 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठविहगोयरग्गं तु तहा सत्तेव एसणा । अभिग्गहा य जे अन्ने भिक्खायरियमाहिया ॥

Translated Sutra: आठ प्रकार के गोचराग्र, सप्तविध एषणाऍं और अन्य अनेक प्रकार के अभिग्रह – ‘भिक्षाचर्या’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1214 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खीरदहिसप्पिमाई पणीयं पानभोयणं । परिवज्जणं रसाणं तु भणियं रसविवज्जणं ॥

Translated Sutra: दूध, दहीं, घी आदि प्रणीत (पौष्टिक) पान, भोजन तथा रसों का त्याग, ‘रसपरित्याग’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1215 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ठाणा वीरासणाईया जीवस्स उ सुहावहा । उग्गा जहा धरिज्जंति कायकिलेसं तमाहियं ॥

Translated Sutra: आत्मा को सुखावह अर्थात्‌ सुखकर वीरासनादि उग्र आसनों का अभ्यास, ‘कायक्लेश’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1216 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगंतमणावाए इत्थीपसुविवज्जिए । सयनासनसेवणया विवित्तसयनासनं ॥

Translated Sutra: एकान्त, अनापात तथा स्त्री – पशु आदि रहित शयन एवं आसन ग्रहण करना, ‘विविक्तशयनासन’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1217 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एसो बाहिरगतवो समासेण वियाहिओ । अब्भिंतरं तवं एत्तो वुच्छामि अनुपुव्वसो ॥

Translated Sutra: संक्षेप में यह बाह्य तप का व्याख्यान है। अब क्रमशः आभ्यन्तर तप का निरूपण करूँगा। प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग – यह आभ्यन्तर तप हैं। सूत्र – १२१७, १२१८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1219 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आलोयणारिहाईयं पायच्छित्तं तु दसविहं । जे भिक्खू वहई सम्मं पायच्छित्तं तमाहियं ॥

Translated Sutra: आलोचनार्ह आदि दस प्रकार का प्रायश्चित्त, जिसका भिक्षु सम्यक्‌ प्रकार से पालन करता है, ‘प्रायश्चित्त’ तप है।
Showing 26651 to 26700 of 28178 Results