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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 52 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं० रयणप्पभा, सक्करप्पभा, वालुयप्पभा, पंकप्पभा, धूमप्पभा, तमप्पभा, तमतमा इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए कति निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! तीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता

Translated Sutra: भगवन्‌ ! (अधोलोक में) कितनी पृथ्वीयाँ (नरकभूमियाँ) कही गई हैं ? गौतम ! सात पृथ्वीयाँ हैं रत्नप्रभा से लेकर यावत्‌ तमस्तमःप्रभा तक भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितने लाख नारकावास कहे गए हैं ? गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस लाख नारकावास हैं नारकावासों की संख्या बताने वाली गाथा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 53 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तीसा पन्नवीसा, पन्नरस दसेव या सयसहस्सा तिन्नेगं पंचूणं, पंचेव अनुत्तरा निरया

Translated Sutra: प्रथम पृथ्वी (नरकभूमि) में तीस लाख, दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में पन्द्रह लाख, चौथी में दस लाख, पाँचवी में तीन लाख, छठी में पाँच कम एक लाख और सातवीं में केवल पाँच नारकावास हैं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 54 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवइया णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! चोयट्ठी असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता एवं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! असुरकुमारों के कितने लाख आवास हैं ? गौतम ! इस प्रकार हैं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 55 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चोयट्ठी असुराणं, चउरासीई होइ नागाणं बावत्तरिं सुवण्णाणं, वाउकुमाराण छन्नउई

Translated Sutra: असुरकुमारों के चौंसठ लाख आवास कहे हैं नागकुमारों के चौरासी लाख, सुपर्णकुमारों के ७२ लाख, वायुकुमारों के ९६ लाख, तथा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 56 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दीव-दिसा-उदहीणं, विज्जुकुमारिंद-थणियमग्गीणं छण्हं पि जुयलयाणं, छावत्तरिमो सयसहस्सा

Translated Sutra: द्वीपकुमार, दिक्‌कुमार, उदधिकुमार, विद्युत्कुमार, स्तनितकुमार और अग्निकुमार, इन छह युगलकों दक्षिणवर्ती और उत्तरवर्ती दोनों के ७६ ७६ लाख आवास कहे गए हैं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 57 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवइया णं भंते! पुढविक्काइयावाससयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! असंखेज्जा पुढविक्काइयावाससयसहस्सा पन्नत्ता जाव असंखिज्जा जोइसिय-विमानावास सयसहस्सा पन्नत्ता सोहम्मे णं भंते! कप्पे कति विमानावाससयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! बत्तीसं विमानावाससयसहस्सा पन्नत्ता एवं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिक जीवों के कितने लाख आवास कहे गए हैं ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के असंख्यात लाख आवास कहे गए हैं इसी प्रकार यावत्‌ ज्योतिष्क देवों तक के असंख्यात लाख विमानावास कहे गए हैं भगवन्‌ ! सौधर्मकल्प में कितने विमानावास हैं ? गौतम ! बत्तीस लाख विमानावास कहे हैं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 58 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बत्तीसट्ठावीसा, बारस-अट्ठ-चउरो सयसहस्सा पन्ना-चत्तालीसा, छच्च सहस्सा सहस्सारे

Translated Sutra: इस प्रकार क्रमशः बत्तीस लाख, अट्ठाईस लाख, बारह लाख, आठ लाख, चार लाख, पचास हजार तथा चालीस हजार, विमानावास जानना चाहिए सहस्रार कल्प में हजार विमानावास हैं आणत और प्राणत कल्प में चार सौ, आरण और अच्युत में तीन सौ, इस तरह चारों में मिलकर सात सौ विमान हैं अधस्तन (नीचले) ग्रैवेयक त्रिक में एक सौ ग्यारह, मध्यम (बीच के)
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 59 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आणय-पाणयकप्पे, चत्तारि सयारणच्चुए तिन्नि सत्त विमानसयाइं, चउसु वि एएसु कप्पेसु

Translated Sutra: देखो सूत्र ५८
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 60 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एक्कारसुत्तरं हेट्ठिमए सत्तुत्तरं सयं मज्झमए सयमेगं उवरिमए, पंचेव अनुत्तरविमाना

Translated Sutra: देखो सूत्र ५८
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 61 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुढवी ट्ठिति-ओगाहण-सरीर-संघयणमेव संठाणे लेस्सा दिट्ठी नाणे, जोगुवओगे दस ठाणा

Translated Sutra: पृथ्वी (नरकभूमि) आदि जीवावासों में . स्थिति, . अवगाहना, . शरीर, . संहनन, . संस्थान, . लेश्या, . दृष्टि, . ज्ञान, . योग और १०. उपयोग इन दस स्थानों पर विचार करना है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 62 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइयाणं केवइया ठितिट्ठाणा पन्नत्ता? गोयमा! असंखेज्जा ठितिट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहाजहन्निया ठिती, समयाहिया जहन्निया ठिती, दुसमयाहिया जहन्निया ठिती जाव असंखेज्जसमयाहिया जहन्निया ठिती तप्पाउग्गुक्कोसिया ठिती इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि जहन्नियाए ठितीए वट्टमाणा नेरइया किंकोहोवउत्ता? मानोवउत्ता? मायोवउत्ता? लोभोवउत्ता? गोयमा! सव्वे वि ताव होज्जा . कोहोवउत्ता . अहवा कोहोवउत्ता , मानोवउत्ते . अहवा कोहोवउत्ता , मानोवउत्ता

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक एक नारकावास में रहने वाले नारक जीवों के कितने स्थिति स्थान कहे गए हैं ? गौतम ! उनके असंख्य स्थान हैं वे इस प्रकार हैं जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है, वह एक समय अधिक, दो समय अधिक इस प्रकार यावत्‌ जघन्य स्थिति असंख्यात समय अधिक है, तथा उसके योग्य
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 63 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि समयाहियाए जहन्नट्ठितीए वट्ठमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता? मानोवउत्ता? मायोवउत्ता? लोभोवउत्ता? गोयमा! कोहोवउत्ते , मानोवउत्ते , मायोवउत्ते , लोभोवउत्ते कोहोवउत्ता , मानोवउत्ता , मायोवउत्ता , लोभोवउत्ता अहवा कोहोवउत्ते , मानोवउत्ते अहवा कोहोवउत्ते , मानोवउत्ता एवं असीतिभंगा नेयव्वा एवं जाव संखेज्जसमयाहियाए ठितीए, असंखेज्जसमयाहियाए ठितीए तप्पाउग्गुक्को-सियाए ठितीए सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक एक नारकावास में रहने वाले नारकों के अवगाहना स्थान कितने हैं ? गौतम ! उनके अवगाहना स्थान असंख्यात हैं जघन्य अवगाहना (अंगुल के असंख्यातवें भाग), (मध्यम अवगाहना) एक प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, द्विप्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, यावत्‌ असंख्यात प्रदेशाधिक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 64 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव नेरइया किं सम्मदिट्ठी? मिच्छदिट्ठी? सम्मामिच्छदिट्ठी? तिन्नि वि इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव सम्मदंसणे वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता? सत्तावीसं भंगा एवं मिच्छदंसणे वि सम्मामिच्छदंसणे असीतिभंगा इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव नेरइया किं नाणी, अन्नाणी? गोयमा! नाणी वि, अन्नाणी वि तिन्नि नाणाइं नियमा तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव आभिनिबोहियनाणे वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता? सत्तावीसं भंगा एवं तिन्नि नाणाइं, तिन्नि अन्नाणाइं भाणियव्वाइं इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव नेरइया किं मणजोगी? वइजोगी? कायजोगी? तिन्नि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले नारक जीव क्या सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, या सम्यग्‌मिथ्या दृष्टि (मिश्रदृष्टि) हैं ? हे गौतम ! वे तीनों प्रकार के होते हैं भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में बसने वाले सम्यग्दृष्टि नारक क्या क्रोधोपयुक्त यावत्‌ लोभोपयुक्त हैं ? गौतम ! इनके क्रोधोपयुक्त आदि
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 65 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] काऊ दोसु, तइयाए मीसिया, नीलिया चउत्थीए पंचमियाए मीसा, कण्हा तत्तो परमकण्हा

Translated Sutra: पहली और दूसरी नरकपृथ्वी में कापोतलेश्या है, तीसरी नरकपृथ्वी में मिश्र लेश्याएं हैं, चौथी में नील लेश्या है, पाँचवी में मिश्र लेश्याएं हैं, छठी में कृष्ण लेश्या और सातवी में परम कृष्ण लेश्या होती है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 66 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउसट्ठीए णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु एवमेगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमाराणं केवइया ठिति-ट्ठाणा पन्नत्ता? गोयमा! असंखेज्जा ठितिट्ठाणा पन्नत्ता जहन्निया ठिई जहा नेरइया तहा, नवरंपडिलोमा भंगा भाणियव्वा सव्वे वि ताव होज्ज लोभोवउत्ता अहवा लोभोवउत्ता , मायोवउत्ते अहवा लोभोवउत्ता , मायोवउत्ता एएणं गमेणं नेयव्वं जाव थणियकुमारा, नवरंनाणत्तं जाणियव्वं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! चौसठ लाख असुरकुमारावासों में से एक एक असुरकुमारावास में रहने वाले असुरकुमारों के कितने कितने स्थिति स्थान कहे गए हैं ? गौतम ! उनके स्थिति स्थान असंख्यात कहे गए हैं वे इस प्रकार हैं जघन्य स्थिति, एक समय अधिक जघन्य स्थिति, इत्यादि सब वर्णन नैरयिकों के समान जानना चाहिए विशेषता यह है कि इनमें जहाँ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 67 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: असंखेज्जेसु णं भंते! पुढविक्काइयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि पुढविक्काइयावासंसि पुढविक्का-इयाणं केवइया ठितिट्ठाणा पन्नत्ता? गोयमा! असंखेज्जा ठितिट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहाजहन्निया ठिई जाव तप्पाउग्गुक्कोसिया ठिई असंखेज्जेसु णं भंते! पुढविक्काइयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि पुढविक्काइयावासंसि जह-न्नियाए ठितीए वट्टमाणा पुढविक्काइया किं कोहोवउत्ता? मानोवउत्ता? मायोवउत्ता? लोभोवउत्ता? गोयमा! कोहोवउत्ता वि, मानोवउत्ता वि, मायोवउत्ता वि, लोभोवउत्ता वि एवं पुढविक्काइयाणं सव्वेसु वि ठाणेसु अभंगयं, नवरंतेउलेस्साए असीतिभंगा एवं आउक्काइया वि तेउक्काइय-वाउक्काइयाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिक जीवों के असंख्यात लाख आवासों में से एक एक आवास में बसने वाले पृथ्वी कायिकों के कितने स्थिति स्थान कहे गए हैं ? गौतम ! उनके असंख्येय स्थिति स्थान हैं वे इस प्रकार हैं उनकी जघन्य स्थिति, एक समय अधिक जघन्यस्थिति, दो समय अधिक जघन्यस्थिति, यावत्‌ उनके योग्य उत्कृष्ट स्थिति भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 68 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाणं जेहिं ठाणेहिं नेरइयाणं असीइभंगा तेहिं ठाणेहिं असीइं चेव, नवरंअब्भहिया सम्मत्ते आभिनिबोहियनाणे, सुयनाणे एएहिं असीइभंगा जेहिं ठाणेहिं नेरइयाणं सत्तावीसं भंगा तेसु ठाणेसु सव्वेसु अभंगयं पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरइया तहा भाणियव्वा, नवरंजेहिं सत्तावीसं भंगा तेहिं अभंगयं कायव्वं मनुस्सा वि जेहिं ठाणेहिं नेरइयाणं असीतिभंगा तेहिं ठाणेहिं मनुस्साण वि असीतिभंगा भाणियव्वा जेसु सत्तावीसा तेसु अभंगयं, नवरंमनुस्साणं अब्भहियं जहन्नियाए ठिईए, आहारए असीतिभंगा वाणमंतर-जोतिस-वेमाणिया जहा भवनवासी, नवरं नाणत्तं जाणियव्वं

Translated Sutra: जिन स्थानों में नैरयिक जीवों के अस्सी भंग कहे गए हैं, उन स्थानों में द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के भी अस्सी भंग होते हैं विशेषता यह है कि सम्यक्त्व, आभिनिबोधिक ज्ञान, और श्रुतज्ञान इन तीन स्थानों में भी द्वीन्द्रिय आदि जीवों के अस्सी भंग होते हैं, इतनी बात नारक जीवों से अधिक है तथा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 69 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जावइयाओ णं भंते! ओवासंतराओ उदयंते सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति, अत्थमंते वि णं सूरिए तावतियाओ चेव ओवासंतराओ चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति? हंता गोयमा! जावइयाओ णं ओवासंतराओ उदयंते सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति, अत्थमंते वि णं सूरिए तावतियाओ चेव ओवासंतराओ चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति जावइय णं भंते! खेत्तं उदयंते सूरिए आयवेणं सव्वओ समंता ओभासेइ उज्जोएइ तवेइ पभासेइ, अत्थमंते वि णं सूरिए तावइयं चेव खेत्तं आयवेणं सव्वओ समंता ओभासेइ? उज्जोएइ? तवेइ? पभासेइ? हंता गोयमा! जावतिय णं खेत्तं उदयंते सूरिए आयवेणं सव्वओ समंता ओभासेइ उज्जोइए तवेइ पभासेइ, अत्थमंते वि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जितने जितने अवकाशान्तर से अर्थात्‌ जितनी दूरी से उदय होता हुआ सूर्य आँखो से शीघ्र देखा जाता है, उतनी ही दूरी से क्या अस्त होता हुआ सूर्य भी दिखाई देता है ? हाँ, गौतम ! जितनी दूर से उदय होता हुआ सूर्य आँखो से दीखता है, उतनी ही दूरी से अस्त होता सूर्य भी आँखों से दिखाई देता है भगवन्‌ ! उदय होता हुआ सूर्य अपने
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 70 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लोयंते भंते! अलोयंतं फुसइ? अलोयंते वि लोयंतं फुसइ? हंता गोयमा! लोयंते अलोयंतं फुसइ, अलोयंते वि लोयंतं फुसइ तं भंते! किं पुट्ठं फुसइ? अपुट्ठं फुसइ? गोयमा! पुट्ठं फुसइ, नो अपुट्ठं जाव नियमा छद्दिसिं फुसइ दीवंते भंते! सागरंतं फुसइ? सागरंते वि दीवंते फुसइ? हंता गोयमा! दीवंते सागरंतं फुसइ, सागरंते वि दीवंतं फुसइ जाव नियमा छद्दिसिं फुसइ उदयंते भंते! पोयंतं फुसइ? पोयंते वि उदयंतं फुसइ? हंता गोयमा! उदयंते पोयंतं फुसइ, पोयंते उदयंतं फुसइ जाव नियमा छद्दिसिं फुसइ छिद्दंते भंते! दूसंतं फुसइ? दूसंते वि छिद्दंतं फुसइ? हंता गोयमा! छिद्दंते दूसंतं फुसइ, दूसंते वि छिद्दंतं फुसइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या लोक का अन्त अलोक के अन्त को स्पर्श करता है ? क्या अलोक का अन्त लोक के अन्त को स्पर्श करता है ? हाँ, गौतम ! लोक का अन्त अलोक के अन्त को स्पर्श करता है, और अलोक का अन्त लोक के अन्त को स्पर्श करता है भगवन्‌ ! वह जो स्पर्श करता है, क्या वह स्पृष्ट है या अस्पृष्ट है ? गौतम ! यावत्‌ नियमपूर्वक छहों दिशाओं में स्पृष्ट
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 71 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! जीवाणं पाणाइवाए णं किरिया कज्जइ? हंता अत्थि सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ? अपुट्ठा कज्जइ? गोयमा! पुट्ठा कज्जइ, नो अपुट्ठा कज्जइ जाव निव्वाघाएणं छद्दिसिं, वाघायं पडुच्च सिया तिदिसिं, सिया चउदिसिं, सिया पंचदिसिं सा भंते! किं कडा कज्जइ? अकडा कज्जइ? गोयमा! कडा कज्जइ, नो अकडा कज्जइ सा भंते! किं अत्तकडा कज्जइ? परकडा कज्जइ? तदुभयकडा कज्जइ? गोयमा! अत्तकडा कज्जइ, नो परकडा कज्जइ, नो तदुभयकडा कज्जइ सा भंते किं आनुपुव्विं कडा कज्जइ? अनानुपुव्विं कडा कज्जइ? गोयमा! आनुपुव्विं कडा कज्जइ, नो अनानुपुव्विं कडा कज्जइ जा कडा कज्जइ, जा कज्जिस्सइ, सव्वा सा आनुपुव्विं कडा,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीवों द्वारा प्राणातिपातक्रिया की जाती है ? भगवन्‌ ! की जाने वाली वह प्राणातिपातक्रिया क्या स्पृष्ट है या अस्पृष्ट है ? गौतम ! यावत्‌ व्याघात हो तो छहों दिशाओं को और व्याघात हो तो कदाचित्‌ तीन दिशाओं को, कदाचित्‌ चार दिशाओं को और कदाचित्‌ पाँच दिशाओं को स्पर्श करती है भगवन्‌ ! क्या वह (प्राणातिपात)
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 72 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी रोहे नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमानमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्डंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ तते णं से रोहे अनगारे जायसड्ढे जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासी पुव्विं भंते! लोए, पच्छा अलोए? पुव्विं अलोए, पच्छा लोए? रोहा! लोए अलोए पुव्विं पेते, पच्छा पेतेदो वेते सासया भावा, अनानुपुव्वी एसा रोहा पुव्विं भंते! जीवा, पच्छा अजीवा? पुव्विं अजीवा, पच्छा जीवा? रोहा! जीवा अजीवा पुव्विं पेते, पच्छा पेतेदो वेते

Translated Sutra: उस काल और उस समयमें भगवान महावीर के अन्तेवासी रोह नामक अनगार थे वे प्रकृति से भद्र, मृदु, विनीत, उपशान्त, अल्प, क्रोध, मान, माया, लोभवाले, अत्यन्त निरहंकारतासम्पन्न, गुरु समाश्रित, किसी को संताप पहुँचाने वाले, विनयमूर्ति थे वे रोह अनगार ऊर्ध्वजानु और नीचे की ओर सिर झुकाए हुए, ध्यान रूपी कोष्ठक में प्रविष्ट,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 73 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ओवास-वात-घनउदहि-पुढवि-दीवा सागरा वासा नेरइयादि अत्थिय, समया कम्माइ लेस्साओ

Translated Sutra: अवकाशान्तर, वात, घनोदधि, पृथ्वी, द्वीप, सागर, वर्ष (क्षेत्र), नारक आदि जीव (चौबीस दण्डक के प्राणी), अस्तिकाय, समय, कर्म, लेश्या तथा दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, संज्ञा, शरीर, योग, उपयोग, द्रव्य, प्रदेश, पर्याय और काल सूत्र ७३, ७४
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 74 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दिट्ठी दंसण-नाणे, सण्ण-सरीरा जोग-उवओगे दव्व-पएसा-पज्जव, अद्धा किं पुव्विं लोयंते

Translated Sutra: देखो सूत्र ७३
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 75 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुव्विं भंते! लोयंते, पच्छा अतीतद्धा? पुव्विं अतीतद्धा, पच्छा लोयंते? रोहा! लोयंते अतीतद्धा पुव्विं पेते, पच्छा पेतेदो वेते सासया भावा, अनानुपुव्वी एसा रोहा! पुव्विं भंते! लोयंते, पच्छा अनागतद्धा? पुव्विं अनागतद्धा, पच्छा लोयंते? रोहा! लोयंते अनागतद्धा पुव्विं पेते, पच्छा पेतेदो वेते सासया भावा, अनानुपुव्वी एसा रोहा! पुव्विं भंते! लोयंते, पच्छा सव्वद्धा? पुव्विं सव्वद्धा, पच्छा लोयंते? रोहा! लोयंते सव्वद्धा पुव्विं पेते, पच्छा पेतेदो वेते सासया भावा, अनानुपुव्वी एसा रोहा जहा लोयंतेणं संजोइया सव्वे ठाणा एते, एवं अलोयंतेण वि संजोएतव्वा सव्वे पुव्विं

Translated Sutra: क्या ये पहले हैं और लोकान्त पीछे है ? अथवा हे भगवन्‌ ! क्या लोकान्त पहले और सर्वाद्धा (सर्व काल) पीछे हैं ? जैसे लोकान्त के साथ (पूर्वोक्त) सभी स्थानों का संयोग किया, उसी प्रकार अलोकान्त के इन सभी स्थानों को जोड़ना चाहिए भगवन्‌ ! पहले सप्तम अवकाशान्तर है और पीछे सप्तम तनुवात है ? हे रोह ! इसी प्रकार सप्तम अवका शान्तर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 76 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं जाव एवं वयासी कतिविहा णं भंते! लोयट्ठिती पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठविहा लोयट्ठिति पन्नत्ता, तं जहा. आगासपइट्ठिए वाए . वायपइट्ठिए उदही . उदहिपइट्ठिया पुढवी . पुढविपइट्ठिया तसथावरा पाणा . अजीवा जीवपइट्ठिया . जीवा कम्मपइट्ठिया . अजीवा जीवसंगहिया . जीवा कम्मसंगहीया से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइअट्ठविहा लोयट्ठिती जाव जीवा कम्मसंगहिया? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे वत्थिमाडोवेइ, वत्थिमाडोवेत्ता उप्पिं सितं बंधइ, बंधित्ता मज्झे गंठिं बंधइ, बंधित्ता उवरिल्लं गंठिं मुयइ, मुइत्ता उवरिल्लं देसं वामेइ, वामेत्ता उवरिल्लं

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! ऐसा कहकर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से यावत्‌ कहा भगवन्‌ ! लोक की स्थिति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! आठ प्रकार की वह इस प्रकार है आकाश के आधार पर वायु (तनुवात) टिका हुआ है; वायु के आधार पर उदधि है; उदधि के आधार पर पृथ्वी है, त्रस और स्थावर जीव पृथ्वी के आधार पर हैं; अजीव जीवों के आधार पर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 77 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! जीवा पोग्गला अन्नमन्नबद्धा, अन्नमन्नपुट्ठा, अन्नमन्नमोगाढा, अन्नमन्नसिनेह-पडिबद्धा, अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठंति? हंता अत्थि से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइअत्थि णं जीवा पोग्गला अन्नमन्नबद्धा, अन्नमन्नपुट्ठा, अन्नमन्नमोगाढा, अन्नमन्नसिनेहपडिबद्धा, अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठंति? गोयमा! से जहानामए हरदे सिया पुण्णे पुण्णप्पमाणे वोलट्टमाणे वोसट्टमाणे समभरघडत्ताए चिट्ठइ अहे केइ पुरिसे तंसि हरदंसि एगं महं नावं सयासवं सयछिद्दं ओगाहेज्जा से नूनं गोयमा! सा नावा तेहिं आसवदारेहिं आपूरमाणी-आपूरमाणी पुण्णा पुन्नप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव और पुद्‌गल परस्पर सम्बद्ध हैं ?, परस्पर एक दूसरे से स्पृष्ट हैं ?, परस्पर गाढ़ सम्बद्ध हैं, परस्पर स्निग्धता से प्रतिबद्ध हैं, (अथवा) परस्पर घट्टित होकर रहे हुए हैं ? हाँ, गौतम ! ये परस्पर इसी प्रकार रहे हुए हैं भगवन्‌ ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! जैसे एक तालाब हो, वह जल से पूर्ण हो, पानी से लबालब
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 78 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! सदा समितं सुहुमे सिनेहकाए पवडइ? हंता अत्थि से भंते! किं उड्ढे पवडइ? अहे पवडइ? तिरिए पवडइ? गोयमा! उड्ढे वि पवडइ, अहे वि पवडइ, तिरिए वि पवडइ जहा से बायरे आउयाए अन्नमन्नसमाउत्ते चिरं पि दीहकालं चिट्ठइ तहा णं से वि? नो इणट्ठे समट्ठे से णं खिप्पामेव विद्धंसमागच्छइ सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सूक्ष्म स्नेहकाय, सदा परिमित पड़ता है ? हाँ, गौतम ! पड़ता है भगवन्‌ ! वह सूक्ष्म स्नेह काय ऊपर पड़ता है, नीचे पड़ता है या तीरछा पड़ता है ? गौतम ! वह ऊपर भी पड़ता है, नीचे भी पड़ता है और तीरछा भी पड़ता है भगवन्‌ ! क्या वह सूक्ष्म स्नेहकाय स्थूल अप्काय की भाँति परस्पर समायुक्त होकर बहुत दीर्घकाल तक रहता है ? हे
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-७ नैरयिक Hindi 79 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइए णं भंते! नेरइएसु उववज्जमाणे, किं. देसेणं देसं उववज्जइ? . देसेणं सव्वं उववज्जइ? . सव्वेणं देसं उववज्जइ? . सव्वेणं सव्वं उववज्जइ? गोयमा! . नो देसेणं देसं उववज्जइ . नो देसेणं सव्वं उववज्जइ . नो सव्वेणं देसं उववज्जइ . सव्वेणं सव्वं उववज्जइ जहा नेरइए, एवं जाव वेमाणिए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नारकों में उत्पन्न होता हुआ नारक जीव एक भाग से एक भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है या एक भाग से सर्व भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है, या सर्वभाग से एक भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता अथवा सब भागों को आश्रय करके उत्पन्न होता है ? गौतम ! नारक जीव एक भाग से एक भाग को आश्रित करके उत्पन्न नहीं होता; एक भाग
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-७ नैरयिक Hindi 80 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइए णं भंते! नेरइएसु उववज्जमाणे, किं. देसेणं देसं आहारेइ? . देसेणं सव्वं आहारेइ? . सव्वेणं देसं आहारेइ? . सव्वेणं सव्वं आहारेइ? गोयमा! . नो देसेणं देसं आहारेइ . नो देसेणं सव्वं आहारेइ . सव्वेणं वा देसं आहारेइ . सव्वेणं वा सव्वं आहारेइ एवं जाव वेमाणिए नेरइए णं भंते! नेरइएहिंतो उव्वट्टमाणे, किं. देसेणं देसं उव्वट्टइ? . देसेणं सव्वं उव्वट्टइ? . सव्वेणं देसं उव्वट्टइ? . सव्वेणं सव्वं उव्वट्टइ? गोयमा! . नो देसेणं देसं उव्वट्टइ . नो देसेणं सव्वं उव्वट्टइ . नो सव्वेणं देसं उव्वट्टइ . सव्वेणं सव्वं उव्वट्टइ एवं जाव वेमाणिए नेरइए णं भंते! नेरइएहिंतो

Translated Sutra: नारकों में उत्पन्न होता हुआ नारक जीव क्या एक भाग से एक भाग को आश्रित करके आहार करता है, एक भाग से सर्वभाग को आश्रित करके आहार करता है, सर्वभागों से एक भाग को आश्रित करके आहार करता है, अथवा सर्वभागों से सर्वभागों को आश्रित करके आहार करता है ? गौतम ! वह एक भाग से एक भाग को आश्रित करके आहार नहीं करता, एक भाग से सर्वभाग
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-७ नैरयिक Hindi 81 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! किं विग्गहगइसमावण्णए? अविग्गहगइसमावण्णए? गोयमा! सिय विग्गहगइसमावण्णए, सिय अविग्गहगइसमावण्णए एवं जाव वेमाणिए जीवा णं भंते! किं विग्गहगइसमावण्णया? अविग्गहगइसमावण्णया? गोयमा! विग्गहगइसमावन्नगा वि, अविग्गहगइसमावन्नगा वि नेरइया णं भंते! किं विग्गहगइसमावन्नगा? अविग्गहगइसमावन्नगा? गोयमा! सव्वे वि ताव होज्ज अविग्गहगइसमावन्नगा अहवा अविग्गहगइसमावन्नगा, विग्गहगइ-समावन्नगे अहवा अविग्गहगइसमावन्नगा , विग्गहगइसमावन्नगा एवं जीवएगिंदिय-वज्जो तियभंगो

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव विग्रहगतिसमापन्न विग्रहगति को प्राप्त होता है, अथवा विग्रहगतिसमापन्न विग्रहगति को प्राप्त नहीं होता ? गौतम ! कभी (वह) विग्रहगति को प्राप्त होता है, और कभी विग्रहगति को प्राप्त नहीं होता इसी प्रकार वैमानिकपर्यन्त जानना चाहिए भगवन्‌ ! क्या बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त होते हैं अथवा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-७ नैरयिक Hindi 82 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महिड्ढिए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे महानुभावे अविउक्कंतियं चयमाणे किंचिकालं हिरिवत्तियं दुगंछावत्तियं परीसहवत्तियं आहारं नो आहारेइ अहे णं आहारेइ आहारि-ज्जमाणे आहारिए, परिणामिज्जमाणे परिणामिए, पहीने आउए भवइ जत्थ उववज्जइ तं आउयं पडिसंवेदेइ, तं जहातिरिक्खजोणियाउयं वा, मनुस्साउयं वा? हंता गोयमा! देवेणं महिड्ढिए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे महानुभावे अविउक्कंतियं चयमाणे किंचिकालं हिरिवत्तियं दुगंछावत्तियं परीसहवत्तियं आहारं नो आहारेइ अहे णं आहारेइ आहारिज्जमाणे आहारिए, परिणामिज्जमाणे परिणामिए, पहीने आउए भवइ जत्थ उववज्जइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! महान्‌ ऋद्धि वाला, महान्‌ द्युति वाला, महान्‌ बल वाला, महायशस्वी, महाप्रभावशाली, मरण काल में च्यवने वाला, महेश नामक देव लज्जा के कारण, घृणा के कारण, परीषह के कारण कुछ समय तक आहार नहीं करता, फिर आहार करता है और ग्रहण किया हुआ आहार परिणत भी होता है अन्त में उस देव की वहाँ की आयु सर्वथा नष्ट हो जाती है इसलिए
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-७ नैरयिक Hindi 83 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भं वक्कममाणे किं सइंदिए वक्कमइ? अनिंदिए वक्कमइ? गोयमा! सिय सइंदिए वक्कमइ सिय अनिंदिए वक्कमइ से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइसिय सइंदिए वक्कमइ? सिय अनिंदिए वक्कमइ? गोयमा! दव्विंदियाइं पडुच्च अनिंदिए वक्कमइ भाविंदियाइं पडुच्च सइंदिए वक्कमइ से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइसिय सइंदिए वक्कमइ सिय अनिंदिए वक्कमइ जीवे णं भंते! गब्भं वक्कममाणे किं ससरीरी वक्कमइ, असरीरी वक्कमइ? गोयमा! सिय ससरीरी वक्कमइ सिय असरीरी वक्कमइ से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइसिय ससरीरी वक्कमइ? सिय असरीरी वक्कमइ? गोयमा! ओरालिय-वेउव्विय-आहारयाइं पडुच्च असरीरी वक्कमइ तेया-कम्माइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव, क्या इन्द्रियसहित उत्पन्न होता है अथवा इन्द्रियरहित उत्पन्न होता है? गौतम ! इन्द्रियसहित भी उत्पन्न होता है, इन्द्रियरहित भी उत्पन्न होता है भगवन्‌ ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! द्रव्येन्द्रियों की अपेक्षा वह बिना इन्द्रियों का उत्पन्न होता है और भावेन्द्रियों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-७ नैरयिक Hindi 84 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे किं आहारमाहारेइ? गोयमा! जं से माया नाणाविहाओ रसविगतीओ आहारमाहारेइ, तदेकदेसेणं ओयमाहारेइ जीवस्स णं भंते! गब्भगयस्स समाणस्स अत्थि उच्चारे वा पासवने वा खेले वा सिंघाणे वा वंते वा पित्ते वा? नो इणट्ठे समट्ठे से केणट्ठेणं? गोयमा! जीवे णं गब्भगए समाणे जमाहारेइ तं चिणाइ, तं जहासोइंदियत्ताए, चक्खिंदियत्ताए, घाणिंदियत्ताए, रसिंदियत्ताए फासिंदियत्ताए, अट्ठि-अट्ठिमिंज-केस-मंसु-रोम-नहत्ताए से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइजीवस्स णं गब्भगयस्स समाणस्स नत्थि उच्चारे वा पासवने वा खेले वा सिंघाणे वा वंते वा पित्ते वा जीवे णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! गर्भ में रहा हुआ जीव क्या नारकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! कोई उत्पन्न होता है और कोई नहीं उत्पन्न होता भगवन्‌ ! इसका क्या कारण है ? गौतम ! गर्भ में रहा हुआ संज्ञी पंचेन्द्रिय और समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त (परिपूर्ण) जीव, वीर्यलब्धि द्वारा, वैक्रियलब्धि द्वारा शत्रुसेना का आगमन</em> सूनकर, अवधारण (विचार)
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-८ बाल Hindi 85 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगंतबाले णं भंते! मनुस्से किं नेरइयाउयं पकरेति? तिरिक्खाउयं पकरेति? मनुस्साउयं पकरेति? देवाउयं पकरेति? नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जति? तिरियाउयं किच्चा तिरिएसु उववज्जति? मनुस्साउयं किच्चा मनुस्सेसु उववज्जति? देवाउयं किच्चा देवलोगेसु उववज्जति? गोयमा! एगंतबाले णं मनुस्से नेरइयाउयं पि पकरेति, तिरियाउयं वि पकरेति, मनुस्साउयं पि पकरेति, देवाउयं पि पकरेति, नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जति, तिरियाउयं किच्चा तिरिएसु उववज्जति, मनुस्साउयं किच्चा मनुस्सेसु उववज्जति, देवाउयं किच्चा देवलोगेसु उववज्जति

Translated Sutra: राजगृह नगर में समवसरण हुआ और यावत्‌ श्री गौतम स्वामी इस प्रकार बोले भगवन्‌ ! क्या एकान्त बाल (मिथ्यादृष्टि) मनुष्य, नारक की आयु बाँधता है, तिर्यंच की आयु बाँधता है, मनुष्य की आयु बाँधता है अथवा देव की आयु बाँधता है ? तथा क्या वह नरक की आयु बाँधकर नैरयिकों में उत्पन्न होता है; तिर्यंच की आयु बाँधकर तिर्यंचों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-८ बाल Hindi 86 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगंतपंडिए णं भंते! मनुस्से किं नेरइयाउयं पकरेति? तिरिक्खाउयं पकरेति? मनुस्साउयं पकरेति? देवाउयं पकरेति? नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जति? तिरियाउयं किच्चा तिरिएसु उववज्जति? मनुस्साउयं किच्चा मनुस्सेसु उववज्जति? देवाउयं किच्चा देवलोएसु उववज्जति? गोयमा! एगंतपंडिए णं मनुस्से आउयं सिय पकरेति, सिय नो पकरेति, जइ पकरेति नो नेरइयाउयं पकरेति, नो तिरियाउयं पकरेति, नो मनुस्साउयं पकरेति, देवाउयं पकरेति, नो नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जति, नो तिरियाउयं किच्चा तिरिएसु उववज्जति, नो मनुस्साउयं किच्चा मनुस्सेसु उववज्जति, देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जति से केणट्ठेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! एकान्तपण्डित मनुष्य क्या नरकायु बाँधता है ? या यावत्‌ देवायु बाँधता है ? और यावत्‌ देवायु बाँधकर देवलोक में उत्पन्न होता है ? हे गौतम ! एकान्तपण्डित मनुष्य, कदाचित्‌ आयु बाँधता है और कदाचित्‌ आयु नहीं बाँधता यदि आयु बाँधता है तो देवायु बाँधता है, किन्तु नरकायु, तिर्यंचायु और मनुष्यायु नहीं बाँधता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-८ बाल Hindi 87 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! कच्छंसि वा दहंसि वा उदगंसि वा दवियंसि वा वलयंसि वा नमंसि वा गहणंसि वा गहणविदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि वा वणंसि वा वणविदुग्गंसि वा मियवित्तीए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता एते मिय त्ति काउं अन्नयरस्स मियस्स वहाए कूडपासं उद्दाति, ततो णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइसिय तिकिरिए? सिय चउकिरिए? सिय पंचकिरिए? गोयमा! जे भविए उद्दवणयाएनो बंधनयाए, नो मारणयाएतावं णं से पुरिसे काइयाए, अहिगरणियाए, पाओसियाए तिहिं किरियाहिं पुट्ठे जे भविए उद्दवणताए वि, बंधनताए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मृगों से आजीविका चलाने वाला, मृगों का शिकारी, मृगों के शिकार में तल्लीन कोई पुरुष मृगवध के लिए नीकला हुआ कच्छ में, द्रह में, जलाशय में, घास आदि के समूह में, वलय में, अन्धकारयुक्त प्रदेश में, गहन में, पर्वत के एक भागवर्ती वन में, पर्वत पर पर्वतीय दुर्गम प्रदेश में, वन में, बहुत से वृक्षों से दुर्गम वन में,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-८ बाल Hindi 88 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गंसि वा तणाइं ऊसविय-ऊसविय अगनिकायं निसिरइतावं णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइसिय तिकिरिए? सिय चउकिरिए? सिय पंचकिरिए? गोयमा! जे भविए उस्सवणयाएणो निसिरणयाए, नो दहणयाएतावं णं से पुरिसे काइयाए, अहिगरणियाए, पाओवसियाएतिहिं किरियाहिं पुट्ठे जे भविए उस्सवणयाए वि, निसिरणयाए वि, नो दहणयाए तावं णं से पुरिसे काइयाए, अहिगरणियाए, पाओसियाए, पारितावणियाएचउहिं किरियाहिं पुट्ठे जे भविए उस्सवणयाए वि, निसिरणयाए वि, दहणयाए वि, तावं णं से पुरिसे काइयाए, अहिगरणियाए,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कच्छ में यावत्‌ वनविदुर्ग में कोई पुरुष घास के तिनके इकट्ठे करके उनमें अग्नि डाले तो वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होता है ? गौतम ! वह पुरुष कदाचित्‌ तीन क्रियाओं वाला, कदाचित्‌ चार क्रियाओं वाला और कदाचित्‌ पाँच क्रियाओं वाला होता है भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! जब तक वह पुरुष तिनके इकट्ठे
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-८ बाल Hindi 89 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गंसि वा मियवित्तीए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता एते मिय त्ति काउं अन्नतरस्स मियस्स वहाए उसुं निसिरति, ततो णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइसिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए? गोयमा! जे भविए निसिरणयाए नो विद्धंसणयाए, नो मारणयाएतावं णं से पुरिसे काइयाए, अहिगरणियाए, पाओसियाएतिहिं किरियाहिं पुट्ठे जे भविए निसिरणताए वि, विद्धंसणताए वि नो मारणयाएतावं णं से पुरिसे काइयाए, अहिगरणियाए, पाओसियाए, पारितावणियाएचउहिं किरियाहिं पुट्ठे जे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मृगों से आजीविका चलाने वाला, मृगों का शिकार करने के लिए कृतसंकल्प, मृगों के शिकार में तन्मय, मृगवध के लिए कच्छ में यावत्‌ वनविदुर्ग में जाकर ये मृग है ऐसा सोचकर किसी एक मृग को मारने के लिए बाण फैंकता है, तो वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होता है ? हे गौतम ! वह पुरुष कदाचित्‌ तीन क्रिया वाला, कदाचित्‌ चार क्रिया
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-८ बाल Hindi 90 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गंसि वा? मियवित्तीए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता एते मिय त्ति काउं अन्नतरस्स मियस्स वहाए आयत-कण्णायतं उसुं आयामेत्ता चिट्ठेज्जा, अन्नयरे पुरिसे मग्गतो आगम्म</em> सयपाणिणा असिणा सीसं छिंदेज्जा, से उसू ताए चेव पुव्वायामणयाए तं मियं चिंधेज्जा, से णं भंते! पुरिसे किं मियवेरेणं पुट्ठे? पुरिसवेरेणं पुट्ठे? गोयमा! जे मियं मारेइ, से मियवेरेणं पुट्ठे जे पुरिसं मारेइ, से पुरिसवेरेणं पुट्ठे [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइजे मियं मारेइ, से मियवेरेणं पुट्ठे? जे पुरिसं मारेइ, से पुरिसवेरेणं पुट्ठे? से नूनं गोयमा! कज्जमाणे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कोई पुरुष कच्छ में यावत्‌ किसी मृग का वध करने के लिए कान तक ताने हुए बाण को प्रयत्न पूर्वक खींच कर खड़ा हो और दूसरा कोई पुरुष पीछे से आकर उस खड़े हुए पुरुष का मस्तक अपने हाथ से तलवार द्वारा काट डाले वह बाण पहले के खिंचाव से उछलकर उस मृग को बींध डाले, तो हे भगवन्‌ ! वह पुरुष मृग के वैर से स्पृष्ट है या (उक्त)
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-८ बाल Hindi 91 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! पुरिसं सत्तीए समभिसंधेज्जा, सयपाणिणा वा से असिणा सीसं छिंदेज्जा, ततो णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए? गोयमा! जावं णं से पुरिसे तं पुरिसं सत्तीए समभिधंसेति, सयपाणिणा वा से असिणा सीसं छिंदतिताव णं से पुरिसे काइयाए, अहिगरणियाए, पाओसियाए, पारितावणियाए, पाणातिवात-किरियाएपंचहिं किरियाहिं पुट्ठे आसन्नवधएण अनवकंखणवत्तीए णं पुरिसवेरेणं पुट्ठे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कोई पुरुष किसी पुरुष को बरछी (या भाले) से मारे अथवा अपने हाथ से तलवार द्वारा उस पुरुष का मस्तक काट डाले, तो वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होता है ? गौतम ! जब वह पुरुष उसे बरछी द्वारा मारता है, अथवा अपने हाथ से तलवार द्वारा उस पुरुष का मस्तक काटता है, तब वह पुरुष कायिकी, आधिकर णिकी यावत्‌ प्राणातिपातिकी इन पाँचों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-८ बाल Hindi 92 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते! पुरिसा सरिसया सरित्तया सरिव्वया सरिसभंडमत्तोवगरणा अन्नमन्नेणं सद्धिं संगामं संगामेंति तत्थ णं एगे पुरिसे पराइणति, एगे पुरिसे परायिज्जति से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! सवीरिए परायिणति, अवीरिए परायिज्जति से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइसवीरिए परायिणति? अवीरिए परायिज्जति? गोयमा! जस्स णं वीरियवज्झाइं कम्माइं नो बद्धाइं नो पुट्ठाइं नो निहत्ताइं नो कडाइं नो पट्ठवियाइं नो अभिनिविट्ठाइं नो अभिसमन्नागयाइं नो उदिण्णाइंउवसंताइं भवंति से णं परायिणति जस्स णं वीरियवज्झाइं कम्माइं बद्धाइं पुट्ठाइं निहत्ताइं कडाइं पट्ठवियाइं अभिनिविट्ठाइं अभि-समन्नागयाइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! एक सरीखे, एक सरीखी चमड़ी वाले, समानवयस्क, समान द्रव्य और उपकरण वाले कोई दो पुरुष परस्पर एक दूसरे के साथ संग्राम करें, तो उनमें से एक पुरुष जीतता है और एक पुरुष हारता है; भगवन्‌ ! ऐसा क्यों होता है ? हे गौतम ! जो पुरुष सवीर्य होता है, वह जीतता है और जो वीर्यहीन होता है, वह हारता है ? भगवन्‌ ! इसका क्या कारण है ? गौतम
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-८ बाल Hindi 93 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं सवीरिया? अवीरिया? गोयमा! सवीरिया वि, अवीरिया वि से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइजीवा सवीरिया वि? अवीरिया वि? गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहासंसारसमावन्नगा , असंसारसमावन्नगा तत्थ णं जे ते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा सिद्धा णं अवीरिया तत्थ णं जे ते संसार-समावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहासेलेसिपडिवन्नगा , असेलेसिपडिवन्नगा तत्थ णं जे ते सेलेसिपडिवन्नगा ते णं लद्धिवीरिएणं सवीरिया, करणवीरिएणं अवीरिया तत्थ णं जे ते असेलेसिपडिवन्नगा ते णं लद्धिवीरिएणं सवीरिया, करणवीरिएणं सवीरिया वि, अवीरिया वि से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइजीवा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव सवीर्य है अथवा अवीर्य है ? गौतम ! जीव सवीर्य भी है अवीर्य भी है भगवन्‌ ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ? गौतम ! जीव दो प्रकार के हैं संसारसमापन्नक और असंसारसमापन्नक जो जीव असंसारसमापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं, वे अवीर्य हैं जो जीव संसार समापन्नक हैं, वे दो प्रकार के हैं, शैलेशी प्रतिपन्न और
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-९ गुरुत्त्व Hindi 94 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहन्नं भंते! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छति? गोयमा! पाणाइवाएणं मुसावाएणं अदिन्नादानेणं मेहुणेणं परिग्गहेणं कोह-मान-माया-लोभ-पेज्ज -दोस-कलह-अब्भक्खाण-पेसुन्न-परपरिवाय-अरति-रति-मायामोस-मिच्छादंसणसल्लेणं एवं खलु गोयमा! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छति कहन्नं भंते! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति? गोयमा! पाणाइवाय-वेरमणेणं मुसावाय-वेरमणेणं अदिन्नादान-वेरमणेणं मेहुण-वेरमणेणं परिग्गह-वेरमणेणं कोह-मान-माया-लोभ-पेज्ज-दोस-कलह-अब्भक्खाण-पेसुन्न-परपरिवाय-अरति रति-मायामोस-मिच्छादंसणसल्ल वेरमणेणंएवं खलु गोयमा! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति कहन्नं भंते! जीवा संसारं आउलीकरेंति? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव किस प्रकार शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त होते हैं ? गौतम ! प्राणातिपात से, मृषावाद से, अदत्ता दान से, मैथुन से, परिग्रह से, क्रोध से, मान से, माया से, लोभ से, राग से, द्वेष से, कलह से, अभ्याख्यान से, पैशुन्य से, रति अरति से, परपरिवाद से, मायामृषा से और मिथ्यादर्शनशल्य से; इस प्रकार हे गौतम ! (इन अठारह ही पापस्थानों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-९ गुरुत्त्व Hindi 95 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तमे णं भंते! ओवासंतरे किं गरुए? लहुए? गरुयलहुए? अगरुयलहुए? गोयमा! नो गरुए, नो लहुए, नो गरुयलहुए, अगरुयलहुए सत्तमे णं भंते! तनुवाए किं गरुए? लहुए? गरुयलहुए? अगरुयलहुए? गोयमा! नो गरुए, नो लहुए, गरुयलहुए, नो अगरुयलहुए एवं सत्तमे घनवाए, सत्तमे घनोदही, सत्तमा पुढवी ओवासंतराइं सव्वाइं जहा सत्तमे ओवासंतरे जहा तनुवाए एवंओवास-वाय-घनउदही, पुढवी दीवा सागरा वासा नेरइया णं भंते! किं गरुया? लहुया? गरुयलहुया? अगरुयलहुया? गोयमा! नो गरुया, नो लहुया, गरुयलहुया वि, अगरुयलहुया वि से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइनेरइया नो गरुया? नो लहुया? गरुयलहुया वि? अगरुयलहुया वि? गोयमा! विउव्विय-तेयाइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सातवाँ अवकाशान्तर गुरु है, अथवा वह लघु है, या गुरुलघु है, अथवा अगुरुलघु है ? गौतम! वह गुरु नहीं है, लघु नहीं है, गुरु लघु नहीं है, किन्तु अगुरुलघु है भगवन्‌ ! सप्तम तनुवात क्या गुरु है, लघु है या गुरुलघु है अथवा अगुरुलघु है ? गौतम ! वह गुरु नहीं है, लघु नहीं है, किन्तु गुरु लघु है; अगुरुलघु नहीं है इस
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-९ गुरुत्त्व Hindi 96 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! लाघवियं अप्पिच्छा अमुच्छा अगेही अपडिबद्धया समणाणं निग्गंथाणं पसत्थं? हंता गोयमा! लाघवियं अप्पिच्छा अमुच्छा अगेही अपडिबद्धया समणाणं निग्गंथाणं पसत्थं से नूनं भंते! अकोहत्तं अमानत्तं अमायत्तं अलोभत्तं समणाणं निग्गंथाणं पसत्थं? हंता गोयमा! अकोहत्तं अमानत्तं अमायत्तं अलोभत्तं समणाणं निग्गंथाणं पसत्थं से नूनं भंते! कंखापदोसे खीणे समणे निग्गंथे अंतकरे भवति, अंतिमसरीरिए वा? बहुमोहे वि णं पुव्विं विहरित्ता अह पच्छा संवुडे कालं करेइ ततो पच्छा सिज्झति बुज्झति मुच्चति परिनिव्वाति सव्वदुक्खाणं अंतं करेति? हंता गोयमा! कंखापदोसे खीणे समणे निग्गंथे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या लाघव, अल्पईच्छा, अमूर्च्छा, अनासक्ति और अप्रतिबद्धता, ये श्रमणनिर्ग्रन्थों के लिए प्रशस्त हैं? हाँ, गौतम! लाघव यावत्‌ अप्रतिबद्धता प्रशस्त हैं भगवन्‌ ! क्रोधरहितता, मानरहितता, मायारहितता, अलोभत्व, क्या ये श्रमणनिर्ग्रन्थों के लिए प्रशस्त हैं ? हाँ, क्रोधरहितता यावत्‌ अलोभत्व, ये सब श्रमणनिर्ग्रन्थों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-९ गुरुत्त्व Hindi 97 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पन्नवेंति, एवं परूवेंतिएवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाइं पकरेति, तं जहाइहभवियाउयं , परभवियाउयं जं समयं इहभवियाउयं पकरेति, तं समयं परभवियाउयं पकरेति जं समयं परभवियाउयं पकरेति, तं समयं इहभवियाउयं पकरेति इहभवियाउयस्स पकरणयाए परभवियाउयं पकरेति, परभवियाउयस्स पकरणयाए इहभवियाउयं पकरेति एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाइं पकरेति, तं जहाइहभवियाउयं , परभवियाउयं से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाइं पकरेति, तं जहाइहभ-वियाउयं , परभवियाउयं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, इस प्रकार विशेषरूप से कहते हैं, इस प्रकार बताते हैं, और इस प्रकार की प्ररूपणा करते हैं कि एक जीव एक समय में दो आयुष्य करता (बाँधता) है वह इस प्रकार इस भव का आयुष्य और परभव का आयुष्य जिस समय इस भव का आयुष्य करता है, उस समय परभव का आयुष्य करता है और जिस समय परभव का आयुष्य करता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-९ गुरुत्त्व Hindi 98 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जे कालासवेसियपुत्ते नामं अनगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता थेरे भगवंते एवं वयासी थेरा सामाइयं याणंति, थेरा सामाइयस्स अट्ठं याणंति थेरा पच्चक्खाणं याणंति, थेरा पच्चक्खाणस्स अट्ठं याणंति थेरा संजमं याणंति, थेरा संजमस्स अट्ठं याणंति थेरा संवरं याणंति, थेरा संवरस्स अट्ठं याणंति थेरा विवेगं याणंति, थेरा विवेगस्स अट्ठं याणंति थेरा विउस्सग्गं याणंति, थेरा विउस्सगस्स अट्ठं याणंति तए णं थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अनगारं एवं वदासी जाणामो णं अज्जो! सामाइयं, जाणामो णं अज्जो! सामाइयस्स

Translated Sutra: उस काल और उस समय (भगवान महावीर के शासनकाल) में पार्श्वापत्यीय कालास्यवेषिपुत्र नामक अनगार जहाँ (भगवान महावीर के) स्थविर भगवान बिराजमान थे, वहाँ गए स्थविर भगवंतों से उन्होंने कहा हे स्थविरो ! आप सामयिक को नहीं जानते, सामयिक के अर्थ को नहीं जानते, आप प्रत्याख्यान को नहीं जानते और प्रत्याख्यान के अर्थ को नहीं
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शतक-१

उद्देशक-९ गुरुत्त्व Hindi 99 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंते ति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वदासीसे नूनं भंते! सेट्ठियस्स तणुयस्स किवणस्स खत्तियस्स समा चेव अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ? हंता गोयमा! सेट्ठियस्स तणुयस्स किवणस्स खत्तियस्स समा चेव अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइसेट्ठियस्स तणुयस्स किवणस्स खत्तियस्स समा चेव अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ? गोयमा! अविरतिं पडुच्च से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइसेट्ठियस्स तणुयस्स किवणस्स खत्तियस्स समा चेव अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ऐसा कहकर भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन नमस्कार किया तत्पश्चात्‌ वे इस प्रकार बोले भगवन्‌ ! क्या श्रेष्ठी और दरिद्र को, रंक को और क्षत्रिय को अप्रत्याख्यान क्रिया समान होती है ? हाँ, गौतम ! श्रेष्ठी यावत्‌ क्षत्रिय राजा के द्वारा अप्रत्याख्यान क्रिया समान की जाती है; भगवन्‌ ! आप
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-९ गुरुत्त्व Hindi 100 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आहाकम्मं णं भुंजमाणे समणे निग्गंथे किं बंधइ? किं पकरेइ? किं चिणाइ? किं उवचिणाइ? गोयमा! आहाकम्मं णं भुंजमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ सिढिलबंधनबद्धाओ धनियबंधनबद्धाओ पकरेइ, हस्स कालठिइयाओ दीहकालठिइयाओ पकरेइ, मंदानुभावाओ तिव्वा-नुभावाओ पकरेइ, अप्पपएसग्गाओ बहुप्पएसग्गाओ पकरेइ, आउयं णं कम्मं सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, अस्सायावेयणिज्जं णं कम्मं भुज्जो-भुज्जो उवचिणाइ, अनाइयं णं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टइ से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइआहाकम्मं णं भुंजमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ सिढिलबंधनबद्धाओ धनियबंधनबद्धाओ पकरेइ जाव चाउरंतं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आधाकर्मदोषयुक्त आहारादि का उपभोग करता हुआ श्रमणनिर्ग्रन्थ क्या बाँधता है ? क्या करता है? किसका चय (वृद्धि) करता है, और किसका उपचय करता है ? गौतम ! आधाकर्मदोषयुक्त आहारादि का उपभोग करता हुआ श्रमणनिर्ग्रन्थ आयुकर्म को छोड़कर शिथिलबन्धन से बंधी हुई सात कर्मप्रकृतियों को दृढ़ बन्धन से बंधी हुई बना लेता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-९ गुरुत्त्व Hindi 101 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! अथिरे पलोट्टइ, नो थिरे पलोट्टइ? अथिरे भज्जइ, नो थिरे भज्जइ? सासए बालए, बालियत्तं असासयं? सासए पंडिए, पंडियत्तं असासयं? हंता गोयमा! अथिरे पलोट्टइ, नो थिरे पलोट्टइ अथिरे भज्जइ, नो थिरे भज्जइ सासए बालए, बालियत्तं असासयं सासए पंडिए, पंडियत्तं असासयं सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ

Translated Sutra:
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